GEPA-02 IMPORTANT SOLVED PAPER JUNE 2024
01. भारत के प्रधानमन्त्री के पद एवं उसकी भूमिका की विवेचना कीजिए।
भारत का प्रधानमंत्री (Prime Minister of India) भारतीय शासन प्रणाली का सर्वोच्च कार्यकारी पद है। यह पद देश की कार्यपालिका का नेतृत्व करता है और प्रशासन के संचालन में केंद्रीय भूमिका निभाता है। भारत में संसदीय लोकतंत्र प्रणाली अपनाई गई है, जिसमें प्रधानमंत्री वास्तविक कार्यकारी प्रमुख होता है, जबकि राष्ट्रपति नाममात्र का प्रमुख होता है।
प्रधानमंत्री का पद
1. संवैधानिक स्थिति
प्रधानमंत्री का पद भारतीय संविधान के अनुच्छेद 74 और 75 के तहत निर्धारित किया गया है। अनुच्छेद 74 के अनुसार, राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह से कार्य करना होता है। अनुच्छेद 75 में यह प्रावधान है कि प्रधानमंत्री को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाएगा और वह लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता होगा।
2. नियुक्ति एवं कार्यकाल
राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है।
आमतौर पर लोकसभा में बहुमत प्राप्त पार्टी का नेता प्रधानमंत्री बनता है।
प्रधानमंत्री का कार्यकाल निश्चित नहीं होता, वह तब तक पद पर बना रहता है जब तक लोकसभा में उसे बहुमत का समर्थन प्राप्त होता है।
प्रधानमंत्री की भूमिका
प्रधानमंत्री की भूमिका बहुआयामी होती है, जो प्रशासन, नीति-निर्माण, विदेश नीति और संसद में नेतृत्व तक विस्तृत होती है।
1. कार्यपालिका का प्रमुख
प्रधानमंत्री केंद्र सरकार की कार्यपालिका का प्रमुख होता है। वह राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद के गठन, उनके विभागों के आवंटन और मंत्रियों की नियुक्ति/बर्खास्तगी की सिफारिश करता है।
2. मंत्रिपरिषद का नेतृत्व
प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद का अध्यक्ष होता है और सभी महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णयों में उसकी भूमिका प्रमुख होती है। वह मंत्रियों को निर्देशित करता है और समन्वय स्थापित करता है।
3. संसद में भूमिका
प्रधानमंत्री लोकसभा का नेता होता है और सरकार की नीतियों को संसद में प्रस्तुत करता है। वह विभिन्न विधेयकों, बहसों और सरकार की नीतियों पर चर्चा में भाग लेता है।
4. नीतिगत निर्णयों में नेतृत्व
प्रधानमंत्री सरकार की आंतरिक और बाहरी नीतियों को निर्धारित करता है। आर्थिक नीति, रक्षा नीति, विदेश नीति आदि पर वह महत्वपूर्ण निर्णय लेता है।
5. राष्ट्रपति और अन्य संवैधानिक संस्थाओं के साथ समन्वय
प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को सभी सरकारी कार्यों की जानकारी देता है और आवश्यक परामर्श प्रदान करता है। इसके अलावा, वह न्यायपालिका, राज्यपालों और अन्य संवैधानिक संस्थाओं के साथ भी समन्वय स्थापित करता है।
6. राष्ट्रीय सुरक्षा और आपातकालीन परिस्थितियों में भूमिका
प्रधानमंत्री रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित निर्णय लेने में प्रमुख भूमिका निभाता है। आपातकालीन स्थितियों (राष्ट्रपति शासन, युद्ध, प्राकृतिक आपदा) में उसकी भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है।
7. विदेश नीति का संचालन
प्रधानमंत्री भारत की विदेश नीति को निर्धारित करता है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व करता है। विभिन्न देशों के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करना उसकी जिम्मेदारी होती है।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री भारत की राजनीति और प्रशासन में एक केंद्रीय भूमिका निभाता है। वह सरकार का मुखिया, नीतियों का निर्धारक और राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय मामलों में देश का प्रतिनिधि होता है। उसकी कार्यशैली और निर्णय देश की दिशा को निर्धारित करते हैं। इस प्रकार, प्रधानमंत्री का पद भारतीय लोकतंत्र की रीढ़ की हड्डी के समान है, जो देश के विकास और सुशासन को सुनिश्चित करता है।
02. भारत का संविधान इतना व्यापक क्यों है? चर्चा कीजिए।
