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UOU QUESTION PAPERS
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BA -23

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Official Question Papers

UOU BAEC(N)221 , कुछ महत्वपूर्ण सॉल्व्ड प्रश्न 2025 ,

 

प्रश्न 01 मानक त्रुटि से आप क्या समझते हैं?

📌 मानक त्रुटि का परिचय

मानक त्रुटि (Standard Error) सांख्यिकी का एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, जो किसी सैंपल के औसत या किसी अन्य सांख्यिकीय माप की सटीकता को मापने के लिए उपयोग की जाती है। सरल शब्दों में, यह बताती है कि हमारे सैंपल का परिणाम वास्तविक जनसंख्या (Population) के परिणाम से कितना भिन्न हो सकता है।

जब हम किसी जनसंख्या का अध्ययन सीधे नहीं कर पाते, तब हम उस जनसंख्या से एक सैंपल लेते हैं। लेकिन अलग-अलग सैंपल लेने पर उनके औसत (Mean) में थोड़ा-बहुत अंतर आ सकता है। इसी अंतर के औसत माप को मानक त्रुटि कहा जाता है।


📊 मानक त्रुटि की परिभाषा

"मानक त्रुटि वह मान है जो किसी सांख्यिकीय मान (जैसे औसत, अनुपात) की विभिन्न सैंपलों में होने वाली भिन्नता को दर्शाता है।"
अंतर्राष्ट्रीय सांख्यिकीय परिभाषा के अनुसार:

"Standard Error is the standard deviation of the sampling distribution of a statistic."


📈 मानक त्रुटि का गणितीय सूत्र

मानक त्रुटि निकालने का सबसे सामान्य सूत्र है:

SE=SDnSE = \frac{SD}{\sqrt{n}}

जहाँ:

  • SE = मानक त्रुटि (Standard Error)

  • SD = मानक विचलन (Standard Deviation)

  • n = सैंपल का आकार (Sample Size)


🔍 मानक त्रुटि को समझने का सरल उदाहरण

मान लीजिए, किसी कॉलेज में 2000 छात्रों की ऊँचाई का औसत निकालना है। सभी का माप लेना मुश्किल है, इसलिए हम 50 छात्रों का सैंपल लेते हैं।

  • अगर पहले सैंपल का औसत 165 cm निकले,

  • दूसरे सैंपल का औसत 167 cm निकले,

  • तीसरे सैंपल का औसत 164 cm निकले,

तो इन औसतों में जो अंतर आ रहा है, वह सैंपलिंग त्रुटि है, और इस त्रुटि का मानक रूप मानक त्रुटि कहलाता है।


🛠 मानक त्रुटि के प्रकार

1️⃣ औसत की मानक त्रुटि (Standard Error of Mean)

  • यह सबसे सामान्य प्रकार है, जो बताता है कि सैंपल का औसत, जनसंख्या के औसत से कितना अलग हो सकता है।

2️⃣ अनुपात की मानक त्रुटि (Standard Error of Proportion)

  • जब हम प्रतिशत या अनुपात का अध्ययन करते हैं, जैसे चुनाव सर्वेक्षण में, तब इसका उपयोग किया जाता है।
    सूत्र:

SEp=p(1p)nSE_p = \sqrt{\frac{p(1-p)}{n}}

जहाँ p = अनुपात (Proportion)

3️⃣ अंतर के औसत की मानक त्रुटि (Standard Error of Difference Between Means)

  • दो अलग-अलग सैंपल के औसत की तुलना करने के लिए।


📌 मानक त्रुटि के प्रमुख कारक

1️⃣ सैंपल का आकार (Sample Size)

  • जैसे-जैसे सैंपल का आकार बढ़ता है, मानक त्रुटि घटती है।

  • बड़े सैंपल का मतलब है ज्यादा सटीक परिणाम।

2️⃣ मानक विचलन (Standard Deviation)

  • यदि जनसंख्या में मानक विचलन अधिक है, तो मानक त्रुटि भी अधिक होगी।

3️⃣ सैंपलिंग तकनीक

  • सही तकनीक से सैंपल लेने पर मानक त्रुटि कम होती है।


🎯 मानक त्रुटि का महत्व

📍 परिणाम की सटीकता मापना

मानक त्रुटि हमें बताती है कि हमारा सैंपल परिणाम वास्तविक मान से कितना सटीक है।

📍 परिकल्पना परीक्षण में उपयोग

t-test, z-test, chi-square test जैसे सांख्यिकीय परीक्षणों में मानक त्रुटि का महत्वपूर्ण योगदान है।

📍 विश्वास अंतराल (Confidence Interval) निकालना

विश्वास अंतराल निकालने में SE का उपयोग करके हम यह बता सकते हैं कि हमारा परिणाम किस सीमा के भीतर सही है।


🧮 मानक त्रुटि और मानक विचलन में अंतर

आधारमानक त्रुटि (SE)मानक विचलन (SD)
अर्थसैंपल औसत की भिन्नता का मापव्यक्तिगत डेटा बिंदुओं की भिन्नता का माप
निर्भरतासैंपल के आकार पर निर्भरसैंपल के आकार पर निर्भर नहीं
उपयोगसैंपलिंग वितरण के लिएमूल डेटा के लिए
मानहमेशा SD से छोटाअपेक्षाकृत बड़ा


📌 मानक त्रुटि को कम करने के उपाय

📈 सैंपल साइज बढ़ाना

जितना बड़ा सैंपल, उतनी कम मानक त्रुटि।

🎯 बेहतर सैंपलिंग विधि अपनाना

Random Sampling और Stratified Sampling जैसी विधियाँ त्रुटि को घटाती हैं।

📉 मानक विचलन कम करना

डेटा में कम भिन्नता रखने से मानक त्रुटि घटती है।


🔑 निष्कर्ष

मानक त्रुटि सांख्यिकी में सटीकता और विश्वसनीयता का एक महत्वपूर्ण पैमाना है। यह हमें यह समझने में मदद करती है कि हमारा सैंपल परिणाम, वास्तविक जनसंख्या परिणाम के कितने करीब है। सटीक अनुसंधान, सही सैंपलिंग तकनीक और पर्याप्त सैंपल साइज अपनाकर मानक त्रुटि को कम किया जा सकता है।




प्रश्न 02 महत्व सृजन फलन पर टिप्पणी लिखें

📌 परिचय

महत्व सृजन फलन (Moment Generating Function - MGF) सांख्यिकी एवं प्रायिकता (Probability) का एक अत्यंत महत्वपूर्ण गणितीय उपकरण है। यह किसी यादृच्छिक चर (Random Variable) के वितरण के बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान करता है। सरल शब्दों में, MGF वह फलन है जो किसी वितरण के सभी "Moments" को उत्पन्न करता है — इसलिए इसे "Moment Generating Function" कहा जाता है।

सांख्यिकी में "Moment" का अर्थ है डेटा या वितरण के बारे में कुछ विशेष मान, जैसे माध्य (Mean), विचलन (Variance), विकृति (Skewness) आदि। MGF इन मानों को सरलता से प्राप्त करने का तरीका देता है।


📊 महत्व सृजन फलन की परिभाषा

यदि X एक यादृच्छिक चर है, तो इसका Moment Generating Function MX(t)M_X(t) इस प्रकार परिभाषित होता है:

MX(t)=E[etX]M_X(t) = E[e^{tX}]

जहाँ:

  • E = अपेक्षित मान (Expectation)

  • t = वास्तविक संख्या

  • X = यादृच्छिक चर (Random Variable)

यदि X एक विविक्त (Discrete) चर है, तो:

MX(t)=xetxP(X=x)M_X(t) = \sum_{x} e^{tx} \cdot P(X = x)

यदि X एक निरंतर (Continuous) चर है, तो:

MX(t)=etxf(x)dxM_X(t) = \int_{-\infty}^{\infty} e^{tx} f(x) \, dx

जहाँ f(x)f(x) = प्रायिकता घनत्व फलन (Probability Density Function)।


🔍 "Moment" क्या होता है?

📍 परिभाषा

किसी वितरण का nthn^{th} Moment वह मान है जो वितरण की आकृति, स्थिति और फैलाव के बारे में जानकारी देता है।

  • पहला Moment → माध्य (Mean)

  • दूसरा Central Moment → विचलन (Variance)

  • तीसरा Central Moment → विकृति (Skewness)

  • चौथा Central Moment → चपटीपन (Kurtosis)

📍 MGF से Moments निकालना

MGF का सबसे बड़ा फायदा यह है कि हम Moments को Differentiation करके प्राप्त कर सकते हैं:

nth Moment=MX(n)(0)=dndtnMX(t)t=0n^{th} \text{ Moment} = M_X^{(n)}(0) = \frac{d^n}{dt^n} M_X(t) \bigg|_{t=0}

📈 महत्व सृजन फलन के गुण

1️⃣ Moments उत्पन्न करना

MGF से किसी भी क्रम का Moment आसानी से निकाला जा सकता है।

2️⃣ वितरण की पहचान

यदि दो यादृच्छिक चरों का MGF समान है, तो उनके वितरण भी समान होते हैं।

3️⃣ स्वतंत्र चरों के लिए गुणनफल का गुण

यदि X और Y स्वतंत्र यादृच्छिक चर हैं, तो:

MX+Y(t)=MX(t)MY(t)M_{X+Y}(t) = M_X(t) \cdot M_Y(t)

4️⃣ हमेशा अस्तित्व में नहीं

MGF केवल तभी मौजूद होता है जब E[etX]E[e^{tX}] सीमित (finite) हो।


🛠 MGF निकालने की विधि

H4️⃣ चरण 1 – वितरण पहचानें

पता करें कि यादृच्छिक चर विविक्त है या निरंतर।

H4️⃣ चरण 2 – सूत्र लगाएँ

  • विविक्त के लिए Summation का उपयोग करें

  • निरंतर के लिए Integration का उपयोग करें

H4️⃣ चरण 3 – सरलीकरण करें

etxe^{tx} और प्रायिकता फलन को गुणा करके सरल करें।

H4️⃣ चरण 4 – Moments निकालें

Differentiation करके Moments प्राप्त करें।


📌 उदाहरण – विविक्त चर के लिए

मान लीजिए X का प्रायिकता वितरण इस प्रकार है:

XP(X)
00.2
10.5
20.3

MGF:

MX(t)=0.2e0t+0.5e1t+0.3e2tM_X(t) = 0.2e^{0t} + 0.5e^{1t} + 0.3e^{2t} MX(t)=0.2+0.5et+0.3e2tM_X(t) = 0.2 + 0.5e^{t} + 0.3e^{2t}

पहला Moment (Mean):

MX(t)=0.5et+0.6e2tM'_X(t) = 0.5e^{t} + 0.6e^{2t} MX(0)=0.5+0.6=1.1M'_X(0) = 0.5 + 0.6 = 1.1

📌 उदाहरण – निरंतर चर के लिए

यदि X का Probability Density Function है:

f(x)=ex,x0f(x) = e^{-x}, \quad x \ge 0

MGF:

MX(t)=0etxexdxM_X(t) = \int_{0}^{\infty} e^{tx} e^{-x} dx MX(t)=0e(t1)xdxM_X(t) = \int_{0}^{\infty} e^{(t-1)x} dx

