GEEC-02 SOLVED PAPER JUNE 2024

 GEEC-02 SOLVED PAPER JUNE 2024




01. भारत में नियोजन निर्माण प्रक्रिया का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।



भारत में नियोजन निर्माण प्रक्रिया का विस्तारपूर्वक वर्णन

भारत में नियोजन प्रक्रिया (Planning Process) एक सुव्यवस्थित और चरणबद्ध प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से आर्थिक विकास के लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं और उन्हें प्राप्त करने के लिए योजनाएँ बनाई जाती हैं। भारत में नियोजन की शुरुआत 1951 में प्रथम पंचवर्षीय योजना के साथ हुई थी। इसके बाद विभिन्न पंचवर्षीय योजनाएँ बनाई गईं, जिनका उद्देश्य देश के सामाजिक और आर्थिक विकास को सुनिश्चित करना था।


नियोजन निर्माण प्रक्रिया के प्रमुख चरण

भारत में नियोजन निर्माण की प्रक्रिया मुख्य रूप से निम्नलिखित चरणों में विभाजित की जाती है:


1. योजना आयोग या नीति आयोग की भूमिका

भारत में 1950 से 2014 तक योजना निर्माण का कार्य योजना आयोग (Planning Commission) द्वारा किया जाता था। 2015 में इसे समाप्त कर नीति आयोग (NITI Aayog) का गठन किया गया, जो अब नीति निर्माण और विकास योजनाओं का कार्य करता है।


2. दीर्घकालिक और लघुकालिक लक्ष्य निर्धारण

योजना निर्माण से पहले देश के आर्थिक और सामाजिक विकास से जुड़े दीर्घकालिक (Long-term) और लघुकालिक (Short-term) लक्ष्यों को तय किया जाता है। दीर्घकालिक लक्ष्य आमतौर पर 15 से 20 वर्षों के लिए होते हैं, जबकि लघुकालिक लक्ष्य 5 वर्षों के लिए होते हैं।


3. आंकड़ों और सूचनाओं का संग्रहण

योजना निर्माण से पहले विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय आँकड़े एकत्र किए जाते हैं। इसके लिए सरकार विभिन्न संस्थानों जैसे – केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (CSO), राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) आदि की सहायता लेती है।


4. प्राथमिकताओं का निर्धारण

अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों (जैसे – कृषि, उद्योग, सेवा, स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन आदि) की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए विकास की प्राथमिकताओं को तय किया जाता है। इससे यह तय किया जाता है कि किन क्षेत्रों में पहले कार्य करना आवश्यक है।


5. वित्तीय संसाधनों का प्रबंधन

योजना को सफल बनाने के लिए वित्तीय संसाधनों की व्यवस्था की जाती है। इसमें घरेलू और विदेशी निवेश, कर राजस्व, सरकारी व्यय, ऋण और सहायता आदि का समावेश होता है।


6. मसौदा योजना (Draft Plan) का निर्माण

सभी उपलब्ध आँकड़ों, प्राथमिकताओं और संसाधनों के आधार पर मसौदा योजना तैयार की जाती है। यह मसौदा संबंधित मंत्रालयों, राज्य सरकारों और विशेषज्ञ समितियों से विचार-विमर्श के बाद अंतिम रूप लिया जाता है।


7. राष्ट्रीय विकास परिषद (NDC) द्वारा अनुमोदन

मसौदा योजना को राष्ट्रीय विकास परिषद (National Development Council) में प्रस्तुत किया जाता है। यहाँ इस पर चर्चा की जाती है और आवश्यक संशोधन किए जाते हैं। जब यह योजना अनुमोदित हो जाती है, तो इसे क्रियान्वयन के लिए संबंधित विभागों को सौंप दिया जाता है।


8. योजना का क्रियान्वयन (Implementation of the Plan)

योजना के अनुमोदन के बाद सरकार और संबंधित विभाग इसे लागू करते हैं। इसमें केंद्र और राज्य सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके लिए सरकारी बजट में आवश्यक प्रावधान किए जाते हैं और योजनाओं को ज़मीनी स्तर पर लागू किया जाता है।


9. समीक्षा और मूल्यांकन (Review and Evaluation)

योजना लागू होने के बाद समय-समय पर इसकी प्रगति की समीक्षा की जाती है। यदि किसी क्षेत्र में अपेक्षित परिणाम नहीं मिलते हैं, तो उसमें सुधार के लिए आवश्यक कदम उठाए जाते हैं। योजना के अंत में इसका मूल्यांकन किया जाता है ताकि भविष्य की योजनाओं को और बेहतर बनाया जा सके।


निष्कर्ष

भारत में नियोजन निर्माण प्रक्रिया एक व्यवस्थित और चरणबद्ध प्रक्रिया है, जिसमें दीर्घकालिक लक्ष्यों के साथ-साथ लघुकालिक प्राथमिकताओं को ध्यान में रखकर योजनाएँ बनाई जाती हैं। इस प्रक्रिया में नीति आयोग, सरकार, विभिन्न मंत्रालय, राज्य सरकारें और विशेषज्ञ समितियाँ मिलकर कार्य करती हैं। समीक्षा और मूल्यांकन की प्रक्रिया इसे और अधिक प्रभावी बनाती है, जिससे आर्थिक और सामाजिक विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिलती है।




02. योजनाकाल में अभी तक की योजनाओं की समीक्षा कीजिए।



योजनाकाल में अभी तक की योजनाओं की समीक्षा

भारत में नियोजित आर्थिक विकास की प्रक्रिया 1951 में प्रथम पंचवर्षीय योजना (First Five-Year Plan) के साथ शुरू हुई थी। इसके बाद कई पंचवर्षीय योजनाएँ लागू की गईं, जिनका उद्देश्य देश के आर्थिक, सामाजिक और औद्योगिक विकास को गति देना था। हालांकि, 2017 के बाद पंचवर्षीय योजनाओं को समाप्त कर दिया गया और नीति आयोग (NITI Aayog) द्वारा "15 वर्षीय दृष्टि दस्तावेज" (15-Year Vision Document) और "3 वर्षीय कार्यसूची" (Three-Year Action Agenda) लागू की गई।


योजनाकाल की प्रमुख पंचवर्षीय योजनाएँ और उनकी समीक्षा

1. प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56)

लक्ष्य: कृषि विकास और सिंचाई परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना।

उपलब्धियाँ: खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि, भाखड़ा नांगल और दामोदर घाटी परियोजनाओं की शुरुआत।

चुनौतियाँ: औद्योगीकरण पर कम ध्यान दिया गया।


2. द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61)

लक्ष्य: भारी उद्योगों और औद्योगिक बुनियादी ढाँचे का विकास (महत्वाकांक्षी "महालनोबिस मॉडल")।

उपलब्धियाँ: इस्पात संयंत्रों की स्थापना (भिलाई, दुर्गापुर, राउरकेला), सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार।

चुनौतियाँ: कृषि उपेक्षित रही, खाद्यान्न संकट उत्पन्न हुआ।


3. तृतीय पंचवर्षीय योजना (1961-66)

