BAPS(N)220 IMPORTANT SOLVED QUESTIONS
प्रश्न 01 तुलनात्मक राजनीति के परम्परागत उपागम की विशेषताओं की विवेचना कीजिये।
परम्परागत उपागम की विशेषताएँ
तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन में परम्परागत उपागम (Traditional Approach) वह पद्धति है, जो मुख्यतः ऐतिहासिक, कानूनी और संस्थागत दृष्टिकोण पर आधारित होती है। यह उपागम राजनीति विज्ञान के प्रारंभिक चरणों में अत्यधिक प्रचलित था और इसे 19वीं और 20वीं शताब्दी के मध्य तक तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन के लिए प्रमुख रूप में अपनाया गया। इस उपागम की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—
1. ऐतिहासिक दृष्टिकोण (Historical Perspective)
परम्परागत उपागम राजनीतिक संस्थाओं और प्रणालियों के अध्ययन में ऐतिहासिक घटनाओं, विकास और परंपराओं पर बल देता है। यह मानता है कि किसी भी राजनीतिक प्रणाली को समझने के लिए उसके ऐतिहासिक विकास को जानना आवश्यक है।
2. कानूनी-संवैधानिक अध्ययन (Legal-constitutional Study)
इस उपागम के अंतर्गत मुख्य रूप से विभिन्न देशों की संवैधानिक व्यवस्थाओं, विधायी संरचनाओं, न्यायिक प्रणालियों और प्रशासनिक संगठनों का विश्लेषण किया जाता है। इसमें संविधानों, कानूनों और संस्थाओं की तुलना करके राजनीति का अध्ययन किया जाता है।
3. संस्थागत केंद्रितता (Institutional Focus)
परम्परागत उपागम राजनीतिक संस्थाओं जैसे संसद, कार्यपालिका, न्यायपालिका, नौकरशाही आदि पर केंद्रित होता है। यह मानता है कि राजनीतिक व्यवहार और नीति-निर्माण को समझने के लिए इन संस्थाओं के स्वरूप, कार्यप्रणाली और प्रभाव का अध्ययन करना आवश्यक है।
4. आदर्शवादी दृष्टिकोण (Idealistic Approach)
इस उपागम में राजनीतिक घटनाओं और प्रक्रियाओं का विश्लेषण मुख्यतः आदर्शवादी दृष्टिकोण से किया जाता है। यह यह मानता है कि राजनीति का उद्देश्य समाज में नैतिकता और न्याय की स्थापना करना है।
5. वर्णनात्मक और गुणात्मक अध्ययन (Descriptive and Qualitative Study)
परम्परागत उपागम मुख्य रूप से वर्णनात्मक (descriptive) और गुणात्मक (qualitative) पद्धति को अपनाता है। इसमें तथ्यों का मात्रात्मक विश्लेषण करने की बजाय, उनका गहन अध्ययन और व्याख्या की जाती है।
6. तुलनात्मक अध्ययन की सीमितता (Limited Comparative Study)
इस उपागम में तुलनात्मक अध्ययन अक्सर सीमित होता है और केवल कुछ विकसित पश्चिमी देशों तक ही केंद्रित रहता है। इसमें उभरती हुई राजनीतिक प्रणालियों, विकासशील देशों और समाजों पर कम ध्यान दिया जाता है।
7. मानक एवं कानूनी नियमों पर जोर (Emphasis on Norms and Legal Rules)
इस दृष्टिकोण में राजनीतिक घटनाओं को विश्लेषण करने के लिए कानूनी और संवैधानिक नियमों को प्राथमिकता दी जाती है। यह मानता है कि राजनीतिक प्रणाली के संचालन के लिए कानूनी ढांचे की समझ आवश्यक है।
निष्कर्ष
परम्परागत उपागम तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन की एक प्रारंभिक और महत्वपूर्ण पद्धति थी, जिसने संस्थागत और कानूनी पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया। हालांकि, इसकी सीमाओं के कारण इसे बाद में व्यवहारवादी उपागम (Behavioral Approach) ने प्रतिस्थापित कर दिया, जो राजनीतिक घटनाओं के वैज्ञानिक और अनुभवजन्य अध्ययन पर बल देता है। इसके बावजूद, परम्परागत उपागम आज भी राजनीतिक संस्थाओं और ऐतिहासिक विकास को समझने में उपयोगी सिद्ध होता है।
प्रश्न 02 संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक शासन प्रणालियों की व्याख्या करते हुए दोनों शासन प्रणालियों के मध्य अंतर को स्पष्ट कीजिये।
संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक शासन प्रणालियाँ: व्याख्या एवं अंतर
लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को दो प्रमुख रूपों में विभाजित किया जाता है— संसदात्मक (Parliamentary) शासन प्रणाली और अध्यक्षात्मक (Presidential) शासन प्रणाली। ये दोनों प्रणालियाँ सत्ता के वितरण और कार्यकारी शाखा की संरचना में भिन्न होती हैं।
1. संसदात्मक शासन प्रणाली (Parliamentary System)
संसदात्मक शासन प्रणाली में कार्यपालिका (Executive) और विधायिका (Legislature) के बीच घनिष्ठ संबंध होता है। इसमें कार्यपालिका का नेतृत्व प्रधानमंत्री करता है, जो संसद का सदस्य होता है और संसद के प्रति उत्तरदायी रहता है।
मुख्य विशेषताएँ:
प्रधानमंत्री का नेतृत्व – सरकार का नेतृत्व प्रधानमंत्री करता है, जिसे संसद के बहुमत का समर्थन प्राप्त होता है।
कार्यपालिका और विधायिका का घनिष्ठ संबंध – कार्यपालिका, विधायिका से चुनी जाती है और उसके प्रति उत्तरदायी होती है।
संयुक्त उत्तरदायित्व – मंत्रिमंडल सामूहिक रूप से संसद के प्रति उत्तरदायी होता है।
प्रधानमंत्री का पद अस्थिर हो सकता है – प्रधानमंत्री का पद संसद में बहुमत खोने पर समाप्त हो सकता है।
राष्ट्रपति (राज्यप्रमुख) का नाममात्र का पद – यदि राष्ट्रपति होता है, तो वह केवल संवैधानिक प्रमुख होता है और वास्तविक शक्ति प्रधानमंत्री के पास होती है।
उदाहरण:
भारत, ब्रिटेन, कनाडा, जापान, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में संसदात्मक शासन प्रणाली लागू है।
2. अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली (Presidential System)
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में कार्यपालिका और विधायिका स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं। राष्ट्रपति (President) सरकार का प्रमुख होता है और उसे सीधे जनता द्वारा चुना जाता है।
