BAPA(N)201 SOLVED IMPORTANT QUESTIONS 2025
प्रश्न 01 : भारतीय प्रशासन की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
भारतीय प्रशासन की विशेषताओं की विवेचना निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर की जा सकती है—
1. लोकतांत्रिक प्रशासन
भारतीय प्रशासन एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत संचालित होता है। यह जनता द्वारा, जनता के लिए और जनता के द्वारा चुनी गई सरकार के प्रति उत्तरदायी होता है। प्रशासनिक अधिकारियों को सरकार की नीतियों को लागू करने के साथ-साथ नागरिकों की सेवा करने का दायित्व सौंपा जाता है।
2. संघीय प्रशासनिक संरचना
भारत एक संघीय राज्य है, जिसमें प्रशासनिक व्यवस्था केंद्र और राज्यों के बीच विभाजित है। संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार, विषयों को केंद्रीय सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची में विभाजित किया गया है, जिससे प्रशासनिक उत्तरदायित्व स्पष्ट रूप से परिभाषित होता है।
3. नौकरशाही प्रणाली
भारतीय प्रशासन में नौकरशाही एक प्रमुख तत्व है, जो वेबरियन मॉडल (Weberian Model) पर आधारित है। इसमें एक औपचारिक पदानुक्रम, स्पष्ट नियम और प्रक्रियाएँ तथा योग्यता आधारित भर्ती होती है। भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS) और भारतीय राजस्व सेवा (IRS) जैसी सेवाएँ इसका हिस्सा हैं।
4. संविधान द्वारा निर्देशित प्रशासन
भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था संविधान के तहत संचालित होती है। प्रशासनिक अधिकारियों को संवैधानिक मूल्यों जैसे कि समानता, स्वतंत्रता, धर्मनिरपेक्षता और न्याय का पालन करना आवश्यक होता है। इसके अलावा, लोक सेवकों को मौलिक अधिकारों और नीति निदेशक तत्वों का भी ध्यान रखना होता है।
5. विकेंद्रीकरण और पंचायत राज
भारत में प्रशासन को अधिक प्रभावी बनाने के लिए विकेंद्रीकरण को अपनाया गया है। 73वें और 74वें संविधान संशोधनों के माध्यम से स्थानीय प्रशासन को सशक्त किया गया है, जिससे पंचायत राज और नगर पालिका संस्थाओं को अधिक स्वायत्तता मिली है।
6. कल्याणकारी राज्य की अवधारणा
भारतीय प्रशासन कल्याणकारी राज्य के सिद्धांतों पर आधारित है। सरकार द्वारा शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक न्याय, गरीबी उन्मूलन, महिला सशक्तिकरण और अल्पसंख्यक कल्याण के लिए विभिन्न योजनाएँ चलाई जाती हैं। प्रशासन इन योजनाओं को क्रियान्वित करने की जिम्मेदारी निभाता है।
7. न्यायिक नियंत्रण और उत्तरदायित्व
भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था पर न्यायपालिका का नियंत्रण होता है। यदि कोई प्रशासनिक निर्णय नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय हस्तक्षेप कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, लोक सेवा आयोग (UPSC, SSC, PSC) और सतर्कता आयोग जैसी संस्थाएँ प्रशासनिक पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करती हैं।
8. तकनीकी और डिजिटल प्रशासन
सूचना प्रौद्योगिकी के बढ़ते उपयोग के कारण भारतीय प्रशासन में ई-गवर्नेंस को महत्व दिया जा रहा है। डिजिटलीकरण, आधार कार्ड, ऑनलाइन सेवाएँ, डिजिटल भुगतान, और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) जैसी योजनाएँ प्रशासन को अधिक पारदर्शी और प्रभावी बना रही हैं।
9. परिवर्तनशील और लचीला प्रशासन
भारतीय प्रशासन समय के साथ बदलते सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तनों के अनुसार खुद को ढालता है। नई नीतियाँ, विधेयक और सुधार प्रशासन को अधिक जनहितैषी और उत्तरदायी बनाने में सहायक होते हैं।
निष्कर्ष
भारतीय प्रशासन एक बहुआयामी, लोकतांत्रिक और संवैधानिक ढांचे के तहत संचालित होने वाली प्रणाली है। यह न केवल कानून और शासन को प्रभावी रूप से लागू करता है, बल्कि समाज के कमजोर वर्गों के उत्थान में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि, इसमें भ्रष्टाचार, लालफीताशाही और अक्षमताओं जैसी चुनौतियाँ भी हैं, जिन्हें प्रभावी सुधारों के माध्यम से दूर करने की आवश्यकता है।
प्रश्न02 स्वतंत्रता के बाद भारतीय प्रशासन की प्रकृति में परिवर्तन के कारणों की व्याख्या कीजिए।
स्वतंत्रता के बाद भारतीय प्रशासन की प्रकृति में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए, जो विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और तकनीकी कारकों से प्रेरित थे। इन परिवर्तनों के प्रमुख कारणों की व्याख्या निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर की जा सकती है—
1. लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की स्थापना
स्वतंत्रता से पहले भारत में प्रशासन ब्रिटिश उपनिवेशवादी सरकार के अधीन था, जो दमनकारी और केंद्रीकृत थी। स्वतंत्रता के बाद भारत में एक लोकतांत्रिक प्रणाली लागू हुई, जिससे प्रशासन जनता के प्रति अधिक उत्तरदायी और पारदर्शी बनने लगा। प्रशासनिक नीतियाँ अब नागरिकों के कल्याण और भागीदारी को ध्यान में रखते हुए बनाई जाने लगीं।
2. संविधान की भूमिका
1950 में संविधान लागू होने के बाद भारतीय प्रशासन को एक नया दिशा-निर्देश मिला। संविधान ने मौलिक अधिकार, नीति निदेशक तत्व और संघीय ढांचे जैसी व्यवस्थाएँ दीं, जिनके कारण प्रशासनिक नीतियों में आमूलचूल परिवर्तन हुए। प्रशासन अब जनता के अधिकारों की रक्षा और सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य करने लगा।
3. कल्याणकारी राज्य की अवधारणा
स्वतंत्रता के बाद भारत ने कल्याणकारी राज्य (Welfare State) का आदर्श अपनाया, जिससे प्रशासन की भूमिका केवल कानून-व्यवस्था तक सीमित न रहकर सामाजिक-आर्थिक विकास तक विस्तारित हो गई। गरीबी उन्मूलन, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाएँ लागू की गईं, जिससे प्रशासन की कार्यप्रणाली अधिक जनकल्याणकारी हो गई।
4. पंचायती राज एवं विकेंद्रीकरण
1950 और 1990 के दशकों के दौरान प्रशासन में विकेंद्रीकरण को बढ़ावा दिया गया। 73वें और 74वें संविधान संशोधनों (1992) के माध्यम से पंचायती राज और शहरी स्थानीय निकायों को मजबूत किया गया। इससे प्रशासन स्थानीय स्तर पर अधिक प्रभावी और उत्तरदायी बना, जिससे आम जनता की भागीदारी बढ़ी।
5. आर्थिक उदारीकरण और वैश्वीकरण
1991 में आर्थिक उदारीकरण की नीति लागू होने के बाद प्रशासन की प्रकृति में बड़ा बदलाव आया। सरकारी नियंत्रण वाले आर्थिक मॉडल को छोड़कर निजीकरण, वैश्वीकरण और मुक्त व्यापार को अपनाया गया। इससे प्रशासनिक प्रक्रियाओं में अधिक पारदर्शिता, प्रतिस्पर्धा और जवाबदेही आई।
6. सूचना प्रौद्योगिकी और ई-गवर्नेंस
तकनीकी प्रगति के कारण प्रशासन में डिजिटल बदलाव आया। ई-गवर्नेंस, ऑनलाइन सेवाएँ, डिजिटल पहचान (आधार कार्ड), डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) और मोबाइल गवर्नेंस जैसी योजनाओं ने प्रशासन को अधिक कुशल, पारदर्शी और त्वरित बना दिया।
7. न्यायपालिका और प्रशासनिक सुधार
स्वतंत्रता के बाद न्यायपालिका की भूमिका भी बढ़ी। जनहित याचिका (PIL) जैसी व्यवस्थाओं के कारण प्रशासन पर न्यायिक नियंत्रण बढ़ा, जिससे प्रशासनिक प्रक्रियाएँ अधिक जवाबदेह बनीं। इसके अतिरिक्त, प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) की सिफारिशों के तहत विभिन्न सुधार किए गए, जैसे कि लोकपाल की स्थापना और नागरिक सेवा सुधार।
8. वैश्विक और राष्ट्रीय चुनौतियाँ
जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, साइबर अपराध और आपदाओं जैसी चुनौतियों ने प्रशासन को और अधिक उत्तरदायी और त्वरित प्रतिक्रिया देने वाला बनाया। कोविड-19 महामारी जैसी आपदाओं के दौरान प्रशासन ने आपातकालीन योजनाओं और डिजिटल सेवाओं को प्राथमिकता दी।
निष्कर्ष
स्वतंत्रता के बाद भारतीय प्रशासन की प्रकृति में लोकतंत्र, आर्थिक नीतियों, विकेंद्रीकरण, तकनीकी प्रगति और वैश्विक चुनौतियों के कारण बड़े बदलाव हुए। आज का प्रशासन पहले की तुलना में अधिक नागरिक-केंद्रित, उत्तरदायी और तकनीक-सक्षम बन चुका है, हालांकि भ्रष्टाचार, लालफीताशाही और अक्षमता जैसी चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं।
प्रश्न03
मुगल प्रशासन केंद्रीय प्रशासन था स्पष्ट कीजिए।
मुगल प्रशासन केंद्रीय प्रशासन था, क्योंकि इसकी संरचना शक्तिशाली सम्राट के अधीन थी, जो शासन की सर्वोच्च सत्ता का प्रतिनिधित्व करता था। प्रशासनिक तंत्र पूरी तरह से केंद्र में निहित था और सभी प्रमुख नीतिगत निर्णय सम्राट द्वारा लिए जाते थे। इसको निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है—
1. सम्राट सर्वोच्च शासक