लक्ष्य: कृषि और उद्योगों के बीच संतुलित विकास।

उपलब्धियाँ: हरित क्रांति की शुरुआत, डेयरी उद्योग में सुधार।

चुनौतियाँ: 1962 का चीन युद्ध और 1965 का भारत-पाक युद्ध, अकाल और आर्थिक संकट।


तीन वार्षिक योजनाएँ (1966-69)

युद्ध और आर्थिक संकट के कारण पंचवर्षीय योजना न होकर तीन वार्षिक योजनाएँ बनाई गईं।


4. चतुर्थ पंचवर्षीय योजना (1969-74)

लक्ष्य: गरीबी उन्मूलन और आत्मनिर्भरता।

उपलब्धियाँ: हरित क्रांति से कृषि उत्पादन में वृद्धि।

चुनौतियाँ: 1971 का भारत-पाक युद्ध, महंगाई और खाद्यान्न संकट।


5. पंचम पंचवर्षीय योजना (1974-79)

लक्ष्य: गरीबी हटाओ (Garibi Hatao) और आत्मनिर्भरता।

उपलब्धियाँ: बीज क्रांति, रोजगार योजनाएँ।

चुनौतियाँ: 1975 का आपातकाल और राजनीतिक अस्थिरता।


छठी पंचवर्षीय योजना (1980-85)

लक्ष्य: तकनीकी और बुनियादी ढांचे का विकास।

उपलब्धियाँ: कम्प्यूटर और सूचना तकनीक का विकास, आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत।

चुनौतियाँ: सार्वजनिक क्षेत्र की कम उत्पादकता।


7. सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-90)

लक्ष्य: उत्पादन बढ़ाना और सामाजिक न्याय।

उपलब्धियाँ: दूरसंचार और ऑटोमोबाइल उद्योग का विकास।

चुनौतियाँ: विदेशी कर्ज और भुगतान संकट।


आर्थिक संकट और वार्षिक योजनाएँ (1990-92)

1991 में आर्थिक सुधारों की शुरुआत हुई, जिसमें LPG (उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण) नीति लागू हुई।


8. आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97)

लक्ष्य: उदारीकरण और निजीकरण को बढ़ावा देना।

उपलब्धियाँ: विदेशी निवेश में वृद्धि, आर्थिक वृद्धि दर 6%।

चुनौतियाँ: असमानता और बेरोजगारी।


9. नवमी पंचवर्षीय योजना (1997-2002)

लक्ष्य: विकास को जनोन्मुखी बनाना।

उपलब्धियाँ: सूचना प्रौद्योगिकी का विस्तार, शिक्षा में सुधार।

चुनौतियाँ: ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की धीमी गति।


10. दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-07)

लक्ष्य: विकास दर 8% तक पहुँचाना।

उपलब्धियाँ: सेवा क्षेत्र में उछाल, ग्रामीण रोजगार योजनाएँ।

चुनौतियाँ: कृषि क्षेत्र में सुधार की जरूरत।


11. ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-12)

लक्ष्य: "तेज और समावेशी विकास" (Inclusive Growth)।

उपलब्धियाँ: शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार, MGNREGA का विस्तार।

चुनौतियाँ: जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय समस्याएँ।


12. बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-17)

लक्ष्य: सतत और समावेशी विकास।

उपलब्धियाँ: डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया जैसी पहलें।

चुनौतियाँ: बेरोजगारी और कृषि संकट।


योजनाबद्ध विकास के बाद की नीति (2017 के बाद)

2017 के बाद पंचवर्षीय योजनाओं को समाप्त कर नीति आयोग द्वारा 15 वर्षीय दृष्टि दस्तावेज और 3 वर्षीय कार्यसूची लागू की गई। इसका उद्देश्य योजनाओं को अधिक लचीला और प्रभावी बनाना है।


निष्कर्ष

भारत की पंचवर्षीय योजनाओं ने देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कृषि, उद्योग, बुनियादी ढांचे और सामाजिक क्षेत्रों में योजनाओं के माध्यम से सुधार किए गए। हालाँकि, कुछ चुनौतियाँ बनी रहीं, जैसे – गरीबी, असमानता, बेरोजगारी और पर्यावरणीय समस्याएँ। वर्तमान में नीति आयोग द्वारा दीर्घकालिक योजनाएँ बनाई जा रही हैं, जो देश को आत्मनिर्भर और विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में कार्यरत हैं।







03. भारत में योजनाओं के वित्तीय स्रोतों का विस्तृत विवरण दीजिए।



भारत में योजनाओं के वित्तीय स्रोतों का विस्तृत विवरण

भारत में योजनाओं को सुचारू रूप से लागू करने और विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है। सरकार विभिन्न स्रोतों से धन जुटाकर योजनाओं का क्रियान्वयन करती है। ये वित्तीय स्रोत मुख्य रूप से आंतरिक (Domestic) और बाह्य (External) स्रोतों में विभाजित किए जाते हैं।


1. आंतरिक वित्तीय स्रोत (Domestic Financial Sources)

आंतरिक स्रोत वे होते हैं, जिनसे सरकार देश के भीतर ही धन एकत्र करती है। ये निम्नलिखित प्रकार के होते हैं:


(i) कर राजस्व (Tax Revenue)

कर सरकार के सबसे महत्वपूर्ण राजस्व स्रोतों में से एक है। कर दो प्रकार के होते हैं:


प्रत्यक्ष कर (Direct Tax): ये कर सीधे व्यक्तियों और संस्थानों पर लगाए जाते हैं, जैसे –


आयकर (Income Tax)

कॉर्पोरेट कर (Corporate Tax)

संपत्ति कर (Wealth Tax)

उपहार कर (Gift Tax)

पूँजीगत लाभ कर (Capital Gains Tax)

अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax): ये कर उपभोक्ताओं द्वारा भुगतान किए जाते हैं, जैसे –


वस्तु एवं सेवा कर (GST)

उत्पाद शुल्क (Excise Duty)

सीमा शुल्क (Custom Duty)

स्टांप शुल्क (Stamp Duty)

(ii) गैर-कर राजस्व (Non-Tax Revenue)

ये ऐसे राजस्व होते हैं, जो सरकार कर के अलावा अन्य स्रोतों से प्राप्त करती है। इनमें शामिल हैं:


सार्वजनिक उपक्रमों से लाभ (Profits from Public Enterprises)

ब्याज और लाभांश (Interest & Dividends from Government Investments)

सेवा शुल्क (Fees & Charges)

लाइसेंस और परमिट शुल्क (License & Permit Fees)

(iii) सार्वजनिक ऋण (Public Borrowings)

यदि कर और गैर-कर राजस्व पर्याप्त नहीं होते, तो सरकार ऋण लेती है। यह दो प्रकार का होता है:


आंतरिक ऋण (Internal Borrowings):


बैंकों और वित्तीय संस्थानों से ऋण

सरकारी बॉन्ड और प्रतिभूतियाँ (Government Bonds & Securities)

राष्ट्रीय बचत योजनाएँ (National Savings Schemes)

मुद्रा सृजन (Deficit Financing):


यदि सरकार को धन की आवश्यकता होती है, तो वह भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) से उधार लेकर मुद्रा की आपूर्ति बढ़ाती है।