भारत का संविधान विश्व का सबसे विस्तृत और लिखित संविधान है। इसकी व्यापकता का कारण न केवल इसके अनुच्छेदों की संख्या है, बल्कि इसकी गहराई और विविधता भी है। यह संविधान न केवल राजनीतिक और कानूनी ढांचे को निर्धारित करता है, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पहलुओं को भी ध्यान में रखता है।
भारत के संविधान की व्यापकता के कारण
1. भारत की विविधता
भारत एक बहुभाषी, बहुधार्मिक और बहुसांस्कृतिक देश है। देश में विभिन्न जातियां, धर्म, भाषाएं और परंपराएं हैं। संविधान को इस विविधता को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया ताकि सभी समुदायों के अधिकारों की रक्षा हो सके और देश में एकता बनी रहे।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की थी, जहां लंबे समय तक औपनिवेशिक कानून लागू थे। इसलिए संविधान निर्माताओं ने ब्रिटिश कानूनों, भारत सरकार अधिनियम 1935, और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संविधानों से प्रेरणा ली। भारतीय समाज में सुधार लाने और शोषित वर्गों को न्याय देने के लिए संविधान को विस्तृत बनाया गया।
3. विस्तृत मौलिक अधिकार और कर्तव्य
संविधान में नागरिकों को व्यापक मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 12-35) प्रदान किए गए हैं, जिनमें समानता, स्वतंत्रता, शोषण के विरुद्ध संरक्षण, धार्मिक स्वतंत्रता, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार तथा संवैधानिक उपचारों का अधिकार शामिल है।
इसके साथ ही, 42वें संशोधन (1976) के माध्यम से मौलिक कर्तव्य भी जोड़े गए, जिससे नागरिकों को राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी का अहसास हो।
4. विस्तृत शासन प्रणाली
संविधान में संघीय शासन प्रणाली अपनाई गई है, जिसमें केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन है। अनुच्छेद 246 के तहत संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची बनाई गई हैं, ताकि सरकारें अपने अधिकारों और कर्तव्यों को सुचारू रूप से निभा सकें।
5. न्यायिक और विधायी व्यवस्था का विस्तार
भारत में स्वतंत्र न्यायपालिका है, जो संवैधानिक मामलों की समीक्षा करती है। न्यायपालिका के अधिकारों और शक्तियों को संविधान में विस्तार से बताया गया है। इसके अलावा, संसद और राज्य विधानसभाओं की संरचना, कार्यप्रणाली और शक्तियों को भी संविधान में स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है।
6. सामाजिक और आर्थिक न्याय का प्रावधान
संविधान का उद्देश्य केवल राजनीतिक स्वतंत्रता देना नहीं था, बल्कि सामाजिक और आर्थिक समानता भी सुनिश्चित करना था। इसलिए न्याय, स्वतंत्रता और समानता जैसे सिद्धांतों को प्रस्तावना में शामिल किया गया। इसके अलावा, राज्य नीति के निदेशक तत्वों (DPSP) को संविधान में जोड़ा गया, जिससे सरकार को कल्याणकारी राज्य बनाने की दिशा में मार्गदर्शन मिल सके।
7. नागरिकों के अधिकारों और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा
संविधान में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्ग और धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। आरक्षण नीति, सामाजिक न्याय और समानता सुनिश्चित करने के लिए विस्तृत कानूनी ढांचे को संविधान में जोड़ा गया है।
8. लचीला और कठोर संविधान का मिश्रण
भारतीय संविधान संशोधन योग्य है, लेकिन कुछ प्रावधानों को बदलने के लिए संसद और राज्यों दोनों की सहमति आवश्यक होती है। इसलिए इसे लचीलेपन और कठोरता का संतुलन बनाए रखने के लिए विस्तृत रूप दिया गया है।
9. आपातकालीन प्रावधान
संविधान में आपातकालीन परिस्थितियों (अनुच्छेद 352, 356 और 360) के लिए विस्तृत प्रावधान किए गए हैं। राष्ट्रीय आपातकाल, राज्य आपातकाल और वित्तीय आपातकाल की स्थितियों को ध्यान में रखते हुए संविधान को व्यापक बनाया गया।
10. प्रशासनिक तंत्र का विस्तार
संविधान में चुनाव आयोग, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, लोक सेवा आयोग, अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग जैसी विभिन्न संस्थाओं का विस्तृत वर्णन किया गया है, ताकि शासन प्रणाली पारदर्शी और सुचारू रूप से चल सके।
निष्कर्ष
