GEPY-02 SOLVED PAPER JUNE 2024
LONG ANSWER TYPE QUESTIONS
01. असामान्य व्यवहार को परिभाषित कीजिए। इसकी विभिन्न कसौटियों का वर्णन कीजिए।
परिचय
असामान्य व्यवहार (Abnormal Behavior) एक ऐसा व्यवहार है जो सामाजिक मानदंडों से भिन्न होता है, व्यक्ति की दैनिक क्रियाओं में बाधा उत्पन्न करता है, और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का संकेत देता है। यह व्यवहार मानसिक विकारों, तनाव, या किसी अन्य मनोवैज्ञानिक कारण से उत्पन्न हो सकता है।
असामान्य व्यवहार की परिभाषा
असामान्य व्यवहार को परिभाषित करने के लिए विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने प्रयास किए हैं। कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं:
कोलमैन (Coleman) के अनुसार, "असामान्य व्यवहार वह है जो व्यक्ति की सामाजिक कार्यक्षमता को बाधित करता है और मानसिक तनाव उत्पन्न करता है।"
डेविड रोसेन्हान और मार्टिन सेलिगमैन के अनुसार, "जब कोई व्यक्ति अत्यधिक पीड़ा का अनुभव करता है, आत्म-नियंत्रण खो देता है, और अप्रत्याशित तरीके से व्यवहार करता है, तो उसे असामान्य कहा जाता है।"
अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन (APA) के अनुसार, "असामान्य व्यवहार ऐसा व्यवहार है जो सांस्कृतिक अपेक्षाओं से मेल नहीं खाता, हानिकारक होता है, और व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।"
असामान्य व्यवहार की विभिन्न कसौटियाँ
असामान्य व्यवहार को परिभाषित करने के लिए कई कसौटियाँ अपनाई जाती हैं। इनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं:
1. सांख्यिकीय (Statistical) कसौटी
यह कसौटी सामान्य वितरण (Normal Distribution) पर आधारित होती है।
यदि कोई व्यवहार जनसंख्या के अधिकांश लोगों से बहुत अधिक भिन्न होता है (जैसे—बहुत अधिक बुद्धिमत्ता या बहुत कम स्मरणशक्ति), तो इसे असामान्य माना जाता है।
उदाहरण: अत्यधिक आक्रामकता या अवसाद (Depression)।
2. सामाजिक मानदंड (Social Norms) कसौटी
यह कसौटी समाज द्वारा स्थापित मानकों पर आधारित होती है।
यदि कोई व्यवहार सामाजिक मानकों से मेल नहीं खाता या स्वीकृत नहीं किया जाता, तो उसे असामान्य माना जाता है।
उदाहरण: बिना किसी कारण के लोगों पर चिल्लाना या सार्वजनिक स्थानों पर अनुचित व्यवहार करना।
3. व्यक्तिगत संवेगात्मक कष्ट (Personal Distress) कसौटी
यदि कोई व्यक्ति अत्यधिक चिंता, तनाव या दुःख अनुभव करता है, तो उसका व्यवहार असामान्य माना जा सकता है।
यह कसौटी मानसिक स्वास्थ्य विकारों जैसे—अवसाद, चिंता विकार, या आत्महत्या की प्रवृत्ति को समझने में सहायक होती है।
4. असामर्थ्य (Maladaptive) कसौटी
यदि कोई व्यक्ति अपनी दैनिक गतिविधियों को प्रभावी ढंग से पूरा करने में असमर्थ होता है, तो यह असामान्य माना जाता है।
उदाहरण: कोई व्यक्ति अत्यधिक डर (फोबिया) के कारण घर से बाहर नहीं निकलता, जिससे उसका सामान्य जीवन प्रभावित होता है।
5. जैविक (Biological) कसौटी
यह दृष्टिकोण मानता है कि असामान्य व्यवहार मस्तिष्क की असामान्य कार्यप्रणाली, न्यूरोट्रांसमीटर असंतुलन, या आनुवंशिक कारकों के कारण होता है।
उदाहरण: स्किजोफ्रेनिया (Schizophrenia) और बायपोलर डिसऑर्डर (Bipolar Disorder)।
6. मनोवैज्ञानिक (Psychological) कसौटी
यह सिद्धांत मानता है कि असामान्य व्यवहार बचपन के अनुभवों, अवचेतन इच्छाओं, या संज्ञानात्मक विकारों के कारण होता है।
उदाहरण: सिगमंड फ्रायड के अनुसार, बचपन के दमन (Repression) से उत्पन्न मानसिक संघर्ष असामान्य व्यवहार का कारण बन सकता है।
7. कार्यात्मक हानि (Functional Impairment) कसौटी
यदि व्यक्ति का व्यवहार उसकी सामाजिक, पारिवारिक या व्यावसायिक भूमिकाओं को बाधित करता है, तो उसे असामान्य माना जाता है।
उदाहरण: कोई व्यक्ति अत्यधिक व्याकुलता (Obsessive-Compulsive Disorder) के कारण अपनी नौकरी खो देता है।
निष्कर्ष
असामान्य व्यवहार को परिभाषित करना एक जटिल प्रक्रिया है क्योंकि यह विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक और जैविक कारकों से प्रभावित होता है। कोई भी एकल कसौटी इसे पूरी तरह से परिभाषित नहीं कर सकती। इसलिए, इसे समझने के लिए विभिन्न दृष्टिकोणों का समावेश आवश्यक है।
02. नैदानिक मूल्यांकन से आप क्या समझते हैं? डी.एस.एम. 5 का वर्णन कीजिए।
परिचय
मानसिक विकारों के सही पहचान और उपचार के लिए नैदानिक मूल्यांकन (Clinical Assessment) आवश्यक होता है। यह एक व्यवस्थित प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से मनोवैज्ञानिक या मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ व्यक्ति के व्यवहार, भावनाओं और संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का मूल्यांकन करते हैं। मानसिक विकारों के वर्गीकरण और निदान में डी.एस.एम.-5 (DSM-5) महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो मानसिक विकारों का एक आधिकारिक दिशानिर्देश है।
नैदानिक मूल्यांकन (Clinical Assessment) क्या है?
नैदानिक मूल्यांकन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्ति की मानसिक स्थिति, व्यवहारिक समस्याओं और संज्ञानात्मक कार्यप्रणाली का विश्लेषण किया जाता है। यह मूल्यांकन निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए किया जाता है—
मानसिक विकारों की पहचान करना
रोगी की मानसिक स्थिति को समझना
उपचार की योजना तैयार करना
व्यक्ति की प्रगति का मूल्यांकन करना
नैदानिक मूल्यांकन की प्रमुख विधियाँ
साक्षात्कार (Interview)
चिकित्सक व्यक्ति से बातचीत करके उसके लक्षणों, विचारों और भावनाओं का विश्लेषण करता है।
यह संरचित (Structured), अर्ध-संरचित (Semi-structured) या असंरचित (Unstructured) हो सकता है।
मनोवैज्ञानिक परीक्षण (Psychological Tests)
व्यक्तित्व परीक्षण (Personality Tests), जैसे—MMPI (Minnesota Multiphasic Personality Inventory)।
संज्ञानात्मक परीक्षण (Cognitive Tests), जैसे—IQ टेस्ट।
व्यवहार मूल्यांकन (Behavioral Assessment)
व्यक्ति के व्यवहार को प्राकृतिक या प्रयोगशाला स्थितियों में देखा जाता है।
न्यूरो-साइकोलॉजिकल परीक्षण (Neuropsychological Testing)
मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को समझने के लिए किया जाता है।
शारीरिक मूल्यांकन (Physical Examination)
कभी-कभी मानसिक विकार शारीरिक समस्याओं से जुड़े हो सकते हैं, इसलिए मेडिकल परीक्षण भी किया जाता है।
डी.एस.एम.-5 (DSM-5) का वर्णन
डी.एस.एम.-5 क्या है?
