UOU BAED(N)201 IMPORTANT SOLVED QUESTIONS 2025
प्रश्न 01 आजीवन शिक्षा से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
परिचय
आजीवन शिक्षा (Lifelong Learning) एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति अपने जीवन के किसी भी चरण में नए ज्ञान, कौशल और अनुभवों को प्राप्त करता है। यह औपचारिक शिक्षा तक सीमित नहीं होती, बल्कि अनौपचारिक और स्व-अध्ययन के माध्यम से भी जारी रहती है।
आजीवन शिक्षा का अर्थ
आजीवन शिक्षा का अर्थ केवल स्कूली या कॉलेज की पढ़ाई तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक सतत प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति अपने जीवनभर सीखता रहता है। यह शिक्षा व्यक्ति को समाज, विज्ञान, तकनीक, संस्कृति, और व्यक्तिगत विकास से जोड़े रखती है।
आजीवन शिक्षा की विशेषताएँ
निरंतरता (Continuity) – यह एक जीवनभर चलने वाली प्रक्रिया है।
स्व-अध्ययन (Self-Learning) – व्यक्ति स्वयं नई चीजें सीखने के लिए प्रेरित रहता है।
अनुभव-आधारित शिक्षा (Experience-Based Learning) – यह शिक्षा केवल पुस्तकों तक सीमित नहीं होती, बल्कि अनुभवों से भी प्राप्त होती है।
तकनीक-समर्थित शिक्षा (Technology-Supported Learning) – डिजिटल माध्यमों और ऑनलाइन संसाधनों से इसे और अधिक सुलभ बनाया जा सकता है।
आजीवन शिक्षा का महत्व
व्यक्तिगत विकास – इससे व्यक्ति अपने कौशल को निखार सकता है और आत्मनिर्भर बन सकता है।
व्यावसायिक उन्नति – नई तकनीकों और ज्ञान को सीखकर व्यक्ति अपने करियर में आगे बढ़ सकता है।
सामाजिक योगदान – शिक्षित व्यक्ति समाज में जागरूकता फैलाने और विकास में योगदान देने में सक्षम होता है।
तकनीकी विकास के साथ तालमेल – विज्ञान और तकनीक में निरंतर हो रहे बदलावों के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है।
निष्कर्ष
आजीवन शिक्षा व्यक्ति के समग्र विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। यह केवल औपचारिक शिक्षा तक सीमित न होकर, अनुभव, तकनीक, और समाज से जुड़े ज्ञान को भी समाहित करती है। एक सतत शिक्षार्थी न केवल स्वयं का विकास करता है, बल्कि समाज और राष्ट्र की उन्नति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
प्रश्न 02 आजीवन शिक्षा के महत्व को बताते हुए इसकी विशेषताएं बताइए।
परिचय
आजीवन शिक्षा (Lifelong Learning) वह प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने पूरे जीवन में निरंतर ज्ञान और कौशल अर्जित करता रहता है। यह केवल स्कूल या विश्वविद्यालय की पढ़ाई तक सीमित नहीं होती, बल्कि अनुभवों, स्व-अध्ययन, और तकनीकी संसाधनों के माध्यम से भी प्राप्त की जाती है। आधुनिक समाज में तेजी से बदलती परिस्थितियों के कारण आजीवन शिक्षा की आवश्यकता और भी बढ़ गई है।
आजीवन शिक्षा का महत्व
व्यक्तिगत विकास – यह आत्मनिर्भरता, आत्मविश्वास और निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाती है।
करियर में प्रगति – नई तकनीकों और ज्ञान को सीखकर व्यक्ति अपने व्यवसाय या नौकरी में आगे बढ़ सकता है।
समाज में योगदान – एक शिक्षित व्यक्ति समाज में जागरूकता फैलाने और सामाजिक विकास में योगदान देने में सक्षम होता है।
तकनीकी परिवर्तन के साथ तालमेल – विज्ञान और तकनीक में हो रहे परिवर्तनों के अनुरूप खुद को अपडेट रखना आवश्यक है।
रचनात्मकता और नवाचार को बढ़ावा – निरंतर सीखने की प्रक्रिया से नई सोच और नवाचार को बढ़ावा मिलता है।
सांस्कृतिक और सामाजिक समझ – इससे व्यक्ति विभिन्न संस्कृतियों और समाजों को बेहतर ढंग से समझ सकता है।
मानसिक सक्रियता बनाए रखना – यह मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने और बुढ़ापे में भी सक्रिय रहने में सहायक होती है।
आजीवन शिक्षा की विशेषताएँ
निरंतरता (Continuity) – यह शिक्षा जीवनभर चलती रहती है और किसी उम्र तक सीमित नहीं होती।
स्व-अध्ययन (Self-Learning) – व्यक्ति स्वयं सीखने के लिए प्रेरित रहता है, जिससे उसकी ज्ञानार्जन की क्षमता बढ़ती है।