भारतीय संविधान की व्यापकता इसकी अनूठी विशेषता है, जो देश की विविधता, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, नागरिकों के अधिकारों, शासन प्रणाली और सामाजिक न्याय को ध्यान में रखते हुए बनाई गई है। यह न केवल एक कानूनी दस्तावेज है, बल्कि एक मार्गदर्शक दस्तावेज भी है, जो भारत को लोकतंत्र, समानता और न्याय की ओर अग्रसर करता है। इसी कारण भारतीय संविधान विस्तृत और समावेशी है, जो समय-समय पर संशोधनों के माध्यम से और अधिक प्रभावी बनाया जाता है।
03. राज्य में राज्यपाल तथा मन्त्रिपरिषद के संबंधों की विवेचना कीजिए।
भारत के संविधान में राज्यपाल और मंत्रिपरिषद के संबंधों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। राज्यपाल किसी राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है, जबकि मुख्यमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिपरिषद वास्तविक कार्यकारी शक्ति का संचालन करता है। दोनों के बीच संबंध संतुलन और समन्वय पर आधारित होते हैं, जहां राज्यपाल की भूमिका सांकेतिक होती है, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में वह स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकता है।
1. राज्यपाल और मंत्रिपरिषद की संवैधानिक स्थिति
(क) राज्यपाल की स्थिति
राज्यपाल की नियुक्ति अनुच्छेद 153 के तहत की जाती है। अनुच्छेद 154 के अनुसार, राज्य की कार्यकारी शक्ति राज्यपाल में निहित होती है, लेकिन वह इस शक्ति का प्रयोग मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह से करता है।
(ख) मंत्रिपरिषद की स्थिति
अनुच्छेद 163 के अनुसार, राज्यपाल को एक मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से कार्य करना होता है, जिसका नेतृत्व मुख्यमंत्री करता है। मंत्रिपरिषद राज्य की नीतियों और प्रशासनिक निर्णयों का संचालन करता है।
2. राज्यपाल और मंत्रिपरिषद के बीच संबंध
(क) सामान्य परिस्थितियों में संबंध
कार्यपालिका का प्रमुख – राज्यपाल संवैधानिक प्रमुख होता है, लेकिन वास्तविक सत्ता मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद के पास होती है।
मंत्रिपरिषद की नियुक्ति – मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करता है और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति मुख्यमंत्री की सलाह पर की जाती है।
परामर्श और मार्गदर्शन – राज्यपाल मंत्रिपरिषद को परामर्श और मार्गदर्शन दे सकता है, लेकिन वह मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना कोई कार्य नहीं कर सकता।
विधानसभा का सत्र बुलाना और भंग करना – राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह पर विधानसभा का सत्र बुलाता और भंग करता है।
विधेयकों को स्वीकृति – विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर राज्यपाल की स्वीकृति आवश्यक होती है, हालांकि वह कुछ विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेज सकता है।
(ख) असाधारण परिस्थितियों में संबंध
कुछ परिस्थितियों में राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना या उसके खिलाफ कार्य कर सकता है –
मुख्यमंत्री की नियुक्ति (अनुच्छेद 164) – जब किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता, तो राज्यपाल अपने विवेक से मुख्यमंत्री की नियुक्ति कर सकता है।
विधानसभा को भंग करना (अनुच्छेद 174) – यदि कोई सरकार अल्पमत में आ जाती है, तो राज्यपाल अपनी विवेकाधिकार शक्ति का प्रयोग करके विधानसभा को भंग कर सकता है।
अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू करना – यदि राज्यपाल को लगता है कि राज्य सरकार संवैधानिक रूप से कार्य करने में असमर्थ है, तो वह राष्ट्रपति को अनुच्छेद 356 के तहत रिपोर्ट भेज सकता है।
विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजना (अनुच्छेद 200) – राज्यपाल कुछ विधेयकों को राष्ट्रपति के विचारार्थ भेज सकता है, विशेषकर जब वे संविधान के विरुद्ध प्रतीत होते हैं।
संविधान का संरक्षण – यदि राज्य सरकार असंवैधानिक कार्य करती है, तो राज्यपाल अपने विवेकाधिकार का प्रयोग कर सकता है।
3. राज्यपाल और मंत्रिपरिषद के बीच संभावित विवाद
राजनीतिक हस्तक्षेप – कभी-कभी राज्यपाल पर राजनीतिक दलों का प्रभाव रहता है, जिससे मंत्रिपरिषद के साथ उसका टकराव हो सकता है।