मुगल प्रशासन की केंद्रीय विशेषता यह थी कि संपूर्ण शक्ति सम्राट के हाथों में केंद्रित थी। सम्राट न केवल प्रशासनिक बल्कि सैन्य, न्यायिक और धार्मिक मामलों का भी प्रमुख होता था। उसे 'जहाँपनाह' और 'शाहंशाह' की उपाधियाँ दी जाती थीं, जो उसके सर्वशक्तिमान होने का प्रतीक थीं।
2. मंत्रिपरिषद (दार-उल-शूरा)
यद्यपि सम्राट सर्वोच्च सत्ता था, लेकिन उसे प्रशासन चलाने के लिए एक मंत्रिपरिषद की सहायता प्राप्त थी। इसके प्रमुख अधिकारी निम्नलिखित थे—
वज़ीर (प्रधान मंत्री) – वह राजकोषीय और प्रशासनिक मामलों का प्रमुख होता था।
मीर बख्शी – सैन्य विभाग का प्रमुख, जो सेना की भर्ती और वेतन आदि का कार्य देखता था।
सदर-उस-सदर – धार्मिक मामलों और दान-परोपकार की देखरेख करता था।
मीर सामान – शाही महल और सम्राट की निजी संपत्ति का प्रबंधन करता था।
दीवान – वित्तीय मामलों को नियंत्रित करता था।
3. प्रांतीय प्रशासन पर केंद्र का नियंत्रण
मुगल साम्राज्य को कई प्रांतों (सूबहों) में विभाजित किया गया था, लेकिन प्रांतीय शासक (सूबेदार) सीधे सम्राट के नियंत्रण में रहते थे। प्रशासनिक आदेश और राजस्व नीति केंद्र से ही तय की जाती थी।
4. राजस्व प्रशासन की केंद्रीयता
अकबर ने टोडरमल की सहायता से एक सुव्यवस्थित राजस्व प्रणाली विकसित की, जिसे ज़ब्ती प्रणाली या दहसाला प्रणाली कहा गया। पूरे साम्राज्य में एक समान कर प्रणाली लागू थी, जिसे केंद्र से नियंत्रित किया जाता था।
5. न्यायिक प्रशासन का केंद्रीकरण
सम्राट सर्वोच्च न्यायाधीश था। पूरे राज्य में शरिया और सामान्य कानून लागू थे। उच्च स्तर पर काजी-उल-कज़ात (मुख्य न्यायाधीश) न्याय व्यवस्था का संचालन करता था, लेकिन अंतिम निर्णय सम्राट द्वारा लिया जा सकता था।
6. सैन्य प्रशासन पर केंद्र का नियंत्रण
मुगल सैन्य व्यवस्था पूरी तरह से केंद्रीयकृत थी। मनसबदारी प्रणाली के तहत सैनिकों की भर्ती और वेतन का निर्धारण केंद्र द्वारा किया जाता था। मनसबदारों की पदवी, वेतन और उत्तरदायित्व सम्राट की मर्जी पर निर्भर थे।
7. धार्मिक और सांस्कृतिक एकता बनाए रखने की नीति
मुगल सम्राट, विशेष रूप से अकबर, ने धार्मिक सहिष्णुता (सुलह-ए-कुल) की नीति अपनाई, जिसे पूरे साम्राज्य में लागू किया गया। यह भी केंद्रीय प्रशासन के अंतर्गत आने वाली एक महत्वपूर्ण नीति थी।
निष्कर्ष
मुगल प्रशासन एक मजबूत केंद्रीय प्रशासन था, जहाँ सभी शक्तियाँ सम्राट के अधीन थीं। प्रांतीय और स्थानीय स्तर पर प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त किए जाते थे, लेकिन वे पूरी तरह से केंद्र सरकार के प्रति उत्तरदायी होते थे। राजस्व, सैन्य, न्याय और प्रशासनिक नीतियाँ केंद्र द्वारा बनाई जाती थीं और पूरे साम्राज्य में समान रूप से लागू की जाती थीं।
प्रश्न04
भारतीय संविधान की विशेषताएं बताइए।
भारतीय संविधान दुनिया का सबसे विस्तृत और विस्तृत रूप से लिखा गया संविधान है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—
1. लिखित और विस्तृत संविधान
भारतीय संविधान एक लिखित और विस्तृत दस्तावेज है। इसमें 22 भाग, 395 अनुच्छेद (मूल संविधान में), और 12 अनुसूचियाँ शामिल थीं। संशोधनों के कारण अनुच्छेदों की संख्या बढ़ गई है।
2. संसदीय प्रणाली
संविधान ने संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया है, जिसमें कार्यपालिका (Executive) विधायिका (Legislature) के प्रति उत्तरदायी होती है। भारत में राष्ट्रपति राष्ट्राध्यक्ष होता है, लेकिन वास्तविक शक्ति प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद के पास होती है।
3. संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य
संविधान के उद्देशिका (Preamble) में भारत को एक संप्रभु (Sovereign), समाजवादी (Socialist), धर्मनिरपेक्ष (Secular), लोकतांत्रिक (Democratic) गणराज्य (Republic) घोषित किया गया है।
संप्रभुता का अर्थ है कि भारत किसी अन्य देश के अधीन नहीं है।
समाजवाद का उद्देश्य समाज में समानता और कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है।
धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि सरकार किसी विशेष धर्म को नहीं अपनाएगी और सभी धर्मों को समान सम्मान देगी।
लोकतंत्र जनता द्वारा चुनी गई सरकार को संदर्भित करता है।
गणराज्य का अर्थ है कि राज्य का प्रमुख (राष्ट्रपति) वंशानुगत नहीं होता, बल्कि एक निर्धारित कार्यकाल के लिए चुना जाता है।
4. मौलिक अधिकारों की गारंटी
भारतीय संविधान नागरिकों को छह मौलिक अधिकार प्रदान करता है—
समता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)
स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)
शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)
संस्कृति और शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 29-30)
संविधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)
5. नीति निदेशक तत्व (DPSP)
संविधान का भाग 4 (अनुच्छेद 36-51) सरकार को कल्याणकारी राज्य स्थापित करने के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करता है। ये न्यायिक रूप से बाध्यकारी नहीं हैं, लेकिन राज्य इनका पालन करने के लिए प्रयास करता है।
6. संघीयता और एकात्मक झुकाव
भारत एक संघीय राज्य है, लेकिन इसमें केंद्र सरकार को अधिक शक्तियाँ दी गई हैं। संविधान के अनुसार, शक्तियों का विभाजन तीन सूचियों में किया गया है—
संघ सूची (केंद्र सरकार के अधीन)
राज्य सूची (राज्य सरकार के अधीन)
समवर्ती सूची (केंद्र और राज्य दोनों के अधीन)
7. न्यायपालिका की स्वतंत्रता
भारतीय संविधान न्यायपालिका को कार्यपालिका और विधायिका से स्वतंत्र रखता है। सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों को नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने और संविधान की व्याख्या करने का अधिकार है।
8. मूल कर्तव्य (Fundamental Duties)
42वें संशोधन (1976) के तहत संविधान में भाग 4A जोड़ा गया, जिसमें 11 मूल कर्तव्य शामिल किए गए। ये नागरिकों को राष्ट्र और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों की याद दिलाते हैं।
9. आपातकालीन प्रावधान
संविधान का भाग 18 (अनुच्छेद 352-360) आपातकालीन स्थितियों से निपटने के लिए केंद्र सरकार को विशेष शक्तियाँ प्रदान करता है। आपातकाल तीन प्रकार के होते हैं—
राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352)
राज्य आपातकाल (राष्ट्रपति शासन) (अनुच्छेद 356)
वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360)
10. संशोधन की प्रक्रिया
भारतीय संविधान को लचीला और कठोर दोनों माना जाता है। अनुच्छेद 368 के तहत इसे संशोधित किया जा सकता है। अब तक 100 से अधिक संशोधन किए जा चुके हैं।
निष्कर्ष
भारतीय संविधान एक अद्वितीय दस्तावेज है, जो लोकतंत्र, न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को बनाए रखते हुए एक सशक्त प्रशासनिक ढांचा प्रदान करता है। यह भारतीय समाज की विविधता को समाहित करते हुए एकता को बनाए रखने का प्रयास करता है।
प्रश्न05
भारतीय प्रशासन के पर्यावरण पर निबंध लिखिए।
भारतीय प्रशासन के पर्यावरण पर निबंध
भूमिका
भारतीय प्रशासन एक जटिल और विस्तृत प्रणाली है, जो विभिन्न आंतरिक एवं बाह्य कारकों से प्रभावित होती है। प्रशासनिक पर्यावरण उन कारकों का समुच्चय है, जो सरकार और प्रशासन की नीतियों, कार्यशैली और निर्णय-प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। भारतीय प्रशासन के पर्यावरण को राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, तकनीकी और कानूनी तत्वों के संदर्भ में समझा जा सकता है।
भारतीय प्रशासन के पर्यावरण के प्रमुख घटक
राजनीतिक पर्यावरण
भारतीय प्रशासन की संरचना और कार्यशैली देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था से प्रभावित होती है। संसदीय प्रणाली, केंद्र-राज्य संबंध, राजनीतिक स्थिरता, सरकार की विचारधारा, राजनीतिक दलों की भूमिका और चुनावी प्रक्रियाएँ प्रशासन पर गहरा प्रभाव डालती हैं। नीतियों का निर्माण और क्रियान्वयन राजनीतिक सत्ता और प्रशासनिक तंत्र के सामंजस्य पर निर्भर करता है।
आर्थिक पर्यावरण
आर्थिक नीतियाँ, बजट, राजस्व प्रणाली, औद्योगीकरण, वैश्वीकरण, आर्थिक असमानता और सरकारी व्यय का स्तर प्रशासनिक कार्यों को प्रभावित करता है। योजना आयोग (अब नीति आयोग) और वित्त आयोग जैसी संस्थाएँ प्रशासनिक निर्णयों को दिशा प्रदान करती हैं। आर्थिक सुधारों के तहत उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG) ने प्रशासन की भूमिका को व्यापक रूप से परिवर्तित किया है।
सामाजिक एवं सांस्कृतिक पर्यावरण
भारतीय समाज विविधताओं से भरा हुआ है, जहाँ विभिन्न जातीय, धार्मिक, भाषाई और सांस्कृतिक समूह सह-अस्तित्व में हैं। प्रशासन को समाज में फैली असमानताओं, जातिवाद, साम्प्रदायिकता, क्षेत्रीयता और लैंगिक भेदभाव से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय से जुड़े प्रशासनिक प्रयास समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
