UOU AECC-E-101 Business Communication Solved Paper for BA 1st, 2nd & 3rd Semester | Feb–March 2025 | Uttarakhand Open University

  

AECC-E-101 BUSINESS COMMUNICATION

AECC-E-101 Business Communication  Solved Paper for BA 1st, 2nd & 3rd Semester | Feb–March 2025 | Uttarakhand Open University


AECC-E-101: बिज़नेस कम्युनिकेशन विषय उत्तराखंड ओपन यूनिवर्सिटी (UOU) के बी.ए. पाठ्यक्रम में एक वैकल्पिक AECC (Ability Enhancement Compulsory Course) विषय के रूप में उपलब्ध है। यह विषय BA के 1st, 2nd, या 3rd सेमेस्टर में से किसी एक में पढ़ाया जाता है, और यह सभी छात्रों के लिए अनिवार्य नहीं होता। छात्र AECC के 6 विकल्पों में से केवल एक विषय चुन सकते हैं — जैसे AECC-E-101, AECC-H-101, AECC-K-101 आदि।

यह पोस्ट विशेष रूप से Feb–March 2025 परीक्षा सत्र में AECC-E-101 विषय को चुनने वाले छात्रों के लिए तैयार किया गया है। इसमें बिज़नेस कम्युनिकेशन के सॉल्व्ड प्रश्न पत्र दिए गए हैं, जो परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे।


📌 इस पोस्ट में आपको मिलेगा:

  • AECC-E-101 का Feb–March 2025 सत्र का प्रश्न पत्र

  • प्रत्येक प्रश्न का सरल और सटीक उत्तर

  • परीक्षा की तैयारी के लिए महत्वपूर्ण टिप्स



प्रश्न 01. उपयुक्त उदाहरण देकर संचार के प्रकारों पर चर्चा कीजिए। 

उत्तर: 


संचार के प्रकार

संचार का अर्थ है जानकारी, विचार, भावनाओं या संदेशों का आदान-प्रदान। यह जीवन का अभिन्न हिस्सा है, चाहे व्यक्तिगत हो या व्यावसायिक। संचार के विभिन्न प्रकार होते हैं, जिन्हें समझना आवश्यक है ताकि हम प्रभावी रूप से संवाद कर सकें। संचार के मुख्य प्रकार चार हैं:

1. मौखिक संचार

2. गैर मौखिक संचार

3. लिखित संचार

4. दृश्य संचार

आइए प्रत्येक प्रकार को उपयुक्त उदाहरण के साथ समझते हैं।


1. मौखिक संचार (Verbal Communication)

मौखिक संचार वह प्रक्रिया है जिसमें शब्दों का प्रयोग करके बातचीत की जाती है। इसमें आवाज के माध्यम से जानकारी का आदान-प्रदान होता है। यह सबसे सामान्य और प्रभावी संचार का तरीका है।

उदाहरण:

  • कक्षा में शिक्षक का छात्रों को पढ़ाना

  • ऑफिस में सहकर्मियों के बीच मीटिंग

  • घर में परिवार के सदस्यों के बीच बातचीत

  • फोन कॉल के माध्यम से मित्रों या रिश्तेदारों से बात करना

मौखिक संचार में भाषा, स्वर, लहजा और उच्चारण का विशेष महत्व होता है। इसे हम दो तरह से समझ सकते हैं:

  • सामना-सामना संचार (Face-to-Face Communication): जैसे कि दोस्ताना बातचीत, इंटरव्यू आदि।

  • दूरस्थ संचार (Remote Communication): जैसे फोन पर बातचीत, वीडियो कॉल आदि।


2. गैर-मौखिक संचार (Non-Verbal Communication)

गैर-मौखिक संचार वह होता है जिसमें बिना बोले, केवल शारीरिक हाव-भाव, चेहरे के भाव, इशारे, शरीर की भाषा और आवाज के टोन के माध्यम से संदेश दिया जाता है। यह शब्दों के बिना भावनाओं और विचारों को व्यक्त करने का प्रभावी तरीका है।

उदाहरण:

  • जब कोई व्यक्ति मुस्कुराता है तो वह दोस्ताना भाव दिखाता है।

  • किसी की आँखों से टकटकी लगाकर देखना मतलब ध्यान देना।

  • सिर हिलाना (हाँ या ना संकेत देना)।

  • गुस्से में भौंहें तनी होना।

  • हाथ मिलाना (शुभकामना या सहमति दिखाने के लिए)।

गैर-मौखिक संचार भाषा की तुलना में अधिक प्रामाणिक माना जाता है क्योंकि लोग अपनी भावनाओं को छिपा नहीं पाते। इस प्रकार के संचार से हम दूसरों की मनोदशा और भावनाओं को भी समझ सकते हैं।


3. लिखित संचार (Written Communication)

लिखित संचार में संदेश को शब्दों के माध्यम से लिखित रूप में प्रेषित किया जाता है। इसमें पत्र, ईमेल, नोट्स, रिपोर्ट, मेमो, विज्ञापन आदि शामिल हैं। यह संचार का एक स्थायी और रिकॉर्ड रखने योग्य माध्यम है।

उदाहरण:

  • स्कूल में होमवर्क के लिए नोट लिखना।

  • ऑफिस में किसी कर्मचारी को आदेश या सूचना देना।

  • ग्राहक को बिल या चालान भेजना।

  • सोशल मीडिया पोस्ट या ब्लॉग लिखना।

  • सरकारी कार्यालयों में आवेदन पत्र देना।

लिखित संचार में स्पष्टता, सटीकता और व्याकरण का विशेष ध्यान रखना होता है क्योंकि गलत लिखावट से संदेश का अर्थ बदल सकता है। यह संचार प्रकार दूर-दूर तक प्रभावी होता है क्योंकि संदेश लंबे समय तक सुरक्षित रहता है।


4. दृश्य संचार (Visual Communication)

दृश्य संचार का मतलब है चित्र, प्रतीक, चार्ट, ग्राफ, नक्शा आदि के माध्यम से संदेश देना। यह संचार के आधुनिक और प्रभावी तरीकों में से एक है, खासकर जब जटिल जानकारियों को सरल और रोचक तरीके से प्रस्तुत करना हो।

उदाहरण:

  • स्कूल में पढ़ाई के लिए चार्ट और मॉडल बनाना।

  • ऑफिस में रिपोर्ट में ग्राफ और टेबल का उपयोग।

  • सड़क पर लगे यातायात के संकेत।

  • टीवी विज्ञापन और पोस्टर।

  • पावरपॉइंट प्रेजेंटेशन में स्लाइड्स।

दृश्य संचार समझने में आसान होता है और यह जानकारी को जल्दी प्रभावी तरीके से पहुंचाता है।


संचार के प्रकारों का महत्व

संचार का उद्देश्य केवल जानकारी देना नहीं, बल्कि सही अर्थ में संदेश पहुंचाना भी होता है। अलग-अलग परिस्थितियों और जरूरतों के अनुसार संचार का प्रकार चुना जाता है।

  • मौखिक संचार तत्काल प्रतिक्रिया और स्पष्टता के लिए उपयुक्त है।

  • गैर-मौखिक संचार भावनाओं को समझने और व्यक्त करने में सहायक होता है।

  • लिखित संचार महत्वपूर्ण सूचनाओं को रिकॉर्ड करने और दूर-दूर तक प्रसारित करने के लिए जरूरी है।