(iv) सार्वजनिक उपक्रमों से आय (Revenue from Public Enterprises)

सरकारी उपक्रमों (PSUs) से प्राप्त लाभ भी योजनाओं के वित्तपोषण में सहायक होता है। जैसे –


भारतीय रेलवे (Indian Railways)

भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC)

भारतीय पेट्रोलियम निगम (BPCL)

(v) राज्यों और स्थानीय निकायों का योगदान

राज्य सरकारें और स्थानीय निकाय (नगरपालिका, पंचायत) भी योजनाओं में धन का योगदान करते हैं।


2. बाह्य वित्तीय स्रोत (External Financial Sources)

यदि आंतरिक स्रोत पर्याप्त नहीं होते, तो सरकार बाहरी स्रोतों से धन प्राप्त करती है। ये स्रोत निम्नलिखित हैं:


(i) विदेशी सहायता (Foreign Aid)

अंतरराष्ट्रीय संगठनों और देशों से सहायता प्राप्त की जाती है। यह सहायता अनुदान (Grants) या ऋण (Loans) के रूप में होती है। प्रमुख दाता हैं:


विश्व बैंक (World Bank)

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)

एशियाई विकास बैंक (ADB)

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP)

(ii) विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI - Foreign Direct Investment)

विदेशी कंपनियाँ भारत में निवेश करती हैं, जिससे विभिन्न योजनाओं के लिए धन उपलब्ध होता है। जैसे –


मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में निवेश

इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में निवेश

(iii) विदेशी वाणिज्यिक उधार (External Commercial Borrowings - ECBs)

सरकार और निजी क्षेत्र विदेशी बैंकों और संस्थानों से ऋण लेते हैं।


(iv) अनिवासी भारतीयों (NRIs) से निवेश

भारत सरकार एनआरआई (Non-Resident Indians) को भारत में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करती है। इसके लिए विशेष बांड जारी किए जाते हैं, जैसे –


इंडिया डेवलपमेंट बॉन्ड्स

एनआरआई बैंकिंग योजनाएँ

निष्कर्ष

भारत में योजनाओं के वित्तपोषण के लिए विभिन्न आंतरिक और बाहरी स्रोतों का उपयोग किया जाता है। कर राजस्व, सार्वजनिक ऋण और सार्वजनिक उपक्रमों की आय प्रमुख आंतरिक स्रोत हैं, जबकि विदेशी सहायता, प्रत्यक्ष निवेश और वाणिज्यिक ऋण बाह्य स्रोत हैं। एक संतुलित वित्तीय रणनीति के माध्यम से सरकार योजनाओं को सुचारू रूप से लागू करती है, जिससे देश के आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा मिलता है।



04. ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के उद्देश्यों, वित्त प्रबन्ध और रणनीति पर लेख लिखिए।



भारत की ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-2012) को "तेज और समावेशी विकास" (Faster and More Inclusive Growth) की अवधारणा पर आधारित किया गया था। यह योजना देश के आर्थिक विकास को गति देने के साथ-साथ सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने पर केंद्रित थी। इस योजना की शुरुआत प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में हुई और इसे योजना आयोग द्वारा तैयार किया गया था।


1. ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे:


(i) आर्थिक वृद्धि को तेज करना

सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर को 9% तक बढ़ाना।

कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्रों में संतुलित विकास को बढ़ावा देना।

(ii) समावेशी विकास (Inclusive Growth)

समाज के सभी वर्गों को विकास का लाभ पहुँचाना।

ग्रामीण क्षेत्रों, दलितों, आदिवासियों और महिलाओं को मुख्यधारा में लाना।

(iii) गरीबी और बेरोजगारी में कमी

गरीबी दर को 2004-05 के 27.5% से घटाकर 2011-12 तक 20% तक लाना।

ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर पैदा करना।

(iv) शिक्षा और कौशल विकास

सर्व शिक्षा अभियान (SSA) को आगे बढ़ाकर 100% नामांकन दर सुनिश्चित करना।

उच्च शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण में सुधार करना।

(v) स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार

शिशु मृत्यु दर (IMR) और मातृ मृत्यु दर (MMR) को कम करना।

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) को मजबूत बनाना।

(vi) ग्रामीण विकास और आधारभूत संरचना

ग्रामीण सड़कों, बिजली और पेयजल आपूर्ति में सुधार करना।

भारत निर्माण योजना के तहत ग्रामीण विकास को बढ़ावा देना।

(vii) पर्यावरणीय संतुलन और जल प्रबंधन

वन संरक्षण, जैव-विविधता संरक्षण और जल संसाधनों का प्रभावी प्रबंधन।

अक्षय ऊर्जा स्रोतों (सौर, पवन, बायोगैस) को बढ़ावा देना।

2. ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना का वित्त प्रबंधन

इस योजना को सफल बनाने के लिए सरकार ने विभिन्न स्रोतों से वित्तीय संसाधन जुटाए। इसका वित्तीय प्रबंधन निम्नलिखित रूप में किया गया:


(i) कुल वित्तीय परिव्यय (Total Financial Outlay)

इस योजना के लिए कुल 36.44 लाख करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया गया।

इसमें से केंद्र सरकार ने 21.56 लाख करोड़ रुपये और राज्य सरकारों ने 14.88 लाख करोड़ रुपये व्यय किए।

(ii) वित्तीय स्रोत (Financial Sources)

कर राजस्व (Tax Revenue):

प्रत्यक्ष कर (Income Tax, Corporate Tax) और अप्रत्यक्ष कर (GST, Excise Duty) से आय।

गैर-कर राजस्व (Non-Tax Revenue):

सार्वजनिक उपक्रमों से लाभ और शुल्कों से प्राप्त राजस्व।

आंतरिक ऋण (Internal Borrowing):

सरकार ने सरकारी बॉन्ड और प्रतिभूतियाँ जारी कर ऋण प्राप्त किया।

विदेशी सहायता (Foreign Aid):

विश्व बैंक, IMF और एशियाई विकास बैंक से आर्थिक सहयोग लिया गया।

राज्य सरकारों और निजी क्षेत्र की भागीदारी:

सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल को बढ़ावा दिया गया।

3. ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना की रणनीति

इस योजना को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए निम्नलिखित रणनीतियाँ अपनाई गईं:


(i) कृषि और ग्रामीण विकास को प्राथमिकता

कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिए नई तकनीकों और जैविक खेती को बढ़ावा दिया गया।

किसानों को कर्ज माफी योजना का लाभ दिया गया।

(ii) आधारभूत संरचना का विस्तार

सड़क, रेलवे, हवाई अड्डों और बंदरगाहों के विकास पर जोर दिया गया।

राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना (NHDP) को आगे बढ़ाया गया।

(iii) ऊर्जा क्षेत्र में सुधार

बिजली उत्पादन में वृद्धि के लिए पनबिजली और कोयला-आधारित संयंत्र स्थापित किए गए।

नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों (सौर और पवन ऊर्जा) को बढ़ावा दिया गया।