डी.एस.एम.-5 (DSM-5: Diagnostic and Statistical Manual of Mental Disorders, Fifth Edition) मानसिक विकारों के निदान और वर्गीकरण के लिए अमेरिकी मनोचिकित्सा संघ (American Psychiatric Association - APA) द्वारा प्रकाशित किया गया एक मानक दिशानिर्देश है। इसे 2013 में जारी किया गया था और यह डी.एस.एम.-4 का नवीनतम संस्करण है।
डी.एस.एम.-5 की विशेषताएँ
मानसिक विकारों के वर्गीकरण की प्रणाली
इसमें मानसिक विकारों को वैज्ञानिक आधार पर वर्गीकृत किया गया है।
बहु-आयामी दृष्टिकोण (Multidimensional Approach)
व्यक्ति के लक्षणों, कारणों और प्रभावों का समग्र अध्ययन किया जाता है।
नई श्रेणियाँ जोड़ी गई हैं
ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (Autism Spectrum Disorder) को अधिक व्यापक रूप से परिभाषित किया गया है।
बायपोलर डिसऑर्डर (Bipolar Disorder) को अब स्वतंत्र रूप से वर्गीकृत किया गया है।
विकारों के नए मानदंड
डी.एस.एम.-5 ने कुछ मानसिक विकारों की नई परिभाषाएँ दी हैं और निदान के मानदंडों को संशोधित किया है।
संख्यात्मक कोडिंग प्रणाली
मानसिक विकारों के लिए एक कोडिंग प्रणाली दी गई है, जिससे शोध और चिकित्सा क्षेत्र में इसका उपयोग आसान हो जाता है।
डी.एस.एम.-5 में प्रमुख मानसिक विकारों की सूची
डी.एस.एम.-5 में मानसिक विकारों को निम्नलिखित प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया गया है—
न्यूरोडेवलपमेंटल विकार (Neurodevelopmental Disorders)
ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (Autism Spectrum Disorder)
एडीएचडी (Attention Deficit Hyperactivity Disorder - ADHD)
स्किजोफ्रेनिया स्पेक्ट्रम और अन्य साइकोटिक विकार (Schizophrenia Spectrum and Other Psychotic Disorders)
स्किजोफ्रेनिया (Schizophrenia)
डिलूशनल डिसऑर्डर (Delusional Disorder)
बायपोलर और संबंधित विकार (Bipolar and Related Disorders)
बायपोलर I डिसऑर्डर
बायपोलर II डिसऑर्डर
अवसादग्रस्त विकार (Depressive Disorders)
मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर (Major Depressive Disorder)
डिस्थीमिया (Dysthymia)
चिंता विकार (Anxiety Disorders)
सामान्यीकृत चिंता विकार (Generalized Anxiety Disorder - GAD)
पैनिक डिसऑर्डर (Panic Disorder)
जुनूनी-बाध्यकारी और संबंधित विकार (Obsessive-Compulsive and Related Disorders)
ओसीडी (Obsessive-Compulsive Disorder)
संबंधित आघात और तनाव विकार (Trauma and Stressor-Related Disorders)
पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD)
खाने से संबंधित विकार (Feeding and Eating Disorders)
एनोरेक्सिया नर्वोसा (Anorexia Nervosa)
बुलिमिया नर्वोसा (Bulimia Nervosa)
नशे और व्यसन संबंधी विकार (Substance-Related and Addictive Disorders)
शराब, तंबाकू और अन्य मादक पदार्थों की लत।
व्यक्तित्व विकार (Personality Disorders)
एंटी-सोशल पर्सनालिटी डिसऑर्डर
बॉर्डरलाइन पर्सनालिटी डिसऑर्डर
निष्कर्ष
नैदानिक मूल्यांकन मानसिक विकारों को समझने और उपचार की योजना बनाने में एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। डी.एस.एम.-5 मानसिक विकारों के निदान के लिए एक मानक दिशानिर्देश प्रदान करता है, जिससे चिकित्सकों और शोधकर्ताओं को मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को बेहतर ढंग से पहचानने और समझने में सहायता मिलती है। यह मानसिक स्वास्थ्य क्षेत्र में एक व्यापक और अत्यधिक प्रभावी टूल के रूप में कार्य करता है।
03. चिंता विकृति से आप क्या समझते हैं? यह डर से किस प्रकार भिन्न है?
परिचय
चिंता (Anxiety) और डर (Fear) दोनों ही सामान्य भावनाएँ हैं जो व्यक्ति को संभावित खतरे या तनावपूर्ण परिस्थितियों से सचेत करती हैं। हालांकि, जब चिंता अत्यधिक, अनियंत्रित और दीर्घकालिक हो जाती है, तो यह चिंता विकृति (Anxiety Disorder) का रूप ले लेती है, जो व्यक्ति के दैनिक जीवन को प्रभावित कर सकती है।
चिंता विकृति (Anxiety Disorder) क्या है?