  • दृश्य संचार जटिल तथ्यों को सरल और प्रभावी रूप में प्रस्तुत करता है।


संचार के उदाहरण के माध्यम से समझ

मान लीजिए एक स्कूल में शिक्षक अपने छात्रों को आगामी परीक्षा के बारे में सूचना देना चाहते हैं।

  • वह मौखिक संचार में कक्षा में छात्रों को बताता है।

  • अपने चेहरे के हाव-भाव और आवाज की टोन के माध्यम से (गंभीर या उत्साहित) गैर-मौखिक संचार करता है।

  • परीक्षा कार्यक्रम का एक नोट लिखित रूप में देता है, जो लिखित संचार है।

  • परीक्षा के विषय और दिनांक का एक चार्ट कक्षा में लगाता है, जो दृश्य संचार है।

इस प्रकार शिक्षक सभी प्रकार के संचार का उपयोग करके संदेश को प्रभावी रूप से पहुंचाता है।


निष्कर्ष

संचार के ये चार मुख्य प्रकार हमारे जीवन के हर क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एक अच्छा वक्ता वही होता है जो इन संचार के प्रकारों का सही प्रयोग करके अपने विचारों को प्रभावी और स्पष्ट रूप से प्रस्तुत कर सके। आज की तेजी से बदलती दुनिया में विभिन्न संचार माध्यमों का ज्ञान और सही उपयोग हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है ताकि वह व्यक्तिगत, सामाजिक और व्यावसायिक जीवन में सफल हो सके।



प्रश्न 02. गैर-मौखिक संचार और इसके प्रकारों पर एक नोट लिखिए।

उत्तर: 

गैर-मौखिक संचार और इसके प्रकार

गैर-मौखिक संचार वह प्रक्रिया है जिसमें बिना शब्दों का उपयोग किए, केवल शारीरिक हाव-भाव, चेहरे के भाव, इशारे, और आवाज के स्वर से संदेश भेजा या प्राप्त किया जाता है। यह संचार का एक महत्वपूर्ण प्रकार है क्योंकि कभी-कभी शब्दों से ज्यादा हमारी बॉडी लैंग्वेज और भावनाएं प्रभावी ढंग से संदेश पहुंचाती हैं।


गैर-मौखिक संचार के प्रकार

  1. शारीरिक हाव-भाव (Body Language)
    इसमें शरीर की मुद्रा, हाथ-पैर की चाल, और अन्य शारीरिक आंदोलनों का प्रयोग होता है। जैसे, हाथ मिलाना, सिर हिलाना, चलना-फिरना आदि। यह आत्मविश्वास, उत्साह या निराशा को दर्शाते हैं।

  2. चेहरे के भाव (Facial Expressions)
    चेहरे पर मुस्कान, गुस्सा, चिंता या आश्चर्य जैसे भाव व्यक्ति की मानसिक स्थिति को दर्शाते हैं। चेहरे के भाव दुनिया की लगभग सभी भाषाओं में समझे जाते हैं।

  3. आंखों का संपर्क (Eye Contact)
    किसी से नजर मिलाकर बात करना विश्वास और ध्यान को दर्शाता है। आँखें झुकाना या टकटकी लगाना अलग-अलग भावों को प्रकट करता है।

  4. स्पर्श (Touch)
    हाथ मिलाना, गले लगाना या थपथपाना जैसे स्पर्श संवाद में अपनापन या सहानुभूति दर्शाते हैं।

  5. शारीरिक दूरी (Proxemics)
    किसी के साथ कितनी दूरी बनाए रखना है, यह भी संदेश देता है। जैसे, दोस्ताना बातचीत में नजदीक रहना और औपचारिक मुलाकात में दूरी बनाए रखना।

  6. आवाज के स्वर और टोन (Paralanguage)
    बोलते समय आवाज की तीव्रता, उतार-चढ़ाव, धीमी या तेज बोलना, हंसी-ठिठोली जैसे स्वर भी संचार का हिस्सा होते हैं।

  7. वस्त्र और सजावट (Appearance)
    पहनावा, गहने, और शरीर की सजावट भी गैर-मौखिक संचार का हिस्सा होती हैं जो व्यक्ति की पहचान, भावनाएं या सामाजिक स्थिति दर्शाती हैं।


निष्कर्ष

गैर-मौखिक संचार शब्दों से परे हमारी भावनाओं, विचारों और मनोदशा को व्यक्त करने का शक्तिशाली माध्यम है। यह संचार का वह रूप है जो अक्सर ज्यादा प्रभावी और सटीक होता है क्योंकि इसमें झूठ या भ्रम की संभावना कम होती है। व्यक्तिगत और व्यावसायिक दोनों जीवन में गैर-मौखिक संकेतों को समझना और सही उपयोग करना आवश्यक है।



प्रश्न 03. संचार के विभिन्न नॉडलों की व्याख्या कीजिए।

संचार के विभिन्न मॉडल की व्याख्या

संचार को बेहतर ढंग से समझने के लिए विभिन्न विद्वानों ने संचार मॉडल (Communication Models) विकसित किए हैं। ये मॉडल यह समझाने का प्रयास करते हैं कि संचार कैसे होता है, कौन-कौन से तत्व इसमें शामिल होते हैं, और संदेश कैसे प्रेषित व ग्रहण किया जाता है। नीचे प्रमुख संचार मॉडलों की व्याख्या दी गई है:


1. शैनन और वीवर मॉडल (Shannon and Weaver Model – 1949)

यह पहला वैज्ञानिक संचार मॉडल माना जाता है।

घटक:

  • सूत्र (Sender) – जो संदेश भेजता है

  • संदेश (Message) – जो जानकारी भेजी जा रही है

  • प्रेषक (Transmitter) – संदेश को संकेत में बदलता है (जैसे माइक)

  • माध्यम (Channel) – जैसे रेडियो तरंग, तार

  • ग्रहणकर्ता (Receiver) – जो संकेत को फिर से शब्दों में बदलता है

  • श्रोता (Destination) – जिसे संदेश प्राप्त होता है

  • शोर (Noise) – जो संचार में बाधा उत्पन्न करता है

उदाहरण:

रेडियो स्टेशन से समाचार का प्रसारण – माइक, तरंगें, रेडियो सेट, और बीच में आने वाला शोर।


2. बर्लो का संचार मॉडल (Berlo’s SMCR Model – 1960)

SMCR का अर्थ है – Source, Message, Channel, Receiver

घटक:

  • Source (स्रोत) – व्यक्ति जो विचार देता है

  • Message (संदेश) – विचार, भावना या सूचना

  • Channel (माध्यम) – संवेदी अंग (जैसे कान, आँखें, त्वचा)

  • Receiver (ग्रहणकर्ता) – जो संदेश को समझता है

विशेषता:

यह मॉडल संचार में स्रोत और प्राप्तकर्ता की स्किल, दृष्टिकोण, सामाजिक व्यवस्था आदि पर बल देता है।

उदाहरण:

एक शिक्षक (Source) छात्रों को बोलकर पढ़ाता है (Message), छात्र उसे सुनते हैं (Channel), और समझते हैं (Receiver)।


3. श्राम का मॉडल (Schramm’s Model – 1954)

विल्बर श्राम ने यह मॉडल संचार को परस्पर संवादात्मक (interactive) रूप में समझाने के लिए प्रस्तुत किया।

विशेषता:

  • इसमें Encoder-Interpreter-Decoder का विचार है।

  • संदेश भेजने और प्राप्त करने वाले दोनों एक-दूसरे के स्थान पर हो सकते हैं।

  • इसमें अनुक्रिया (Feedback) और अनुभव का क्षेत्र (Field of Experience) महत्वपूर्ण हैं।

उदाहरण:

दो लोग बातचीत कर रहे हैं – एक बोलता है, दूसरा सुनता है, फिर दूसरा जवाब देता है। दोनों के अनुभव और समझ की समानता संवाद को सफल बनाती है।


4. लैसवेल का मॉडल (Lasswell’s Model – 1948)

यह मॉडल राजनीतिक संचार के संदर्भ में विकसित हुआ था। इसमें पाँच प्रश्न पूछे जाते हैं:

"Who says What in Which Channel to Whom with What Effect?"