(iv) सामाजिक क्षेत्र का विकास

शिक्षा के क्षेत्र में सर्व शिक्षा अभियान (SSA) को मजबूत किया गया।

स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) को लागू किया गया।

(v) रोजगार सृजन

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA) को प्रभावी रूप से लागू किया गया।

सूचना प्रौद्योगिकी (IT) और सेवा क्षेत्र में नए रोजगार अवसरों का सृजन किया गया।

(vi) पर्यावरण संरक्षण और जल प्रबंधन

नदी जोड़ो परियोजना और जल संरक्षण योजनाएँ चलाई गईं।

कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए कड़े पर्यावरणीय नियम लागू किए गए।

4. ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना की उपलब्धियाँ और चुनौतियाँ

उपलब्धियाँ:

✔ GDP वृद्धि दर: योजना के दौरान भारत की औसत GDP वृद्धि दर 7.9% रही।

✔ शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार: साक्षरता दर बढ़ी और स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच बढ़ी।

✔ ग्रामीण विकास: MGNREGA के तहत लाखों लोगों को रोजगार मिला।

✔ बुनियादी ढांचे का विकास: सड़क, बिजली और परिवहन सेवाओं में सुधार हुआ।


चुनौतियाँ:

❌ कृषि क्षेत्र की धीमी वृद्धि: योजना में 4% कृषि वृद्धि का लक्ष्य था, लेकिन यह 3.6% ही रहा।

❌ गरीबी और बेरोजगारी: गरीबी दर में कमी आई, लेकिन असमानता बनी रही।

❌ मुद्रास्फीति (Inflation): आवश्यक वस्तुओं की कीमतें तेजी से बढ़ीं।


निष्कर्ष

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना भारत के आर्थिक और सामाजिक विकास में एक महत्वपूर्ण चरण थी। इस योजना ने समावेशी विकास, गरीबी उन्मूलन, रोजगार सृजन और आधारभूत संरचना के विकास पर ध्यान केंद्रित किया। हालाँकि, कुछ क्षेत्रों में लक्ष्यों को पूरी तरह हासिल नहीं किया जा सका, फिर भी इस योजना ने भारतीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके बाद बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) लागू की गई, जिसमें इन कमियों को दूर करने का प्रयास किया गया।



05. उत्तराखण्ड की प्रमुख जनजातियाँ कौन-कौन सी है? उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति क्या है?



उत्तराखंड राज्य में कई जनजातियाँ निवास करती हैं, जो अपनी विशिष्ट संस्कृति, परंपराओं और जीवनशैली के लिए जानी जाती हैं। ये जनजातियाँ मुख्य रूप से पहाड़ी और दूरस्थ क्षेत्रों में निवास करती हैं तथा इनका जीवन प्रकृति पर निर्भर होता है।


उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियाँ

1. जौनसारी (Jaunsari)

स्थान: देहरादून, टिहरी और उत्तरकाशी जिले।

भाषा: जौनसरी भाषा (गढ़वाली और हिंदी से मिलती-जुलती)।

संस्कृति:

बहुपति प्रथा (Polyandry) प्राचीन काल में प्रचलित थी।

कृषि और पशुपालन इनके मुख्य व्यवसाय हैं।

त्यौहार: बिस्सू मेला, देवता पूजा।

आर्थिक स्थिति:

पारंपरिक खेती और पशुपालन इनकी जीविका का मुख्य स्रोत है।

शिक्षा और रोजगार की कमी के कारण गरीबी अधिक है।

सरकारी योजनाओं के कारण धीरे-धीरे आर्थिक सुधार हो रहा है।

2. भोटिया (Bhotia)

स्थान: चमोली, पिथौरागढ़, उत्तरकाशी।

भाषा: तिब्बती मूल की भाषा (बोती, रोंगपा)।

संस्कृति:

तिब्बती संस्कृति से प्रभावित।

पारंपरिक ऊनी वस्त्र (शॉल, कालीन) बनाना इनकी प्रमुख कला है।

धार्मिक दृष्टि से बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म को मानते हैं।

आर्थिक स्थिति:

पहले व्यापार से समृद्ध थे, लेकिन चीन से व्यापार बंद होने के कारण आर्थिक संकट आया।

आजीविका के लिए कृषि, पर्यटन और सरकारी योजनाओं पर निर्भर हैं।

सरकार द्वारा अनुसूचित जनजाति के रूप में आरक्षण मिलने से स्थिति में सुधार हुआ है।

3. थारू (Tharu)

स्थान: उधमसिंह नगर, नैनीताल।

भाषा: थारू भाषा (हिंदी और नेपाली से मिलती-जुलती)।

संस्कृति:

कृषि आधारित जीवनशैली।

नृत्य और संगीत इनकी पहचान है।

त्यौहार: होली, दीपावली, माघी।

आर्थिक स्थिति:

अधिकतर लोग खेती और मजदूरी पर निर्भर हैं।

शिक्षा का स्तर कम होने के कारण आर्थिक विकास धीमा है।

सरकारी सहायता और शिक्षा योजनाओं से कुछ सुधार हो रहा है।

4. राजी (वनरावत) (Raji - Vanrawat)

स्थान: पिथौरागढ़, चंपावत।

भाषा: राजी भाषा (तेज बदलाव के कारण लुप्तप्राय)।

संस्कृति:

पहले घुमंतू जीवन जीते थे, अब सरकार ने बसाया है।

लकड़ी के औजार और बांस की टोकरी बनाना इनका पारंपरिक कार्य है।

आर्थिक स्थिति:

अत्यंत पिछड़ी जनजाति, गरीबी और बेरोजगारी अधिक है।

सरकार की पुनर्वास योजनाओं से धीरे-धीरे सुधार हो रहा है।

सरकारी स्कूलों में बच्चों की शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है।

5. बुक्सा (Buksa)

स्थान: उधमसिंह नगर, नैनीताल, हरिद्वार।

भाषा: हिंदी और कुमाऊँनी भाषा।

संस्कृति:

कृषि और मजदूरी इनकी जीविका का मुख्य साधन है।

सरल जीवनशैली और धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करते हैं।

नृत्य, संगीत और लोककथाएँ इनकी संस्कृति का हिस्सा हैं।

आर्थिक स्थिति:

शिक्षा का स्तर कम होने के कारण मुख्यतः मजदूरी पर निर्भर हैं।

सरकार की विभिन्न योजनाओं से धीरे-धीरे जागरूकता बढ़ रही है।

कई लोग सरकारी नौकरियों और व्यवसाय की ओर बढ़ रहे हैं।

उत्तराखंड की जनजातियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति

1. सामाजिक स्थिति:

अधिकतर जनजातियाँ सुदूर और पहाड़ी क्षेत्रों में रहती हैं, जहाँ मूलभूत सुविधाओं की कमी है।

शिक्षा का स्तर अभी भी कम है, लेकिन सरकारी प्रयासों से सुधार हो रहा है।

पारंपरिक रीति-रिवाजों और लोकसंस्कृति को बनाए रखा गया है।

कई जनजातियाँ स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और कुपोषण की समस्या से जूझ रही हैं।

महिलाओं की स्थिति में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है, लेकिन अभी भी सामाजिक असमानता बनी हुई है।

2. आर्थिक स्थिति:

अधिकांश जनजातियाँ कृषि, पशुपालन, शिल्पकारी और मजदूरी पर निर्भर हैं।

पर्यटन, व्यापार और सरकारी योजनाओं से कुछ जनजातियों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।

साक्षरता दर कम होने के कारण रोजगार के अवसर सीमित हैं।

सरकार द्वारा आरक्षण, सहायक योजनाएँ और पुनर्वास कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

निष्कर्ष

उत्तराखंड की जनजातियाँ अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और पारंपरिक जीवनशैली के लिए जानी जाती हैं। हालाँकि, उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति अभी भी सुधार की आवश्यकता रखती है। सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं और आरक्षण नीति के माध्यम से जनजातियों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के प्रयास किए जा रहे हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में अधिक निवेश से उनकी स्थिति में और अधिक सुधार संभव है।



SHORT ANSWER TYPE QUESTIONS 


01.उत्तराखण्ड के निवासियों का मुख्य व्यवसाय क्या है?