तकनीकी पर्यावरण
डिजिटल क्रांति और सूचना प्रौद्योगिकी ने प्रशासन की दक्षता को बढ़ाया है। ई-गवर्नेंस, डिजिटलीकरण, आधार प्रणाली, ऑनलाइन सेवाएँ और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित प्रशासनिक निर्णय प्रणाली ने कार्यप्रणाली को अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी बनाया है। हाल के वर्षों में, डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सिटी मिशन और डिजिटल लेनदेन जैसी पहलों ने प्रशासनिक तंत्र को आधुनिक बनाया है।
कानूनी और संवैधानिक पर्यावरण
भारतीय संविधान प्रशासन की आधारशिला है। संविधान में उल्लिखित मौलिक अधिकार, नीति निदेशक तत्व, न्यायिक समीक्षा, नागरिक अधिकार, आरक्षण प्रणाली और विधिक प्रक्रियाएँ प्रशासन के कार्यों को प्रभावित करती हैं। इसके अलावा, संसद द्वारा बनाए गए कानून, न्यायपालिका के निर्णय, और मानवाधिकार आयोग जैसी संस्थाएँ प्रशासनिक ढांचे को नियंत्रित करने का कार्य करती हैं।
वैश्विक पर्यावरण
भारत वैश्विक स्तर पर विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संगठनों, समझौतों और संधियों से जुड़ा हुआ है। वैश्वीकरण, जलवायु परिवर्तन, संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, IMF, WTO जैसी संस्थाएँ भारत की प्रशासनिक और नीतिगत निर्णय-प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं। कोविड-19 महामारी जैसे वैश्विक संकटों ने प्रशासन को नई चुनौतियों के लिए तैयार किया है।
भारतीय प्रशासन में पर्यावरणीय चुनौतियाँ
भारतीय प्रशासन को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिनमें भ्रष्टाचार, लालफीताशाही, प्रशासनिक अक्षमता, संसाधनों की कमी, राजनीतिक हस्तक्षेप, नीति कार्यान्वयन में बाधाएँ, और पर्यावरणीय असंतुलन प्रमुख हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए प्रशासनिक सुधार, पारदर्शिता, जवाबदेही और नागरिक भागीदारी आवश्यक हैं।
निष्कर्ष
भारतीय प्रशासन का पर्यावरण कई आंतरिक और बाहरी तत्वों से प्रभावित होता है। एक कुशल और उत्तरदायी प्रशासनिक तंत्र के लिए राजनीतिक स्थिरता, आर्थिक विकास, सामाजिक समरसता, तकनीकी नवाचार और विधिक सुधारों का समुचित समन्वय आवश्यक है। केवल एक प्रभावी प्रशासनिक ढांचा ही भारत को एक विकसित और आत्मनिर्भर राष्ट्र बना सकता है।
प्रश्न06
राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया और उसकी आपातकालीन शक्तियों के बारे में वर्णन कीजिए।
राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया और उसकी आपातकालीन शक्तियाँ
भूमिका
भारत का राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च संवैधानिक पद है और वह कार्यपालिका का प्रमुख होता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 52 के अनुसार, भारत में एक राष्ट्रपति होगा। अनुच्छेद 53 में राष्ट्रपति को केंद्र सरकार की सभी कार्यकारी शक्तियाँ प्रदान की गई हैं, लेकिन वह इन्हें प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह से उपयोग करता है।
राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया
राष्ट्रपति का चुनाव अनुच्छेद 54 और 55 के अंतर्गत होता है। यह चुनाव एक प्रत्यक्ष मतदान प्रणाली से नहीं, बल्कि अप्रत्यक्ष मतदान प्रणाली से संपन्न होता है, जिसमें निर्वाचक मंडल (Electoral College) के सदस्य भाग लेते हैं।
1. निर्वाचक मंडल (Electoral College)
राष्ट्रपति के चुनाव में निम्नलिखित निर्वाचक भाग लेते हैं—
संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के निर्वाचित सदस्य
सभी राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य
दिल्ली और पुदुचेरी के विधानसभा के निर्वाचित सदस्य
(महत्वपूर्ण तथ्य: राज्यसभा और लोकसभा के नामित सदस्य, तथा विधान परिषद के सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव में भाग नहीं लेते हैं।)
2. चुनाव की विधि
राष्ट्रपति का चुनाव एकल संक्रमणीय मत प्रणाली (Single Transferable Vote System) और अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (Proportional Representation System) के आधार पर होता है।
मतदाता अपनी पसंद के अनुसार उम्मीदवारों को वरीयता क्रम में अंकित करते हैं।
यदि किसी उम्मीदवार को पहले वरीयता वाले मतों की आधी से अधिक संख्या प्राप्त हो जाती है, तो वह विजयी घोषित होता है।
यदि किसी को बहुमत नहीं मिलता, तो सबसे कम मत पाने वाले उम्मीदवार को हटा दिया जाता है और उसके मत दूसरी वरीयता के उम्मीदवारों को हस्तांतरित कर दिए जाते हैं। यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक कोई उम्मीदवार बहुमत प्राप्त नहीं कर लेता।
3. राष्ट्रपति पद के लिए योग्यता (अनुच्छेद 58)
राष्ट्रपति बनने के लिए व्यक्ति को निम्नलिखित योग्यताओं को पूरा करना आवश्यक है—
वह भारत का नागरिक होना चाहिए।
उसकी आयु कम से कम 35 वर्ष होनी चाहिए।
वह लोकसभा का सदस्य बनने की योग्यता रखता हो।
उसके पास किसी राजनीतिक दल का समर्थन होना चाहिए और कम से कम 50 प्रस्तावकों (Proposers) और 50 अनुमोदकों (Seconders) का समर्थन प्राप्त होना चाहिए।
4. कार्यकाल और पदत्याग
राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, लेकिन वह पुनः चुनाव लड़ सकता है।
राष्ट्रपति अपना त्यागपत्र उपराष्ट्रपति को सौंप सकता है।
यदि संसद के किसी भी सदन में राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग (Impeachment) प्रस्ताव पारित हो जाता है और इसे संसद के दोनों सदनों द्वारा आवश्यक बहुमत से अनुमोदित कर दिया जाता है, तो उसे पद से हटाया जा सकता है।
राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियाँ
भारतीय संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति को तीन प्रकार की आपातकालीन शक्तियाँ प्राप्त हैं। ये शक्तियाँ संविधान के भाग 18 (अनुच्छेद 352 से 360) में उल्लिखित हैं।
1. राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352)
यदि भारत की सुरक्षा को युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से खतरा हो, तो राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर सकता है।
इस आपातकाल के दौरान संसद को राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार मिल जाता है।
नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित किए जा सकते हैं।
सरकार की कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच शक्ति संतुलन बदल जाता है।
अब तक तीन बार राष्ट्रीय आपातकाल लगाया गया है:
1962 – चीन-भारत युद्ध
1971 – भारत-पाक युद्ध
1975 – आंतरिक अशांति के कारण (इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लगाया गया)
2. राज्य आपातकाल (अनुच्छेद 356) (राष्ट्रपति शासन)
यदि किसी राज्य की सरकार संविधान के अनुसार कार्य नहीं कर पा रही हो, तो राष्ट्रपति राज्य में आपातकाल घोषित कर सकता है।
इस दौरान राज्य की कार्यपालिका राष्ट्रपति के अधीन आ जाती है और राज्यपाल के माध्यम से प्रशासन चलता है।
अधिकतम 6 महीने के लिए राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है, लेकिन इसे संसद की मंजूरी से 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है।
अब तक राष्ट्रपति शासन कई राज्यों में लागू किया जा चुका है।
3. वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360)
यदि भारत में कोई आर्थिक संकट उत्पन्न हो जाए और सरकार वित्तीय अस्थिरता से जूझ रही हो, तो राष्ट्रपति वित्तीय आपातकाल घोषित कर सकता है।
इस दौरान सरकार वेतन और भत्तों में कटौती कर सकती है।
राज्यों को केंद्र सरकार के वित्तीय निर्देशों का पालन करना अनिवार्य हो जाता है।
अब तक भारत में कभी भी वित्तीय आपातकाल लागू नहीं किया गया है।
निष्कर्ष
राष्ट्रपति का चुनाव एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया के तहत संपन्न होता है, जो भारत के लोकतांत्रिक स्वरूप को दर्शाता है। इसके अलावा, आपातकालीन परिस्थितियों में राष्ट्रपति को विशेष शक्तियाँ प्रदान की गई हैं, ताकि देश की सुरक्षा और प्रशासन को सुचारू रूप से चलाया जा सके। हालाँकि, इन शक्तियों का दुरुपयोग न हो, इसके लिए न्यायिक समीक्षा और संसदीय नियंत्रण जैसी संवैधानिक व्यवस्थाएँ भी की गई हैं।
प्रश्न07
भारत के प्रधानमंत्री के पद एवं स्थिति की विवेचना कीजिए।
भूमिका
