BAHL(N)120 SOLVED QUESTION PAPER 2024

 BAHL(N)120 SOLVED QUESTION PAPER 2024

BAHL(N)120 SOLVED QUESTION PAPER 2024



Long answer type questions 



प्रश्न 01 कविता की परिभाषा देते हुए कविता और समाज पर निबंध लिखिए।




कविता की परिभाषा एवं कविता और समाज


परिचय


कविता मानव हृदय की गहरी भावनाओं, विचारों और अनुभवों की सुंदर अभिव्यक्ति है। यह शब्दों की ऐसी रचनात्मक प्रस्तुति है जो संगीतात्मकता, कल्पनाशीलता और अर्थगर्भिता से भरपूर होती है। कविता केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि समाज को जागरूक करने, प्रेरित करने और सांस्कृतिक मूल्यों को संरक्षित करने का एक प्रभावी साधन भी है।


कविता की परिभाषा


कविता की परिभाषा विभिन्न कवियों और साहित्यकारों ने अपने दृष्टिकोण के अनुसार दी है—


मैथिलीशरण गुप्त के अनुसार –

"काव्य वह साधन है जिससे हम हृदय की अनुभूतियों को सुंदरता और माधुर्य के साथ व्यक्त कर सकते हैं।"


जयशंकर प्रसाद ने कहा –

"कविता हृदय की संवेदनाओं की वह भाषा है जो विचारों और कल्पनाओं के माध्यम से व्यक्त होती है।"


डॉ. रामचंद्र शुक्ल के अनुसार –

"कविता वह कला है जिसमें हृदयगत संवेदनाओं और अनुभूतियों को रसात्मक भाषा में प्रस्तुत किया जाता है।"


इन परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि कविता केवल शब्दों का संकलन नहीं, बल्कि वह शक्ति है जो हृदय के भावों को एक विशेष लय और प्रभाव के साथ प्रस्तुत करती है।


कविता और समाज


कविता समाज का दर्पण होती है। यह न केवल समाज की वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करती है, बल्कि उसमें बदलाव लाने की प्रेरणा भी देती है। कविता और समाज का गहरा संबंध निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है—


1. सामाजिक चेतना और जागरूकता


कविता समाज में व्याप्त समस्याओं को उजागर करने और लोगों को जागरूक करने का एक प्रभावी माध्यम है। भारत में सूरदास, कबीर, तुलसीदास और रहीम जैसे कवियों ने सामाजिक बुराइयों के खिलाफ अपनी कविताओं के माध्यम से आवाज उठाई थी।


2. सांस्कृतिक संरक्षण


कविता हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संजोने और आगे बढ़ाने का कार्य करती है। लोकगीत, भक्ति काव्य और महाकाव्य हमारे समाज की सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने में सहायक रहे हैं।


3. देशभक्ति और क्रांतिकारी विचारधारा


कविता ने देशभक्ति की भावना को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। रामप्रसाद बिस्मिल की कविता – "सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है" ने स्वतंत्रता संग्राम के समय युवाओं को प्रेरित किया।


4. मानवीय भावनाओं की अभिव्यक्ति


कविता प्रेम, करुणा, दुख, सुख, आशा और निराशा जैसी मानवीय भावनाओं को व्यक्त करने का सबसे सशक्त माध्यम है। सुभद्राकुमारी चौहान, महादेवी वर्मा और हरिवंश राय बच्चन की कविताएँ मानवीय संवेदनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए जानी जाती हैं।


5. सामाजिक परिवर्तन का माध्यम


कविता समाज में बदलाव लाने का महत्वपूर्ण साधन रही है। कबीर और निराला की कविताएँ सामाजिक बंधनों को तोड़ने और नई सोच को प्रोत्साहित करने के लिए जानी जाती हैं।


उपसंहार


कविता केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि समाज के विकास का महत्वपूर्ण अंग है। यह समाज को जागरूक करने, सांस्कृतिक मूल्यों को संरक्षित करने और मानवता को प्रेरित करने का कार्य करती है। समय के साथ कविता के रूप भले ही बदलते गए हों, लेकिन उसकी प्रासंगिकता सदैव बनी रहेगी। इसीलिए, कविता को केवल साहित्य का अंग न मानकर समाज के दर्पण और मार्गदर्शक के रूप में देखना चाहिए।




प्रश्न 02 रीतिकालीन साहित्य की विशेषता और स्वरूम को रेखांकित कीजिए।




रीतिकालीन साहित्य की विशेषताएँ और स्वरूप


परिचय


रीतिकाल हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण युग (1650-1850 ई.) है, जिसे मुख्यतः श्रृंगार रस की प्रधानता और काव्यशास्त्रीय परंपरा के लिए जाना जाता है। इस काल के कवियों ने काव्य सौंदर्य, नायिका-भेद, अलंकारों और भाषा की कोमलता पर विशेष ध्यान दिया। रीतिकालीन साहित्य में काव्यशास्त्र के नियमों का पालन करते हुए भावनात्मक, श्रृंगारिक और अलंकारिक काव्य की रचना की गई।


रीतिकालीन साहित्य की विशेषताएँ


रीतिकालीन साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—


1. नायिका-भेद और श्रृंगार रस की प्रधानता


रीतिकाल में शृंगार रस का विशेष प्रभाव रहा। इस रस को संयोग और वियोग में विभाजित किया गया। नायिका-भेद (स्वकीया, परकीया, खंडिता, अभिसारिका आदि) और नायक-भेद (अनुकूल, दुराचारी, शठ आदि) का विस्तार से वर्णन किया गया।


2. काव्यशास्त्रीय परंपरा का विकास


इस काल के कवियों ने रस, अलंकार, छंद और काव्य के अन्य तत्वों पर विशेष ध्यान दिया। बिहारी, केशवदास और चिंतामणि त्रिपाठी जैसे कवियों ने काव्यशास्त्र संबंधी ग्रंथ लिखे।


3. नारी सौंदर्य का चित्रण


रीतिकाल में स्त्री सौंदर्य और प्रेम का सूक्ष्म और अलंकारिक वर्णन किया गया। कवियों ने नारी के विभिन्न अंगों, आभूषणों और श्रृंगारिक भंगिमाओं का चित्रण किया।


4. दरबारी संस्कृति और राजाश्रय


रीतिकालीन कवि अधिकांशतः राजाओं और नवाबों के दरबार में रहते थे। इसलिए उनकी कविताओं में राजाओं की प्रशंसा, प्रेम, विलासिता और दरबारी जीवन का वर्णन मिलता है।


5. भाषा शैली का परिष्कार


इस काल की भाषा परिष्कृत और अलंकारमयी रही। ब्रजभाषा इस युग की प्रमुख भाषा थी, जिसमें संस्कृतनिष्ठ शब्दावली और अलंकारों का भरपूर प्रयोग हुआ।


6. प्रकृति और लोकजीवन का अल्प वर्णन


रीतिकालीन काव्य में प्रकृति और लोकजीवन का उतना स्थान नहीं था जितना भक्ति और आधुनिक युग में देखा गया। इसका प्रमुख कारण दरबारी संस्कृति की प्रधानता थी।


