GEPA-03. SOLVED PAPER 2024

 


GEPA-03. SOLVED PAPER 2024



QUESTION 1. नगर निगम के आय के स्रोतों का उल्लेख करते हुए उसके प्रमुख घटकों पर विस्तारपूर्वक चर्चा करें।


नगर निगम (Municipal Corporation) की आय के प्रमुख स्रोत विभिन्न करों, शुल्कों और सरकारी अनुदानों पर आधारित होते हैं। इनके बिना नगर निगम अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को प्रभावी ढंग से नहीं निभा सकता। इसके आय के मुख्य घटक निम्नलिखित हैं:


(1) संपत्ति कर (Property Tax):

यह नगर निगम का सबसे महत्वपूर्ण आय स्रोत होता है। इसमें मकान, दुकान, भूमि आदि पर कर लगाया जाता है। कर की दर संपत्ति के आकार, स्थिति, और उपयोग के आधार पर निर्धारित की जाती है।


(2) जल कर (Water Tax):

नगर निगम के अधिकार क्षेत्र में जल की आपूर्ति के लिए शुल्क वसूल किया जाता है। यह शुल्क पानी की आपूर्ति की गुणवत्ता और मात्रा पर निर्भर करता है।


(3) मनोरंजन कर (Entertainment Tax):

यह कर सिनेमा हॉल, नाट्यगृह, मनोरंजन पार्क आदि के लिए वसूला जाता है।


(4) व्यापार कर (Trade Tax):

नगर निगम व्यापारिक प्रतिष्ठानों से व्यापार कर के रूप में शुल्क वसूलता है। इसका उपयोग सड़कों, बिजली, सफाई, और बाजारों की सुविधाओं के विकास के लिए किया जाता है।


(5) विज्ञापन कर (Advertisement Tax):

विज्ञापन बोर्ड, होर्डिंग्स आदि पर नगर निगम विज्ञापन कर लगाता है।


(6) शुल्क और लाइसेंस (Fees and Licenses):

नगर निगम विभिन्न प्रकार की सेवाओं के लिए शुल्क लेता है, जैसे बाजारों में ठेला लगाने, पशुओं के चरने और दुकानों के लाइसेंस जारी करने के लिए।


(7) सरकारी अनुदान (Government Grants):

राज्य और केंद्र सरकार नगर निगम को विशेष परियोजनाओं या विकास कार्यों के लिए अनुदान देती हैं। यह अनुदान आमतौर पर शहरी विकास, स्वच्छता, और सार्वजनिक सेवाओं के उन्नयन के लिए होते हैं।


(8) ऋण (Loans):

नगर निगम विशेष परियोजनाओं के लिए सरकार से या वित्तीय संस्थाओं से ऋण भी लेता है।


निष्कर्ष:

नगर निगम की आय के ये सभी स्रोत मिलकर शहरी क्षेत्रों के विकास और उनके प्रशासन को सुचारु रूप से चलाने में मदद करते हैं। नगर निगम का उद्देश्य है कि इन स्रोतों का सही उपयोग कर शहरवासियों को बेहतर जीवन सुविधाएँ प्रदान की जाएं।


Question 2. नगर निगम की स्थापना के आधारों की चर्चा करते हुए उसकी कार्यप्रणाली का विस्तारपूर्वक वर्णन करें।


भारत में नगर निगम की स्थापना का आधार भारत का संविधान और स्थानीय शासन के सिद्धांतों में निहित है। नगर निगम शहरी क्षेत्रों के प्रशासन के लिए सर्वोच्च निकाय है। इसकी स्थापना शहरी जनसंख्या की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने, आधारभूत ढांचे के विकास और नागरिक सेवाओं के सुचारू प्रबंधन के लिए की जाती है।


स्थापना के आधार:


संविधान का 74वां संशोधन: इस संशोधन के तहत शहरी स्थानीय शासन संस्थाओं की स्थापना का प्रावधान किया गया। नगर निगम को स्थानीय स्तर पर स्वायत्त प्रशासनिक अधिकार दिए गए।

जनसंख्या का आधार: शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या की वृद्धि और शहरीकरण के कारण नगर निगम की स्थापना आवश्यक हो जाती है। इससे बड़े शहरों के प्रशासनिक कार्यों को सुचारू रूप से चलाया जा सके।

स्वशासन की आवश्यकता: स्थानीय स्तर पर नागरिकों को निर्णय लेने की स्वतंत्रता और प्रशासनिक कार्यों में उनकी सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए नगर निगम की स्थापना की जाती है।

कार्यप्रणाली:


प्रशासनिक ढांचा: नगर निगम का प्रशासनिक ढांचा एक महापौर (Mayor), पार्षद (Councilors), और एक आयुक्त (Commissioner) पर आधारित होता है। महापौर नगर निगम का प्रमुख होता है, जबकि आयुक्त नगर निगम के दैनिक प्रशासनिक कार्यों का संचालन करता है।


विभागीय कार्य: नगर निगम विभिन्न विभागों के माध्यम से कार्य करता है, जैसे स्वच्छता, स्वास्थ्य, शिक्षा, जलापूर्ति, सड़कें, और पार्कों का रखरखाव। प्रत्येक विभाग का प्रमुख अधिकारी होता है जो प्रशासनिक कार्यों को संचालित करता है।


विकास कार्य: नगर निगम का प्रमुख कार्य शहरी क्षेत्रों का विकास और आधारभूत ढांचे का निर्माण करना है। इसके तहत सड़क निर्माण, पुलों का निर्माण, जल निकासी, और स्वच्छता की व्यवस्थाएँ आती हैं।