शर्त: t<1t < 1 पर

MX(t)=11tM_X(t) = \frac{1}{1-t}

🎯 महत्व सृजन फलन के अनुप्रयोग

📍 सांख्यिकीय विश्लेषण

वितरण के Moments निकालकर डेटा का गहन विश्लेषण करना।

📍 वितरण की पहचान

यदि किसी वितरण का MGF ज्ञात है, तो उसका प्रकार पहचाना जा सकता है।

📍 परिकल्पना परीक्षण

कुछ सांख्यिकीय परीक्षणों में MGF का उपयोग होता है।

📍 स्वतंत्र चर के योग का वितरण

MGF से दो या अधिक स्वतंत्र यादृच्छिक चरों के योग का वितरण निकाला जा सकता है।


🧮 MGF और अन्य फलनों का अंतर

आधारMGFCharacteristic FunctionCumulant Generating Function
अर्थMoments उत्पन्न करता हैFourier Transform के रूप में कार्य करता हैCumulants उत्पन्न करता है
उपयोगMoments निकालने में आसानहमेशा मौजूदCumulants के लिए विशेष
अस्तित्वहमेशा नहींहमेशाMGF से संबंधित


📉 MGF की सीमाएँ

  • हर वितरण का MGF मौजूद नहीं होता।

  • t का मान एक निश्चित सीमा तक ही मान्य होता है।

  • केवल Moments निकालने तक सीमित है, Probability सीधे नहीं देता।


🔑 निष्कर्ष

महत्व सृजन फलन सांख्यिकी में एक सशक्त उपकरण है, जो Moments निकालने, वितरण की पहचान करने और स्वतंत्र चरों के योग का वितरण पता करने में उपयोगी है। यद्यपि यह हर स्थिति में उपलब्ध नहीं होता, लेकिन जहाँ इसका अस्तित्व होता है, वहाँ यह गणना को अत्यंत सरल बना देता है। शोध, सर्वेक्षण, और प्रायिकता से जुड़े विश्लेषणों में MGF का महत्व विशेष है।




प्रश्न 03 समग्र में से 836 माध्य के साथ, 225 प्रेक्षणों वाला यादृच्चिक नमूना लिया गया है, नमूने के लिए माध्य एवं मानक विचलन क्रमतः 840.5 और 45 है। 1% महत्व के स्तर पर, परीक्षण करें कि क्या नमूना माध्य, समग्र माध्य में उप्नेलखनीय ढंग से भित्र है?

इस प्रश्न में हमें जनसंख्या माध्य (Population Mean), नमूना माध्य (Sample Mean), मानक विचलन (Standard Deviation), और प्रेक्षणों की संख्या (Sample Size) दी गई है। हमें यह जाँचना है कि नमूना माध्य, जनसंख्या माध्य से महत्वपूर्ण रूप से भिन्न है या नहीं। इसके लिए हम Z-परीक्षण (Z-Test) का प्रयोग करेंगे, क्योंकि जनसंख्या का मानक विचलन ज्ञात है और सैंपल साइज बड़ा है।


दिए गए आंकड़े

  • जनसंख्या माध्य (μ\mu) = 836

  • नमूना माध्य (xˉ\bar{x}) = 840.5

  • मानक विचलन (s) = 45

  • सैंपल आकार (n) = 225

  • महत्व का स्तर (α) = 1% = 0.01


परिकल्पना का निर्माण

शून्य परिकल्पना (H₀):
नमूना माध्य, जनसंख्या माध्य से महत्वपूर्ण रूप से भिन्न नहीं है।

H0:μ=836H_0 : \mu = 836

वैकल्पिक परिकल्पना (H₁):
नमूना माध्य, जनसंख्या माध्य से महत्वपूर्ण रूप से भिन्न है।

H1:μ836H_1 : \mu \neq 836

यह एक दो तरफा परीक्षण (Two-Tailed Test) है।


मानक त्रुटि (Standard Error) की गणना

मानक त्रुटि का सूत्र:

SE=snSE = \frac{s}{\sqrt{n}} SE=45225SE = \frac{45}{\sqrt{225}} SE=4515=3SE = \frac{45}{15} = 3

Z-आंकड़े (Z-Statistic) की गणना

Z=xˉμSEZ = \frac{\bar{x} - \mu}{SE} Z=840.58363Z = \frac{840.5 - 836}{3} Z=4.53=1.5Z = \frac{4.5}{3} = 1.5

महत्वपूर्ण मान (Critical Value)

1% महत्व स्तर पर, दो तरफा परीक्षण के लिए:

Z0.005=2.58Z_{0.005} = 2.58

इसका अर्थ है:

  • यदि Z>2.58|Z| > 2.58 → शून्य परिकल्पना अस्वीकृत होगी।

  • यदि Z2.58|Z| \leq 2.58 → शून्य परिकल्पना स्वीकार होगी।


निर्णय

हमारे द्वारा गणना किया गया Z=1.5Z = 1.5 है, और यह 2.58 से कम है।
इसलिए:

Z=1.52.58|Z| = 1.5 \leq 2.58

अर्थात, हम शून्य परिकल्पना को अस्वीकार नहीं कर सकते


निष्कर्ष

1% महत्व स्तर पर यह प्रमाण नहीं मिलता कि नमूना माध्य, जनसंख्या माध्य से महत्वपूर्ण रूप से भिन्न है। दूसरे शब्दों में, नमूना माध्य और जनसंख्या माध्य में जो अंतर दिख रहा है, वह केवल संयोगवश (Chance Variation) है, न कि सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण।




प्रश्न 04 सहसम्बन्ध से आप क्या समझते हैं? उसके मापन करने की प्रमुख विधियों के नाम लिखिए।

सांख्यिकी में सहसम्बन्ध (Correlation) का अर्थ है दो या अधिक चर (Variables) के बीच संबंध की दिशा और तीव्रता का अध्ययन करना। जब एक चर के मान में परिवर्तन होने पर दूसरे चर के मान में भी कोई व्यवस्थित परिवर्तन होता है, तो कहा जाता है कि उन दोनों चरों में सहसम्बन्ध है।

सरल शब्दों में, सहसम्बन्ध यह बताता है कि क्या और किस प्रकार दो चर आपस में जुड़े हुए हैं। यह संबंध धनात्मक (Positive), ऋणात्मक (Negative) या शून्य (No Correlation) हो सकता है।


सहसम्बन्ध का उदाहरण

  • यदि छात्रों के अध्ययन के घंटों और परीक्षा में प्राप्त अंकों के बीच सकारात्मक संबंध हो, तो इसका अर्थ है कि अध्ययन के घंटे बढ़ने से अंक भी बढ़ते हैं।

  • यदि वस्तु की कीमत बढ़ने पर उसकी बिक्री घटती है, तो यह ऋणात्मक सहसम्बन्ध है।


सहसम्बन्ध की विशेषताएँ

  1. दिशा (Direction) – यह धनात्मक या ऋणात्मक हो सकती है।

  2. मात्रा (Magnitude) – संबंध कितना मजबूत या कमजोर है।

  3. कारण-कार्य संबंध नहीं बताता – सहसम्बन्ध केवल संबंध की मौजूदगी बताता है, कारण नहीं।

  4. मापनीयता (Measurability) – इसे संख्यात्मक रूप से मापा जा सकता है।


सहसम्बन्ध के प्रकार

  1. दिशा के आधार पर

    • धनात्मक सहसम्बन्ध (Positive Correlation): दोनों चर एक ही दिशा में बदलते हैं।

    • ऋणात्मक सहसम्बन्ध (Negative Correlation): दोनों चर विपरीत दिशा में बदलते हैं।

    • शून्य सहसम्बन्ध (Zero Correlation): चरों के बीच कोई संबंध नहीं।

  2. रूप के आधार पर

    • रैखिक सहसम्बन्ध (Linear Correlation): परिवर्तन सीधी रेखा के रूप में।

    • अ-रैखिक सहसम्बन्ध (Non-Linear Correlation): परिवर्तन सीधी रेखा में नहीं, बल्कि वक्राकार।


सहसम्बन्ध के मापन की आवश्यकता

सहसम्बन्ध को मापना कई कारणों से आवश्यक है:

  • आर्थिक, सामाजिक और व्यावसायिक घटनाओं के बीच संबंध की समझ।

  • पूर्वानुमान (Forecasting) में सहायता।

  • शोध कार्य में परिकल्पनाओं की पुष्टि।


सहसम्बन्ध मापन की प्रमुख विधियाँ

सहसम्बन्ध को मापने के लिए विभिन्न सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग किया जाता है। इन्हें मुख्यतः दो वर्गों में बांटा जाता है:


1. ग्राफिक और दृश्य विधियाँ (Graphic and Diagrammatic Methods)
ये विधियाँ संबंध को दृष्टिगत रूप से दिखाती हैं।

  • स्कैटर डायग्राम विधि (Scatter Diagram Method): इसमें चरों के युग्मित मानों को ग्राफ पर बिंदुओं के रूप में प्लॉट किया जाता है। बिंदुओं के फैलाव से संबंध की दिशा और तीव्रता का पता चलता है।


2. गणितीय और सांख्यिकीय विधियाँ (Mathematical and Statistical Methods)

(क) कार्ल पियरसन का सहसम्बन्ध गुणांक (Karl Pearson’s Coefficient of Correlation)

  • यह सबसे प्रचलित विधि है।

  • मान का दायरा -1 से +1 तक होता है।

  • सूत्र:

r=(xxˉ)(yyˉ)(xxˉ)2(yyˉ)2r = \frac{\sum (x-\bar{x})(y-\bar{y})}{\sqrt{\sum (x-\bar{x})^2 \cdot \sum (y-\bar{y})^2}}
  • +1 = पूर्ण धनात्मक सहसम्बन्ध, -1 = पूर्ण ऋणात्मक सहसम्बन्ध, 0 = कोई सहसम्बन्ध नहीं।

(ख) स्पीयरमैन का रैंक सहसम्बन्ध गुणांक (Spearman’s Rank Correlation Coefficient)

  • जब डेटा क्रमबद्ध (Ranked) हो, तब उपयोगी।

  • सूत्र:

ρ=16d2n(n21)\rho = 1 - \frac{6\sum d^2}{n(n^2 - 1)}

जहाँ d = युग्मित रैंकों का अंतर, n = प्रेक्षणों की संख्या।

(ग) केन्डल का रैंक सहसम्बन्ध (Kendall’s Rank Correlation)

  • यह भी रैंक आधारित संबंध को मापता है, विशेष रूप से छोटे नमूनों के लिए उपयुक्त।

(घ) कोवेरियंस विधि (Covariance Method)

  • इसमें सहसम्बन्ध की दिशा और तीव्रता, दोनों का मापन किया जाता है।

(ङ) आंशिक और बहु सहसम्बन्ध (Partial and Multiple Correlation)

  • आंशिक सहसम्बन्ध: जब दो चरों के बीच संबंध को अन्य चरों के प्रभाव को हटाकर मापा जाता है।

  • बहु सहसम्बन्ध: जब एक चर का दो या अधिक चरों के साथ संयुक्त संबंध मापा जाता है।


सारणी – सहसम्बन्ध मापन की प्रमुख विधियाँ

श्रेणीविधि का नाम
ग्राफिकस्कैटर डायग्राम
गणितीयकार्ल पियरसन गुणांक
रैंक आधारितस्पीयरमैन रैंक गुणांक, केन्डल रैंक गुणांक
विशेषकोवेरियंस विधि, आंशिक सहसम्बन्ध, बहु सहसम्बन्ध


