प्रश्न 01: कोशिका की संरचना एवं कार्यों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
🔹 प्रस्तावना
कोशिका (Cell) जीवन की मूलभूत इकाई है। सभी जीवों की संरचना कोशिकाओं से बनी होती है, चाहे वे एककोशकीय जीव हों जैसे अमीबा अथवा बहुकोशकीय जीव जैसे मनुष्य। कोशिका न केवल जीव की संरचनात्मक इकाई है बल्कि यह उसकी कार्यात्मक इकाई भी है। प्रत्येक क्रिया – जैसे भोजन ग्रहण करना, ऊर्जा उत्पन्न करना, वृद्धि, प्रजनन और अपशिष्ट पदार्थों का निष्कासन – कोशिका स्तर पर ही संपन्न होती है। कोशिका का अध्ययन आधुनिक जीवविज्ञान का आधार है।
🧬 कोशिका सिद्धांत (Cell Theory)
कोशिका की संरचना एवं कार्यों को समझने के लिए सर्वप्रथम श्लाइडन और श्वान ने कोशिका सिद्धांत प्रस्तुत किया।
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सभी जीवधारी कोशिकाओं से बने होते हैं।
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कोशिका जीवन की मूल इकाई है।
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कोशिकाएँ पूर्व विद्यमान कोशिकाओं से उत्पन्न होती हैं।
यह सिद्धांत कोशिका के महत्व और सार्वभौमिकता को स्पष्ट करता है।
🏛️ कोशिका की संरचना
कोशिका को मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है:
📌 (1) कोशिका झिल्ली (Cell Membrane)
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यह कोशिका की बाहरी सीमा होती है।
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यह अर्धपारगम्य (Semi-permeable) होती है, जिससे केवल आवश्यक पदार्थ ही अंदर-बाहर जा सकते हैं।
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यह कोशिका को आकार प्रदान करती है और बाहरी वातावरण से सुरक्षा देती है।
📌 (2) कोशिका द्रव्य (Cytoplasm)
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यह कोशिका के अंदर स्थित जेली जैसी द्रव्य सामग्री है।
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इसमें विभिन्न कोशिकांग (Organelles) तैरते रहते हैं।
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यहाँ अधिकांश चयापचय (Metabolic) क्रियाएँ संपन्न होती हैं।
📌 (3) केन्द्रक (Nucleus)
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यह कोशिका का नियंत्रण केंद्र है।
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इसमें DNA उपस्थित रहता है, जो आनुवंशिक जानकारी (Genetic Information) का संवाहक है।
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यह कोशिका विभाजन एवं प्रोटीन संश्लेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
🏗️ कोशिकांगों की संरचना एवं कार्य
कोशिका द्रव्य में विभिन्न कोशिकांग उपस्थित रहते हैं। प्रत्येक का अपना विशेष कार्य होता है।
🔋 माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondria)
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इसे कोशिका का शक्ति गृह (Powerhouse) कहा जाता है।
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यहाँ ATP (Adenosine Triphosphate) का निर्माण होता है।
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यह कोशिका को ऊर्जा प्रदान करता है।
🏭 एन्डोप्लाज्मिक जालिका (Endoplasmic Reticulum)
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यह दो प्रकार की होती है:
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रफ ईआर (Rough ER) – जिस पर राइबोसोम उपस्थित रहते हैं और प्रोटीन संश्लेषण करते हैं।
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स्मूद ईआर (Smooth ER) – यह वसा और हार्मोन के निर्माण में सहायक है।
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यह पदार्थों के परिवहन का कार्य भी करती है।
⚙️ राइबोसोम (Ribosomes)
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इन्हें कोशिका का प्रोटीन फैक्ट्री कहा जाता है।
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यहाँ प्रोटीन का निर्माण होता है, जो वृद्धि और मरम्मत में आवश्यक है।
📦 गोल्जी तंत्र (Golgi Apparatus)
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यह प्रोटीन और लिपिड्स का संशोधन, पैकेजिंग और स्रवण (Secretion) करता है।
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इसे कोशिका का डाकघर (Post Office) भी कहा जाता है।
♻️ लाइसोसोम (Lysosomes)
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इनमें पाचक एंजाइम होते हैं।
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ये मृत या अनावश्यक अंगकों को नष्ट कर देते हैं।
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इन्हें कोशिका का सफाई कर्मचारी (Suicidal Bag) कहा जाता है।
🧪 प्लास्टिड (Plastids)
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केवल पादप कोशिकाओं में पाए जाते हैं।
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इनके तीन प्रकार होते हैं:
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क्लोरोप्लास्ट – प्रकाश संश्लेषण में सहायक।
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क्रोमोप्लास्ट – विभिन्न रंगों का निर्माण।
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ल्युकोप्लास्ट – भोजन का भंडारण।
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🧩 केन्द्रकाय (Centrosome)
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यह पशु कोशिकाओं में पाया जाता है।
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कोशिका विभाजन के समय स्पिंडल तंतु बनाता है।
💧 रिक्तिका (Vacuole)
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यह द्रव्य से भरी थैलीनुमा संरचना है।
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पादप कोशिकाओं में बड़ी रिक्तिका होती है जो जल एवं अन्य पदार्थों का भंडारण करती है।
🔄 कोशिका के प्रमुख कार्य
कोशिका न केवल संरचनात्मक इकाई है बल्कि कार्यात्मक इकाई भी है। इसके मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं:
📌 पोषण (Nutrition)
कोशिका भोजन ग्रहण करती है और उसे ऊर्जा में बदलती है।
📌 श्वसन (Respiration)
माइटोकॉन्ड्रिया में भोजन का ऑक्सीकरण होकर ऊर्जा का निर्माण होता है।
📌 प्रोटीन संश्लेषण
राइबोसोम के द्वारा आवश्यक प्रोटीन का निर्माण किया जाता है।
📌 अपशिष्ट निष्कासन
लाइसोसोम और कोशिका झिल्ली अपशिष्ट पदार्थ बाहर निकालते हैं।
📌 वृद्धि एवं विभाजन
कोशिका विभाजन द्वारा नई कोशिकाओं का निर्माण करती है जिससे जीव का विकास होता है।
📌 आनुवंशिक सूचना का संचार
DNA एवं RNA आनुवंशिक लक्षणों का संवहन करते हैं।
📊 पादप एवं जन्तु कोशिका में भिन्नताएँ
विशेषता | पादप कोशिका | जन्तु कोशिका |
---|---|---|
कोशिका भित्ति | उपस्थित | अनुपस्थित |
प्लास्टिड | उपस्थित | अनुपस्थित |
रिक्तिका | बड़ी एवं केन्द्रीय | छोटी एवं अस्थायी |
केन्द्रकाय | अनुपस्थित | उपस्थित |
✅ उपसंहार
अतः यह स्पष्ट है कि कोशिका जीवधारियों की सबसे छोटी लेकिन सबसे महत्वपूर्ण इकाई है। यह न केवल जीवन की संरचना को बनाए रखती है बल्कि सभी आवश्यक क्रियाओं को भी संचालित करती है। कोशिका की संरचना अत्यंत जटिल और विविध होती है, किंतु इसके अंग आपस में समन्वय करके जीव के अस्तित्व को बनाए रखते हैं। इसीलिए कोशिका को जीवन की आधारशिला कहा जाता है।
प्रश्न 02: ऊतक का अर्थ एवं प्रकारों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
🔹 प्रस्तावना
जीवधारियों की संरचना कोशिकाओं से बनी होती है। जब समान कार्य करने वाली कोशिकाएँ संगठित होकर समूह का निर्माण करती हैं, तो उसे ऊतक (Tissue) कहा जाता है। ऊतक का निर्माण कोशिका विभाजन और कोशिकाओं के विशेषीकृत (Specialized) होने से होता है। ऊतक जीव के भीतर विभिन्न कार्यों जैसे– सहारा देना, पोषण पहुँचाना, गति, सुरक्षा तथा ऊर्जा उत्पादन आदि में सहायक होते हैं।
"समान संरचना एवं कार्य वाली कोशिकाओं का समूह ऊतक कहलाता है।"
🧬 ऊतक विज्ञान (Histology)
ऊतक के अध्ययन को ऊतक विज्ञान कहते हैं। यह जीवविज्ञान की वह शाखा है जो कोशिकाओं की संरचना, संगठन और कार्यों का अध्ययन करती है।
🌱 पौधों के ऊतक
पौधों में ऊतक दो मुख्य प्रकार के पाए जाते हैं:
📌 (1) स्थायी ऊतक (Meristematic Tissue)
ये ऊतक सक्रिय रूप से विभाजित होने वाली कोशिकाओं से बने होते हैं। इनकी कोशिकाएँ छोटी, पतली भित्ति वाली और घनीभूत (Compact) होती हैं।
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इनका मुख्य कार्य पौधों की वृद्धि कराना है।
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इन ऊतकों को उनकी स्थिति के आधार पर तीन भागों में बाँटा जाता है:
🔹 शीर्षस्थ विभज्योतक (Apical Meristem)
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यह जड़ और तने की नोक पर पाया जाता है।
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पौधे की लंबाई में वृद्धि करता है।
🔹 पार्श्व विभज्योतक (Lateral Meristem)
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यह जाइलम और फ्लोएम के बीच पाया जाता है।
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पौधे की मोटाई में वृद्धि करता है।
🔹 अंतःस्थ विभज्योतक (Intercalary Meristem)
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यह पत्तियों और ग्रंथियों के आधार पर पाया जाता है।
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पौधे के अंगों की लम्बाई में वृद्धि करता है।
📌 (2) स्थायी ऊतक (Permanent Tissue)
जब विभज्योतक ऊतक विभाजन की क्षमता खो देता है, तो वह स्थायी ऊतक में परिवर्तित हो जाता है। इनके प्रकार निम्नलिखित हैं:
🌿 साधारण स्थायी ऊतक (Simple Permanent Tissue)
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इन ऊतकों में सभी कोशिकाएँ समान प्रकार की होती हैं।
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इनके प्रकार हैं:
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पारेंकाइमा (Parenchyma) – मुलायम कोशिकाएँ, भोजन संग्रहण का कार्य।
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कोलेंकाइमा (Collenchyma) – पौधों को लचीलापन एवं सहारा प्रदान करता है।
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स्क्लेरेंकाइमा (Sclerenchyma) – मोटी भित्ति वाली मृत कोशिकाएँ, पौधों को कठोरता और मजबूती देते हैं।
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🌿 जटिल स्थायी ऊतक (Complex Permanent Tissue)
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इसमें विभिन्न प्रकार की कोशिकाएँ मिलकर एक साथ कार्य करती हैं।