राज्यपाल की विवेकाधिकार शक्तियाँ – कुछ मामलों में राज्यपाल की विवेकाधिकार शक्तियाँ मंत्रिपरिषद के निर्णयों से टकरा सकती हैं।
सरकार का बहुमत साबित करना – जब कोई सरकार बहुमत खो देती है, तो राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच मतभेद हो सकते हैं।
राष्ट्रपति शासन की सिफारिश – यदि राज्यपाल अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करता है, तो यह राज्य सरकार के लिए संकट उत्पन्न कर सकता है।
4. संबंधों का संतुलन और समाधान
संवैधानिक मर्यादा का पालन – राज्यपाल को संविधान की भावना के अनुसार कार्य करना चाहिए और मंत्रिपरिषद की सलाह का सम्मान करना चाहिए।
न्यायपालिका का हस्तक्षेप – यदि कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो न्यायपालिका संवैधानिक दायरे में रहकर समाधान प्रदान कर सकती है।
राजनीतिक हस्तक्षेप से बचाव – राज्यपाल को निष्पक्ष रहकर अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करना चाहिए।
सहयोग और समन्वय – राज्यपाल और मंत्रिपरिषद को मिलकर राज्य के विकास के लिए कार्य करना चाहिए।
निष्कर्ष
राज्यपाल और मंत्रिपरिषद के बीच संबंध संवैधानिक संतुलन पर आधारित होते हैं। सामान्य परिस्थितियों में राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह से कार्य करना होता है, लेकिन असाधारण स्थितियों में वह अपने विवेक का प्रयोग कर सकता है। हालांकि, यह आवश्यक है कि राज्यपाल और मंत्रिपरिषद के बीच सहयोग और समन्वय बना रहे, ताकि लोकतांत्रिक शासन सुचारू रूप से कार्य कर सके और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा हो।
04. भारतीय प्रशासन की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
भारतीय प्रशासन एक विशाल और जटिल प्रणाली है, जो देश की विविधता, लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक संरचना के अनुरूप कार्य करती है। यह प्रशासनिक व्यवस्था संविधान के अनुच्छेद 52-123 (केंद्र सरकार के लिए) और अनुच्छेद 153-213 (राज्य सरकार के लिए) के तहत संचालित होती है। इसकी विशेषताएँ इसे प्रभावी, लचीला और समावेशी बनाती हैं।
भारतीय प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ
1. लोकतांत्रिक प्रशासन
भारतीय प्रशासन लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर आधारित है। संविधान में न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसे मूल्यों को प्राथमिकता दी गई है। प्रशासन जनता के प्रति उत्तरदायी होता है और नागरिकों के अधिकारों एवं स्वतंत्रताओं की रक्षा करता है।
2. संघीय प्रशासन
भारत एक संघीय राष्ट्र है, जहाँ प्रशासन केंद्र और राज्यों के बीच विभाजित है। अनुच्छेद 246 के अनुसार, प्रशासनिक कार्य तीन सूचियों में विभाजित हैं:
संघ सूची (केवल केंद्र सरकार)
राज्य सूची (केवल राज्य सरकार)
समवर्ती सूची (दोनों सरकारें)
3. लोक सेवा आयोगों की स्वतंत्रता
संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) और राज्य लोक सेवा आयोग (SPSC) भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था की रीढ़ हैं। ये आयोग निष्पक्ष भर्ती प्रक्रिया सुनिश्चित करते हैं और प्रशासनिक सेवाओं की गुणवत्ता बनाए रखते हैं।
4. अखिल भारतीय सेवाएँ
भारतीय प्रशासन में अखिल भारतीय सेवाएँ (IAS, IPS, IFS आदि) महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये अधिकारी केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर प्रशासन का संचालन करते हैं और नीतियों के कार्यान्वयन में सहयोग देते हैं।
5. नौकरशाही पर आधारित प्रणाली
भारतीय प्रशासन वेबरियन मॉडल की नौकरशाही पर आधारित है, जिसमें क्रमबद्ध पदानुक्रम, नियमों के अनुसार कार्य, निष्पक्षता और स्थायित्व की विशेषताएँ शामिल हैं।
6. कल्याणकारी प्रशासन
संविधान के राज्य नीति के निदेशक तत्वों (DPSP, अनुच्छेद 36-51) के तहत सरकार का उद्देश्य समाजवादी, कल्याणकारी और समतामूलक प्रशासन प्रदान करना है।
गरीबी उन्मूलन
शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाएँ
सामाजिक न्याय और आरक्षण नीति
7. विकेंद्रीकरण