वित्तीय प्रबंधन: नगर निगम को अपने आय स्रोतों से प्राप्त धन का उपयोग प्रभावी ढंग से करना होता है। इसमें कर संग्रह, अनुदान प्राप्त करना, और विकास कार्यों के लिए धन आवंटन करना शामिल है।


नागरिक सेवाएँ: नगर निगम नागरिकों को आवश्यक सेवाएँ प्रदान करता है, जैसे साफ पानी की आपूर्ति, कचरा प्रबंधन, और स्वास्थ्य सेवाएँ।


निष्कर्ष:

नगर निगम की कार्यप्रणाली शहर की आवश्यकताओं के अनुसार संचालित होती है। यह शहरी विकास, आधारभूत संरचनाओं के निर्माण, और नागरिक सेवाओं के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।


Question 3. भारत में नगरीय स्वशासन के प्रगति के मूल्यांकन हेतु कौन-कौन से साधन मौजूद हैं? चर्चा करें।


भारत में नगरीय स्वशासन की प्रगति का मूल्यांकन करने के लिए विभिन्न साधन और तकनीकें उपलब्ध हैं। ये साधन प्रशासनिक, आर्थिक, और सामाजिक पहलुओं पर आधारित होते हैं, जो स्थानीय निकायों की कार्यक्षमता और सेवा वितरण की गुणवत्ता को आंकने में मदद करते हैं।


1. जनसंख्या और नागरिक आवश्यकताओं का विश्लेषण:

शहरी क्षेत्रों की बढ़ती जनसंख्या और नागरिकों की आवश्यकताओं का विश्लेषण नगरीय स्वशासन की प्रगति का एक प्रमुख साधन है। इससे यह पता लगाया जा सकता है कि स्थानीय निकाय नागरिकों की आवश्यकताओं को किस हद तक पूरा कर रहे हैं।


2. वित्तीय प्रबंधन:

नगर निगम और नगर पालिकाओं का वित्तीय प्रबंधन उनके स्वशासन की प्रगति को मापने का एक महत्वपूर्ण मानक है। इसमें कर संग्रह, सरकारी अनुदान, और बजट प्रबंधन का विश्लेषण किया जाता है।


3. स्वच्छता और आधारभूत संरचना:

स्वच्छता, जल निकासी, सड़क निर्माण, और सार्वजनिक सेवाओं का मूल्यांकन भी नगरीय स्वशासन की प्रगति को मापने का एक साधन है। स्वच्छ भारत मिशन जैसे सरकारी योजनाओं का प्रभाव शहरी निकायों के प्रदर्शन का मापन करता है।


4. पारदर्शिता और नागरिक सहभागिता:

नगरीय स्वशासन की प्रगति को पारदर्शिता और नागरिकों की सहभागिता से भी मापा जा सकता है। ई-गवर्नेंस और सूचना के अधिकार के तहत नागरिकों की सहभागिता बढ़ाने के प्रयास महत्वपूर्ण होते हैं।


5. सरकारी योजनाओं का कार्यान्वयन:

सरकार द्वारा लागू की गई योजनाओं जैसे स्मार्ट सिटी मिशन, AMRUT, और PMAY (प्रधानमंत्री आवास योजना) का मूल्यांकन भी नगरीय स्वशासन की प्रगति का एक प्रमुख साधन है।


6. सामाजिक-आर्थिक संकेतक:

शहरी क्षेत्रों में रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास की स्थिति का मूल्यांकन भी स्वशासन की प्रगति को दर्शाता है। यदि इन क्षेत्रों में सुधार होता है, तो यह स्वशासन की सफलता का संकेत है।


7. शहरी विकास सूचकांक (Urban Development Index):

यह सूचकांक विभिन्न शहरी क्षेत्रों की प्रगति को मापने का एक मानक है, जिसमें आधारभूत संरचना, नागरिक सेवाएँ, और जीवन स्तर का आंकलन किया जाता है।


निष्कर्ष:

भारत में नगरीय स्वशासन की प्रगति का मूल्यांकन विभिन्न साधनों और तकनीकों से किया जाता है। यह प्रक्रिया शहरी क्षेत्रों के विकास और नागरिकों की जीवन गुणवत्ता को सुधारने में मददगार साबित होती है।



Question 4. भारत में शहरी स्वशासन के संघीय चरित्र को सुदृढ़ करने वाले संवैधानिक प्रावधानों और संशोधनों की भूमिका पर चर्चा करें।


भारत में शहरी स्वशासन के संघीय चरित्र को मजबूत बनाने के लिए संविधान के 74वें संशोधन अधिनियम (1992) की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण रही है। यह संशोधन शहरी स्थानीय निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान करता है और उनके अधिकारों और कर्तव्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है। इसने संघीय ढांचे को सुदृढ़ किया और शहरी निकायों को स्वतंत्रता और सशक्तिकरण प्रदान किया।


1. 74वां संवैधानिक संशोधन:

इस संशोधन के तहत नगर पालिका (Municipality) को स्थानीय स्तर पर स्वशासन की इकाई के रूप में स्थापित किया गया। इसके अंतर्गत तीन प्रकार की शहरी स्थानीय निकायों का प्रावधान किया गया:


नगर पंचायत (Nagar Panchayat) - छोटे शहरी क्षेत्रों के लिए।

नगर पालिका (Municipality) - मध्यम आकार के शहरों के लिए।

नगर निगम (Municipal Corporation) - बड़े शहरों के लिए।

इस संशोधन ने इन निकायों के लिए नियमित चुनाव, वित्तीय स्वायत्तता, और नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित की।