अनुभव-आधारित शिक्षा (Experience-Based Learning) – यह केवल किताबों तक सीमित नहीं होती, बल्कि अनुभवों के आधार पर भी प्राप्त होती है।
तकनीकी सहायता (Technology-Supported Learning) – इंटरनेट, ऑनलाइन कोर्स, डिजिटल पुस्तकालय, और वीडियो ट्यूटोरियल्स इसे आसान बनाते हैं।
व्यापकता (Universality) – यह शिक्षा किसी विशेष विषय, क्षेत्र या आयु वर्ग तक सीमित नहीं होती, बल्कि हर व्यक्ति के लिए उपलब्ध होती है।
लचीला ढांचा (Flexibility) – व्यक्ति अपनी सुविधानुसार कभी भी और कहीं भी सीख सकता है।
समाज और कार्यक्षेत्र में अनुकूलन (Adaptability in Society & Workplace) – यह व्यक्ति को सामाजिक और व्यावसायिक परिवर्तनों के अनुकूल बनने में मदद करती है।
निष्कर्ष
आजीवन शिक्षा आधुनिक युग की एक आवश्यक आवश्यकता है। यह न केवल व्यक्ति के व्यक्तिगत और व्यावसायिक विकास में सहायक होती है, बल्कि समाज और राष्ट्र की उन्नति में भी योगदान देती है। निरंतर सीखने की प्रवृत्ति अपनाकर हम अपने जीवन को अधिक सफल और समृद्ध बना सकते हैं।
प्रश्न 03 सतत् शिक्षा को बताते हुए इसके महत्व और विशेषताएं बताइए।
परिचय
सतत् शिक्षा (Continuous Education) वह प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति नियमित रूप से नए ज्ञान और कौशल प्राप्त करता रहता है। यह केवल औपचारिक शिक्षा तक सीमित नहीं होती, बल्कि जीवनभर चलने वाली एक गतिशील प्रक्रिया होती है। इसका उद्देश्य व्यक्ति को बदलते सामाजिक, तकनीकी और व्यावसायिक परिवेश के अनुसार अद्यतन (update) रखना है।
सतत् शिक्षा का अर्थ
सतत् शिक्षा का अर्थ ऐसी शिक्षा से है जो व्यक्ति के शैक्षणिक जीवन समाप्त होने के बाद भी जारी रहती है। यह शिक्षा स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय या व्यावसायिक प्रशिक्षण के रूप में हो सकती है, लेकिन इसका सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह निरंतर होती रहती है।
सतत् शिक्षा का महत्व
आजीवन सीखने की प्रवृत्ति विकसित करना – यह व्यक्ति को हर समय सीखने के लिए प्रेरित करती है।
तकनीकी विकास के साथ सामंजस्य – तेजी से बदलती तकनीक के अनुरूप खुद को अपडेट रखने में मदद करती है।
व्यावसायिक उन्नति – कार्यक्षेत्र में नए कौशल सीखने से व्यक्ति अपने करियर में आगे बढ़ सकता है।
व्यक्तिगत और बौद्धिक विकास – इससे व्यक्ति की सोचने-समझने की क्षमता बढ़ती है और नया ज्ञान प्राप्त होता है।
समाज और राष्ट्र की प्रगति – शिक्षित व्यक्ति समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में योगदान देता है।
प्रतिस्पर्धात्मक योग्यता में वृद्धि – यह व्यक्ति को प्रतिस्पर्धी माहौल में आगे रहने में सहायक होती है।
रोजगार के नए अवसर – नई शिक्षा और प्रशिक्षण से रोजगार के अधिक अवसर प्राप्त होते हैं।
सतत् शिक्षा की विशेषताएँ
निरंतरता (Continuity) – यह शिक्षा कभी समाप्त नहीं होती, बल्कि जीवनभर चलती रहती है।
लचीलापन (Flexibility) – व्यक्ति अपनी सुविधानुसार किसी भी समय और स्थान पर सीख सकता है।
विविधता (Diversity) – इसमें औपचारिक, अनौपचारिक, ऑनलाइन और अनुभवजन्य शिक्षा शामिल होती है।
स्व-प्रेरणा (Self-Motivation) – व्यक्ति खुद सीखने के लिए प्रेरित होता है, कोई बाध्यता नहीं होती।
तकनीक-आधारित शिक्षा (Technology-Based Learning) – डिजिटल संसाधनों, ऑनलाइन कोर्स, और वेबिनार के माध्यम से इसे सुगम बनाया गया है।
नवाचार को बढ़ावा (Encourages Innovation) – सतत् शिक्षा व्यक्ति में नई सोच और रचनात्मकता को विकसित करती है।
समय के अनुसार अनुकूलन (Adaptability to Time) – यह व्यक्ति को नए परिवर्तनों के अनुसार खुद को ढालने में मदद करती है।
निष्कर्ष
सतत् शिक्षा केवल एक आवश्यकता नहीं, बल्कि सफलता का एक महत्वपूर्ण साधन है। यह व्यक्ति को मानसिक, सामाजिक और व्यावसायिक रूप से मजबूत बनाती है। आज के प्रतिस्पर्धी और तेजी से बदलते युग में, सतत् शिक्षा को अपनाकर व्यक्ति अपने ज्ञान, कौशल और करियर को नई ऊँचाइयों तक पहुँचा सकता है।
प्रश्न 04 आजीवन सीखते रहने के क्या क्या लाभ हैं?