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इसके दो मुख्य प्रकार हैं:
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जाइलम (Xylem) – जल एवं खनिज लवणों का संवहन करता है।
-
फ्लोएम (Phloem) – भोजन का संवहन करता है।
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🧑⚕️ जन्तुओं के ऊतक
जन्तुओं में ऊतक चार प्रमुख प्रकार के होते हैं।
1️⃣ उपकला ऊतक (Epithelial Tissue)
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यह ऊतक शरीर की सतह को ढकता है और आंतरिक अंगों को आच्छादित करता है।
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कार्य: सुरक्षा, अवशोषण, स्रवण और संवेदना।
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प्रकार:
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स्तरीकृत उपकला (Stratified Epithelium)
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स्तम्भाकार उपकला (Columnar Epithelium)
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घनाभ उपकला (Cuboidal Epithelium)
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स्तरीकृत स्क्वैमस उपकला (Squamous Epithelium)
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2️⃣ संयोजी ऊतक (Connective Tissue)
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यह ऊतक शरीर के विभिन्न अंगों को जोड़ने और सहारा देने का कार्य करता है।
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कार्य: सहारा, पदार्थों का परिवहन, अंगों की रक्षा।
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प्रकार:
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अस्थि ऊतक (Bone Tissue) – शरीर को कठोरता एवं आकार देता है।
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उपास्थि (Cartilage) – अंगों को लचीलापन प्रदान करता है।
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रक्त (Blood) – पोषण, गैसों एवं हार्मोन का परिवहन करता है।
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वसा ऊतक (Adipose Tissue) – ऊर्जा का भंडारण एवं ताप संरक्षण।
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3️⃣ पेशी ऊतक (Muscular Tissue)
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यह ऊतक गति एवं संकुचन-प्रसार में सहायक होता है।
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प्रकार:
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रेखांकित पेशी (Striated Muscle) – स्वेच्छा से चलने वाले अंगों में।
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अरेखांकित पेशी (Smooth Muscle) – आंतरिक अंगों जैसे आँत, पेट में।
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हृदय पेशी (Cardiac Muscle) – केवल हृदय में, अनैच्छिक लेकिन थकान रहित।
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4️⃣ स्नायु ऊतक (Nervous Tissue)
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यह ऊतक स्नायु कोशिकाओं (Neurons) से मिलकर बना होता है।
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कार्य: संदेशों का संचार, संवेदनाओं का अनुभव और प्रतिक्रिया देना।
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इसके मुख्य भाग हैं:
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कोशिकादेह (Cell Body)
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डेंड्राइट (Dendrite)
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अक्षतंतु (Axon)
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📊 पौधों एवं जन्तुओं के ऊतक का तुलनात्मक अध्ययन
विशेषता | पादप ऊतक | जन्तु ऊतक |
---|---|---|
वृद्धि | केवल विशेष भागों में | सम्पूर्ण शरीर में |
पोषण | जाइलम और फ्लोएम द्वारा | रक्त द्वारा |
गति | सीमित | अधिक सक्रिय |
लचीलापन | कम | अधिक |
🌟 ऊतक का महत्व
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ऊतक जीवधारियों की संरचना और कार्य को व्यवस्थित बनाते हैं।
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यह अंगों और अंगतंत्रों का निर्माण करते हैं।
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यह कार्यों में विशेषीकरण लाकर ऊर्जा की बचत करते हैं।
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यह जीव को जटिल कार्यों को सरल ढंग से सम्पन्न करने में सक्षम बनाते हैं।
✅ उपसंहार
अतः स्पष्ट है कि ऊतक जीवधारियों की संरचना एवं क्रियाओं में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पौधों में ये वृद्धि, सहारा एवं संवहन का कार्य करते हैं जबकि जन्तुओं में ये अंगों को जोड़ने, गति प्रदान करने, रक्त संचार एवं संवेदना जैसी जटिल प्रक्रियाओं को संपन्न कराते हैं। जीव की जटिलता और बहुमुखी कार्यप्रणाली का आधार ऊतक ही हैं। इसलिए इन्हें जीवन की संरचना की अगली अवस्था कहा जाता है।
प्रश्न 03: अस्थियों की संरचना एवं कार्यों का सविस्तार वर्णन कीजिए।
🔹 प्रस्तावना
मानव शरीर एक अत्यंत जटिल एवं संगठित संरचना है, जिसमें अस्थि तंत्र (Skeletal System) की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। अस्थियाँ शरीर को आकार, सहारा, गति और सुरक्षा प्रदान करती हैं। बिना अस्थियों के शरीर केवल मांसपेशियों एवं अंगों का ढेर बनकर रह जाता। अस्थि विज्ञान (Osteology) शरीररचना विज्ञान की वह शाखा है जिसमें अस्थियों की संरचना एवं कार्यों का अध्ययन किया जाता है।
🦴 अस्थि का सामान्य परिचय
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वयस्क मानव शरीर में लगभग 206 अस्थियाँ पाई जाती हैं।
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शिशु के शरीर में अस्थियों की संख्या अधिक (लगभग 270) होती है, जो बढ़ते समय आपस में जुड़ जाती हैं।
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अस्थि एक कठोर संयोजी ऊतक है, जो कोशिकाओं, तंतुओं और खनिज लवणों (विशेषकर कैल्शियम फॉस्फेट) से निर्मित होती है।
🏛️ अस्थि की संरचना (Structure of Bone)
📌 बाहरी संरचना
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अस्थि आवरण (Periosteum)
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अस्थि की बाहरी सतह पर पतली झिल्ली होती है।
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यह अस्थि को पोषण प्रदान करती है तथा नई अस्थि कोशिकाओं का निर्माण करती है।
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अस्थि का कठोर भाग (Compact Bone)
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यह घनीभूत और कठोर परत होती है।
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अस्थि को मजबूती और सहारा देती है।
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अस्थि का स्पंजी भाग (Spongy Bone)
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यह भीतरी भाग में पाया जाता है।
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इसमें अनेक छोटे-छोटे छिद्र होते हैं।
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यहाँ पर अस्थि मज्जा (Bone Marrow) पाई जाती है।
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📌 आंतरिक संरचना
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अस्थि मज्जा (Bone Marrow)
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अस्थि के भीतर खोखले स्थानों में मज्जा पाई जाती है।
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इसके दो प्रकार होते हैं:
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लाल मज्जा – रक्त कोशिकाओं का निर्माण करती है।
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पीली मज्जा – वसा का भंडारण करती है।
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हावर्सियन तंत्र (Haversian System)
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अस्थि की सूक्ष्म संरचना।
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इसमें छोटी-छोटी नलिकाएँ होती हैं जिनमें रक्त वाहिकाएँ और स्नायु तंतु पाए जाते हैं।
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अस्थि कोशिकाएँ (Osteocytes)
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यह अस्थि के जीवित घटक हैं।
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ये लाकुना (Lacunae) नामक स्थानों में स्थित होती हैं।
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🧩 अस्थियों के प्रकार
अस्थियाँ उनके आकार और कार्य के आधार पर पाँच प्रकार की होती हैं:
1️⃣ लंबी अस्थियाँ (Long Bones)
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जैसे – भुजा की ह्यूमरस, पैर की फीमर।
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इनका मुख्य कार्य शरीर का भार वहन करना और गति में सहायक होना है।
2️⃣ छोटी अस्थियाँ (Short Bones)
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जैसे – कलाई एवं टखने की अस्थियाँ।
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ये झटकों को सहन करती हैं और शरीर को मजबूती देती हैं।
3️⃣ चपटी अस्थियाँ (Flat Bones)
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जैसे – खोपड़ी की अस्थियाँ, स्कैपुला, उरः अस्थि (Sternum)।
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ये आंतरिक अंगों की रक्षा करती हैं।
4️⃣ अनियमित अस्थियाँ (Irregular Bones)
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जैसे – कशेरुकाएँ (Vertebrae), जबड़े की अस्थियाँ।
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इनका आकार असमान होता है और ये विशेष कार्य करती हैं।
5️⃣ वायवी अस्थियाँ (Pneumatic Bones)
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जैसे – खोपड़ी की कुछ अस्थियाँ।
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इनमें वायु गुहाएँ होती हैं जो खोपड़ी को हल्का बनाती हैं।
🏗️ मानव अस्थि तंत्र का विभाजन
मानव अस्थि तंत्र को दो भागों में विभाजित किया जाता है:
📌 (1) अक्षीय अस्थि तंत्र (Axial Skeleton)
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इसमें 80 अस्थियाँ होती हैं।
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इसमें खोपड़ी (Skull), रीढ़ की हड्डी (Vertebral Column), उरः पिंजर (Rib Cage) शामिल हैं।
📌 (2) उपांग अस्थि तंत्र (Appendicular Skeleton)
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इसमें 126 अस्थियाँ होती हैं।