चिंता विकृति एक मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है जिसमें व्यक्ति को लगातार, अत्यधिक और अवास्तविक चिंता या घबराहट महसूस होती है। यह विकृति व्यक्ति की सामाजिक, व्यावसायिक और व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित कर सकती है।
चिंता विकृति की परिभाषा
अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन (APA) के अनुसार,
"चिंता विकृति वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति को अत्यधिक और लगातार चिंता होती है, जिसे नियंत्रित करना कठिन होता है और जो दैनिक जीवन में बाधा उत्पन्न करती है।"
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार,
"चिंता विकृति व्यक्ति की भावनात्मक, शारीरिक और संज्ञानात्मक क्षमताओं को प्रभावित करने वाली एक मानसिक समस्या है, जिसमें व्यक्ति अत्यधिक तनाव और घबराहट महसूस करता है।"
चिंता विकृति के लक्षण
चिंता विकृति के लक्षण तीन प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं:
1. भावनात्मक लक्षण
लगातार घबराहट या तनाव
अप्रत्याशित खतरे की भावना
चिड़चिड़ापन और बेचैनी
2. शारीरिक लक्षण
हृदयगति का तेज़ होना (Palpitations)
अत्यधिक पसीना आना (Sweating)
सांस लेने में कठिनाई (Shortness of Breath)
थकान और नींद न आना
3. संज्ञानात्मक लक्षण
अत्यधिक सोचने की प्रवृत्ति (Overthinking)
नकारात्मक विचार आना
ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई
चिंता विकृति के प्रकार
डी.एस.एम.-5 (DSM-5) के अनुसार, चिंता विकृति के कई प्रकार होते हैं:
सामान्यीकृत चिंता विकार (Generalized Anxiety Disorder - GAD)
व्यक्ति को लंबे समय तक बिना किसी स्पष्ट कारण के अत्यधिक चिंता होती है।
पैनिक डिसऑर्डर (Panic Disorder)
व्यक्ति को अचानक तीव्र घबराहट या डर (पैनिक अटैक) महसूस होता है।
सामाजिक चिंता विकार (Social Anxiety Disorder)
सामाजिक परिस्थितियों में अत्यधिक डर और शर्मिंदगी का अनुभव।
विशिष्ट भय (Phobias)
किसी विशेष वस्तु, स्थिति या जीव से अत्यधिक और अवास्तविक डर।
जुनूनी-बाध्यकारी विकार (Obsessive-Compulsive Disorder - OCD)
व्यक्ति को बार-बार अवांछनीय विचार (Obsession) आते हैं और वह उन्हें रोकने के लिए बाध्यकारी क्रियाएँ (Compulsion) करता है।
पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD)
किसी भयानक घटना के बाद लंबे समय तक चिंता और तनाव बना रहना।
चिंता और डर में अंतर
निष्कर्ष
चिंता और डर दोनों ही सामान्य मानवीय प्रतिक्रियाएँ हैं, लेकिन जब चिंता अत्यधिक और अनियंत्रित हो जाती है, तो यह चिंता विकृति का रूप ले लेती है। डर किसी तात्कालिक खतरे से जुड़ा होता है, जबकि चिंता भविष्य की अनिश्चितताओं से जुड़ी होती है। यदि चिंता व्यक्ति के दैनिक जीवन को बाधित करने लगे, तो चिकित्सीय परामर्श लेना आवश्यक हो जाता है।
04. मनोग्रसित बाध्यता विकृति के प्रमुख लक्षणों एवं हेतुकी का वर्णन कीजिए।
परिचय
मनोग्रसित बाध्यता विकृति (OCD - Obsessive-Compulsive Disorder) एक मानसिक विकार है जिसमें व्यक्ति को बार-बार अवांछनीय विचार (Obsession) आते हैं और वह उन्हें रोकने के लिए कुछ विशेष क्रियाएँ (Compulsion) करने के लिए बाध्य होता है। यह विकार व्यक्ति की दैनिक गतिविधियों को प्रभावित कर सकता है और अत्यधिक चिंता व तनाव उत्पन्न कर सकता है।
मनोग्रसित बाध्यता विकृति (OCD) की परिभाषा
अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन (APA) के अनुसार,
"ओसीडी एक ऐसा मानसिक विकार है जिसमें व्यक्ति को बार-बार घबराहट वाले विचार आते हैं और वह उनसे राहत पाने के लिए कुछ विशेष व्यवहार दोहराने को मजबूर होता है।"
ओसीडी के प्रमुख लक्षण
ओसीडी के दो प्रमुख घटक होते हैं—
1. मनोग्रस्ति (Obsession - जुनूनी विचार)
यह वे विचार, छवियाँ या आवेग होते हैं जो बार-बार मस्तिष्क में आते हैं और व्यक्ति को तनावग्रस्त करते हैं।
उदाहरण:
अत्यधिक सफाई या गंदगी का डर।
हर चीज़ को सही क्रम में रखने की ज़रूरत।
किसी प्रियजन के नुकसान का डर।
धार्मिक या नैतिक विचारों को लेकर अत्यधिक चिंता।
2. बाध्यता (Compulsion - बाध्यकारी क्रियाएँ)
ये वे क्रियाएँ हैं जो व्यक्ति बार-बार करता है ताकि वह अपनी चिंता को कम कर सके।
उदाहरण:
बार-बार हाथ धोना या नहाना।
चीजों को एक निश्चित क्रम में रखना।
कई बार ताले या गैस चूल्हे की जाँच करना।
प्रार्थना या गणना को बार-बार दोहराना।
ओसीडी के हेतुकी (Causes of OCD)
ओसीडी के कारण पूरी तरह स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन शोध के अनुसार इसके लिए जैविक, मानसिक और पर्यावरणीय कारक ज़िम्मेदार हो सकते हैं।
1. जैविक कारण (Biological Causes)
मस्तिष्क की असामान्य कार्यप्रणाली:
मस्तिष्क के कुछ हिस्से, जैसे फ्रंटल लोब और स्ट्रिएटम, ओसीडी से जुड़े होते हैं।
न्यूरोट्रांसमीटर सेरोटोनिन की असंतुलनता ओसीडी का एक प्रमुख कारण हो सकती है।
आनुवंशिक प्रभाव:
यदि परिवार में किसी को ओसीडी है, तो इसकी संभावना बढ़ जाती है।
2. मनोवैज्ञानिक कारण (Psychological Causes)
संज्ञानात्मक व्यवहार सिद्धांत (Cognitive-Behavioral Theory):
कुछ लोग नकारात्मक विचारों को अधिक गंभीर मानते हैं और उन्हें नियंत्रित करने के लिए बाध्यकारी क्रियाएँ अपनाते हैं।
मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत (Psychoanalytic Theory):
सिगमंड फ्रायड के अनुसार, ओसीडी अचेतन मानसिक संघर्ष का परिणाम हो सकता है।
3. पर्यावरणीय कारण (Environmental Causes)
बचपन के अनुभव:
कठोर परवरिश या दंडात्मक माता-पिता।
तनावपूर्ण घटनाएँ:
किसी प्रियजन की मृत्यु, दुर्घटना या गंभीर बीमारी।
संक्रामक रोग:
कुछ शोध बताते हैं कि बचपन में स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण (Strep Infection) के कारण भी ओसीडी विकसित हो सकता है।
निष्कर्ष