2. संघीय चरित्र को सुदृढ़ करना:

शहरी स्वशासन के संघीय ढांचे को मजबूत करने के लिए यह संशोधन महत्वपूर्ण था क्योंकि यह स्थानीय निकायों को न केवल राज्य सरकारों के अधीन रखता है, बल्कि उन्हें केंद्रीय योजनाओं का लाभ उठाने का अधिकार भी प्रदान करता है। इससे शहरी स्थानीय निकायों की प्रशासनिक और वित्तीय स्वायत्तता को सुनिश्चित किया गया, जो संघीय ढांचे के मूल सिद्धांत को बनाए रखता है।


3. पंचायती राज संस्थाओं के समान सशक्तिकरण:

इस संशोधन ने शहरी स्वशासन को ग्रामीण पंचायती राज संस्थाओं के समान स्तर पर रखा, जिससे देशभर में स्थानीय निकायों की प्रभावशीलता और समानता सुनिश्चित की गई। यह संघीय ढांचे के सुदृढ़ीकरण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।


4. राज्य वित्त आयोग और शहरी निकायों का वित्तीय सशक्तिकरण:

संविधान के अनुसार, राज्य वित्त आयोगों का गठन किया गया, जो शहरी स्थानीय निकायों को वित्तीय संसाधन प्रदान करने के लिए सिफारिशें करता है। इससे नगर पालिकाओं और नगर निगमों को पर्याप्त वित्तीय संसाधन मिलते हैं, जो उनके विकास और संचालन के लिए जरूरी होते हैं।


5. राज्य और केंद्र के बीच संतुलन:

संविधान में शहरी निकायों के अधिकार, कर्तव्य और जिम्मेदारियां निर्धारित करके संघीय ढांचे के तहत राज्य और केंद्र सरकार के बीच एक संतुलन कायम किया गया। यह संघीय चरित्र को सुदृढ़ करता है, क्योंकि शहरी निकाय अब सीधे केंद्र सरकार से वित्तीय सहायता और योजनाओं का लाभ उठा सकते हैं।


6. शहरी विकास के लिए केंद्रीय योजनाओं का कार्यान्वयन:

74वें संशोधन के बाद, केंद्र सरकार द्वारा चलाई गई योजनाएं जैसे स्मार्ट सिटी मिशन, अमृत योजना, और स्वच्छ भारत मिशन शहरी निकायों को सीधे लाभान्वित करने के लिए डिजाइन की गई हैं। यह योजनाएं संघीय ढांचे में शहरी निकायों की भूमिका को सुदृढ़ करती हैं।


निष्कर्ष:

संवैधानिक प्रावधानों और 74वें संशोधन ने भारत के शहरी स्वशासन के संघीय चरित्र को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इससे शहरी निकायों को अधिक स्वायत्तता, वित्तीय स्वतंत्रता और अधिकार प्राप्त हुए हैं, जो शहरी क्षेत्रों के विकास और नागरिकों को बेहतर सेवाएं प्रदान करने में सहायक सिद्ध होते हैं।


Question 5. शक्तियों और जिम्मेदारियों के प्रत्यायोजन पर ध्यान केंद्रित करते हुए, शहरी स्थानीय सरकार के विकास पर विकेंद्रीकरण नीतियों के प्रभाव का पता लगाएं।


विकेंद्रीकरण नीतियों का शहरी स्थानीय सरकार पर गहरा प्रभाव पड़ा है, जिससे स्थानीय प्रशासन को अधिक स्वतंत्रता और शक्ति प्राप्त हुई है। विकेंद्रीकरण का मुख्य उद्देश्य शक्तियों और जिम्मेदारियों को निचले स्तर पर स्थानांतरित करना है, ताकि शासन व्यवस्था अधिक प्रभावी और जवाबदेह बन सके। यह नीति शहरी क्षेत्रों में सुशासन और विकास को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण रही है।


1. 74वां संशोधन और शक्तियों का प्रत्यायोजन:

1992 में लागू किए गए संविधान के 74वें संशोधन के माध्यम से शहरी स्थानीय निकायों को संवैधानिक मान्यता दी गई और उन्हें प्रशासनिक, वित्तीय, और विकासात्मक कार्यों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया। इससे शहरी सरकारों को अपनी योजनाओं और नीतियों को लागू करने की स्वतंत्रता मिली, जिससे स्थानीय स्तर पर प्रभावी शासन की नींव पड़ी।


2. निर्णय लेने की स्वतंत्रता:

विकेंद्रीकरण नीतियों के तहत, शहरी स्थानीय सरकारों को अपने क्षेत्र की विशेष आवश्यकताओं के अनुसार निर्णय लेने की स्वतंत्रता प्रदान की गई। इससे शहरी क्षेत्रों के विशेष मुद्दों जैसे आवास, स्वच्छता, जल आपूर्ति, और परिवहन की समस्याओं का समाधान करने में मदद मिली।


3. वित्तीय विकेंद्रीकरण:

विकेंद्रीकरण के तहत वित्तीय शक्तियों का भी स्थानांतरण किया गया। राज्य वित्त आयोगों की सिफारिशों के आधार पर शहरी स्थानीय निकायों को कर वसूली, शुल्क संग्रहण, और सरकारी अनुदान प्राप्त करने का अधिकार मिला। इससे शहरी सरकारों को अपनी परियोजनाओं को स्वतंत्र रूप से वित्तपोषित करने की क्षमता मिली।