रीतिकालीन साहित्य का स्वरूप


रीतिकालीन साहित्य को इसके स्वरूप के आधार पर तीन भागों में विभाजित किया जाता है—


1. रीति-बद्ध काव्य


इसमें काव्यशास्त्र के नियमों का पालन करते हुए श्रृंगारिक काव्य की रचना की गई। प्रमुख कवि— केशवदास, चिंतामणि त्रिपाठी, बिहारीलाल।


2. रीति-सिद्ध काव्य


इसमें काव्यशास्त्र की बजाय प्रेम और सौंदर्य की अनुभूति पर अधिक बल दिया गया। प्रमुख कवि— भूषण, चिंतामणि त्रिपाठी, मतिराम।


3. स्वतंत्र काव्य


इसमें रीति परंपरा से हटकर समाज और जीवन के अन्य पक्षों का चित्रण किया गया। प्रमुख कवि— घनानंद, पद्माकर।


उपसंहार


रीतिकालीन साहित्य मुख्यतः श्रृंगार रस और नायिका-भेद पर केंद्रित था, जिसमें भाषा की सुंदरता, अलंकारों का प्रयोग और काव्यशास्त्रीय नियमों का पालन हुआ। यह युग भले ही भक्ति भावना से दूर था, लेकिन इसकी काव्य-सौंदर्यता आज भी हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर बनी हुई है।




प्रश्न 03 खंडकाव्य की परिभाषा दते हुए भारतीय खंडकाव्यों का परिचय दीजिए।




परिचय


संस्कृत, हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में काव्य साहित्य का महत्वपूर्ण स्थान है। काव्य को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया जाता है, जिनमें से खंडकाव्य एक प्रमुख प्रकार है। खंडकाव्य महाकाव्य से छोटा होता है, लेकिन इसमें एक महत्वपूर्ण विषय, चरित्र या घटना का वर्णन किया जाता है। यह गद्य और पद्य दोनों रूपों में पाया जाता है और अक्सर प्रेरणादायक, ऐतिहासिक या सामाजिक संदेश देता है।


खंडकाव्य की परिभाषा


खंडकाव्य वह काव्य रचना होती है जिसमें किसी एक घटना, प्रसंग या चरित्र का विस्तार से वर्णन किया जाता है, लेकिन यह महाकाव्य की तरह विस्तृत नहीं होता।


विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाएँ


डॉ. रामचंद्र शुक्ल के अनुसार—

"खंडकाव्य वह काव्य है जो महाकाव्य की अपेक्षा छोटा होता है और किसी एक महत्वपूर्ण घटना या चरित्र पर केंद्रित होता है।"


हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार—

"खंडकाव्य में एक ही कथा का संक्षिप्त और प्रभावशाली वर्णन होता है, जिसमें भावनाओं की गहराई होती है।"


अमर सिंह के अनुसार—

"खंडकाव्य किसी एक विशिष्ट घटना या नायक के कार्यों को केंद्र में रखकर लिखा जाता है, जिसमें काव्य सौंदर्य के सभी गुण होते हैं।"


भारतीय खंडकाव्यों का परिचय


भारत में खंडकाव्य परंपरा बहुत पुरानी है। संस्कृत, हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में कई महत्वपूर्ण खंडकाव्य रचे गए हैं। ये धार्मिक, ऐतिहासिक, वीरता, प्रेम और समाज से जुड़े विषयों पर आधारित होते हैं।


संस्कृत के प्रमुख खंडकाव्य


मेघदूत (कालिदास) – इसमें एक यक्ष अपनी विरह वेदना को बादलों के माध्यम से अपनी प्रिय को संदेश भेजकर व्यक्त करता है।


किरातार्जुनीयम (भारवि) – इसमें अर्जुन और भगवान शिव के बीच हुए युद्ध का वर्णन है।


शिशुपालवध (माघ) – इसमें भगवान कृष्ण द्वारा शिशुपाल के वध की कथा का वर्णन किया गया है।


नैषधीयचरित (श्रीहर्ष) – इसमें नल और दमयंती की प्रेम कथा को दर्शाया गया है।


हिंदी के प्रमुख खंडकाव्य


साकेत (मैथिलीशरण गुप्त) – यह खंडकाव्य रामायण की कथा को उर्मिला के दृष्टिकोण से प्रस्तुत करता है।


पंचवटी (जयशंकर प्रसाद) – इसमें रामायण के पंचवटी प्रसंग को काव्यात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।


झाँसी की रानी (सुभद्राकुमारी चौहान) – इसमें रानी लक्ष्मीबाई की वीरता और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान का वर्णन है।


विजयिनी (हरिऔध) – इसमें ऐतिहासिक घटनाओं का काव्यात्मक चित्रण किया गया है।


उर्वशी (रामधारी सिंह दिनकर) – इसमें राजा पुरुरवा और अप्सरा उर्वशी की प्रेम कथा को वर्णित किया गया है।


खंडकाव्य की विशेषताएँ


एकल कथा – खंडकाव्य में केवल एक ही घटना या प्रसंग का संक्षिप्त किंतु प्रभावशाली वर्णन किया जाता है।


भावनात्मक गहराई – इसमें गहरी भावनाओं और संवेदनाओं को प्रकट किया जाता है।


ललित भाषा – खंडकाव्य की भाषा प्रायः सरल, प्रवाहमयी और अलंकारों से युक्त होती है।


संक्षिप्तता – महाकाव्य की तुलना में खंडकाव्य संक्षिप्त होते हैं, लेकिन प्रभावशाली होते हैं।


सामाजिक एवं ऐतिहासिक संदर्भ – इसमें सामाजिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहलुओं को प्रमुखता दी जाती है।


उपसंहार


खंडकाव्य भारतीय साहित्य की एक समृद्ध विधा है जो महाकाव्य की तुलना में संक्षिप्त होते हुए भी गहरी संवेदनाएँ, प्रेरक प्रसंग और काव्य सौंदर्य को प्रभावी रूप में प्रस्तुत करता है। संस्कृत और हिंदी के महान कवियों ने खंडकाव्य के माध्यम से समाज को प्रेरणा देने का कार्य किया है। आधुनिक समय में भी यह विधा प्रासंगिक बनी हुई है, क्योंकि यह संक्षेप में गहरी बात कहने की क्षमता रखती है।




प्रश्न 04 आदिकाल के नामकरण की समस्या पर विस्तार से चर्चा कीजिए।




परिचय


हिंदी साहित्य का इतिहास विभिन्न कालखंडों में विभाजित किया गया है, जिनमें आदिकाल (1000-1350 ई.) सबसे प्रारंभिक काल माना जाता है। इसे वीरगाथा काल भी कहा जाता है। इस काल का नामकरण कई विद्वानों द्वारा अलग-अलग तरीकों से किया गया है, जिसके कारण इसके नामकरण को लेकर कई विवाद उत्पन्न हुए हैं। यह विवाद इस काल की काव्य प्रवृत्तियों, भाषा, उपलब्ध रचनाओं और ऐतिहासिक संदर्भों के कारण उत्पन्न हुआ।