घटक:

  • Who – संचारक

  • Says What – संदेश

  • In Which Channel – माध्यम

  • To Whom – प्राप्तकर्ता

  • With What Effect – प्रभाव

उदाहरण:

एक नेता (Who) भाषण देता है (What) टीवी पर (Channel), जनता (Whom) उसे सुनती है और वोट देती है (Effect)।


5. डेविड बर्लो और इंटरैक्टिव मॉडल (Interactive Model)

इस मॉडल में फीडबैक (प्रतिक्रिया) और संदर्भ (Context) को जोड़ा गया। यह दिखाता है कि संचार एकतरफा नहीं बल्कि द्विपक्षीय प्रक्रिया है।

उदाहरण:

अगर कोई व्यक्ति व्हाट्सएप पर मैसेज भेजता है और दूसरा 'ठीक है' उत्तर देता है, तो यह एक इंटरैक्टिव प्रक्रिया है।


निष्कर्ष:

विभिन्न संचार मॉडल हमें यह समझने में मदद करते हैं कि संचार प्रक्रिया कैसे काम करती है, किन कारकों का प्रभाव पड़ता है, और संचार की बाधाएं क्या हो सकती हैं। हर मॉडल की अपनी विशेषता और सीमा होती है।

मॉडल का नामविशेषता
शैनन-वीवरतकनीकी, रैखिक मॉडल, शोर का विचार
बर्लो का SMCRस्रोत, संदेश, माध्यम और ग्रहणकर्ता पर बल
श्राम का मॉडलअनुभव और फीडबैक पर जोर
लैसवेल का मॉडलराजनीतिक और प्रचारात्मक संचार में उपयोगी
इंटरैक्टिव मॉडलदो-तरफा संचार को दर्शाता है


प्रश्न 04. समूह संचार क्या है? समस्या को प्रभावी ढंग से हल करने में समूह की क्या भूमिका होती है.


समूह संचार क्या है?

समूह संचार (Group Communication) एक प्रकार का संचार है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति किसी सामान्य उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए विचारों, सूचनाओं और भावनाओं का आदान-प्रदान करते हैं। यह संचार तब होता है जब कोई व्यक्ति एक समूह को संबोधित करता है या जब समूह के सदस्य आपस में बातचीत करते हैं।

समूह संचार के उदाहरण:

  • कक्षा में शिक्षक और छात्र की चर्चा

  • किसी संस्था की बैठक

  • टीम मीटिंग

  • परिवार के सदस्यों के बीच विचार-विमर्श

  • व्हाट्सएप ग्रुप पर संदेशों का आदान-प्रदान


समूह संचार की विशेषताएँ:

  1. सदस्यों की सहभागिता – सभी सदस्य सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।

  2. सामूहिक उद्देश्य – समूह का कोई न कोई साझा लक्ष्य होता है।

  3. आमने-सामने या डिजिटल संवाद – संचार व्यक्तिगत रूप से या ऑनलाइन हो सकता है।

  4. फीडबैक की उपस्थिति – तुरंत प्रतिक्रिया मिलती है, जिससे संचार प्रभावशाली होता है।

  5. नेतृत्व की भूमिका – अक्सर समूह में कोई एक नेता होता है जो दिशा देता है।


समस्या को प्रभावी ढंग से हल करने में समूह की भूमिका

समूह किसी भी समस्या को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि इसमें विविध दृष्टिकोण, अनुभव और विचारों का समावेश होता है।

1. विभिन्न दृष्टिकोणों का समावेश

समूह के हर सदस्य की अलग सोच होती है। जब कोई समस्या आती है तो हर व्यक्ति अपना सुझाव देता है, जिससे कई संभावित समाधान सामने आते हैं।

2. निर्णय लेने में सहायता

समूह चर्चा से विचारों की तुलना कर सही निर्णय लिया जा सकता है। सामूहिक निर्णय ज़्यादा संतुलित और प्रभावशाली होता है।

3. रचनात्मकता और नवाचार

समूह में विचारों के टकराव से नई सोच और रचनात्मक समाधान निकलते हैं। यह नवाचार को बढ़ावा देता है।

4. कार्य विभाजन और सहयोग

समस्या को हल करने के लिए समूह में कार्य बाँट दिए जाते हैं, जिससे काम जल्दी और सही ढंग से होता है।

5. प्रेरणा और समर्थन

समूह के सदस्य एक-दूसरे को प्रेरणा और सहयोग प्रदान करते हैं, जिससे काम करने की ऊर्जा और आत्मविश्वास बढ़ता है।

6. आलोचनात्मक सोच और सुधार

समूह में विचारों की आलोचना की जाती है और फिर उन्हें बेहतर बनाया जाता है। इससे समस्या का बेहतर हल निकलता है।


निष्कर्ष:

समूह संचार न केवल विचारों को साझा करने का माध्यम है, बल्कि यह किसी भी समस्या को मिलकर हल करने का सशक्त तरीका भी है। जब लोग मिलकर संवाद करते हैं, विचारों का आदान-प्रदान करते हैं और मिलकर निर्णय लेते हैं, तो समस्याएँ सरल और प्रभावी तरीके से हल हो जाती हैं। अतः समूह संचार का समाज, संगठन और शिक्षा जैसे हर क्षेत्र में अत्यधिक महत्व है।


प्रश्न 05. लिखित संचार में कुछ सामान्य अवरोधों का वर्णन कीजिए और उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है?