निष्कर्ष

सहसम्बन्ध सांख्यिकी का एक महत्वपूर्ण उपकरण है, जो विभिन्न चरों के बीच संबंध की दिशा और तीव्रता को मापने में मदद करता है। इसका मापन आर्थिक, सामाजिक और वैज्ञानिक अनुसंधान में अत्यंत आवश्यक है। सहसम्बन्ध मापन की विधियाँ सरल दृश्य विधियों से लेकर जटिल गणितीय तकनीकों तक फैली हुई हैं, और सही परिस्थिति के अनुसार उचित विधि का चयन करना शोध की सटीकता के लिए जरूरी है।



प्रश्न 05: कार्ल पियर्सन के सहसम्बन्ध गुणांक को समझाइए।

कार्ल पियर्सन का सहसम्बन्ध गुणांक (Karl Pearson’s Coefficient of Correlation) दो चर (variables) के बीच रैखिक (linear) सम्बन्ध की दिशा और परिमाण को मापने का एक सांख्यिकीय साधन है। इसे प्रायः r से निरूपित किया जाता है। यह विधि ब्रिटिश सांख्यिकीविद् कार्ल पियर्सन ने विकसित की थी, इसलिए इसे उनके नाम से जाना जाता है।


सहसम्बन्ध गुणांक का अर्थ

सहसम्बन्ध गुणांक एक संख्यात्मक मान है जो यह बताता है कि दो चर किस सीमा तक साथ-साथ परिवर्तन करते हैं।

  • यदि दोनों चर में वृद्धि या कमी साथ-साथ हो तो धनात्मक सहसम्बन्ध होता है।

  • यदि एक चर में वृद्धि के साथ दूसरे में कमी हो तो ऋणात्मक सहसम्बन्ध होता है।

  • यदि कोई स्पष्ट रैखिक सम्बन्ध न हो तो सहसम्बन्ध लगभग शून्य होता है।


परिभाषा

कार्ल पियर्सन के अनुसार—

"सहसम्बन्ध गुणांक वह अनुपात है जो दो चरों के सहप्रसरण (Covariance) को उनके मानक विचलनों के गुणनफल से विभाजित करके प्राप्त होता है।"

गणितीय रूप में:

r=Cov(X,Y)σXσYr = \frac{\text{Cov}(X, Y)}{\sigma_X \cdot \sigma_Y}

जहाँ,

  • Cov(X,Y)\text{Cov}(X, Y) = X और Y का सहप्रसरण

  • σX\sigma_X और σY\sigma_Y = X और Y के मानक विचलन


प्रत्यक्ष गणना सूत्र

यदि X और Y के अवलोकन दिए हों, तो:

r=(XXˉ)(YYˉ)(XXˉ)2(YYˉ)2r = \frac{\sum (X - \bar{X})(Y - \bar{Y})}{\sqrt{\sum (X - \bar{X})^2 \cdot \sum (Y - \bar{Y})^2}}

r का मान और उसकी व्याख्या

  • r=+1r = +1 → पूर्ण धनात्मक सहसम्बन्ध

  • r=1r = -1 → पूर्ण ऋणात्मक सहसम्बन्ध

  • r=0r = 0 → कोई सहसम्बन्ध नहीं

  • 0<r<10 < r < 1 → आंशिक धनात्मक सहसम्बन्ध

  • 1<r<0-1 < r < 0 → आंशिक ऋणात्मक सहसम्बन्ध


विशेषताएँ

  1. आयामरहित (Dimensionless) – इसका कोई मापांक नहीं होता।

  2. मान की सीमा – हमेशा -1 और +1 के बीच रहता है।

  3. दिशा और परिमाण – यह सहसम्बन्ध की दिशा और ताकत दोनों बताता है।

  4. रैखिक सम्बन्ध पर आधारित – केवल सीधी रेखा वाले सम्बन्ध को मापता है।


उपयोग

  • अर्थशास्त्र, व्यवसाय, शिक्षा, मनोविज्ञान, कृषि आदि क्षेत्रों में चर के बीच सम्बन्ध की जाँच करने के लिए।

  • पूर्वानुमान (Prediction) करने में सहायता के लिए।


प्रश्न 06: संगामी विचलन गुणांक को समझाइए।


भूमिका

सांख्यिकी में संगामी विचलन गुणांक (Coefficient of Concurrent Deviation) सहसम्बन्ध (Correlation) मापने की एक सरल एवं प्रायोगिक विधि है। इसका प्रयोग तब किया जाता है जब आंकड़ों के वास्तविक मान ज्ञात न हों या केवल उनका बढ़ना या घटना (Trend) ही उपलब्ध हो। यह विधि मुख्य रूप से सहसम्बन्ध का मोटा अनुमान लगाने के लिए उपयोग में आती है।


परिभाषा

संगामी विचलन गुणांक वह सांख्यिकीय अनुपात है जो दो श्रेणियों में एक साथ होने वाले परिवर्तन (एक साथ वृद्धि या एक साथ कमी) की संख्या को कुल युग्मों की संख्या से विभाजित करके प्राप्त किया जाता है।

अर्थात—
यदि दो चर (Variables) एक साथ बढ़ते हैं या एक साथ घटते हैं, तो इसे संगामी विचलन (Concurrent Deviation) कहा जाता है, और यदि एक बढ़े तथा दूसरा घटे, तो यह असंगामी विचलन (Non-Concurrent Deviation) कहलाता है।


सूत्र

संगामी विचलन गुणांक rr का सूत्र इस प्रकार है—

r=±2CNNr = \pm \frac{2C - N}{N}

जहाँ—

  • C = संगामी विचलनों की संख्या

  • N = कुल युग्मों (Pairs) की संख्या

  • ± = यह चिन्ह इस पर निर्भर करता है कि सहसम्बन्ध सकारात्मक है या नकारात्मक।


गणना की विधि

  1. दिए गए आंकड़ों को वर्ष या समयानुसार तालिका में लिखें।

  2. प्रत्येक वर्ष के लिए दोनों श्रेणियों के बीच वृद्धि (+) या कमी (–) का चिन्ह लगाएँ।

  3. देखें कि कितने बार दोनों में एक साथ वृद्धि या एक साथ कमी हुई (C)।

  4. सूत्र में CC और NN के मान रखकर rr ज्ञात करें।


उदाहरण

यदि किसी दो श्रृंखलाओं में कुल 10 युग्म हैं और उनमें से 7 बार दोनों में एक साथ वृद्धि/कमी हुई है, तो—

r=2×71010=141010=410=0.4r = \frac{2 \times 7 - 10}{10} = \frac{14 - 10}{10} = \frac{4}{10} = 0.4

अर्थात सहसम्बन्ध का मान 0.4 होगा, जो मध्यम सकारात्मक सहसम्बन्ध को दर्शाता है।


विशेषताएँ

  • सरल और शीघ्र गणना करने योग्य।

  • केवल वृद्धि और कमी के चिन्ह आवश्यक होते हैं, वास्तविक मान नहीं।

  • छोटे आंकड़ों के लिए उपयुक्त।


सीमाएँ

  • सहसम्बन्ध का केवल मोटा अनुमान देता है, सटीकता कम होती है।

  • बड़े और जटिल आंकड़ों के लिए उपयुक्त नहीं।

  • वास्तविक मान और विचलन की तीव्रता को ध्यान में नहीं रखता।


निष्कर्ष

संगामी विचलन गुणांक एक प्रारंभिक एवं सरल विधि है जिससे हम यह पता लगा सकते हैं कि दो श्रेणियों में परिवर्तन एक साथ हो रहे हैं या नहीं। हालांकि यह सटीक माप नहीं है, फिर भी प्रारंभिक विश्लेषण में इसका उपयोग उपयोगी साबित होता है।



प्रश्न 08 प्रतीपगमन अवधारणा की व्याख्या कीजिए। यह सहसंबंध में किस प्रकार भित्र है? प्रतीपगमन रेखा दो क्यों होती है?

उत्तर

1. प्रतीपगमन की अवधारणा
प्रतीपगमन (Regression) एक सांख्यिकीय विधि है जिसका प्रयोग दो या अधिक चर (Variables) के बीच मात्रात्मक संबंध का अध्ययन और अनुमान लगाने के लिए किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह जानना है कि एक स्वतंत्र चर (Independent Variable) के परिवर्तन का आश्रित चर (Dependent Variable) पर क्या प्रभाव पड़ता है।
उदाहरण के लिए, यदि हमें किसी व्यक्ति की आयु के आधार पर उसकी ऊँचाई का अनुमान लगाना हो, तो प्रतीपगमन का उपयोग किया जा सकता है।

प्रतीपगमन समीकरण का सामान्य रूप —

Y=a+bXY = a + bX

जहाँ,

  • YY = आश्रित चर का अनुमानित मान

  • XX = स्वतंत्र चर का मान

  • aa = अवरोधक (Intercept)

  • bb = ढाल (Slope) या प्रतीपगमन गुणांक


2. सहसंबंध (Correlation) से अंतर

पहलूसहसंबंधप्रतीपगमन
उद्देश्यदो चरों के बीच संबंध की दिशा और तीव्रता मापनाएक चर का मान, दूसरे चर के आधार पर अनुमानित करना
परिणामसहसंबंध गुणांक (r)(r) -1 से +1 के बीचप्रतीपगमन समीकरण, जिससे भविष्यवाणी संभव
परस्पर निर्भरतादोनों चर बराबर महत्व रखते हैंएक चर स्वतंत्र और दूसरा आश्रित होता है
मापन का प्रकारमात्र संबंध का मापनसंबंध का मापन + भविष्यवाणी


3. प्रतीपगमन रेखा दो क्यों होती है?
प्रतीपगमन विश्लेषण में दो प्रकार की रेखाएँ खींची जाती हैं —

  1. Y पर X की प्रतीपगमन रेखा (YY को XX के आधार पर अनुमानित करने के लिए)

    Y=a+bXY = a + bX
  2. X पर Y की प्रतीपगमन रेखा (XX को YY के आधार पर अनुमानित करने के लिए)

    X=a+bYX = a' + b'Y

इनके अलग होने का कारण यह है कि एक में त्रुटि (Error) YY के मान में न्यूनतम की जाती है, जबकि दूसरे में XX के मान में। इसलिए उनकी ढाल और समीकरण प्रायः अलग होते हैं, सिवाय इसके कि सहसंबंध गुणांक r=1|r| = 1 हो (तब दोनों रेखाएँ एक ही होती हैं)।


निष्कर्ष
प्रतीपगमन केवल यह नहीं बताता कि दो चरों में संबंध है, बल्कि वह उस संबंध का गणितीय मॉडल भी प्रदान करता है जिससे हम पूर्वानुमान कर सकें। सहसंबंध संबंध की डिग्री देता है, जबकि प्रतीपगमन पूर्वानुमान का साधन है। दो रेखाएँ होने का कारण यह है कि पूर्वानुमान का आधार और लक्ष्य चर अलग-अलग हो सकते हैं।


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प्रश्न 09 विचरण अनुपात की अवधारणा की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।