आदिकाल के नामकरण की समस्या


आदिकाल को लेकर विद्वानों में नामकरण को लेकर विभिन्न मत हैं। मुख्य रूप से इसे तीन नामों से जाना जाता है—


आदिकाल


वीरगाथा काल


संस्कृतानुकरण काल


इन नामों को लेकर विभिन्न मत हैं, जिनकी विस्तृत चर्चा निम्नलिखित है—


1. आदिकाल (प्रारंभिक काल) नामकरण


कुछ विद्वान इसे आदिकाल कहते हैं, क्योंकि यह हिंदी साहित्य का प्रारंभिक चरण माना जाता है।


आदिकाल नामकरण के पक्ष में तर्क:


यह हिंदी साहित्य का पहला चरण है, इसलिए इसे "आदिकाल" कहा जाना उचित है।


इस काल की उपलब्ध रचनाएँ अपभ्रंश और देशज भाषाओं से प्रभावित हैं, जो हिंदी के विकास की प्रारंभिक अवस्था को दर्शाती हैं।


इस नाम का प्रयोग रामचंद्र शुक्ल, राहुल सांकृत्यायन, डॉ. नगेंद्र आदि ने किया है।


आदिकाल नामकरण के विरोध में तर्क:


इस काल में साहित्य की अधिकतर रचनाएँ प्राकृत, अपभ्रंश और हिंदी के मिलेजुले रूप में थीं, जिसे पूरी तरह हिंदी नहीं कहा जा सकता।


इस काल की अधिकांश रचनाएँ वीरगाथाएँ हैं, इसलिए इसे वीरगाथा काल कहना अधिक उचित होगा।


2. वीरगाथा काल नामकरण


कुछ विद्वान इसे वीरगाथा काल मानते हैं, क्योंकि इस काल की प्रमुख काव्य प्रवृत्ति वीर रस पर केंद्रित थी।


वीरगाथा काल नामकरण के पक्ष में तर्क:


इस काल में रचित अधिकांश काव्य राजपूत वीरों की गाथाओं से संबंधित हैं, जैसे पृथ्वीराज रासो (चंदबरदाई), आल्हा-खंड, बीसलदेव रासो आदि।


इस समय रचित साहित्य वीरता, युद्ध, साहस और राजपूती गौरव का गुणगान करता है।


इस नाम को डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी, डॉ. रामविलास शर्मा आदि ने स्वीकार किया।


वीरगाथा काल नामकरण के विरोध में तर्क:


इस काल में केवल वीर रस की प्रधानता नहीं थी, बल्कि धार्मिक और भक्ति साहित्य भी रचा गया था।


केवल वीर रस को आधार बनाकर पूरे काल का नामकरण करना उचित नहीं माना जा सकता।


3. संस्कृतानुकरण काल नामकरण


कुछ साहित्यकार इसे संस्कृतानुकरण काल कहते हैं, क्योंकि इस समय के साहित्य पर संस्कृत भाषा और परंपराओं का गहरा प्रभाव था।


संस्कृतानुकरण काल नामकरण के पक्ष में तर्क:


इस काल की अधिकांश रचनाएँ संस्कृत काव्यशास्त्र के नियमों का पालन करती हैं।


राजाओं और योद्धाओं की प्रशंसा में लिखे गए काव्य संस्कृत की शैली और भाषा से प्रभावित थे।


इस मत का समर्थन कुछ विद्वानों ने किया, लेकिन इसे व्यापक स्वीकृति नहीं मिली।


संस्कृतानुकरण काल नामकरण के विरोध में तर्क:


इस काल की भाषा पूर्णतः संस्कृत नहीं थी, बल्कि अपभ्रंश, अवहट्ट और प्राचीन हिंदी का मिश्रण था।


यह नामकरण बहुत सीमित है और इस युग की समग्र साहित्यिक प्रवृत्तियों को परिभाषित नहीं करता।


आदिकाल के नामकरण पर प्रमुख विद्वानों के मत


विद्वाननामकरणतर्करामचंद्र शुक्लआदिकालहिंदी साहित्य का प्रारंभिक चरणहजारी प्रसाद द्विवेदीवीरगाथा कालवीर रस प्रधान काव्य रचनाएँराहुल सांकृत्यायनआदिकालभाषा की प्राचीनतारामविलास शर्मावीरगाथा कालवीर रस की प्रधानताडॉ. नगेंद्रआदिकालहिंदी भाषा का प्रारंभिक रूपविश्वनाथ त्रिपाठीसंस्कृतानुकरण कालसंस्कृत प्रभाव की प्रधानता


उपसंहार


आदिकाल के नामकरण को लेकर विद्वानों में मतभेद रहा है। कुछ इसे आदिकाल, कुछ वीरगाथा काल और कुछ संस्कृतानुकरण काल कहते हैं। हालाँकि, इस काल में वीर रस प्रधान रचनाएँ अधिक थीं, इसलिए "वीरगाथा काल" नाम अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है। लेकिन हिंदी साहित्य का यह प्रारंभिक काल भी है, इसलिए "आदिकाल" नाम भी स्वीकार्य है। आज अधिकांश इतिहासकार इसे "आदिकाल (वीरगाथा काल)" के रूप में मान्यता देते हैं।



प्रश्न 05 भक्तिकालीन कविता के उदय के कारणों पर सविस्तार निबंध लिखिए।




परिचय


हिंदी साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल (1350-1700 ई.) को स्वर्ण युग कहा जाता है। यह काल भक्ति भावना से ओतप्रोत था और इसमें संतों, कवियों और भक्तों ने ईश्वर की आराधना को प्रमुख स्थान दिया। भक्तिकालीन कविता का विकास भारतीय समाज, धार्मिक वातावरण, राजनीतिक स्थिति और सामाजिक परिस्थितियों के कारण हुआ। इस काल के कवियों ने ईश्वर-भक्ति के माध्यम से मानवता, प्रेम, समानता और आध्यात्मिकता का संदेश दिया।


भक्तिकालीन कविता के उदय के कारण


भक्तिकालीन कविता के उदय के कई कारण रहे हैं, जिन्हें निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है—


1. राजनीतिक परिस्थितियाँ


भक्तिकाल उस समय उभरा जब भारत में दिल्ली सल्तनत और मुगल शासन स्थापित हो चुका था।


तुर्कों और मुगलों के आक्रमणों के कारण राजनीतिक अस्थिरता थी, जिससे जनता भयभीत और असंतुष्ट थी।


इस अस्थिरता के कारण लोगों को आध्यात्मिक शांति और सांत्वना की आवश्यकता थी, जो भक्ति आंदोलन के रूप में उभरकर सामने आई।