ओसीडी एक गंभीर मानसिक विकार है जिसमें व्यक्ति को बार-बार अनचाहे विचार आते हैं और वह उनसे राहत पाने के लिए बाध्यकारी क्रियाएँ करता है। इसके जैविक, मानसिक और पर्यावरणीय कारण हो सकते हैं। यदि यह विकार व्यक्ति के दैनिक जीवन को प्रभावित करता है, तो चिकित्सा और मनोवैज्ञानिक परामर्श लेना आवश्यक हो जाता है।
05. मनोविच्छेदी विकृति क्या है? मनोविच्छेदी आत्म विस्मृति तथा मनोविच्छेदी स्मृतिलोप में अंतर कीजिए।
परिचय
मनोविच्छेदी विकृति (Dissociative Disorder) एक मानसिक विकार है जिसमें व्यक्ति की पहचान, स्मृति, चेतना या आत्मबोध में अस्थायी या स्थायी विघटन (Disruption) हो जाता है। इस विकृति के कारण व्यक्ति अपने विचारों, भावनाओं और यादों से अस्थायी रूप से कट जाता है, जिससे उसकी वास्तविकता की समझ प्रभावित होती है।
मनोविच्छेदी विकृति की परिभाषा
अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन (APA) के अनुसार,
"मनोविच्छेदी विकृति एक ऐसी मानसिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति की पहचान, स्मृति और चेतना में अव्यवस्था उत्पन्न होती है, जिससे वह अपने अतीत, वर्तमान और स्वयं की वास्तविकता से अलग अनुभव करता है।"
मनोविच्छेदी विकृति के प्रमुख प्रकार
डी.एस.एम.-5 (DSM-5) के अनुसार, मनोविच्छेदी विकृति को निम्नलिखित प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है—
मनोविच्छेदी आत्म विस्मृति (Dissociative Amnesia)
मनोविच्छेदी पहचान विकार (Dissociative Identity Disorder - DID)
निरैंद्रियता विकार (Depersonalization/Derealization Disorder)
मनोविच्छेदी आत्म विस्मृति बनाम मनोविच्छेदी स्मृतिलोप
1. मनोविच्छेदी आत्म विस्मृति (Dissociative Amnesia)
मनोविच्छेदी आत्म विस्मृति एक मानसिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत जानकारी या अतीत की घटनाओं को भूल जाता है, लेकिन यह भूलने की प्रक्रिया किसी जैविक कारण (जैसे चोट या मस्तिष्क क्षति) के बजाय मानसिक आघात या तनाव से उत्पन्न होती है।
मुख्य विशेषताएँ:
व्यक्ति महत्वपूर्ण व्यक्तिगत जानकारियों को याद नहीं रख पाता।
यह विस्मृति किसी मानसिक आघात या अत्यधिक तनाव के कारण होती है।
व्यक्ति सामान्य संज्ञानात्मक कार्य कर सकता है लेकिन अतीत की कुछ विशिष्ट घटनाओं को भूल जाता है।
इसमें स्थानीयकृत अम्नेशिया (Localized Amnesia), सामान्यीकृत अम्नेशिया (Generalized Amnesia) और निरंतर अम्नेशिया (Continuous Amnesia) हो सकता है।
व्यक्ति को भूलने की प्रक्रिया का एहसास नहीं होता।
उदाहरण:
किसी दुर्घटना के बाद व्यक्ति अपने नाम, घर का पता या अतीत की घटनाओं को भूल जाता है।
युद्ध में गए सैनिक को अचानक अपने युद्ध से जुड़े अनुभव याद नहीं रहते।
2. मनोविच्छेदी स्मृतिलोप (Dissociative Fugue)
मनोविच्छेदी स्मृतिलोप मनोविच्छेदी आत्म विस्मृति का एक उग्र रूप है, जिसमें व्यक्ति न केवल अपनी पहचान भूल जाता है, बल्कि वह अपने घर से कहीं दूर चला जाता है और वहाँ एक नई पहचान अपना सकता है।
मुख्य विशेषताएँ:
व्यक्ति अचानक अपनी याददाश्त खो देता है और कहीं दूर चला जाता है।
वह नई पहचान अपना सकता है और नए स्थान पर नया जीवन शुरू कर सकता है।
यह विस्मृति अस्थायी होती है और कुछ घंटों से लेकर महीनों तक बनी रह सकती है।
जब व्यक्ति सामान्य स्थिति में लौटता है, तो उसे इस अवधि की कोई स्मृति नहीं रहती।
उदाहरण:
एक व्यक्ति अचानक अपने घर से गायब हो जाता है और दूसरे शहर में जाकर एक नई पहचान के साथ रहने लगता है।
किसी भावनात्मक आघात के बाद व्यक्ति अचानक किसी अजनबी स्थान पर पाया जाता है और उसे याद नहीं रहता कि वह वहाँ कैसे पहुँचा।
मनोविच्छेदी आत्म विस्मृति और मनोविच्छेदी स्मृतिलोप में अंतर
निष्कर्ष
मनोविच्छेदी विकृति एक गंभीर मानसिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति अपनी पहचान, स्मृति और चेतना से अलग अनुभव करता है। मनोविच्छेदी आत्म विस्मृति में व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत जानकारी भूल जाता है, जबकि मनोविच्छेदी स्मृतिलोप में व्यक्ति अपनी याददाश्त के साथ-साथ अपनी भौगोलिक स्थिति भी बदल सकता है। इन विकृतियों का उपचार मनोवैज्ञानिक चिकित्सा, दवाइयों और काउंसलिंग द्वारा किया जा सकता है।
SHORT ANSWER TYPE QUESTIONS
01. असामान्य व्यवहार की संज्ञानात्मक मॉडल का वर्णन कीजिए।
संज्ञानात्मक (Cognitive) मॉडल असामान्य व्यवहार को समझाने के लिए मानसिक प्रक्रियाओं और सोचने के तरीकों पर ध्यान केंद्रित करता है। यह मॉडल इस धारणा पर आधारित है कि व्यक्ति के विचार, मान्यताएँ और मानसिक प्रक्रियाएँ उनके व्यवहार को प्रभावित करती हैं। यदि व्यक्ति की सोचने की शैली या संज्ञानात्मक प्रक्रियाएँ विकृत (distorted) हो जाती हैं, तो इससे असामान्य या मानसिक विकारजन्य व्यवहार उत्पन्न हो सकता है।
संज्ञानात्मक मॉडल की अवधारणा
इस मॉडल के अनुसार, व्यक्ति का व्यवहार इस बात पर निर्भर करता है कि वह अपनी परिस्थितियों को कैसे समझता और व्याख्या करता है। यदि कोई व्यक्ति अपनी समस्याओं को नकारात्मक रूप में देखता है या गलत निष्कर्ष निकालता है, तो इससे उसके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
मुख्य तत्व:
विचार प्रक्रियाएँ (Cognitive Processes) – व्यक्ति की सोचने की प्रक्रिया उसके अनुभवों और निर्णयों को प्रभावित करती है।
मान्यताएँ (Beliefs) – जीवन के प्रति नकारात्मक मान्यताएँ व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती हैं।
संज्ञानात्मक विकृति (Cognitive Distortions) – गलत सोचने के पैटर्न, जैसे कि अति-सामान्यीकरण, नकारात्मकता की ओर झुकाव आदि, असामान्य व्यवहार को जन्म देते हैं।
असामान्य व्यवहार की व्याख्या
संज्ञानात्मक मॉडल के अनुसार, कुछ प्रमुख मानसिक विकार और उनके कारण निम्नलिखित हो सकते हैं –
अवसाद (Depression):
नकारात्मक सोच और आत्म-हीनता की भावना।