उत्तराखंड के निवासियों का मुख्य व्यवसाय कृषि और पशुपालन है। राज्य की भौगोलिक परिस्थितियाँ पहाड़ी और वन्य क्षेत्र से घिरी होने के कारण यहाँ के अधिकांश लोग पारंपरिक रूप से कृषि पर निर्भर रहते हैं।


उत्तराखंड में प्रमुख व्यवसाय:

कृषि एवं बागवानी:


उत्तराखंड में धान, गेहूं, मक्का, जौ, और मंडुआ (रागी) जैसी फसलें उगाई जाती हैं।

सेब, माल्टा, आड़ू, खुमानी, और नाशपाती जैसी फलों की खेती भी बड़े पैमाने पर होती है।

पशुपालन एवं दुग्ध उत्पादन:


लोग गाय, भैंस, बकरियां और भेड़ों का पालन करते हैं।

दुग्ध उत्पादन और उससे बने उत्पादों (घी, पनीर, छाछ) का व्यापार किया जाता है।

पर्यटन उद्योग:


उत्तराखंड एक प्रमुख पर्यटन स्थल है, जहाँ चारधाम यात्रा (बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री), नैनीताल, मसूरी, ऋषिकेश और औली जैसे स्थान पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

होमस्टे, होटल व्यवसाय और गाइड सेवाएँ रोजगार के प्रमुख स्रोत हैं।

हस्तशिल्प एवं कुटीर उद्योग:


लकड़ी की नक्काशी, अंगोरा ऊन से बनी वस्तुएँ, शॉल, कालीन और हस्तनिर्मित आभूषण यहाँ के कुटीर उद्योगों में प्रमुख हैं।

जड़ी-बूटी एवं औषधीय पौधों की खेती:


उत्तराखंड को 'जड़ी-बूटी की भूमि' भी कहा जाता है।

यहाँ बड़ी मात्रा में औषधीय पौधों की खेती होती है, जिससे आयुर्वेदिक दवाएँ बनाई जाती हैं।

सरकारी एवं निजी क्षेत्र की नौकरियाँ:


राज्य के लोग सरकारी नौकरियों, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और रक्षा क्षेत्र में भी कार्यरत हैं।

बड़ी संख्या में लोग सेना और अर्धसैनिक बलों में सेवा देते हैं।

निष्कर्ष:

उत्तराखंड के लोग पारंपरिक रूप से कृषि और पशुपालन पर निर्भर हैं, लेकिन पर्यटन, कुटीर उद्योग, और जड़ी-बूटी व्यवसाय भी प्रमुख रोजगार के साधन बन चुके हैं। समय के साथ-साथ सेवा क्षेत्र और उद्यमिता में भी रुचि बढ़ रही है, जिससे लोगों को नए अवसर मिल रहे हैं।








02. गरीबी के निराकरण हेतु सरकार द्वारा चलायी जाने वाली विभिन्न योजनाओं को संक्षेप में लिखिए।



गरीबी के निराकरण के लिए भारत सरकार द्वारा विभिन्न योजनाएँ चलाई जाती हैं, जिनका उद्देश्य गरीबों को आर्थिक सहायता प्रदान करना, रोजगार के अवसर बढ़ाना और जीवन स्तर में सुधार करना है।


गरीबी उन्मूलन की प्रमुख सरकारी योजनाएँ

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) (2005)


ग्रामीण क्षेत्रों में न्यूनतम 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराना।

मजदूरी भुगतान सीधे बैंक खातों में किया जाता है।

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY)


गरीब परिवारों को मुफ्त खाद्यान्न (चावल, गेहूं) उपलब्ध कराना।

कोविड-19 के दौरान विशेष रूप से लागू की गई।

प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY)


गरीबों को पक्के घर उपलब्ध कराना।

ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में अलग-अलग योजनाएँ।

प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY)


गरीबों को बैंकिंग सेवाओं से जोड़ना।

शून्य बैलेंस पर बैंक खाता खोलने की सुविधा।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA)


गरीबों को सब्सिडी दर पर अनाज उपलब्ध कराना।

अंत्योदय अन्न योजना और प्राथमिकता परिवारों को लाभ।

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN)


किसानों को प्रतिवर्ष ₹6000 की वित्तीय सहायता।

यह राशि तीन किस्तों में सीधे बैंक खाते में भेजी जाती है।

दीनदयाल अंत्योदय योजना (DAY)


शहरी एवं ग्रामीण गरीबों को स्व-रोजगार और कौशल विकास प्रशिक्षण देना।

महिला स्वयं सहायता समूहों को आर्थिक सहायता।

राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP)


वृद्धावस्था, विधवा एवं विकलांग पेंशन योजना के अंतर्गत वित्तीय सहायता।

स्वच्छ भारत मिशन (SBM)


ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में शौचालय निर्माण को बढ़ावा देना।

साफ-सफाई और स्वास्थ्य को बढ़ावा देना।

सौभाग्य योजना (प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना)


गरीबी रेखा से नीचे (BPL) के परिवारों को मुफ्त बिजली कनेक्शन।

निष्कर्ष

सरकार गरीबी उन्मूलन के लिए रोजगार, वित्तीय समावेशन, खाद्य सुरक्षा, आवास और स्वास्थ्य से जुड़ी योजनाएँ चला रही है। इन योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन ही गरीबी हटाने में सहायक हो सकता है।



03. उत्तराखण्ड में नियोजन पर एक छोटा सा लेख लिखिए।



उत्तराखंड में नियोजन

उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य है, जिसकी भौगोलिक परिस्थितियाँ विकास एवं नियोजन के लिए चुनौतीपूर्ण हैं। राज्य के समग्र विकास के लिए सरकार द्वारा विभिन्न योजनाएँ बनाई गई हैं, जिनका उद्देश्य आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखना है।


उत्तराखंड में नियोजन के प्रमुख क्षेत्र

1. कृषि एवं ग्रामीण विकास

पर्वतीय क्षेत्रों में जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है।

किसानों को सिंचाई, उन्नत बीज एवं तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए योजनाएँ चलाई जा रही हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार और कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