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इसमें हाथ-पैर की अस्थियाँ, कंधे की कमर (Pectoral Girdle) और श्रोणि कमर (Pelvic Girdle) आती हैं।
⚙️ अस्थियों के कार्य (Functions of Bones)
🛡️ 1. सहारा प्रदान करना (Support)
अस्थियाँ शरीर को ढाँचा (Framework) प्रदान करती हैं जिस पर मांसपेशियाँ और अंग टिके रहते हैं।
🏃 2. गति कराना (Movement)
अस्थियाँ जोड़ (Joints) बनाकर मांसपेशियों की सहायता से गति प्रदान करती हैं।
🛡️ 3. संरक्षण (Protection)
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खोपड़ी – मस्तिष्क की रक्षा करती है।
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उरः पिंजर – हृदय और फेफड़ों की रक्षा करता है।
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रीढ़ – मेरुरज्जु की सुरक्षा करती है।
💉 4. रक्त निर्माण (Haemopoiesis)
लाल अस्थि मज्जा नई रक्त कोशिकाओं (RBCs, WBCs, Platelets) का निर्माण करती है।
🧱 5. खनिजों का भंडारण (Mineral Storage)
अस्थियों में कैल्शियम और फॉस्फोरस जैसे खनिज संग्रहित रहते हैं।
🔄 6. आकार और संतुलन (Shape & Balance)
अस्थियाँ शरीर का आकार बनाए रखती हैं और संतुलन प्रदान करती हैं।
💪 7. बल एवं सहनशीलता
लंबी अस्थियाँ भार वहन करती हैं और शारीरिक क्रियाओं में बल प्रदान करती हैं।
📊 अस्थि और जोड़ का संबंध
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अस्थियाँ जोड़ (Joints) के माध्यम से आपस में जुड़ी रहती हैं।
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जोड़ के प्रकार:
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गतिशील जोड़ (Movable Joints) – जैसे कंधा, घुटना।
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अर्धगतिशील जोड़ (Slightly Movable Joints) – जैसे रीढ़ की हड्डियाँ।
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अचल जोड़ (Immovable Joints) – जैसे खोपड़ी की हड्डियाँ।
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🌟 अस्थियों का स्वास्थ्य और महत्व
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अस्थियों की मजबूती के लिए कैल्शियम, विटामिन D और फॉस्फोरस का सेवन आवश्यक है।
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नियमित व्यायाम अस्थियों को मजबूत बनाता है।
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बुढ़ापे में अस्थियों की कमजोरी से ऑस्टियोपोरोसिस जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं।
✅ उपसंहार
अतः स्पष्ट है कि अस्थियाँ केवल कठोर संरचनाएँ नहीं हैं बल्कि जीवन के लिए अनिवार्य तंत्र का हिस्सा हैं। ये शरीर को सहारा, गति, सुरक्षा, रक्त निर्माण और खनिज भंडारण जैसे बहुआयामी कार्य सम्पन्न करती हैं। अस्थि तंत्र के बिना मानव शरीर का अस्तित्व संभव नहीं है। इसलिए अस्थियों को जीवन का मजबूत आधार (Pillar of Life) कहा जाता है।
प्रश्न 04: ज्ञानेन्द्रिय के प्रकारों एवं कार्यों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
🔹 प्रस्तावना
मनुष्य एक सामाजिक और संवेदनशील प्राणी है। वह अपने चारों ओर के वातावरण को समझने, अनुभव करने और उसके अनुसार प्रतिक्रिया देने में सक्षम है। यह क्षमता हमें ज्ञानेन्द्रियों (Sense Organs) के माध्यम से प्राप्त होती है। ज्ञानेन्द्रियाँ विशेषीकृत अंग हैं जो बाहरी उत्तेजनाओं को ग्रहण करके उन्हें तंत्रिका तंत्र (Nervous System) तक पहुँचाती हैं, जहाँ उनका विश्लेषण होता है और उचित प्रतिक्रिया दी जाती है। इस प्रकार ज्ञानेन्द्रियाँ हमें जीवन जीने और संसार को समझने की आधारभूत क्षमता प्रदान करती हैं।
🧩 ज्ञानेन्द्रियों का सामान्य परिचय
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ज्ञानेन्द्रियों की संख्या पाँच मानी जाती है।
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इन्हें "मनुष्य का संसार से संपर्क साधन" कहा जा सकता है।
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पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ हैं –
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नेत्र (आँख) – दृष्टि की इन्द्रिय
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कर्ण (कान) – श्रवण की इन्द्रिय
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घ्राण (नाक) – गंध की इन्द्रिय
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रसना (जीभ) – स्वाद की इन्द्रिय
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त्वचा – स्पर्श की इन्द्रिय
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👁️ नेत्र (Eye) – दृष्टि की इन्द्रिय
📌 संरचना
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आँख गोलाकार संरचना होती है, जो नेत्रगोलक (Eyeball) से बनी होती है।
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इसके प्रमुख भाग हैं:
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कॉर्निया (Cornea) – पारदर्शी भाग, जिससे प्रकाश प्रवेश करता है।
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पुतली (Pupil) – प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करती है।
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आइरिस (Iris) – पुतली का रंगीन भाग, जो पुतली का आकार बदलता है।
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लेंस (Lens) – प्रकाश को अपवर्तित कर रेटिना पर चित्र बनाता है।
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रेटिना (Retina) – इसमें रॉड्स और कोन्स नामक कोशिकाएँ होती हैं जो प्रकाश और रंग का अनुभव कराती हैं।
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📌 कार्य
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प्रकाश को ग्रहण करना।
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वस्तुओं का स्पष्ट चित्र रेटिना पर बनाना।
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रंगों एवं आकृतियों की पहचान करना।
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दूरी और गहराई का आभास कराना।
👂 कर्ण (Ear) – श्रवण की इन्द्रिय
📌 संरचना
कान तीन भागों में विभाजित है:
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बाह्य कर्ण (External Ear) – ध्वनि तरंगों को ग्रहण करता है।
-
मध्य कर्ण (Middle Ear) – इसमें तीन अस्थियाँ होती हैं – मैलियस, इंकस और स्टेपीज, जो ध्वनि को प्रवर्धित (Amplify) करती हैं।
-
आंतर कर्ण (Inner Ear) – इसमें कॉख्लिया (Cochlea) होती है, जो ध्वनि तरंगों को तंत्रिका संदेशों में परिवर्तित करती है।
📌 कार्य
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ध्वनि तरंगों को ग्रहण और संचारित करना।
-
भाषा और संगीत को समझने में सहायक।
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आंतरिक कान (Vestibular system) शरीर का संतुलन और स्थिति बनाए रखता है।
👃 घ्राण (Nose) – गंध की इन्द्रिय
📌 संरचना
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नाक के भीतर घ्राण उपकला (Olfactory Epithelium) होती है।
-
इसमें विशेष घ्राण कोशिकाएँ होती हैं, जो गंधकणों को ग्रहण करती हैं।
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ये संदेश घ्राण तंत्रिका (Olfactory Nerve) द्वारा मस्तिष्क तक पहुँचते हैं।
📌 कार्य
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विभिन्न गंधों की पहचान करना।
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भोजन के स्वाद में योगदान देना।
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हानिकारक गैसों और धुएँ का आभास कराना।
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पर्यावरणीय खतरों से सुरक्षा प्रदान करना।
👅 रसना (Tongue) – स्वाद की इन्द्रिय
📌 संरचना
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जीभ मांसपेशीय अंग है, जिस पर लल्लीके (Papillae) पाए जाते हैं।
-
इन लल्लीकों पर स्वाद कलिकाएँ (Taste Buds) होती हैं।
-
मुख्य स्वाद – मीठा, खट्टा, नमकीन और कड़वा।
📌 कार्य
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भोजन के स्वाद की पहचान करना।
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भोजन को चबाने और निगलने में सहायक।
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वाणी (Speech) में महत्वपूर्ण भूमिका।
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लार के साथ मिलकर भोजन को पचाने की प्रक्रिया को सरल बनाना।
✋ त्वचा (Skin) – स्पर्श की इन्द्रिय
📌 संरचना
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त्वचा शरीर का सबसे बड़ा अंग है।
-
इसमें अनेक संवेदी ग्राही (Receptors) पाए जाते हैं, जैसे:
-
मिस्नर कॉर्पस्कल्स – हल्के स्पर्श को पहचानते हैं।
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पेसिनियन कॉर्पस्कल्स – दबाव और कंपन का अनुभव कराते हैं।
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थर्मोरेसेप्टर्स – तापमान का अनुभव कराते हैं।
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नॉसीसेप्टर्स – दर्द का अनुभव कराते हैं।
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📌 कार्य
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स्पर्श, दबाव, तापमान और दर्द का अनुभव कराना।
-
शरीर को बाहरी वातावरण से सुरक्षा देना।
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पसीने के माध्यम से शरीर का तापमान नियंत्रित करना।
-
संक्रमण से बचाव करना।
📊 पाँच ज्ञानेन्द्रियों का सारांश
ज्ञानेन्द्रिय | मुख्य संरचना | कार्य |
---|---|---|
नेत्र | कॉर्निया, लेंस, रेटिना | दृष्टि, रंग और आकार की पहचान |
कर्ण | बाह्य, मध्य और आंतर कान | ध्वनि ग्रहण, संतुलन |
नाक | घ्राण उपकला | गंध का अनुभव |
जीभ | स्वाद कलिकाएँ | स्वाद पहचान, वाणी, पाचन |
त्वचा | संवेदी ग्राही | स्पर्श, तापमान, दर्द अनुभव |
🌟 ज्ञानेन्द्रियों का महत्व
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ये हमें पर्यावरण से जोड़ती हैं।
-
जीवन रक्षा में सहायक (जैसे – धुएँ या खराब भोजन की पहचान)।
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मानसिक और सामाजिक विकास में योगदान।
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संस्कृति, कला, संगीत और भाषा जैसे उच्च अनुभव इन्हीं के माध्यम से संभव हैं।
✅ उपसंहार
अतः स्पष्ट है कि ज्ञानेन्द्रियाँ मनुष्य के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण इकाइयाँ हैं। ये न केवल हमें संसार को देखने, सुनने, सूँघने, चखने और छूने की क्षमता देती हैं बल्कि हमारे जीवन को सार्थक और सुरक्षित बनाती हैं। इनकी सही कार्यप्रणाली के बिना मनुष्य का जीवन अधूरा और असुविधाजनक हो जाता। इसलिए ज्ञानेन्द्रियों को जीवन के पाँच द्वार कहा जाता है।
