BAHI(N)101 SOLVED QUESTION PAPER 2025
1. इतिहास की परिभाषा, क्षेत्र एवं महत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इतिहास की परिभाषा:
इतिहास शब्द का अर्थ है "ऐसा निश्चित रूप से हुआ"। यह अतीत की घटनाओं का कालक्रमानुसार अध्ययन है। इतिहास में मानव समाज, उसकी संस्कृति, रीति-रिवाज, राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक गतिविधियों का अध्ययन किया जाता है।
इतिहास का क्षेत्र:
इतिहास का क्षेत्र बहुत व्यापक है। इसमें निम्नलिखित क्षेत्रों का अध्ययन किया जाता है:
* राजनीतिक इतिहास: इसमें राजाओं, शासकों, साम्राज्यों, युद्धों और राजनीतिक घटनाओं का अध्ययन किया जाता है।
* सामाजिक इतिहास: इसमें समाज, उसकी संरचना, वर्ग, जाति, रीति-रिवाज, परंपराएं और सामाजिक आंदोलनों का अध्ययन किया जाता है।
* आर्थिक इतिहास: इसमें अर्थव्यवस्था, व्यापार, उद्योग, कृषि और आर्थिक विकास का अध्ययन किया जाता है।
* सांस्कृतिक इतिहास: इसमें कला, साहित्य, संगीत, नृत्य, धर्म, दर्शन और विज्ञान का अध्ययन किया जाता है।
इतिहास का महत्व:
इतिहास का अध्ययन हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसके निम्नलिखित कारण हैं:
* अतीत को समझने में मदद: इतिहास हमें अतीत को समझने में मदद करता है। यह हमें बताता है कि हमारा समाज, हमारी संस्कृति और हमारी दुनिया कैसे विकसित हुई है।
* वर्तमान को समझने में मदद: इतिहास हमें वर्तमान को समझने में मदद करता है। यह हमें बताता है कि हमारी समस्याएं और चुनौतियां कैसे उत्पन्न हुई हैं।
* भविष्य के लिए मार्गदर्शन: इतिहास हमें भविष्य के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। यह हमें बताता है कि अतीत में क्या गलतियाँ हुई थीं और उनसे कैसे बचा जा सकता है।
ज्ञान और जागरूकता में वृद्धि: इतिहास का अध्ययन हमारे ज्ञान और जागरूकता में वृद्धि करता है। यह हमें दुनिया और उसके लोगों के बारे में अधिक जानने में मदद करता है।
2. भारत में ताम्रपाषाण युगीन बस्तियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
ताम्रपाषाण युग, जिसे कैल्कोलिथिक युग भी कहा जाता है, इतिहास का वह काल है जब मनुष्य ने तांबे और पत्थर दोनों का औजारों के निर्माण में उपयोग करना शुरू कर दिया था। यह युग हड़प्पा सभ्यता से पहले का है। भारत में कई ताम्रपाषाण युगीन बस्तियाँ पाई गई हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं:
आहार संस्कृति: यह संस्कृति राजस्थान में बनास नदी के किनारे विकसित हुई थी। यहाँ के लोग कृषि और पशुपालन करते थे।
मालवा संस्कृति: यह संस्कृति मध्य प्रदेश में विकसित हुई थी। यहाँ के लोग मिट्टी के घरों में रहते थे और कृषि करते थे।
जोरवे संस्कृति: यह संस्कृति महाराष्ट्र में विकसित हुई थी। यहाँ के लोग मिट्टी के घरों में रहते थे और कृषि के साथ-साथ पशुपालन भी करते थे।
प्रभास संस्कृति: यह संस्कृति गुजरात में विकसित हुई थी। यहाँ के लोग समुद्र के किनारे रहते थे और मछली पकड़ने के साथ-साथ कृषि भी करते थे।
इन सभी संस्कृतियों के लोग तांबे के औजारों और हथियारों का उपयोग करते थे। वे मिट्टी के बर्तन भी बनाते थे जिन पर चित्रकारी की जाती थी।