राजाओं और सुल्तानों के अत्याचारों से परेशान जनता भक्ति के मार्ग पर चलने लगी।


2. सामाजिक परिस्थितियाँ


समाज में जातिवाद, छुआछूत, ऊँच-नीच और अन्य सामाजिक भेदभाव चरम पर थे।


निम्न जातियों को शिक्षा और मंदिरों में प्रवेश की अनुमति नहीं थी।


भक्ति आंदोलन ने इन सामाजिक बुराइयों के विरोध में समानता, प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया।


कबीर, रैदास, दादू जैसे संतों ने भक्ति को हर व्यक्ति के लिए सुलभ बनाया और धर्म के आडंबरों का विरोध किया।


3. धार्मिक परिस्थितियाँ


इस समय भारतीय समाज में हिंदू और इस्लाम धर्म के टकराव की स्थिति थी।


हिंदू धर्म में ब्राह्मणवाद का वर्चस्व बढ़ रहा था, जिसके कारण भक्ति आंदोलन ने निराकार भक्ति, भजन-कीर्तन और सहज उपासना को बढ़ावा दिया।


इस्लाम धर्म की सूफी परंपरा और हिंदू धर्म की भक्ति परंपरा के मेल से एक सहज और सरल भक्ति मार्ग विकसित हुआ।


रामानंद, कबीर, सूरदास, तुलसीदास और मीरा बाई जैसे संतों ने भक्ति को आम जनता की भाषा में प्रस्तुत किया।


4. इस्लाम और सूफी परंपरा का प्रभाव


इस्लाम के आगमन के बाद भारत में सूफी संतों का प्रभाव बढ़ा।


सूफियों ने प्रेम, सेवा और ईश्वर की एकता पर बल दिया, जिसका प्रभाव हिंदू भक्ति परंपरा पर पड़ा।


भक्ति आंदोलन में कबीर, दादू, मलूकदास जैसे संतों ने इस्लामी एकेश्वरवाद और सूफी प्रेम भावना को अपनाया।


5. आर्थिक परिस्थितियाँ


इस काल में सामंतवाद प्रचलित था, जिसके कारण गरीबों और किसानों का शोषण बढ़ रहा था।


आम जनता भक्ति आंदोलन के माध्यम से ईश्वर की शरण में जाने लगी क्योंकि उन्हें वहाँ सांत्वना और समानता का भाव मिला।


भक्ति संतों ने समाज में व्याप्त भेदभाव और आर्थिक विषमता के खिलाफ आवाज उठाई।


6. संस्कृत भाषा का जटिल होना


संस्कृत भाषा आम जनता के लिए कठिन थी और केवल ब्राह्मणों तक सीमित थी।


भक्ति संतों ने भाषा की सरलता पर जोर दिया और अपनी रचनाएँ लोकभाषा (अवधी, ब्रज, खड़ी बोली) में लिखीं।


तुलसीदास की रामचरितमानस, सूरदास के सूरसागर, और कबीर के साखी-रामaini जैसी रचनाएँ जन-जन में लोकप्रिय हुईं।


7. वैष्णव और शैव भक्ति परंपरा का प्रभाव


भक्ति आंदोलन का आधार प्राचीन वैष्णव और शैव परंपराएँ थीं।


दक्षिण भारत के अलवार और नयनार संतों ने पहले ही भक्ति का मार्ग प्रशस्त किया था।


उत्तर भारत में इस विचारधारा को रामानुज, रामानंद, कबीर, सूरदास, तुलसीदास आदि ने आगे बढ़ाया।


8. भारतीय दर्शन और योग परंपरा का प्रभाव


भारतीय उपनिषद, वेदांत, गीता और योग परंपरा ने भी भक्तिकालीन काव्य को प्रभावित किया।


भक्ति कवियों ने गीता के कर्मयोग, वेदांत के ज्ञान और योग के ध्यान-साधना को अपनाया।


संत कबीर, दादू, नानक आदि ने योग, ध्यान और आध्यात्मिक चेतना को भक्ति का आधार बनाया।


भक्तिकाल के दो प्रमुख प्रवाह


भक्तिकालीन काव्य को दो भागों में विभाजित किया जाता है—


निर्गुण भक्ति धारा (ईश्वर को निराकार मानने वाली)


प्रमुख कवि— कबीर, नानक, दादू, रैदास।


विशेषता— ब्राह्मणवाद और मूर्तिपूजा का विरोध।


सगुण भक्ति धारा (ईश्वर को साकार रूप में मानने वाली)


प्रमुख कवि— सूरदास, तुलसीदास, मीरा बाई।


विशेषता— भगवान के प्रेम और भक्ति का वर्णन।


उपसंहार


भक्तिकालीन कविता का उदय विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक परिस्थितियों के कारण हुआ। इस काल के संतों और कवियों ने जनता को प्रेम, समानता और भक्ति का संदेश दिया। उन्होंने धार्मिक पाखंडों और सामाजिक बुराइयों का विरोध किया और भक्ति को सहज और सुलभ बनाया। भक्ति आंदोलन ने भारतीय समाज को एक नई दिशा दी और यह काल हिंदी साहित्य के इतिहास में एक महान क्रांतिकारी युग के रूप में स्थापित हुआ।



SHORT ANSWER TYPE QUESTIONS 


प्रश्न 01 आधुनिक काल के कविता परिदृश्य पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।




आधुनिक काल के कविता परिदृश्य पर संक्षिप्त टिप्पणी


आधुनिक काल की कविता सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत अनुभूतियों का जीवंत दस्तावेज़ है। इस काल की कविता ने परंपरागत विषयों और शैलियों को चुनौती दी तथा नए प्रयोगों को अपनाया। इसे मुख्य रूप से तीन प्रमुख चरणों में बाँटा जा सकता है—भारतेंदु युग, द्विवेदी युग, छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और नव्य काव्यधारा।


1. भारतेंदु युग (1850-1900)


इस युग की कविता में राष्ट्रप्रेम, सामाजिक चेतना और सुधारवादी प्रवृत्तियाँ दिखाई देती हैं। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र इस युग के प्रमुख कवि थे। उनकी कविताएँ तत्कालीन सामाजिक और राजनीतिक स्थितियों पर प्रकाश डालती थीं।


2. द्विवेदी युग (1900-1920)


इस युग को ‘राष्ट्रीय पुनर्जागरण’ का काल माना जाता है। महावीर प्रसाद द्विवेदी ने कविता को आदर्शवाद, नैतिकता और राष्ट्रवाद से जोड़ा। मैथिलीशरण गुप्त की कविताएँ इस युग की प्रतिनिधि रचनाएँ हैं।


3. छायावाद (1920-1936)


छायावाद हिंदी कविता का स्वर्ण युग माना जाता है। इसमें काव्य में व्यक्तिवाद, सौंदर्यबोध, प्रकृति-प्रेम और रहस्यवाद की प्रधानता थी। जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा और सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ इस युग के प्रमुख कवि थे।


4. प्रगतिवाद (1936-1950)


यह काव्यधारा समाजवाद, यथार्थवाद और आमजन के संघर्षों से प्रेरित थी। नागार्जुन, शमशेर बहादुर सिंह, त्रिलोचन और सुभद्राकुमारी चौहान इस युग के महत्वपूर्ण कवि रहे।