प्रश्न 05: रक्त परिसंचरण तंत्र के कार्यों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
🔹 प्रस्तावना
जीवधारियों के जीवन-निर्वाह हेतु पोषण, श्वसन, उत्सर्जन और ऊर्जा का निर्माण आवश्यक है। इन सभी प्रक्रियाओं के लिए शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पोषक तत्व और ऑक्सीजन पहुँचाना तथा अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालना आवश्यक होता है। यही कार्य रक्त परिसंचरण तंत्र (Circulatory System) करता है। यह तंत्र मुख्यतः हृदय, रक्त और रक्त वाहिकाओं से मिलकर बना होता है।
इस तंत्र की तुलना एक सड़क नेटवर्क से की जा सकती है, जहाँ हृदय इंजन की तरह कार्य करता है, रक्त वाहन की तरह पोषण और गैसें ढोता है और रक्त वाहिकाएँ सड़क की तरह पूरे शरीर में मार्ग उपलब्ध कराती हैं।
🫀 रक्त परिसंचरण तंत्र के प्रमुख अंग
1️⃣ हृदय (Heart)
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हृदय एक पेशीय अंग है, जो निरंतर संकुचन और प्रसार करके रक्त का संचार करता है।
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यह चार कक्षों (दो अलिंद और दो निलय) से बना होता है।
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इसे पम्पिंग स्टेशन भी कहा जाता है।
2️⃣ रक्त (Blood)
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रक्त तरल संयोजी ऊतक है, जो ऑक्सीजन, पोषक तत्व, हार्मोन और अपशिष्ट पदार्थों का परिवहन करता है।
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इसमें तीन प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं:
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लाल रक्त कणिकाएँ (RBCs) – ऑक्सीजन का परिवहन।
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श्वेत रक्त कणिकाएँ (WBCs) – रोग प्रतिरोधक क्षमता।
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प्लेटलेट्स (Platelets) – रक्त का थक्का जमाना।
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3️⃣ रक्त वाहिकाएँ (Blood Vessels)
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तीन प्रकार की रक्त वाहिकाएँ होती हैं:
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धमनियाँ (Arteries) – रक्त को हृदय से अंगों तक ले जाती हैं।
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शिराएँ (Veins) – रक्त को अंगों से हृदय तक लाती हैं।
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केशिकाएँ (Capillaries) – धमनियों और शिराओं को जोड़कर कोशिकाओं तक पोषण पहुँचाती हैं।
-
🔄 रक्त परिसंचरण के प्रकार
📌 (1) फुफ्फुसीय परिसंचरण (Pulmonary Circulation)
-
इसमें हृदय से फेफड़ों तक रक्त जाता है और पुनः वापस आता है।
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कार्य: रक्त को ऑक्सीजन से युक्त करना और कार्बन डाइऑक्साइड निकालना।
📌 (2) शारीरिक परिसंचरण (Systemic Circulation)
-
इसमें हृदय से पूरे शरीर तक रक्त जाता है और पुनः वापस आता है।
-
कार्य: अंगों तक ऑक्सीजन एवं पोषण पहुँचाना।
📌 (3) पोर्टल परिसंचरण (Portal Circulation)
-
इसमें पाचन तंत्र से रक्त सीधे यकृत (Liver) में पहुँचता है।
-
कार्य: भोजन से अवशोषित पदार्थों को शुद्ध और संग्रहित करना।
⚙️ रक्त परिसंचरण तंत्र के कार्य
🩸 1. पोषण का परिवहन
-
रक्त भोजन से प्राप्त ग्लूकोज़, अमीनो अम्ल, वसा आदि को कोशिकाओं तक पहुँचाता है।
-
इससे कोशिकाएँ ऊर्जा निर्माण करती हैं।
🌬️ 2. गैसों का परिवहन
-
फेफड़ों से ऑक्सीजन को कोशिकाओं तक और कोशिकाओं से कार्बन डाइऑक्साइड को फेफड़ों तक ले जाना।
-
RBCs में उपस्थित हीमोग्लोबिन इस कार्य में प्रमुख भूमिका निभाता है।
🔁 3. अपशिष्ट पदार्थों का निष्कासन
-
चयापचय से उत्पन्न यूरिया, यूरिक अम्ल, क्रिएटिनिन आदि को गुर्दों तक पहुँचाना।
-
त्वचा और फेफड़ों के माध्यम से भी अपशिष्ट बाहर निकालने में सहायक।
💉 4. हार्मोन का संचार
-
अंतःस्रावी ग्रंथियों द्वारा स्रावित हार्मोन को लक्ष्य अंगों तक पहुँचाना।
-
जैसे – थायरॉक्सिन, इंसुलिन, एड्रेनालिन आदि।
🛡️ 5. रोग प्रतिरोधक क्षमता
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श्वेत रक्त कणिकाएँ (WBCs) रोगाणुओं से शरीर की रक्षा करती हैं।
-
लसीका (Lymph) भी संक्रमण से लड़ने में सहायक।
🧊 6. शरीर का तापमान नियंत्रित करना
-
रक्त शरीर में ऊष्मा का समान वितरण करता है।
-
पसीना आना और त्वचा की रक्त वाहिकाओं का संकुचन/विस्फार तापमान नियंत्रित करने में सहायक।
🩹 7. रक्त का थक्का जमाना
-
किसी चोट पर प्लेटलेट्स और फाइब्रिनोजन मिलकर रक्त का थक्का बनाते हैं।
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इससे अत्यधिक रक्तस्राव रुक जाता है और घाव भरने की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है।
🧩 8. अंगों को सहारा और आकार प्रदान करना
-
रक्त अंगों को निरंतर पोषण और ऑक्सीजन प्रदान करता है, जिससे उनकी संरचना एवं कार्य बने रहते हैं।
📊 कार्यों का सारांश
कार्य | विवरण |
---|---|
पोषण का परिवहन | भोजन के अवशोषित तत्वों को कोशिकाओं तक पहुँचाना |
गैसों का परिवहन | ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का संचार |
अपशिष्ट निष्कासन | चयापचय उत्पादों को गुर्दे तक ले जाना |
हार्मोन संचार | हार्मोन को लक्ष्य अंगों तक पहुँचाना |
रोग प्रतिरोध | WBCs द्वारा रोगाणुओं से रक्षा |
तापमान नियंत्रण | रक्त संचार और पसीना द्वारा |
थक्का जमाना | प्लेटलेट्स द्वारा रक्तस्राव रोकना |
🌟 रक्त परिसंचरण तंत्र का महत्व
-
यह जीवन को निरंतर गति देता है।
-
कोशिकाओं को ऊर्जा और पोषण प्रदान करता है।
-
शरीर को रोगों और संक्रमण से बचाता है।
-
शारीरिक संतुलन (Homeostasis) बनाए रखता है।
-
मृत्यु के बाद रक्त परिसंचरण रुकने पर जीवन भी समाप्त हो जाता है।
✅ उपसंहार
अतः स्पष्ट है कि रक्त परिसंचरण तंत्र मानव जीवन की धुरी है। हृदय इसकी पम्पिंग मशीन है, रक्त उसका वाहन और रक्त वाहिकाएँ उसके मार्ग हैं। यदि यह तंत्र सुचारु रूप से कार्य करता रहे तो शरीर स्वस्थ रहता है, किंतु इसमें किसी भी प्रकार की गड़बड़ी अनेक रोगों को जन्म देती है। इसलिए स्वस्थ जीवन के लिए हृदय एवं परिसंचरण तंत्र की देखभाल अत्यंत आवश्यक है।
SOLVED PAPER JUNE 2024,
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 01: मानव शरीर में कोशिका के महत्व का वर्णन कीजिए।
🔹 प्रस्तावना
मानव शरीर की जटिल संरचना अरबों सूक्ष्म इकाइयों से बनी है जिन्हें कोशिका (Cell) कहा जाता है। कोशिका जीवन की मूल इकाई है और इसे “Life’s Fundamental Unit” भी कहा जाता है। जैसे एक इमारत ईंटों से बनती है, वैसे ही हमारा शरीर कोशिकाओं से निर्मित होता है।
प्रत्येक कोशिका अपने-अपने स्तर पर कार्य करते हुए शरीर की सभी क्रियाओं को सुचारु बनाती है। यही कारण है कि कोशिका का महत्व मानव जीवन में अत्यधिक है।
🧩 कोशिका का सामान्य परिचय
-
कोशिका की खोज रॉबर्ट हुक (1665) ने की थी।
-
मानव शरीर में लगभग 37 ट्रिलियन कोशिकाएँ पाई जाती हैं।
-
प्रत्येक कोशिका का आकार, आकृति और कार्य अलग-अलग हो सकता है।
-
कोशिका को जीव का संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई कहा जाता है।
⚙️ मानव शरीर में कोशिका का महत्व
🏗️ 1. संरचनात्मक इकाई (Structural Unit)
-
मानव शरीर का निर्माण कोशिकाओं से हुआ है।
-
ये ईंटों की तरह मिलकर ऊतक (Tissue), अंग (Organ) और अंग तंत्र (Organ System) बनाती हैं।
-
हड्डियाँ, मांसपेशियाँ, रक्त, त्वचा – सब कोशिकाओं के समूह से बने हैं।
🔋 2. ऊर्जा उत्पादन (Energy Production)
-
कोशिकाओं के अंदर माइटोकॉन्ड्रिया को Power House कहा जाता है।
-
यह ग्लूकोज़ को तोड़कर ऊर्जा (ATP) उत्पन्न करता है।
-
यही ऊर्जा हमारे शारीरिक और मानसिक कार्यों के लिए आवश्यक है।
🍲 3. पोषण और चयापचय (Nutrition & Metabolism)
-
कोशिका पोषक तत्वों को ग्रहण करके उनका उपयोग करती है।
-
इसमें होने वाली प्रक्रियाएँ –
-
अनाबॉलिज़्म (Anabolism): जटिल अणुओं का निर्माण।
-
कैटाबॉलिज़्म (Catabolism): अणुओं का अपघटन कर ऊर्जा प्राप्त करना।
-
-
इस प्रकार कोशिका शरीर के संतुलन को बनाए रखती है।
🧬 4. आनुवंशिकता और वंशानुक्रम (Heredity & Inheritance)
-
कोशिका के नाभिक (Nucleus) में DNA पाया जाता है।
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DNA में जीन होते हैं जो माता-पिता से संतान में गुणधर्म स्थानांतरित करते हैं।
-
यही कारण है कि संतान का रंग-रूप, कद-काठी या कई विशेषताएँ माता-पिता से मिलती हैं।
🧑🔬 5. प्रोटीन संश्लेषण (Protein Synthesis)
-
राइबोसोम कोशिका का वह भाग है जो प्रोटीन बनाता है।
-
प्रोटीन शरीर के विकास, एंजाइम, हार्मोन और प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए आवश्यक है।
-
यह शरीर के Building Blocks कहे जाते हैं।
🛡️ 6. प्रतिरक्षा में योगदान (Immunity)
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कुछ कोशिकाएँ, जैसे श्वेत रक्त कणिकाएँ (WBCs), शरीर को रोगों से बचाती हैं।
-
ये रोगजनक सूक्ष्मजीवों को नष्ट करके शरीर को स्वस्थ बनाए रखती हैं।
-
यदि ये कोशिकाएँ सही तरह से कार्य न करें तो शरीर बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है।
🧩 7. ऊतक एवं अंग निर्माण (Formation of Tissues & Organs)
-
समान प्रकार की कोशिकाएँ मिलकर ऊतक बनाती हैं।
-
विभिन्न ऊतक मिलकर अंग और अंग मिलकर अंग तंत्र का निर्माण करते हैं।
-
इस प्रकार शरीर की कार्यप्रणाली कोशिका पर आधारित है।
🔄 8. विभाजन एवं वृद्धि (Cell Division & Growth)
-
कोशिकाएँ माइटोसिस और मीयोसिस द्वारा विभाजित होती हैं।
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इससे शरीर का विकास, घाव भरना और प्रजनन संभव होता है।
-
कोशिका विभाजन के बिना जीवन का अस्तित्व असंभव है।
🧊 9. संतुलन और आंतरिक नियंत्रण (Homeostasis)
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कोशिका अपने अंदर जल, लवण और pH का संतुलन बनाए रखती है।
-
इससे शरीर के आंतरिक वातावरण में स्थिरता रहती है।
-
यह स्थिरता जीवन के लिए अनिवार्य है।
💉 10. विशेषीकृत कार्य (Specialized Functions)
-
विभिन्न कोशिकाएँ अपने-अपने कार्य करती हैं:
-
स्नायु कोशिकाएँ – संदेशों का आदान-प्रदान।
-
मांसपेशी कोशिकाएँ – गति और बल प्रदान करना।
-
रक्त कोशिकाएँ – गैसों का परिवहन।
-
अस्थि कोशिकाएँ – शरीर को सहारा देना।
-
📊 कोशिका के महत्व का सारांश
क्रमांक | कोशिका का महत्व | विवरण |
---|---|---|
1 | संरचनात्मक इकाई | शरीर का निर्माण कोशिकाओं से |