भारतीय प्रशासन केन्द्र, राज्य और स्थानीय निकायों में विभाजित है। 73वां और 74वां संविधान संशोधन (1992) स्थानीय शासन को मजबूत करता है, जिससे पंचायती राज प्रणाली और नगरीय निकायों को अधिक शक्तियाँ प्राप्त हुईं।
8. न्यायिक नियंत्रण और उत्तरदायित्व
भारतीय प्रशासन न्यायपालिका के नियंत्रण में कार्य करता है। जनहित याचिका (PIL), न्यायिक समीक्षा और मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के माध्यम से प्रशासनिक निर्णयों की वैधता सुनिश्चित की जाती है।
9. ई-गवर्नेंस और आधुनिक तकनीकों का उपयोग
सरकार प्रशासन को डिजिटल रूप में बदलने के लिए ई-गवर्नेंस को बढ़ावा दे रही है। डिजिटलीकरण से पारदर्शिता, जवाबदेही और नागरिक सेवाओं की दक्षता में वृद्धि हुई है। प्रमुख ई-गवर्नेंस पहलें:
डिजीलॉकर
आधार
उमंग ऐप
डिजिटल इंडिया अभियान
10. भ्रष्टाचार एवं सुधार के प्रयास
भारतीय प्रशासन भ्रष्टाचार की समस्या से प्रभावित है, लेकिन इसे कम करने के लिए RTI (सूचना का अधिकार) अधिनियम 2005, लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 जैसे सुधार किए गए हैं।
निष्कर्ष
भारतीय प्रशासन एक लोकतांत्रिक, संघीय और कल्याणकारी व्यवस्था पर आधारित है, जो पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और दक्षता पर बल देता है। हालाँकि, भ्रष्टाचार, लालफीताशाही और धीमी नौकरशाही जैसी चुनौतियाँ भी मौजूद हैं। फिर भी, तकनीकी विकास और प्रशासनिक सुधारों के माध्यम से यह व्यवस्था निरंतर उन्नति कर रही है, जिससे सुशासन और नागरिकों की भलाई सुनिश्चित की जा सके।
05. राज्य प्रशासन में मुख्य सचिव की भूमिका की व्याख्या करें।
राज्य प्रशासन में मुख्य सचिव (Chief Secretary) सबसे वरिष्ठ आईएएस (IAS) अधिकारी होता है, जो राज्य सरकार का प्रमुख कार्यकारी अधिकारी होता है। वह मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद का प्रमुख सलाहकार होता है और राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के बीच समन्वय स्थापित करता है।
मुख्य सचिव का कार्य प्रशासनिक नीति निर्माण, सुशासन, आपातकालीन स्थितियों से निपटने, तथा केंद्र और राज्य सरकार के बीच समन्वय बनाए रखना है। उसे राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्रियों और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों के साथ मिलकर राज्य की कार्यप्रणाली को सुचारू रूप से संचालित करना होता है।
मुख्य सचिव की नियुक्ति एवं कार्यकाल
मुख्य सचिव की नियुक्ति राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा की जाती है।
आमतौर पर, यह पद सबसे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी को दिया जाता है।
कार्यकाल निश्चित नहीं होता, यह पूरी तरह से मुख्यमंत्री की इच्छानुसार होता है।
राज्य प्रशासन में मुख्य सचिव की भूमिका
1. मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद का प्रमुख सलाहकार
मुख्य सचिव मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद को प्रशासनिक मामलों में सलाह देता है। वह सरकार की नीतियों और योजनाओं को लागू करने में मदद करता है।
2. विभागों के बीच समन्वयक
मुख्य सचिव विभिन्न प्रशासनिक विभागों के बीच तालमेल बनाकर उन्हें सुचारू रूप से कार्य करने में मदद करता है। वह सरकारी योजनाओं और नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करता है।
3. प्रशासनिक प्रमुख
मुख्य सचिव राज्य सचिवालय का प्रमुख होता है और सभी महत्वपूर्ण फाइलें एवं नीतिगत निर्णय उसकी निगरानी में लिए जाते हैं।
4. कानून व्यवस्था की देखरेख
राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखने में मुख्य सचिव की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वह गृह विभाग और पुलिस विभाग के साथ समन्वय स्थापित करता है।
5. केंद्र और राज्य सरकार के बीच समन्वय
मुख्य सचिव केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच संपर्क सूत्र के रूप में कार्य करता है और केंद्र की नीतियों को राज्य में लागू कराने में मदद करता है।
6. वित्तीय प्रशासन का संचालन
मुख्य सचिव बजट, वित्तीय नीति और आर्थिक योजनाओं को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
7. आपदा प्रबंधन एवं संकट नियंत्रण