भारत का प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है और कार्यपालिका की सारी शक्तियाँ उसके हाथों में निहित होती हैं। संविधान के अनुच्छेद 74(1) के अनुसार, राष्ट्रपति को कार्यपालक शक्तियों का प्रयोग करने के लिए एक मंत्रिपरिषद की आवश्यकता होती है, जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होता है। भारत में संसदीय शासन प्रणाली अपनाई गई है, जहाँ प्रधानमंत्री वास्तविक कार्यकारी प्रमुख होता है और राष्ट्रपति केवल एक संवैधानिक प्रमुख होता है।
प्रधानमंत्री का पद
संवैधानिक प्रावधान
प्रधानमंत्री का पद भारतीय संविधान के अनुच्छेद 75 के तहत स्थापित किया गया है।
वह राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है, लेकिन यह नियुक्ति सदन में बहुमत प्राप्त दल के नेता के रूप में होती है।
प्रधानमंत्री को लोकसभा में बहुमत का समर्थन प्राप्त होना आवश्यक है।
योग्यता
प्रधानमंत्री बनने के लिए व्यक्ति को निम्नलिखित योग्यताओं को पूरा करना आवश्यक है—
वह भारत का नागरिक होना चाहिए।
उसकी आयु लोकसभा सदस्य के लिए 25 वर्ष या राज्यसभा सदस्य के लिए 30 वर्ष होनी चाहिए।
वह संसद का सदस्य होना चाहिए (यदि नियुक्ति के समय संसद का सदस्य नहीं है, तो उसे 6 महीने के भीतर संसद का सदस्य बनना आवश्यक होता है)।
कार्यकाल
प्रधानमंत्री का कार्यकाल निश्चित नहीं होता, वह तब तक पद पर बना रहता है जब तक लोकसभा में उसे बहुमत का समर्थन प्राप्त होता है।
यदि प्रधानमंत्री को सदन में बहुमत खो देता है, तो उसे इस्तीफा देना पड़ता है।
प्रधानमंत्री की स्थिति एवं शक्तियाँ
प्रधानमंत्री भारत की सरकार में मुख्य नीति-निर्माता होता है और सरकार की सभी कार्यकारी शक्तियाँ उसके नेतृत्व में संचालित होती हैं।
1. कार्यकारी प्रमुख
प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद का प्रमुख होता है और उसकी नियुक्ति, कार्य-विभाजन तथा बर्खास्तगी का अधिकार उसके पास होता है।
सभी मंत्री राष्ट्रपति को अपने पद से इस्तीफा नहीं दे सकते, वे केवल प्रधानमंत्री को इस्तीफा सौंपते हैं।
मंत्रियों के कार्यों का समन्वय और मार्गदर्शन करता है।
2. राष्ट्रपति एवं मंत्रिपरिषद के बीच संपर्क सूत्र
प्रधानमंत्री ही राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद के कार्यों की जानकारी देता है।
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की सलाह पर ही मंत्रियों की नियुक्ति करता है।
प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को संसद भंग करने की सिफारिश कर सकता है।
3. नीति-निर्माण और प्रशासन का नियंत्रण
प्रधानमंत्री सरकार की सभी प्रमुख नीतियों का निर्धारण करता है।
आर्थिक, सामाजिक और विदेश नीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
प्रशासनिक कार्यों को निर्देशित और नियंत्रित करता है।
4. संसद में नेता की भूमिका
प्रधानमंत्री लोकसभा में सरकार का प्रतिनिधित्व करता है।
संसद में विधेयकों, नीतियों और प्रशासनिक निर्णयों की रक्षा करता है।
विश्वास मत और अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सरकार का नेतृत्व करता है।
5. दल का नेता
प्रधानमंत्री संसद में बहुमत दल का नेता होता है।
वह अपने दल की नीतियों और कार्यक्रमों को सरकार की कार्यप्रणाली में लागू करता है।
6. अंतरराष्ट्रीय भूमिका
प्रधानमंत्री देश की विदेश नीति को निर्धारित करता है।
विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व करता है।
अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों और प्रधानमंत्रियों के साथ द्विपक्षीय वार्ताएँ करता है।
प्रधानमंत्री की स्थिति: शक्ति और सीमाएँ
प्रधानमंत्री की शक्तियाँ
सरकार का प्रमुख होने के कारण प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण
नीति निर्माण और कार्यान्वयन में केंद्रीय भूमिका
राष्ट्रपति के लिए अनिवार्य सलाहकार
मंत्रिपरिषद का प्रमुख और संसद में सरकार का प्रवक्ता
राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मामलों में अंतिम निर्णय लेने वाला
प्रधानमंत्री की सीमाएँ
संसद में बहुमत की अनिवार्यता – यदि संसद में बहुमत खो देता है, तो उसे इस्तीफा देना पड़ता है।
गठबंधन सरकार में सीमित स्वतंत्रता – गठबंधन सरकार के दौरान उसे अन्य दलों के नेताओं की सहमति लेनी पड़ती है।
राष्ट्रपति की संवैधानिक शक्तियाँ – राष्ट्रपति कुछ परिस्थितियों में प्रधानमंत्री की सलाह को टाल सकता है।
न्यायपालिका का हस्तक्षेप – प्रधानमंत्री के निर्णयों की न्यायिक समीक्षा हो सकती है।
विपक्ष और मीडिया की भूमिका – प्रधानमंत्री की नीतियों की कड़ी आलोचना हो सकती है, जिससे उसकी कार्यप्रणाली प्रभावित होती है।
निष्कर्ष
भारत में प्रधानमंत्री सरकार का वास्तविक प्रमुख होता है, जो नीति-निर्माण और प्रशासन को नियंत्रित करता है। उसकी भूमिका केवल संवैधानिक ही नहीं, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। हालाँकि, वह अपनी शक्तियों का प्रयोग तब तक कर सकता है, जब तक उसे संसद में बहुमत का समर्थन प्राप्त होता है। इस प्रकार, प्रधानमंत्री का पद एक मजबूत नेतृत्व और उत्तरदायित्वपूर्ण प्रशासन का प्रतीक है।
प्रश्न08
प्रधानमंत्री की सदन के नेता और सरकार के मुखिया के रूप में महत्व की व्याख्या कीजिए।
भूमिका
भारत में संसदीय शासन प्रणाली के तहत प्रधानमंत्री (Prime Minister) सरकार का वास्तविक प्रमुख होता है। वह न केवल कार्यपालिका का प्रमुख होता है, बल्कि संसद के सदन में भी सरकार का प्रतिनिधित्व करता है। प्रधानमंत्री का महत्व दो दृष्टियों से देखा जा सकता है—(1) सदन के नेता के रूप में, और (2) सरकार के मुखिया के रूप में।
1. प्रधानमंत्री का सदन के नेता के रूप में महत्व
भारत में प्रधानमंत्री लोकसभा का निर्वाचित सदस्य होता है और सदन में सरकार की नीतियों एवं निर्णयों का प्रमुख प्रवक्ता होता है।
(i) सदन में सरकार का प्रतिनिधित्व
प्रधानमंत्री संसद में सरकार का प्रतिनिधित्व करता है और उसकी नीतियों का बचाव करता है।
वह सरकार के विधायी एजेंडे को प्रस्तुत करता है और विपक्ष द्वारा उठाए गए प्रश्नों का उत्तर देता है।
सरकार की नीतियों पर होने वाली चर्चाओं में वह केंद्रीय भूमिका निभाता है।
(ii) विधायी प्रक्रिया का नेतृत्व
प्रधानमंत्री लोकसभा में सरकार की ओर से महत्वपूर्ण विधेयक प्रस्तुत करता है और संसद में उन्हें पारित कराने की रणनीति तैयार करता है।
यदि सरकार को किसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर संसद की स्वीकृति चाहिए, तो प्रधानमंत्री उस पर चर्चा कराता है और सहमति बनाता है।
विपक्ष के विरोध को संतुलित करने के लिए सदन में सहमति एवं संवाद स्थापित करता है।
(iii) अविश्वास प्रस्ताव का सामना
यदि विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत करता है, तो प्रधानमंत्री उस प्रस्ताव का सामना करता है और सदन का विश्वास जीतने का प्रयास करता है।
संसद में बहुमत साबित करना प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी होती है।
(iv) राष्ट्रपति और संसद के बीच समन्वयक
प्रधानमंत्री संसद की गतिविधियों की जानकारी राष्ट्रपति को देता है।
यदि सरकार को संसद भंग करनी हो या विशेष सत्र बुलाना हो, तो प्रधानमंत्री राष्ट्रपति से अनुरोध करता है।
(v) संसदीय समितियों को निर्देशित करना
संसद की विभिन्न समितियों के गठन और उनके कार्यों को सुनिश्चित करने में प्रधानमंत्री महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
समितियों द्वारा प्रस्तुत रिपोर्टों पर अंतिम निर्णय लेने में प्रधानमंत्री का प्रभाव होता है।
2. प्रधानमंत्री का सरकार के मुखिया के रूप में महत्व
प्रधानमंत्री भारत सरकार का वास्तविक मुखिया होता है और सभी नीतिगत एवं प्रशासनिक निर्णय उसी के नेतृत्व में लिए जाते हैं।
(i) कार्यपालिका का प्रमुख
प्रधानमंत्री भारत सरकार की कार्यपालिका (Executive) का प्रमुख होता है और पूरे प्रशासन का नियंत्रण उसके हाथ में होता है।
मंत्रियों के विभागों का निर्धारण प्रधानमंत्री द्वारा किया जाता है।
(ii) मंत्रिपरिषद का प्रमुख
प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद का नेतृत्व करता है और राष्ट्रपति को उसकी नियुक्ति की सिफारिश करता है।
वह मंत्रिपरिषद की बैठकों की अध्यक्षता करता है और उसके निर्णयों को नियंत्रित करता है।
यदि प्रधानमंत्री असंतुष्ट हो, तो किसी भी मंत्री को पद छोड़ने के लिए कह सकता है।
(iii) नीति-निर्माण और प्रशासनिक नियंत्रण
सरकार की सभी महत्वपूर्ण नीतियाँ प्रधानमंत्री के नेतृत्व में तैयार होती हैं।
प्रधानमंत्री आर्थिक, सामाजिक, रक्षा, शिक्षा, विदेश नीति आदि से जुड़े महत्वपूर्ण निर्णय लेता है।
(iv) राज्यों और केंद्र के बीच समन्वय
प्रधानमंत्री राज्यों के मुख्यमंत्रियों और केंद्र सरकार के बीच समन्वय स्थापित करता है।
राष्ट्रीय विकास परिषद (NDC) और नीति आयोग जैसी संस्थाओं के माध्यम से वह राज्यों को केंद्र की नीतियों से जोड़ता है।