2 | ऊर्जा उत्पादन | ATP निर्माण द्वारा ऊर्जा आपूर्ति |
3 | पोषण व चयापचय | अनाबॉलिज़्म व कैटाबॉलिज़्म प्रक्रियाएँ |
4 | आनुवंशिकता | DNA द्वारा गुणों का स्थानांतरण |
5 | प्रोटीन संश्लेषण | विकास व एंजाइम निर्माण |
6 | प्रतिरक्षा | WBCs द्वारा रोग प्रतिरोध |
7 | अंग निर्माण | ऊतक और अंगों का निर्माण |
8 | वृद्धि | कोशिका विभाजन द्वारा विकास |
9 | होमियोस्टेसिस | आंतरिक संतुलन बनाए रखना |
10 | विशेष कार्य | स्नायु, मांसपेशी, अस्थि आदि कोशिकाओं के कार्य |
🌟 मानव जीवन में कोशिका का महत्व
-
कोशिका के बिना जीवन की कल्पना असंभव है।
-
यह जन्म से मृत्यु तक निरंतर कार्य करती रहती है।
-
कोशिकाएँ न केवल शारीरिक विकास करती हैं बल्कि मानसिक और आनुवंशिक गुणों को भी प्रभावित करती हैं।
-
आधुनिक विज्ञान (जैव प्रौद्योगिकी, क्लोनिंग, स्टेम सेल थेरेपी) भी कोशिका के अध्ययन पर आधारित है।
✅ उपसंहार
अतः यह स्पष्ट है कि कोशिका ही मानव जीवन की आधारशिला है। यह न केवल शरीर की संरचना और कार्यप्रणाली की इकाई है बल्कि ऊर्जा, पोषण, आनुवंशिकता और प्रतिरक्षा का भी केंद्र है। कोशिकाओं की वजह से ही जीवन की गतिविधियाँ संभव हैं। इसलिए सही मायनों में कोशिका को “जीवन की इकाई और आधार” कहा जाता है।
प्रश्न 02: श्वसन तंत्र में भाग लेने वाले अंगों का वर्णन कीजिए।
🔹 प्रस्तावना
जीवित रहने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है, और यह ऊर्जा शरीर को ऑक्सीजन से प्राप्त होती है। श्वसन तंत्र (Respiratory System) वह प्रणाली है जो ऑक्सीजन को शरीर के अंदर ले जाकर कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालती है।
मानव श्वसन तंत्र कई अंगों से मिलकर बना है, जो मिलकर गैसों के आदान-प्रदान (Exchange of Gases) की प्रक्रिया को सम्पन्न करते हैं।
🫁 श्वसन तंत्र के प्रमुख अंग
👃 1. नासिका गुहा (Nasal Cavity)
-
श्वसन की शुरुआत नाक से होती है।
-
नाक के अंदर महीन बाल और श्लेष्मा (Mucus) झिल्ली होती है।
-
कार्य:
-
हवा को छानना (Dust व Germs हटाना)।
-
हवा को गीला और गर्म करना।
-
गंध का अनुभव कराना (Olfactory Receptors के द्वारा)।
-
🛤️ 2. ग्रसनी (Pharynx)
-
यह गले का वह भाग है जहाँ नाक और मुँह की हवा मिलती है।
-
इसमें एपिग्लॉटिस नामक ढक्कन जैसा भाग होता है।
-
कार्य:
-
हवा को सही मार्ग (श्वासनली) की ओर भेजना।
-
भोजन और हवा के मार्ग को अलग रखना।
-
🎤 3. कंठ या स्वरयंत्र (Larynx / Voice Box)
-
यह श्वसन नली का ऊपरी भाग है।
-
इसमें स्वर रज्जु (Vocal Cords) होते हैं।
-
कार्य:
-
श्वसन मार्ग को खुला रखना।
-
आवाज उत्पन्न करना।
-
बाहरी कणों से श्वसन नली की रक्षा करना (Cough Reflex)।
-
🛣️ 4. श्वासनली (Trachea / Wind Pipe)
-
लगभग 10–12 सेमी लंबी नली, जो लैरिंक्स को फेफड़ों से जोड़ती है।
-
इसके चारों ओर C-आकार की उपास्थि (Cartilaginous Rings) होती हैं।
-
कार्य:
-
हवा का मुख्य मार्ग प्रदान करना।
-
धूल और जीवाणुओं को रोकना (Cilia व Mucus की सहायता से)।
-
🌳 5. श्वसनी (Bronchi)
-
श्वासनली दो शाखाओं में बँट जाती है, जिन्हें दाएँ और बाएँ ब्रॉन्कस कहते हैं।
-
ये दोनों फेफड़ों में जाकर और छोटी शाखाओं (Bronchioles) में विभाजित हो जाती हैं।
-
कार्य:
-
हवा को फेफड़ों के अंदर तक पहुँचाना।
-
वायु प्रवाह को नियंत्रित करना।
-
🍇 6. श्वसनीकाएँ (Bronchioles)
-
ब्रॉन्कस की और पतली शाखाएँ ब्रॉन्कियोल्स कहलाती हैं।
-
इनका व्यास छोटा और दीवारें पतली होती हैं।
-
कार्य:
-
हवा को अल्वियोलाई (Alveoli) तक पहुँचाना।
-
हवा के प्रवाह को नियंत्रित करना।
-
🫧 7. वायुकोष्ठ या अल्वियोलाई (Alveoli)
-
यह छोटे-छोटे गुब्बारे जैसे ढाँचे हैं।
-
एक फेफड़े में लगभग 30 करोड़ अल्वियोलाई होते हैं।
-
इनकी दीवारें बहुत पतली और रक्त केशिकाओं (Capillaries) से घिरी होती हैं।
-
कार्य:
-
यहाँ ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का वास्तविक आदान-प्रदान होता है।
-
रक्त में ऑक्सीजन घुल जाती है और कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकलती है।
-
🫀 8. फेफड़े (Lungs)
-
मानव में दो फेफड़े होते हैं — दायाँ और बायाँ।
-
दायाँ फेफड़ा तीन भागों (Lobes) में और बायाँ दो भागों में बँटा होता है।
-
कार्य:
-
श्वसन की पूरी प्रक्रिया को सम्पन्न करना।
-
शरीर को ऑक्सीजन प्रदान करना।
-
कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालना।
-
🫶 9. डायफ्राम (Diaphragm)
-
यह फेफड़ों के नीचे स्थित एक गुंबदाकार पेशी है।
-
श्वास लेने और छोड़ने में इसका मुख्य योगदान है।
-
कार्य:
-
श्वास लेने पर नीचे की ओर सिकुड़ता है → फेफड़े फैलते हैं।
-
श्वास छोड़ने पर ऊपर उठता है → फेफड़े सिकुड़ते हैं।
-
🔄 श्वसन की प्रक्रिया
🫁 1. श्वास ग्रहण (Inhalation)
-
नाक से हवा अंदर जाती है।
-
श्वासनली → ब्रॉन्कस → ब्रॉन्कियोल्स → अल्वियोलाई तक हवा पहुँचती है।
-
ऑक्सीजन रक्त में घुल जाती है।
🌬️ 2. श्वास निष्कासन (Exhalation)
-
कोशिकाओं से आई कार्बन डाइऑक्साइड अल्वियोलाई में पहुँचती है।
-
ब्रॉन्कियोल्स → ब्रॉन्कस → श्वासनली → नाक से बाहर निकलती है।
📊 श्वसन तंत्र के अंगों और कार्यों का सारांश
अंग | मुख्य कार्य |
---|---|
नासिका | हवा को छानना, गीला करना, गंध पहचानना |
ग्रसनी | हवा का मार्ग, भोजन-हवा अलग करना |
कंठ | आवाज उत्पन्न करना, मार्ग सुरक्षित रखना |
श्वासनली | हवा का मार्ग, धूल रोकना |
ब्रॉन्कस | फेफड़ों तक हवा पहुँचाना |
ब्रॉन्कियोल्स | हवा को अल्वियोलाई तक ले जाना |
अल्वियोलाई | गैसों का आदान-प्रदान |
फेफड़े | श्वसन की पूरी प्रक्रिया सम्पन्न करना |
डायफ्राम | श्वास लेना और छोड़ना |
🌟 मानव जीवन में श्वसन तंत्र का महत्व
-
शरीर को ऑक्सीजन उपलब्ध कराता है।
-
कार्बन डाइऑक्साइड जैसे अपशिष्ट गैस को बाहर निकालता है।
-
कोशिकाओं को ऊर्जा निर्माण के लिए आवश्यक गैसें देता है।
-
रक्त और ऊतकों के बीच संतुलन बनाए रखता है।
-
जीवन के हर क्षण में कार्यरत, इसलिए इसे जीवन का आधार भी कहा जाता है।
✅ उपसंहार
इस प्रकार श्वसन तंत्र के प्रत्येक अंग का अपना विशेष कार्य है। नासिका से लेकर अल्वियोलाई तक की यह यात्रा केवल कुछ सेकंड में पूरी होती है, लेकिन इसी से हमें जीवन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन प्राप्त होती है। यदि श्वसन तंत्र सही ढंग से कार्य न करे तो जीवन असंभव है। यही कारण है कि श्वसन तंत्र को मानव शरीर की सबसे महत्वपूर्ण प्रणालियों में गिना जाता है।
प्रश्न 03: हृदय के कार्यों का संक्षिप्त में वर्णन कीजिए।
🔹 प्रस्तावना
मानव शरीर एक अद्भुत मशीन है, और इस मशीन का सबसे महत्वपूर्ण इंजन है हृदय (Heart)।
हृदय वह अंग है जो बिना रुके दिन-रात काम करता है और रक्त को पूरे शरीर में पंप करता है। यह लगभग मुट्ठी के आकार का, पेशी (Muscular) अंग है, जो वक्ष गुहा (Thoracic Cavity) में स्थित होता है।
मनुष्य के जीवन की निरंतरता पूरी तरह हृदय की क्रियाओं पर निर्भर करती है।
🫀 हृदय की संरचना का संक्षिप्त परिचय
-
हृदय चार गुहाओं (Chambers) में बँटा होता है –
-
दायाँ आलिंद (Right Atrium)
-
दायाँ निलय (Right Ventricle)
-
बायाँ आलिंद (Left Atrium)
-
बायाँ निलय (Left Ventricle)
-
-
इसमें वाल्व (Valves) होते हैं जो रक्त को एक ही दिशा में बहने देते हैं।
-
हृदय की पेशियाँ निरंतर और अनैच्छिक रूप से कार्य करती हैं।
(अब कार्यों का विस्तार से वर्णन करते हैं)
⚡ हृदय के मुख्य कार्य
🔄 1. रक्त का संचार (Circulation of Blood)
हृदय का सबसे बड़ा कार्य है रक्त को पूरे शरीर में पंप करना।
-
फेफड़ों की ओर रक्त भेजना (Pulmonary Circulation):
-
दायाँ निलय अशुद्ध रक्त (Deoxygenated Blood) को फेफड़ों की ओर भेजता है।
-
फेफड़ों में यह रक्त शुद्ध (Oxygenated) हो जाता है।
-
-
शरीर की ओर रक्त भेजना (Systemic Circulation):
-
बायाँ निलय शुद्ध रक्त को महाधमनी (Aorta) के माध्यम से पूरे शरीर में भेजता है।
-
इससे सभी अंगों को ऊर्जा मिलती है।
-
🧬 2. ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति
-
हृदय यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक कोशिका तक पर्याप्त ऑक्सीजन और पोषक तत्व पहुँचें।
-
यह रक्त के माध्यम से ग्लूकोज़, अमीनो अम्ल, वसा आदि भी पहुँचाता है।
-
कोशिकाएँ इन्हीं तत्वों से ऊर्जा प्राप्त करती हैं।
🗑️ 3. अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालना
-
जब कोशिकाएँ ऊर्जा बनाती हैं तो कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य अपशिष्ट पदार्थ उत्पन्न होते हैं।
-
हृदय इन अपशिष्टों को रक्त के माध्यम से फेफड़ों, गुर्दों और त्वचा तक पहुँचाता है।
-
वहाँ से ये पदार्थ शरीर से बाहर निकल जाते हैं।
🛡️ 4. शरीर की रक्षा करना
-
रक्त में श्वेत रक्त कणिकाएँ (WBCs) और प्रतिरक्षक तत्व (Antibodies) पाए जाते हैं।
-
हृदय इन्हें पूरे शरीर तक पहुँचाता है।
-
इससे शरीर संक्रमण और बीमारियों से लड़ पाता है।
🌡️ 5. शरीर के तापमान का नियंत्रण
-
जब शरीर गरम हो जाता है, तो हृदय त्वचा की ओर अधिक रक्त भेजता है ताकि ऊष्मा बाहर निकल सके।
-
ठंड के समय हृदय आंतरिक अंगों की ओर अधिक रक्त भेजता है ताकि गर्मी संरक्षित रहे।
-
इस प्रकार हृदय शरीर के तापमान को संतुलित बनाए रखता है।
💧 6. हार्मोनों और रसायनों का वितरण
-
ग्रंथियों द्वारा निर्मित हार्मोन रक्त में मिल जाते हैं।
-
हृदय इन हार्मोनों को शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुँचाता है।
-
जैसे:
-
एड्रेनालिन हार्मोन तनाव के समय पूरे शरीर को सक्रिय करता है।
-
इंसुलिन हार्मोन रक्त में शर्करा का स्तर नियंत्रित करता है।
-
⚙️ 7. रक्तचाप को नियंत्रित करना
-
हृदय की धड़कन और पंपिंग से ही रक्तचाप (Blood Pressure) बनता है।
-
यदि हृदय सही ढंग से पंप करे तो रक्तचाप सामान्य रहता है।
-
रक्तचाप का नियंत्रण शरीर के सभी अंगों के लिए अत्यंत आवश्यक है।
🔄 हृदय की कार्यप्रणाली (Cardiac Cycle)
⏱️ 1. आलिंद का संकुचन (Atrial Systole)
-
दाएँ और बाएँ आलिंद संकुचित होकर रक्त को निलयों में भेजते हैं।
💓 2. निलय का संकुचन (Ventricular Systole)
-
निलय संकुचित होकर रक्त को फेफड़ों और पूरे शरीर की ओर भेजते हैं।
💤 3. शिथिलन अवस्था (Diastole)
-
आलिंद और निलय शिथिल हो जाते हैं।
-
हृदय में पुनः रक्त भर जाता है।
👉 यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है और इसी को हृदय चक्र (Cardiac Cycle) कहते हैं।
📊 हृदय के कार्यों का सारांश
कार्य | विवरण |
---|---|
रक्त संचार | पूरे शरीर में रक्त पंप करना |
ऑक्सीजन की आपूर्ति | कोशिकाओं तक ऑक्सीजन पहुँचाना |
अपशिष्ट पदार्थों का निष्कासन | CO₂ और अपशिष्ट को बाहर निकालना |
शरीर की रक्षा | WBCs और Antibodies का वितरण |