मुख्य विशेषताएँ:
राष्ट्रपति का नेतृत्व – राष्ट्रपति सरकार का प्रमुख होता है और कार्यपालिका का प्रमुख भी होता है।
कार्यपालिका और विधायिका का पृथक्करण – राष्ट्रपति और संसद एक-दूसरे से स्वतंत्र होते हैं और एक-दूसरे को बर्खास्त नहीं कर सकते।
निर्धारित कार्यकाल – राष्ट्रपति का कार्यकाल निश्चित होता है और उसे केवल महाभियोग (Impeachment) के माध्यम से हटाया जा सकता है।
नीति-निर्माण में स्वतंत्रता – राष्ट्रपति स्वतंत्र रूप से नीति-निर्माण करता है और मंत्रियों की नियुक्ति स्वयं करता है।
स्थिर कार्यपालिका – चूँकि राष्ट्रपति का कार्यकाल निश्चित होता है, इसलिए कार्यपालिका अपेक्षाकृत स्थिर होती है।
उदाहरण:
संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राजील, रूस, इंडोनेशिया आदि देशों में अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली लागू है।
3. संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के बीच अंतर
बिंदु संसदात्मक शासन प्रणाली अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली
कार्यपालिका का स्वरूप प्रधानमंत्री एवं मंत्रिमंडल राष्ट्रपति एवं उसके सलाहकार
कार्यपालिका और विधायिका का संबंध कार्यपालिका विधायिका के प्रति उत्तरदायी होती है कार्यपालिका और विधायिका स्वतंत्र होती हैं
सरकार प्रमुख की नियुक्ति संसद के बहुमत द्वारा प्रधानमंत्री चुना जाता है राष्ट्रपति को जनता सीधे चुनती है
कार्यकाल की स्थिरता अस्थिर, क्योंकि सरकार संसद में बहुमत खोने पर गिर सकती है स्थिर, क्योंकि राष्ट्रपति का कार्यकाल निश्चित होता है
नीति-निर्माण नीति-निर्माण में संसद की भूमिका महत्वपूर्ण होती है राष्ट्रपति स्वतंत्र रूप से नीति-निर्माण करता है
संवैधानिक प्रमुख की भूमिका राष्ट्रपति या सम्राट केवल सांकेतिक प्रमुख होता है राष्ट्रपति ही कार्यपालिका का वास्तविक प्रमुख होता है
मंत्रियों की नियुक्ति प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त, परंतु संसद के प्रति उत्तरदायी राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त, परंतु संसद के प्रति उत्तरदायी नहीं
4. निष्कर्ष
संसदात्मक और अध्यक्षात्मक शासन प्रणालियाँ दोनों ही लोकतांत्रिक प्रणालियाँ हैं, लेकिन इनकी संरचना और संचालन में महत्वपूर्ण अंतर होता है। संसदात्मक प्रणाली अधिक लचीली होती है, लेकिन यह अस्थिर हो सकती है, जबकि अध्यक्षात्मक प्रणाली अधिक स्थिर होती है, लेकिन सत्ता का केंद्रीकरण अधिक होता है। प्रत्येक प्रणाली की अपनी खूबियाँ और कमियाँ हैं, और विभिन्न देशों की सामाजिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक परिस्थितियों के आधार पर इनमें से किसी एक प्रणाली को अपनाया जाता है।
प्रश्न 03 एकात्मक शासन प्रणाली को परिभाषित करते हुए इसकी विशेषताओं को स्पष्ट कीजिये।
एकात्मक शासन प्रणाली: परिभाषा एवं विशेषताएँ
1. परिभाषा
एकात्मक शासन प्रणाली (Unitary System of Government) वह शासन व्यवस्था है जिसमें संप्रभुता (Sovereignty) केंद्र सरकार में निहित होती है और संपूर्ण शासन की शक्ति एक ही केंद्रीय सत्ता द्वारा नियंत्रित की जाती है। इस प्रणाली में स्थानीय या क्षेत्रीय सरकारें केंद्रीय सरकार द्वारा दी गई शक्तियों पर कार्य करती हैं और इन्हें स्वतंत्र संवैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं होते।
प्रमुख परिभाषाएँ:
A.V. Dicey के अनुसार, "एकात्मक शासन प्रणाली वह प्रणाली है जिसमें संपूर्ण शक्ति एक ही सरकार में निहित होती है और कोई भी अधीनस्थ सत्ता स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर सकती।"
Garner के अनुसार, "एकात्मक राज्य वह होता है जिसमें समस्त शक्तियाँ केंद्र सरकार में संकेन्द्रित होती हैं और स्थानीय सरकारें केवल केंद्र द्वारा सौंपी गई शक्तियों का ही प्रयोग करती हैं।"
उदाहरण:
ब्रिटेन, फ्रांस, जापान, चीन, इटली आदि देशों में एकात्मक शासन प्रणाली लागू है।
2. एकात्मक शासन प्रणाली की विशेषताएँ
(1) केंद्रीय संप्रभुता (Centralized Sovereignty)
इस प्रणाली में संपूर्ण संप्रभुता केंद्र सरकार में निहित होती है और क्षेत्रीय या स्थानीय सरकारों को कोई स्वतंत्र संवैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं होते।
(2) केंद्र सरकार की सर्वोच्चता (Supremacy of Central Government)
एकात्मक शासन प्रणाली में केंद्र सरकार सर्वोच्च होती है और राज्य या स्थानीय निकायों को केवल वही शक्तियाँ प्राप्त होती हैं जो केंद्र सरकार द्वारा प्रदान की जाती हैं।
(3) समान कानून व्यवस्था (Uniform Law System)
इस प्रणाली में पूरे देश में एक समान कानून व्यवस्था लागू होती है। सभी नागरिकों के लिए समान नियम, कानून और प्रशासनिक व्यवस्था होती है।
(4) संविधान की एकता (Single Constitution)
एकात्मक शासन प्रणाली में एक ही संविधान होता है, जो पूरे राष्ट्र में लागू होता है। इसमें राज्यों या प्रांतों के लिए अलग-अलग संविधान नहीं होते।
(5) मजबूत एवं प्रभावी सरकार (Strong and Effective Government)
क्योंकि शक्ति केंद्र में निहित होती है, इसलिए निर्णय लेने की प्रक्रिया तेज होती है और प्रशासन अधिक प्रभावी होता है।
(6) सत्ता का केंद्रीकरण (Centralization of Power)
इस प्रणाली में प्रशासनिक शक्ति का केंद्रीकरण होता है, जिससे नीति-निर्माण और कार्यान्वयन अधिक सुचारू रूप से हो सकता है।
(7) संकटकाल में कुशल शासन (Efficient Governance in Crisis)