📌 विचरण अनुपात का परिचय

विचरण अनुपात (Variance Ratio) सांख्यिकी में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, जिसका प्रयोग ANOVA (Analysis of Variance) में किया जाता है। यह विभिन्न समूहों के माध्यों के बीच के अंतर की तुलना समूहों के भीतर के विचरण से करने के लिए उपयोग होता है।
सरल शब्दों में, विचरण अनुपात यह बताता है कि कुल विचरण में से कितना हिस्सा स्वतंत्र चर के कारण है और कितना हिस्सा यादृच्छिक त्रुटि के कारण।


🎯 विचरण अनुपात की परिभाषा

"विचरण अनुपात वह अनुपात है जो समूहों के बीच के माध्य वर्ग (Mean Square Between Groups) और समूहों के भीतर के माध्य वर्ग (Mean Square Within Groups) के बीच लिया जाता है।"

इसे प्रायः F के रूप में दर्शाया जाता है:

F=MSBetweenMSWithinF = \frac{MS_{Between}}{MS_{Within}}

जहाँ:

  • MS Between = समूहों के बीच का माध्य वर्ग

  • MS Within = समूहों के भीतर का माध्य वर्ग


📊 विचरण अनुपात का उद्देश्य

  1. यह परखने के लिए कि क्या विभिन्न समूहों के माध्यों में सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण अंतर है।

  2. यह निर्धारित करने के लिए कि किसी स्वतंत्र चर का आश्रित चर पर प्रभाव है या नहीं।

  3. ANOVA परीक्षण में निर्णय का आधार बनने के लिए।


🔍 विचरण अनुपात की गणना के चरण

1️⃣ डेटा का वर्गीकरण

सभी अवलोकनों को उनके संबंधित समूहों में बांटा जाता है।

2️⃣ माध्यों की गणना

  • प्रत्येक समूह का माध्य (Group Mean) निकाला जाता है।

  • सभी डेटा का समग्र माध्य (Grand Mean) निकाला जाता है।

3️⃣ समूहों के बीच का वर्ग योग (Sum of Squares Between Groups – SSB)

SSB=i=1kni(XiˉXˉ)2SSB = \sum_{i=1}^{k} n_i (\bar{X_i} - \bar{X})^2

जहाँ:

  • nin_i = समूह i में अवलोकनों की संख्या

  • Xiˉ\bar{X_i} = समूह i का माध्य

  • Xˉ\bar{X} = समग्र माध्य

4️⃣ समूहों के भीतर का वर्ग योग (Sum of Squares Within Groups – SSW)

SSW=i=1kj=1ni(XijXiˉ)2SSW = \sum_{i=1}^{k} \sum_{j=1}^{n_i} (X_{ij} - \bar{X_i})^2

5️⃣ स्वतंत्रता की डिग्री (Degrees of Freedom)

  • समूहों के बीच: dfBetween=k1df_{Between} = k - 1

  • समूहों के भीतर: dfWithin=Nkdf_{Within} = N - k

6️⃣ माध्य वर्ग (Mean Squares)

MSBetween=SSBdfBetweenMS_{Between} = \frac{SSB}{df_{Between}} MSWithin=SSWdfWithinMS_{Within} = \frac{SSW}{df_{Within}}

7️⃣ विचरण अनुपात (F Value)

F=MSBetweenMSWithinF = \frac{MS_{Between}}{MS_{Within}}

📌 उदाहरण द्वारा समझना

मान लीजिए, हमारे पास तीन समूह हैं, जिनके डेटा इस प्रकार हैं:

समूह Aसमूह Bसमूह C
121520
141822
131721

1️⃣ समूह माध्य

  • समूह A का माध्य = (12+14+13)/3 = 13

  • समूह B का माध्य = (15+18+17)/3 = 16.67

  • समूह C का माध्य = (20+22+21)/3 = 21

समग्र माध्य = (12+14+13+15+18+17+20+22+21)/9 = 17

2️⃣ SSB (समूहों के बीच वर्ग योग)

SSB=3(1317)2+3(16.6717)2+3(2117)2SSB = 3(13 - 17)^2 + 3(16.67 - 17)^2 + 3(21 - 17)^2 =3(16)+3(0.1089)+3(16)= 3(16) + 3(0.1089) + 3(16) =48+0.3267+48=96.3267= 48 + 0.3267 + 48 = 96.3267

3️⃣ SSW (समूहों के भीतर वर्ग योग)

प्रत्येक समूह के अंदर अवलोकनों के विचलनों के वर्ग का योग निकालकर जोड़ते हैं:

  • समूह A: (12-13)² + (14-13)² + (13-13)² = 1 + 1 + 0 = 2

  • समूह B: (15-16.67)² + (18-16.67)² + (17-16.67)² = 2.7889 + 1.7556 + 0.1089 = 4.6534

  • समूह C: (20-21)² + (22-21)² + (21-21)² = 1 + 1 + 0 = 2

कुल SSW = 2 + 4.6534 + 2 = 8.6534

4️⃣ स्वतंत्रता की डिग्री

  • df Between = k - 1 = 3 - 1 = 2

  • df Within = N - k = 9 - 3 = 6

5️⃣ माध्य वर्ग

MSBetween=96.32672=48.16335MS_{Between} = \frac{96.3267}{2} = 48.16335 MSWithin=8.65346=1.44223MS_{Within} = \frac{8.6534}{6} = 1.44223

6️⃣ विचरण अनुपात (F Value)

F=48.163351.4422333.39F = \frac{48.16335}{1.44223} \approx 33.39

📌 परिणाम की व्याख्या

यदि गणना की गई F मान, F तालिका में दिए गए क्रांतिक मान से अधिक है, तो हम यह निष्कर्ष निकालते हैं कि समूहों के माध्यों में सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण अंतर है।


🔑 मुख्य बिंदु

  • विचरण अनुपात का उपयोग मुख्यतः ANOVA में किया जाता है।

  • यह समूहों के माध्यों में अंतर की जांच करता है।

  • इसका मान जितना अधिक होगा, अंतर उतना अधिक महत्वपूर्ण होगा।

  • F-वितरण (F-distribution) के आधार पर निर्णय लिया जाता है।



प्रश्न 10: सांख्यिकी में आन्तरगणन एवं बाह्यगणन की उपयोगिता की व्याख्या कीजिए


📌 परिचय

सांख्यिकी (Statistics) में आन्तरगणन (Interpolation) और बाह्यगणन (Extrapolation) दो महत्वपूर्ण तकनीकें हैं, जिनका उपयोग उपलब्ध आँकड़ों के आधार पर अज्ञात मूल्यों का अनुमान लगाने के लिए किया जाता है। इनका प्रयोग अर्थशास्त्र, व्यापार, कृषि, जनसंख्या अध्ययन, मौसम पूर्वानुमान, उत्पादन योजना, आदि अनेक क्षेत्रों में किया जाता है।


🧩 आन्तरगणन (Interpolation) – अवधारणा

आन्तरगणन वह प्रक्रिया है जिसमें किसी ज्ञात आँकड़ों की श्रृंखला के मध्य स्थित अज्ञात मान का अनुमान लगाया जाता है।

  • उदाहरण: यदि हमें 2015 और 2017 के बिक्री आँकड़े ज्ञात हों, तो 2016 का बिक्री आँकड़ा अनुमानित करने के लिए आन्तरगणन का प्रयोग करेंगे।

  • यह तकनीक तभी उपयोगी होती है जब अनुमान दिए गए डेटा रेंज के भीतर लगाया जा रहा हो।


🔍 बाह्यगणन (Extrapolation) – अवधारणा

बाह्यगणन वह प्रक्रिया है जिसमें उपलब्ध आँकड़ों की सीमा से बाहर स्थित अज्ञात मान का अनुमान लगाया जाता है।

  • उदाहरण: यदि हमारे पास 2015 से 2020 तक के उत्पादन आँकड़े हैं, और हमें 2025 का अनुमान लगाना है, तो बाह्यगणन का उपयोग होगा।

  • यह तकनीक भविष्य की प्रवृत्तियों का अनुमान लगाने के लिए उपयुक्त है, लेकिन इसमें अनिश्चितता अधिक होती है।


📊 आन्तरगणन और बाह्यगणन में अंतर

क्रमांकआधारआन्तरगणन (Interpolation)बाह्यगणन (Extrapolation)
1परिभाषादिए गए आँकड़ों की सीमा के भीतर अनुमान लगानादिए गए आँकड़ों की सीमा के बाहर अनुमान लगाना
2त्रुटि की संभावनाअपेक्षाकृत कमअपेक्षाकृत अधिक
3विश्वसनीयताअधिककम
4उपयोगमध्यवर्ती वर्षों, महीनों या बिंदुओं का अनुमानभविष्य या अतीत के दूरस्थ मानों का अनुमान


🛠️ उपयोगिता (Applications)

📌 1. आर्थिक और व्यापारिक योजना

  • बिक्री, उत्पादन, लाभ आदि के भविष्य के अनुमान में मदद।

  • बजट और निवेश योजनाओं में सटीकता बढ़ाता है।

📌 2. जनसंख्या और सामाजिक अध्ययन

  • जनसंख्या वृद्धि, साक्षरता दर, बेरोजगारी दर आदि का अनुमान।

  • सामाजिक नीतियों के निर्माण में सहायक।

📌 3. मौसम और कृषि

  • वर्षा, तापमान, उत्पादन आदि के पूर्वानुमान।

  • कृषि फसलों की बुवाई और कटाई के समय निर्धारण में सहायक।

📌 4. वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्र

  • भौतिकी, रसायन विज्ञान, इंजीनियरिंग में प्रयोगात्मक डेटा के अज्ञात मान निकालने में उपयोग।

  • मशीन लर्निंग और डेटा एनालिटिक्स में पैटर्न पहचानने में सहायक।


📈 उदाहरण द्वारा स्पष्टता

मान लीजिए, एक कंपनी के वर्षवार बिक्री आँकड़े (हजार रुपये में) इस प्रकार हैं:

वर्षबिक्री (₹ हजार)
201880
201990
2020110
  • आन्तरगणन: यदि हमें 2019.5 (2019 के मध्य) की बिक्री का अनुमान चाहिए, तो यह आन्तरगणन होगा।

  • बाह्यगणन: यदि हमें 2022 की बिक्री का अनुमान लगाना है, तो यह बाह्यगणन होगा।


⚠️ सीमाएँ

  • आन्तरगणन और बाह्यगणन पर आधारित अनुमान सटीक नहीं होते, ये केवल संभावित मान देते हैं।

  • बाह्यगणन में भविष्य की अनिश्चितताओं के कारण त्रुटि अधिक हो सकती है।

  • यदि मूल आँकड़े त्रुटिपूर्ण हैं, तो अनुमान भी गलत होंगे।


📜 निष्कर्ष

आन्तरगणन और बाह्यगणन सांख्यिकी की महत्वपूर्ण तकनीकें हैं जो निर्णय लेने, योजना बनाने और भविष्यवाणी करने में अत्यंत सहायक हैं। आन्तरगणन, सीमित सीमा के भीतर विश्वसनीय अनुमान देता है, जबकि बाह्यगणन भविष्य के संभावित मूल्यों का आकलन करने में मदद करता है। दोनों तकनीकों का सावधानीपूर्वक और सही परिस्थितियों में प्रयोग किया जाना चाहिए, ताकि प्राप्त परिणाम अधिकतम सटीकता के हों।



प्रश्न 11: सूचकांक क्या है? इसका निर्माण कैसे किया जाता है? फिशर का सूत्र आदर्श सूचकांक क्यों कहलाता है?