परिचय
आजीवन सीखना (Lifelong Learning) एक सतत् प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति अपने पूरे जीवन में नए ज्ञान, कौशल और अनुभव प्राप्त करता रहता है। यह शिक्षा केवल औपचारिक रूप से स्कूल या विश्वविद्यालय तक सीमित नहीं होती, बल्कि अनौपचारिक तरीकों जैसे स्व-अध्ययन, अनुभवों, तकनीकी साधनों और कार्यस्थल पर सीखने से भी प्राप्त की जा सकती है।
आजीवन सीखते रहने के प्रमुख लाभ
1. व्यक्तिगत विकास और आत्मनिर्भरता
नई चीजें सीखने से आत्मविश्वास बढ़ता है और व्यक्ति अधिक आत्मनिर्भर बनता है।
मानसिक कौशल विकसित होते हैं, जिससे समस्याओं को हल करने की क्षमता बेहतर होती है।
2. करियर में प्रगति
नए कौशल और ज्ञान प्राप्त करने से नौकरी के अधिक अवसर प्राप्त होते हैं।
व्यक्ति प्रतिस्पर्धा में आगे रहता है और प्रमोशन के अवसर बढ़ जाते हैं।
3. मानसिक सक्रियता और स्वास्थ्य लाभ
लगातार सीखने से मस्तिष्क सक्रिय रहता है, जिससे याददाश्त और एकाग्रता में सुधार होता है।
शोध बताते हैं कि नई चीजें सीखने से मानसिक बीमारियों, जैसे डिमेंशिया और अल्जाइमर, का खतरा कम होता है।
4. तकनीकी और सामाजिक परिवर्तनों के साथ तालमेल
तेजी से बदलती तकनीकों को सीखकर व्यक्ति खुद को अपडेट रख सकता है।
समाज और संस्कृति में हो रहे परिवर्तनों को समझकर व्यक्ति खुद को उनके अनुरूप ढाल सकता है।
5. नई रुचियों और शौक का विकास
नई चीजें सीखने से व्यक्ति की रुचियाँ विकसित होती हैं और उसे नए अनुभव मिलते हैं।
कला, संगीत, लेखन, और अन्य रचनात्मक कार्यों में रुचि बढ़ती है।
6. समाज में योगदान और प्रभावशाली व्यक्तित्व
शिक्षित व्यक्ति समाज में जागरूकता फैलाने और सकारात्मक बदलाव लाने में सहायक होता है।
वह अपने ज्ञान और अनुभव से दूसरों की मदद कर सकता है।
7. आत्मविश्वास और नवाचार को बढ़ावा
सीखते रहने से नई सोच और रचनात्मकता विकसित होती है, जिससे व्यक्ति नए विचारों और खोजों की ओर अग्रसर होता है।
नवाचार और उद्यमिता (Entrepreneurship) को बढ़ावा मिलता है।
निष्कर्ष
आजीवन सीखते रहने के अनेक लाभ हैं, जो व्यक्ति के मानसिक, सामाजिक, आर्थिक और व्यक्तिगत विकास में सहायक होते हैं। यह केवल ज्ञान प्राप्त करने तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यक्ति को आत्मनिर्भर, जागरूक और समाज के प्रति उत्तरदायी बनाता है। इसलिए, हमें सीखने की इस प्रक्रिया को अपनाकर अपने जीवन को और अधिक समृद्ध बनाने का प्रयास करना चाहिए।
प्रश्न 05 प्राचीन काल में आजीवन शिक्षा कैसे दी जाती थी?
परिचय
प्राचीन काल में शिक्षा केवल एक निश्चित अवधि तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह जीवनभर चलने वाली प्रक्रिया थी। उस समय शिक्षा का मुख्य उद्देश्य केवल विद्या अर्जन नहीं, बल्कि समाज और संस्कृति का विकास भी था। गुरु-शिष्य परंपरा, आश्रम व्यवस्था, और व्यावहारिक शिक्षा प्रणाली के माध्यम से शिक्षा को आजीवन बनाए रखा जाता था।
प्राचीन काल में आजीवन शिक्षा के माध्यम
1. गुरु-शिष्य परंपरा
विद्यार्थी (शिष्य) अपने गुरु के आश्रम में रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे।
शिक्षा समाप्त होने के बाद भी शिष्य गुरु से मार्गदर्शन लेते रहते थे।
यह शिक्षा केवल किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं थी, बल्कि नैतिकता, धर्म और जीवन मूल्य भी सिखाए जाते थे।
2. आश्रम व्यवस्था
शिक्षा को चार चरणों में विभाजित किया गया था:
ब्रह्मचर्य आश्रम – औपचारिक शिक्षा का चरण।
गृहस्थ आश्रम – पारिवारिक और सामाजिक जीवन में सीखने की प्रक्रिया जारी रहती थी।
वानप्रस्थ आश्रम – समाज को शिक्षा देने और ज्ञान साझा करने का चरण।
संन्यास आश्रम – आध्यात्मिक और गूढ़ ज्ञान प्राप्त करने का समय।
यह प्रणाली व्यक्ति को जीवनभर सीखने के लिए प्रेरित करती थी।
3. वेद, उपनिषद और शास्त्रों के अध्ययन के माध्यम से शिक्षा
धार्मिक ग्रंथों जैसे वेद, उपनिषद, महाभारत, रामायण, और पुराणों के अध्ययन से व्यक्ति को नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा मिलती थी।
ऋषि-मुनि इन ग्रंथों के ज्ञान को अपने शिष्यों और समाज में फैलाते थे।
4. मौखिक शिक्षा प्रणाली
प्राचीन काल में अधिकांश शिक्षा मौखिक रूप से दी जाती थी।
गुरु अपने अनुभव और ज्ञान को शिष्यों को सुनाते थे, जिसे वे कंठस्थ (याद) कर लेते थे।
5. हस्तकला और व्यावसायिक शिक्षा
शिक्षा केवल ग्रंथों तक सीमित नहीं थी, बल्कि कृषि, व्यापार, शिल्पकला, युद्धकला, और आयुर्वेद जैसे व्यावसायिक क्षेत्रों में भी दी जाती थी।
परिवारों में कौशल पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित किया जाता था, जिससे लोग जीवनभर सीखते रहते थे।
6. आध्यात्मिक और ध्यान आधारित शिक्षा
योग, ध्यान, और साधना के माध्यम से व्यक्ति को आत्मज्ञान और मानसिक शांति प्राप्त होती थी।
विभिन्न गुरुकुलों में यह शिक्षा दी जाती थी, जिससे व्यक्ति आजीवन सीखते रहते थे।
निष्कर्ष
प्राचीन काल में आजीवन शिक्षा का स्वरूप व्यापक और समग्र था। यह केवल औपचारिक शिक्षा तक सीमित नहीं थी, बल्कि नैतिकता, सामाजिकता, और आध्यात्मिकता से भी जुड़ी हुई थी। गुरु-शिष्य परंपरा, वेदों का अध्ययन, व्यावसायिक शिक्षा और आश्रम व्यवस्था के माध्यम से लोग जीवनभर सीखते रहते थे। यह शिक्षा प्रणाली व्यक्ति के संपूर्ण विकास को सुनिश्चित करती थी और उसे समाज के लिए उपयोगी बनाती थी।
प्रश्न 06 राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में आजीवन शिक्षा पर क्या सुझाव दिए हैं?