4. सार्वजनिक सेवाओं का सुधार:

विकेंद्रीकरण ने शहरी स्थानीय सरकारों को नागरिक सेवाओं में सुधार करने का अवसर प्रदान किया। नगर निगम और नगर पालिकाएं अब स्वच्छता, जलापूर्ति, सड़क निर्माण, और परिवहन जैसे सार्वजनिक सेवाओं के क्षेत्र में निर्णय लेने में सक्षम हैं, जिससे शहरों के बुनियादी ढांचे में सुधार हुआ है।


5. पारदर्शिता और जवाबदेही:

विकेंद्रीकरण नीतियों के माध्यम से शहरी स्थानीय निकायों में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ी है। अब नागरिक निकायों के फैसलों पर सीधा प्रभाव डाल सकते हैं और उनका मूल्यांकन कर सकते हैं। ई-गवर्नेंस और सूचना के अधिकार के तहत नागरिकों की भागीदारी बढ़ी है, जिससे शासन व्यवस्था में जवाबदेही बढ़ी है।


6. स्थानीय नेतृत्व का विकास:

विकेंद्रीकरण नीतियों ने स्थानीय नेतृत्व को बढ़ावा दिया है। महापौर और पार्षद जैसे स्थानीय पदाधिकारी अब अपने क्षेत्रों की समस्याओं को समझने और उनका समाधान निकालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इससे स्थानीय स्तर पर नेतृत्व और प्रशासनिक क्षमता का विकास हुआ है।


7. केंद्रीय योजनाओं का सफल क्रियान्वयन:

विकेंद्रीकरण के माध्यम से शहरी स्थानीय निकायों को केंद्र सरकार की योजनाओं जैसे स्मार्ट सिटी मिशन, अमृत योजना, और स्वच्छ भारत मिशन को लागू करने में स्वायत्तता मिली है। इससे योजनाओं का स्थानीय स्तर पर प्रभावी क्रियान्वयन संभव हुआ है।


निष्कर्ष:

विकेंद्रीकरण नीतियों ने शहरी स्थानीय सरकारों को न केवल अधिक शक्तिशाली और स्वतंत्र बनाया है, बल्कि उन्हें अपने क्षेत्रों के विकास के लिए जिम्मेदार भी ठहराया है। इससे शहरी क्षेत्रों का समग्र विकास हुआ है और नागरिकों को बेहतर सेवाएँ प्राप्त हुई हैं। विकेंद्रीकरण के माध्यम से शहरी निकाय अब अपने क्षेत्रों की समस्याओं को अधिक प्रभावी ढंग से हल करने में सक्षम हैं, जिससे शहरों के समग्र विकास में वृद्धि हुई है।





GEPA-03 SHORT ANSWER TYPE QUESTIONS


QUESTION 1. भारत में नगरीय प्रशासन में सुधार हेतु अपने सुझाव प्रस्तुत करें।


भारत में नगरीय प्रशासन के सुधार के लिए कई उपाय अपनाए जा सकते हैं ताकि शहरी क्षेत्रों में जीवन स्तर बेहतर हो और शहरी विकास सुचारू रूप से हो। निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किए जा सकते हैं:


1. वित्तीय स्वायत्तता:

नगर निगमों और अन्य शहरी निकायों को अधिक वित्तीय स्वतंत्रता दी जानी चाहिए। इसके लिए कराधान के अधिकारों को बढ़ाया जाना चाहिए ताकि वे अपने क्षेत्र में कर संग्रहण कर सकें और धनराशि का उपयोग विकास कार्यों में कर सकें।


2. पारदर्शिता और जवाबदेही:

शहरी प्रशासन में ई-गवर्नेंस और सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाया जाना चाहिए ताकि कार्यों में पारदर्शिता आए और नागरिक प्रशासनिक निर्णयों के प्रति जागरूक और जिम्मेदार बनें। सूचना के अधिकार का प्रभावी ढंग से कार्यान्वयन हो और समय-समय पर नागरिकों को अद्यतन जानकारी उपलब्ध कराई जाए।


3. स्थानीय नेतृत्व का विकास:

शहरी निकायों में स्थानीय नेताओं का चुनाव समयबद्ध तरीके से होना चाहिए और उनकी क्षमता निर्माण के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए। इसके लिए प्रशासनिक दक्षता और शहरी प्रबंधन की शिक्षा दी जानी चाहिए।


4. बेहतर योजना और निष्पादन:

शहरी क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं की योजना बनाने के लिए दीर्घकालिक और संतुलित योजनाएं बनाई जानी चाहिए। इन योजनाओं के निष्पादन की निगरानी के लिए स्वायत्त निकायों की स्थापना की जा सकती है, जो समयबद्ध तरीके से योजनाओं का आकलन करें।


5. सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP मॉडल):

शहरी बुनियादी ढांचे और सेवाओं के सुधार के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना चाहिए। इससे शहरी क्षेत्रों में उच्च गुणवत्ता वाली सेवाएं प्राप्त की जा सकेंगी और सरकार की वित्तीय निर्भरता भी कम होगी।


6. स्मार्ट सिटी पहल का विस्तार:

स्मार्ट सिटी पहल को सभी बड़े और मध्यम आकार के शहरों में लागू करना चाहिए ताकि शहरी क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे और सेवाओं में तकनीकी सुधार हो सके।


7. नागरिक सहभागिता:

शहरी प्रशासन में नागरिकों की सहभागिता को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इसके लिए स्थानीय निकायों को नागरिकों से जुड़े निर्णय लेने में पारदर्शी और उत्तरदायी होना चाहिए। नागरिकों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल करने के लिए संवाद कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं।