"मैं किसी योग्य नहीं हूँ" जैसी सोच से मनोवैज्ञानिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
चिंता विकार (Anxiety Disorders):
भविष्य को लेकर अत्यधिक नकारात्मक सोच।
संभावित खतरों को बढ़ा-चढ़ाकर देखना।
स्किजोफ्रेनिया (Schizophrenia):
भ्रम (Delusions) और मिथ्या विश्वास।
गलत व्याख्याएँ और सोचने की अव्यवस्थित प्रक्रिया।
संज्ञानात्मक उपचार (Cognitive Therapy)
इस मॉडल पर आधारित थेरेपी को संज्ञानात्मक-व्यवहार थेरेपी (Cognitive Behavioral Therapy - CBT) कहा जाता है। इसमें व्यक्ति को नकारात्मक सोच पैटर्न को पहचानने और उन्हें सकारात्मक तरीके से बदलने की तकनीक सिखाई जाती है।
निष्कर्ष
संज्ञानात्मक मॉडल असामान्य व्यवहार को समझने और उसका उपचार करने में प्रभावी सिद्ध हुआ है। यह विचारों, भावनाओं और व्यवहार के आपसी संबंध पर जोर देता है। सही संज्ञानात्मक रणनीतियों को अपनाकर मानसिक विकारों को कम किया जा सकता है।
02. मनोविदलता के नैदानिक लक्षणों का वर्णन कीजिए।
परिचय
मनोविदलता (Psychosis) एक गंभीर मानसिक विकार है जिसमें व्यक्ति वास्तविकता से संपर्क खो देता है। यह एक मानसिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति भ्रम (delusions), मतिभ्रम (hallucinations) और असंगत सोच का अनुभव करता है। यह स्थिति स्किजोफ्रेनिया (Schizophrenia), बाइपोलर डिसऑर्डर (Bipolar Disorder) और अवसादग्रस्तता मनोविकृति (Depressive Psychosis) जैसी बीमारियों से जुड़ी हो सकती है।
मनोविदलता के नैदानिक लक्षण
मनोविदलता के लक्षणों को मुख्य रूप से पांच श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:
1. भ्रम (Delusions)
व्यक्ति असत्य और अवास्तविक विश्वास करने लगता है।
यह विश्वास किसी तर्क या प्रमाण से भी नहीं बदलता।
भ्रम के प्रकार:
महत्व भ्रम (Grandiose Delusions): स्वयं को बहुत शक्तिशाली या विशिष्ट मानना।
पीड़न भ्रम (Persecutory Delusions): यह विश्वास कि कोई उसे नुकसान पहुँचाने की कोशिश कर रहा है।
संदर्भ भ्रम (Referential Delusions): यह मानना कि टीवी, रेडियो, या अन्य बाहरी चीजें विशेष रूप से उसी के बारे में बात कर रही हैं।
2. मतिभ्रम (Hallucinations)
व्यक्ति उन चीजों को देखता, सुनता, महसूस करता या सूंघता है जो वास्तव में मौजूद नहीं होतीं।
मतिभ्रम के प्रकार:
श्रवण मतिभ्रम (Auditory Hallucinations): आवाज़ें सुनाई देना (सबसे आम लक्षण)।
दृष्टि मतिभ्रम (Visual Hallucinations): ऐसी चीजें देखना जो वास्तव में नहीं हैं।
स्पर्शीय मतिभ्रम (Tactile Hallucinations): बिना किसी कारण शरीर पर कुछ महसूस होना।
3. असंगत सोच (Disorganized Thinking)
व्यक्ति की सोचने और बोलने की प्रक्रिया अव्यवस्थित हो जाती है।
बातें बेमेल और तर्कहीन लगती हैं।
कभी-कभी मरीज वाक्यों को अधूरा छोड़ देता है या अचानक विषय बदल देता है।
4. असामान्य व्यवहार (Disorganized or Abnormal Behavior)
अप्रत्याशित, अजीब या अनुचित व्यवहार करना।
अचानक गुस्सा आना या अत्यधिक उत्तेजित हो जाना।
कभी-कभी व्यक्ति अत्यधिक शांत या निष्क्रिय भी हो सकता है।
5. नकारात्मक लक्षण (Negative Symptoms)
सामान्य कार्यों में रुचि और प्रेरणा की कमी।
सामाजिक गतिविधियों से दूरी बनाना।
भावनाओं की अभिव्यक्ति में कमी (जैसे चेहरे के हाव-भाव न बदलना)।
बोलने या संवाद करने की क्षमता में गिरावट।
निष्कर्ष
मनोविदलता एक गंभीर मानसिक विकार है जो व्यक्ति की वास्तविकता की धारणा को प्रभावित करता है। इसके नैदानिक लक्षणों में भ्रम, मतिभ्रम, असंगत सोच, असामान्य व्यवहार और नकारात्मक लक्षण प्रमुख रूप से शामिल हैं। सही समय पर उपचार, जैसे कि दवाएँ और संज्ञानात्मक-व्यवहार थेरेपी (CBT), से इसे प्रबंधित किया जा सकता है।
03. द्विध्रुवीय विकृति के मुख्य प्रकारों का वर्णन कीजिए।
परिचय
द्विध्रुवीय विकृति (Bipolar Disorder) एक मानसिक विकार है जिसमें व्यक्ति के मूड में अत्यधिक उतार-चढ़ाव होते हैं। इसमें व्यक्ति कभी बहुत अधिक ऊर्जा और उत्साह (मैनिक एपिसोड) अनुभव करता है, तो कभी अत्यधिक उदासी और निराशा (डिप्रेसिव एपिसोड) में चला जाता है। इस विकार को पहले "मैनिक-डिप्रेसिव इलनेस" के रूप में जाना जाता था।
द्विध्रुवीय विकृति के मुख्य प्रकार
द्विध्रुवीय विकृति को सामान्यतः तीन मुख्य प्रकारों में विभाजित किया जाता है:
1. द्विध्रुवीय विकार प्रकार- I (Bipolar I Disorder)
यह द्विध्रुवीय विकृति का सबसे गंभीर प्रकार है।
इसमें व्यक्ति कम से कम एक मैनिक एपिसोड (Manic Episode) अनुभव करता है जो एक सप्ताह या उससे अधिक समय तक चल सकता है।
मैनिक एपिसोड में व्यक्ति अत्यधिक उर्जावान, आत्मविश्वासी, और अत्यधिक बातूनी हो जाता है।
कुछ मामलों में, व्यक्ति मतिभ्रम (Hallucinations) या भ्रम (Delusions) का भी अनुभव कर सकता है।
अवसाद (Depression) की अवस्था भी हो सकती है, लेकिन यह आवश्यक नहीं है।
व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता पड़ सकती है।
मुख्य लक्षण:
✔ अत्यधिक ऊर्जा और उत्साह
✔ कम नींद के बावजूद सक्रियता
✔ अत्यधिक आत्मविश्वास या भव्यता की भावना
✔ असंगत और तेज़ सोच
✔ जोखिम भरा व्यवहार (जैसे अत्यधिक खर्च करना, असुरक्षित यौन संबंध)
2. द्विध्रुवीय विकार प्रकार- II (Bipolar II Disorder)
इस प्रकार में व्यक्ति को कम से कम एक हाइपोमैनिक एपिसोड (Hypomanic Episode) और एक प्रमुख अवसादग्रस्तता एपिसोड (Major Depressive Episode) अनुभव होता है।
हाइपोमैनिक एपिसोड, मैनिक एपिसोड की तुलना में कम गंभीर होता है और व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं पड़ती।
हालांकि, डिप्रेशन की अवस्था गंभीर हो सकती है और व्यक्ति को आत्महत्या के विचार आ सकते हैं।
यह विकार मैनिक एपिसोड के बिना भी हो सकता है।
मुख्य लक्षण:
✔ हल्का उन्नत मूड और ऊर्जा
✔ बढ़ी हुई उत्पादकता