परिचय
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 का उद्देश्य भारत में शिक्षा प्रणाली को आधुनिक और समावेशी बनाना है। यह नीति औपचारिक शिक्षा के साथ-साथ आजीवन शिक्षा (Lifelong Learning) को भी बढ़ावा देती है, ताकि व्यक्ति अपने पूरे जीवन में ज्ञान और कौशल प्राप्त कर सके।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में आजीवन शिक्षा पर सुझाव
1. वयस्क शिक्षा और आजीवन सीखने को बढ़ावा
नीति में वयस्कों के लिए साक्षरता, डिजिटल शिक्षा, और व्यावसायिक कौशल प्रदान करने की बात कही गई है।
विशेष रूप से उन लोगों के लिए कार्यक्रम बनाए जाएंगे जो स्कूल छोड़ चुके हैं या औपचारिक शिक्षा से वंचित रह गए हैं।
2. डिजिटल शिक्षा और ऑनलाइन लर्निंग को बढ़ावा
ऑनलाइन पाठ्यक्रम, ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म, और वर्चुअल क्लासरूम के माध्यम से आजीवन सीखने को आसान बनाया जाएगा।
SWAYAM और DIKSHA जैसे डिजिटल प्लेटफार्मों को और अधिक प्रभावी बनाया जाएगा।
3. व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास
स्कूल स्तर से ही कौशल-आधारित शिक्षा शुरू करने पर जोर दिया गया है।
इंटर्नशिप और अप्रेंटिसशिप (Apprenticeship) के अवसरों को बढ़ाकर युवाओं और वयस्कों को नए कौशल सीखने में मदद दी जाएगी।
4. शिक्षा का लचीलापन (Flexibility in Learning)
क्रेडिट बैंक प्रणाली (Academic Bank of Credits - ABC) लागू की गई है, जिससे छात्र किसी भी उम्र में शिक्षा जारी रख सकते हैं।
उच्च शिक्षा में मल्टी-एंट्री और मल्टी-एग्जिट सिस्टम दिया गया है, जिससे छात्र अपनी शिक्षा बीच में छोड़ने के बाद भी आगे जारी रख सकते हैं।
5. सामाजिक और सामुदायिक भागीदारी
स्थानीय संगठनों, गैर-सरकारी संगठनों (NGOs), और सरकारी एजेंसियों के सहयोग से सामुदायिक शिक्षा कार्यक्रम चलाए जाएंगे।
बुजुर्गों और पिछड़े वर्गों के लिए भी विशेष शिक्षण कार्यक्रम शुरू किए जाएंगे।
6. व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), डेटा साइंस, रोबोटिक्स और मशीन लर्निंग जैसे आधुनिक विषयों पर सीखने के अवसर दिए जाएंगे।
छात्रों को इंटर-डिसिप्लिनरी लर्निंग (विषय मिलाकर पढ़ने) की सुविधा दी जाएगी, जिससे वे अपने रुचि के अनुसार शिक्षा प्राप्त कर सकें।
निष्कर्ष
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 आजीवन शिक्षा को एक महत्वपूर्ण पहलू मानती है। यह नीति शिक्षा को केवल स्कूल या कॉलेज तक सीमित नहीं रखती, बल्कि हर उम्र के व्यक्ति के लिए शिक्षा के द्वार खोलती है। डिजिटल माध्यम, कौशल विकास, लचीला पाठ्यक्रम और सामाजिक भागीदारी के माध्यम से यह नीति भारत में आजीवन सीखने की संस्कृति को मजबूत करने का प्रयास करती है।
प्रश्न 07 स्वतंत्र भारत में आजीवन शिक्षा के लिए सरकार ने कौन कौन से कार्यक्रम चलाए?
परिचय
स्वतंत्र भारत में शिक्षा को सभी तक पहुँचाने और आजीवन सीखने की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम शुरू किए हैं। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य वयस्क शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, डिजिटल शिक्षा और साक्षरता को बढ़ाना है, ताकि हर नागरिक को सीखने के अवसर मिल सकें।
सरकार द्वारा संचालित प्रमुख कार्यक्रम
1. राष्ट्रीय साक्षरता मिशन (National Literacy Mission - NLM) (1988)
यह मिशन 15 से 35 वर्ष की उम्र के वयस्कों को बुनियादी साक्षरता प्रदान करने के लिए शुरू किया गया था।
उद्देश्य: निरक्षरता को समाप्त करना और लोगों को पढ़ने-लिखने में सक्षम बनाना।
2. साक्षर भारत कार्यक्रम (Saakshar Bharat Programme) (2009)
यह राष्ट्रीय साक्षरता मिशन का उन्नत रूप है, जिसका उद्देश्य वयस्क साक्षरता दर को 80% तक बढ़ाना था।
खासतौर पर महिलाओं, ग्रामीण आबादी और कमजोर वर्गों के लिए इसे लागू किया गया।
3. जन शिक्षा निदेशालय (Directorate of Adult Education)
इस विभाग का गठन वयस्क शिक्षा और आजीवन सीखने को बढ़ावा देने के लिए किया गया।
यह विभिन्न साक्षरता मिशनों और गैर-औपचारिक शिक्षा कार्यक्रमों को लागू करने में मदद करता है।
4. राज्य संसाधन केंद्र (State Resource Centres - SRCs)
SRCs की स्थापना वयस्क शिक्षा कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से लागू करने और जागरूकता फैलाने के लिए की गई।
ये केंद्र शिक्षण सामग्री तैयार करने और प्रशिक्षकों को प्रशिक्षण देने का कार्य करते हैं।
5. राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (NIOS) (1989)
यह उन विद्यार्थियों के लिए बनाया गया जो औपचारिक शिक्षा नहीं ले सकते।
यह माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर की शिक्षा के साथ-साथ व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की भी सुविधा देता है।
6. राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन (National Digital Literacy Mission - NDLM) (2014)
डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने यह मिशन शुरू किया।