3. मगध के उत्कर्ष पर विस्तृत चर्चा कीजिए।
उत्तर:
मगध प्राचीन भारत का एक शक्तिशाली महाजनपद था। इसका उत्कर्ष छठी शताब्दी ईसा पूर्व में हुआ था। मगध के उत्कर्ष के कई कारण थे, जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं:
भौगोलिक स्थिति: मगध की भौगोलिक स्थिति बहुत ही अनुकूल थी। यह गंगा और सोन नदियों के किनारे स्थित था, जो इसे कृषि और व्यापार के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण बनाता था।
शक्तिशाली शासक: मगध में कई शक्तिशाली शासक हुए, जैसे कि बिंबिसार, अजातशत्रु और महापद्मनंद। इन शासकों ने मगध को एक शक्तिशाली साम्राज्य बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
समृद्ध अर्थव्यवस्था: मगध की अर्थव्यवस्था बहुत ही समृद्ध थी। यहाँ कृषि और व्यापार बहुत ही विकसित थे।
सैन्य शक्ति: मगध की सैन्य शक्ति बहुत ही मजबूत थी। यहाँ की सेना में हाथी, घोड़े और रथों का उपयोग किया जाता था।
इन सभी कारणों के चलते मगध प्राचीन भारत का सबसे शक्तिशाली महाजनपद बन गया।
4. अशोक के धम्म को समझाइये, क्या अशोक बौद्ध था?
उत्तर:
अशोक मौर्य साम्राज्य के एक महान सम्राट थे। उन्होंने कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म अपना लिया था। अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए धम्म की नीति अपनाई। धम्म का अर्थ है "धर्म" या "नैतिकता"। अशोक का धम्म सभी धर्मों के मूल सिद्धांतों पर आधारित था। इसमें अहिंसा, सत्य, दया, दान और सभी के प्रति सम्मान की भावना को महत्व दिया गया था।
अशोक बौद्ध धर्म के अनुयायी थे, लेकिन उन्होंने अपने धम्म में सभी धर्मों के अच्छे विचारों को शामिल किया था। उन्होंने अपनी प्रजा को धम्म के सिद्धांतों का पालन करने के लिए प्रेरित किया।
5. संगम साहित्य पर चर्चा कीजिए।
संगम साहित्य प्राचीन तमिल साहित्य है। यह तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से तीसरी शताब्दी ईस्वी के बीच लिखा गया था। संगम साहित्य में कविता, गीत, नाटक और कहानियाँ शामिल हैं। यह साहित्य तमिल भाषा और संस्कृति के बारे में बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है।
संगम साहित्य में तीन प्रमुख संगमों का उल्लेख है। इन संगमों में कई विद्वानों और कवियों ने भाग लिया था। संगम साहित्य में प्रेम, युद्ध, प्रकृति और दर्शन जैसे विषयों पर रचनाएँ लिखी गई हैं। यह साहित्य तमिल भाषा और संस्कृति की समृद्धि का प्रतीक है।
खंड ख
SECTION B
1. मोहनजोदड़ो (Mohenjodaro)
परिचय
मोहनजोदड़ो, सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) का एक प्रमुख नगर था, जो वर्तमान पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित है। यह नगर लगभग 2600 ईसा पूर्व में स्थापित किया गया था और दुनिया की सबसे पुरानी योजनाबद्ध नगरीय सभ्यताओं में से एक था। 1922 में भारतीय पुरातत्वविद राखालदास बनर्जी ने इसकी खोज की थी। यह नगर अपनी उत्कृष्ट नगर योजना, विकसित जल निकासी प्रणाली और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है।
नगर योजना और संरचना