लिखित संचार (Written Communication) वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने विचारों, भावनाओं या सूचनाओं को शब्दों के रूप में लिखकर व्यक्त करता है, जैसे – पत्र, ई-मेल, रिपोर्ट, नोटिस, अनुबंध, लेख आदि। यह संचार स्थायी होता है और भविष्य के लिए रिकॉर्ड के रूप में भी उपयोगी होता है।

हालांकि, लिखित संचार में कई प्रकार की अवरोधक (Barriers) उत्पन्न हो सकती हैं, जो संदेश की स्पष्टता और प्रभावशीलता को प्रभावित करती हैं।


लिखित संचार में सामान्य अवरोध:

1. भाषागत अवरोध (Language Barrier):

  • कठिन, अस्पष्ट या तकनीकी शब्दों का प्रयोग पाठक के लिए समझने में कठिनाई उत्पन्न करता है।

  • व्याकरणिक त्रुटियाँ भी अर्थ का अनर्थ कर सकती हैं।

उदाहरण:
"कंपनी के उपादेयता विश्लेषण का अनुकलन..." – इस तरह के कठिन शब्दों से पाठक भ्रमित हो सकता है।

समाधान:

  • सरल, स्पष्ट और संक्षिप्त भाषा का प्रयोग करें।

  • टार्गेट पाठक की भाषा और समझ के स्तर के अनुसार लेखन करें।


2. संरचना की अस्पष्टता (Lack of Proper Structure):

  • यदि दस्तावेज़ में उचित प्रारंभ, मध्य और निष्कर्ष न हो, तो संदेश अधूरा या उलझा हुआ लगता है।

समाधान:

  • लेखन से पहले रूपरेखा तैयार करें।

  • पैराग्राफ और बुलेट्स का उपयोग करके सामग्री को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करें।


3. प्रतिक्रिया की अनुपस्थिति (Lack of Feedback):

  • लिखित संचार में तुरंत फीडबैक नहीं मिलता, जिससे यह पता नहीं चलता कि पाठक ने संदेश को सही समझा या नहीं।

समाधान:

  • संदेश के अंत में फीडबैक या प्रतिक्रिया की अपेक्षा ज़ाहिर करें।

  • महत्वपूर्ण संदेश भेजने के बाद पुष्टि प्राप्त करें (जैसे: "कृपया पुष्टि करें कि आपको ई-मेल प्राप्त हुआ।")


4. लंबा और जटिल लेखन (Too Lengthy or Complex Message):

  • बहुत अधिक विवरण या लंबा लेखन पाठक की रुचि को कम कर सकता है।

समाधान:

  • विषयवस्तु को आवश्यकतानुसार संक्षिप्त करें।

  • मुख्य बिंदुओं को हाइलाइट करें और आवश्यकतानुसार उपशीर्षक प्रयोग करें।


5. प्रूफ रीडिंग की कमी (Lack of Proofreading):

  • टाइपो, वर्तनी और व्याकरण की गलतियाँ संचार की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं।

समाधान:

  • लेखन के बाद एक बार अवश्य पढ़ें और सुधार करें।

  • आवश्यक हो तो किसी अन्य व्यक्ति से भी पढ़वाएँ।


6. सांस्कृतिक या संदर्भगत अंतर (Cultural/Contextual Barriers):

  • अगर पाठक अलग सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से है, तो कुछ शब्द या अभिव्यक्तियाँ उसे अपमानजनक या अस्वीकार्य लग सकती हैं।

समाधान:

  • पाठक के संदर्भ और पृष्ठभूमि को ध्यान में रखकर लेखन करें।

  • सार्वभौमिक और सम्मानजनक भाषा का प्रयोग करें।


निष्कर्ष:

लिखित संचार एक प्रभावशाली माध्यम है, लेकिन यदि इसमें अवरोध उत्पन्न हो जाएँ तो संदेश की स्पष्टता और प्रभाव दोनों पर विपरीत असर पड़ता है।
इन अवरोधों को दूर करने के लिए – सही भाषा, स्पष्ट संरचना, फीडबैक की व्यवस्था, संक्षिप्तता, प्रूफ रीडिंग और पाठक की संवेदनशीलता का ध्यान रखना आवश्यक है। इस प्रकार लिखित संचार को अधिक प्रभावशाली और बोधगम्य बनाया जा सकता है। 

DECEMBER 2023 सॉल्व्ड पेपर यहां देखें।


खंड (ख) 


प्रश्न 01: जार्गन या तकनीकी शब्दों का उपयोग संचार अवरोध कैसे उत्पन्न करता है?


परिचय:
संचार का मूल उद्देश्य होता है—सूचना, विचारों और भावनाओं का आदान-प्रदान। जब संचार प्रक्रिया में ऐसे शब्दों का उपयोग किया जाता है जो केवल किसी विशेष क्षेत्र, व्यवसाय या समुदाय के लोग ही समझते हैं, तो उन्हें 'जार्गन' या 'तकनीकी शब्द' कहा जाता है। यह शब्द आम जनमानस के लिए अक्सर कठिन और अस्पष्ट होते हैं। ऐसे शब्दों का अत्यधिक या अनुचित प्रयोग संचार में अवरोध उत्पन्न करता है।


1. जार्गन या तकनीकी शब्द की परिभाषा:
जार्गन उन शब्दों, वाक्यांशों या संक्षेपों को कहा जाता है जो किसी विशेष पेशे या समूह द्वारा उपयोग किए जाते हैं। जैसे—IT क्षेत्र में “API”, “Cloud Computing”, “Firewall”, चिकित्सा क्षेत्र में “Hypertension”, “MRI”, “Biopsy” आदि।


2. संचार में जार्गन के उपयोग से उत्पन्न अवरोध:

(क) समझ में कठिनाई:
जब श्रोता उन शब्दों से अपरिचित होता है, तो वह पूरे संदेश को समझने में असमर्थ रहता है। इससे संदेश का प्रभाव नष्ट हो जाता है।

(ख) संदेश की अस्पष्टता:
तकनीकी शब्द संप्रेषण को जटिल बनाते हैं, जिससे मूल अर्थ गुम हो जाता है या विकृत हो सकता है।

(ग) श्रोता की भागीदारी में कमी:
अगर व्यक्ति बात को नहीं समझता, तो वह बातचीत में रुचि नहीं लेता और संवाद निष्क्रिय हो जाता है।

(घ) सांस्कृतिक या शैक्षिक दूरी:
सभी लोगों की पृष्ठभूमि समान नहीं होती। यदि कोई विशेषज्ञ भाषा में बोले, और सामने वाला सामान्य श्रोता हो, तो यह दूरी बढ़ जाती है।

(ङ) अहंकार और वर्चस्व का बोध:
कुछ लोग जानबूझकर कठिन शब्दों का प्रयोग करते हैं जिससे सामने वाले को कमतर महसूस हो और संवाद में असहजता उत्पन्न हो।


3. उदाहरण:

  • यदि एक डॉक्टर किसी ग्रामीण मरीज से कहे: "आपको हाइपरटेंशन और थायरॉइड की समस्या है," तो मरीज समझ नहीं पाएगा। लेकिन यदि डॉक्टर यही कहे: "आपको उच्च रक्तचाप और गले की ग्रंथि से संबंधित परेशानी है," तो संदेश स्पष्ट होगा।

  • तकनीकी कंपनियों में, यदि एक इंजीनियर अपने क्लाइंट से कहे: “We need to configure the database schema before API integration,” तो गैर-तकनीकी ग्राहक भ्रमित हो सकता है।


4. समाधान या सुझाव:

  • संचार में सरल, स्पष्ट और सामान्य भाषा का प्रयोग करना चाहिए।

  • आवश्यक हो तो जार्गन के साथ-साथ उसके सामान्य अर्थ को भी समझाना चाहिए।

  • श्रोता या पाठक के ज्ञान स्तर के अनुसार शब्दों का चयन करना चाहिए।

  • विशेष परिस्थितियों में तकनीकी शब्दों के लिए उदाहरणों और चित्रों का सहारा लेना चाहिए।