निष्कर्ष:

इन सुधारों को लागू करने से शहरी प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार होगा और शहरी विकास में एक नई दिशा प्राप्त होगी। नागरिक सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों का समग्र विकास संभव होगा।


Question 2. स्थानीय शहरी प्रशासन के विभिन्न स्तरों के बीच प्रशासनिक जिम्मेदारियाँ कैसे वितरित की जाती हैं? चर्चा करें।


भारत के शहरी क्षेत्रों में प्रशासनिक जिम्मेदारियाँ विभिन्न स्तरों के स्थानीय निकायों के बीच वितरित की जाती हैं। यह वितरण शहरी क्षेत्रों के आकार, जनसंख्या और आवश्यकताओं के आधार पर किया जाता है। नगर निगम, नगर पालिका, और नगर पंचायत जैसी संस्थाएँ प्रमुख प्रशासनिक इकाइयाँ होती हैं।


1. नगर निगम (Municipal Corporation):

यह बड़े शहरों के लिए जिम्मेदार होती है, जहाँ की जनसंख्या 10 लाख से अधिक होती है। नगर निगम का प्रमुख कार्य क्षेत्र आधारभूत संरचना का विकास, सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता, और परिवहन सेवाओं का प्रबंधन होता है। महापौर (Mayor) और आयुक्त (Commissioner) इसके शीर्ष पदाधिकारी होते हैं।


2. नगर पालिका (Municipality):

यह मध्यम आकार के शहरों के लिए होती है, जहाँ की जनसंख्या 1 लाख से 10 लाख के बीच होती है। नगर पालिका का कार्यक्षेत्र नगर निगम के समान होता है, परन्तु यह छोटे स्तर पर कार्य करती है। इसमें भी एक अध्यक्ष (Chairperson) और मुख्य अधिकारी होते हैं।


3. नगर पंचायत (Nagar Panchayat):

यह उन क्षेत्रों के लिए होती है जो अर्ध-शहरी होते हैं, अर्थात जो पूरी तरह से शहरी क्षेत्र नहीं बने हैं। नगर पंचायत का उद्देश्य शहरीकरण की प्रक्रिया के तहत इन क्षेत्रों को विकसित करना और शहरी सुविधाएँ प्रदान करना है।


4. छावनी परिषद (Cantonment Board):

यह छावनी क्षेत्रों के प्रशासन के लिए जिम्मेदार होती है, जहाँ सेना और नागरिक दोनों रहते हैं। इसका कार्यक्षेत्र विशेष रूप से सेना से संबंधित होता है, लेकिन यह नागरिक प्रशासन भी देखता है।


प्रशासनिक जिम्मेदारियों का वितरण:


स्वास्थ्य और स्वच्छता: नगर निगम और नगर पालिकाओं को स्वास्थ्य सेवाओं और स्वच्छता का ध्यान रखना होता है, जबकि नगर पंचायतों को छोटे शहरी क्षेत्रों में यह जिम्मेदारी दी जाती है।

विकास कार्य: सड़कों, पार्कों, और अन्य सार्वजनिक सुविधाओं का निर्माण नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायतों द्वारा किया जाता है। बड़े शहरों में नगर निगम बड़े प्रोजेक्ट्स की देखरेख करती है।

जल आपूर्ति और कचरा प्रबंधन: सभी स्तरों के निकायों को जल आपूर्ति और कचरा प्रबंधन की जिम्मेदारी दी गई है, परंतु नगर निगम को बड़े शहरों में इस कार्य का समन्वय करना होता है।

निष्कर्ष:

स्थानीय शहरी प्रशासन के विभिन्न स्तरों के बीच प्रशासनिक जिम्मेदारियाँ इस प्रकार वितरित की गई हैं कि हर स्तर के निकाय अपने क्षेत्र की विशेष आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर कार्य कर सके। इससे शहरी प्रशासन अधिक प्रभावी और संगठित हो पाता है।


Question 3. नगर निगम के अंतर्गत गठित सांविधिक एवं गैर-सांविधिक समितियों की भूमिका पर प्रकाश डालें।


नगर निगम के सुचारू संचालन और प्रशासनिक कार्यों के प्रभावी निष्पादन के लिए विभिन्न सांविधिक (Statutory) और गैर-सांविधिक (Non-statutory) समितियों का गठन किया जाता है। इन समितियों का उद्देश्य नगर निगम के कार्यों की निगरानी, संचालन और योजना बनाना होता है।


1. सांविधिक समितियाँ (Statutory Committees):

ये समितियाँ कानूनी रूप से अनिवार्य होती हैं और नगर निगम अधिनियम के तहत गठित की जाती हैं। इनका प्रमुख कार्य निगम के दैनिक कार्यों की निगरानी करना और नीतिगत निर्णय लेना होता है।


स्थायी समिति (Standing Committee): यह नगर निगम की सबसे महत्वपूर्ण समिति होती है। इसका कार्य निगम के वित्त, नीतियों, और प्रशासनिक निर्णयों की देखरेख करना होता है। यह नगर निगम के बजट, कराधान, और अन्य महत्वपूर्ण कार्यों पर निर्णय लेती है।

स्वास्थ्य समिति (Health Committee): इसका काम शहर में स्वास्थ्य सेवाओं की देखरेख करना और स्वास्थ्य संबंधी नीतियाँ बनाना होता है। यह सार्वजनिक अस्पतालों, स्वच्छता और जल आपूर्ति के कार्यों का निरीक्षण करती है।