तापमान नियंत्रण | ऊष्मा संतुलन बनाए रखना |
हार्मोन वितरण | हार्मोनों को अंगों तक पहुँचाना |
रक्तचाप नियंत्रण | BP को सामान्य रखना |
🌟 मानव जीवन में हृदय का महत्व
-
यदि हृदय रुक जाए तो जीवन कुछ ही मिनटों में समाप्त हो जाता है।
-
यह शरीर का जीवन केंद्र (Vital Organ) है।
-
हृदय के स्वस्थ रहने पर ही शरीर की सभी क्रियाएँ सुचारु रहती हैं।
✅ उपसंहार
हृदय केवल एक रक्त पंप करने वाला अंग नहीं है, बल्कि यह पूरे शरीर को जीवन देने वाला ऊर्जा केंद्र है। यह ऑक्सीजन, पोषक तत्व, हार्मोन और प्रतिरक्षा तत्त्वों को पहुँचाने के साथ-साथ अपशिष्टों को बाहर निकालता है।
यही कारण है कि हृदय को जीवन का आधार माना जाता है।
प्रश्न 04: मानव शरीर में पेशियों के कार्यों का वर्णन कीजिए।
🔹 प्रस्तावना
मानव शरीर एक जटिल जैविक संरचना है, और इसमें पेशियाँ (Muscles) अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
पेशियाँ वे ऊतक (Tissues) हैं जो शरीर को गति, शक्ति और आकार प्रदान करती हैं।
बिना पेशियों के न तो हम चल सकते, न हाथ-पाँव हिला सकते, न ही भोजन चबा सकते। यहाँ तक कि हमारी साँस लेना, बोलना, रक्त संचार जैसी गतिविधियाँ भी पेशियों पर ही निर्भर करती हैं।
🧩 पेशियों का वर्गीकरण (Classification of Muscles)
मानव शरीर में मुख्य रूप से तीन प्रकार की पेशियाँ होती हैं:
💪 1. ऐच्छिक पेशियाँ (Voluntary Muscles / Skeletal Muscles)
-
ये हड्डियों से जुड़ी होती हैं।
-
हम इन्हें अपनी इच्छा से नियंत्रित कर सकते हैं।
-
जैसे: हाथ, पैर की पेशियाँ।
❤️ 2. अनैच्छिक पेशियाँ (Involuntary Muscles / Smooth Muscles)
-
ये अंगों की आंतरिक दीवारों में होती हैं।
-
इन पर हमारा सीधा नियंत्रण नहीं होता।
-
जैसे: आँतों, पेट और रक्त वाहिकाओं की पेशियाँ।
🫀 3. हृदय पेशी (Cardiac Muscle)
-
यह केवल हृदय में पाई जाती है।
-
यह निरंतर धड़कती रहती है और रक्त का संचार करती है।
⚡ मानव शरीर में पेशियों के मुख्य कार्य
🚶♂️ 1. गति प्रदान करना (Movement)
-
पेशियाँ हड्डियों और जोड़ों के साथ मिलकर शरीर को चलने-फिरने में सक्षम बनाती हैं।
-
हाथ उठाना, पैर चलाना, सिर घुमाना—ये सभी क्रियाएँ पेशियों से ही संभव हैं।
🏋️♀️ 2. बल और शक्ति उत्पन्न करना (Generation of Force)
-
पेशियों का संकुचन और शिथिलन बल उत्पन्न करता है।
-
इसी बल से हम वस्तुएँ उठा सकते हैं, दौड़ सकते हैं और परिश्रम कर सकते हैं।
🍽️ 3. पाचन प्रक्रिया में सहयोग (Digestion)
-
आँतों की पेशियाँ भोजन को आगे बढ़ाने (Peristalsis) का कार्य करती हैं।
-
पेट की पेशियाँ भोजन को घोलने और मिलाने में मदद करती हैं।
💨 4. श्वसन क्रिया में सहयोग (Breathing)
-
श्वसन में मुख्य रूप से डायाफ्राम और पसलियों की पेशियाँ काम करती हैं।
-
इनके संकुचन-शिथिलन से फेफड़े फैलते और सिकुड़ते हैं।
💉 5. रक्त संचार में सहयोग (Blood Circulation)
-
हृदय पेशी निरंतर रक्त पंप करती है।
-
रक्त वाहिकाओं की चिकनी पेशियाँ रक्त प्रवाह को नियंत्रित करती हैं।
🛡️ 6. शरीर की रक्षा करना (Protection)
-
पेशियाँ आंतरिक अंगों को सहारा और सुरक्षा देती हैं।
-
पेट की दीवार की पेशियाँ आँतों और अन्य अंगों को ढक कर सुरक्षित रखती हैं।
🌡️ 7. ऊष्मा उत्पन्न करना (Production of Heat)
-
जब पेशियाँ काम करती हैं तो ऊर्जा खर्च होती है और ऊष्मा निकलती है।
-
यह ऊष्मा शरीर का तापमान संतुलित बनाए रखने में मदद करती है।
🧠 विशेष कार्यों में पेशियों की भूमिका
🗣️ 1. बोलने और चेहरे के भाव में सहायता
-
मुख और चेहरे की पेशियाँ हमें बोलने, हँसने, रोने और भाव प्रकट करने में सक्षम बनाती हैं।
👀 2. आँखों की गति
-
आँखों की पेशियाँ हमें विभिन्न दिशाओं में देखने की क्षमता देती हैं।
🧏 3. श्रवण और संतुलन
-
कानों की सूक्ष्म पेशियाँ ध्वनि तरंगों को पहचानने और संतुलन बनाए रखने में मदद करती हैं।
🚽 4. उत्सर्जन और प्रजनन
-
मूत्राशय और मलाशय की पेशियाँ उत्सर्जन प्रक्रिया को नियंत्रित करती हैं।
-
गर्भाशय की पेशियाँ प्रसव के समय शिशु को बाहर लाने में मदद करती हैं।
📊 पेशियों के कार्यों का सारांश तालिका
कार्य | विवरण |
---|---|
गति | चलना-फिरना, अंगों की हलचल |
बल | वस्तु उठाना, दौड़ना, काम करना |
पाचन | भोजन को पचाने और आगे बढ़ाने में मदद |
श्वसन | साँस लेने में सहयोग |
रक्त संचार | रक्त प्रवाह और हृदय की धड़कन |
सुरक्षा | आंतरिक अंगों को ढकना और सहारा देना |
ऊष्मा उत्पादन | शरीर का तापमान बनाए रखना |
भाव प्रकट करना | हँसना, रोना, बोलना आदि |
🌟 मानव जीवन में पेशियों का महत्व
-
पेशियाँ न केवल हमें गति और शक्ति देती हैं, बल्कि जीवन की हर गतिविधि में भाग लेती हैं।
-
इनके बिना न तो शरीर का आकार बनेगा, न ही आंतरिक अंग सही तरह से काम करेंगे।
-
स्वस्थ पेशियाँ ही एक सशक्त और सक्रिय जीवन की आधारशिला हैं।
✅ उपसंहार
मानव शरीर में पेशियाँ केवल गति देने वाली संरचना नहीं हैं, बल्कि वे जीवन की लगभग हर प्रक्रिया में शामिल हैं—चाहे वह श्वसन हो, पाचन हो, रक्त संचार हो या भाव प्रकट करना।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि पेशियाँ मानव शरीर की शक्ति, गति और जीवन की धुरी हैं।
प्रश्न 05: तंत्रिका तंत्र के प्रकारों का संक्षिप्त में वर्णन कीजिए।
🔹 प्रस्तावना
मानव शरीर एक अद्भुत मशीन है, जो अनेक अंगों और प्रणालियों के सहयोग से कार्य करता है। इन सबको नियंत्रित और समन्वित करने का कार्य करता है तंत्रिका तंत्र (Nervous System)।
यह प्रणाली शरीर और मस्तिष्क के बीच संदेशों का आदान-प्रदान करती है। जैसे —
-
जब हम गर्म वस्तु छूते हैं तो हाथ तुरंत पीछे खींच लेते हैं।
-
जब हमें भूख लगती है तो मस्तिष्क संकेत देता है।
-
जब कान में ध्वनि पहुँचती है तो हम उसे पहचान पाते हैं।
ये सभी क्रियाएँ तंत्रिका तंत्र की वजह से संभव हैं।
🧩 तंत्रिका तंत्र की मूल इकाई – न्यूरॉन (Neuron)
-
तंत्रिका तंत्र की मूल इकाई है न्यूरॉन।
-
यह एक विशेष प्रकार की कोशिका है, जो विद्युत आवेग (Electrical Impulses) के रूप में संदेश पहुँचाती है।
-
एक सामान्य न्यूरॉन के तीन भाग होते हैं:
-
कोशिका देह (Cell Body)
-
डेंड्राइट (Dendrite)
-
ऐक्सॉन (Axon)
-
⚡ तंत्रिका तंत्र का मुख्य कार्य
-
बाहरी वातावरण से सूचना लेना।
-
उसे मस्तिष्क/मेरुरज्जु तक पहुँचाना।
-
उसका विश्लेषण करना।
-
उचित प्रतिक्रिया देना।
🧠 तंत्रिका तंत्र के मुख्य प्रकार
🟣 1. केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous System - CNS)
यह तंत्रिका तंत्र का सबसे महत्वपूर्ण भाग है।
इसमें दो प्रमुख अंग सम्मिलित हैं:
🧠 (i) मस्तिष्क (Brain)
-
यह शरीर का नियंत्रण केंद्र है।
-
मस्तिष्क के मुख्य भाग:
-
मस्तिष्क अग्रभाग (Cerebrum): सोचने, समझने, स्मृति और निर्णय लेने में सहायक।
-
मध्य मस्तिष्क (Midbrain): दृष्टि और श्रवण संबंधी क्रियाएँ नियंत्रित करता है।
-
अनुवर्ती मस्तिष्क (Cerebellum): संतुलन और मांसपेशियों का समन्वय।
-
विस्तारित मज्जा (Medulla Oblongata): श्वसन, हृदयगति और पाचन क्रियाओं को नियंत्रित करता है।
-
🪢 (ii) मेरुरज्जु (Spinal Cord)
-
यह मस्तिष्क से निकलकर रीढ़ की हड्डियों के भीतर फैला रहता है।
-
मेरुरज्जु का कार्य है —
-
शरीर से संदेश मस्तिष्क तक पहुँचाना।
-
मस्तिष्क के आदेशों को शरीर तक पहुँचाना।
-
त्वरित प्रतिक्रिया (Reflex Action) करना।
-
🟢 2. परिधीय तंत्रिका तंत्र (Peripheral Nervous System - PNS)
-
यह तंत्रिका तंत्र का वह भाग है जो मस्तिष्क और मेरुरज्जु से बाहर फैला हुआ है।
-
इसमें सभी नसें (Nerves) सम्मिलित हैं।
-
इसे दो भागों में बाँटा गया है:
🌟 (i) देह तंत्रिका तंत्र (Somatic Nervous System)
-
यह इच्छा अनुसार होने वाली गतिविधियों को नियंत्रित करता है।
-
जैसे — चलना, लिखना, बोलना।
-
इसमें संवेदी नसें (Sensory Nerves) और मोटर नसें (Motor Nerves) शामिल हैं।
🌟 (ii) स्वायत्त तंत्रिका तंत्र (Autonomic Nervous System)
-
यह अनैच्छिक क्रियाओं को नियंत्रित करता है।
-
जैसे — हृदय की धड़कन, पाचन, श्वसन आदि।
-
इसके दो उपभाग हैं:
-
सहानुभूति तंत्र (Sympathetic Nervous System): शरीर को आपात स्थिति (Emergency) में सक्रिय करता है। जैसे डरने पर धड़कन बढ़ना।
-
पैरासिंपैथेटिक तंत्र (Parasympathetic Nervous System): शरीर को आराम की स्थिति में शांत करता है। जैसे भोजन के बाद पाचन कराना।
-
🔵 3. स्वायत्त तंत्रिका तंत्र (Autonomic Nervous System - ANS)
-
यह परिधीय तंत्रिका तंत्र का हिस्सा होते हुए भी अलग महत्व रखता है।
-
यह शरीर की आंतरिक क्रियाओं को स्वतः नियंत्रित करता है।
-
जैसे —
-
ग्रंथियों से रस का स्रवण।
-
रक्तचाप का नियंत्रण।
-
आंतों की गति।
-
🟡 4. स्नायु तंत्र का विशेष भाग – संवेदी एवं प्रेरक नसें
-
संवेदी नसें (Sensory Nerves): बाहरी वातावरण से जानकारी मस्तिष्क तक पहुँचाती हैं।
-
प्रेरक नसें (Motor Nerves): मस्तिष्क के आदेशों को मांसपेशियों तक पहुँचाती हैं।
📊 तंत्रिका तंत्र का वर्गीकरण (तालिका रूप में)
प्रकार | मुख्य अंग/भाग | कार्य |
---|---|---|
केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (CNS) | मस्तिष्क, मेरुरज्जु | सूचना का विश्लेषण और आदेश देना |
परिधीय तंत्रिका तंत्र (PNS) | नसें | सूचना का आदान-प्रदान |
स्वायत्त तंत्रिका तंत्र (ANS) | सहानुभूति एवं पैरासिंपैथेटिक तंत्र | अनैच्छिक क्रियाओं का नियंत्रण |
देह तंत्रिका तंत्र | संवेदी एवं मोटर नसें | इच्छा अनुसार गतिविधियाँ |
🌟 तंत्रिका तंत्र का महत्व
-
यह शरीर का नियंत्रण एवं समन्वय केंद्र है।
-
हमारी सभी चेतन और अचेतन क्रियाएँ इसी से संचालित होती हैं।
-
यह हमें वातावरण के प्रति सजग बनाता है।
-
तंत्रिका तंत्र के बिना जीवन की कल्पना असंभव है।
✅ उपसंहार
मानव शरीर का तंत्रिका तंत्र एक ऐसी जटिल और संगठित प्रणाली है, जो शरीर को सक्रिय, सजग और संतुलित बनाए रखती है।
इसके प्रमुख प्रकार — केंद्रीय तंत्रिका तंत्र, परिधीय तंत्रिका तंत्र और स्वायत्त तंत्रिका तंत्र — मिलकर शरीर की सभी छोटी-बड़ी क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं।
इसलिए तंत्रिका तंत्र को मानव शरीर का नियंत्रण कक्ष (Control System) कहा जाता है।
प्रश्न 06: उत्सर्जन तंत्र के कार्यों का संक्षिप्त में वर्णन कीजिए।
🔹 प्रस्तावना
मानव शरीर लगातार विभिन्न जैव-रासायनिक प्रक्रियाओं (Biochemical Processes) से गुजरता है। इन प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप अनावश्यक और हानिकारक अपशिष्ट पदार्थ (Waste Products) भी बनते हैं।
यदि ये अपशिष्ट शरीर में जमा हो जाएँ तो यह शरीर के लिए विषैले सिद्ध हो सकते हैं।
इन्हीं अपशिष्टों को शरीर से बाहर निकालने का कार्य करता है उत्सर्जन तंत्र (Excretory System)।
🧩 उत्सर्जन तंत्र क्या है?