निष्कर्ष:
जार्गन और तकनीकी शब्द, यदि अति या अनुचित रूप से प्रयुक्त हों, तो संचार की प्रभावशीलता को घटा सकते हैं। इनसे उत्पन्न भ्रम, अस्पष्टता और दूरी संवाद को बाधित करते हैं। अतः प्रभावी संचार के लिए सरल, स्पष्ट और श्रोता-केंद्रित भाषा का प्रयोग आवश्यक है।



प्रश्न 02: संचार में सक्रिय श्रवण (Active Listening) और पठन (Reading) के महत्व पर एक नोट लिखिए।



परिचय:
संचार केवल बोलने और लिखने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि उसमें प्रभावी ढंग से सुनना (श्रवण) और पढ़ना (पठन) भी उतना ही महत्वपूर्ण है। सक्रिय श्रवण (Active Listening) और पठन (Reading), दोनों संप्रेषण प्रक्रिया के आवश्यक भाग हैं जो संदेश को सही समझने, विश्लेषण करने और प्रतिक्रिया देने में सहायक होते हैं।


1. सक्रिय श्रवण (Active Listening) का महत्व:

परिभाषा:
सक्रिय श्रवण का अर्थ है—पूरे ध्यान, समझ, और रुचि के साथ किसी की बात को सुनना और उस पर उचित प्रतिक्रिया देना।

महत्व:

(क) संदेश की सही समझ:
सक्रिय रूप से सुनने पर व्यक्ति संदेश के मूल उद्देश्य, भावनाओं और संदर्भ को बेहतर समझ पाता है।

(ख) विश्वास और सम्मान का निर्माण:
जब हम ध्यान से सुनते हैं, तो सामने वाले को लगता है कि उसकी बात को महत्व दिया जा रहा है, जिससे आपसी विश्वास बनता है।

(ग) गलतफहमी से बचाव:
सक्रिय श्रवण से संदेश को सही ढंग से ग्रहण किया जाता है जिससे भ्रम या गलत व्याख्या से बचा जा सकता है।

(घ) प्रभावी प्रतिक्रिया:
अच्छा सुनने वाला व्यक्ति ही उपयुक्त उत्तर या सुझाव दे सकता है।

(ङ) निजी और व्यावसायिक संबंधों में सुधार:
चाहे पारिवारिक संबंध हों या कार्यस्थल, सक्रिय श्रवण सहयोग और सामंजस्य बढ़ाता है।

उदाहरण:
किसी ग्राहक सेवा प्रतिनिधि का ग्राहक की शिकायतों को ध्यान से सुनना और फिर सहानुभूति व समाधान देना, कंपनी की छवि को सकारात्मक बनाता है।


2. पठन (Reading) का महत्व:

परिभाषा:
पठन का अर्थ है—लिखित या मुद्रित सामग्री को ध्यानपूर्वक पढ़ना, समझना और उसका अर्थ निकालना।

महत्व:

(क) सूचना प्राप्ति:
पठन से हमें विभिन्न क्षेत्रों की जानकारी, नीतियों, निर्देशों और प्रक्रियाओं को समझने में मदद मिलती है।

(ख) आलोचनात्मक सोच का विकास:
अच्छा पाठक जानकारी को केवल ग्रहण नहीं करता, बल्कि उसका विश्लेषण करता है।

(ग) साक्षरता और ज्ञान वृद्धि:
नियमित पठन से भाषा कौशल, शब्दावली और ज्ञान में वृद्धि होती है।

(घ) प्रभावी निर्णय क्षमता:
सटीक पठन से व्यक्ति तथ्यों को ठीक से समझ पाता है, जिससे निर्णय बेहतर होता है।

(ङ) पेशेवर सफलता में सहायक:
ई-मेल, रिपोर्ट, अनुबंध आदि को ठीक से पढ़ना और समझना व्यावसायिक सफलता के लिए आवश्यक है।

उदाहरण:
एक प्रोजेक्ट मैनेजर यदि क्लाइंट की आवश्यकताओं को लिखित दस्तावेज़ में ध्यान से पढ़ेगा, तो वह उसी अनुसार टीम को निर्देश दे सकेगा।


निष्कर्ष:

सक्रिय श्रवण और प्रभावी पठन दोनों ही संचार की गुणवत्ता को बढ़ाते हैं। जहाँ श्रवण मौखिक संचार को सशक्त बनाता है, वहीं पठन लिखित संचार को प्रभावी बनाता है। दोनों के माध्यम से व्यक्ति न केवल संदेश को समझ पाता है, बल्कि उसके अनुसार सही निर्णय भी ले सकता है। इसलिए, सफल संवाद के लिए इन दोनों कौशलों का विकास अत्यंत आवश्यक है।



प्रश्न 03: संचार में टीमवर्क और नेतृत्व का क्या महत्व है?



परिचय:

संचार, टीमवर्क और नेतृत्व – ये तीनों किसी संगठन, संस्था या समूह के सफल संचालन के प्रमुख स्तंभ हैं। जब टीम के सदस्य एक-दूसरे के साथ स्पष्ट, प्रभावी और सहयोगात्मक ढंग से संवाद करते हैं, और एक कुशल नेता मार्गदर्शन देता है, तब संगठन अपने उद्देश्यों को आसानी से प्राप्त कर सकता है।


1. टीमवर्क में संचार का महत्व:

(क) समन्वय और सहयोग:
टीम के सभी सदस्यों के बीच स्पष्ट संचार उन्हें एक-दूसरे की भूमिकाओं, जिम्मेदारियों और समयसीमा को समझने में मदद करता है।

(ख) समस्याओं का समाधान:
खुले और ईमानदार संवाद से टीम सदस्य समस्याओं को खुलकर साझा करते हैं, जिससे सामूहिक रूप से समाधान निकलता है।

(ग) रचनात्मकता और नवाचार:
जब टीम में विचारों का आदान-प्रदान होता है, तो नए विचार और रचनात्मक समाधान सामने आते हैं।

(घ) आपसी विश्वास और पारदर्शिता:
स्पष्ट और नियमित संवाद से टीम के सदस्य एक-दूसरे पर विश्वास करना सीखते हैं।

उदाहरण:
एक मार्केटिंग टीम में यदि सभी सदस्य अपने विचार और डेटा खुलकर साझा करें, तो एक प्रभावी रणनीति तैयार की जा सकती है।


2. नेतृत्व में संचार का महत्व:

(क) दृष्टिकोण और लक्ष्य स्पष्ट करना:
एक अच्छा नेता अपने विज़न और उद्देश्यों को स्पष्ट रूप से संप्रेषित करता है, जिससे पूरी टीम सही दिशा में काम करती है।

(ख) प्रेरणा और उत्साह:
कुशल नेतृत्व संचार के माध्यम से टीम को प्रेरित करता है और उनमें आत्मविश्वास बढ़ाता है।

(ग) निर्णय लेना और मार्गदर्शन देना:
नेता अपने अनुभव और संवाद कौशल के माध्यम से टीम को सही निर्णय लेने में सहायता करता है।

(घ) संघर्ष समाधान:
टीम में मतभेद स्वाभाविक हैं, लेकिन एक अच्छा नेता संवाद के माध्यम से टकराव को सकारात्मक दिशा में मोड़ सकता है।

उदाहरण:
एक परियोजना प्रबंधक जो टीम की समस्याएँ ध्यान से सुनता है और उन्हें मार्गदर्शन देता है, वह टीम को समय पर और गुणवत्ता के साथ लक्ष्य प्राप्त करने में मदद करता है।


3. टीमवर्क और नेतृत्व के लिए प्रभावी संचार की विशेषताएँ:

  • स्पष्टता (Clarity)

  • सक्रिय श्रवण (Active Listening)

  • दो-तरफा संवाद (Two-way Communication)

  • समय पर फीडबैक देना

  • सहानुभूति और विनम्रता


निष्कर्ष:

संचार, टीमवर्क और नेतृत्व के बीच गहरा संबंध है। एक टीम तभी सफल हो सकती है जब उसके सदस्य आपस में प्रभावी ढंग से संवाद करें और एक योग्य नेता उन्हें मार्गदर्शन दे। नेतृत्व संवाद के माध्यम से टीम को प्रेरित करता है, और टीमवर्क संवाद के माध्यम से समन्वय स्थापित करता है। इस प्रकार, संचार टीमवर्क और नेतृत्व दोनों की आत्मा है।


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प्रश्न 04: गैर-मौखिक संचार को सुधारने के उपाय क्या हैं?