प्राकृतिक आपदा, महामारी या किसी भी संकट की स्थिति में मुख्य सचिव राहत एवं पुनर्वास कार्यों का नेतृत्व करता है।
8. राज्यपाल और उच्च न्यायालय के साथ समन्वय
मुख्य सचिव राज्यपाल और उच्च न्यायालय के प्रशासनिक कार्यों में भी सहयोग करता है।
निष्कर्ष
मुख्य सचिव राज्य सरकार का प्रमुख नौकरशाह होता है, जो प्रशासनिक कार्यों की देखरेख करता है और सरकार की योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वह नीतियों के निर्माण, सुशासन, कानून-व्यवस्था, वित्तीय प्रबंधन और केंद्र-राज्य समन्वय में एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करता है।
SHORT ANSWER TYPE QUESTIONS
01. मन्त्रिपरिषद के गठन एवं कार्यों का वर्णन करें।
भारतीय लोकतंत्र में मंत्रिपरिषद (Council of Ministers) कार्यपालिका का सबसे महत्वपूर्ण अंग है, जो सरकार की नीतियों और प्रशासनिक कार्यों का संचालन करती है। संविधान के अनुसार, मंत्रिपरिषद का नेतृत्व प्रधानमंत्री करता है, और इसके सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाते हैं।
1. मंत्रिपरिषद का गठन
(क) संवैधानिक प्रावधान
अनुच्छेद 74(1): भारत के राष्ट्रपति को एक मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से कार्य करना होता है, जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होता है।
अनुच्छेद 75: राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की सलाह पर मंत्रियों की नियुक्ति करता है।
अनुच्छेद 77: मंत्रिपरिषद की कार्यप्रणाली को नियंत्रित करता है।
(ख) मंत्रिपरिषद के स्तर
भारतीय मंत्रिपरिषद को तीन स्तरों में बाँटा गया है:
कैबिनेट मंत्री (Cabinet Ministers)
ये सरकार के सबसे वरिष्ठ मंत्री होते हैं।
यह नीति-निर्माण और महत्वपूर्ण निर्णयों में शामिल होते हैं।
इनका नेतृत्व प्रधानमंत्री करते हैं।
राज्य मंत्री (Ministers of State)
इन्हें किसी स्वतंत्र विभाग का कार्यभार दिया जा सकता है या कैबिनेट मंत्री की सहायता के लिए नियुक्त किया जाता है।
उपमंत्री (Deputy Ministers)
ये कैबिनेट या राज्य मंत्रियों की सहायता के लिए होते हैं और स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं करते।
2. मंत्रिपरिषद के कार्य
(क) विधायी कार्य
संसद में विधेयक प्रस्तुत करना और पारित करवाना।
विभिन्न नीतियों और कानूनों को लागू करना।
अध्यादेश जारी करने की सिफारिश करना।
(ख) कार्यपालिका कार्य
देश की नीतियों और योजनाओं को क्रियान्वित करना।
प्रशासनिक निर्णयों को लागू करना।
सरकारी विभागों का प्रबंधन करना।
(ग) वित्तीय कार्य
वार्षिक बजट तैयार करना और संसद में पेश करना।
राजस्व संग्रह और व्यय की निगरानी करना।
करों और अन्य वित्तीय नीतियों को लागू करना।
(घ) रक्षा और विदेश नीति
देश की रक्षा और सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करना।
विदेश नीति को निर्धारित करना और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को बनाए रखना।
युद्ध और शांति से जुड़े निर्णय लेना।
(ङ) राष्ट्रपति को सलाह देना
राष्ट्रपति को विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों पर सलाह देना।
राष्ट्रपति को संसद भंग करने, अध्यादेश जारी करने और अन्य संवैधानिक कार्यों के लिए सलाह देना।
(च) न्यायिक कार्य
राष्ट्रपति के माध्यम से दया याचिकाओं पर विचार करना।
न्यायपालिका की स्वतंत्रता और कार्यक्षमता को सुनिश्चित करना।
3. मंत्रिपरिषद की सामूहिक एवं व्यक्तिगत उत्तरदायित्व
सामूहिक उत्तरदायित्व (Collective Responsibility) – अनुच्छेद 75(3)
मंत्रिपरिषद संसद के प्रति उत्तरदायी होती है।
यदि लोकसभा मंत्रिपरिषद के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित कर दे, तो पूरी मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना होगा।
व्यक्तिगत उत्तरदायित्व (Individual Responsibility) – अनुच्छेद 75(2)
राष्ट्रपति किसी भी मंत्री को प्रधानमंत्री की सलाह पर पद से हटा सकता है।
प्रत्येक मंत्री अपने विभाग के कार्यों के लिए उत्तरदायी होता है।
निष्कर्ष