एकात्मक शासन प्रणाली में संकट या आपातकालीन परिस्थितियों में सरकार त्वरित निर्णय ले सकती है और समस्याओं का शीघ्र समाधान कर सकती है।
(8) प्रशासनिक एकरूपता (Administrative Uniformity)
इस प्रणाली में सभी सरकारी नीतियाँ और योजनाएँ पूरे देश में एक समान रूप से लागू होती हैं, जिससे प्रशासनिक सुगमता बनी रहती है।
3. निष्कर्ष
एकात्मक शासन प्रणाली सत्ता के केंद्रीकरण पर आधारित होती है, जिससे प्रशासनिक स्थिरता और प्रभावशीलता सुनिश्चित होती है। यह प्रणाली छोटे और सांस्कृतिक रूप से एकरूप देशों के लिए अधिक उपयुक्त होती है, लेकिन बड़े और विविधता वाले देशों में इसका सफलतापूर्वक संचालन कठिन हो सकता है। हालाँकि, आधुनिक समय में कई एकात्मक राज्य विकेंद्रीकरण की नीति अपनाकर स्थानीय निकायों को अधिक स्वायत्तता प्रदान कर रहे हैं।
प्रश्न 04 ब्रिटिश संविधान की विशेषताओं का विस्तृत विवरण दीजिए।
ब्रिटिश संविधान की विशेषताएँ
ब्रिटेन का संविधान (British Constitution) विश्व का सबसे पुराना और अद्वितीय संविधान है। यह लिखित नहीं बल्कि अलिखित संविधान (Unwritten Constitution) है, जो विभिन्न परंपराओं, संसदीय अधिनियमों, न्यायिक निर्णयों और संवैधानिक परिपाटियों पर आधारित है। इसे "संवैधानिक विकास की प्रयोगशाला" भी कहा जाता है क्योंकि यह समय के साथ विकसित हुआ है।
ब्रिटिश संविधान की प्रमुख विशेषताएँ
1. अलिखित संविधान (Unwritten Constitution)
ब्रिटिश संविधान कोई एकल लिखित दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह विभिन्न स्रोतों से विकसित हुआ है। इसमें संसदीय क़ानून, परंपराएँ, न्यायिक निर्णय और संवैधानिक संधियाँ शामिल हैं।
2. संसद की संप्रभुता (Parliamentary Sovereignty)
ब्रिटेन में संसद सर्वोच्च संस्था है और वह किसी भी कानून को बना सकती है या रद्द कर सकती है। संसद के बनाए कानूनों को कोई न्यायालय असंवैधानिक घोषित नहीं कर सकता।
3. एकात्मक शासन प्रणाली (Unitary System)
ब्रिटेन में सत्ता का केंद्रीकरण है। संपूर्ण सत्ता केंद्र सरकार के अधीन होती है, और क्षेत्रीय सरकारें केंद्र द्वारा दी गई शक्तियों के आधार पर कार्य करती हैं।
4. संवैधानिक राजतंत्र (Constitutional Monarchy)
ब्रिटेन में राजतंत्र मौजूद है, लेकिन यह संवैधानिक है, जिसका अर्थ है कि राजा या रानी (Monarch) केवल नाममात्र का प्रमुख होता है। वास्तविक सत्ता प्रधानमंत्री और संसद के पास होती है।
5. संसदीय शासन प्रणाली (Parliamentary System)
ब्रिटेन में संसदीय शासन प्रणाली लागू है, जिसमें कार्यपालिका (Executive) संसद के प्रति उत्तरदायी होती है। प्रधानमंत्री, संसद के बहुमत दल का नेता होता है और उसे सदन का समर्थन प्राप्त करना आवश्यक होता है।
6. सामान्य कानून (Common Law System)
ब्रिटेन का न्यायिक तंत्र सामान्य कानून प्रणाली (Common Law System) पर आधारित है। न्यायालयों के निर्णय और परंपराएँ संविधान का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
7. लचीलापन (Flexibility)
ब्रिटिश संविधान बहुत लचीला (Flexible) है, क्योंकि इसे संशोधित करने के लिए कोई विशेष प्रक्रिया आवश्यक नहीं है। संसद अपने सामान्य विधायी प्रक्रिया के तहत संविधान में बदलाव कर सकती है।
8. द्विसदनीय संसद (Bicameral Parliament)
ब्रिटिश संसद दो सदनों से मिलकर बनी होती है—
हाउस ऑफ कॉमन्स (House of Commons) – यह निर्वाचित प्रतिनिधियों का सदन है और वास्तविक सत्ता इसी के पास होती है।
हाउस ऑफ लॉर्ड्स (House of Lords) – यह नामांकित सदस्यों और वंशानुगत सदस्यों का सदन है, जिसका कार्य मुख्यतः सलाहकार और पुनर्विचार करना होता है।
9. न्यायिक पुनरावलोकन का अभाव (No Judicial Review)
ब्रिटेन में संसद सर्वोच्च है, इसलिए न्यायालयों को संसद द्वारा बनाए गए कानूनों को असंवैधानिक घोषित करने का अधिकार नहीं है।
10. द्विदलीय प्रणाली (Two-Party System)
ब्रिटेन में आमतौर पर कंजरवेटिव पार्टी (Conservative Party) और लेबर पार्टी (Labour Party) प्रमुख राजनीतिक दल हैं, जो सत्ता में बारी-बारी से आते हैं।
11. मौलिक अधिकारों का अभाव (Absence of Written Fundamental Rights)
ब्रिटिश संविधान में नागरिकों के लिए कोई लिखित मौलिक अधिकार नहीं हैं, लेकिन परंपराओं और कानूनों के माध्यम से नागरिक अधिकार सुरक्षित किए गए हैं।
निष्कर्ष
ब्रिटिश संविधान एक अनूठा और ऐतिहासिक रूप से विकसित संविधान है, जो परंपराओं, संसदीय संप्रभुता, संवैधानिक राजतंत्र और लचीलेपन की विशेषताओं से युक्त है। यह एकात्मक और संसदीय शासन प्रणाली पर आधारित है, जिसमें संसद सर्वोच्च संस्था होती है। इसकी लचीली प्रकृति इसे समय के साथ बदलने में सहायक बनाती है, जिससे यह एक गतिशील और प्रभावी शासन प्रणाली बना हुआ है।
प्रश्न 05 अमेरिका के संविधान की प्रमुख विशेषताओं पर आलोचनात्मक टिप्पणी कीजिये।
अमेरिकी संविधान की प्रमुख विशेषताएँ: आलोचनात्मक टिप्पणी
अमेरिका का संविधान (U.S. Constitution) 17 सितंबर 1787 को अपनाया गया और यह दुनिया का सबसे पुराना लिखित संविधान है। यह संघीय शासन प्रणाली, शक्तियों के पृथक्करण, न्यायिक पुनरावलोकन और मौलिक अधिकारों पर आधारित है। हालाँकि, इसके कई सकारात्मक पहलुओं के साथ-साथ कुछ आलोचनाएँ भी की जाती हैं।
अमेरिकी संविधान की प्रमुख विशेषताएँ
1. लिखित संविधान (Written Constitution)
अमेरिकी संविधान एक लिखित दस्तावेज है, जिसमें 7 अनुच्छेद (Articles) और 27 संशोधन (Amendments) शामिल हैं। यह स्पष्ट रूप से संघीय ढाँचे, सरकार की शक्तियों और नागरिकों के अधिकारों को परिभाषित करता है।