इसका उद्देश्य ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बुनियादी कंप्यूटर और इंटरनेट कौशल सिखाना है।
7. प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) (2015)
यह व्यावसायिक प्रशिक्षण (Skill Development) पर केंद्रित योजना है।
युवाओं को तकनीकी और पेशेवर कौशल सिखाकर रोजगार के अवसर बढ़ाने का प्रयास किया जाता है।
8. स्वयम् (SWAYAM) ऑनलाइन प्लेटफॉर्म (2017)
यह मुफ्त ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करने वाला सरकारी पोर्टल है।
इसमें स्कूल, कॉलेज और व्यावसायिक शिक्षा के लिए हजारों कोर्स उपलब्ध हैं।
9. एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (Eklavya Model Residential Schools - EMRS) (2018)
यह आदिवासी बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की एक योजना है।
इसमें डिजिटल शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण को भी शामिल किया गया है।
10. राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020
यह नीति आजीवन शिक्षा को संस्थागत रूप से लागू करने पर जोर देती है।
क्रेडिट बैंक प्रणाली (Academic Bank of Credits - ABC) के तहत कोई भी व्यक्ति अपनी शिक्षा को किसी भी उम्र में फिर से शुरू कर सकता है।
ऑनलाइन और डिजिटल लर्निंग को बढ़ावा दिया गया है।
निष्कर्ष
स्वतंत्र भारत में सरकार ने आजीवन शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई प्रभावी योजनाएँ शुरू की हैं। साक्षरता मिशनों से लेकर डिजिटल शिक्षा, कौशल विकास और ऑनलाइन लर्निंग तक, ये सभी पहल देश के नागरिकों को निरंतर सीखने और आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। इन कार्यक्रमों के माध्यम से सरकार ने शिक्षा को अधिक समावेशी, सुलभ और प्रभावी बनाने का प्रयास किया है।
प्रश्न 08 आजीवन सीखने के विभिन्न क्षेत्रों के बारे में वर्णन कीजिए ।
परिचय
आजीवन सीखना (Lifelong Learning) केवल औपचारिक शिक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक सतत् प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति विभिन्न क्षेत्रों में नए कौशल, ज्ञान और अनुभव प्राप्त करता रहता है। यह सीखने की प्रक्रिया व्यक्तिगत, व्यावसायिक, सामाजिक, तकनीकी और आध्यात्मिक क्षेत्रों में फैली होती है।
आजीवन सीखने के प्रमुख क्षेत्र
1. औपचारिक शिक्षा (Formal Education)
स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों में प्राप्त की जाने वाली शिक्षा।
इसमें डिग्री, डिप्लोमा और प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम शामिल होते हैं।
उच्च शिक्षा और शोध कार्य भी आजीवन शिक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
2. व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा (Professional & Technical Education)
व्यक्ति को अपने कार्यक्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए लगातार नए कौशल सीखने पड़ते हैं।
इसके अंतर्गत तकनीकी प्रशिक्षण, प्रबंधन कौशल, सूचना प्रौद्योगिकी, डेटा एनालिटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग (ML) जैसे नए विषयों का अध्ययन किया जाता है।
डिजिटल प्लेटफॉर्म (SWAYAM, Coursera, Udemy आदि) के माध्यम से व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त की जा सकती है।
3. व्यक्तिगत विकास (Personal Development)
इसमें नेतृत्व कौशल, संचार कला, आत्म-प्रबंधन, समय प्रबंधन और भावनात्मक बुद्धिमत्ता (Emotional Intelligence) जैसी क्षमताओं का विकास किया जाता है।
व्यक्ति मूल्य आधारित शिक्षा, आत्मनिर्भरता और निर्णय लेने की क्षमता को भी सीखता है।
4. व्यावसायिक और उद्यमिता शिक्षा (Business & Entrepreneurship Education)
स्टार्टअप, बिजनेस मैनेजमेंट और मार्केटिंग के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल।
वित्तीय प्रबंधन, निवेश योजना, ग्राहक संबंध और व्यापार संचालन की समझ।
व्यापार और उद्योग में सफलता पाने के लिए नवीन रणनीतियों का अध्ययन।
5. सामाजिक शिक्षा (Social Learning)
समाज की संस्कृति, परंपराओं और मान्यताओं को समझने की प्रक्रिया।
सामुदायिक सेवा, सामाजिक कार्य, और लोक प्रशासन से संबंधित ज्ञान।
समाज में समानता, समावेशिता और विविधता को बढ़ावा देने के लिए सीखना।
6. स्वास्थ्य और कल्याण (Health & Wellness Learning)
शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी प्राप्त करना।
योग, ध्यान, आहार विज्ञान, चिकित्सा पद्धतियाँ (आयुर्वेद, होम्योपैथी, एलोपैथी) आदि का ज्ञान।
खेल और फिटनेस को जीवनशैली में अपनाने की सीख।
7. आध्यात्मिक और नैतिक शिक्षा (Spiritual & Ethical Learning)
धर्म, अध्यात्म, नैतिकता और मूल्यों का अध्ययन।
आत्म-जागरूकता और आंतरिक शांति प्राप्त करने के लिए योग और ध्यान का अभ्यास।
भारतीय दर्शन, वेद, उपनिषद, भगवद गीता और अन्य धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन।
8. डिजिटल और तकनीकी शिक्षा (Digital & Technological Learning)
कंप्यूटर विज्ञान, साइबर सुरक्षा, कोडिंग, वेब डिज़ाइन और डिजिटल मार्केटिंग।