2. पर्यटन एवं पर्यावरण संरक्षण

उत्तराखंड में धार्मिक और साहसिक पर्यटन (चारधाम यात्रा, ट्रैकिंग, वाइल्डलाइफ टूरिज्म) को बढ़ावा दिया जा रहा है।

पर्यावरण संरक्षण हेतु वनों की कटाई को रोकने, जल स्रोतों के संरक्षण और जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपाय किए जा रहे हैं।

3. औद्योगिक विकास

हरिद्वार, रुद्रपुर, काशीपुर और देहरादून में औद्योगिक क्षेत्रों का विकास किया गया है।

हर्बल और फार्मास्युटिकल उद्योगों को विशेष बढ़ावा दिया जा रहा है।

हस्तशिल्प और कुटीर उद्योगों को वित्तीय सहायता दी जा रही है।

4. शिक्षा एवं स्वास्थ्य

पर्वतीय क्षेत्रों में शिक्षा के विस्तार के लिए नए विद्यालय और महाविद्यालय खोले जा रहे हैं।

दूरस्थ क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने के लिए टेलीमेडिसिन और मोबाइल हेल्थ वैन चलाई जा रही हैं।

5. ऊर्जा एवं बुनियादी ढाँचा

राज्य में जल विद्युत परियोजनाओं का विकास किया जा रहा है।

सड़क, रेल और हवाई संपर्क में सुधार लाने के लिए योजनाएँ चलाई जा रही हैं।

दूरदराज के गाँवों में बिजली और इंटरनेट सुविधा पहुँचाने का कार्य किया जा रहा है।

निष्कर्ष

उत्तराखंड सरकार द्वारा नियोजन के तहत कृषि, पर्यटन, उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढाँचे के विकास पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। पहाड़ी राज्य होने के कारण कुछ चुनौतियाँ हैं, लेकिन सतत विकास की दिशा में सरकार निरंतर प्रयासरत है।



04. आर्थिक नियोजन के मुख्य उद्देश्य क्या हैं?



आर्थिक नियोजन के मुख्य उद्देश्य

आर्थिक नियोजन का मुख्य उद्देश्य देश के आर्थिक संसाधनों का प्रभावी उपयोग करके समग्र विकास को सुनिश्चित करना है। यह विभिन्न क्षेत्रों में संतुलित विकास, आर्थिक स्थिरता और सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देने में सहायक होता है।


1. आर्थिक विकास

आर्थिक नियोजन का प्राथमिक लक्ष्य राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करना है।

औद्योगीकरण, बुनियादी ढाँचे और सेवा क्षेत्र के विकास के माध्यम से तेजी से आर्थिक प्रगति सुनिश्चित की जाती है।

2. बेरोजगारी और गरीबी उन्मूलन

रोजगार के नए अवसर सृजित करना और बेरोजगारी की दर को कम करना।

गरीबी उन्मूलन के लिए सहायता योजनाएँ, सब्सिडी और स्वरोजगार को बढ़ावा देना।

3. आर्थिक समानता और सामाजिक न्याय

समाज के सभी वर्गों को विकास का समान लाभ देना।

अमीर और गरीब के बीच असमानता को कम करना।

महिलाओं, अनुसूचित जाति/जनजाति और पिछड़े वर्गों के उत्थान हेतु विशेष योजनाएँ बनाना।

4. संतुलित क्षेत्रीय विकास

शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच विकास का संतुलन बनाए रखना।

पिछड़े और दूरस्थ क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं (सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य) का विस्तार करना।

5. आत्मनिर्भरता और औद्योगीकरण

देश को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना और विदेशी निर्भरता को कम करना।

लघु, मध्यम और बड़े उद्योगों को बढ़ावा देकर औद्योगीकरण को प्रोत्साहित करना।

6. मूलभूत ढाँचे का विकास

सड़क, रेलवे, हवाई अड्डे, जल आपूर्ति और ऊर्जा जैसे बुनियादी ढाँचे का विस्तार करना।

डिजिटल इंडिया और स्मार्ट सिटी जैसी योजनाओं को बढ़ावा देना।

7. पर्यावरणीय संतुलन

टिकाऊ विकास को बढ़ावा देना और पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देना।

प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित और सतत उपयोग सुनिश्चित करना।

8. मूल्य स्थिरता और मुद्रास्फीति पर नियंत्रण

महँगाई को नियंत्रित करना और मूल्य स्थिरता बनाए रखना।

आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकारी हस्तक्षेप।

निष्कर्ष

आर्थिक नियोजन के माध्यम से एक मजबूत, आत्मनिर्भर और समावेशी अर्थव्यवस्था का निर्माण किया जाता है। इसका उद्देश्य केवल आर्थिक वृद्धि नहीं, बल्कि समाज के सभी वर्गों का कल्याण और संतुलित विकास सुनिश्चित करना है।



04. गरीबी के निराकरण हेतु सरकार द्वारा चलायी जाने वाली विभिन्न योजनाओं को संक्षेप में लिखिए।




गरीबी के निराकरण हेतु सरकारी योजनाएँ

भारत सरकार गरीबी उन्मूलन के लिए कई योजनाएँ चला रही है, जिनका उद्देश्य लोगों को आर्थिक सहायता, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएँ और बुनियादी संसाधन उपलब्ध कराना है।


1. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) - 2005

ग्रामीण क्षेत्रों में न्यूनतम 100 दिनों का रोजगार सुनिश्चित करता है।

मजदूरी सीधे लाभार्थियों के बैंक खाते में भेजी जाती है।

2. प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) - 2014

गरीबों को बैंकिंग सेवाओं से जोड़ने के लिए शून्य बैलेंस पर बैंक खाता खोलने की सुविधा।

बीमा और पेंशन योजनाओं से जोड़कर वित्तीय समावेशन को बढ़ावा।

3. प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) - 2015

गरीबों को पक्के घर उपलब्ध कराने के लिए चलाई गई योजना।

ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में लागू।

4. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) - 2013

गरीब परिवारों को रियायती दर पर खाद्यान्न (गेहूं, चावल, दालें) उपलब्ध कराना।

अंत्योदय अन्न योजना के तहत अत्यधिक गरीब परिवारों को लाभ।

5. प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) - 2020

कोविड-19 महामारी के दौरान शुरू की गई योजना।

गरीब परिवारों को नि:शुल्क खाद्यान्न प्रदान किया जाता है।

6. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN) - 2019

किसानों को प्रतिवर्ष ₹6000 की वित्तीय सहायता।

यह राशि तीन किस्तों में सीधे बैंक खाते में भेजी जाती है।

7. दीनदयाल अंत्योदय योजना (DAY)

ग्रामीण और शहरी गरीबों को स्व-रोजगार और कौशल विकास के लिए प्रशिक्षण।

महिला स्वयं सहायता समूहों को आर्थिक सहायता।

8. राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) - 2011

गरीब परिवारों को आजीविका के लिए वित्तीय सहायता और उद्यमिता को बढ़ावा।

स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना।

9. आयुष्मान भारत योजना (प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना - PMJAY) - 2018

गरीब परिवारों को ₹5 लाख तक का मुफ्त स्वास्थ्य बीमा।

सरकारी और निजी अस्पतालों में मुफ्त इलाज की सुविधा।

10. सौभाग्य योजना (प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना) - 2017