आलोचना:
यह अत्यधिक जटिल और विस्तृत है, जिसके कारण इसे समझना और लागू करना कठिन हो सकता है।
2. संघीय शासन प्रणाली (Federal System)
अमेरिका में संघीय प्रणाली लागू है, जिसमें राज्य और केंद्र सरकार के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया है। प्रत्येक राज्य को अपनी सरकार चलाने की स्वतंत्रता होती है।
आलोचना:
कभी-कभी संघीय और राज्य सरकारों के बीच टकराव उत्पन्न हो जाता है।
राज्यों की स्वतंत्रता के कारण पूरे देश में एकरूपता (Uniformity) की कमी देखी जाती है।
3. शक्तियों का विभाजन (Separation of Powers)
संविधान के अनुसार, सरकार को तीन शाखाओं में विभाजित किया गया है—
कार्यपालिका (Executive) – राष्ट्रपति
विधायिका (Legislature) – कांग्रेस (संसद)
न्यायपालिका (Judiciary) – सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court)
आलोचना:
शक्तियों का यह पृथक्करण कभी-कभी शासन को धीमा बना देता है, जिससे निर्णय लेने में अधिक समय लगता है।
राष्ट्रपति और कांग्रेस के बीच मतभेद होने से प्रशासनिक बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
4. कठोर संविधान (Rigid Constitution)
अमेरिकी संविधान को संशोधित करना कठिन है। इसे संशोधित करने के लिए जटिल प्रक्रिया अपनाई जाती है—
कांग्रेस के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत आवश्यक।
इसके बाद 50 में से 38 राज्यों की मंजूरी आवश्यक।
आलोचना:
यह प्रक्रिया अत्यधिक कठिन और समय-सापेक्ष है।
कई आवश्यक सुधार समय पर नहीं किए जा सकते।
5. न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review)
अमेरिका में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के पास न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review) का अधिकार है, जिससे वह किसी भी कानून को असंवैधानिक घोषित कर सकता है।
आलोचना:
यह न्यायपालिका को बहुत अधिक शक्ति प्रदान करता है, जिससे कभी-कभी न्यायिक तानाशाही (Judicial Supremacy) की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
न्यायालय के फैसले कभी-कभी लोकतांत्रिक सिद्धांतों के विरुद्ध हो सकते हैं।
6. मौलिक अधिकारों की सुरक्षा (Protection of Fundamental Rights)
अमेरिकी संविधान में बिल ऑफ राइट्स (Bill of Rights, 1791) के तहत नागरिकों को मौलिक अधिकार दिए गए हैं, जिनमें स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति, धार्मिक स्वतंत्रता, हथियार रखने का अधिकार आदि शामिल हैं।
आलोचना:
कुछ अधिकारों, जैसे हथियार रखने का अधिकार (Right to Bear Arms), के कारण अमेरिका में अपराध दर (Crime Rate) बढ़ रही है।
कुछ अधिकारों की व्याख्या अस्पष्ट होने के कारण विवाद उत्पन्न होते हैं।
7. द्विसदनीय विधायिका (Bicameral Legislature)
अमेरिका में संसद को कांग्रेस (Congress) कहा जाता है, जिसमें दो सदन होते हैं—
सीनेट (Senate) – प्रत्येक राज्य से 2 प्रतिनिधि
प्रतिनिधि सभा (House of Representatives) – जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व
आलोचना:
कभी-कभी दोनों सदनों के बीच नीतिगत गतिरोध (Policy Deadlock) उत्पन्न हो जाता है।
8. राष्ट्रपति शासन प्रणाली (Presidential System)
अमेरिका में राष्ट्रपति शासन प्रणाली लागू है, जिसमें राष्ट्रपति सरकार का प्रमुख होता है। उसे जनता द्वारा सीधे चुना जाता है।
आलोचना:
कभी-कभी राष्ट्रपति की शक्तियाँ अत्यधिक केंद्रीकृत हो जाती हैं।
राष्ट्रपति और कांग्रेस के बीच संघर्ष होने पर सरकार ठप (Government Shutdown) हो सकती है।
निष्कर्ष: आलोचनात्मक मूल्यांकन
अमेरिकी संविधान दुनिया का पहला लिखित, कठोर और संघीय संविधान है, जो लोकतंत्र, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और कानून के शासन को सुनिश्चित करता है। हालाँकि, इसमें कुछ कमजोरियाँ भी हैं—
संशोधन प्रक्रिया कठोर है।
शक्तियों का पृथक्करण शासन को धीमा बना सकता है।
न्यायपालिका की अधिक शक्ति न्यायिक तानाशाही को जन्म दे सकती है।
द्विसदनीय विधायिका में नीति निर्माण में बाधाएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
अमेरिकी संविधान लोकतंत्र की मिसाल होने के बावजूद पूर्ण रूप से दोषरहित नहीं है। यह एक प्रभावी संविधान है, लेकिन इसमें समय-समय पर सुधारों की आवश्यकता बनी रहती है।
प्रश्न 06 संविधानवाद को परिभाषित करते हुए संविधानवाद के तत्वों को स्पष्ट कीजिये।
संविधानवाद: परिभाषा एवं तत्व
1. संविधानवाद की परिभाषा
संविधानवाद (Constitutionalism) एक ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें सरकार की शक्तियाँ संविधान द्वारा सीमित होती हैं और नागरिकों के अधिकारों एवं स्वतंत्रता की सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है। इसका मूल उद्देश्य सरकार को निरंकुश होने से रोकना और लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को बनाए रखना है।
प्रमुख परिभाषाएँ:
डाइस़ी (A.V. Dicey) के अनुसार, "संविधानवाद का अर्थ केवल एक संविधान होना नहीं है, बल्कि ऐसा शासन होना है जो संविधान की सीमाओं के भीतर कार्य करे।"
सी. एफ. स्ट्रांग (C.F. Strong) के अनुसार, "संविधानवाद सरकार के संचालन की एक ऐसी प्रणाली है जिसमें शक्ति का दुरुपयोग रोकने के लिए सरकार को कानूनी रूप से सीमित किया जाता है।"
डेविड फेल्डमैन (David Feldman) के अनुसार, "संविधानवाद का सार यह है कि सरकार केवल वैध और संवैधानिक तरीकों से ही शासन कर सकती है।"
संविधानवाद का सार
सरकार की शक्तियाँ संविधान द्वारा नियंत्रित होती हैं।
नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता की सुरक्षा होती है।
शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिए संतुलन और नियंत्रण की व्यवस्था होती है।
2. संविधानवाद के प्रमुख तत्व
1. सीमित सरकार (Limited Government)
संविधानवाद का सबसे महत्वपूर्ण तत्व यह है कि सरकार की शक्तियाँ सीमित होती हैं। संविधान द्वारा यह निर्धारित किया जाता है कि सरकार किन क्षेत्रों में कार्य कर सकती है और किन क्षेत्रों में नहीं।
2. विधि का शासन (Rule of Law)
संविधानवाद का आधार विधि का शासन (Rule of Law) है, जिसका अर्थ है कि
सभी नागरिकों के लिए कानून समान होता है।
सरकार भी कानून के अधीन होती है और मनमानी नहीं कर सकती।
न्यायपालिका स्वतंत्र होकर कानून की व्याख्या करती है।
3. मौलिक अधिकारों की सुरक्षा (Protection of Fundamental Rights)
संविधानवाद नागरिकों को उनके मौलिक अधिकारों, जैसे कि स्वतंत्रता, समानता, जीवन का अधिकार आदि की सुरक्षा प्रदान करता है।
4. शक्ति का पृथक्करण (Separation of Powers)
संविधानवाद के तहत सरकार की शक्तियों को तीन भागों में विभाजित किया जाता है—
कार्यपालिका (Executive) – प्रशासन चलाने के लिए
विधायिका (Legislature) – कानून बनाने के लिए
न्यायपालिका (Judiciary) – न्याय सुनिश्चित करने के लिए
इससे सरकार के अलग-अलग अंग स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकते हैं और सत्ता का संतुलन बना रहता है।
5. न्यायपालिका की स्वतंत्रता (Independence of Judiciary)
संविधानवाद में न्यायपालिका को स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाया जाता है ताकि वह संविधान की व्याख्या कर सके और सरकार को संविधान के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य कर सके।
6. लोकतांत्रिक प्रणाली (Democratic System)
संविधानवाद का मूल सिद्धांत यह है कि सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी हो।
शासन जनता द्वारा, जनता के लिए और जनता का होना चाहिए।
सरकार का गठन चुनावों के माध्यम से किया जाना चाहिए।
7. संवैधानिक नैतिकता (Constitutional Morality)
संविधानवाद केवल लिखित नियमों का पालन नहीं करता, बल्कि उसमें नैतिकता (Morality) भी आवश्यक होती है। सरकार को संविधान की भावना (Spirit of Constitution) के अनुसार कार्य करना चाहिए।
8. न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review)
संविधानवाद में न्यायपालिका को यह अधिकार दिया जाता है कि वह किसी भी सरकारी कानून या नीति की संवैधानिकता की जाँच कर सके। यदि कोई कानून संविधान के विरुद्ध है तो न्यायपालिका उसे असंवैधानिक घोषित कर सकती है।
9. लोकहित (Public Welfare)
संविधानवाद का अंतिम उद्देश्य सार्वजनिक हित को सुनिश्चित करना है। सरकार को ऐसी नीतियाँ बनानी चाहिए जो जनता के कल्याण के लिए हों।
3. निष्कर्ष
संविधानवाद एक ऐसी शासन व्यवस्था है जो सरकार की शक्तियों को सीमित करता है, नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है, और लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बनाए रखता है। यह सुनिश्चित करता है कि सरकार संवैधानिक सीमाओं के भीतर रहकर कार्य करे और किसी भी प्रकार की तानाशाही या अधिनायकवाद उत्पन्न न हो। इस प्रकार, संविधानवाद किसी भी लोकतांत्रिक समाज की नींव होता है।
प्रश्न 07
संघीय सरकार की संरचना और विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
संघीय सरकार की संरचना और विशेषताएँ
संघीय सरकार (Federal Government) एक ऐसी शासन प्रणाली होती है जिसमें सत्ता का विभाजन केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच किया जाता है। इस प्रणाली में दोहरी सरकार (Dual Government) होती है, जिसमें केंद्र और राज्यों की अलग-अलग शक्तियाँ होती हैं।
1. संघीय सरकार की संरचना (Structure of Federal Government)
संघीय शासन प्रणाली तीन मुख्य स्तरों पर कार्य करती है:
1. केंद्र सरकार (Central Government)
संघीय सरकार का सर्वोच्च स्तर होता है।
यह राष्ट्रीय स्तर पर कार्य करती है और रक्षा, विदेश नीति, मुद्रा, संचार आदि विषयों को नियंत्रित करती है।
केंद्र सरकार का नेतृत्व राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री करता है (देश की शासन प्रणाली के अनुसार)।
2. राज्य सरकार (State Government)
प्रत्येक राज्य की अपनी स्वतंत्र सरकार होती है।
राज्य सरकारें शिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस प्रशासन, कृषि आदि विषयों पर निर्णय लेती हैं।
राज्यों के पास अपनी विधानसभाएँ और मुख्यमंत्रियों का नेतृत्व होता है।
3. स्थानीय सरकार (Local Government)
संघीय देशों में स्थानीय प्रशासन को भी महत्व दिया जाता है।
इसमें नगर निगम (Municipal Corporations), ग्राम पंचायतें (Village Panchayats) आदि शामिल होते हैं।
ये स्थानीय विकास, जल आपूर्ति, सड़क निर्माण आदि से जुड़े कार्य करते हैं।
2. संघीय सरकार की विशेषताएँ (Features of Federal Government)
1. द्वैध शासन प्रणाली (Dual Government System)
संघीय शासन प्रणाली में दो स्तरों पर सरकार कार्य करती है—
राष्ट्रीय (National) स्तर पर केंद्र सरकार
प्रादेशिक (State) स्तर पर राज्य सरकार
दोनों सरकारें अपने-अपने क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं।
2. शक्तियों का विभाजन (Division of Powers)
संविधान के तहत शक्तियों का स्पष्ट विभाजन किया जाता है।
केंद्र सरकार: रक्षा, विदेश नीति, राष्ट्रीय सुरक्षा, मुद्रा