सूचकांक की परिभाषा

सांख्यिकी में सूचकांक (Index Number) एक ऐसा मानक माप है जो समय, स्थान या अन्य परिस्थितियों के अनुसार किसी वस्तु, समूह या घटना के मूल्य, मात्रा, उत्पादन, बिक्री, वेतन, आदि में हुए परिवर्तन को संख्यात्मक रूप से दर्शाता है।
इसे सामान्यतः प्रतिशत रूप में व्यक्त किया जाता है और यह तुलनात्मक अध्ययन के लिए उपयोगी होता है।

सरल शब्दों में — सूचकांक किसी भी वस्तु या समूह के मान में समय या स्थान के अनुसार हुए परिवर्तन का मापक है।


सूचकांक के मुख्य प्रकार

  1. मूल्य सूचकांक (Price Index) – वस्तुओं के दामों में हुए परिवर्तन को मापने के लिए।

  2. मात्रा सूचकांक (Quantity Index) – वस्तुओं की मात्रा में हुए परिवर्तन के लिए।

  3. मूल्य-मात्रा संयुक्त सूचकांक – मूल्य और मात्रा दोनों में हुए परिवर्तनों का संयुक्त माप।


सूचकांक निर्माण की प्रक्रिया

सूचकांक निर्माण निम्न चरणों में किया जाता है –

1. आधार वर्ष का चयन

  • वह वर्ष जिसमें आर्थिक, सामाजिक या बाजार की स्थिति सामान्य हो।

  • इस वर्ष के आंकड़ों को 100 माना जाता है।

2. वस्तुओं और सेवाओं का चयन

  • उद्देश्य के अनुसार वस्तुओं की सूची तय की जाती है।

  • चयन ऐसी वस्तुओं का होना चाहिए जो जन-जीवन या अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण हों।

3. मूल्य या मात्रा का संग्रहण

  • चुनी गई वस्तुओं के मूल्य या मात्रा के आंकड़े विभिन्न स्रोतों से एकत्रित किए जाते हैं।

4. भार निर्धारण (Weight Assignment)

  • सभी वस्तुओं का महत्व समान नहीं होता, इसलिए प्रत्येक वस्तु के लिए उसका महत्व या भार तय किया जाता है।

5. सूत्र का चयन

  • सूचकांक बनाने के लिए उपयुक्त गणितीय सूत्र का चयन किया जाता है।


सूचकांक के निर्माण के प्रमुख सूत्र

  1. सरल औसत विधि (Simple Average Method)

    • मूल्य सापेक्ष (Price Relatives) का औसत निकालना।

  2. भारित औसत विधि (Weighted Average Method)

    • प्रत्येक वस्तु के भार को ध्यान में रखकर औसत निकालना।

  3. सकल मूल्य विधि (Aggregate Method)

    • चुने गए वर्षों के कुल मूल्यों की तुलना करना।


फिशर का आदर्श सूत्र (Fisher’s Ideal Formula)

फिशर का सूत्र भारित ज्यामितीय माध्य (Weighted Geometric Mean) पर आधारित है और इसे निम्न प्रकार लिखा जाता है –

P01=(p1q0p0q0)×(p1q1p0q1)P_{01} = \sqrt{ \left( \frac{\sum p_1 q_0}{\sum p_0 q_0} \right) \times \left( \frac{\sum p_1 q_1}{\sum p_0 q_1} \right) }

जहाँ –

  • p0p_0 = आधार वर्ष का मूल्य

  • p1p_1 = वर्तमान वर्ष का मूल्य

  • q0q_0 = आधार वर्ष की मात्रा

  • q1q_1 = वर्तमान वर्ष की मात्रा


फिशर का सूत्र आदर्श क्यों कहलाता है?

फिशर के अनुसार कोई भी आदर्श सूचकांक निम्न गुणों को पूरा करना चाहिए –

  1. समय प्रतिलोम परीक्षण (Time Reversal Test)

    • यदि समय की दिशा बदल दी जाए तो आधार और वर्तमान वर्ष के सूचकांक का गुणनफल 1 (या 100) होना चाहिए।

    • गणितीय रूप से:

      P01×P10=1P_{01} \times P_{10} = 1
    • फिशर का सूत्र इस परीक्षण को संतोषजनक रूप से पूरा करता है।

  2. गुणक प्रतिलोम परीक्षण (Factor Reversal Test)

    • मूल्य सूचकांक और मात्रा सूचकांक का गुणनफल, मूल्य और मात्रा के कुल मूल्य अनुपात के बराबर होना चाहिए।

    • फिशर का सूत्र इस परीक्षण को भी पूरा करता है।

  3. सटीकता

    • यह Laspeyres और Paasche दोनों सूचकांकों का ज्यामितीय माध्य है, जिससे यह संतुलित और निष्पक्ष होता है।


निष्कर्ष

सूचकांक सांख्यिकी का एक महत्वपूर्ण उपकरण है, जो समय, स्थान या परिस्थिति में हुए परिवर्तनों का माप प्रदान करता है।
फिशर का आदर्श सूत्र अपनी सटीकता, संतुलन और दोनों प्रमुख परीक्षणों को पूरा करने की क्षमता के कारण सूचकांक निर्माण की सबसे श्रेष्ठ विधियों में से एक माना जाता है।



प्रश्न 12: सूचकांक की परिभाषा, स्थिर आधार विधि एवं श्रृंखला आधार विधि का अंतर और तुलनात्मक गुण बताइए।


सूचकांक की परिभाषा

सूचकांक (Index Number) सांख्यिकी में ऐसा मापक है, जो समय, स्थान अथवा अन्य परिस्थितियों के अनुसार किसी वस्तु या वस्तुओं के समूह के मूल्य, मात्रा, उत्पादन या अन्य आर्थिक गतिविधियों में होने वाले सापेक्ष परिवर्तन को दर्शाता है।
सरल शब्दों में, सूचकांक एक संख्यात्मक अनुपात है, जो किसी आधार वर्ष की तुलना में वर्तमान वर्ष की स्थिति को प्रतिशत रूप में प्रकट करता है।

उदाहरण – यदि 2020 को आधार वर्ष मानते हुए 2025 का मूल्य सूचकांक 120 है, तो इसका अर्थ है कि 2020 की तुलना में 2025 में मूल्य 20% बढ़ गए हैं।


सूचकांक बनाने की विधियाँ

सूचकांक बनाने के कई तरीके हैं, लेकिन यहाँ हम स्थिर आधार विधि और श्रृंखला आधार विधि का अध्ययन करेंगे।


1. स्थिर आधार विधि (Fixed Base Method)

इस विधि में एक वर्ष को आधार वर्ष चुना जाता है और हर वर्ष की तुलना उसी आधार वर्ष से की जाती है।
सूत्र:

Index Number=वर्तमान वर्ष का आंकड़ाआधार वर्ष का आंकड़ा×100\text{Index Number} = \frac{\text{वर्तमान वर्ष का आंकड़ा}}{\text{आधार वर्ष का आंकड़ा}} \times 100

उदाहरण:
यदि आधार वर्ष 2015 में मूल्य ₹100 है और 2020 में ₹150 है, तो –

सूचकांक=150100×100=150\text{सूचकांक} = \frac{150}{100} \times 100 = 150

2. श्रृंखला आधार विधि (Chain Base Method)

इस विधि में प्रत्येक वर्ष को उसके पिछले वर्ष के साथ तुलना की जाती है, और फिर इन सूचकांकों को क्रमिक रूप से जोड़कर (Chain करके) अंतिम परिणाम प्राप्त किया जाता है।

सूत्र:

Chain Index=वर्तमान वर्ष का आंकड़ापिछले वर्ष का आंकड़ा×100\text{Chain Index} = \frac{\text{वर्तमान वर्ष का आंकड़ा}}{\text{पिछले वर्ष का आंकड़ा}} \times 100

उदाहरण:
यदि 2015 → 2016 मूल्य 110 है, 2016 → 2017 मूल्य 120 है, तो श्रृंखला के अनुसार 2017 का आधार 2015 के लिए सूचकांक होगा:

110×120100=132110 \times \frac{120}{100} = 132

स्थिर आधार विधि और श्रृंखला आधार विधि में अंतर

आधारस्थिर आधार विधिश्रृंखला आधार विधि
आधार वर्षकेवल एक निश्चित वर्ष को आधार मानते हैंहर वर्ष पिछले वर्ष को आधार मानते हैं
गणना की सरलतासरल और आसानअपेक्षाकृत कठिन
लंबे समय की तुलनाउपयुक्तकठिनाईपूर्ण
परिवर्तन के अध्ययनदीर्घकालीन परिवर्तन स्पष्ट दिखते हैंअल्पकालीन परिवर्तन स्पष्ट दिखते हैं
त्रुटि का प्रभावएक बार की त्रुटि सभी पर असर डालती हैएक वर्ष की त्रुटि आगे तक बढ़ सकती है
लचीलापनकम लचीलाअधिक लचीला


तुलनात्मक गुण

  1. स्थिर आधार विधि के गुण

    • गणना में सरल

    • दीर्घकालीन तुलना के लिए उपयुक्त

    • एक बार आधार चुन लेने पर स्थिरता रहती है

  2. श्रृंखला आधार विधि के गुण

    • बदलते आर्थिक वातावरण में लचीला

    • नए आंकड़े आसानी से जोड़े जा सकते हैं

    • अल्पकालिक प्रवृत्तियों को दर्शाने में सहायक



प्रश्न 13: गैर-प्राचल परीक्षणों के लाभ एवं हानियाँ क्या हैं? 