मंत्रिपरिषद भारत की कार्यपालिका का महत्वपूर्ण अंग है, जो सरकार की नीतियों, कानूनों, और प्रशासनिक कार्यों को संचालित करता है। यह प्रधानमंत्री के नेतृत्व में कार्य करता है, और इसका मुख्य उद्देश्य जनता के कल्याण के लिए सुशासन स्थापित करना होता है।
02. प्रधानमन्त्री कार्यालय के संगठन एवं कार्यों की विवेचना करें।
प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) का संगठन एवं कार्यों की विवेचना
प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) भारत सरकार का केंद्रीय प्रशासनिक निकाय है, जो प्रधानमंत्री को नीतिगत निर्णयों, प्रशासनिक कार्यों और राष्ट्रीय मुद्दों पर सहायता प्रदान करता है। यह कार्यालय प्रधानमंत्री की शक्तियों और दायित्वों को प्रभावी ढंग से संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
1. प्रधानमंत्री कार्यालय का संगठन
प्रधानमंत्री कार्यालय संविधान में निर्दिष्ट कोई विशेष निकाय नहीं है, बल्कि यह कार्यपालिका के कुशल संचालन के लिए स्थापित एक प्रशासनिक इकाई है। इसका संगठन निम्नलिखित प्रमुख घटकों से मिलकर बना होता है:
(क) प्रधान सचिव (Principal Secretary)
प्रधानमंत्री का मुख्य सलाहकार और प्रमुख नौकरशाह।
नीतिगत निर्णयों और प्रशासनिक कार्यों में प्रधानमंत्री की सहायता करता है।
अन्य विभागों और मंत्रियों के साथ समन्वय स्थापित करता है।
(ख) राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (National Security Advisor - NSA)
राष्ट्रीय सुरक्षा नीति और सामरिक मामलों पर प्रधानमंत्री को सलाह देता है।
आतंकवाद, सीमा सुरक्षा और रक्षा नीति से जुड़े मामलों की निगरानी करता है।
(ग) विभिन्न सचिव (Secretaries to PM)
प्रधानमंत्री को विभिन्न क्षेत्रों जैसे आर्थिक नीति, विदेशी संबंध, आंतरिक प्रशासन, रक्षा नीति और सामाजिक कल्याण पर सलाह देने के लिए सचिव नियुक्त किए जाते हैं।
(घ) प्रधानमंत्री के व्यक्तिगत स्टाफ
निजी सचिव (Private Secretaries)
सूचना अधिकारी (Press Information Officers)
शोधकर्ता एवं तकनीकी सलाहकार
(ङ) नीति विश्लेषण और अनुसंधान प्रभाग
देश की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक नीतियों का विश्लेषण करता है।
नीति आयोग और अन्य थिंक टैंकों के साथ मिलकर सरकार की नीतियों का मूल्यांकन करता है।
2. प्रधानमंत्री कार्यालय के कार्य
प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) मुख्य रूप से सरकारी प्रशासन, नीति निर्माण, राष्ट्रीय सुरक्षा, और अन्य मंत्रालयों के साथ समन्वय जैसे कार्यों में संलग्न रहता है।
(क) प्रशासनिक कार्य
प्रधानमंत्री की सरकारी बैठकों और कार्यक्रमों का संचालन।
विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के कार्यों की निगरानी।
राष्ट्रपति, राज्यपालों और अन्य शीर्ष अधिकारियों से समन्वय।
(ख) नीतिगत कार्य
सरकार की नीतियों और विकास योजनाओं को तैयार करना।
राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर प्रधानमंत्री को सलाह देना।
आर्थिक नीति, कृषि नीति, शिक्षा नीति, और सामाजिक कल्याण योजनाओं की निगरानी।
(ग) राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति
रक्षा मंत्रालय, गृह मंत्रालय और राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों के साथ समन्वय।
राष्ट्रीय आपातकालीन स्थितियों में रणनीतिक निर्णय लेना।
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और विदेश नीति से जुड़े मामलों की निगरानी।
(घ) आर्थिक और वित्तीय कार्य
बजट और आर्थिक नीतियों पर निगरानी रखना।
नीति आयोग और वित्त मंत्रालय के साथ समन्वय करना।
विदेशी निवेश और आर्थिक सुधारों से संबंधित मामलों की देखरेख।
(ङ) लोक शिकायत निवारण (Public Grievance Redressal)
जनहित याचिकाओं और शिकायतों का समाधान।
प्रधानमंत्री के ‘जनता से सीधे संवाद’ कार्यक्रमों का संचालन।
‘प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) वेबसाइट’ और ‘MyGov’ प्लेटफॉर्म के माध्यम से नागरिकों से संवाद।
(च) वैज्ञानिक और तकनीकी विकास
नई तकनीकों और डिजिटल प्रशासन को बढ़ावा देना।
ISRO, DRDO और अन्य वैज्ञानिक संगठनों के साथ समन्वय करना।
डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, और मेक इन इंडिया जैसी पहलों की निगरानी।