(v) विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा का संचालन
प्रधानमंत्री देश की विदेश नीति को निर्धारित करता है और अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ कूटनीतिक वार्ताएँ करता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित महत्वपूर्ण निर्णय जैसे रक्षा समझौते, युद्ध या शांति के निर्णय प्रधानमंत्री के नेतृत्व में लिए जाते हैं।
(vi) आपातकालीन परिस्थितियों में विशेष भूमिका
राष्ट्रीय आपातकाल, राष्ट्रपति शासन, और वित्तीय आपातकाल के दौरान प्रधानमंत्री का महत्व और बढ़ जाता है।
प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को आपातकाल लागू करने की सिफारिश कर सकता है।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री न केवल सरकार का प्रमुख होता है, बल्कि संसद में सरकार का नेतृत्व भी करता है। वह कार्यपालिका और विधायिका के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करता है। उसकी नीतियाँ और निर्णय देश की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक दिशा को तय करते हैं। इसलिए, भारतीय शासन प्रणाली में प्रधानमंत्री का पद अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली होता है।
प्रश्न 09
संसद के संगठन और कार्यों की विवेचना कीजिए।
भूमिका
भारतीय संसद (Parliament of India) देश की विधायिका (Legislature) का सर्वोच्च निकाय है। यह संसदीय शासन प्रणाली का आधार है और सरकार के सभी विधायी कार्यों को संचालित करने वाली प्रमुख संस्था है। संविधान के भाग V (अनुच्छेद 79-122) में संसद की संरचना, शक्तियों और कार्यों का उल्लेख किया गया है। संसद को भारतीय लोकतंत्र का "हृदय और आत्मा" कहा जाता है, क्योंकि यह जनता की सर्वोच्च प्रतिनिधि संस्था है।
1. संसद का संगठन
भारतीय संसद तीन प्रमुख घटकों से मिलकर बनी होती है—
राष्ट्रपति (President)
लोकसभा (Lok Sabha - निम्न सदन)
राज्यसभा (Rajya Sabha - उच्च सदन)
(i) राष्ट्रपति
राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग होता है लेकिन वह न तो लोकसभा का सदस्य होता है और न ही राज्यसभा का।
राष्ट्रपति के पास संसद को आहूत (Summon), स्थगित (Prorogue), और भंग (Dissolve) करने की शक्ति होती है।
कोई भी विधेयक राष्ट्रपति की सहमति के बिना कानून नहीं बन सकता।
राष्ट्रपति के पास धन विधेयक (Money Bill) को लोकसभा में पेश करने की अनुशंसा देने की शक्ति होती है।
(ii) लोकसभा (निम्न सदन)
लोकसभा को "जनता का सदन" कहा जाता है क्योंकि इसके सदस्य प्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से चुने जाते हैं।
लोकसभा में अधिकतम 552 सदस्य हो सकते हैं—
530 सदस्य राज्यों से चुने जाते हैं।
20 सदस्य केंद्रशासित प्रदेशों से चुने जाते हैं।
2 एंग्लो-इंडियन सदस्य (अब प्रावधान समाप्त)।
लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, लेकिन राष्ट्रपति इसे पहले भी भंग कर सकता है।
(iii) राज्यसभा (उच्च सदन)
राज्यसभा को "स्थायी सदन" कहा जाता है क्योंकि इसे भंग नहीं किया जा सकता।
राज्यसभा में अधिकतम 250 सदस्य हो सकते हैं—
238 सदस्य राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों से चुने जाते हैं।
12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामित किए जाते हैं (जिन्होंने कला, विज्ञान, साहित्य और समाज सेवा में विशेष योगदान दिया हो)।
राज्यसभा का एक तिहाई हिस्सा हर दो वर्ष में सेवानिवृत्त होता है, और प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है।
2. संसद के कार्य
भारतीय संसद के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं—
(i) विधायी (Law-making) कार्य
संसद का सबसे महत्वपूर्ण कार्य नए कानून बनाना और पुराने कानूनों को संशोधित करना है।
संसद तीन प्रकार के विधेयकों (Bills) को पारित करती है—
साधारण विधेयक (Ordinary Bills) - जो सामान्य मामलों से संबंधित होते हैं।
धन विधेयक (Money Bills) - जो वित्तीय मामलों से संबंधित होते हैं और केवल लोकसभा में पेश किए जाते हैं।
संविधान संशोधन विधेयक (Constitution Amendment Bills) - जो संविधान में संशोधन से संबंधित होते हैं।
(ii) वित्तीय कार्य
संसद सरकार के बजट (Budget) को पारित करती है और सरकारी खर्चों को मंजूरी देती है।
सरकार को कोई भी कर लगाने के लिए संसद की स्वीकृति लेनी होती है।
संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत धन विधेयक केवल लोकसभा में पेश किया जाता है और राज्यसभा इसे केवल 14 दिनों तक रोक सकती है।
(iii) कार्यपालिका पर नियंत्रण (Control over Executive)
संसद सरकार के कामकाज पर निगरानी रखती है और कार्यपालिका को जवाबदेह बनाती है।
संसद में प्रश्नकाल (Question Hour), ध्यानाकर्षण प्रस्ताव (Calling Attention Motion), और अविश्वास प्रस्ताव (No-Confidence Motion) के माध्यम से सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित की जाती है।
(iv) न्यायिक कार्य
संसद के पास राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को हटाने की शक्ति होती है (महाभियोग प्रक्रिया के तहत)।
संसद का विशेषाधिकार (Parliamentary Privilege) किसी भी सदस्य के अनुशासनहीन आचरण के लिए दंड देने की अनुमति देता है।
(v) निर्वाचन संबंधी कार्य
संसद राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेती है।
संसद अपने सदस्यों के अयोग्यता मामलों पर निर्णय ले सकती है।
(vi) संविधान संशोधन कार्य
संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संसद को संविधान में संशोधन करने का अधिकार है।
संविधान संशोधन के लिए संसद में विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है।
(vii) राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर चर्चा
संसद विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा करती है और नीतिगत निर्णयों को प्रभावित करती है।
संसद किसी भी आपातकालीन स्थिति में राष्ट्रपति को मार्गदर्शन देती है।
निष्कर्ष
भारतीय संसद लोकतंत्र का आधार स्तंभ है और देश के विधायी, वित्तीय, प्रशासनिक और न्यायिक कार्यों का संचालन करती है। यह कार्यपालिका को उत्तरदायी बनाकर लोकतांत्रिक प्रणाली को मजबूत बनाती है और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करती है। संसद के संगठन और कार्य इसे भारतीय लोकतंत्र का सर्वोच्च विधायी निकाय बनाते हैं।
प्रश्न10
लोकसभा और राज्यसभा की संरचना और उनकी शक्तियों की चर्चा कीजिए।
लोकसभा और राज्यसभा की संरचना और उनकी शक्तियों की चर्चा
भारतीय लोकतंत्र एक कला के जटिल टैपेस्ट्री की तरह है, जहां संसद दो सदनों—लोकसभा और राज्यसभा—में विभाजित होती है। ये दोनों सदन संविधान की आत्मा को सुरक्षित रखने के साथ-साथ भारत की लोकतांत्रिक संरचना को रीइमैजिन (reimagined) करने का कार्य करते हैं। संसद का यह लैबिरिंथ (labyrinth) न केवल विधायी प्रक्रिया को संचालित करता है, बल्कि देश की राजनीति को एक कैप्टिवेटिंग (captivating) आयाम भी प्रदान करता है। आइए, हम इन दोनों सदनों की इंट्रीकेट (intricate) संरचना और शक्तियों की गहराई में डेल्व (delve) करें।
लोकसभा की संरचना
लोकसभा को "जनता का सदन" कहा जाता है, क्योंकि इसके सदस्य प्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से चुने जाते हैं। यह भारतीय लोकतंत्र का एक वाइब्रेंट मोज़ेक (mosaic) है, जहां विभिन्न क्षेत्रों और वर्गों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।
सदस्य संख्या
संविधान के अनुसार लोकसभा में अधिकतम 552 सदस्य हो सकते हैं।
इनमें से 530 सदस्य राज्यों से, 20 सदस्य केंद्रशासित प्रदेशों से चुने जाते हैं।
पहले, राष्ट्रपति 2 एंग्लो-इंडियन सदस्यों को मनोनीत कर सकता था, लेकिन यह प्रावधान अब हटा दिया गया है।
कार्यकाल
लोकसभा का सामान्य कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, लेकिन आपातकाल के दौरान इसे बढ़ाया जा सकता है।
इसे राष्ट्रपति द्वारा भंग किया जा सकता है।
अध्यक्षता
लोकसभा की अध्यक्षता स्पीकर करता है, जो सदन की कार्यवाही को सूक्ष्मता से ऑर्केस्ट्रेट (orchestrates) करता है।
राज्यसभा की संरचना
राज्यसभा को "राज्यों का सदन" कहा जाता है, जो भारतीय संघीय व्यवस्था में एक इंपोर्टेंट विक्टुअल्स (victuals) की तरह काम करता है, क्योंकि यह राज्यों की आवाज़ को राष्ट्रीय स्तर पर बुलंद करता है।
सदस्य संख्या
राज्यसभा में अधिकतम 250 सदस्य हो सकते हैं।
इनमें से 238 सदस्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से चुने जाते हैं।
12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामित किए जाते हैं, जो कला, विज्ञान, साहित्य और समाज सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देते हैं।