परिचय
गैर-प्राचल परीक्षण (Non-parametric Tests) सांख्यिकी में उन परीक्षणों को कहा जाता है, जिनमें जनसंख्या के बारे में किसी विशिष्ट प्राचल (जैसे माध्य, विचलन) की धारणाएँ आवश्यक नहीं होतीं। इनका प्रयोग तब किया जाता है जब डेटा का वितरण अज्ञात हो या सामान्य वितरण (Normal Distribution) जैसी शर्तें पूरी न हों।


लाभ (Advantages)

  1. वितरण की कोई पूर्वधारणा नहीं

    • इसमें यह मानने की आवश्यकता नहीं होती कि डेटा किसी विशेष प्रकार के वितरण का अनुसरण करता है।

    • उदाहरण: Chi-square परीक्षण का प्रयोग श्रेणीबद्ध (Categorical) डेटा के लिए आसानी से किया जा सकता है।

  2. छोटे नमूनों पर भी लागू

    • छोटे सैंपल साइज (Small Sample Size) के साथ भी इनका प्रयोग संभव है, जहाँ प्राचल परीक्षण असफल हो सकते हैं।

  3. साधारण गणना

    • इनकी गणना तुलनात्मक रूप से आसान होती है और जटिल गणितीय सूत्रों की आवश्यकता नहीं होती।

  4. अत्यधिक मूल्यों (Outliers) का प्रभाव कम

    • गैर-प्राचल परीक्षण अत्यधिक या असामान्य मूल्यों से कम प्रभावित होते हैं।

  5. श्रेणीबद्ध एवं क्रमबद्ध (Ordinal) डेटा के लिए उपयुक्त

    • जब डेटा मात्रात्मक (Quantitative) न होकर श्रेणीबद्ध या क्रमबद्ध हो, तब भी ये परीक्षण सही परिणाम देते हैं।


हानियाँ (Disadvantages)

  1. प्राचल परीक्षण की तुलना में कम दक्षता

    • यदि डेटा प्राचल परीक्षण की शर्तें पूरी करता है, तो गैर-प्राचल परीक्षण अपेक्षाकृत कम शक्तिशाली (Less Powerful) होते हैं।

  2. कम सटीक अनुमान

    • ये प्राचलों के सटीक मानों का अनुमान नहीं देते, बल्कि केवल परिकल्पना के परीक्षण तक सीमित रहते हैं।

  3. कम जानकारी का उपयोग

    • कई गैर-प्राचल परीक्षण केवल डेटा के क्रम या रैंक का उपयोग करते हैं, जिससे डेटा की संपूर्ण जानकारी का उपयोग नहीं हो पाता।

  4. विशेष परिस्थितियों में उपयुक्त नहीं

    • यदि डेटा का वितरण ज्ञात है और सामान्य वितरण जैसी धारणाएँ पूरी हो रही हैं, तब प्राचल परीक्षण अधिक उपयुक्त रहते हैं।


निष्कर्ष
गैर-प्राचल परीक्षण उन परिस्थितियों में अत्यंत उपयोगी हैं, जहाँ डेटा का वितरण अज्ञात हो या सामान्यता की शर्तें पूरी न होती हों। हालांकि, यदि प्राचल परीक्षण की शर्तें पूरी होती हैं, तो उनकी तुलना में ये कम दक्ष हो सकते हैं। अतः परीक्षण के चयन में परिस्थितियों के अनुसार विवेकपूर्ण निर्णय लेना आवश्यक है।



प्रश्न 14 कंप्यूटर को कितनी पीढ़ियों में बांटा जा सकता है, इनका क्रमवार वर्णन करने के साथ हर पीढ़ी में आए अंतर का विश्लेषण करें।


उत्तर:

कंप्यूटर के विकास को तकनीकी प्रगति और हार्डवेयर-सॉफ्टवेयर के बदलाव के आधार पर विभिन्न पीढ़ियों (Generations) में बाँटा गया है। कुल पाँच प्रमुख पीढ़ियाँ मानी जाती हैं, जिनमें प्रत्येक पीढ़ी ने पिछले की तुलना में गति, क्षमता, आकार और कार्यक्षमता में सुधार किया।


1. प्रथम पीढ़ी (First Generation) – 1940 से 1956 तक

  • तकनीक: वैक्यूम ट्यूब (Vacuum Tube) आधारित।

  • भाषाएँ: मशीन भाषा (Machine Language)।

  • स्टोरेज: मैग्नेटिक ड्रम।

  • विशेषताएँ:

    • आकार में बहुत बड़े और भारी।

    • बिजली की खपत अधिक।

    • हीटिंग की समस्या।

    • प्रोसेसिंग गति बहुत धीमी।

  • उदाहरण: ENIAC, UNIVAC-1।


2. द्वितीय पीढ़ी (Second Generation) – 1956 से 1963 तक

  • तकनीक: ट्रांजिस्टर (Transistor) आधारित।

  • भाषाएँ: असेंबली भाषा (Assembly Language)।

  • स्टोरेज: मैग्नेटिक टेप और डिस्क।

  • विशेषताएँ:

    • वैक्यूम ट्यूब की तुलना में छोटे और तेज।

    • बिजली की खपत कम।

    • रखरखाव आसान।

    • विश्वसनीयता में वृद्धि।

  • उदाहरण: IBM 1401, IBM 7090।


3. तृतीय पीढ़ी (Third Generation) – 1964 से 1971 तक

  • तकनीक: इंटीग्रेटेड सर्किट (IC – Integrated Circuit) आधारित।

  • भाषाएँ: उच्च स्तरीय भाषाएँ जैसे FORTRAN, COBOL।

  • विशेषताएँ:

    • आकार और भी छोटा, गति तेज।

    • लागत में कमी।

    • मल्टीप्रोग्रामिंग की सुविधा।

    • विश्वसनीयता और उत्पादन क्षमता में वृद्धि।

  • उदाहरण: IBM 360 Series, PDP-8।


4. चतुर्थ पीढ़ी (Fourth Generation) – 1971 से 1980 के बाद तक

  • तकनीक: माइक्रोप्रोसेसर (Microprocessor) आधारित।

  • भाषाएँ: उच्च स्तरीय भाषाएँ और एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर।

  • विशेषताएँ:

    • पर्सनल कंप्यूटर का विकास।

    • ग्राफिकल यूजर इंटरफेस (GUI) की शुरुआत।

    • कीमत और आकार में भारी कमी।

    • नेटवर्किंग और इंटरनेट का प्रारंभ।

  • उदाहरण: IBM PC, Apple Macintosh।


5. पंचम पीढ़ी (Fifth Generation) – 1980 के बाद से वर्तमान तक

  • तकनीक: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) और सुपरकंडक्टर आधारित।

  • विशेषताएँ:

    • मशीन लर्निंग, नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (NLP)।

    • स्पीच रिकग्निशन और एक्सपर्ट सिस्टम।

    • क्लाउड कंप्यूटिंग और क्वांटम कंप्यूटिंग का विकास।

    • गति, स्टोरेज और कनेक्टिविटी में क्रांति।

  • उदाहरण: सुपर कंप्यूटर, AI आधारित रोबोट।


पीढ़ियों में मुख्य अंतर (विश्लेषण)

पीढ़ीतकनीकगतिआकारबिजली खपतभाषा
प्रथमवैक्यूम ट्यूबबहुत धीमीबहुत बड़ाअधिकमशीन भाषा
द्वितीयट्रांजिस्टरतेजछोटाकमअसेंबली
तृतीयICऔर तेजऔर छोटाकमउच्च स्तरीय
चतुर्थमाइक्रोप्रोसेसरबहुत तेजमाइक्रो साइजबहुत कमGUI आधारित
पंचमAI और सुपरकंडक्टरअत्यधिक तेजबहुत छोटान्यूनतमAI और नेचुरल लैंग्वेज



प्रश्न 15: बाइनरी संख्या प्रणाली क्या है? यह मानव जीवन में प्रयुक्त की जाने वाली दशमलव संख्या प्रणाली में किस तरह भिन्न है? कंप्यूटर में इस संख्या प्रणाली का उपयोग क्यों किया जाता है? कोडिंग सिस्टम का भी वर्णन करें।


1. बाइनरी संख्या प्रणाली का परिचय

बाइनरी संख्या प्रणाली (Binary Number System) वह प्रणाली है जिसमें संख्याओं को केवल दो प्रतीकों से व्यक्त किया जाता है –

  • 0 (शून्य)

  • 1 (एक)

इस प्रणाली का आधार (Base) 2 होता है। बाइनरी संख्या में प्रत्येक अंक को बिट (Bit) कहा जाता है, जो “Binary Digit” का संक्षिप्त रूप है।

उदाहरण:

  • बाइनरी संख्या 1011 का दशमलव रूपांतरण:
    1×23+0×22+1×21+1×20=8+0+2+1=111 \times 2^3 + 0 \times 2^2 + 1 \times 2^1 + 1 \times 2^0 = 8 + 0 + 2 + 1 = 11


2. दशमलव और बाइनरी संख्या प्रणाली में अंतर

आधारदशमलव प्रणाली (Decimal)बाइनरी प्रणाली (Binary)
Base102
अंकों का प्रयोग0,1,2,3,4,5,6,7,8,90,1
मानव जीवन में उपयोगपैसों की गिनती, समय, माप आदिकंप्यूटर, डिजिटल डिवाइस
स्थान मान10 की घातें (10⁰, 10¹, 10²…)2 की घातें (2⁰, 2¹, 2²…)
उदाहरण375 = 3×10² + 7×10¹ + 5×10⁰1011 = 1×2³ + 0×2² + 1×2¹ + 1×2⁰


3. कंप्यूटर में बाइनरी का उपयोग क्यों?

कंप्यूटर इलेक्ट्रॉनिक सर्किट्स और स्विच पर आधारित होता है, जिनकी दो स्थितियां होती हैं:

  1. ON (चालू) → 1

  2. OFF (बंद) → 0

बाइनरी प्रणाली केवल इन दो स्थितियों को दर्शाती है, इसलिए:

  • कंप्यूटर के हार्डवेयर के लिए समझना आसान

  • डेटा को सुरक्षित और तेज़ी से प्रोसेस करना संभव

  • त्रुटि की संभावना कम


4. बाइनरी कोडिंग सिस्टम

कंप्यूटर केवल 0 और 1 समझता है, लेकिन टेक्स्ट, चित्र, ध्वनि आदि को बाइनरी में बदलने के लिए कोडिंग सिस्टम का प्रयोग किया जाता है। मुख्य कोडिंग प्रणालियां:

  1. BCD (Binary Coded Decimal)

    • दशमलव के प्रत्येक अंक को 4 बिट में दर्शाया जाता है।

    • उदाहरण: 59 → 0101 1001

  2. ASCII (American Standard Code for Information Interchange)

    • अंग्रेजी अक्षर, अंक, और प्रतीकों को 7-बिट या 8-बिट बाइनरी में दर्शाता है।

    • उदाहरण: 'A' → 65 (Decimal) → 1000001 (Binary)

  3. EBCDIC (Extended Binary Coded Decimal Interchange Code)

    • IBM द्वारा विकसित, 8-बिट कोडिंग प्रणाली।

  4. Unicode

    • बहुभाषी समर्थन देने वाली कोडिंग प्रणाली।

    • प्रत्येक अक्षर का यूनिक नंबर होता है (उदाहरण: हिंदी के अक्षर भी दर्शाए जा सकते हैं)।


5. निष्कर्ष

बाइनरी संख्या प्रणाली कंप्यूटर की मूल भाषा है। यह दशमलव से भिन्न है क्योंकि इसमें केवल दो प्रतीक होते हैं और यह इलेक्ट्रॉनिक सर्किट्स के अनुरूप है। कोडिंग सिस्टम के माध्यम से, टेक्स्ट और अन्य डेटा को बाइनरी में बदला जाता है, जिससे कंप्यूटर उसे प्रोसेस और स्टोर कर पाता है।



प्रश्न 16 — ऑपरेटिंग सिस्टम क्या है, कंप्यूटर के सफल संचालन में महत्व को समझाते हुए ऑपरेटिंग सिस्टम के विकास की यात्रा का वर्णन करें। ऑपरेटिंग सिस्टम कितने प्रकार का होता है?