3. प्रधानमंत्री कार्यालय की शक्ति और महत्व
(क) केंद्र सरकार का संचालन
PMO को "सरकार के मस्तिष्क" के रूप में जाना जाता है, क्योंकि यह सभी महत्वपूर्ण निर्णयों में प्रधानमंत्री की सहायता करता है।
(ख) केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय
विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ संपर्क बनाए रखना।
राज्य सरकारों को विकास परियोजनाओं के लिए सहायता प्रदान करना।
(ग) आपातकालीन निर्णय लेने की शक्ति
प्राकृतिक आपदाओं और राष्ट्रीय संकट के समय तुरंत निर्णय लेना।
रक्षा, आतंरिक सुरक्षा, और आतंकवाद-निरोधी गतिविधियों की निगरानी।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री कार्यालय भारत सरकार का सबसे प्रभावशाली प्रशासनिक निकाय है, जो प्रधानमंत्री की सहायता करता है और देश के शासन को प्रभावी रूप से संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह सरकारी योजनाओं, नीतियों, राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक प्रबंधन और जनसंपर्क के लिए एक केंद्रीय तंत्र के रूप में कार्य करता है, जिससे प्रशासन को अधिक कुशल और उत्तरदायी बनाया जा सके।
03. भारत में प्रशासनिक चुनौतियों के समाधान हेतु अपने विचार दीजिए।
भारत का प्रशासनिक तंत्र एक विशाल और जटिल प्रणाली है, जो सरकार की नीतियों और योजनाओं को क्रियान्वित करने का कार्य करता है। हालांकि, इसमें भ्रष्टाचार, लालफीताशाही, प्रशासनिक अक्षमता, डिजिटल विभाजन और जवाबदेही की कमी जैसी कई चुनौतियाँ मौजूद हैं। इन चुनौतियों के समाधान के लिए व्यापक सुधारों की आवश्यकता है।
भारत में प्रमुख प्रशासनिक चुनौतियाँ
भ्रष्टाचार और जवाबदेही की कमी
लालफीताशाही और प्रक्रियात्मक देरी
डिजिटल प्रशासन की कमी और तकनीकी पिछड़ापन
नीतियों और योजनाओं का प्रभावी कार्यान्वयन न होना
केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय की कमी
जनसंख्या वृद्धि और प्रशासनिक दबाव
न्यायपालिका में देरी और कानूनी अड़चनें
सार्वजनिक सेवा वितरण में पारदर्शिता की कमी
प्रशासनिक सुधार हेतु समाधान
1. भ्रष्टाचार उन्मूलन और पारदर्शिता बढ़ाना
सूचना का अधिकार (RTI) को और अधिक प्रभावी बनाना।
सरकारी कार्यों की सुनवाई और निर्णय लेने की प्रक्रिया को ऑनलाइन और पारदर्शी बनाना।
भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियों (लोकपाल, सीबीआई, सतर्कता आयोग) को और अधिक स्वतंत्र और प्रभावी बनाना।
प्रशासनिक पदों पर निष्पक्ष और योग्यता आधारित भर्ती की प्रक्रिया अपनाना।
2. लालफीताशाही कम करना और प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सरल बनाना
सरकारी कार्यों में "एकल खिड़की प्रणाली (Single Window System)" को बढ़ावा देना।
सरकारी दस्तावेज़ों और अनुमोदनों के लिए समय सीमा (Time-Bound Services) तय करना।
ई-गवर्नेंस को अपनाकर प्रशासनिक प्रक्रियाओं को तेज और प्रभावी बनाना।
3. डिजिटल प्रशासन और तकनीकी सुधार
सभी सरकारी सेवाओं को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराना।
डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम चलाकर ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में तकनीकी जागरूकता बढ़ाना।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और डेटा एनालिटिक्स का उपयोग कर नीति निर्माण को वैज्ञानिक बनाना।
4. योजनाओं और नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए निगरानी तंत्र
नीतियों के क्रियान्वयन की समीक्षा और मूल्यांकन के लिए स्वतंत्र निकाय गठित करना।
योजनाओं के कार्यान्वयन में स्थानीय प्रशासन और पंचायती राज संस्थाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना।
सरकार द्वारा जारी योजनाओं और उनके परिणामों को जनता के सामने पारदर्शी रूप से प्रस्तुत करना।
5. केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय
केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय और प्रशासनिक शक्तियों का संतुलित वितरण करना।
"सहकारी संघवाद (Cooperative Federalism)" को बढ़ावा देने के लिए नीति आयोग और अन्य अंतर-सरकारी निकायों की भूमिका को मजबूत करना।
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