मोहनजोदड़ो की नगर योजना अत्यंत विकसित थी। इसकी सड़कों को ग्रिड पैटर्न में बनाया गया था, जो उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम दिशा में फैली हुई थीं। यहाँ प्रमुख रूप से दो भाग थे—ऊपरी नगर (गढ़ क्षेत्र) और निचला नगर।
ऊपरी नगर (गढ़ क्षेत्र) – यह प्रशासनिक और धार्मिक गतिविधियों का केंद्र था। यहाँ विशाल स्नानागार (Great Bath) स्थित था, जिसे पवित्र अनुष्ठानों के लिए उपयोग किया जाता था।
निचला नगर – यह आम लोगों के निवास का क्षेत्र था, जहाँ बड़े मकान, गलियाँ और व्यापारिक प्रतिष्ठान थे।
आर्थिक और सामाजिक जीवन
मोहनजोदड़ो के निवासी कृषि, व्यापार, कुटीर उद्योगों और कारीगरी में संलग्न थे। यहाँ से तांबे, कांसे, मनकों और मुहरों के प्रमाण मिले हैं, जो दर्शाते हैं कि यहाँ के लोग व्यापार में निपुण थे। इनके व्यापारिक संबंध मेसोपोटामिया (आधुनिक इराक), फारस और अन्य पड़ोसी सभ्यताओं से थे। समाज की संरचना समानता पर आधारित प्रतीत होती है क्योंकि महलों या बड़े धार्मिक स्थलों के कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं।
धार्मिक मान्यताएँ
मोहनजोदड़ो के लोग प्रकृति पूजा, मातृ देवी पूजा और पशुपति (भगवान शिव के प्रारंभिक रूप) की आराधना करते थे। यहाँ से मिली मुहरों पर पशुपति आकृति, स्वास्तिक चिह्न और अन्य प्रतीकों के प्रमाण मिलते हैं।
पतन के कारण
मोहनजोदड़ो का पतन लगभग 1900 ईसा पूर्व में हुआ। इसके पतन के कई संभावित कारण माने जाते हैं:
बाढ़ और जलवायु परिवर्तन – सिंधु नदी के बार-बार आने वाले बाढ़ों ने इस नगर को नष्ट कर दिया।
आर्यों का आक्रमण – कुछ विद्वानों का मानना है कि आर्यों ने आक्रमण कर इस सभ्यता का अंत कर दिया।
भूगर्भीय परिवर्तन – भूकंप और जलवायु परिवर्तन से कृषि और जल स्रोत प्रभावित हुए।
आंतरिक विद्रोह – कुछ इतिहासकारों के अनुसार, आंतरिक संघर्ष और प्रशासनिक विफलता भी पतन का कारण हो सकता है।
निष्कर्ष
मोहनजोदड़ो न केवल सिंधु घाटी सभ्यता का महत्वपूर्ण केंद्र था, बल्कि यह दुनिया की सबसे उन्नत प्राचीन सभ्यताओं में से एक था। इसकी नगर योजना, व्यापार व्यवस्था, सामाजिक संरचना और सांस्कृतिक विकास ने भारतीय उपमहाद्वीप के भविष्य के शहरीकरण पर गहरा प्रभाव डाला।
2. नवपाषाण संस्कृति (Neolithic Culture)
परिचय
नवपाषाण युग (Neolithic Age) मानव सभ्यता के विकास का एक महत्वपूर्ण चरण था, जो लगभग 9000 ईसा पूर्व से 3000 ईसा पूर्व तक फैला हुआ था। इस युग की सबसे बड़ी विशेषता कृषि का विकास और स्थायी बस्तियों की स्थापना थी। यह काल मानव समाज में एक बड़ी क्रांति लेकर आया, क्योंकि शिकारी-संग्राहक जीवनशैली को छोड़कर लोग व्यवस्थित कृषि और पशुपालन की ओर बढ़ने लगे।
मुख्य विशेषताएँ
कृषि का विकास – नवपाषाण युग में पहली बार लोग खेती करने लगे। इस दौरान गेहूं, जौ, बाजरा और अन्य फसलों की खेती की जाती थी।
पशुपालन – इस युग में कुत्ता, भेड़, बकरी, गाय और सुअर को पालतू बनाया गया, जिससे भोजन और परिवहन में सुविधा मिली।
स्थायी बस्तियाँ – लोग गुफाओं और अस्थायी आश्रयों में रहने के बजाय स्थायी घर बनाने लगे।