-
उत्सर्जन तंत्र वह प्रणाली है जो शरीर में बनने वाले नाइट्रोजनी अपशिष्ट (Nitrogenous Wastes) जैसे यूरिया, यूरिक एसिड और अमोनिया को बाहर निकालती है।
-
यह तंत्र शरीर के जल संतुलन, लवण संतुलन और रक्त की शुद्धता को बनाए रखता है।
-
प्रमुख उत्सर्जन अंग हैं — गुर्दे (Kidneys), मूत्रवाहिनी (Ureters), मूत्राशय (Urinary Bladder), मूत्रमार्ग (Urethra)।
⚡ उत्सर्जन तंत्र के प्रमुख अंग एवं उनके कार्य
🟢 1. गुर्दे (Kidneys)
-
मानव शरीर में दो गुर्दे होते हैं, जो रीढ़ की हड्डी के दोनों ओर स्थित होते हैं।
-
इनके मुख्य कार्य हैं:
-
रक्त का परिशोधन करना।
-
यूरिया और अतिरिक्त लवणों को छानकर मूत्र बनाना।
-
शरीर का जल संतुलन बनाए रखना।
-
रक्तचाप नियंत्रित करने वाले हार्मोन (Renin) का निर्माण।
-
लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण हेतु एरिथ्रोपोएटिन (Erythropoietin) हार्मोन का स्रवण।
-
🔵 2. मूत्रवाहिनी (Ureters)
-
ये दो पतली नलियाँ होती हैं जो गुर्दों से मूत्र को मूत्राशय तक ले जाती हैं।
-
मूत्रवाहिनियाँ पेशीय संकुचन (Peristalsis) द्वारा मूत्र को नीचे की ओर धकेलती हैं।
🟣 3. मूत्राशय (Urinary Bladder)
-
यह एक थैलीनुमा अंग है जिसमें अस्थायी रूप से मूत्र संग्रहित होता है।
-
जब मूत्र पर्याप्त मात्रा में भर जाता है तो हमें मूत्रत्याग की इच्छा होती है।
🟠 4. मूत्रमार्ग (Urethra)
-
यह वह नली है जिससे मूत्र शरीर से बाहर निकलता है।
-
मूत्रमार्ग के अंत में स्फिंक्टर पेशियाँ (Sphincter Muscles) होती हैं जो मूत्रत्याग को नियंत्रित करती हैं।
🧠 गुर्दे की सूक्ष्म संरचना एवं कार्य (Nephron)
-
प्रत्येक गुर्दे में लगभग 10 लाख नेफ्रॉन होते हैं, जिन्हें गुर्दे की क्रियात्मक इकाई कहते हैं।
-
नेफ्रॉन के मुख्य भाग:
-
बोमैन कैप्सूल (Bowman’s Capsule): यहाँ रक्त का छानना (Filtration) होता है।
-
नलिकाएँ (Tubules): यहाँ जल, ग्लूकोज और आवश्यक लवण पुनः अवशोषित (Reabsorption) होते हैं।
-
संग्रह नलिका (Collecting Duct): यहाँ अपशिष्ट एकत्र होकर मूत्र के रूप में बाहर जाता है।
-
🌟 उत्सर्जन तंत्र के कार्य
💧 1. अपशिष्ट पदार्थों का निष्कासन (Excretion of Waste Products)
-
गुर्दे रक्त से यूरिया, यूरिक एसिड और क्रिएटिनिन जैसे हानिकारक अपशिष्ट छानकर बाहर निकालते हैं।
⚖️ 2. जल संतुलन बनाए रखना (Water Balance)
-
शरीर में जल की कमी या अधिकता को गुर्दे नियंत्रित करते हैं।
-
अधिक पसीने की स्थिति में मूत्र का निर्माण कम होता है।
🧂 3. लवण संतुलन (Salt Balance)
-
गुर्दे सोडियम, पोटैशियम, कैल्शियम आदि लवणों का स्तर नियंत्रित रखते हैं।
🩸 4. अम्ल-क्षार संतुलन (Acid-Base Balance)
-
रक्त का pH सामान्य (लगभग 7.4) बनाए रखने में गुर्दे की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
💉 5. रक्तचाप का नियंत्रण (Regulation of Blood Pressure)
-
गुर्दे रेनिन एंजाइम का स्रवण करते हैं, जो रक्तचाप को नियंत्रित करता है।
❤️ 6. हार्मोन स्रवण (Hormone Secretion)
-
एरिथ्रोपोएटिन (Erythropoietin): लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण को उत्तेजित करता है।
-
कैल्सिट्रायोल (Calcitriol): विटामिन D का सक्रिय रूप, जो हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
🛡️ 7. शरीर की रक्षा (Detoxification)
-
शरीर में बनने वाले हानिकारक पदार्थों को बाहर निकालकर गुर्दे शरीर को सुरक्षित रखते हैं।
📊 उत्सर्जन तंत्र के कार्यों का सारांश तालिका
कार्य | विवरण |
---|---|
अपशिष्ट निष्कासन | यूरिया, यूरिक एसिड, अमोनिया को बाहर निकालना |
जल संतुलन | शरीर में पानी की मात्रा नियंत्रित करना |
लवण संतुलन | सोडियम, पोटैशियम, कैल्शियम का स्तर बनाए रखना |
अम्ल-क्षार संतुलन | रक्त का pH संतुलित रखना |
रक्तचाप नियंत्रण | रेनिन एंजाइम द्वारा |
हार्मोन स्रवण | एरिथ्रोपोएटिन, कैल्सिट्रायोल |
शरीर की रक्षा | हानिकारक विषैले तत्वों का निष्कासन |
🌍 अन्य उत्सर्जन अंग
गुर्दों के अतिरिक्त शरीर के अन्य अंग भी आंशिक उत्सर्जन कार्य करते हैं:
-
त्वचा (Skin): पसीने के रूप में जल, लवण और यूरिया बाहर निकालती है।
-
फेफड़े (Lungs): कार्बन डाइऑक्साइड और जलवाष्प बाहर निकालते हैं।
-
यकृत (Liver): पित्त के माध्यम से वसा और मृत रक्त कोशिकाओं का अपघटन करता है।
🌟 मानव जीवन में उत्सर्जन तंत्र का महत्व
-
यदि उत्सर्जन तंत्र कार्य न करे तो शरीर विषैले तत्वों से भर जाएगा।
-
यह रक्त की शुद्धता बनाए रखता है।
-
शरीर का तरल एवं लवण संतुलन इसी से संभव है।
-
गुर्दे के रोग (किडनी फेल्योर) में डायलिसिस या गुर्दा प्रत्यारोपण (Kidney Transplant) करना पड़ता है।
✅ उपसंहार
मानव शरीर का उत्सर्जन तंत्र जीवन के लिए उतना ही आवश्यक है जितना श्वसन या रक्त संचार।
यह तंत्र शरीर से अनावश्यक और हानिकारक अपशिष्टों को निकालकर हमें स्वस्थ बनाए रखता है।
इसके बिना जीवन की कल्पना संभव नहीं है, क्योंकि अपशिष्टों का संचय शरीर को धीरे-धीरे नष्ट कर देता है।
इसलिए कहा जा सकता है कि उत्सर्जन तंत्र मानव शरीर का प्राकृतिक शुद्धिकरण तंत्र (Natural Purifier) है।
प्रश्न 07: यकृत के कार्यों का संक्षिप्त में वर्णन कीजिए।
🔹 प्रस्तावना
मानव शरीर प्रकृति का अद्भुत चमत्कार है। इसमें प्रत्येक अंग का अपना विशेष महत्व है।
इन्हीं अंगों में से एक है यकृत (Liver)।
यकृत को शरीर का सबसे बड़ा आंतरिक अंग (Largest Internal Organ) और सबसे बड़ा ग्रंथि (Largest Gland) कहा जाता है।
यह न केवल पाचन में सहायक है, बल्कि शरीर के चयापचय (Metabolism), विषहरण (Detoxification), रक्त संग्रहण, पोषण तत्त्वों का भंडारण आदि असंख्य कार्य करता है।
🧩 यकृत की स्थिति एवं संरचना
-
यकृत मानव शरीर में पेट के दाहिने ऊपरी भाग में स्थित होता है।
-
इसका वजन एक वयस्क व्यक्ति में लगभग 1.2 से 1.5 किलोग्राम तक होता है।
-
यह लाल-भूरे रंग का, मुलायम और त्रिकोणाकार संरचना वाला अंग है।
-
यकृत मुख्यतः दो भागों (Right & Left Lobes) में बँटा होता है।
-
इसकी कार्यात्मक इकाई हेपेटोसाइट्स (Hepatocytes) कहलाती है।
🌟 यकृत के मुख्य कार्य
🟢 1. पित्त रस का स्रवण (Secretion of Bile)
-
यकृत का सबसे प्रमुख कार्य है पित्त रस (Bile Juice) का निर्माण।
-
यह रस पित्ताशय (Gall Bladder) में संग्रहित होता है।
-
पित्त रस वसा (Fat) को छोटे-छोटे कणों में तोड़कर पचाने योग्य बनाता है।
-
इसमें उपस्थित पित्त लवण (Bile Salts) वसा के पाचन और अवशोषण में मदद करते हैं।
🔵 2. चयापचय का नियंत्रण (Control of Metabolism)
यकृत शरीर के Metabolism Center की तरह कार्य करता है।
-
कार्बोहाइड्रेट का चयापचय:
-
अतिरिक्त ग्लूकोज को ग्लाइकोजन के रूप में संग्रहित करता है।
-
आवश्यकता पड़ने पर ग्लाइकोजन को तोड़कर ग्लूकोज बनाता है (Glycogenolysis)।
-
-
प्रोटीन का चयापचय:
-
प्रोटीन के पाचन से बने अमीनो अम्लों का अपघटन करके यूरिया बनाता है।
-
-
वसा का चयापचय:
-
वसा को पचाने हेतु आवश्यक पित्त लवण बनाता है।
-
वसा अम्लों को ऊर्जा में परिवर्तित करता है।
-
🟣 3. विषहरण (Detoxification)
-
यकृत शरीर में प्रवेश करने वाले हानिकारक तत्वों, रसायनों और दवाओं को निष्क्रिय करता है।
-
शराब, नशीली दवाओं और विषैले पदार्थों को विघटित कर सुरक्षित रूप में बाहर निकालता है।
-
इसे शरीर का Natural Detoxifier कहा जाता है।
🟠 4. विटामिन एवं खनिजों का संग्रहण (Storage of Vitamins & Minerals)
यकृत शरीर के लिए आवश्यक कई पोषक तत्वों को संग्रहित करता है:
-
विटामिन A, D, E, K और B12 का भंडारण।
-
लौह (Iron) को फेरिटिन के रूप में संग्रहीत करना।
-
तांबा (Copper) का संग्रहण।
🟤 5. रक्त का शोधन एवं निर्माण (Purification and Formation of Blood)
-
यकृत भ्रूण अवस्था में रक्त निर्माण (Haemopoiesis) करता है।
-
वयस्क अवस्था में रक्त से हानिकारक पदार्थों को छानकर शुद्ध करता है।
-
यह मृत या क्षतिग्रस्त लाल रक्त कोशिकाओं (RBCs) को तोड़कर उनके उपयोगी भाग (Iron) को पुनः संग्रहित करता है।
⚖️ 6. रक्त का थक्का जमाने में सहायक (Role in Blood Clotting)
-
यकृत प्रोथ्रोम्बिन (Prothrombin) और फाइब्रिनोजेन (Fibrinogen) जैसे प्रोटीन का निर्माण करता है।
-
ये प्रोटीन रक्त का थक्का जमाने (Blood Clotting) में सहायक होते हैं और शरीर को रक्तस्राव से बचाते हैं।
💉 7. हार्मोन का संतुलन (Hormonal Balance)
-
यकृत इंसुलिन, थायरॉक्सिन और स्टेरॉयड हार्मोन का अपघटन और संतुलन बनाए रखता है।
-
यह शरीर में हार्मोनल स्थिरता (Hormonal Homeostasis) बनाए रखता है।
🩸 8. प्लाज़्मा प्रोटीन का निर्माण (Synthesis of Plasma Proteins)
-
यकृत एल्ब्यूमिन (Albumin) और ग्लोब्युलिन (Globulin) जैसे प्रोटीन बनाता है।
-