परिचय:

गैर-मौखिक संचार (Non-verbal Communication) वह संचार है जिसमें शब्दों का प्रयोग नहीं होता, बल्कि हाव-भाव (gestures), शारीरिक भाषा (body language), आँखों का संपर्क (eye contact), चेहरे के भाव (facial expressions), आवाज़ का उतार-चढ़ाव (tone), स्पर्श (touch), दूरी (proximity) आदि के माध्यम से संदेश व्यक्त किया जाता है।
यह मौखिक संचार को पूरक बनाता है और कई बार उससे अधिक प्रभावशाली होता है। अतः इसके सुधार के लिए सजगता, अभ्यास और आत्ममूल्यांकन आवश्यक है।


गैर-मौखिक संचार को सुधारने के प्रमुख उपाय:


1. आत्म-जागरूकता (Self-awareness):

अपने हाव-भाव, शारीरिक मुद्राओं और चेहरे के भावों को पहचानें और यह समझें कि वे दूसरों पर क्या प्रभाव डालते हैं।
उदाहरण: लगातार हाथ बाँध कर खड़े रहना रक्षात्मक रवैया दर्शा सकता है।


2. सकारात्मक बॉडी लैंग्वेज अपनाना:

  • सीधे खड़े रहना या बैठना

  • हाथों का खुला और सहज प्रयोग

  • सिर को सहमति में हिलाना

  • चेहरा मुस्कुराता हुआ रखना
    लाभ: यह विश्वास, आत्मविश्वास और मित्रता को दर्शाता है।


3. आँखों का उचित संपर्क बनाए रखना (Maintain Eye Contact):

  • अधिक समय तक आँख मिलाना आत्मविश्वास दर्शाता है

  • लेकिन अधिक घूरना असहजता पैदा कर सकता है
    संतुलन आवश्यक है।


4. आवाज़ की टोन और गति (Tone & Modulation):

  • आवाज़ में उत्साह, सहानुभूति और आत्मीयता हो

  • एक ही स्वर या अत्यधिक तेज़/धीमी गति से बोलना उबाऊ या भ्रमित कर सकता है


5. हाथों और चेहरे के हाव-भाव का अभ्यास करें:

  • दर्पण के सामने खड़े होकर भाषण का अभ्यास करें

  • कैमरे पर रिकॉर्ड करके अपनी मुद्राओं का मूल्यांकन करें
    लाभ: आप जान पाएंगे कि आपके हाव-भाव कितने प्रभावशाली हैं।


6. सांस्कृतिक संवेदनशीलता (Cultural Sensitivity):

हर संस्कृति में गैर-मौखिक संकेतों के अर्थ अलग होते हैं। किसी विशेष संस्कृति में उपयुक्त इशारों और हाव-भाव का ज्ञान होना चाहिए।


7. व्यक्तिगत दूरी (Personal Space) का ध्यान रखें:

किसी व्यक्ति के बहुत पास खड़े होने से असहजता हो सकती है। उपयुक्त दूरी बनाए रखना सम्मान और शिष्टाचार दर्शाता है।


8. प्रतिक्रिया (Feedback) लें:

अपने साथियों, मित्रों या प्रशिक्षकों से पूछें कि आपके हाव-भाव और बॉडी लैंग्वेज कैसी है, और कहाँ सुधार की आवश्यकता है।


9. तनाव और घबराहट को नियंत्रित करें:

तनाव में अक्सर शरीर के हाव-भाव अनजाने में नकारात्मक हो जाते हैं। गहरी साँस लेना, ध्यान और अभ्यास से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।


निष्कर्ष:

गैर-मौखिक संचार व्यक्ति के व्यक्तित्व, आत्मविश्वास और प्रभावशीलता का आईना होता है। इसका प्रभाव मौखिक शब्दों से कहीं अधिक गहरा हो सकता है। इसलिए, गैर-मौखिक संकेतों को समझना, सुधारना और सजग रहना किसी भी पेशेवर या व्यक्तिगत संवाद को प्रभावशाली बनाने में अत्यंत आवश्यक है।



प्रश्न 05: सक्रिय श्रवण (Active Listening), जो एक आंतरिक कौशल (Intrapersonal Skill) है, व्यवसायिक संचार में आपकी समझ को कैसे बढ़ा सकता है?



परिचय:

सक्रिय श्रवण (Active Listening) एक ऐसी आंतरिक (Intrapersonal) कौशल है जिसमें व्यक्ति पूरे ध्यान, समझ और संवेदनशीलता के साथ किसी के विचारों और शब्दों को सुनता है। यह केवल “सुनना” नहीं, बल्कि सुनकर समझना, महसूस करना और उपयुक्त प्रतिक्रिया देना है। व्यवसायिक संचार (Business Communication) में यह कौशल अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह न केवल सूचनाओं को समझने में मदद करता है, बल्कि संबंध निर्माण, समस्या समाधान और टीम वर्क को भी मजबूत बनाता है।


1. सक्रिय श्रवण: एक आंतरिक कौशल के रूप में

  • यह आत्म-नियंत्रण, धैर्य और एकाग्रता की माँग करता है।

  • श्रवण के दौरान व्यक्ति अपने विचारों और पूर्वग्रहों को नियंत्रित करता है।

  • यह स्वयं की भावनाओं को समझने और दूसरों की बातों को खुले मन से सुनने की क्षमता देता है।


2. व्यवसायिक संचार में सक्रिय श्रवण की भूमिका:

(क) सटीक जानकारी को समझना:

व्यवसायिक संवाद में अनेक बार महत्वपूर्ण डेटा, निर्देश या ग्राहक की अपेक्षाएँ साझा की जाती हैं। सक्रिय श्रवण से हम उन बातों को ठीक से ग्रहण कर पाते हैं।

उदाहरण:
यदि ग्राहक अपनी समस्या स्पष्ट रूप से समझा रहा है और प्रतिनिधि ध्यान से सुनता है, तो समाधान अधिक प्रभावी और सटीक होगा।


(ख) गलतफहमियों से बचाव:

सुनते समय अगर हम निष्क्रिय रहें तो कई बार बातों का गलत अर्थ निकल जाता है। सक्रिय श्रवण से भ्रम की स्थिति टलती है।


(ग) विश्वास और संबंध निर्माण:

जब कोई महसूस करता है कि उसकी बात को गंभीरता से सुना जा रहा है, तो वह आत्मीयता और विश्वास विकसित करता है—जो व्यापारिक संबंधों में अमूल्य है।


(घ) निर्णय लेने में सहायता:

सुनकर पूरी बात समझने के बाद ही कोई व्यक्ति सही व्यावसायिक निर्णय ले सकता है।


(ङ) टीमवर्क और नेतृत्व को सशक्त बनाना:

एक अच्छा श्रोता ही एक अच्छा नेता बन सकता है, जो टीम के सदस्यों की समस्याएँ, सुझाव और प्रतिक्रियाएँ समझकर सही मार्गदर्शन देता है।


(च) ग्राहक सेवा को बेहतर बनाना:

किसी भी व्यवसाय में ग्राहक संतुष्टि अत्यंत महत्वपूर्ण है। जब ग्राहक को यह अनुभव होता है कि उसकी बात को ध्यान से सुना जा रहा है, तो वह ब्रांड के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखता है।


3. सक्रिय श्रवण के कुछ प्रमुख तत्व:

  • पूरा ध्यान देना (Giving full attention)

  • बीच में बाधा न डालना

  • गैर-मौखिक संकेतों (जैसे सिर हिलाना, आँखों का संपर्क) का प्रयोग

  • स्पष्टीकरण माँगना

  • उत्तर देने से पहले विचार करना


निष्कर्ष:

सक्रिय श्रवण एक ऐसा आंतरिक कौशल है जो व्यवसायिक संचार को प्रभावी, स्पष्ट और सौहार्दपूर्ण बनाता है। यह केवल संदेश को सुनने की क्रिया नहीं है, बल्कि उसे गहराई से समझने और सही प्रतिक्रिया देने की प्रक्रिया है। एक व्यवसायिक वातावरण में सक्रिय श्रोता न केवल एक अच्छे संवादक होते हैं, बल्कि बेहतर नेता, कर्मचारी और ग्राहक-सेवा प्रतिनिधि भी बनते हैं।



प्रश्न 06: स्वयं-धारणा (Self-concept) क्या है, और संचार में इसका क्या महत्व है?



1. स्वयं-धारणा (Self-Concept) की परिभाषा:

स्वयं-धारणा वह मानसिक छवि है जो व्यक्ति अपने बारे में बनाता है—"मैं कौन हूँ", "मैं क्या कर सकता हूँ", "दूसरे मेरे बारे में क्या सोचते हैं", आदि।
यह व्यक्ति के आत्म-सम्मान (self-esteem), आत्म-छवि (self-image), आत्म-ज्ञान (self-awareness) और आत्म-मूल्यांकन (self-evaluation) से मिलकर बनती है।

सरल शब्दों में:
स्वयं-धारणा = व्यक्ति का स्वयं के प्रति दृष्टिकोण और सोच।


2. स्वयं-धारणा के प्रकार:

प्रकारविवरण
आदर्श आत्म (Ideal Self)जैसा व्यक्ति बनना चाहता है।
वास्तविक आत्म (Real Self)जो व्यक्ति वास्तव में है।
समाजी आत्म (Social Self)समाज या दूसरों के बीच जो छवि प्रस्तुत करता है।
स्व-छवि (Self-image)व्यक्ति खुद को किस नजरिए से देखता है।

3. संचार में स्वयं-धारणा का महत्व:

(क) आत्म-विश्वास को प्रभावित करती है:

स्वयं को सकारात्मक रूप से देखने वाला व्यक्ति संवाद में अधिक स्पष्ट, आत्मनिर्भर और प्रभावशाली होता है।

उदाहरण:
यदि कोई व्यक्ति सोचता है कि वह अच्छा वक्ता है, तो वह भाषण देने में संकोच नहीं करेगा।


(ख) दूसरों से संबंधों को प्रभावित करती है:

हम जैसे खुद को समझते हैं, वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ करते हैं।
नकारात्मक स्वयं-धारणा वाले व्यक्ति संचार में झिझक, असहजता या आत्म-संकोच महसूस करते हैं।


(ग) प्रतिक्रिया को प्रभावित करती है:

किसी आलोचना या सुझाव को हम कैसे ग्रहण करते हैं, यह हमारी स्वयं-धारणा पर निर्भर करता है।
मजबूत आत्म-धारणा वाला व्यक्ति आलोचना को सीखने का अवसर मानता है।


(घ) संचार की शैली और व्यवहार को गढ़ती है:

जो व्यक्ति स्वयं को सशक्त समझता है, उसकी शारीरिक भाषा, वाणी और दृष्टिकोण में स्पष्टता व ऊर्जा दिखाई देती है।


(ङ) पेशेवर और व्यक्तिगत विकास में सहायक:

सकारात्मक स्वयं-धारणा से संवाद कौशल बेहतर होता है, जिससे व्यक्ति नेतृत्व, ग्राहक सेवा, टीमवर्क आदि में सफल होता है।


4. स्वयं-धारणा को सकारात्मक बनाने के उपाय:

  • आत्म-विश्लेषण करना

  • आत्म-संवाद (positive self-talk) का अभ्यास

  • सफल अनुभवों को याद रखना

  • आलोचना को रचनात्मक रूप में लेना

  • सकारात्मक लोगों के साथ संवाद करना


5. निष्कर्ष:

स्वयं-धारणा किसी भी व्यक्ति के संचार व्यवहार की नींव होती है।
जैसे-जैसे हम स्वयं को समझते हैं और स्वीकारते हैं, हमारा संचार अधिक प्रभावशाली, संतुलित और आत्म-विश्वासी बनता है।
इसलिए, एक मजबूत और सकारात्मक स्वयं-धारणा विकसित करना किसी भी अच्छे संप्रेषक (communicator) के लिए अत्यंत आवश्यक है।



प्रश्न 07: प्रेस कॉन्फ्रेंस (Press Conference) की अवधारणा पर चर्चा कीजिए।



1. प्रस्तावना:

प्रेस कॉन्फ्रेंस एक औपचारिक संवाद का माध्यम है, जिसमें कोई व्यक्ति, संस्था, सरकार या संगठन मीडिया प्रतिनिधियों (पत्रकारों) को आमंत्रित करके किसी महत्वपूर्ण जानकारी, निर्णय या घटना को साझा करता है।
यह जनसंपर्क (Public Relations) का एक प्रमुख उपकरण है जो पारदर्शिता, संवाद और जन-जागरूकता को बढ़ाने में सहायक होता है।


2. प्रेस कॉन्फ्रेंस की परिभाषा:

"प्रेस कॉन्फ्रेंस एक औपचारिक सभा होती है जिसमें पत्रकारों को आमंत्रित किया जाता है ताकि वे किसी विषय पर संबंधित व्यक्ति/प्रवक्ता से जानकारी प्राप्त कर सकें और प्रश्न पूछ सकें।"


3. प्रेस कॉन्फ्रेंस के उद्देश्य:

उद्देश्यविवरण
सूचना साझा करनाकिसी महत्वपूर्ण निर्णय, नीति, या घटना के बारे में मीडिया के माध्यम से जनता को सूचित करना।
ग़लतफहमियों को दूर करनाअफवाहों या विरोधाभासी सूचनाओं पर स्पष्टीकरण देना।
छवि निर्माणसंस्था या व्यक्ति की सकारात्मक छवि को मीडिया के माध्यम से प्रस्तुत करना।
जन समर्थन प्राप्त करनाकिसी सामाजिक, राजनैतिक या व्यावसायिक पहल के लिए लोगों का समर्थन प्राप्त करना।