1. परिचय — ऑपरेटिंग सिस्टम की परिभाषा

ऑपरेटिंग सिस्टम (Operating System) एक सिस्टम सॉफ़्टवेयर है जो कंप्यूटर के हार्डवेयर और उपयोगकर्ता (User) के बीच मध्यस्थ (Interface) का कार्य करता है। यह कंप्यूटर के सभी संसाधनों (Resources) — जैसे मेमोरी, प्रोसेसर, स्टोरेज और इनपुट/आउटपुट डिवाइस — का प्रबंधन करता है। सरल शब्दों में, ऑपरेटिंग सिस्टम के बिना कंप्यूटर एक “हार्डवेयर का ढेर” मात्र है, जो कोई कार्य नहीं कर सकता।


2. कंप्यूटर के सफल संचालन में महत्व

ऑपरेटिंग सिस्टम का महत्व निम्न बिंदुओं में स्पष्ट किया जा सकता है:

  1. हार्डवेयर और सॉफ़्टवेयर के बीच पुल — यह यूज़र के कमांड को मशीन लैंग्वेज में परिवर्तित करता है और हार्डवेयर से संपर्क स्थापित करता है।

  2. मल्टीटास्किंग की सुविधा — एक साथ कई प्रोग्राम चलाना संभव बनाता है।

  3. मेमोरी प्रबंधन — विभिन्न प्रोग्रामों को उचित मेमोरी आवंटित करता है।

  4. फ़ाइल प्रबंधन — डेटा को सुरक्षित रूप से संग्रहित और पुनः प्राप्त करने में मदद करता है।

  5. सुरक्षा और एक्सेस कंट्रोल — यूज़र ऑथेंटिकेशन और परमिशन सिस्टम से डेटा की सुरक्षा करता है।

  6. यूज़र-फ्रेंडली इंटरफ़ेस — GUI (Graphical User Interface) के माध्यम से कंप्यूटर का उपयोग आसान बनाता है।


3. ऑपरेटिंग सिस्टम के विकास की यात्रा

(i) प्रथम पीढ़ी (1940–1950)कोई ऑपरेटिंग सिस्टम नहीं

  • प्रारंभिक कंप्यूटर मैनुअल स्विचिंग और पंच कार्ड से चलते थे।

  • मशीन लैंग्वेज में प्रोग्राम लिखे जाते थे।

(ii) द्वितीय पीढ़ी (1950–1960)बैच प्रोसेसिंग सिस्टम

  • जॉब्स को बैच के रूप में लोड किया जाता था और एक-एक करके निष्पादित किया जाता था।

  • उदाहरण: IBM 7094 OS.

(iii) तृतीय पीढ़ी (1960–1970)मल्टीप्रोग्रामिंग और टाइम-शेयरिंग

  • CPU उपयोगिता बढ़ाने के लिए कई प्रोग्राम एक साथ लोड होने लगे।

  • टाइम-शेयरिंग से कई यूज़र एक साथ कंप्यूटर का उपयोग कर सके।

  • उदाहरण: UNIX का विकास (1969)।

(iv) चतुर्थ पीढ़ी (1970–1980)पर्सनल कंप्यूटर का युग

  • माइक्रोप्रोसेसर के विकास के साथ पर्सनल कंप्यूटर के लिए OS विकसित हुए।

  • उदाहरण: MS-DOS, Apple DOS.

(v) पंचम पीढ़ी (1980–वर्तमान)ग्राफिकल और नेटवर्क आधारित OS

  • GUI आधारित OS (Windows, macOS) और नेटवर्क/इंटरनेट सपोर्ट वाले सिस्टम।

  • मोबाइल OS (Android, iOS) का उदय।

  • रियल-टाइम और क्लाउड-आधारित OS का प्रयोग बढ़ा।


4. ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार

(i) बैच ऑपरेटिंग सिस्टम (Batch OS)

  • बिना यूज़र इंटरैक्शन के जॉब्स बैच में प्रोसेस होते हैं।

  • उदाहरण: प्रारंभिक IBM सिस्टम।

(ii) मल्टीप्रोग्रामिंग ऑपरेटिंग सिस्टम

  • कई प्रोग्राम एक साथ मेमोरी में रहते हैं और CPU उपयोगिता बढ़ाते हैं।

(iii) मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम

  • एक साथ कई कार्य संपन्न करता है।

  • उदाहरण: Windows, macOS, Linux।

(iv) टाइम-शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम

  • प्रत्येक यूज़र को CPU का समय बांटकर दिया जाता है।

(v) रियल-टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम (RTOS)

  • समय-सीमा के भीतर परिणाम देने वाले सिस्टम, जैसे — हवाई जहाज़ नियंत्रण, मेडिकल डिवाइस।

(vi) डिस्ट्रिब्यूटेड ऑपरेटिंग सिस्टम

  • कई कंप्यूटर आपस में जुड़े होकर एक सिस्टम की तरह काम करते हैं।

(vii) नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम

  • नेटवर्क पर संसाधनों का प्रबंधन करता है, जैसे — Novell NetWare, Windows Server।


5. निष्कर्ष

ऑपरेटिंग सिस्टम कंप्यूटर का हृदय है, जो हार्डवेयर और यूज़र के बीच सहज और सुरक्षित संचार सुनिश्चित करता है। इसका विकास मशीन-निर्भर, कठिन प्रणालियों से लेकर आज के स्मार्ट, तेज, और नेटवर्क-आधारित सिस्टम तक हुआ है। बिना OS के, आधुनिक तकनीक की कल्पना करना भी संभव नहीं है।



प्रश्न 17 – नेटवर्किंग और इंटरनेट क्या है? इंटरनेट पर काम जितना सुविधाजनक है उतना ही असुरक्षित भी – इस कथन का विश्लेषण एवं आवश्यक सावधानियाँ बताइए। 


1. नेटवर्किंग की परिभाषा

नेटवर्किंग का अर्थ है – दो या अधिक कंप्यूटरों या डिजिटल डिवाइसों को एक-दूसरे से जोड़ना, ताकि वे डेटा, फाइलें, संसाधन और एप्लिकेशन साझा कर सकें। यह कनेक्शन वायर्ड (LAN) या वायरलेस (Wi-Fi) हो सकता है।


2. इंटरनेट की परिभाषा

इंटरनेट एक वैश्विक नेटवर्क है, जिसमें लाखों छोटे-बड़े नेटवर्क आपस में जुड़े होते हैं। यह दुनिया भर के कंप्यूटरों को आपस में संवाद करने और सूचनाओं का आदान-प्रदान करने की सुविधा देता है। इंटरनेट के माध्यम से हम ई-मेल, सोशल मीडिया, वेबसाइट ब्राउज़िंग, ऑनलाइन शॉपिंग, बैंकिंग और शिक्षा जैसी सेवाओं का उपयोग कर सकते हैं।


3. इंटरनेट के लाभ – सुविधा का पक्ष

इंटरनेट पर कार्य करना आधुनिक जीवन में अनेक प्रकार से सुविधाजनक है:

  1. तेजी और समय की बचत – जानकारी कुछ सेकंड में प्राप्त हो जाती है।

  2. संचार का आसान साधन – ई-मेल, वीडियो कॉल, मैसेजिंग द्वारा तुरंत संपर्क।

  3. ऑनलाइन सेवाएं – बैंकिंग, टिकट बुकिंग, शॉपिंग, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं।

  4. दूरस्थ कार्य – Work From Home और ऑनलाइन सहयोग टूल्स का उपयोग।

  5. असीमित जानकारी – लगभग हर विषय की जानकारी तुरंत उपलब्ध।


4. इंटरनेट की असुरक्षाएँ – खतरे का पक्ष

इंटरनेट सुविधाजनक होने के साथ-साथ कई जोखिम भी पैदा करता है:

  1. साइबर अपराध – हैकिंग, फिशिंग, डेटा चोरी।

  2. वायरस और मालवेयर – सिस्टम को नुकसान और डेटा नष्ट करने का खतरा।

  3. गोपनीयता का उल्लंघन – निजी जानकारी का दुरुपयोग।

  4. ऑनलाइन धोखाधड़ी – फर्जी ई-कॉमर्स साइट्स, स्कैम कॉल्स।

  5. सोशल इंजीनियरिंग अटैक – उपयोगकर्ताओं को भ्रमित कर पासवर्ड चुराना।


5. यह कथन क्यों सही है

"इंटरनेट पर काम जितना सुविधाजनक है उतना ही असुरक्षित भी" – यह कथन इसलिए सही है क्योंकि:

  • जितनी अधिक सेवाएँ और सुविधाएँ हम इंटरनेट पर उपयोग करते हैं, उतना ही हम अपने व्यक्तिगत डेटा और वित्तीय जानकारी को ऑनलाइन उजागर करते हैं।

  • साइबर अपराधी हमेशा नए तरीके खोजते रहते हैं, जिससे जोखिम बढ़ता है।


6. इंटरनेट पर आवश्यक सावधानियाँ

(A) तकनीकी सावधानियाँ

  1. एंटीवायरस और फ़ायरवॉल का उपयोग।

  2. सॉफ़्टवेयर और ब्राउज़र को अपडेट रखना।

  3. सुरक्षित पासवर्ड – जटिल और अलग-अलग सेवाओं के लिए अलग।

  4. टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन (2FA) का उपयोग।

  5. केवल HTTPS वेबसाइट्स पर लेन-देन करना।

(B) व्यक्तिगत सावधानियाँ

  1. अज्ञात लिंक या ईमेल पर क्लिक न करें।

  2. सोशल मीडिया पर अत्यधिक व्यक्तिगत जानकारी साझा न करें

  3. ऑनलाइन लेन-देन केवल विश्वसनीय साइटों पर करें।

  4. सार्वजनिक वाई-फाई का उपयोग करते समय संवेदनशील कार्य न करें।


7. निष्कर्ष

नेटवर्किंग और इंटरनेट ने सूचना आदान-प्रदान और कार्यप्रणाली में क्रांति ला दी है। यह हमारी जीवनशैली को आसान बनाते हैं, लेकिन इसके साथ साइबर सुरक्षा जोखिम भी जुड़े हैं। यदि हम सावधानी और सही तकनीकों का पालन करें, तो इंटरनेट की सुविधाओं का सुरक्षित और प्रभावी तरीके से उपयोग किया जा सकता है।



प्रश्न 18 – माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस और इसके घटकों के बारे में विवरण दीजिए।


1. प्रस्तावना

माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस (Microsoft Office) माइक्रोसॉफ्ट कंपनी द्वारा विकसित एक शक्तिशाली ऑफिस एप्लीकेशन सूट है। इसका उपयोग व्यक्तिगत, शैक्षिक और व्यावसायिक कार्यों के लिए किया जाता है। इसमें विभिन्न सॉफ़्टवेयर प्रोग्राम शामिल हैं, जो दस्तावेज़ बनाने, डाटा प्रबंधन, प्रेजेंटेशन, ईमेल और टीमवर्क जैसे कार्यों को सरल और प्रभावी बनाते हैं।


2. माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस का विकास

  • प्रारंभ – माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस का पहला संस्करण 1990 में जारी किया गया।

  • निरंतर उन्नति – समय के साथ इसमें नए फीचर्स, बेहतर इंटरफेस और क्लाउड सेवाएं जोड़ी गईं।

  • वर्तमान रूप – अब यह Microsoft 365 के रूप में उपलब्ध है, जो ऑनलाइन व ऑफलाइन दोनों तरह की सुविधाएं प्रदान करता है।


3. माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस के प्रमुख घटक

(i) MS Word

  • उद्देश्य – टेक्स्ट डॉक्यूमेंट तैयार करना और संपादित करना।

  • विशेषताएं

    • फ़ॉन्ट और फॉर्मेटिंग टूल

    • टेबल और ग्राफ़

    • स्पेलिंग और ग्रामर चेक

    • मेल मर्ज सुविधा


(ii) MS Excel

  • उद्देश्य – डाटा को तालिकाओं और ग्राफ़ के रूप में व्यवस्थित करना व विश्लेषण करना।