गरीबी रेखा से नीचे (BPL) के परिवारों को नि:शुल्क बिजली कनेक्शन।

निष्कर्ष

गरीबी उन्मूलन के लिए सरकार विभिन्न योजनाओं के माध्यम से रोजगार, वित्तीय सहायता, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ और बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध करा रही है। इन योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन गरीबी हटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।



05. योजना वित्त प्रबन्धन के विभिन्न स्रोतों के गुण एवं दोषों को संक्षेप में लिखिए।



योजना वित्त प्रबंधन के विभिन्न स्रोतों के गुण एवं दोष

योजना वित्त प्रबंधन का तात्पर्य किसी परियोजना या योजना को लागू करने के लिए वित्तीय संसाधनों की व्यवस्था और उनका कुशल प्रबंधन करना है। इसके लिए सरकार और निजी क्षेत्र विभिन्न स्रोतों से वित्त प्राप्त करते हैं।


1. कर राजस्व (Tax Revenue)

गुण:

✔ सरकार की स्थायी और प्रमुख आय का स्रोत।

✔ योजनाओं को वित्तीय स्थिरता प्रदान करता है।

✔ सामाजिक कल्याण और बुनियादी ढाँचे के विकास में सहायक।


दोष:

✖ कर दरों में वृद्धि से नागरिकों पर आर्थिक बोझ बढ़ता है।

✖ कर चोरी और प्रशासनिक जटिलताओं की संभावना रहती है।


2. गैर-कर राजस्व (Non-Tax Revenue)

(जुर्माने, फीस, लाभांश, सार्वजनिक उपक्रमों से प्राप्त आय)


गुण:

✔ सरकार को अतिरिक्त आय प्रदान करता है।

✔ प्रत्यक्ष करों की तुलना में जनता पर कम आर्थिक भार।


दोष:

✖ यह स्रोत अस्थिर होता है और इसमें उतार-चढ़ाव रहता है।

✖ सरकारी उपक्रमों से प्राप्त आय हमेशा लाभकारी नहीं होती।


3. आंतरिक ऋण (Internal Borrowing)

(बॉण्ड, ट्रेजरी बिल, बाजार से ऋण)


गुण:

✔ विकास परियोजनाओं के लिए त्वरित वित्तीय सहायता।

✔ घरेलू पूंजी का उपयोग करने में सहायक।


दोष:

✖ सरकार पर ऋण का बोझ बढ़ता है।

✖ ब्याज भुगतान की वजह से राजकोषीय घाटा बढ़ सकता है।


4. बाहरी ऋण (External Borrowing)

(विश्व बैंक, IMF, विदेशी सरकारों से ऋण)


गुण:

✔ विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने में सहायक।

✔ तकनीकी सहायता और अनुदान के रूप में भी मिल सकता है।


दोष:

✖ देश की आर्थिक संप्रभुता प्रभावित हो सकती है।

✖ विदेशी मुद्रा का भुगतान करने का दबाव बढ़ता है।


5. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) एवं निजी क्षेत्र की भागीदारी (PPP Model)

गुण:

✔ औद्योगिक विकास को बढ़ावा देता है।

✔ सरकारी वित्तीय भार को कम करता है।


दोष:

✖ विदेशी कंपनियों का प्रभाव बढ़ सकता है।

✖ संवेदनशील क्षेत्रों में विदेशी निवेश से सुरक्षा संबंधी चिंताएँ हो सकती हैं।


निष्कर्ष

योजना वित्त प्रबंधन के लिए विभिन्न स्रोतों का उपयोग किया जाता है। प्रत्येक स्रोत के अपने फायदे और नुकसान होते हैं। एक संतुलित वित्तीय नीति आवश्यक है, जिससे आर्थिक विकास के साथ-साथ वित्तीय स्थिरता भी बनी रहे।



06. सरकारिया आयोग ने केन्द्र राज्य वित्तीय सम्बन्ध के विषय में क्या सुझाव दिए?



सरकारिया आयोग और केंद्र-राज्य वित्तीय संबंध पर उसकी सिफारिशें

सरकारिया आयोग की स्थापना 1983 में भारत सरकार द्वारा की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य केंद्र और राज्यों के बीच संबंधों की समीक्षा करना और प्रशासनिक, वित्तीय एवं विधायी सुधारों के लिए सिफारिशें देना था। इस आयोग की अध्यक्षता जस्टिस आर.एस. सरकारिया ने की थी।


केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों पर सरकारिया आयोग की प्रमुख सिफारिशें:

1. वित्त आयोग की भूमिका को सशक्त बनाना

वित्त आयोग (Finance Commission) को अधिक शक्तियाँ और स्वतंत्रता दी जानी चाहिए ताकि वह केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित कर सके।

राज्यों की वित्तीय आवश्यकताओं और खर्चों का उचित मूल्यांकन किया जाना चाहिए।

2. करों और वित्तीय संसाधनों का वितरण

राज्यों को करों में अधिक हिस्सेदारी दी जानी चाहिए, विशेष रूप से आयकर और केंद्रीय उत्पाद शुल्क में।

राज्यों को अधिक वित्तीय स्वायत्तता प्रदान की जानी चाहिए ताकि वे अपने संसाधनों का बेहतर उपयोग कर सकें।

3. अनुदानों की पारदर्शिता

राज्यों को अनुदान (Grants-in-aid) देने की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाया जाए।

अनुदानों का वितरण तटस्थ एजेंसियों द्वारा किया जाना चाहिए, जिससे राजनीतिक हस्तक्षेप कम हो।

4. योजना आयोग की भूमिका

राज्यों को पंचवर्षीय योजनाओं में अधिक भागीदारी मिलनी चाहिए ताकि उनकी आवश्यकताओं के अनुसार योजनाएँ बनाई जा सकें।

राज्यों को अपने क्षेत्रीय विकास के लिए अधिक वित्तीय स्वायत्तता दी जानी चाहिए।

5. उधार लेने की स्वतंत्रता

राज्यों को अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए अधिक स्वतंत्रता दी जानी चाहिए, लेकिन इसके लिए एक निश्चित सीमा और नियंत्रण आवश्यक है।

राज्यों को अपनी विकास योजनाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से सीधे ऋण लेने की अनुमति दी जानी चाहिए, लेकिन केंद्र सरकार की सहमति से।

6. वस्तु एवं सेवा कर (GST) की संकल्पना

सरकारिया आयोग ने राज्यों के कर राजस्व को बढ़ाने के लिए एक समान कर प्रणाली की जरूरत बताई थी, जिससे आगे चलकर GST (वस्तु एवं सेवा कर) लागू किया गया।

7. प्राकृतिक संसाधनों पर राज्य सरकारों का अधिकार

खनिज, जल और वन संसाधनों का अधिक नियंत्रण राज्यों को दिया जाए।

राज्यों को प्राकृतिक संसाधनों से होने वाली आय में अधिक हिस्सा मिलना चाहिए।

8. वित्तीय आत्मनिर्भरता और राजकोषीय अनुशासन

राज्यों को अपने व्यय में मितव्ययिता बरतनी चाहिए और अनावश्यक खर्चों में कटौती करनी चाहिए।