नवीनतम तकनीकों जैसे ब्लॉकचेन, क्लाउड कंप्यूटिंग, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) आदि का ज्ञान।
डिजिटल प्लेटफार्मों के माध्यम से शिक्षा ग्रहण करना।
9. भाषाई शिक्षा (Language Learning)
नई भाषाएँ सीखने से संचार कौशल में सुधार और वैश्विक अवसरों में वृद्धि होती है।
मातृभाषा, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं का अध्ययन।
अनुवाद, लेखन, और भाषाई विश्लेषण का ज्ञान।
10. पर्यावरण और सतत् विकास (Environmental & Sustainable Learning)
जलवायु परिवर्तन, हरित ऊर्जा, पारिस्थितिकी और सतत् विकास के बारे में जागरूकता।
प्राकृतिक संसाधनों का उचित उपयोग और पर्यावरण संरक्षण के उपाय।
कृषि और जैव विविधता से जुड़ी नवीन तकनीकों का ज्ञान।
निष्कर्ष
आजीवन सीखना केवल शैक्षणिक ज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति के व्यक्तिगत, व्यावसायिक, सामाजिक और आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक है। विभिन्न क्षेत्रों में सीखने से व्यक्ति समाज और अपने कार्यक्षेत्र में प्रभावी योगदान दे सकता है। आधुनिक समय में, तकनीक और डिजिटल संसाधनों के माध्यम से आजीवन शिक्षा को अधिक सुलभ और प्रभावी बनाया जा रहा है।
प्रश्न 09 यूनेस्को घोषणा 1997 के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
यूनेस्को घोषणा 1997 के उद्देश्य
परिचय
यूनेस्को (UNESCO) ने 1997 में "आजीवन शिक्षा पर हैमबर्ग घोषणा" (Hamburg Declaration on Adult Learning) जारी की थी। यह घोषणा हैमबर्ग, जर्मनी में आयोजित पाँचवें अंतर्राष्ट्रीय वयस्क शिक्षा सम्मेलन (CONFINTEA V) में अपनाई गई थी। इस घोषणा का मुख्य उद्देश्य आजीवन शिक्षा (Lifelong Learning) को बढ़ावा देना और इसे प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक अधिकार बनाना था।
यूनेस्को घोषणा 1997 के प्रमुख उद्देश्य
1. आजीवन शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता
शिक्षा केवल बचपन और युवावस्था तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह पूरे जीवनभर जारी रहनी चाहिए।
सभी को समान अवसरों के साथ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिलना चाहिए।
2. साक्षरता और बुनियादी शिक्षा का प्रसार
वयस्कों और अनपढ़ लोगों को साक्षरता और बुनियादी शिक्षा प्रदान करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
महिलाओं, पिछड़े वर्गों और ग्रामीण समुदायों के लिए विशेष शिक्षा कार्यक्रम चलाने की सिफारिश की गई।
3. सामाजिक समानता और न्याय को बढ़ावा
शिक्षा के माध्यम से गरीबी, भेदभाव और असमानता को दूर करने पर बल दिया गया।
शिक्षा को लिंग, जाति, भाषा और सामाजिक पृष्ठभूमि से मुक्त बनाने की वकालत की गई।
4. व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा
रोजगार योग्य कौशल (Employability Skills) विकसित करने के लिए तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा पर जोर दिया गया।
डिजिटल साक्षरता और आधुनिक तकनीकों से जुड़ी शिक्षा को बढ़ावा देने की बात कही गई।
5. शांति, मानवाधिकार और लोकतंत्र की शिक्षा
शिक्षा को शांति, सहिष्णुता, मानवाधिकार और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रचार का माध्यम बनाया जाए।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा का उपयोग किया जाए।
6. सतत् विकास और पर्यावरण शिक्षा
सतत् (Sustainable) विकास के लिए शिक्षा को आवश्यक साधन बताया गया।
पर्यावरण संरक्षण, जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक संसाधनों के सतत् उपयोग से संबंधित शिक्षा को बढ़ाने पर बल दिया गया।
7. बहुभाषीय और सांस्कृतिक विविधता को प्रोत्साहन
शिक्षा में मातृभाषा, क्षेत्रीय भाषाओं और अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं के महत्व को स्वीकार किया गया।
सांस्कृतिक विविधता को बनाए रखने और पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित करने पर जोर दिया गया।
8. सूचना और संचार तकनीक (ICT) के उपयोग को बढ़ावा
डिजिटल क्रांति के अनुरूप शिक्षा प्रणाली में सूचना और संचार तकनीक (ICT) को अपनाने की सिफारिश की गई।
ऑनलाइन शिक्षा, दूरस्थ शिक्षा और ओपन लर्निंग सिस्टम को बढ़ावा देने की बात कही गई।
9. महिला शिक्षा और सशक्तिकरण
महिलाओं को शिक्षा के समान अवसर देने और उन्हें आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाने पर जोर दिया गया।
महिलाओं के लिए विशेष शिक्षा कार्यक्रम और नेतृत्व विकास की पहल करने की सिफारिश की गई।
10. सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों की भागीदारी
शिक्षा के क्षेत्र में सरकारों, गैर-सरकारी संगठनों (NGOs), नागरिक समाज और निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने की बात कही गई।
स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग स्थापित करने पर जोर दिया गया।
निष्कर्ष