✔ अवसाद की अवधि जिसमें अत्यधिक दुख, थकान और आत्महत्या के विचार आ सकते हैं
✔ सामाजिक संबंधों में समस्या
3. साइक्लोथायमिक विकार (Cyclothymic Disorder)
इसमें व्यक्ति को हल्के हाइपोमैनिक और हल्के डिप्रेसिव लक्षण अनुभव होते हैं, लेकिन ये पूर्ण मैनिक या प्रमुख अवसादग्रस्तता एपिसोड के स्तर तक नहीं पहुंचते।
लक्षण कम से कम दो वर्षों तक (बच्चों में एक वर्ष) बने रहते हैं।
इस विकार में व्यक्ति के मूड में लगातार उतार-चढ़ाव होते रहते हैं, लेकिन वे उतने गंभीर नहीं होते कि द्विध्रुवीय विकार-I या II के रूप में निदान किया जा सके।
मुख्य लक्षण:
✔ हल्के मैनिक और डिप्रेसिव लक्षण
✔ मूड में लगातार बदलाव
✔ सामान्य कार्यों में रुचि की कमी
✔ सामाजिक या व्यावसायिक जीवन में कठिनाई
अन्य प्रकार
अन्य विशिष्ट और असंबद्ध द्विध्रुवीय विकार (Other Specified and Unspecified Bipolar Disorders): वे द्विध्रुवीय विकार जो द्विध्रुवीय I, II या साइक्लोथायमिक विकार की पूरी परिभाषा में नहीं आते, लेकिन लक्षण मौजूद होते हैं।
निष्कर्ष
द्विध्रुवीय विकृति एक जटिल मानसिक विकार है जिसमें व्यक्ति के मूड में अत्यधिक उतार-चढ़ाव देखे जाते हैं। इसके मुख्य प्रकारों में द्विध्रुवीय विकार-I, द्विध्रुवीय विकार-II और साइक्लोथायमिक विकार शामिल हैं। सही समय पर उपचार, जैसे कि मनोचिकित्सा (Psychotherapy) और दवाएँ (Mood Stabilizers), से इस विकार को नियंत्रित किया जा सकता है।
04. निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए-
(1) नैदानिक केस अध्ययन विधि
(2) प्रेक्षण विधि
(1) नैदानिक केस अध्ययन विधि (Clinical Case Study Method)
परिचय
नैदानिक केस अध्ययन विधि एक गुणात्मक अनुसंधान तकनीक है, जिसका उपयोग मनोवैज्ञानिक, चिकित्सक और शोधकर्ता किसी एक व्यक्ति या समूह के गहन विश्लेषण के लिए करते हैं। इसमें व्यक्ति के मानसिक, भावनात्मक और व्यवहारिक पहलुओं का विस्तार से अध्ययन किया जाता है।
मुख्य विशेषताएँ
किसी व्यक्ति के जीवन इतिहास, अनुभवों और मानसिक स्थिति का विस्तृत विवरण।
विभिन्न स्रोतों जैसे साक्षात्कार, परामर्श, चिकित्सा रिपोर्ट और पर्यवेक्षण से डेटा संग्रह।
दीर्घकालिक अध्ययन के माध्यम से व्यवहार में होने वाले परिवर्तनों का विश्लेषण।
उपयोगिता
मानसिक विकारों, व्यक्तित्व विकारों और असामान्य व्यवहारों के निदान और उपचार में सहायक।
चिकित्सकों को व्यक्तिगत समस्याओं की गहरी समझ प्रदान करता है।
मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों और उपचार विधियों के विकास में सहायक।
सीमाएँ
अध्ययन केवल एक व्यक्ति या छोटे समूह तक सीमित रहता है, जिससे सामान्यीकरण कठिन हो सकता है।
शोधकर्ता की व्यक्तिगत व्याख्या अध्ययन को प्रभावित कर सकती है।
(2) प्रेक्षण विधि (Observation Method)
परिचय
प्रेक्षण विधि एक वैज्ञानिक अनुसंधान तकनीक है जिसमें शोधकर्ता किसी व्यक्ति, समूह या घटना का प्रत्यक्ष अवलोकन करता है। यह मनोविज्ञान, समाजशास्त्र और अन्य सामाजिक विज्ञानों में व्यापक रूप से उपयोग की जाती है।
मुख्य प्रकार
सजीव प्रेक्षण (Direct Observation) – शोधकर्ता प्रत्यक्ष रूप से व्यक्ति या घटना का अवलोकन करता है।
अप्रत्यक्ष प्रेक्षण (Indirect Observation) – अध्ययन के लिए पहले से संकलित जानकारी या रिकॉर्ड का उपयोग किया जाता है।
संरचित प्रेक्षण (Structured Observation) – पहले से तय मानकों के आधार पर व्यवस्थित अवलोकन किया जाता है।
असंरचित प्रेक्षण (Unstructured Observation) – स्वतःस्फूर्त और लचीला अवलोकन, जिसमें शोधकर्ता किसी भी प्रासंगिक जानकारी को नोट करता है।
उपयोगिता
बच्चों के व्यवहार, सामाजिक इंटरैक्शन और मानसिक विकारों के अध्ययन में सहायक।
प्रयोगशाला और प्राकृतिक परिस्थितियों में प्रयोग किया जा सकता है।
निष्कर्ष वास्तविक और व्यावहारिक होते हैं क्योंकि व्यक्ति को अध्ययन प्रक्रिया का पता नहीं होता।
सीमाएँ
पर्यवेक्षक का पूर्वाग्रह परिणामों को प्रभावित कर सकता है।
कुछ व्यवहारों को प्रत्यक्ष रूप से देखना कठिन हो सकता है, जैसे कि आंतरिक संज्ञानात्मक प्रक्रियाएँ।
दीर्घकालिक अवलोकन समय और संसाधन-गहन हो सकता है।
निष्कर्ष
नैदानिक केस अध्ययन विधि और प्रेक्षण विधि दोनों ही मनोवैज्ञानिक अनुसंधान में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। केस अध्ययन विधि व्यक्तित्व और मानसिक विकारों के गहन विश्लेषण के लिए उपयोगी होती है, जबकि प्रेक्षण विधि व्यक्ति के स्वाभाविक व्यवहार को समझने के लिए प्रभावी होती है।
05. व्यक्तित्व विकृति के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
परिचय
व्यक्तित्व विकृति (Personality Disorders) मानसिक विकारों का एक समूह है, जिसमें व्यक्ति के विचार, भावनाएँ और व्यवहार लंबे समय तक सामान्य से भिन्न रहते हैं। यह विकार व्यक्ति के सामाजिक जीवन, कार्यक्षमता और आपसी संबंधों को प्रभावित करते हैं। व्यक्तित्व विकृति को आमतौर पर किशोरावस्था या प्रारंभिक वयस्कता में पहचाना जाता है और यह लंबे समय तक बनी रह सकती है।
व्यक्तित्व विकृति का स्वरूप
व्यक्तित्व विकृति को समझने के लिए निम्नलिखित प्रमुख विशेषताओं पर ध्यान देना आवश्यक है:
1. दीर्घकालिक और स्थायी व्यवहार पैटर्न
यह विकृति व्यक्ति की संज्ञान (Cognition), भावनात्मक प्रतिक्रियाओं (Emotional Responses), संबंधों (Interpersonal Relationships) और आवेग नियंत्रण (Impulse Control) को प्रभावित करती है।
यह लंबे समय तक बनी रहती है और व्यक्ति की जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा बन जाती है।
2. सामाजिक और व्यावसायिक जीवन पर प्रभाव
व्यक्ति का व्यवहार सामाजिक मानदंडों के अनुरूप नहीं होता, जिससे उसके पारिवारिक, सामाजिक और पेशेवर संबंध प्रभावित होते हैं।
ऐसे व्यक्तियों को टीम में काम करने, नई परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढालने और दूसरों के साथ सामान्य रूप से बातचीत करने में कठिनाई होती है।