ये प्रोटीन रक्तचाप और रक्त के परासरण दाब (Osmotic Pressure) को नियंत्रित करते हैं।
🧂 9. ऊर्जा भंडारण (Energy Storage)
-
यकृत अतिरिक्त ग्लूकोज और वसा को संग्रहित करके आवश्यकता पड़ने पर ऊर्जा के रूप में उपयोग करता है।
-
उपवास की स्थिति में यह शरीर को आवश्यक ऊर्जा उपलब्ध कराता है।
🌍 10. रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity)
-
यकृत में उपस्थित कुप्फर कोशिकाएँ (Kupffer Cells) शरीर में प्रवेश करने वाले बैक्टीरिया और हानिकारक कणों को नष्ट करती हैं।
-
इस प्रकार यह शरीर की प्राकृतिक प्रतिरक्षा (Innate Immunity) को मजबूत करता है।
📊 यकृत के कार्यों का सारांश तालिका
क्र. | कार्य | विवरण |
---|---|---|
1 | पित्त रस का निर्माण | वसा के पाचन में सहायक |
2 | चयापचय का नियंत्रण | कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा का चयापचय |
3 | विषहरण | हानिकारक पदार्थों का निष्क्रियकरण |
4 | संग्रहण | विटामिन A, D, E, K, B12 एवं लौह, तांबा |
5 | रक्त शोधन | हानिकारक पदार्थों को हटाना |
6 | थक्का जमाना | प्रोथ्रोम्बिन और फाइब्रिनोजेन का निर्माण |
7 | हार्मोन संतुलन | इंसुलिन, थायरॉक्सिन, स्टेरॉयड का अपघटन |
8 | प्लाज़्मा प्रोटीन निर्माण | एल्ब्यूमिन और ग्लोब्युलिन का निर्माण |
9 | ऊर्जा भंडारण | ग्लाइकोजन और वसा का संग्रह |
10 | रोग प्रतिरोधक क्षमता | कुप्फर कोशिकाओं द्वारा बैक्टीरिया का विनाश |
🛑 यकृत विकार (Liver Disorders)
यदि यकृत स्वस्थ न रहे तो शरीर में कई रोग उत्पन्न हो सकते हैं:
-
पीलिया (Jaundice): रक्त में बिलीरुबिन की अधिकता।
-
सिरोसिस (Cirrhosis): शराब या विषैले पदार्थों के कारण यकृत का सिकुड़ना।
-
हेपेटाइटिस (Hepatitis): वायरल संक्रमण से यकृत की सूजन।
-
फैटी लिवर (Fatty Liver): वसा की अधिकता से यकृत का मोटा होना।
✅ उपसंहार
यकृत मानव शरीर का बहु-कार्यशील और जीवनदायी अंग है।
यह पाचन, चयापचय, विषहरण, रक्त शोधन, रोग प्रतिरोधक क्षमता, विटामिन संग्रहण जैसे अनेक कार्यों का केंद्र है।
यकृत के बिना जीवन की कल्पना असंभव है।
इसीलिए इसे शरीर का रासायनिक प्रयोगशाला (Chemical Factory of Body) कहा जाता है।
प्रश्न 08: फेफड़ों की संरचना एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
🔹 प्रस्तावना
मानव शरीर में श्वसन तंत्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।
श्वसन क्रिया द्वारा शरीर को प्राणवायु (ऑक्सीजन) प्राप्त होती है और कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकलती है।
इस जटिल प्रक्रिया का मुख्य केंद्र है फेफड़े (Lungs)।
फेफड़े जीवन के लिए अत्यावश्यक अंग हैं क्योंकि इनके बिना श्वसन की प्रक्रिया संभव नहीं है।
इन्हें शरीर का श्वसन यंत्र (Respiratory Organ) कहा जाता है।
🧩 फेफड़ों की स्थिति एवं आकार
-
फेफड़े छाती की गुहा (Thoracic Cavity) में स्थित होते हैं।
-
ये हृदय के दोनों ओर पाए जाते हैं।
-
दायाँ फेफड़ा (Right Lung): आकार में बड़ा और तीन खण्डों (Lobes) में विभाजित।
-
बायाँ फेफड़ा (Left Lung): आकार में छोटा और केवल दो खण्डों (Lobes) में विभाजित, ताकि हृदय को स्थान मिल सके।
-
फेफड़े शंक्वाकार (Cone-shaped), स्पंजी (Spongy) और गुलाबी रंग के अंग होते हैं।
-
इनका वजन वयस्क में लगभग 1.1 से 1.3 किलोग्राम तक होता है।
🩺 फेफड़ों की संरचना (Structure of Lungs)
🟢 1. श्वासनली (Trachea) और श्वसन वृक्ष (Bronchial Tree)
-
वायु सबसे पहले श्वासनली (Windpipe) से होकर फेफड़ों में प्रवेश करती है।
-
श्वासनली दो भागों में विभाजित होकर Bronchi बनाती है – एक दाएँ फेफड़े में और दूसरा बाएँ फेफड़े में प्रवेश करता है।
-
ब्रॉन्काई छोटे-छोटे नलिकाओं (Bronchioles) में विभाजित होती हैं।
🔵 2. अल्वियोली (Alveoli)
-
ब्रॉन्किओल्स के अंत में छोटे-छोटे गुच्छेदार थैलीनुमा संरचनाएँ होती हैं जिन्हें Alveoli कहते हैं।
-
प्रत्येक फेफड़े में लगभग 30 करोड़ अल्वियोली होती हैं।
-
यही श्वसन की मूल इकाई हैं, जहाँ गैसों का आदान-प्रदान (Exchange of Gases) होता है।
🟣 3. केशिकाएँ (Capillaries)
-
प्रत्येक अल्वियोली को अति सूक्ष्म रक्त वाहिकाएँ घेरे रहती हैं।
-
यही केशिकाएँ ऑक्सीजन को रक्त में और कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालने में सहायक होती हैं।
🟠 4. प्लूरा (Pleura)
-
फेफड़े दोहरी झिल्ली (Double Membrane) से ढके रहते हैं, जिसे प्लूरा कहते हैं।
-
इनके बीच प्लूरल द्रव (Pleural Fluid) भरा रहता है जो फेफड़ों को चलने-फिरने में सहूलियत देता है और रगड़ से बचाता है।
🌟 फेफड़ों के कार्य (Functions of Lungs)
🟢 1. ऑक्सीजन का अवशोषण (Absorption of Oxygen)
-
फेफड़े वातावरण से शुद्ध वायु ग्रहण करते हैं।
-
अल्वियोली में ऑक्सीजन रक्त की लाल रक्त कोशिकाओं (RBCs) से जुड़कर ऑक्सीहीमोग्लोबिन बनाती है।
-
यह ऑक्सीजन पूरे शरीर के कोशिकाओं तक पहुँचाई जाती है।
🔵 2. कार्बन डाइऑक्साइड का निष्कासन (Removal of Carbon Dioxide)
-
शरीर की कोशिकाओं द्वारा बनने वाली अपशिष्ट गैस CO₂ रक्त के माध्यम से फेफड़ों तक पहुँचती है।
-
अल्वियोली से यह बाहर निकलकर श्वास द्वारा वातावरण में उत्सर्जित होती है।
🟣 3. गैसों का आदान-प्रदान (Exchange of Gases)
-
फेफड़ों की सबसे बड़ी भूमिका है ऑक्सीजन ग्रहण करना और कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ना।
-
यह प्रक्रिया सरल विसरण (Diffusion) द्वारा होती है।
-
इसे श्वसन की मूल प्रक्रिया कहा जाता है।
🟠 4. अम्ल-क्षार संतुलन बनाए रखना (Maintaining Acid-Base Balance)
-
फेफड़े रक्त में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को नियंत्रित करके शरीर के pH स्तर (7.35–7.45) को संतुलित रखते हैं।
-
इस प्रकार यह अम्ल-क्षार संतुलन बनाए रखने में सहायक होते हैं।
🟤 5. रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity)
-
फेफड़ों में उपस्थित मैक्रोफेज कोशिकाएँ (Alveolar Macrophages) हानिकारक जीवाणुओं, धूलकणों और प्रदूषकों को नष्ट करती हैं।
-
इससे शरीर को श्वसन संबंधी रोगों से बचाव मिलता है।
⚖️ 6. रक्त दाब का नियंत्रण (Regulation of Blood Pressure)
-
फेफड़े एंजियोटेंसिन कन्वर्टिंग एंजाइम (ACE) का उत्पादन करते हैं।
-
यह एंजाइम रक्तचाप को नियंत्रित करने में सहायक होता है।
💧 7. जलवाष्प का उत्सर्जन (Exhalation of Water Vapour)
-
श्वसन प्रक्रिया के दौरान फेफड़ों से जलवाष्प (Water Vapour) भी बाहर निकलती है।
-
इससे शरीर के तापमान का संतुलन बनाए रखने में सहायता मिलती है।
🧪 8. विषैले पदार्थों का निष्कासन (Excretion of Toxins)
-
फेफड़े कार्बन डाइऑक्साइड के साथ-साथ कुछ हद तक अन्य गैसीय अपशिष्टों को भी बाहर निकालते हैं।
-
इस प्रकार यह उत्सर्जन तंत्र का एक सहायक अंग भी माना जाता है।
📊 फेफड़ों के कार्यों का सारांश तालिका
क्र. | कार्य | विवरण |
---|---|---|
1 | ऑक्सीजन अवशोषण | वातावरण से ऑक्सीजन लेकर रक्त में पहुँचाना |
2 | CO₂ निष्कासन | शरीर की अपशिष्ट गैस को बाहर निकालना |
3 | गैसों का आदान-प्रदान | अल्वियोली व केशिकाओं में O₂ और CO₂ का विनिमय |
4 | pH संतुलन | रक्त का अम्ल-क्षार स्तर नियंत्रित करना |
5 | प्रतिरक्षा | हानिकारक जीवाणुओं और धूलकणों को नष्ट करना |
6 | रक्तचाप नियंत्रण | ACE एंजाइम द्वारा BP संतुलन |
7 | जलवाष्प उत्सर्जन | श्वास के साथ जलवाष्प बाहर निकालना |
8 | विषहरण | कुछ गैसीय अपशिष्ट पदार्थों का उत्सर्जन |
🛑 फेफड़ों के सामान्य रोग (Common Lung Disorders)
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अस्थमा (Asthma): श्वसन नलिकाओं की संकुचन से श्वास में कठिनाई।
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ब्रोंकाइटिस (Bronchitis): ब्रॉन्काई की सूजन।
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क्षय रोग (Tuberculosis): फेफड़ों में जीवाणु संक्रमण।
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निमोनिया (Pneumonia): संक्रमण से फेफड़ों में तरल भरना।
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फेफड़ों का कैंसर (Lung Cancer): धूम्रपान एवं प्रदूषण से।
✅ उपसंहार
फेफड़े मानव शरीर का अत्यंत महत्वपूर्ण अंग हैं।
इनका मुख्य कार्य जीवनदायी ऑक्सीजन को शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पहुँचाना और अपशिष्ट गैसों को बाहर निकालना है।
साथ ही ये शरीर के pH, रक्तचाप और प्रतिरक्षा प्रणाली को भी संतुलित रखते हैं।
फेफड़ों के बिना जीवन संभव नहीं है, इसलिए इन्हें प्रकृति ने “प्राणों का आधार” बनाया है।
फेफड़ों को स्वस्थ रखने हेतु हमें धूम्रपान से बचना, प्रदूषण से दूर रहना और शुद्ध वायु में नियमित व्यायाम करना चाहिए।