4. प्रेस कॉन्फ्रेंस की प्रमुख विशेषताएँ:

  • पूर्व निर्धारित समय और स्थान पर आयोजित होती है।

  • प्रवक्ता (Speaker/Spokesperson) मीडिया को संबोधित करता है।

  • प्रश्नोत्तर सत्र के माध्यम से पत्रकार सवाल पूछ सकते हैं।

  • टेलीविज़न, अख़बार, रेडियो और डिजिटल मीडिया सभी इसमें शामिल हो सकते हैं।


5. प्रेस कॉन्फ्रेंस की प्रक्रिया:

  1. आमंत्रण भेजना – पत्रकारों को आमंत्रण देकर समय और स्थान की सूचना दी जाती है।

  2. मुख्य वक्तव्य देना – प्रवक्ता अपना संदेश या घोषणा प्रस्तुत करता है।

  3. प्रश्नोत्तर सत्र – पत्रकार संबंधित सवाल पूछते हैं।

  4. समापन – मीडिया को धन्यवाद देकर कार्यक्रम समाप्त किया जाता है।


6. प्रेस कॉन्फ्रेंस के लाभ:

  • सीधी बातचीत मीडिया के माध्यम से जनता से सीधा संवाद।

  • तत्काल प्रचार – इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के ज़रिए त्वरित प्रचार संभव।

  • प्रभावी स्पष्टीकरण – जटिल विषयों पर प्रत्यक्ष जानकारी देने का अवसर।

  • संवाद में पारदर्शिता – सार्वजनिक विश्वास बढ़ता है।


7. चुनौतियाँ और सावधानियाँ:

  • कोई भी गलत बयान बड़े विवाद का कारण बन सकता है।

  • मीडिया के तीखे सवालों से निपटने के लिए तैयारी ज़रूरी है।

  • संवेदनशील विषयों पर विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए।

  • प्रेस कॉन्फ्रेंस की विफलता से नकारात्मक प्रचार हो सकता है।


8. निष्कर्ष:

प्रेस कॉन्फ्रेंस एक प्रभावशाली संचार माध्यम है जो किसी भी संस्था या व्यक्ति को मीडिया के ज़रिए जनता से जुड़ने का अवसर देता है। यह पारदर्शिता, जवाबदेही और विश्वसनीयता बढ़ाने में सहायक होता है।
सफल प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए स्पष्ट संदेश, तथ्य आधारित प्रस्तुति और पत्रकारों के प्रश्नों के प्रति विनम्रता अत्यंत आवश्यक है।




प्रश्न 08: एक व्यक्ति संकट संचार योजना (Crisis Communication Plan) कैसे बनाता है?



1. प्रस्तावना:

संकट संचार योजना (Crisis Communication Plan) एक रणनीतिक प्रक्रिया है, जो किसी आपातकालीन स्थिति, विवाद, दुर्घटना या नकारात्मक घटना के दौरान सार्वजनिक, कर्मचारियों, ग्राहकों और मीडिया से सही ढंग से संवाद बनाए रखने में सहायता करती है।
व्यक्ति या संगठन यदि पहले से इस योजना को तैयार रखते हैं, तो संकट के समय विश्वास, छवि और नियंत्रण बनाए रखना आसान होता है।


2. संकट संचार योजना की परिभाषा:

"संकट संचार योजना एक सुव्यवस्थित रणनीति होती है जिसके अंतर्गत यह निर्धारित किया जाता है कि संकट की स्थिति में कौन, कब, क्या और कैसे संवाद करेगा।"


3. एक व्यक्ति द्वारा संकट संचार योजना बनाने की प्रक्रिया:


(1) संकट की संभावनाओं की पहचान (Risk Assessment):

सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि कौन-कौन से संकट उत्पन्न हो सकते हैं।
उदाहरण:

  • सोशल मीडिया विवाद

  • ग्राहक की शिकायत

  • उत्पाद में दोष

  • वित्तीय या कानूनी समस्या


(2) संचार उद्देश्यों को परिभाषित करें:

  • लोगों को जानकारी देना

  • अफवाहों को रोकना

  • विश्वास बनाए रखना

  • छवि की रक्षा करना


(3) प्राथमिक संपर्क सूत्र तय करें (Identify Key Spokesperson):

यदि व्यक्ति स्वयं ही जिम्मेदार है, तो उसे मीडिया, ग्राहक या संबंधित पक्षों से कैसे बात करनी है, इसका अभ्यास और तैयारी करनी चाहिए।
यदि टीम हो तो प्रवक्ता नियुक्त करें।


(4) लक्षित समूहों की पहचान करें (Identify Stakeholders):

  • ग्राहक

  • कर्मचारी

  • मीडिया

  • निवेशक

  • सोशल मीडिया फॉलोअर्स

हर समूह के लिए उपयुक्त संदेश तय करना आवश्यक है।


(5) मुख्य संदेश तैयार करना (Develop Core Messages):

संकट के समय संवाद संक्षिप्त, ईमानदार और सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए।
उदाहरण:

  • “हमें स्थिति की गंभीरता का अहसास है…”

  • “हम पूरी जिम्मेदारी लेते हैं और समाधान की प्रक्रिया शुरू कर चुके हैं…”


(6) संचार माध्यम तय करना (Select Communication Channels):

  • प्रेस विज्ञप्ति

  • सोशल मीडिया

  • ईमेल

  • वीडियो बयान

  • वेबसाइट अपडेट

स्थिति की गंभीरता के अनुसार माध्यम का चयन करें।


(7) प्रतिक्रियाओं की निगरानी करना (Monitor Reactions):

लोग कैसे प्रतिक्रिया दे रहे हैं, इसे नियमित रूप से देखना चाहिए। यदि गलतफहमी फैल रही हो, तो त्वरित सुधारात्मक संवाद आवश्यक है।


(8) अभ्यास (Mock Drills):

पूर्वाभ्यास करने से व्यक्ति संकट की स्थिति में घबराता नहीं है और पहले से तैयार रहता है।


(9) संकट के बाद मूल्यांकन (Post-crisis Evaluation):

संकट के बाद यह देखना ज़रूरी है कि योजना कितनी सफल रही और क्या सुधार की आवश्यकता है।


4. एक व्यक्ति के लिए उदाहरण:

यदि एक फ्रीलांसर/छोटा व्यवसायी सोशल मीडिया विवाद में फँस जाए:

  • तुरंत स्थिति को समझे

  • माफी या स्पष्टीकरण जारी करे

  • असत्य या नकारात्मक प्रचार का खंडन करे

  • भावी सुधारों की जानकारी दे

  • संवाद में पारदर्शिता बनाए रखे


5. निष्कर्ष:

एक प्रभावी संकट संचार योजना व्यक्ति को दबाव की स्थिति में संयमित, उत्तरदायी और रणनीतिक रूप से संवाद करने की क्षमता देती है।
इससे उसकी विश्वसनीयता बनी रहती है और प्रतिष्ठा की रक्षा होती है।
हर पेशेवर को अपने स्तर पर ऐसी योजना पहले से तैयार रखनी चाहिए।



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