राज्य सरकार: शिक्षा, पुलिस, कृषि, स्वास्थ्य
संयुक्त विषय: कराधान, पर्यावरण, सामाजिक न्याय (भारत में समवर्ती सूची)
3. संविधान का सर्वोच्चता (Supremacy of Constitution)
संघीय शासन प्रणाली लिखित और कठोर संविधान पर आधारित होती है, जो सरकार के सभी अंगों को निर्देशित करता है।
4. स्वतंत्र न्यायपालिका (Independent Judiciary)
संघीय शासन में न्यायपालिका स्वतंत्र होती है और संघीय ढांचे की रक्षा करती है।
यह केंद्र और राज्य के बीच विवादों का समाधान करती है।
न्यायपालिका के पास संविधान की व्याख्या करने और किसी भी कानून को असंवैधानिक घोषित करने का अधिकार होता है।
5. द्विसदनीय विधायिका (Bicameral Legislature)
अधिकांश संघीय देशों में संसद द्विसदनीय (Bicameral) होती है, जिसमें—
उच्च सदन (Upper House) – राज्यों का प्रतिनिधित्व करता है (जैसे भारत में राज्यसभा, अमेरिका में सीनेट)।
निचला सदन (Lower House) – जनता द्वारा चुना जाता है (जैसे भारत में लोकसभा, अमेरिका में हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स)।
6. न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review)
संघीय शासन प्रणाली में न्यायपालिका को संविधान की व्याख्या करने और कानूनों की समीक्षा करने का अधिकार होता है।
7. केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संसाधनों का वितरण (Division of Financial Resources)
करों और राजस्व का वितरण केंद्र और राज्यों के बीच किया जाता है।
संघीय प्रणाली में वित्तीय स्वायत्तता दी जाती है ताकि राज्य अपने विकास कार्यों को स्वतंत्र रूप से चला सकें।
8. आपातकालीन प्रावधान (Emergency Provisions)
संघीय संविधान में ऐसे प्रावधान होते हैं, जिनके तहत राष्ट्रीय संकट की स्थिति में केंद्र सरकार को विशेष शक्तियाँ दी जा सकती हैं।
3. निष्कर्ष
संघीय सरकार एक संवैधानिक व्यवस्था है जिसमें राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सरकारें स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं, लेकिन संविधान द्वारा निर्देशित होती हैं। यह प्रणाली बड़े और विविध देशों में सफल मानी जाती है, क्योंकि यह क्षेत्रीय स्वायत्तता के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता को भी बनाए रखती है।
प्रश्न 08 राजनीतिक दल से क्या समझते है? इनके कार्यों और इसके गुण दोषों का वर्णन कीजिये
राजनीतिक दल: परिभाषा, कार्य, गुण और दोष
1. राजनीतिक दल की परिभाषा
राजनीतिक दल (Political Party) एक संगठित समूह होता है जो समान विचारधारा और सामान्य लक्ष्यों के साथ सरकार बनाने और नीति-निर्माण में भाग लेने के लिए कार्य करता है। राजनीतिक दल जनता के बीच जागरूकता फैलाने, चुनाव लड़ने और सरकार के क्रियाकलापों को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
प्रमुख परिभाषाएँ:
एडमंड बर्क (Edmund Burke) – "राजनीतिक दल व्यक्तियों का ऐसा समूह होता है जो राष्ट्रीय हितों को बढ़ावा देने के लिए मिलकर कार्य करता है।"
गिलक्राइस्ट (Gilchrist) – "राजनीतिक दल विचारों की एक निश्चित धारा पर विश्वास रखने वाले व्यक्तियों का ऐसा संगठन है, जो सत्ता प्राप्त कर अपने विचारों को लागू करना चाहता है।"
राजनीतिक दलों के प्रकार:
एकदलीय प्रणाली – जैसे चीन (कम्युनिस्ट पार्टी)
द्विदलीय प्रणाली – जैसे अमेरिका (डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी)
बहुदलीय प्रणाली – जैसे भारत (भाजपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, आदि)
2. राजनीतिक दलों के कार्य (Functions of Political Parties)
1. जनमत निर्माण (Public Opinion Formation)
राजनीतिक दल जनता को विभिन्न मुद्दों पर शिक्षित करते हैं और उनके विचारों को एक मंच प्रदान करते हैं।
वे अखबारों, सोशल मीडिया, जनसभाओं आदि के माध्यम से अपनी नीतियाँ जनता तक पहुँचाते हैं।
2. चुनाव लड़ना और सरकार बनाना (Contesting Elections and Forming Government)
राजनीतिक दल चुनावों में भाग लेते हैं और बहुमत प्राप्त करने पर सरकार बनाते हैं।
पराजित दल विपक्ष में रहकर सरकार की नीतियों की समीक्षा करते हैं।
3. नीति-निर्माण और कानून-निर्माण (Policy and Law Making)
सत्ता में आने के बाद, राजनीतिक दल विकास योजनाएँ, आर्थिक नीतियाँ और सामाजिक सुधार से जुड़े कानून बनाते हैं।
4. सरकार को नियंत्रित करना (Controlling the Government)
राजनीतिक दल सरकार की गतिविधियों पर नज़र रखते हैं और प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने में योगदान देते हैं।
विपक्षी दल सरकार की नीतियों की समीक्षा करके लोकतंत्र को सशक्त बनाते हैं।
5. जनता और सरकार के बीच सेतु का कार्य (Bridge Between Government and People)
राजनीतिक दल जनता की समस्याओं और मांगों को सरकार तक पहुँचाते हैं।
वे विभिन्न जन आंदोलनों और विरोध प्रदर्शनों के माध्यम से सरकार पर दबाव बनाते हैं।
3. राजनीतिक दलों के गुण (Merits of Political Parties)
1. लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाते हैं (Strengthening Democracy)
राजनीतिक दल लोकतंत्र को प्रभावी बनाते हैं, क्योंकि वे जनता को संगठित करने और सरकार के प्रति उत्तरदायी बनाने में मदद करते हैं।
2. जनता को जागरूक बनाते हैं (Public Awareness)
ये विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर जनता को शिक्षित करते हैं।
3. कुशल प्रशासन में सहायक (Efficient Governance)
सत्ता में आने पर, राजनीतिक दल प्रशासन को व्यवस्थित तरीके से संचालित करने में सहायक होते हैं।