शिक्षा समिति (Education Committee): यह समिति शहर के शिक्षा संस्थानों की देखरेख करती है। सरकारी स्कूलों का संचालन, नए स्कूलों का निर्माण, और शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखने की जिम्मेदारी इस समिति की होती है।

2. गैर-सांविधिक समितियाँ (Non-statutory Committees):

गैर-सांविधिक समितियाँ नगर निगम के निर्णयों को सुचारू रूप से लागू करने में मदद करती हैं। इनका गठन नगर निगम के प्रशासनिक कामों में सहायता करने के लिए किया जाता है, परंतु ये कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं होतीं।


सांस्कृतिक समिति (Cultural Committee): यह समिति शहर में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करती है और नगर निगम के सांस्कृतिक विकास से जुड़े कार्यों को देखती है।

योजना समिति (Planning Committee): यह समिति शहरी विकास और आधारभूत संरचना की योजनाओं को तैयार करती है और उनके कार्यान्वयन की दिशा में काम करती है।

निष्कर्ष:

नगर निगम के अंतर्गत गठित सांविधिक और गैर-सांविधिक समितियाँ नगर निगम के कार्यों को प्रभावी ढंग से पूरा करने में सहायक होती हैं। ये समितियाँ प्रशासनिक और विकासात्मक कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और नागरिकों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नगर निगम की कार्यप्रणाली को बेहतर बनाती हैं।


Question 4. छावनी परिषद की प्रशासनिक संरचना क्या है और यह अन्य स्थानीय प्रशासन निकायों से कैसे भिन्न है? व्याख्या करें।


छावनी परिषद (Cantonment Board) एक विशेष प्रकार का शहरी स्थानीय प्रशासन निकाय है, जिसे भारत के छावनी क्षेत्रों (Cantonment Areas) के प्रशासन और विकास के लिए स्थापित किया गया है। इसकी संरचना और कार्यप्रणाली अन्य शहरी स्थानीय निकायों से अलग होती है क्योंकि इसका मुख्य उद्देश्य सेना और नागरिक प्रशासन दोनों की आवश्यकताओं को पूरा करना होता है।


1. प्रशासनिक संरचना:

छावनी परिषद का प्रशासनिक ढांचा अन्य शहरी निकायों से भिन्न होता है। इसमें निम्नलिखित प्रमुख पद और अधिकारी होते हैं:


अध्यक्ष (President): छावनी परिषद का अध्यक्ष स्थानीय सैन्य अधिकारी (Station Commander) होता है। इसका मुख्य कार्य सैन्य और नागरिक प्रशासन के बीच समन्वय करना होता है।

मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO): छावनी परिषद का संचालन मुख्य कार्यकारी अधिकारी द्वारा किया जाता है, जो कि रक्षा मंत्रालय के अधीन एक सिविल अधिकारी होता है। इसका कार्य परिषद के दैनिक प्रशासनिक कार्यों को संचालित करना होता है।

निर्वाचित सदस्य (Elected Members): छावनी परिषद के सदस्य चुनाव द्वारा चुने जाते हैं, जो कि स्थानीय नागरिकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। परिषद के निर्वाचित सदस्यों का काम नागरिक सेवाओं और विकास कार्यों पर निगरानी रखना होता है।

2. अन्य निकायों से भिन्नता:


सेना और नागरिक प्रशासन का मिश्रण: छावनी परिषद का मुख्य कार्यक्षेत्र सेना और नागरिक प्रशासन दोनों से जुड़ा होता है। अन्य स्थानीय निकायों में यह संरचना नहीं होती है, क्योंकि वे सिर्फ नागरिक प्रशासन के लिए जिम्मेदार होते हैं।

रक्षा मंत्रालय के अधीन: छावनी परिषद सीधे रक्षा मंत्रालय के अधीन कार्य करती है, जबकि अन्य स्थानीय निकाय राज्य सरकार के अधीन होते हैं। यह छावनी परिषद को विशिष्ट बनाता है क्योंकि इसके कार्यों में सैन्य प्रशासन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

सेवाओं का वितरण: छावनी परिषद सैन्य और नागरिक दोनों को समान रूप से सेवाएँ प्रदान करती है, जैसे कि स्वच्छता, स्वास्थ्य सेवाएँ, जल आपूर्ति, और सड़क निर्माण। जबकि अन्य शहरी निकाय मुख्यतः नागरिक प्रशासन के कार्यों पर केंद्रित होते हैं।

3. कार्यक्षेत्र:

छावनी परिषद का कार्यक्षेत्र सीमित होता है, जिसमें मुख्यतः सैन्य क्षेत्र और उससे जुड़े नागरिक क्षेत्र आते हैं। इसके विपरीत, नगर निगम या नगर पालिकाओं का कार्यक्षेत्र पूरे शहर पर लागू होता है।


निष्कर्ष:

छावनी परिषद की प्रशासनिक संरचना अन्य स्थानीय प्रशासनिक निकायों से इसलिए भिन्न है क्योंकि इसमें सैन्य और नागरिक प्रशासन का समन्वय होता है और यह रक्षा मंत्रालय के अधीन कार्य करता है। यह निकाय न केवल शहरी विकास के लिए कार्य करता है, बल्कि सैन्य आवश्यकताओं का भी ध्यान रखता है, जो इसे विशिष्ट बनाता है।