5. प्रयोगवाद (1950-1970)


प्रयोगवाद कविता में नए प्रतीकों, रूपों और भाषा-शैली के प्रयोग पर बल देता है। अज्ञेय, धर्मवीर भारती, केदारनाथ सिंह आदि इस धारा के प्रमुख कवि थे।


6. नव्य काव्यधारा (1970-वर्तमान)


समकालीन कविता में सामाजिक-राजनीतिक चेतना, नारीवाद, दलित चेतना और नई संवेदनाएँ देखने को मिलती हैं। इस युग में कुंवर नारायण, विष्णु खरे, अरुण कमल, आलोक धन्वा आदि प्रमुख कवि हुए।


निष्कर्ष


आधुनिक हिंदी कविता सतत परिवर्तनशील रही है। यह समाज की सजीव अभिव्यक्ति है, जिसमें विभिन्न धाराओं ने समय-समय पर योगदान दिया। आज भी कविता नए प्रयोगों और संवेदनाओं के साथ आगे बढ़ रही है।



प्रश्न 02 महाकाव्य क्या है? महाकाव्य की भारतीय परिभाषा लिखिए।




महाकाव्य क्या है?


महाकाव्य एक विस्तृत और गंभीर काव्य रचना होती है, जिसमें किसी महापुरुष या दिव्य नायक के जीवन, संघर्ष, और महान कार्यों का वर्णन किया जाता है। इसमें वीरता, आदर्श, नीति, धर्म और लोकमंगल जैसे तत्व प्रमुख होते हैं। महाकाव्य में कथा विस्तार, रस-प्रधानता, उपदेशात्मकता और विशद वर्णन की विशेषताएँ होती हैं। यह प्राचीन काल से ही भारतीय साहित्य की प्रमुख विधा रही है।


महाकाव्य की भारतीय परिभाषा


संस्कृत साहित्य में महाकाव्य की परिभाषा आचार्यों ने दी है। आचार्य भामह, दंडी और मम्मट ने महाकाव्य की विशेषताओं को स्पष्ट किया है।


भामह के अनुसार:


"सर्गबंधः काव्यं महाकाव्यम्"

अर्थात, सर्गों (अध्यायों) में विभक्त विस्तृत काव्य ही महाकाव्य कहलाता है।


दंडी के अनुसार:


"तत्सर्गबद्धं बहुवृत्तसंयुक्तं दीर्घकथान्वितम्।"

अर्थात, महाकाव्य कई सर्गों में विभाजित होता है, इसमें विभिन्न घटनाओं और दीर्घ कथा का समावेश होता है।


मम्मट के अनुसार:


"सर्गे सर्गे सुंदर्यं यस्य तत् महाकाव्यम्।"

अर्थात, प्रत्येक सर्ग में सौंदर्य और कलात्मकता बनी रहे, तो वह महाकाव्य कहलाता है।


महाकाव्य की विशेषताएँ


नायक की महानता: महाकाव्य का नायक असाधारण और वीर गुणों से युक्त होता है, जैसे राम, कृष्ण, अर्जुन आदि।


दीर्घ कथा: इसमें विस्तृत और गंभीर कथा होती है, जो समाज को प्रेरणा देती है।


सर्गबद्ध संरचना: महाकाव्य कई सर्गों (अध्यायों) में विभाजित होता है।


लोकमंगलकारी संदेश: इसमें नीति, धर्म, सदाचार और समाज के कल्याण की भावना निहित रहती है।


अलंकृत भाषा: इसमें अनुप्रास, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का सुंदर प्रयोग होता है।


रस प्रधानता: श्रृंगार, वीर, करुण, शांत आदि रसों का प्रयोग किया जाता है।


भारतीय महाकाव्यों के उदाहरण


संस्कृत महाकाव्य: रामायण (वाल्मीकि), महाभारत (व्यास), कुमारसंभव (कालिदास)।


हिंदी महाकाव्य: रामचरितमानस (तुलसीदास), पद्मावत (मलिक मोहम्मद जायसी), पृथ्वीराज रासो (चंदबरदाई)।


निष्कर्ष


महाकाव्य भारतीय साहित्य की गरिमामयी विधा है, जो न केवल मनोरंजन प्रदान करती है बल्कि समाज को नैतिक और धार्मिक शिक्षा भी देती है। यह संस्कृत, हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में अपनी समृद्ध परंपरा के साथ विकसित हुआ है।




प्रश्न 03 सूफी संप्रदाय का परिचय दीजिए।




सूफी संप्रदाय का परिचय


सूफी संप्रदाय इस्लाम धर्म की एक रहस्यवादी धारा है, जो प्रेम, भक्ति, सहिष्णुता और ईश्वर से प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करने पर बल देती है। सूफी मत के अनुयायी बाहरी आडंबर और कट्टरता को छोड़कर आत्मिक शुद्धि, साधना, तथा मानवता की सेवा को सर्वोच्च मानते हैं। यह संप्रदाय इस्लाम के आध्यात्मिक पहलू को दर्शाता है और इसे इस्लाम की "इहसान" धारा भी कहा जाता है।


सूफी संप्रदाय की उत्पत्ति


सूफी परंपरा का विकास इस्लाम के प्रारंभिक काल में हुआ। इसका मूल इस्लाम के पैगंबर हजरत मुहम्मद की शिक्षाओं में देखा जाता है, लेकिन यह 8वीं और 9वीं शताब्दी में विशेष रूप से विकसित हुआ। हसन अल-बसरी (642-728 ई.) को प्रारंभिक सूफी विचारधारा का जनक माना जाता है। "सूफी" शब्द "सूफ़" (ऊन) से निकला है, क्योंकि प्रारंभिक सूफी संत ऊनी वस्त्र पहनते थे।


सूफी विचारधारा के प्रमुख तत्व


तौहीद (एकेश्वरवाद): सूफी संतों का मानना था कि ईश्वर एक है और वह प्रेम और भक्ति से प्राप्त किया जा सकता है।


इश्क-ए-हकीकी (सच्चा प्रेम): सूफी मत प्रेम को सबसे ऊँचा स्थान देता है। वे ईश्वर को प्रेमी मानते हैं और आत्मा को उसकी प्रेमिका।


फना (अहंकार का नाश): सूफी साधना का लक्ष्य "फना" यानी आत्मा का पूर्ण रूप से ईश्वर में विलय करना है।


सहिष्णुता और समभाव: सूफी संत जाति, धर्म और संप्रदाय से ऊपर उठकर मानवता की सेवा करते थे।


संगीत और कविताएँ: सूफी संत भक्ति संगीत (कव्वाली) और काव्य के माध्यम से अपने संदेश देते थे।


भारत में सूफी संप्रदाय का विकास


सूफीवाद भारत में 12वीं शताब्दी के आसपास मुस्लिम शासकों के साथ आया। इसे हिंदू भक्ति आंदोलन से भी प्रेरणा मिली। भारतीय समाज में इसका व्यापक प्रभाव पड़ा और इसने हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया।