कार्यकाल
राज्यसभा एक स्थायी सदन है और इसे भंग नहीं किया जा सकता।
प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है और हर दो साल में एक तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त होते हैं।
अध्यक्षता
राज्यसभा के अध्यक्ष भारत के उपराष्ट्रपति होते हैं।
लोकसभा और राज्यसभा की शक्तियाँ
संसद के इन दोनों सदनों की शक्तियाँ भारत की राजनीति और प्रशासन का क्रूसिबल (crucible) हैं, जहां नीतियों का निर्माण और संशोधन होता है।
1. विधायी शक्तियाँ
लोकसभा और राज्यसभा दोनों विधेयक पारित करने की प्रक्रिया में भाग लेते हैं।
साधारण विधेयक (Ordinary Bills) दोनों सदनों में पारित होने के बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजे जाते हैं।
धन विधेयक (Money Bill) केवल लोकसभा में प्रस्तुत किया जाता है और राज्यसभा इसे अधिकतम 14 दिनों तक रोक सकती है।
2. वित्तीय शक्तियाँ
लोकसभा वित्तीय मामलों में अधिक शक्तिशाली होती है।
वार्षिक बजट और कर लगाने वाले विधेयक केवल लोकसभा में प्रस्तुत किए जा सकते हैं।
3. कार्यपालिका पर नियंत्रण
लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) पारित कर सरकार को हटाया जा सकता है, लेकिन राज्यसभा में ऐसा संभव नहीं है।
प्रश्नकाल (Question Hour) और ध्यानाकर्षण प्रस्ताव (Calling Attention Motion) के माध्यम से सरकार को उत्तरदायी बनाया जाता है।
4. संविधान संशोधन शक्तियाँ
संविधान संशोधन विधेयक दोनों सदनों में विशेष बहुमत से पारित होने के बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त करता है।
5. न्यायिक शक्तियाँ
राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के महाभियोग (impeachment) की प्रक्रिया संसद में चलती है।
6. निर्वाचन संबंधी शक्तियाँ
संसद राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेती है।
राज्यसभा के सदस्य विधानसभाओं के माध्यम से चुने जाते हैं, जिससे यह प्रक्रिया संघीय संरचना को इंटरट्वाइन (intertwine) करती है।
7. राष्ट्रीय और आपातकालीन शक्तियाँ
संसद के दोनों सदन आपातकाल (Emergency) की घोषणा करने, राष्ट्रपति शासन लागू करने और युद्धकालीन निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
निष्कर्ष
लोकसभा और राज्यसभा भारतीय लोकतंत्र के दो वर्डेंट (verdant) स्तंभ हैं, जो संविधान की मूल भावना को साकार करते हैं। लोकसभा जनता की सीधी प्रतिनिधि है, जबकि राज्यसभा संघीय संरचना को संतुलित करती है। इन दोनों का कैलेडोस्कोपिक (kaleidoscopic) समन्वय भारत के लोकतांत्रिक भविष्य को आकार देता है और शासन को अधिक प्रभावी बनाता है। यह प्रणाली भारत की विविधता और एकता को ट्रांसेंड (transcend) करती है, जिससे एक शक्तिशाली और उत्तरदायी शासन प्रणाली उभरती है।
प्रश्न11
केंद्रीय सचिवालय के संगठन और कार्यों की विवेचना कीजिए।
भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था में केंद्रीय सचिवालय सरकार का मुख्य कार्यकारी निकाय है, जो नीतियों को तैयार करने, उनके कार्यान्वयन और समन्वय की महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह सचिवालय भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों का केंद्रबिंदु है और समस्त प्रशासनिक गतिविधियों का संगठित ढांचा प्रस्तुत करता है।
केंद्रीय सचिवालय का संगठन
केंद्रीय सचिवालय एक सुसंगठित प्रशासनिक संरचना है, जिसमें विभिन्न स्तरों पर कार्य विभाजित होता है। इसका प्रमुख उद्देश्य नीति-निर्माण, समन्वय और प्रशासनिक कार्यों को सुचारु रूप से संचालित करना है।
1. मंत्रिमंडल (Cabinet)
मंत्रिमंडल सचिवालय केंद्रीय सचिवालय की शीर्ष संस्था होती है, जिसका नेतृत्व प्रधानमंत्री करता है।
इसमें सभी कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं, जो विभिन्न मंत्रालयों के प्रमुख होते हैं।
मंत्रिमंडल सचिवालय की भूमिका नीति-निर्माण और विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय सुनिश्चित करना होती है।
2. मंत्रालय (Ministries)
प्रत्येक मंत्रालय एक वरिष्ठ मंत्री के अधीन कार्य करता है, जिसे कैबिनेट मंत्री या राज्य मंत्री कहा जाता है।
प्रत्येक मंत्रालय के तहत विभिन्न विभाग (Departments) कार्य करते हैं।
मंत्रालयों की जिम्मेदारी विषय-विशेष की नीतियों और योजनाओं को लागू करना होती है।
3. विभाग (Departments)
विभाग किसी विशेष कार्य या नीति क्षेत्र से संबंधित होते हैं।
प्रत्येक विभाग का नेतृत्व सचिव (Secretary) करता है, जो भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के वरिष्ठ अधिकारी होते हैं।
सचिव की सहायता के लिए अतिरिक्त सचिव, संयुक्त सचिव, निदेशक, उप-सचिव और अनुभाग अधिकारी होते हैं।
4. सचिव (Secretary) और अन्य अधिकारी
सचिव: किसी मंत्रालय का सर्वोच्च नौकरशाह, जो नीति-निर्माण और कार्यान्वयन का मार्गदर्शन करता है।
अतिरिक्त सचिव और संयुक्त सचिव: मंत्रालय की नीतियों को तैयार करने और उनके प्रभावी क्रियान्वयन में सहायता करते हैं।
निदेशक और उप-सचिव: विभिन्न सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों की निगरानी करते हैं।
अनुभाग अधिकारी: प्रशासनिक कार्यों की देखरेख करते हैं और उन्हें लागू करने में सहायता करते हैं।
केंद्रीय सचिवालय के कार्य
केंद्रीय सचिवालय भारत सरकार के संचालन में एक केन्द्रबिंदु की तरह कार्य करता है और इसके प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं—
1. नीति-निर्माण (Policy Formulation)
सचिवालय सरकार की विभिन्न नीतियों को तैयार करने और उनके कार्यान्वयन के लिए रणनीतियाँ बनाता है।
ये नीतियाँ सामाजिक, आर्थिक, सुरक्षा, विदेशी संबंधों और प्रशासनिक सुधारों से संबंधित होती हैं।
2. नीतियों का कार्यान्वयन (Policy Implementation)
सचिवालय विभिन्न मंत्रालयों और विभागों को सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से लागू करने का मार्गदर्शन देता है।
यह सुनिश्चित करता है कि सरकार द्वारा घोषित योजनाएँ यथासमय और सुचारु रूप से लागू हों।
3. मंत्रालयों के बीच समन्वय (Inter-Ministerial Coordination)
विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के बीच समन्वय स्थापित करने में सचिवालय की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
यदि किसी योजना में कई मंत्रालयों की भागीदारी आवश्यक हो, तो सचिवालय उन्हें एक मंच पर लाकर प्रभावी समन्वय सुनिश्चित करता है।
4. संसदीय मामलों से संबंधित कार्य (Parliamentary Affairs Management)
सचिवालय संसद में प्रस्तुत किए जाने वाले विधेयकों, प्रस्तावों और अन्य मुद्दों की तैयारी करता है।
यह सुनिश्चित करता है कि संसद में प्रस्तुत की गई नीतियों और प्रश्नों का उत्तर विधिवत रूप से दिया जाए।
5. वित्तीय प्रशासन (Financial Administration)
यह विभिन्न सरकारी योजनाओं के लिए बजट आवंटन, व्यय की निगरानी और वित्तीय अनुशासन बनाए रखने का कार्य करता है।
सरकार के वित्तीय संसाधनों का उचित उपयोग सुनिश्चित करने के लिए यह नियंत्रण और लेखा प्रणाली का संचालन करता है।
6. लोक प्रशासन और जनशक्ति प्रबंधन (Public Administration & Human Resource Management)
सचिवालय सरकारी अधिकारियों की भर्ती, प्रशिक्षण और कार्य विभाजन को संचालित करता है।
यह प्रशासनिक सुधारों और सिविल सेवा के आधुनिकीकरण पर भी कार्य करता है।
7. आपातकालीन और विशेष कार्य (Emergency & Special Functions)
राष्ट्रीय आपातकाल, युद्ध या प्राकृतिक आपदाओं के समय त्वरित और प्रभावी निर्णय लेने के लिए सचिवालय सरकार को सलाह देता है।
यह रक्षा, आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन से संबंधित नीतियाँ भी तैयार करता है।
8. अंतरराष्ट्रीय सहयोग और कूटनीति (International Affairs & Diplomacy)
सचिवालय विभिन्न अंतरराष्ट्रीय समझौतों, विदेश नीतियों और द्विपक्षीय वार्ताओं की रूपरेखा तैयार करने में सहायता करता है।
यह विदेश मंत्रालय को कूटनीतिक मामलों में आवश्यक प्रशासनिक समर्थन प्रदान करता है।
निष्कर्ष
केंद्रीय सचिवालय भारत सरकार की रीढ़ है, जो नीतियों के निर्माण और उनके प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करता है। यह राजनीतिक नेतृत्व और प्रशासनिक मशीनरी के बीच एक ब्रिज (bridge) की तरह कार्य करता है और विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय स्थापित करता है। इसके प्रभावी कार्य से ही सरकार सुचारु रूप से कार्य कर पाती है और प्रशासनिक दक्षता सुनिश्चित होती है।
प्रश्न12
केंद्र तथा राज्य के मध्य प्रशासनिक और विधायी संबंधों पर प्रकाश डालिए।