  • विशेषताएं

    • स्प्रेडशीट में गणना

    • फ़ॉर्मूले और फंक्शन्स

    • डेटा एनालिसिस टूल

    • चार्ट और ग्राफ़ बनाना


(iii) MS PowerPoint

  • उद्देश्य – स्लाइड शो और प्रेजेंटेशन तैयार करना।

  • विशेषताएं

    • स्लाइड लेआउट और डिज़ाइन

    • एनिमेशन और ट्रांज़िशन

    • ग्राफ़िक्स और वीडियो जोड़ना

    • टेम्पलेट्स का उपयोग


(iv) MS Outlook

  • उद्देश्य – ईमेल मैनेजमेंट और कैलेंडर सेवाएं।

  • विशेषताएं

    • ईमेल भेजना और प्राप्त करना

    • अपॉइंटमेंट और मीटिंग शेड्यूल करना

    • कॉन्टैक्ट लिस्ट मैनेज करना


(v) MS Access

  • उद्देश्य – डेटाबेस बनाना और प्रबंधन करना।

  • विशेषताएं

    • टेबल, क्वेरी, फॉर्म और रिपोर्ट बनाना

    • डेटा को फ़िल्टर और सॉर्ट करना

    • बड़े पैमाने पर डेटा स्टोर करना


(vi) MS OneNote

  • उद्देश्य – डिजिटल नोट्स बनाना और उन्हें संगठित रखना।

  • विशेषताएं

    • टेक्स्ट, इमेज और ऑडियो नोट्स

    • क्लाउड में स्टोरेज

    • नोटबुक स्टाइल इंटरफेस


(vii) MS Publisher

  • उद्देश्य – ब्रॉशर, फ्लायर और बुकलेट डिज़ाइन करना।

  • विशेषताएं

    • पेज लेआउट टूल्स

    • टेम्पलेट्स और डिजाइन विकल्प


4. माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस के लाभ

  • उपयोग में आसान और यूजर-फ्रेंडली इंटरफेस

  • पेशेवर गुणवत्ता का आउटपुट

  • क्लाउड स्टोरेज (OneDrive) के साथ डेटा शेयरिंग

  • मल्टीप्लेटफ़ॉर्म सपोर्ट – Windows, Mac, Mobile


5. निष्कर्ष

माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस आधुनिक कार्यशैली का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। इसके विभिन्न घटक अलग-अलग कार्यों के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए हैं, जो व्यक्तिगत और व्यावसायिक दोनों तरह के उपयोगकर्ताओं के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। डिजिटल युग में इसकी महत्ता और भी बढ़ गई है, क्योंकि यह उत्पादकता और दक्षता दोनों को बढ़ाता है।



प्रश्न 19: एमपीएसएस में सॉफ्टवेयर का क्या उपयोग है? इसके द्वारा आंकड़ों का विश्लेषण कैसे होता है?


1. प्रस्तावना

एमपीएसएस (MPSS – Management Process Support System) एक प्रकार की कंप्यूटर-आधारित प्रणाली है जो प्रबंधकीय निर्णय-निर्माण प्रक्रिया में सहायक होती है। इसमें डेटा के संग्रह, विश्लेषण और प्रस्तुतीकरण के लिए विभिन्न सॉफ़्टवेयर का उपयोग किया जाता है। आधुनिक समय में ये सॉफ़्टवेयर बड़े पैमाने पर आंकड़ों को तेज़ी से प्रोसेस करने और उनका गहन विश्लेषण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।


2. एमपीएसएस में सॉफ़्टवेयर का महत्व

  1. डेटा प्रोसेसिंग में सहायक – सॉफ़्टवेयर बड़े डेटा को स्वचालित रूप से प्रोसेस करता है, जिससे समय और श्रम की बचत होती है।

  2. सटीकता में वृद्धि – गणना में मानवीय त्रुटियों को कम करता है।

  3. तेज़ विश्लेषण – जटिल आंकड़ों का त्वरित विश्लेषण कर परिणाम प्रस्तुत करता है।

  4. प्रस्तुतीकरण में सुविधा – ग्राफ, चार्ट और टेबल के माध्यम से डेटा को आकर्षक और समझने योग्य बनाता है।

  5. निर्णय-निर्माण में सहायता – विश्लेषण के आधार पर प्रबंधक सही और तर्कसंगत निर्णय ले सकते हैं।


3. एमपीएसएस में उपयोग होने वाले प्रमुख सॉफ़्टवेयर

  1. SPSS (Statistical Package for the Social Sciences) – सांख्यिकीय विश्लेषण के लिए।

  2. MS Excel – बेसिक डेटा प्रोसेसिंग और चार्ट बनाने के लिए।

  3. R Programming – उन्नत डेटा विश्लेषण और सांख्यिकीय मॉडलिंग के लिए।

  4. Python (Pandas, NumPy, Matplotlib) – डेटा प्रोसेसिंग और विज़ुअलाइजेशन के लिए।

  5. Tableau / Power BI – इंटरैक्टिव डेटा डैशबोर्ड और रिपोर्ट बनाने के लिए।


4. आंकड़ों के विश्लेषण की प्रक्रिया

(क) डेटा संग्रह

  • सर्वेक्षण, प्रश्नावली, ऑनलाइन फॉर्म, सेंसर आदि से डेटा जुटाया जाता है।

(ख) डेटा एंट्री और क्लीनिंग

  • सॉफ़्टवेयर में डेटा एंट्री की जाती है और गलत या अधूरी प्रविष्टियों को हटाया जाता है।

(ग) डेटा प्रोसेसिंग

  • सॉफ़्टवेयर डेटा को व्यवस्थित कर सारणीबद्ध (Tabulation) करता है।

(घ) सांख्यिकीय विश्लेषण

  • वर्णनात्मक विश्लेषण (Descriptive Statistics): औसत, माध्यिका, मोड, मानक विचलन।

  • निगमनात्मक विश्लेषण (Inferential Statistics): परिकल्पना परीक्षण, रिग्रेशन, सहसंबंध।

(ङ) डेटा का प्रस्तुतीकरण

  • चार्ट, ग्राफ, पाई-डायग्राम और डैशबोर्ड के रूप में।

(च) रिपोर्ट तैयार करना

  • परिणामों का सारांश तैयार कर निर्णय के लिए प्रबंधन को प्रस्तुत किया जाता है।


5. उदाहरण

मान लीजिए, किसी कंपनी को अपने उत्पाद की बिक्री पर विज्ञापन के प्रभाव का अध्ययन करना है।

  • चरण 1: बिक्री और विज्ञापन खर्च का डेटा एकत्र।

  • चरण 2: SPSS या Excel में डेटा एंट्री।

  • चरण 3: रिग्रेशन एनालिसिस से यह पता लगाना कि विज्ञापन खर्च का बिक्री पर कितना प्रभाव है।

  • चरण 4: ग्राफ और टेबल द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत करना।


6. निष्कर्ष

एमपीएसएस में सॉफ़्टवेयर का उपयोग आंकड़ों के त्वरित, सटीक और व्यवस्थित विश्लेषण के लिए अनिवार्य है। इससे प्रबंधकीय निर्णय-निर्माण अधिक वैज्ञानिक और डेटा-आधारित हो जाता है। SPSS, Excel, R, और Tableau जैसे टूल न केवल विश्लेषण को सरल बनाते हैं बल्कि परिणामों को ऐसे प्रस्तुत करते हैं जिससे प्रबंधन आसानी से रणनीति बना सके।



प्रश्न 20 – एसपीएसएस द्वारा आंकड़ों की एन्ट्री का तरीका बताएं।

1. प्रस्तावना
SPSS (Statistical Package for the Social Sciences) एक लोकप्रिय सांख्यिकीय सॉफ्टवेयर है, जिसका उपयोग डेटा के विश्लेषण, प्रबंधन और रिपोर्टिंग के लिए किया जाता है। किसी भी सांख्यिकीय विश्लेषण की शुरुआत सही तरीके से डेटा एंट्री करने से होती है, और SPSS में डेटा एंट्री की प्रक्रिया काफी सरल और संगठित है।


2. एसपीएसएस में डेटा एंट्री की प्रक्रिया

SPSS में डेटा एंट्री मुख्यतः दो व्यू के माध्यम से होती है:

(क) Variable View (वेरिएबल व्यू)

इस व्यू में हम डेटा सेट के वेरिएबल (चर) की संरचना तय करते हैं। इसमें कॉलम के रूप में वेरिएबल से संबंधित विवरण होते हैं, जैसे:

  1. Name (नाम) – वेरिएबल का नाम (बिना स्पेस और विशेष चिन्हों के)।

  2. Type (प्रकार) – Numeric, String, Date आदि।

  3. Width (चौड़ाई) – डेटा के अंकों की अधिकतम संख्या।

  4. Decimals (दशमलव) – दशमलव अंकों की संख्या।

  5. Label (लेबल) – वेरिएबल का विस्तृत विवरण।

  6. Values (मान) – कोडिंग मान जैसे 1=पुरुष, 2=महिला।

  7. Missing (लुप्त मान) – अनुपलब्ध डेटा के लिए कोड।

  8. Columns (कॉलम चौड़ाई) – डेटा डिस्प्ले की चौड़ाई।

  9. Align (संरेखण) – डेटा को Left, Right, Center में दिखाना।

  10. Measure (माप का प्रकार) – Nominal, Ordinal, Scale।


(ख) Data View (डेटा व्यू)

इस व्यू में वास्तविक डेटा पंक्तियों और स्तंभों के रूप में भरा जाता है:

  • प्रत्येक कॉलम एक वेरिएबल का प्रतिनिधित्व करता है।

  • प्रत्येक रो (पंक्ति) एक केस/उत्तरदाता का डेटा दर्शाती है।


3. डेटा एंट्री के चरण

  1. SPSS खोलें और Variable View में जाएँ।

  2. प्रत्येक वेरिएबल का नाम, प्रकार, लेबल और कोडिंग निर्धारित करें।

  3. Data View में जाकर प्रत्येक केस का डेटा क्रमवार भरें।

  4. यदि किसी प्रश्न का उत्तर अनुपलब्ध हो तो Missing Value कोड का उपयोग करें।

  5. डेटा एंट्री पूरी होने पर File → Save से फाइल को .sav फॉर्मेट में सेव करें।


4. डेटा एंट्री में सावधानियाँ

  • वेरिएबल नाम में स्पेस या विशेष चिन्ह न रखें।

  • कोडिंग को पहले से योजना बनाकर ही डालें।

  • Missing Values को स्पष्ट रूप से चिन्हित करें।

  • Decimal की संख्या वही रखें जो विश्लेषण में जरूरी हो।

  • डेटा भरते समय टाइपिंग त्रुटि से बचें।


5. निष्कर्ष
SPSS में डेटा एंट्री की प्रक्रिया सरल, व्यवस्थित और उपयोगकर्ता के अनुकूल है। Variable View और Data View के माध्यम से पहले वेरिएबल संरचना तय करके फिर डेटा भरने से विश्लेषण में त्रुटियाँ कम होती हैं और परिणाम अधिक सटीक मिलते हैं।



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