भारत में प्रमुख सूफी सिलसिले (परंपराएँ):


चिश्ती सिलसिला:


संस्थापक: ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती (अजमेर)


प्रमुख संत: बाबा फरीद, निज़ामुद्दीन औलिया, सलीम चिश्ती


विशेषता: सरल जीवन, लोकभाषा में भक्ति, संगीत (कव्वाली) का प्रयोग


सुखरवर्दी सिलसिला:


संस्थापक: शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी


भारत में प्रचारक: शेख बहाउद्दीन जकरिया


विशेषता: सरकार और प्रशासन से संपर्क बनाए रखना


कादिरी सिलसिला:


संस्थापक: शेख अब्दुल कादिर जिलानी


भारत में प्रचारक: मखदूम मोहिउद्दीन


विशेषता: गहरी भक्ति, ध्यान और आध्यात्मिक साधना


नक्शबंदी सिलसिला:


संस्थापक: बहाउद्दीन नक्शबंद


भारत में प्रचारक: ख्वाजा बाक़ी बिल्लाह, शेख अहमद सरहिंदी


विशेषता: इस्लामी कानून (शरीयत) का कठोर पालन


सूफी संप्रदाय का प्रभाव


धार्मिक सहिष्णुता: सूफी संतों ने हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया और धार्मिक कट्टरता का विरोध किया।


भक्ति आंदोलन पर प्रभाव: सूफी संतों की शिक्षाएँ भक्ति संतों जैसे कबीर, गुरु नानक और दादू दयाल से मिलती-जुलती थीं।


संगीत और साहित्य: सूफी कवियों ने फारसी, उर्दू और हिंदी में सुंदर रचनाएँ लिखीं। अमीर खुसरो ने हिंदवी भाषा में कई रचनाएँ कीं।


लोकप्रिय तीर्थ स्थल: अजमेर में ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह और दिल्ली में निजामुद्दीन औलिया की दरगाह आज भी श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण स्थल हैं।


निष्कर्ष


सूफी संप्रदाय ने प्रेम, भक्ति और मानवता की सेवा को महत्व दिया। इसने भारतीय समाज में भाईचारे और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा दिया। सूफी संतों का योगदान न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण रहा है।




प्रश्न 04 रीतिमुक्त काव्यधारा को रेखांकित करते हुए घनानंद की कविता पर संक्षिप्त में टिप्पणी कीजिए।




रीतिमुक्त काव्यधारा का परिचय


रीतिमुक्त काव्यधारा हिंदी साहित्य के रीतिकाल (1650-1850 ई.) की एक महत्वपूर्ण धारा है, जो रीतिबद्ध काव्य की परंपरागत नीतियों से मुक्त थी। जहाँ रीति-बद्ध काव्य मुख्यतः शृंगारिक और अलंकारिक था, वहीं रीतिमुक्त कवियों ने व्यक्तिगत भावनाओं, प्रेम की गहन अनुभूति, तथा मानव-जीवन के यथार्थ चित्रण को अपनी कविता में स्थान दिया। इन कवियों ने काव्य में केवल रस और अलंकार पर ही नहीं, बल्कि भाव-प्रधानता और सहज अभिव्यक्ति पर भी ध्यान दिया।


रीतिमुक्त काव्य के प्रमुख कवि


घनानंद


अलखचंद


बोधा


संत कवि (सूरदास, तुलसीदास, कबीर)


घनानंद की कविता पर संक्षिप्त टिप्पणी


घनानंद रीतिकाल के प्रमुख रीतिमुक्त कवि थे। वे एक प्रख्यात कृष्णभक्त और प्रेम के सजीव कवि माने जाते हैं। उनकी कविता में प्रेम की गहन अनुभूति और विरह की तीव्रता दिखाई देती है।


घनानंद की काव्य विशेषताएँ:


व्यक्तिगत प्रेम-भावना: उनकी कविता में श्रृंगार रस का अद्भुत चित्रण मिलता है, जिसमें प्रेम की स्वाभाविकता और गहराई प्रमुख है।


भावुकता और विरह: घनानंद की कविता में विरह का दर्द और प्रेम की तीव्रता स्पष्ट रूप से झलकती है।


सरल और स्वाभाविक भाषा: वे क्लिष्ट अलंकारों से दूर रहकर सहज और संप्रेषणीय भाषा में काव्य रचते थे।


नायिका की महत्ता: उनकी कविता में नायिका के रूप-स्वरूप से अधिक उसके भावों और मनोदशा को महत्व दिया गया है।


भक्तिपूर्ण प्रेम: वे अपनी प्रेमानुभूति को ईश्वरीय भक्ति से जोड़ते हैं, जिससे उनकी कविता में एक आध्यात्मिक आयाम भी दिखाई देता है।


उदाहरण:


"आनंदघन यह जान घनानंद, तजे ताहि के हेत सुने को!"


इस पंक्ति में घनानंद प्रेम के प्रति अपनी अनन्य निष्ठा व्यक्त कर रहे हैं और प्रेम की अनमोलता को दर्शाते हैं।


निष्कर्ष


रीतिमुक्त काव्यधारा ने हिंदी कविता को केवल शृंगार और नायिका-भेद तक सीमित न रखकर उसे गहरी अनुभूतियों और मानवीय संवेदनाओं से जोड़ा। घनानंद की कविता प्रेम की स्वाभाविकता, गहन भावुकता और विरह के सजीव चित्रण के कारण हिंदी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान रखती है।




प्रश्न 05 आधुनिक हिन्दी कविता भारतीय नवजागरण की भाषाई अभिव्यक्ति है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।




आधुनिक हिंदी कविता को भारतीय नवजागरण की भाषाई अभिव्यक्ति कहा जाए तो यह पूर्णतः उचित प्रतीत होता है। 19वीं और 20वीं शताब्दी में भारत में सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक चेतना का उदय हुआ, जिसे भारतीय नवजागरण कहा जाता है। इस जागरण की लहर ने साहित्य, कला, राजनीति और समाज सुधार जैसे विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित किया। आधुनिक हिंदी कविता इसी नवजागरण का एक महत्वपूर्ण माध्यम बनी और उसने समाज में बदलाव लाने के लिए अपनी प्रभावशाली भूमिका निभाई।


भारतीय नवजागरण और आधुनिक हिंदी कविता


1. राष्ट्रीय चेतना और स्वतंत्रता संग्राम


आधुनिक हिंदी कविता ने भारतीय समाज में स्वतंत्रता और राष्ट्रवाद की भावना को प्रबल किया। भारतेंदु हरिश्चंद्र, मैथिलीशरण गुप्त, सुभद्राकुमारी चौहान और रामधारी सिंह दिनकर जैसे कवियों ने अपनी रचनाओं में मातृभूमि की महिमा, स्वाधीनता संग्राम और क्रांतिकारी विचारों को अभिव्यक्त किया।


उदाहरण:

"खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी।" – सुभद्राकुमारी चौहान


2. सामाजिक सुधार और प्रगतिशील विचारधारा


नवजागरण काल में समाज में फैली कुरीतियों, छुआछूत, जातिवाद, बाल विवाह, स्त्री-शिक्षा की कमी और सामंती उत्पीड़न के विरुद्ध आवाज़ उठाई गई। कवियों ने इन विषयों पर अपने विचार प्रकट कर समाज सुधार की दिशा में योगदान दिया।


उदाहरण:


निराला की कविता में नारी मुक्ति और स्वतंत्रता की झलक मिलती है।


पंत और दिनकर की कविताएँ सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा देती हैं।


3. आध्यात्मिकता और व्यक्ति की आंतरिक चेतना


छायावादी कवियों—जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा और निराला—ने भारतीय नवजागरण को एक नई दिशा दी। उन्होंने कविता को केवल राष्ट्र और समाज तक सीमित न रखते हुए व्यक्ति की आंतरिक चेतना, आत्मान्वेषण और आध्यात्मिकता से भी जोड़ा।


उदाहरण:

"जो तुम आ जाते एक बार!" – महादेवी वर्मा


4. वैज्ञानिक चेतना और आधुनिकता


आधुनिक हिंदी कविता केवल भावनाओं और सामाजिक सुधार तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसने तर्कशीलता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और आधुनिकता को भी अपनाया। प्रयोगवादी और नई कविता आंदोलन के कवियों—अज्ञेय, मुक्तिबोध, शमशेर बहादुर सिंह, नागार्जुन आदि—ने सामाजिक यथार्थ और मनोवैज्ञानिक पहलुओं को केंद्र में रखा।


उदाहरण:

"अंधेरे में" – मुक्तिबोध (सामाजिक यथार्थ और बौद्धिक चेतना का चित्रण)


निष्कर्ष


आधुनिक हिंदी कविता ने भारतीय नवजागरण की अभिव्यक्ति को सशक्त भाषा दी। यह कविता केवल साहित्यिक सौंदर्य का साधन नहीं रही, बल्कि समाज में चेतना लाने, स्वतंत्रता संग्राम को गति देने, वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने और व्यक्तित्व विकास को प्रेरित करने का कार्य भी किया। इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि आधुनिक हिंदी कविता भारतीय नवजागरण की भाषाई अभिव्यक्ति है, जिसने देश, समाज और व्यक्ति को एक नई दिशा प्रदान की।




प्रश्न 06 मैथिलीशरण गुप्त की कविताओं पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।



परिचय


मैथिलीशरण गुप्त (1886-1964) हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि और खड़ीबोली हिंदी के प्रथम महाकवि के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने हिंदी कविता को एक नई दिशा दी और उसे राष्ट्रवादी, सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना से जोड़ा। उनकी कविताएँ सरल, प्रवाहपूर्ण और भावनात्मक अभिव्यक्ति से युक्त होती हैं, जिनमें राष्ट्रीयता, इतिहासबोध, सामाजिक सुधार और आध्यात्मिकता की झलक मिलती है।


काव्यगत विशेषताएँ


1. राष्ट्रप्रेम और देशभक्ति


गुप्त जी की कविताओं में राष्ट्रीय चेतना प्रबल रूप से व्यक्त हुई है। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों में देशभक्ति की भावना जगाने का कार्य करते थे। उनकी कविता "भारत-भारती" स्वतंत्रता आंदोलन की प्रमुख काव्य-कृति मानी जाती है।


उदाहरण:

"हम कौन थे, क्या हो गए हैं, और क्या होंगे अभी,

आओ विचारें आज मिलकर, ये समस्याएँ सभी।"


2. सामाजिक चेतना और नारी जागरण


गुप्त जी ने समाज में व्याप्त बुराइयों, जातिवाद, छुआछूत और नारी उत्पीड़न के विरुद्ध अपनी कविताओं में मुखर रूप से आवाज़ उठाई। उनकी कविता "सखि वे मुझसे कह कर जाते" नारी मन की वेदना और त्याग को उजागर करती है।


उदाहरण:

"अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी,

आँचल में है दूध और आँखों में पानी।"


3. ऐतिहासिक और पौराणिक चेतना


गुप्त जी ने प्राचीन भारतीय संस्कृति और गौरवशाली इतिहास को अपनी कविताओं में स्थान दिया। उनके महाकाव्य "साकेत" में रामायण की कथा को नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उर्मिला के चरित्र को विशेष रूप से उभारा गया है।


4. खड़ीबोली हिंदी का विकास


उनकी रचनाएँ खड़ीबोली हिंदी में लिखी गईं, जिससे हिंदी काव्य को एक नई पहचान मिली। वे खड़ीबोली हिंदी के प्रवर्तक के रूप में माने जाते हैं। उनकी भाषा सरल, सहज और प्रवाहमयी होती थी, जिसमें ओज और माधुर्य का अद्भुत संतुलन देखा जाता है।


महत्व और प्रभाव


मैथिलीशरण गुप्त की कविताएँ केवल मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र को प्रेरित करने के लिए लिखी गई थीं। उन्होंने साहित्य को जनसामान्य के करीब लाया और हिंदी काव्य में एक नई चेतना का संचार किया। उनकी काव्य रचनाएँ आज भी प्रेरणादायक बनी हुई हैं।


निष्कर्ष


मैथिलीशरण गुप्त की कविताएँ देशभक्ति, सामाजिक सुधार, इतिहासबोध और मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण हैं। वे हिंदी साहित्य के ऐसे स्तंभ हैं, जिन्होंने कविता को जन-जन तक पहुँचाया और उसे राष्ट्रीय चेतना का माध्यम बनाया। इसलिए, उन्हें "राष्ट्रकवि" की उपाधि से सम्मानित किया गया।




प्रश्न 07 छाया की मूल प्रवृत्तियों का निरूपण कीजिए।




परिचय


छायावाद हिंदी कविता का एक महत्वपूर्ण काव्य आंदोलन है, जो मुख्य रूप से 1918 से 1936 के बीच विकसित हुआ। यह आंदोलन भारतीय नवजागरण, स्वाधीनता आंदोलन, व्यक्तिवाद और रहस्यवाद से प्रभावित था। छायावाद ने हिंदी कविता को नई ऊँचाइयाँ प्रदान कीं और उसे भावनात्मक गहराई, कोमलता और आत्माभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा और सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ इस आंदोलन के प्रमुख कवि थे।


छायावाद की मूल प्रवृत्तियाँ


1. व्यक्तिवाद और आत्माभिव्यक्ति


छायावादी कविता में व्यक्तिवाद की प्रमुखता है। इसमें कवि ने अपनी भावनाओं, संवेदनाओं और मनोभावों को स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त किया। यह व्यक्तिवाद रोमांटिक साहित्य से प्रभावित था।


उदाहरण:

"मैं नीर भरी दुख की बदली" – महादेवी वर्मा


2. प्रकृति प्रेम


छायावाद में प्रकृति केवल पृष्ठभूमि नहीं, बल्कि एक सजीव पात्र के रूप में प्रस्तुत होती है। इसमें प्रकृति से संवाद, उसके माध्यम से अपने भावों की अभिव्यक्ति, और रहस्यवादी दृष्टिकोण देखने को मिलता है।


उदाहरण:

"वह आता—दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता!" – निराला


3. रहस्यवाद और आध्यात्मिकता


छायावादी काव्य में रहस्यवाद और आध्यात्मिकता का गहरा प्रभाव है। कवि आत्मा, ब्रह्मांड, जीवन-मृत्यु, और परमात्मा के रहस्यों को समझने की कोशिश करता है।


उदाहरण:

"बांधों न नाव इस ठांव, बंधु!