3. आत्म-जागरूकता की कमी
व्यक्तित्व विकृति वाले लोग अपने व्यवहार को सामान्य मानते हैं और शायद ही कभी यह स्वीकार करते हैं कि उन्हें कोई समस्या है।
वे अपनी समस्याओं के लिए दूसरों को दोष देते हैं और बदलाव करने में रुचि नहीं दिखाते।
4. विभाजनों के आधार पर व्यक्तित्व विकृति के प्रकार
मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व विकृति को तीन प्रमुख समूहों (Clusters) में विभाजित किया है:
(A) अजीब और सनकी व्यवहार वाले विकार (Odd or Eccentric Disorders)
पैरानॉयड व्यक्तित्व विकार (Paranoid Personality Disorder) – अत्यधिक संदेहशीलता और दूसरों की नीयत पर शक करना।
स्किज़ॉइड व्यक्तित्व विकार (Schizoid Personality Disorder) – सामाजिक रिश्तों में रुचि की कमी और अकेले रहना पसंद करना।
स्किज़ोटाइपल व्यक्तित्व विकार (Schizotypal Personality Disorder) – असामान्य सोच, विश्वास और व्यवहार, जैसे अजीबोगरीब विश्वास रखना।
(B) नाटकीय, भावनात्मक और अस्थिर व्यवहार वाले विकार (Dramatic, Emotional, or Erratic Disorders)
एंटी-सोशल व्यक्तित्व विकार (Antisocial Personality Disorder) – दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन, झूठ बोलना, आक्रामकता और अपराधी प्रवृत्ति।
बॉर्डरलाइन व्यक्तित्व विकार (Borderline Personality Disorder) – अस्थिर भावनाएँ, आत्म-क्षति की प्रवृत्ति, और परित्याग का भय।
हिस्ट्रियोनिक व्यक्तित्व विकार (Histrionic Personality Disorder) – ध्यान आकर्षित करने की अत्यधिक इच्छा और नाटकीय व्यवहार।
नार्सिसिस्टिक व्यक्तित्व विकार (Narcissistic Personality Disorder) – स्वयं को अत्यधिक महत्वपूर्ण समझना, दूसरों की भावनाओं की उपेक्षा और प्रशंसा की जरूरत।
(C) चिंताग्रस्त और भययुक्त व्यवहार वाले विकार (Anxious or Fearful Disorders)
परिहारात्मक व्यक्तित्व विकार (Avoidant Personality Disorder) – अस्वीकृति के डर से सामाजिक संबंधों से बचना।
आश्रित व्यक्तित्व विकार (Dependent Personality Disorder) – दूसरों पर अत्यधिक निर्भर रहना और निर्णय लेने में असमर्थता।
जुनूनी-बाध्यकारी व्यक्तित्व विकार (Obsessive-Compulsive Personality Disorder - OCPD) – पूर्णतावाद, कठोरता और अत्यधिक नियंत्रण की प्रवृत्ति।
निष्कर्ष
व्यक्तित्व विकृति एक जटिल मानसिक स्थिति है, जो व्यक्ति की सोच, भावनाओं और व्यवहार में दीर्घकालिक असमान्यताओं को दर्शाती है। इसे तीन समूहों में विभाजित किया जाता है: अजीब व्यवहार वाले विकार, नाटकीय और अस्थिर व्यवहार वाले विकार, तथा चिंताग्रस्त और भययुक्त विकार। इस विकृति के उपचार में मनोचिकित्सा (Psychotherapy), संज्ञानात्मक-व्यवहार थेरेपी (CBT) और दवा चिकित्सा (Medication) महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
06. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए- (1) असामाजिक व्यक्तित्व विकृति (2) सीमा रेखा व्यक्तित्व विकार
(1) असामाजिक व्यक्तित्व विकृति (Antisocial Personality Disorder - ASPD)
परिचय
असामाजिक व्यक्तित्व विकृति (ASPD) एक गंभीर मानसिक विकार है जिसमें व्यक्ति सामाजिक मानदंडों, नियमों और कानूनों का पालन नहीं करता। इस विकृति से ग्रस्त व्यक्ति झूठ बोलने, धोखा देने, आक्रामकता और आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त रहता है।
मुख्य लक्षण
✔ अनैतिक और गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार: व्यक्ति को सही और गलत की परवाह नहीं होती।
✔ आक्रामकता और हिंसा: दूसरों को नुकसान पहुँचाने में कोई अपराधबोध महसूस नहीं करता।
✔ झूठ बोलना और धोखा देना: अपने स्वार्थ के लिए लगातार झूठ बोलता है।
✔ अपराध प्रवृत्ति: कानून तोड़ने की प्रवृत्ति रहती है।
✔ पश्चाताप की कमी: अपने गलत कार्यों के प्रति कोई ग्लानि नहीं होती।
कारण
आनुवंशिक प्रभाव: परिवार में मानसिक विकारों का इतिहास।
पर्यावरणीय प्रभाव: बचपन में हिंसा, दुर्व्यवहार या उपेक्षा।
मस्तिष्क संरचना: मस्तिष्क के कुछ हिस्सों में असामान्यताएँ पाई गई हैं।
उपचार
संज्ञानात्मक-व्यवहार थेरेपी (CBT)
सामुदायिक पुनर्वास
चिकित्सा उपचार, जैसे मूड स्टेबलाइजर दवाएँ
निष्कर्ष
असामाजिक व्यक्तित्व विकृति एक जटिल मानसिक विकार है जो व्यक्ति के सामाजिक और नैतिक आचरण को प्रभावित करता है। यह अपराध और हिंसा से जुड़ा हो सकता है, इसलिए शीघ्र चिकित्सा हस्तक्षेप आवश्यक है।
(2) सीमा रेखा व्यक्तित्व विकार (Borderline Personality Disorder - BPD)
परिचय
सीमा रेखा व्यक्तित्व विकार (BPD) एक मानसिक विकृति है जिसमें व्यक्ति की भावनाएँ अत्यधिक अस्थिर रहती हैं। इसमें व्यक्ति के संबंध, आत्म-छवि और भावनाएँ बार-बार बदलती रहती हैं।
मुख्य लक्षण
✔ अस्थिर संबंध: अत्यधिक घनिष्ठता या घृणा के बीच संबंधों का उतार-चढ़ाव।
✔ भावनात्मक अस्थिरता: अचानक अत्यधिक गुस्सा, उदासी या चिंता।
✔ असुरक्षा और परित्याग का डर: अकेले रहने का भय, जिससे व्यक्ति अत्यधिक चिपकू या टालमटोल वाला हो सकता है।
✔ आत्म-हानि प्रवृत्ति: आत्महत्या के विचार या आत्म-क्षति (जैसे खुद को काटना)।
✔ आवेगशीलता: लापरवाह खर्च, असुरक्षित यौन संबंध, नशा, तेज़ गाड़ी चलाना।
✔ खालीपन की भावना: व्यक्ति हमेशा अंदर से खालीपन महसूस करता है।
कारण
बाल्यावस्था में दुर्व्यवहार या उपेक्षा
आनुवंशिक प्रभाव
मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन
उपचार
डायलेक्टिकल बिहेवियर थेरेपी (DBT)
संज्ञानात्मक-व्यवहार थेरेपी (CBT)
मूड स्टेबलाइजर और एंटीडिप्रेसेंट दवाएँ
निष्कर्ष
सीमा रेखा व्यक्तित्व विकार व्यक्ति के भावनात्मक और सामाजिक जीवन को बुरी तरह प्रभावित करता है। हालांकि, सही उपचार और समर्थन से व्यक्ति अपने लक्षणों को नियंत्रित कर सकता है और बेहतर जीवन जी सकता है।
07. सामाजिक दुर्भीति से आप क्या समझते हैं?