यूनेस्को की 1997 की हैमबर्ग घोषणा का उद्देश्य आजीवन शिक्षा को एक मौलिक अधिकार बनाना और समाज में समानता, न्याय, सतत् विकास और शांति को बढ़ावा देना था। इस घोषणा के तहत यह स्पष्ट किया गया कि शिक्षा केवल विद्यालयों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि यह जीवनभर चलने वाली प्रक्रिया होनी चाहिए। इसके माध्यम से हर व्यक्ति को सशक्त बनाना और एक बेहतर समाज का निर्माण करना इस घोषणा का मुख्य लक्ष्य था।
प्रश्न 10 आजीवन सीखने का आर्थिक एवं सांस्कृतिक महत्व पर प्रकाश डालिए।
आजीवन सीखने का आर्थिक एवं सांस्कृतिक महत्व
परिचय
आजीवन सीखना (Lifelong Learning) एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने जीवन के विभिन्न चरणों में ज्ञान और कौशल प्राप्त करता रहता है। यह केवल व्यक्तिगत विकास तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी गहरा प्रभाव पड़ता है। आजीवन सीखने से व्यक्ति आर्थिक रूप से सशक्त होता है और अपने समाज और संस्कृति को आगे बढ़ाने में योगदान देता है।
1. आजीवन सीखने का आर्थिक महत्व
(i) रोजगार के अवसरों में वृद्धि
नए कौशल और तकनीकी ज्ञान प्राप्त करने से व्यक्ति के लिए रोजगार के अधिक अवसर खुलते हैं।
कंपनियाँ उन कर्मचारियों को प्राथमिकता देती हैं जो नई तकनीकों को सीखने के इच्छुक होते हैं।
(ii) उत्पादकता और कार्यक्षमता में सुधार
जब व्यक्ति नियमित रूप से नए कौशल सीखता है, तो उसकी कार्य दक्षता और उत्पादकता बढ़ती है।
उद्योगों में कुशल कर्मचारियों की माँग अधिक होती है, जिससे वे अधिक प्रतिस्पर्धात्मक बनते हैं।
(iii) नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा
आजीवन सीखने से नए विचार और नवाचार (Innovation) को बढ़ावा मिलता है।
व्यवसायी और स्टार्टअप मालिक नई तकनीकों और बाजार रणनीतियों को सीखकर अपनी कंपनियों को सफल बना सकते हैं।
(iv) डिजिटल और तकनीकी ज्ञान में वृद्धि
डिजिटल शिक्षा और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म (SWAYAM, Coursera, Udemy आदि) के माध्यम से लोग नई तकनीकों को सीख सकते हैं।
इससे ई-कॉमर्स, डिजिटल मार्केटिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), मशीन लर्निंग (ML) आदि क्षेत्रों में अवसर बढ़ते हैं।
(v) आर्थिक आत्मनिर्भरता
आजीवन सीखने से लोग नई नौकरियों और स्वरोजगार (Self-employment) के अवसर प्राप्त कर सकते हैं।
इससे आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को भी स्वरोजगार और स्टार्टअप के अवसर मिलते हैं।
(vi) सतत् विकास (Sustainable Development) में योगदान
नई तकनीकों और पर्यावरण-संबंधी ज्ञान सीखकर लोग सतत् विकास को बढ़ावा दे सकते हैं।
हरित ऊर्जा (Green Energy), जैविक कृषि और जल संरक्षण जैसे क्षेत्रों में सीखना आर्थिक विकास में सहायक होता है।
2. आजीवन सीखने का सांस्कृतिक महत्व
(i) परंपराओं और मूल्यों का संरक्षण
शिक्षा के माध्यम से लोग अपनी संस्कृति, परंपराओं और विरासत को समझ सकते हैं और उनका संरक्षण कर सकते हैं।
लोक कला, शिल्प, संगीत और साहित्य को सीखकर नई पीढ़ी को इससे जोड़ा जा सकता है।
(ii) बहुभाषी और सांस्कृतिक विविधता का सम्मान
नई भाषाएँ और संस्कृतियाँ सीखने से लोग वैश्विक नागरिकता के सिद्धांत को अपनाते हैं।
यह सांस्कृतिक समन्वय और आपसी समझ को बढ़ावा देता है।
(iii) सामाजिक समरसता और सहिष्णुता
जब लोग विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं को सीखते हैं, तो वे अधिक सहिष्णु और समावेशी बनते हैं।
इससे समाज में धार्मिक और जातीय सद्भावना को बढ़ावा मिलता है।
(iv) साहित्य, कला और इतिहास का विकास
आजीवन सीखने से लोग साहित्य, कला, नृत्य, चित्रकला और संगीत जैसे सांस्कृतिक क्षेत्रों में रुचि लेते हैं।
यह नवाचार और रचनात्मकता को प्रोत्साहित करता है।
(v) नई पीढ़ी को सांस्कृतिक ज्ञान का हस्तांतरण
बुजुर्गों और शिक्षकों के पास मौजूद पारंपरिक ज्ञान को नई पीढ़ी तक पहुँचाने में आजीवन सीखने की भूमिका होती है।
इससे लोककथाएँ, ऐतिहासिक घटनाएँ और सांस्कृतिक धरोहर सुरक्षित रहती हैं।
(vi) वैश्विक सांस्कृतिक सहयोग
आजीवन शिक्षा के माध्यम से विभिन्न देशों के लोग एक-दूसरे की संस्कृति को समझते हैं और सहयोग करते हैं।
यह वैश्विक शांति और भाईचारे को बढ़ावा देता है।
निष्कर्ष
आजीवन सीखने का आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत व्यापक है। यह व्यक्ति को नए कौशल सीखने, आर्थिक रूप से सशक्त बनने और सामाजिक व सांस्कृतिक मूल्यों को संरक्षित करने में मदद करता है। एक शिक्षित समाज न केवल आर्थिक रूप से मजबूत होता है, बल्कि अपनी सांस्कृतिक विरासत को भी बनाए रखता है। अतः आजीवन शिक्षा को बढ़ावा देना व्यक्तिगत, सामाजिक और राष्ट्रीय विकास के लिए आवश्यक है।
प्रश्न 11 आजीवन शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा की विशेषताएं और अंतर बताइए ।
आजीवन शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा: विशेषताएँ और अंतर
परिचय
शिक्षा एक सतत् प्रक्रिया है जो व्यक्ति के व्यक्तिगत, सामाजिक और व्यावसायिक विकास में सहायक होती है। शिक्षा को मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा जा सकता है:
आजीवन शिक्षा (Lifelong Learning) – यह जन्म से मृत्यु तक चलने वाली शिक्षा प्रक्रिया है।
व्यावसायिक शिक्षा (Vocational Education) – यह विशेष रूप से रोजगार और व्यवसाय से जुड़ी हुई शिक्षा है, जिसमें व्यावहारिक प्रशिक्षण और कौशल विकास पर ध्यान दिया जाता है।
दोनों प्रकार की शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के ज्ञान, कौशल और दक्षता को बढ़ाना है, लेकिन इन दोनों में कई महत्वपूर्ण अंतर भी हैं।
1. आजीवन शिक्षा की विशेषताएँ
(i) सतत् प्रक्रिया (Continuous Process)
आजीवन शिक्षा पूरे जीवनभर चलती है और किसी विशेष आयु सीमा तक सीमित नहीं होती।
इसमें औपचारिक, अनौपचारिक और गैर-औपचारिक शिक्षा शामिल होती है।
(ii) ज्ञान और कौशल का विकास
व्यक्ति अपने जीवन के विभिन्न चरणों में नए ज्ञान, कौशल और विचारों को सीखता है।
यह सीखने की प्रक्रिया व्यक्तिगत, सामाजिक और व्यावसायिक विकास में मदद करती है।
(iii) सामाजिक और सांस्कृतिक शिक्षा
आजीवन शिक्षा केवल रोजगार तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह व्यक्ति को सांस्कृतिक, नैतिक और सामाजिक मूल्यों से भी परिचित कराती है।
यह समाज में सामाजिक समरसता और सामुदायिक विकास को बढ़ावा देती है।
(iv) तकनीकी और डिजिटल शिक्षा का समावेश
आधुनिक समय में आजीवन शिक्षा के अंतर्गत ऑनलाइन लर्निंग, डिजिटल साक्षरता, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग आदि विषयों को भी शामिल किया जाता है।
(v) व्यक्तिगत और व्यावसायिक विकास
यह व्यक्ति के सोचने की क्षमता, निर्णय लेने की योग्यता और आत्मविश्वास को बढ़ाती है।
इससे व्यक्ति अपने करियर में भी बेहतर प्रदर्शन कर सकता है।
2. व्यावसायिक शिक्षा की विशेषताएँ
(i) विशेष रूप से रोजगार-केंद्रित
व्यावसायिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य नौकरी या व्यवसाय के लिए आवश्यक कौशल विकसित करना है।
इसमें तकनीकी, औद्योगिक और व्यावसायिक प्रशिक्षण शामिल होता है।
(ii) व्यावहारिक प्रशिक्षण पर जोर
इसमें हाथों से किया जाने वाला कार्य (Hands-on Training), वर्कशॉप, इंडस्ट्री ट्रेंनिंग और प्रोजेक्ट-आधारित सीखने पर अधिक ध्यान दिया जाता है।
(iii) विशेष क्षेत्र में विशेषज्ञता
यह शिक्षा किसी विशेष क्षेत्र (Field) जैसे कि इंजीनियरिंग, नर्सिंग, होटल मैनेजमेंट, ऑटोमोबाइल, फैशन डिजाइनिंग आदि में विशेषज्ञता प्राप्त करने में मदद करती है।
(iv) कम समय में रोजगार के अवसर
व्यावसायिक शिक्षा में अल्पकालिक (Short-term) और दीर्घकालिक (Long-term) कोर्स उपलब्ध होते हैं, जिससे व्यक्ति जल्दी नौकरी प्राप्त कर सकता है।
आईटीआई (ITI), पॉलिटेक्निक और स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम्स इसी का हिस्सा हैं।
(v) औद्योगिक और तकनीकी विकास में योगदान
यह शिक्षा उद्योगों की जरूरतों के अनुसार डिज़ाइन की जाती है, जिससे उत्पादकता और औद्योगिक विकास में वृद्धि होती है।
3. आजीवन शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा में अंतर
आजीवन शिक्षा व्यावसायिक शिक्षा
(i) परिभाषा: यह एक सतत् प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति जीवनभर सीखता रहता है। (i) परिभाषा: यह विशेष रूप से रोजगार और तकनीकी कौशल प्रदान करने के लिए होती है।
(ii) उद्देश्य: व्यक्तिगत, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा देना। (ii) उद्देश्य: व्यक्ति को विशेष क्षेत्र में कौशल प्रदान करना जिससे वह नौकरी या व्यवसाय में सफल हो सके।
(iii) अवधि: यह जीवनभर चलने वाली प्रक्रिया है। (iii) अवधि: इसमें सीमित समय के प्रशिक्षण या पाठ्यक्रम होते हैं।
(iv) प्रकार: यह औपचारिक, अनौपचारिक और गैर-औपचारिक सभी रूपों में हो सकती है। (iv) प्रकार: यह मुख्य रूप से औपचारिक शिक्षा के तहत दी जाती है और तकनीकी संस्थानों में पढ़ाई जाती है।
(v) रोजगार पर प्रभाव: यह व्यक्ति को नई चीजें सीखने और रोजगार में बेहतर प्रदर्शन करने में मदद करती है। (v) रोजगार पर प्रभाव: यह सीधे व्यक्ति को रोजगार योग्य कौशल प्रदान करती है जिससे उसे जल्दी नौकरी मिल सके।
(vi) उदाहरण: नई भाषा सीखना, डिजिटल साक्षरता, शोध कार्य, आत्म-विकास, नेतृत्व कौशल, पर्यावरण शिक्षा आदि।
(vi) उदाहरण: आईटीआई (ITI), पॉलिटेक्निक, ऑटोमोबाइल, फैशन डिजाइनिंग, नर्सिंग, कंप्यूटर हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर डेवेलपमेंट आदि।
4. निष्कर्ष
आजीवन शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा दोनों ही व्यक्ति और समाज के विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं। जहाँ आजीवन शिक्षा व्यक्ति के संपूर्ण विकास को बढ़ावा देती है, वहीं व्यावसायिक शिक्षा रोजगार और तकनीकी दक्षता पर केंद्रित होती है।
आधुनिक समय में, दोनों प्रकार की शिक्षा को एक साथ अपनाना आवश्यक है ताकि व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से विकसित हो सके और अपने व्यावसायिक क्षेत्र में भी सफल हो सके
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