यह गांव अब भी है ऊंघ रहा।"* – पंत


4. सौंदर्य और कल्पनाशीलता


छायावादी कविता में सौंदर्यबोध और कल्पनाशीलता का अद्भुत समावेश है। कवियों ने कल्पना के माध्यम से कोमल भावनाओं, प्राकृतिक दृश्यों और आध्यात्मिक अनुभूतियों को चित्रित किया।


5. स्त्री-स्वतंत्रता और नारी भावनाओं की अभिव्यक्ति


महादेवी वर्मा की कविताओं में स्त्री की आत्मा, उसके संघर्ष और स्वतंत्र अस्तित्व को प्रमुखता दी गई है। छायावादी कविता में स्त्री केवल सौंदर्य की वस्तु न होकर, उसकी भावनाओं और आंतरिक संघर्षों को भी अभिव्यक्ति मिली।


उदाहरण:

"जो तुम आ जाते एक बार!" – महादेवी वर्मा


6. राष्ट्रप्रेम और सामाजिक चेतना


हालाँकि छायावाद को आत्मनिष्ठ काव्य धारा माना जाता है, फिर भी इसमें राष्ट्रप्रेम और सामाजिक चेतना की झलक भी मिलती है। निराला और प्रसाद की कविताओं में यह प्रवृत्ति विशेष रूप से देखी जाती है।


उदाहरण:

"अरुण यह मधुमय देश हमारा।" – जयशंकर प्रसाद


निष्कर्ष


छायावाद हिंदी साहित्य का स्वर्णिम युग था, जिसने कविता को नई दिशा और गहराई प्रदान की। इसकी मूल प्रवृत्तियाँ – व्यक्तिवाद, प्रकृति प्रेम, रहस्यवाद, सौंदर्यबोध, नारी चेतना और राष्ट्रीयता – इसे हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण आंदोलन बनाती हैं। छायावाद ने कविता को केवल भक्ति और रीति की परंपरा से मुक्त कर, उसे आत्माभिव्यक्ति और भावनात्मक गहराई का माध्यम बनाया।




प्रश्न 08 समकालीन कविता की प्रवृत्तियों को स्पष्ट कीजिए।




परिचय


समकालीन कविता हिंदी साहित्य की वह धारा है, जो 1950 के बाद विकसित हुई और आज तक सक्रिय है। यह कविता अपने समय की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक परिवर्तनों को अभिव्यक्त करती है। समकालीन कवियों ने परंपरागत काव्यशैली से हटकर यथार्थवाद, प्रतीकात्मकता और मानव जीवन के जटिल अनुभवों को अपनाया।


समकालीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियाँ


1. सामाजिक यथार्थवाद और जनवादी चेतना


समकालीन कविता समाज की वास्तविक स्थितियों को बिना किसी अलंकरण के प्रस्तुत करती है। इसमें दलित, शोषित, किसान, मजदूर, और स्त्री-चेतना को विशेष स्थान दिया गया है। कवियों ने गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और राजनीतिक असमानता को प्रमुखता से उठाया है।


उदाहरण:

"सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना।" – पाश


2. राजनीतिक चेतना और प्रतिरोध की भावना


समकालीन कविता में राजनीति, सत्ता, शोषण और संघर्ष का चित्रण महत्वपूर्ण रूप से मिलता है। सत्ता के दमन, सामाजिक अन्याय और असमानता के खिलाफ कवियों ने अपनी आवाज़ उठाई है।


उदाहरण:

"अब तक क्या किया?

जीवन क्या जिया?

ज्यादा लिया और दिया बहुत कम!" – धूमिल


3. स्त्री चेतना और नारीवाद


समकालीन कविता में नारी चेतना और नारीवादी विचारधारा को विशेष स्थान मिला है। कवयित्रियों और कवियों ने महिलाओं की स्थिति, उनके अधिकारों और समाज में उनकी भूमिका को सशक्त रूप से प्रस्तुत किया है।


उदाहरण:

"मैं चुप नहीं रहूँगी!

"मैं बोलूँगी, कि मेरी आवाज़ भी सुनी जाए!" – कविता वर्मा


4. प्रकृति और पर्यावरण चेतना


समकालीन कविताओं में प्रकृति का चित्रण केवल सौंदर्य के रूप में नहीं, बल्कि पर्यावरणीय संकट और पारिस्थितिक असंतुलन के संदर्भ में किया गया है। कवियों ने जंगलों की कटाई, जल संकट, प्रदूषण और प्रकृति के विनाश पर चिंता व्यक्त की है।


उदाहरण:

"पेड़ों की हत्या का अपराध

जंगल रो-रो कर सहता है!"


5. शहरीकरण और अकेलेपन का चित्रण


आधुनिक जीवनशैली, भागदौड़, अकेलापन और संवेदनहीनता जैसी समस्याओं को भी समकालीन कविता में प्रमुखता से स्थान मिला है। आज का मानव तकनीक में उलझा हुआ है, लेकिन भीतर से खाली और असंतुष्ट महसूस करता है।


6. नई भाषा और शिल्प प्रयोग


समकालीन कविता ने भाषा और शिल्प में कई प्रयोग किए हैं। इसमें व्यंग्य, प्रतीक, नए बिंब, मुक्तछंद, और रोज़मर्रा की बोलचाल की भाषा को अपनाया गया है।


7. दलित और हाशिए के समाज की अभिव्यक्ति


समकालीन कविता में दलित, आदिवासी और हाशिए के समाज की पीड़ा को प्रमुखता दी गई है। दलित साहित्यकारों ने अपनी आवाज़ बुलंद की और जातिवाद, भेदभाव और शोषण के खिलाफ कविताएँ लिखीं।


उदाहरण:

"मैं भी मराठी लिखूँगा!

"मैं भी कवि बनूँगा!" – नामदेव ढसाल


निष्कर्ष


समकालीन कविता केवल सौंदर्य या कल्पना तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अपने समय के समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और मनोवैज्ञानिक परिवर्तनों को सशक्त रूप से प्रस्तुत करती है। इसमें प्रतिरोध, यथार्थ, जनचेतना, स्त्रीवाद, दलित विमर्श और आधुनिक जीवन की जटिलताओं का व्यापक चित्रण किया गया है। इस प्रकार, समकालीन कविता आधुनिक युग की सबसे सशक्त और जीवंत साहित्यिक विधा के रूप में उभरी है।



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