Question 5. नगरीय प्रशासन की संवैधानिक व्यवस्था पर एक निबंध लिखें।


भारत में नगरीय प्रशासन की संवैधानिक व्यवस्था का विकास 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के तहत किया गया। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य नगरीय निकायों को अधिक स्वायत्तता, वित्तीय शक्ति और प्रशासनिक स्वतंत्रता प्रदान करना था, ताकि शहरी क्षेत्रों में सुशासन और विकास को बढ़ावा दिया जा सके। यह संशोधन भारतीय संविधान में अनुच्छेद 243-पी से 243-ज़ेडजी तक जोड़ता है, जिसमें नगरीय स्थानीय निकायों की संरचना, शक्तियों और कार्यों को परिभाषित किया गया है।


संवैधानिक ढांचा: 74वां संशोधन नगर निगम, नगर पालिका, और नगर पंचायत जैसे निकायों की स्थापना करता है। नगर निगम बड़े शहरों के लिए, नगर पालिकाएँ मध्यम शहरों के लिए और नगर पंचायतें छोटे अर्ध-शहरी क्षेत्रों के लिए होती हैं। इन निकायों का मुख्य कार्यक्षेत्र शहरी बुनियादी ढाँचे का विकास, स्वच्छता, जल आपूर्ति, सड़क निर्माण, और नागरिक सेवाओं का प्रबंधन होता है।


चुनाव और कार्यकाल: संविधान के तहत नगरीय निकायों के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष मतदान द्वारा किया जाता है। प्रत्येक नगरीय निकाय का कार्यकाल 5 साल होता है, और इसका पुनर्निर्माण निर्धारित समय पर होना आवश्यक है। यह प्रावधान प्रशासन में निरंतरता और स्थायित्व सुनिश्चित करता है।


वित्तीय प्रावधान: नगरीय निकायों के वित्तीय प्रबंधन के लिए संविधान में वित्त आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है। वित्त आयोग राज्य सरकार को सलाह देता है कि शहरी निकायों को किस प्रकार के कर, शुल्क और अनुदान दिए जाएं, ताकि वे अपने कार्यों को प्रभावी रूप से कर सकें।


महत्व: इस संवैधानिक व्यवस्था ने नगरीय प्रशासन को एक कानूनी पहचान और स्वतंत्रता दी है, जिससे शहरी विकास में नागरिकों की भागीदारी बढ़ी है। यह अधिनियम नगरीय स्वशासन को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।


Question 6. वर्तमान में नगरीय निकायों के समक्ष उत्पन्न चुनौतियाँ क्या हैं? उनके समाधान हेतु अपने विचार प्रस्तुत करें।


भारत में नगरीय निकायों के समक्ष कई चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं, जो शहरी विकास और प्रशासन को प्रभावित कर रही हैं। इन चुनौतियों को हल करने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।


1. वित्तीय संकट:

अधिकांश नगरीय निकायों के पास अपने कार्यों को पूरा करने के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन नहीं होते। कराधान प्रणाली कमजोर है और बाहरी वित्तीय सहायता पर निर्भरता अधिक होती है।

समाधान: नगरीय निकायों को अपने स्वयं के राजस्व बढ़ाने के लिए अधिक स्वतंत्रता दी जानी चाहिए। इसके अलावा, केंद्र और राज्य सरकारों से मिलने वाले अनुदान को समय पर और पर्याप्त रूप से जारी किया जाना चाहिए।


2. प्रशासनिक अक्षमता:

प्रशासनिक ढांचा जटिल और धीमी गति से काम करने वाला है। कई बार योजनाओं का उचित क्रियान्वयन नहीं हो पाता।

समाधान: प्रशासनिक दक्षता को बढ़ाने के लिए ई-गवर्नेंस और डिजिटल तकनीकों का उपयोग बढ़ाया जाना चाहिए। साथ ही, कर्मचारियों को नियमित रूप से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।


3. अव्यवस्थित शहरीकरण:

शहरों का तेजी से विकास हो रहा है, लेकिन उचित शहरी नियोजन और बुनियादी ढांचे का अभाव है। इससे यातायात, जल आपूर्ति, और स्वच्छता जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।

समाधान: शहरों के लिए दीर्घकालिक और संतुलित योजनाएँ बनाई जानी चाहिए, जो भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए तैयार हों। स्मार्ट सिटी परियोजनाओं का विस्तार किया जा सकता है।


4. पारदर्शिता की कमी:

नगरीय निकायों में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी होती है, जिससे भ्रष्टाचार की समस्या बढ़ती है।

समाधान: ई-गवर्नेंस और सूचना के अधिकार का प्रभावी कार्यान्वयन करके पारदर्शिता बढ़ाई जा सकती है।


निष्कर्षत: इन चुनौतियों का समाधान करके शहरी विकास में तेजी लाई जा सकती है और नागरिकों को बेहतर सेवाएँ प्रदान की जा सकती हैं।


Question 7. प्रौद्योगिकी ने शहरी स्थानीय सरकारी सेवाओं और प्रशासन के आधुनिकीकरण एवं विकास में कैसे भूमिका निभाई है?