भारत एक संघात्मक शासन प्रणाली (Federal System) वाला देश है, जहाँ केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन भारतीय संविधान द्वारा किया गया है। यह विभाजन विधायी, प्रशासनिक और वित्तीय संबंधों के आधार पर किया गया है।
संविधान के अनुच्छेद 245 से 263 के अंतर्गत केंद्र और राज्यों के बीच संबंधों को स्पष्ट किया गया है। इसमें यह सुनिश्चित किया गया है कि संघ (Union) और राज्य (State) सरकारें अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में कार्य करें, लेकिन राष्ट्रीय एकता और अखंडता बनाए रखने के लिए केंद्र को कुछ विशेषाधिकार दिए गए हैं।
1. विधायी संबंध (Legislative Relations)
केंद्र और राज्यों के बीच विधायी शक्तियों का विभाजन संविधान की सातवीं अनुसूची (Seventh Schedule) में तीन सूचियों के माध्यम से किया गया है—
(क) संघ सूची (Union List) – केवल केंद्र का अधिकार
इसमें 97 विषय आते हैं, जिन पर केवल संसद (Parliament) कानून बना सकती है। ये विषय राष्ट्रीय महत्व के होते हैं, जैसे—
रक्षा (Defence)
विदेश नीति (Foreign Affairs)
परमाणु ऊर्जा (Atomic Energy)
नागरिकता (Citizenship)
रेल परिवहन (Railways)
संचार (Communication)
बैंकिंग और मुद्रा (Banking & Currency)
(ख) राज्य सूची (State List) – केवल राज्य का अधिकार
इसमें 66 विषय आते हैं, जिन पर केवल राज्य विधानमंडल कानून बना सकता है। इनमें प्रमुख हैं—
पुलिस (Police)
स्वास्थ्य और स्वच्छता (Public Health & Sanitation)
कृषि (Agriculture)
भू-राजस्व (Land Revenue)
जेल और स्थानीय सरकारें (Jails & Local Governments)
लेकिन राष्ट्रीय आपातकाल (Emergency) के दौरान या संसद द्वारा संविधान के अनुच्छेद 249 के तहत राष्ट्रीय हित में राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाया जा सकता है।
(ग) समवर्ती सूची (Concurrent List) – केंद्र और राज्य दोनों का अधिकार
इसमें 47 विषय हैं, जिन पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं। यदि दोनों सरकारों द्वारा अलग-अलग कानून बनाए जाते हैं और उनमें विरोधाभास होता है, तो केंद्र का कानून मान्य होगा। इनमें शामिल हैं—
आपराधिक कानून (Criminal Law)
जनसंख्या नियंत्रण (Population Control)
शिक्षा (Education)
वन और पर्यावरण (Forests & Environment)
श्रम कल्याण (Labor Welfare)
(घ) अवशिष्ट शक्तियाँ (Residuary Powers)
संविधान के अनुच्छेद 248 के तहत, जो विषय किसी भी सूची में नहीं आते हैं, उन पर कानून बनाने का अधिकार केवल संसद को है। उदाहरण— साइबर क्राइम, अंतरिक्ष अनुसंधान, जैव प्रौद्योगिकी आदि।
2. प्रशासनिक संबंध (Administrative Relations)
केंद्र और राज्य प्रशासन के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए संविधान में निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं—
(क) सामान्य प्रशासनिक संबंध
अनुच्छेद 256 – राज्य सरकारें केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करेंगी।
अनुच्छेद 257 – यदि राज्य सरकार केंद्र सरकार के कार्यों में बाधा उत्पन्न करती है, तो केंद्र उसे निर्देश दे सकता है।
अनुच्छेद 258 – केंद्र सरकार अपनी शक्तियाँ राज्य सरकारों को सौंप सकती है।
(ख) केंद्र सरकार के नियंत्रण के विशेष प्रावधान
केंद्र सरकार राज्यों को विशेष निर्देश दे सकती है कि वे अपने प्रशासन को संघीय नीतियों के अनुसार संचालित करें।
अनुच्छेद 263 के तहत अंतर्राज्यीय परिषद (Inter-State Council) का गठन किया जा सकता है, जिससे राज्यों के बीच समन्वय स्थापित हो सके।
केंद्र सरकार के पास अनुच्छेद 355 के तहत यह उत्तरदायित्व है कि वह प्रत्येक राज्य में शांति और कानून व्यवस्था बनाए रखे।
(ग) केंद्र द्वारा राज्य प्रशासन में हस्तक्षेप के अधिकार
अनुच्छेद 356 – यदि किसी राज्य में संविधान के अनुसार सरकार नहीं चल रही हो, तो राष्ट्रपति शासन (President’s Rule) लागू किया जा सकता है।
आपातकाल (Emergency) की स्थिति में – केंद्र सरकार राज्यों के प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण ले सकती है।
3. आपातकालीन स्थिति में केंद्र-राज्य संबंध (Emergency Relations)
संविधान केंद्र को यह शक्ति प्रदान करता है कि वह विशेष परिस्थितियों में राज्यों के कार्यों में हस्तक्षेप कर सके।
(क) राष्ट्रीय आपातकाल (National Emergency) - अनुच्छेद 352
यदि देश की सुरक्षा या अखंडता को खतरा हो (युद्ध, बाहरी आक्रमण या आंतरिक विद्रोह), तो केंद्र सरकार राज्य सरकारों पर पूर्ण नियंत्रण ले सकती है।
संसद को राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार मिल जाता है।
(ख) राज्य आपातकाल (President’s Rule) - अनुच्छेद 356
यदि राज्य सरकार संविधान के अनुसार कार्य करने में असमर्थ हो, तो केंद्र सरकार राष्ट्रपति शासन लगा सकती है।
विधानमंडल भंग कर दिया जाता है और केंद्र सीधे प्रशासन करता है।
(ग) वित्तीय आपातकाल (Financial Emergency) - अनुच्छेद 360
यदि देश में वित्तीय संकट उत्पन्न हो जाए, तो केंद्र सरकार वित्तीय मामलों में राज्यों पर नियंत्रण स्थापित कर सकती है।
राज्यों के वेतन और खर्चों में कटौती की जा सकती है।
निष्कर्ष
भारत में संघीय ढांचा होने के बावजूद केंद्र सरकार को राज्यों की तुलना में अधिक शक्तियाँ प्राप्त हैं। हालाँकि, संविधान में इस प्रकार के प्रावधान किए गए हैं कि केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय बना रहे। आपातकालीन परिस्थितियों में केंद्र सरकार को अधिक अधिकार मिलते हैं, लेकिन सामान्य परिस्थितियों में दोनों सरकारें अपने-अपने क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकती हैं। इस संबंध का मुख्य उद्देश्य भारतीय लोकतंत्र और राष्ट्रीय एकता को बनाए रखना है।
प्रश्न13
लोक सेवा की परिभाषा दीजिए। भारत में लोक सेवा की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
लोक सेवा की परिभाषा
लोक सेवा (Public Service) का अर्थ सरकार या सार्वजनिक संस्थाओं द्वारा नागरिकों को प्रदान की जाने वाली सेवाओं से है। ये सेवाएँ प्रशासन, न्याय, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, सुरक्षा, सामाजिक कल्याण आदि से संबंधित हो सकती हैं। लोक सेवक (Public Servant) वे व्यक्ति होते हैं जो सरकार द्वारा नियुक्त होकर विभिन्न विभागों और संस्थाओं में जनता की सेवा करते हैं।
विभिन्न विद्वानों ने लोक सेवा को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है—
डॉ. फ्रीडरिक मोशे (Dr. Frederick Mosher) – लोक सेवा एक ऐसी प्रणाली है जो सरकारी कार्यों को कुशलता से निष्पादित करने के लिए स्थायी, प्रशिक्षित और योग्य अधिकारियों की नियुक्ति करती है।
पॉल एप्पलबी (Paul Appleby) – लोक सेवा सरकार के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक संगठन और प्रशासनिक व्यवस्था है।
संविधान के अनुच्छेद 309 से 323 तक लोक सेवाओं से संबंधित प्रावधान दिए गए हैं, जो लोक सेवा आयोगों (Public Service Commissions) के गठन और कार्यों को स्पष्ट करते हैं।
भारत में लोक सेवा की मुख्य विशेषताएँ
भारतीय लोक सेवा की कई विशिष्ट विशेषताएँ हैं, जो इसे प्रभावी, उत्तरदायी और लोकतांत्रिक बनाती हैं। ये विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—
1. स्थायित्व और पेशेवरता (Permanency & Professionalism)
भारतीय लोक सेवा एक स्थायी सेवा है, जिसका अर्थ है कि सरकारी अधिकारी अपने पद पर बने रहते हैं, चाहे सरकार बदल जाए। इससे प्रशासनिक निरंतरता बनी रहती है। इसके अलावा, लोक सेवकों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि वे अपने कार्यों में दक्ष हों।
2. राजनीतिक निष्पक्षता (Political Neutrality)
भारतीय लोक सेवा का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत यह है कि लोक सेवकों को राजनीति से अलग रहना चाहिए। वे किसी भी राजनीतिक दल के प्रति पक्षपाती नहीं होते और अपने कार्यों को निष्पक्ष रूप से पूरा करते हैं।
3. उत्तरदायित्व और जवाबदेही (Accountability & Responsibility)
लोक सेवकों को संसद, विधानमंडल और न्यायपालिका के प्रति उत्तरदायी बनाया गया है। वे अपने कार्यों के लिए सरकार और जनता को जवाबदेह होते हैं।
4. संघीय ढांचे के अनुकूल (Suitability to Federal Structure)
भारत एक संघीय व्यवस्था वाला देश है, जहाँ केंद्र और राज्यों की अलग-अलग प्रशासनिक व्यवस्थाएँ हैं। लोक सेवाएँ इस संरचना के अनुसार विभाजित हैं—
अखिल भारतीय सेवाएँ (All India Services) – जैसे भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS), भारतीय वन सेवा (IFS) आदि।
केंद्रीय सेवाएँ (Central Services) – जैसे भारतीय विदेश सेवा (IFS), भारतीय राजस्व सेवा (IRS), भारतीय डाक सेवा (IPoS) आदि।
राज्य सेवाएँ (State Services) – प्रत्येक राज्य की अपनी लोक सेवा होती है, जैसे राज्य प्रशासनिक सेवा (SAS), राज्य पुलिस सेवा (SPS) आदि।