परिचय
सामाजिक दुर्भीति (Social Phobia) या सामाजिक चिंता विकार (Social Anxiety Disorder) एक मानसिक स्थिति है, जिसमें व्यक्ति को सामाजिक परिस्थितियों में अत्यधिक भय और चिंता का अनुभव होता है। यह भय आमतौर पर अन्य लोगों के द्वारा नकारात्मक रूप से आंके जाने, अपमानित होने या सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा होने की चिंता से उत्पन्न होता है।
सामाजिक दुर्भीति के लक्षण
अत्यधिक सामाजिक चिंता: सार्वजनिक रूप से बोलने, नए लोगों से मिलने, या सामाजिक आयोजनों में भाग लेने में असहजता।
शारीरिक लक्षण: तेज़ दिल की धड़कन, पसीना आना, कांपना, मुँह सूखना और पेट में बेचैनी।
परिहार व्यवहार: व्यक्ति सामाजिक परिस्थितियों से बचने का प्रयास करता है।
आत्म-संदेह: व्यक्ति को लगता है कि वह किसी भी सामाजिक स्थिति में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकता।
अत्यधिक आत्म-जागरूकता: व्यक्ति दूसरों की संभावित आलोचना के बारे में अधिक सोचता रहता है।
सामाजिक दुर्भीति के कारण
आनुवंशिक कारण: परिवार में सामाजिक चिंता विकार होने की संभावना अधिक होती है।
मस्तिष्क संरचना: अमिगडाला (Amygdala) नामक मस्तिष्क का भाग, जो भय और चिंता को नियंत्रित करता है, अधिक सक्रिय हो सकता है।
पर्यावरणीय प्रभाव: बचपन में उपेक्षा, बुलीइंग या सामाजिक अस्वीकृति का अनुभव।
व्यक्तित्व: अंतर्मुखी (Introverted) स्वभाव वाले लोग सामाजिक चिंता से अधिक प्रभावित हो सकते हैं।
सामाजिक दुर्भीति के प्रभाव
शैक्षणिक और व्यावसायिक क्षेत्र में कठिनाई: व्यक्ति इंटरव्यू, प्रेजेंटेशन, या समूह चर्चाओं में भाग लेने से बचता है।
सामाजिक रिश्तों में समस्या: दोस्त बनाना और बनाए रखना मुश्किल हो सकता है।
आत्मसम्मान में कमी: व्यक्ति खुद को अयोग्य महसूस कर सकता है।
नशे की प्रवृत्ति: कुछ लोग शराब या नशीले पदार्थों का उपयोग अपनी चिंता कम करने के लिए करते हैं।
सामाजिक दुर्भीति का उपचार
संज्ञानात्मक-व्यवहार थेरेपी (Cognitive-Behavioral Therapy - CBT): नकारात्मक विचारों को बदलने और आत्मविश्वास बढ़ाने में मदद करता है।
सामाजिक प्रशिक्षण (Social Skills Training): व्यक्ति को धीरे-धीरे सामाजिक परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार किया जाता है।
औषधीय उपचार: एंटी-एंग्जायटी और एंटीडिप्रेसेंट दवाओं का उपयोग किया जाता है।
रिलैक्सेशन तकनीक: ध्यान, योग और गहरी साँस लेने की तकनीकें लाभकारी होती हैं।
निष्कर्ष
सामाजिक दुर्भीति एक गंभीर मानसिक विकार हो सकता है, जो व्यक्ति के सामाजिक, व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन को प्रभावित करता है। सही उपचार, मानसिक समर्थन और व्यवहारिक बदलाव के माध्यम से इसे प्रबंधित किया जा सकता है, जिससे व्यक्ति आत्मविश्वास के साथ जीवन जी सके।
08. असामान्य व्यवहार तथा सामान्य व्यवहार में अंतर कीजिए।
परिचय
व्यवहार वह क्रिया या प्रतिक्रिया होती है, जो व्यक्ति अपने वातावरण के अनुसार व्यक्त करता है। व्यवहार को सामान्य (Normal) और असामान्य (Abnormal) दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। सामान्य व्यवहार समाज द्वारा स्वीकृत होता है, जबकि असामान्य व्यवहार उन मानकों से भिन्न होता है और अक्सर मानसिक विकारों से जुड़ा होता है।
असामान्य और सामान्य व्यवहार में अंतर
आधारसामान्य व्यवहार (Normal Behavior)असामान्य व्यवहार (Abnormal Behavior)परिभाषाऐसा व्यवहार जो समाज और संस्कृति के मानकों के अनुरूप होता है।ऐसा व्यवहार जो समाज के स्वीकृत मानकों से भिन्न होता है और व्यक्ति की कार्यक्षमता को प्रभावित करता है।सामाजिक स्वीकार्यतासमाज में स्वीकृत और प्रोत्साहित किया जाता है।आमतौर पर समाज इसे अस्वीकार करता है या अजीब मानता है।भावनात्मक स्थिरताव्यक्ति अपनी भावनाओं और विचारों को संतुलित रखता है।व्यक्ति अत्यधिक चिंता, भय, क्रोध या अवसादग्रस्त महसूस कर सकता है।व्यक्तित्व का विकासयह व्यवहार व्यक्ति के मानसिक विकास और आत्मनिर्भरता में सहायक होता है।यह व्यवहार व्यक्ति के मानसिक विकास को बाधित कर सकता है और आत्मनिर्भरता को प्रभावित कर सकता है।अनुकूलन क्षमताव्यक्ति विभिन्न परिस्थितियों में अपने व्यवहार को समायोजित कर सकता है।व्यक्ति नई परिस्थितियों में समायोजन करने में कठिनाई महसूस करता है।व्यावहारिक नियंत्रणव्यक्ति अपने विचारों और व्यवहारों को नियंत्रित कर सकता है।व्यक्ति अपने व्यवहार को नियंत्रित करने में असमर्थ हो सकता है, जिससे अचानक गुस्सा, आक्रामकता या अवसाद दिख सकता है।मनोवैज्ञानिक प्रभावसकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक स्थिरता बनाए रखता है।अक्सर मानसिक विकारों, तनाव, और अस्थिरता से जुड़ा होता है।उदाहरणकिसी महत्वपूर्ण परीक्षा से पहले घबराहट महसूस करना लेकिन तैयारी करना और परीक्षा देना।परीक्षा से पहले अत्यधिक घबराहट महसूस करना, आत्मविश्वास खो देना और परीक्षा में बैठने से इनकार करना।
निष्कर्ष
सामान्य व्यवहार वह होता है जो समाज द्वारा स्वीकार्य होता है और व्यक्ति को जीवन में सफलतापूर्वक आगे बढ़ने में मदद करता है। वहीं, असामान्य व्यवहार सामाजिक मानकों से हटकर होता है और यह मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का संकेत हो सकता है। असामान्य व्यवहार को पहचानकर उचित उपचार या सहायता प्रदान की जानी चाहिए ताकि व्यक्ति सामान्य जीवन जी सके।
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