मिट्टी के बर्तन – इस युग में पहली बार मृद्भांड (pottery) का निर्माण किया गया, जिससे अनाज और पानी को संग्रहित किया जा सके।
औजारों में सुधार – पत्थर के औजारों को पहले से अधिक चमकाया और मजबूत बनाया गया।
वस्त्र निर्माण – लोग कपड़े बनाने के लिए सूत और ऊन का उपयोग करने लगे।
प्रमुख नवपाषाण स्थल
भारत और विश्व में कई नवपाषाण कालीन स्थलों की खोज हुई है, जिनमें प्रमुख हैं:
मेहरगढ़ (पाकिस्तान) – यह दक्षिण एशिया का सबसे पुराना नवपाषाण स्थल है, जहाँ कृषि और पशुपालन के प्रमाण मिले हैं।
बुर्जहोम (कश्मीर) – यहाँ लोग भूमिगत घरों में रहते थे और शिकारी एवं कृषक जीवनशैली अपनाई थी।
आदमगढ़ (मध्य प्रदेश) – यहाँ से नवपाषाण औजार और गुफा चित्र मिले हैं।
बेलन घाटी (उत्तर प्रदेश) – इस क्षेत्र में नवपाषाण संस्कृति से जुड़े कई प्रमाण पाए गए हैं।
चिरांद (बिहार) – यह स्थल धातु उपकरणों और मिट्टी के बर्तनों के लिए प्रसिद्ध है।
धार्मिक और सामाजिक जीवन
नवपाषाण युग में लोग प्रकृति की पूजा करने लगे थे। सूर्य, चंद्रमा, जल स्रोतों और पहाड़ों को देवता के रूप में माना जाता था। इस युग में मृतकों को दफनाने की प्रथा भी विकसित हुई, जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि लोग पुनर्जन्म और आत्मा के अस्तित्व में विश्वास करते थे।
नवपाषाण क्रांति का प्रभाव
नवपाषाण युग में हुई कृषि क्रांति ने मानव जीवन को स्थायित्व प्रदान किया और बड़े सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तन लाए। लोगों ने समूहों में रहना शुरू किया, जिससे समाज में श्रम विभाजन हुआ। इससे आगे चलकर नगरों और सभ्यताओं का विकास हुआ।
निष्कर्ष
नवपाषाण संस्कृति मानव इतिहास का एक महत्वपूर्ण चरण था, जिसने सभ्यता की नींव रखी। इस युग में हुई कृषि और पशुपालन की शुरुआत ने आने वाली सभ्यताओं को आकार दिया और आधुनिक समाज की बुनियाद रखी।
3. सिंधु सभ्यता का पतन (Decline of Indus Civilization)
परिचय
सिंधु घाटी सभ्यता (Harappan Civilization), जिसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है, लगभग 2600-1900 ईसा पूर्व के बीच फली-फूली। यह विश्व की सबसे विकसित और संगठित प्राचीन सभ्यताओं में से एक थी, लेकिन अचानक इसका पतन हो गया।
पतन के संभावित कारण
पर्यावरणीय परिवर्तन – जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि प्रभावित हुई और लोग अन्य स्थानों की ओर पलायन करने लगे।
बाढ़ और सूखा – सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों में बार-बार बाढ़ आने के कारण नगर नष्ट हो गए।
आर्यों का आक्रमण – कुछ विद्वानों के अनुसार, मध्य एशिया से आए आर्यों ने इस सभ्यता का अंत कर दिया।
आर्थिक गिरावट – व्यापारिक मार्गों के अवरुद्ध होने से आर्थिक गतिविधियाँ कमजोर हो गईं।
भूगर्भीय परिवर्तन – भूकंप और नदियों के मार्ग परिवर्तन से शहर उजड़ गए।
आंतरिक संघर्ष – प्रशासनिक अस्थिरता और सामाजिक अव्यवस्था भी पतन का कारण बन सकती है।
निष्कर्ष
हालाँकि सिंधु सभ्यता का पतन हो गया, लेकिन इसकी संस्कृति और तकनीकें
भारतीय समाज में समाहित हो गईं और आगे चलकर वैदिक सभ्यता का आधार बनीं।
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