5. योग्यता आधारित भर्ती (Merit-Based Recruitment)
भारतीय लोक सेवा में योग्यता और क्षमता के आधार पर नियुक्ति की जाती है। इसके लिए संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) और राज्य लोक सेवा आयोग (PSC) द्वारा परीक्षाएँ आयोजित की जाती हैं।
6. अनुशासन और आचार संहिता (Discipline & Code of Conduct)
लोक सेवकों के लिए कठोर अनुशासन और नैतिक आचार संहिता निर्धारित की गई है। उन्हें अपने कार्यों में ईमानदारी, निष्पक्षता और जनता के प्रति कर्तव्यनिष्ठा बनाए रखनी होती है।
7. सेवा सुरक्षा (Security of Tenure)
लोक सेवकों को नियुक्ति और सेवा की सुरक्षा दी जाती है। उन्हें बिना उचित कारण हटाया नहीं जा सकता, जिससे वे बिना किसी दबाव के अपना कार्य कर सकें।
8. जनसेवा पर केंद्रित (Public Welfare Oriented)
लोक सेवा का मुख्य उद्देश्य जनता के कल्याण को सुनिश्चित करना है। प्रशासनिक अधिकारी विभिन्न सरकारी योजनाओं और नीतियों को लागू करके समाज के सभी वर्गों को लाभ पहुँचाते हैं।
9. तकनीकी और आधुनिक प्रशासन (Technical & Modern Administration)
आधुनिक लोक सेवा में तकनीकी दक्षता बढ़ाने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी, ई-गवर्नेंस, डिजिटल सेवाओं आदि का उपयोग किया जाता है। इससे प्रशासन अधिक पारदर्शी और कुशल बनता है।
10. भ्रष्टाचार-निरोधक उपाय (Anti-Corruption Measures)
लोक सेवकों के लिए भ्रष्टाचार रोकने के कड़े नियम बनाए गए हैं। केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC), लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम जैसे प्रावधान लोक सेवा में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए लागू किए गए हैं।
निष्कर्ष
भारतीय लोक सेवा लोकतांत्रिक प्रशासन की रीढ़ है। यह स्थायित्व, निष्पक्षता, दक्षता और उत्तरदायित्व जैसे गुणों से युक्त है। लोक सेवकों का कर्तव्य केवल सरकारी आदेशों का पालन करना ही नहीं, बल्कि जनता की सेवा करना और राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना भी है। भारतीय प्रशासनिक ढाँचे में सुधारों और आधुनिक तकनीकों के उपयोग से लोक सेवा और अधिक प्रभावी बन रही है, जिससे देश का समग्र विकास सुनिश्चित किया जा सके।
प्रश्न 14
लोक सेवा के अर्थ , प्रकृति एवं क्षेत्र की व्याख्या कीजिए।
लोक सेवा (Public Service) का तात्पर्य सरकार द्वारा जनता के कल्याण के लिए प्रदान की जाने वाली सेवाओं से है। यह प्रशासनिक तंत्र का एक महत्वपूर्ण भाग है, जो नीति निर्माण, क्रियान्वयन और जनहितकारी योजनाओं को लागू करने में सहायक होता है।
1. लोक सेवा का अर्थ (Meaning of Public Service)
लोक सेवा उन सेवाओं को संदर्भित करता है जो सरकार या सार्वजनिक संस्थाओं द्वारा नागरिकों के कल्याण के लिए प्रदान की जाती हैं। यह सेवा प्रशासन, कानून व्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा, बुनियादी ढांचे आदि के रूप में होती है।
विद्वानों के अनुसार लोक सेवा की परिभाषा:
डॉ. हर्मन फाइनर (Herman Finer) – "लोक सेवा सरकार का एक संगठित ढांचा है, जो सरकारी नीतियों को लागू करने और जनता के हितों की पूर्ति करने के लिए कार्य करता है।"
पॉल एप्पलबी (Paul Appleby) – "लोक सेवा प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों की वह संरचना है, जो सरकारी कार्यों को निष्पादित करने के लिए उत्तरदायी होती है।"
संविधान के अनुच्छेद 309 से 323 तक लोक सेवा से संबंधित प्रावधान दिए गए हैं, जो लोक सेवा आयोगों (Public Service Commissions) और लोक सेवकों की नियुक्ति, कार्य, अनुशासन, और निष्पक्षता से जुड़े नियम निर्धारित करते हैं।
2. लोक सेवा की प्रकृति (Nature of Public Service)
लोक सेवा की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ या प्रकृति होती हैं—
(1) स्थायित्व (Permanency)
लोक सेवक किसी राजनीतिक दल की सरकार के अधीन नहीं होते, बल्कि वे एक स्थायी प्रशासनिक तंत्र के रूप में कार्य करते हैं। इससे प्रशासनिक निरंतरता बनी रहती है।
(2) योग्यता आधारित चयन (Merit-Based Selection)
लोक सेवकों की नियुक्ति संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) और राज्य लोक सेवा आयोग (PSC) द्वारा आयोजित परीक्षाओं के माध्यम से की जाती है। इससे निष्पक्ष और सक्षम व्यक्तियों का चयन सुनिश्चित होता है।
(3) राजनीतिक निष्पक्षता (Political Neutrality)
लोक सेवकों को राजनीतिक दलों से स्वतंत्र रहकर कार्य करना होता है, जिससे प्रशासन निष्पक्ष और पारदर्शी बना रहे।
(4) सेवा सुरक्षा (Security of Tenure)
लोक सेवकों को सेवा में सुरक्षा प्राप्त होती है, जिससे वे बिना किसी राजनीतिक दबाव के कार्य कर सकते हैं। उन्हें बिना उचित कारण और जांच के हटाया नहीं जा सकता।
(5) उत्तरदायित्व और जवाबदेही (Accountability & Responsibility)
लोक सेवकों को जनता, सरकार, न्यायपालिका और विधायिका के प्रति उत्तरदायी बनाया गया है। वे अपने कार्यों के लिए संसद और विधानसभा को जवाबदेह होते हैं।
(6) अनुशासन और नैतिकता (Discipline & Ethics)
लोक सेवकों को कठोर अनुशासन और आचार संहिता का पालन करना होता है। उन्हें जनता के कल्याण को प्राथमिकता देनी होती है और भ्रष्टाचार से बचना होता है।
(7) आधुनिक तकनीक का उपयोग (Use of Modern Technology)
आज के प्रशासन में ई-गवर्नेंस, डिजिटल इंडिया, सूचना प्रौद्योगिकी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग किया जा रहा है, जिससे लोक सेवाएँ अधिक प्रभावी और पारदर्शी बन रही हैं।
3. लोक सेवा का क्षेत्र (Scope of Public Service)
लोक सेवा का क्षेत्र बहुत व्यापक है और यह कई क्षेत्रों में कार्य करती है। कुछ मुख्य क्षेत्र निम्नलिखित हैं—
(1) प्रशासनिक सेवाएँ (Administrative Services)
नीति निर्माण और क्रियान्वयन
कानून और व्यवस्था बनाए रखना
नागरिक सेवाओं का प्रबंधन
सरकारी योजनाओं का संचालन
(2) न्यायिक सेवाएँ (Judicial Services)
कानूनों को लागू करना और न्याय प्रदान करना
उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय और अधीनस्थ न्यायालयों में न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति
कानूनी सुधार और विधायी सलाह देना
(3) पुलिस और सुरक्षा सेवाएँ (Police & Security Services)
आंतरिक सुरक्षा बनाए रखना
अपराधों की रोकथाम और नियंत्रण
आपदा प्रबंधन और राहत कार्य
(4) राजस्व एवं कर सेवाएँ (Revenue & Taxation Services)
कर संग्रह और वित्तीय नियोजन
राजस्व और आयकर सेवाएँ
सीमा शुल्क और विदेशी व्यापार नियंत्रण
(5) शिक्षा और अनुसंधान (Education & Research Services)
प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा का प्रबंधन
विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों का संचालन
विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विकास
(6) स्वास्थ्य सेवाएँ (Health Services)
सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों का क्रियान्वयन
अस्पताल और चिकित्सा सेवाओं का संचालन
महामारी और रोग नियंत्रण उपाय
(7) परिवहन और संचार सेवाएँ (Transport & Communication Services)
रेलवे, सड़क परिवहन और हवाई सेवाओं का संचालन
डाक, टेलीफोन और इंटरनेट सेवाओं का प्रबंधन
(8) सामाजिक कल्याण और ग्रामीण विकास (Social Welfare & Rural Development)
गरीबों, वृद्धों, महिलाओं और बच्चों के लिए कल्याणकारी योजनाएँ
ग्राम पंचायतों और नगर पालिकाओं का प्रशासन
रोजगार और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम
(9) सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (Public Sector Enterprises)
सरकार द्वारा संचालित औद्योगिक और व्यावसायिक संगठन
ऊर्जा, खनन, दूरसंचार और बैंकिंग क्षेत्र की सेवाएँ
(10) पर्यावरण और वन्यजीव संरक्षण (Environment & Wildlife Protection)
पर्यावरण संरक्षण नीतियों का क्रियान्वयन
वन्यजीव संरक्षण और जैव विविधता संरक्षण
प्रदूषण नियंत्रण उपाय
निष्कर्ष
लोक सेवा सरकार और जनता के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है। इसकी प्रकृति स्थायित्व, निष्पक्षता, उत्तरदायित्व और नैतिकता पर आधारित है। लोक सेवा का क्षेत्र प्रशासन, न्याय, पुलिस, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, पर्यावरण, सामाजिक कल्याण आदि को शामिल करता है। एक प्रभावी लोक सेवा व्यवस्था से राष्ट्र की समृद्धि, सुशासन और लोकतांत्रिक प्रशासन को बढ़ावा मिलता है।
इसलिए, लोक सेवकों का मुख्य उद्देश्य केवल सरकारी आदेशों को लागू करना ही नहीं, बल्कि जनता की सेवा करना और राष्ट्रीय विकास में योगदान देना भी है।
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