4. विविध विचारों को मंच प्रदान करते हैं (Platform for Diverse Views)
राजनीतिक दल विभिन्न विचारधाराओं और नीतियों का प्रतिनिधित्व करके लोकतांत्रिक बहस को बढ़ावा देते हैं।
5. विपक्ष की भूमिका (Role of Opposition)
विपक्षी दल सरकार की नीतियों की समीक्षा करते हैं और लोकतांत्रिक संतुलन बनाए रखते हैं।
4. राजनीतिक दलों के दोष (Demerits of Political Parties)
1. सत्ता प्राप्ति की होड़ (Hunger for Power)
कई बार राजनीतिक दल सत्ता प्राप्त करने के लिए सिद्धांतों और नैतिकता से समझौता कर लेते हैं।
2. भ्रष्टाचार को बढ़ावा (Encouraging Corruption)
सत्ता में बने रहने के लिए राजनीतिक दल भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और अनैतिक तरीकों का सहारा लेते हैं।
3. जातिवाद और साम्प्रदायिकता (Casteism and Communalism)
कई राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए जाति, धर्म और क्षेत्रीय भावनाओं का उपयोग करते हैं, जिससे समाज में विभाजन बढ़ता है।
4. दलगत राजनीति (Party Politics)
कई बार राजनीतिक दल राष्ट्रहित से अधिक अपने स्वार्थों को प्राथमिकता देते हैं, जिससे नीति-निर्माण प्रभावित होता है।
5. लोकतंत्र की अस्थिरता (Political Instability)
बहुदलीय व्यवस्था में गठबंधन सरकारें बनती हैं, जो कभी-कभी अस्थिर हो जाती हैं और शासन प्रभावित होता है।
5. निष्कर्ष
राजनीतिक दल लोकतंत्र का अभिन्न अंग हैं। वे जनमत निर्माण, नीति-निर्माण और सरकार के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालाँकि, कई बार सत्ता की लालसा और भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं के कारण लोकतंत्र प्रभावित होता है। इसलिए, राजनीतिक दलों को जनहित को सर्वोपरि रखते हुए पारदर्शिता और नैतिकता को बनाए रखना चाहिए।
प्रश्न 09
दबाव समूह से आप क्या समझते हैं? दबाव समूह की विशेषताएं बताइए।
दबाव समूह: परिभाषा एवं विशेषताएँ
1. दबाव समूह की परिभाषा (Definition of Pressure Groups)
दबाव समूह (Pressure Groups) वे संगठन होते हैं जो सरकार या प्रशासन पर प्रभाव डालने के लिए कार्य करते हैं, लेकिन उनका उद्देश्य सीधे चुनाव लड़कर सत्ता प्राप्त करना नहीं होता। ये समूह विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, व्यावसायिक और राजनीतिक मुद्दों पर सरकार की नीतियों को प्रभावित करने का कार्य करते हैं।
प्रमुख परिभाषाएँ:
गिलक्राइस्ट (Gilchrist): "दबाव समूह वे संगठन होते हैं जो सरकार को प्रभावित करने के लिए संगठित होते हैं, लेकिन वे स्वयं सरकार का हिस्सा नहीं बनते।"
ए. एफ. बेंटले (A. F. Bentley): "दबाव समूह वे संघ होते हैं जो अपनी विशिष्ट मांगों को पूरा करने के लिए राजनीतिक प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं।"
हरॉल्ड लास्की (Harold Laski): "दबाव समूह जनता और सरकार के बीच की कड़ी होते हैं, जो विभिन्न हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं।"
दबाव समूहों के प्रकार:
आर्थिक दबाव समूह: व्यापारी संघ, चैंबर ऑफ कॉमर्स
व्यावसायिक दबाव समूह: डॉक्टर, वकील, इंजीनियर संघ
सामाजिक एवं जातिगत दबाव समूह: दलित महासभा, ब्राह्मण महासभा
श्रमिक संगठन: भारतीय मजदूर संघ, हिंद मजदूर सभा
कृषक संगठन: भारतीय किसान यूनियन
धार्मिक एवं सांस्कृतिक दबाव समूह: विश्व हिंदू परिषद, मुस्लिम लीग
नारी संगठन: राष्ट्रीय महिला आयोग
2. दबाव समूहों की विशेषताएँ (Features of Pressure Groups)
1. सरकार पर प्रभाव डालने की कोशिश (Influencing the Government)
दबाव समूह चुनाव नहीं लड़ते, बल्कि सरकार की नीतियों और निर्णयों को प्रभावित करने का कार्य करते हैं।
वे जनमत तैयार करके सरकार पर अपनी माँगें पूरी करने का दबाव बनाते हैं।
2. संगठन आधारित गतिविधियाँ (Organized Activities)
दबाव समूह सुव्यवस्थित और संगठित होते हैं।
वे अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए रैलियों, हड़तालों, जनसभाओं आदि का आयोजन करते हैं।
3. गैर-राजनीतिक लेकिन राजनीतिक प्रभाव (Non-Political but Politically Influential)
ये समूह स्वयं राजनीति में भाग नहीं लेते, लेकिन राजनीतिक दलों और सरकारों पर प्रभाव डालते हैं।
कई बार ये चुनावों में किसी विशेष दल या उम्मीदवार का समर्थन भी करते हैं।
4. विशेष हितों का प्रतिनिधित्व (Representation of Specific Interests)
दबाव समूह किसी विशेष वर्ग, समुदाय, व्यवसाय या संगठन के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
जैसे, ट्रेड यूनियन मज़दूरों के हितों की रक्षा करती है, जबकि उद्योग संगठन व्यापारियों के हितों के लिए काम करता है।
5. जनमत निर्माण (Public Opinion Formation)
दबाव समूह अख़बारों, सोशल मीडिया, टीवी और जनसभाओं के माध्यम से जनता को शिक्षित करते हैं और सरकार पर अपनी माँगों को पूरा करने के लिए दबाव बनाते हैं।
6. कानून निर्माण को प्रभावित करना (Influencing Legislation)
ये समूह सांसदों और विधायकों से संपर्क करके अपने हितों के अनुसार कानून बनवाने या बदलवाने की कोशिश करते हैं।
वे सरकारी नीति-निर्माण में भागीदारी निभाते हैं।
7. विभिन्न तरीकों का प्रयोग (Use of Different Methods)
शांतिपूर्ण प्रदर्शन, याचिकाएँ, हड़तालें, मीडिया अभियान, लॉबिंग (Lobbying), जनहित याचिका (PIL) आदि।
कभी-कभी ये असंवैधानिक तरीकों जैसे उग्र प्रदर्शन या हिंसा का भी सहारा लेते हैं।
8. राजनीतिक दलों से संबंध (Link with Political Parties)
दबाव समूह राजनीतिक दलों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े होते हैं और अपनी नीतियों को बढ़ावा देने के लिए उनके माध्यम से सरकार को प्रभावित करते हैं।