केंद्र को भी राज्यों के वित्तीय संकट को हल करने के लिए समय पर सहायता प्रदान करनी चाहिए।

निष्कर्ष

सरकारिया आयोग ने राज्यों को अधिक वित्तीय अधिकार और स्वतंत्रता देने की सिफारिश की, जिससे भारत में संघीय ढाँचे को अधिक मजबूत किया जा सके। इस आयोग की कई सिफारिशों को बाद में लागू किया गया, विशेष रूप से GST, वित्त आयोग की भूमिका को मजबूत करना और राज्यों को अधिक कर राजस्व देना।



07. अब तक कितनी पंचवर्षीय योजनाओं को लागू किया गया है? पहली पंचवर्षीय योजना के उद्देश्यों का विवरण दें।



भारत में 1951 से 2017 तक कुल 12 पंचवर्षीय योजनाएँ लागू की गईं। इन योजनाओं का उद्देश्य देश के आर्थिक विकास को संगठित और नियंत्रित रूप से आगे बढ़ाना था। 2017 के बाद, भारत सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं को समाप्त कर दिया और नीति आयोग (NITI Aayog) को विकास नीति तैयार करने की जिम्मेदारी दी।


पहली पंचवर्षीय योजना (1951-1956) और उसके उद्देश्य

भारत की पहली पंचवर्षीय योजना 1951 में शुरू हुई, जब देश को आजादी के बाद आर्थिक पुनर्निर्माण और बुनियादी ढाँचे के विकास की आवश्यकता थी।


प्रमुख उद्देश्य:

1. कृषि और सिंचाई का विकास

कृषि उत्पादन बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया गया, क्योंकि भारत खाद्यान्न संकट से जूझ रहा था।

भाखड़ा-नंगल और दामोदर घाटी परियोजना जैसी बड़ी सिंचाई योजनाएँ शुरू की गईं।

2. आर्थिक स्थिरता

विभाजन के बाद उत्पन्न आर्थिक अस्थिरता को दूर करना।

देश में मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना और संतुलित विकास सुनिश्चित करना।

3. परिवहन और बुनियादी ढाँचे का विकास

सड़कों, रेलवे, बिजली और संचार सुविधाओं का विस्तार किया गया।

देश के औद्योगिक और व्यापारिक बुनियादी ढाँचे को मजबूत बनाने पर जोर दिया गया।

4. शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार

नए स्कूल और कॉलेज स्थापित किए गए ताकि शिक्षा का स्तर बढ़े।

स्वास्थ्य सेवाओं और अस्पतालों के निर्माण पर ध्यान दिया गया।

5. औद्योगीकरण की नींव

इस योजना में कृषि को प्राथमिकता दी गई, लेकिन भविष्य में औद्योगीकरण के लिए भी आधार तैयार किया गया।

लघु उद्योगों को बढ़ावा दिया गया ताकि रोजगार के अवसर बढ़ें।

परिणाम:

पहली पंचवर्षीय योजना अपेक्षा से अधिक सफल रही।

राष्ट्रीय आय 3.6% की वार्षिक दर से बढ़ी, जबकि लक्ष्य 2.1% था।

खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि हुई और भारत आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने लगा।

निष्कर्ष

पहली पंचवर्षीय योजना भारत की आर्थिक नींव को मजबूत करने की दिशा में एक सफल प्रयास थी। इसमें मुख्य रूप से कृषि, सिंचाई, बुनियादी ढाँचे और शिक्षा पर ध्यान दिया गया, जिससे आगे चलकर भारत के औद्योगिक विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ।



08. भारत में प्रादेशिक नियोजन के उद्देश्य क्या हैं?


प्रादेशिक नियोजन (Regional Planning) का तात्पर्य देश के विभिन्न क्षेत्रों के संतुलित विकास और संसाधनों के प्रभावी उपयोग से है। भारत जैसे विविधता वाले देश में, सभी राज्यों और क्षेत्रों का समान रूप से विकास सुनिश्चित करना आवश्यक है ताकि आर्थिक, सामाजिक और बुनियादी ढांचे की असमानता को कम किया जा सके।


प्रादेशिक नियोजन के प्रमुख उद्देश्य:

1. क्षेत्रीय असमानता को कम करना

विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों के विकास में असंतुलन को दूर करना।

पिछड़े राज्यों और आदिवासी क्षेत्रों के आर्थिक और सामाजिक सुधार पर ध्यान देना।

2. सतत (Sustainable) और समावेशी विकास

संसाधनों के टिकाऊ और संतुलित उपयोग को बढ़ावा देना।

पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखते हुए औद्योगिक और कृषि विकास को सुनिश्चित करना।

3. ग्रामीण और शहरी विकास में संतुलन

ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं (सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य) का विकास।

शहरीकरण को नियंत्रित और योजनाबद्ध तरीके से बढ़ावा देना ताकि शहरों पर अत्यधिक दबाव न पड़े।

4. औद्योगिक और कृषि विकास को बढ़ावा देना

विभिन्न क्षेत्रों में स्थानीय संसाधनों और क्षमताओं के अनुसार उद्योगों का विकास।

हरित क्रांति और अन्य कृषि योजनाओं के माध्यम से कृषि उत्पादन को बढ़ाना।

5. पिछड़े और सीमावर्ती क्षेत्रों का विकास

पर्वतीय, मरुस्थलीय और अन्य पिछड़े क्षेत्रों के तेजी से विकास के लिए विशेष योजनाएँ लागू करना।

सीमावर्ती क्षेत्रों में रोजगार और बुनियादी सुविधाओं का विकास ताकि लोग पलायन न करें।

6. रोजगार सृजन

विभिन्न क्षेत्रों में स्थानीय संसाधनों और कौशल के आधार पर रोजगार के अवसर बढ़ाना।

स्व-रोजगार योजनाओं और स्टार्टअप्स को बढ़ावा देना।

7. बुनियादी ढाँचे (Infrastructure) का विकास

परिवहन, जल आपूर्ति, स्वच्छता, स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं का विकास।

रेलवे, हवाई अड्डे और बंदरगाहों का निर्माण ताकि व्यापार और उद्योग को बढ़ावा मिले।

8. क्षेत्रीय योजना में जनभागीदारी

स्थानीय समुदायों को विकास योजनाओं में शामिल करना ताकि उनकी जरूरतों के अनुसार कार्य हो सके।

ग्राम पंचायतों और नगर पालिकाओं को अधिक अधिकार देना ताकि वे अपनी योजनाएँ खुद बना सकें।

9. आपदा प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण

प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए सुरक्षा और राहत योजनाओं को मजबूत बनाना।

वृक्षारोपण, जल संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण पर विशेष ध्यान देना।

निष्कर्ष

भारत में प्रादेशिक नियोजन का मुख्य उद्देश्य सभी राज्यों और क्षेत्रों का समान और टिकाऊ विकास सुनिश्चित करना है। इससे आर्थिक असमानता कम होगी, रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और देश का समग्र विकास तेज़ी से आगे बढ़ेगा।