प्रौद्योगिकी ने पिछले कुछ वर्षों में शहरी स्थानीय सरकारों के प्रशासन और सेवाओं में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए हैं। इसके परिणामस्वरूप शहरी विकास और नागरिक सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।


1. ई-गवर्नेंस का प्रसार:

ई-गवर्नेंस ने प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सरल और पारदर्शी बना दिया है। विभिन्न शहरी निकायों ने ऑनलाइन सेवाओं की शुरुआत की है, जैसे कि कर भुगतान, लाइसेंस आवेदन, और शिकायत निवारण प्रणाली। इससे नागरिकों को घर बैठे सेवाएँ प्राप्त करने में सुविधा होती है।


2. स्मार्ट सिटी पहल:

स्मार्ट सिटी मिशन के तहत कई शहरों में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) का उपयोग किया जा रहा है। ट्रैफिक प्रबंधन, ऊर्जा आपूर्ति, जल प्रबंधन, और कचरा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में स्मार्ट तकनीकों का उपयोग हो रहा है। इससे संसाधनों का कुशल उपयोग और सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार हो रहा है।


3. GIS (भौगोलिक सूचना प्रणाली):

GIS तकनीक का उपयोग शहरी नियोजन और विकास में बढ़ गया है। इसके माध्यम से शहरी क्षेत्रों के मानचित्रण, सड़क नेटवर्क, और सार्वजनिक सुविधाओं की जानकारी इकट्ठा की जाती है, जिससे नगर निकायों को विकास परियोजनाओं की योजना बनाने में मदद मिलती है।


4. डिजिटल भुगतान प्रणाली:

नगरीय प्रशासन में करों और शुल्कों के भुगतान के लिए डिजिटल भुगतान प्रणाली का उपयोग किया जा रहा है। यह प्रक्रिया को तेज, सुरक्षित और पारदर्शी बनाता है, जिससे प्रशासनिक दक्षता में वृद्धि होती है।


5. डेटा विश्लेषण और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI):

डेटा विश्लेषण और AI तकनीक का उपयोग शहरी समस्याओं की पहचान करने और नीतिगत निर्णयों को बेहतर बनाने में किया जा रहा है। इससे प्रशासनिक कार्यों में सुधार और नागरिक सेवाओं की गुणवत्ता में बढ़ोतरी हुई है।


निष्कर्ष:

प्रौद्योगिकी के उपयोग ने शहरी स्थानीय सरकारी सेवाओं और प्रशासन में आधुनिकीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इससे न केवल प्रशासनिक प्रक्रियाएँ आसान हुई हैं, बल्कि नागरिकों को बेहतर और तेज सेवाएँ प्राप्त हो रही हैं।


Question 8. शहरी स्थानीय सरकारी नीतियों और परियोजनाओं के विकास को प्रभावित करने में नागरिक भागीदारी की भूमिका की जांच करें।



शहरी विकास में नागरिक भागीदारी का महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। नागरिक भागीदारी केवल प्रशासनिक निर्णयों में सुधार नहीं करती, बल्कि नीतियों और परियोजनाओं को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने में भी मदद करती है। शहरी प्रशासन को प्रभावी बनाने और सुशासन स्थापित करने के लिए नागरिकों की भागीदारी आवश्यक है।


1. नीति निर्माण में सीधी भागीदारी :  

कई शहरी स्थानीय निकायों ने नागरिकों को नीतियों के निर्माण और परियोजनाओं के विकास में सीधे भाग लेने के लिए मंच प्रदान किए हैं। नागरिक सलाहकार समितियाँ, सामुदायिक बैठकें और स्थानीय निकाय चुनाव नागरिकों की सहभागिता के प्रमुख माध्यम हैं। इन मंचों के जरिए नागरिक प्रशासन को अपनी समस्याओं और आवश्यकताओं के बारे में सीधे जानकारी दे सकते हैं।


2. बजट और संसाधनों का आवंटन :  

विभिन्न नगर निगमों ने "भागीदारी बजट" की शुरुआत की है, जहाँ नागरिक यह सुझाव देते हैं कि नगर निकाय के बजट का उपयोग कहाँ और कैसे किया जाए। इससे न केवल प्रशासनिक प्राथमिकताएँ नागरिकों की आवश्यकताओं के अनुसार तय होती हैं, बल्कि संसाधनों का न्यायसंगत वितरण भी होता है।


3. पारदर्शिता और जवाबदेही :  

नागरिकों की भागीदारी से प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ती है। डिजिटल प्लेटफॉर्म और ई-गवर्नेंस प्रणाली के माध्यम से नागरिक अपनी शिकायतें दर्ज कर सकते हैं और उन पर की गई कार्रवाई का निरीक्षण कर सकते हैं। इससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगता है और सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार होता है।


4. जागरूकता और समाज का सशक्तिकरण :  

सिविल सोसाइटी और स्थानीय समुदाय संगठनों द्वारा जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं, जिनसे नागरिक अपने अधिकारों और नगर निकाय की जिम्मेदारियों के प्रति अधिक जागरूक होते हैं। यह नागरिकों को न केवल उनके स्थानीय निकायों के कामकाज पर नजर रखने में सक्षम बनाता है, बल्कि उन्हें नीति निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए भी प्रेरित करता है।


5. प्रभावी क्रियान्वयन :  

नागरिकों की सहभागिता से योजनाओं और परियोजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित होता है। वे अपने क्षेत्र की समस्याओं और आवश्यकताओं को बेहतर ढंग से समझते हैं, जिससे प्रशासन को योजनाओं को स्थानीय जरूरतों के अनुरूप लागू करने में मदद मिलती है।


निष्कर्ष :  

नागरिक भागीदारी शहरी प्रशासन को अधिक लोकतांत्रिक और समावेशी बनाती है। इससे न केवल प्रशासनिक दक्षता में सुधार होता है, बल्कि नीतियों और परियोजनाओं का क्रियान्वयन भी अधिक प्रभावी और पारदर्शी होता है। नागरिकों की सहभागिता को बढ़ावा देकर शहरी प्रशासन में सुशासन और विकास को मजबूती दी जा सकती है।