3. निष्कर्ष (Conclusion)
दबाव समूह लोकतंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि वे विभिन्न वर्गों और समुदायों के हितों की रक्षा करते हैं। ये सरकार और जनता के बीच मध्यस्थ (Mediator) का कार्य करते हैं और नीतिगत सुधारों को प्रभावित करते हैं। हालाँकि, जब ये स्वार्थों के लिए अनुचित दबाव डालते हैं या हिंसा का सहारा लेते हैं, तो यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए हानिकारक हो सकता है। इसलिए, इनका कार्य पारदर्शी और जनहित में होना चाहिए।
प्रश्न 10 जनमत और सरकार की जवाबदेही के बीच संबंध का विश्लेषण कीजिए।
जनमत और सरकार की जवाबदेही के बीच संबंध का विश्लेषण
1. परिचय (Introduction)
जनमत (Public Opinion) किसी भी लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में सरकार की नीतियों, कार्यों और निर्णयों को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक होता है। लोकतंत्र में सरकार जनता के प्रति जवाबदेह (Accountable) होती है और उसे जनभावनाओं का सम्मान करना होता है। यदि सरकार जनता की इच्छाओं और आवश्यकताओं को नज़रअंदाज़ करती है, तो जनता उसे अगले चुनाव में अस्वीकार कर सकती है। इसलिए, जनमत और सरकार की जवाबदेही का गहरा संबंध होता है।
2. जनमत और सरकार की जवाबदेही का परस्पर संबंध (Relationship Between Public Opinion and Government Accountability)
1. लोकतंत्र की आधारशिला (Foundation of Democracy)
लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है, इसलिए उसे जनमत का सम्मान करना अनिवार्य होता है।
यदि सरकार जनहित में कार्य नहीं करती, तो जनता उसे चुनावों में सत्ता से हटा सकती है।
2. सरकार की नीतियों को प्रभावित करना (Influencing Government Policies)
जनमत सरकार को यह संकेत देता है कि जनता किन मुद्दों को अधिक प्राथमिकता देती है।
जब जनता किसी नीति का विरोध करती है, तो सरकार को नीति में संशोधन करने या उसे वापस लेने पर मजबूर होना पड़ता है।
उदाहरण: भारत में 2020 के कृषि कानूनों के खिलाफ व्यापक जनमत और विरोध के कारण सरकार को उन्हें वापस लेना पड़ा।
3. चुनावों में जनता का निर्णय (Public Decision in Elections)
चुनावों के माध्यम से जनता सरकार के कार्यों का मूल्यांकन करती है।
यदि सरकार जनता की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरती, तो जनता दूसरे दल को सत्ता सौंप सकती है।
उदाहरण: 1977 में आपातकाल (Emergency) के बाद जनता ने इंदिरा गांधी की सरकार को हटा दिया।
4. मीडिया और जनमत (Media and Public Opinion)
मीडिया सरकार की नीतियों और उसके कार्यों की जानकारी जनता तक पहुँचाता है, जिससे जनमत का निर्माण होता है।
सरकार मीडिया और जनमत के आधार पर अपनी कार्यशैली में सुधार करती है।
5. जन आंदोलनों का प्रभाव (Impact of Public Movements)
जब सरकार जनता की माँगों को अनदेखा करती है, तो जनता आंदोलन और प्रदर्शन के माध्यम से अपनी आवाज़ उठाती है।
यदि किसी मुद्दे पर व्यापक जनसमर्थन मिलता है, तो सरकार को नीतिगत बदलाव करने पड़ते हैं।
उदाहरण: 2011 में अन्ना हजारे के नेतृत्व में लोकपाल आंदोलन के कारण सरकार को लोकपाल कानून बनाना पड़ा।
6. उत्तरदायी शासन की आवश्यकता (Need for Responsible Governance)
सरकार को जवाबदेह बनाने के लिए जनमत का सक्रिय और सूचित होना आवश्यक है।
यदि जनता निष्क्रिय हो जाती है, तो सरकारें मनमाने तरीके से शासन कर सकती हैं।
जागरूक जनता सरकार को पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के लिए बाध्य करती है।
3. सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने में जनमत की भूमिका (Role of Public Opinion in Ensuring Government Accountability)
1. सरकार पर नैतिक दबाव (Moral Pressure on Government)
जनमत सरकार पर नैतिक दबाव डालता है कि वह जनता के कल्याण के लिए कार्य करे।
2. भ्रष्टाचार पर नियंत्रण (Control Over Corruption)
जब जनता भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाती है, तो सरकार को पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ानी पड़ती है।
उदाहरण: सूचना का अधिकार (RTI) कानून को लागू करने में जनमत की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
3. कानूनों की समीक्षा (Review of Laws and Policies)
यदि कोई कानून जनता के हितों के खिलाफ होता है, तो व्यापक जनमत उसे निरस्त करने के लिए सरकार को मजबूर कर सकता है।
उदाहरण: 2012 में दिल्ली गैंगरेप केस के बाद जनता के दबाव के कारण सरकार को महिला सुरक्षा कानूनों में सुधार करने पड़े।
4. सरकार की पारदर्शिता सुनिश्चित करना (Ensuring Transparency in Government)
जब जनता जागरूक होती है, तो सरकार को खुलापन और पारदर्शिता बनाए रखनी पड़ती है।
स्वतंत्र मीडिया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जनमत को व्यक्त करने के प्रमुख साधन बन गए हैं।
4. निष्कर्ष (Conclusion)
जनमत और सरकार की जवाबदेही का रिश्ता लोकतंत्र के आधारभूत स्तंभों में से एक है। एक जागरूक और सक्रिय जनता ही सरकार को उत्तरदायी बना सकती है। यदि जनता निष्क्रिय रहती है, तो सरकारें अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर सकती हैं। इसलिए, लोकतंत्र में नागरिकों की भागीदारी और जनमत की अभिव्यक्ति सरकार की जवाबदेही को सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य है।
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