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Uou BAPY(N)202 4TH SEMESTER , Questions



इकाई-1: सांख्यिकीः अर्थ एवं उपयोग, सांख्यिकी के प्रकार, मनोवैज्ञानिक मापन में सांख्यिकी की सार्थकता (महत्व)

(Statistics: Meaning and Its Uses, Types of Statistics, Significance of Statistics in Psychological Measurement)


प्रश्न 1: सांख्यिकी को परिभाषित कीजिए। मनोविज्ञान एवं शिक्षा के क्षेत्र में सांख्यिकी के विभिन्न उपयोगों एवं महत्व पर विस्तार से प्रकाश डालिए। 💡

उत्तर:

सांख्यिकी गणित की एक महत्वपूर्ण शाखा है जिसका प्रयोग आजकल ज्ञान के लगभग सभी क्षेत्रों में किया जाता है, विशेषकर मनोविज्ञान और शिक्षा में इसका महत्व दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है. यह हमें प्रदत्तों (data) के संकलन, विश्लेषण और निर्वचन से संबंधित नियमों का अध्ययन कराती है.

सांख्यिकी का अर्थ (Meaning of Statistics) 📖

'सांख्यिकी' शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द 'Status', इटैलियन शब्द 'Statista' या जर्मन भाषा के शब्द 'Statistik' से हुई है. इन सभी शब्दों का शाब्दिक अर्थ 'राज्य' तथा 'राजनैतिक कार्य' है. प्राचीन काल में, सांख्यिकी राजनीति का एक अंग थी और इसका प्रयोग राज्य से संबंधित आँकड़ों जैसे जन्म दर, मृत्यु दर, राज्य की आय, उद्योग आदि को एकत्र करने के लिए किया जाता था. 18वीं सदी में जर्मनी में 'स्टैटिस्टिक' नामक एक स्वतंत्र विषय के रूप में इसका अध्ययन शुरू हुआ, लेकिन तब भी इसका क्षेत्र राज्य के मामलों तक ही सीमित था.

आधुनिक समय में, सांख्यिकी का अर्थ प्राचीन काल से बिल्कुल भिन्न है, हालाँकि आँकड़ों को एकत्र करने के अर्थ में इसका प्रयोग आज भी होता है. सांख्यिकी को वैज्ञानिक विधि की वह शाखा माना जाता है जो प्रदत्तों का विवेचन करती है, ये प्रदत्त गणना और मापन से प्राप्त होते हैं.

फरग्यूसन (1971) के अनुसार, "सांख्यिकी वैज्ञानिक विधियन्त्र की वह शाखा है जिसका सम्बन्ध सर्वेक्षणों और परीक्षणों द्वारा प्राप्त होने वाली सामग्री के संकलन, वर्गीकरण और व्याख्या से है". रोस्को ने इसे एक आधुनिक शैक्षिक संकाय के रूप में परिभाषित किया है जो व्यवहारपरक विज्ञानों में पायी जाने वाली मात्रात्मक सूचनाओं के संकलन, व्यवस्थापन, सरलीकरण तथा विश्लेषण की वैज्ञानिक प्रक्रिया प्रदान करती है. संक्षेप में, सांख्यिकी वह विज्ञान है जो घटनाओं की व्याख्या, उनका वर्णन तथा उनकी तुलना के लिए आवश्यक आंकिक तथ्यों के संग्रह, वर्गीकरण एवं सारणीयन से सम्बन्ध रखता है.

मनोवैज्ञानिक एवं शिक्षा के क्षेत्र में सांख्यिकी के उपयोग एवं महत्व (Uses and Importance of Statistics in Psychology and Education) 🌟

आज सामाजिक विज्ञानों, विशेष रूप से मनोविज्ञान, शिक्षाशास्त्र और समाजशास्त्र में, सांख्यिकी का महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है क्योंकि इन विषयों का स्वरूप अधिक वैज्ञानिक होता जा रहा है. सांख्यिकी वैज्ञानिक अनुसंधान में अनेक कार्यों की पूर्ति करती है. इसके प्रमुख उपयोग और महत्व निम्नलिखित हैं:

  1. प्रदत्तों के वर्णन में (In Describing Data) 📊: किसी समस्या के अध्ययन से प्राप्त आँकड़ों या प्रदत्तों का वर्णन करने में अनेक सांख्यिकी विधियाँ उपयोगी हैं. उदाहरण के लिए, प्रदत्तों का आवृत्ति वितरण बनाना, उन्हें विभिन्न प्रकार के रेखाचित्रों (जैसे आवृत्ति बहुभुज, स्ताम्भाकृति, स्तम्भ चित्र, वृत्तचित्र, संचयी बारंबारता वक्र) द्वारा प्रदर्शित करना सांख्यिकी के माध्यम से संभव है. केंद्रीय प्रवृत्ति के मापों (मध्यमान, मध्यांक, बहुलांक) का उपयोग करके भी आँकड़ों का वर्णन किया जाता है. वर्णनात्मक सांख्यिकी विधियों से यह भी ज्ञात किया जा सकता है कि आँकड़ों की प्रकृति समवितरित है या नहीं, और उनमें विषमता या कुकुदता है या नहीं.

  2. प्रदत्तों के सहसंबंध के वर्णन में (In Describing Correlation of Data) 🤝: अनुसंधानकर्ता अक्सर दो या अधिक प्रकार के आँकड़ों या समूहों के बीच पारस्परिक संबंध का अध्ययन करना चाहता है, या यह जानना चाहता है कि वे किस सीमा तक एक-दूसरे से सहसंबंधित हैं. इन प्रश्नों के उत्तर के लिए सांख्यिकी की सहसंबंध विधियों का उपयोग किया जाता है.

  3. प्रतिगमन और भविष्यकथन में (In Regression and Prediction) 🔮: सांख्यिकी की प्रतिगमन और भविष्यकथन से संबंधित विधियों का उपयोग तब किया जाता है जब अनुसंधानकर्ता एक घटना या चर से संबंधित ज्ञान के आधार पर किसी अन्य घटना या चर के संबंध में पूर्वानुमान लगाना चाहता है या भविष्यकथन करना चाहता है. प्रतिगमन दो चरों के अपने मध्यमान से घटने-बढ़ने के बीच का अनुपात भी दर्शाता है.

  4. वैज्ञानिक परिकल्पनाओं के परीक्षण में (In Testing Scientific Hypotheses) ✅: वैज्ञानिक परिकल्पनाओं की जाँच में सांख्यिकी का महत्वपूर्ण उपयोग होता है. जैसे, यह परीक्षण करना कि दस वर्ष के बच्चों में बुद्धि सामान्य रूप से वितरित होती है या नहीं, उपयुक्त सांख्यिकीय परीक्षणों (जैसे टी-परीक्षण, काई-वर्ग परीक्षण, प्रसरण विश्लेषण) की सहायता से किया जा सकता है. इससे यह पता चलता है कि परिकल्पना और प्रतिदर्श के बच्चों में प्राप्तांकों का वितरण एक-दूसरे के कितना अनुरूप है.

  5. प्रतिदर्श चयन में (In Sample Selection) 🎯: अनुसंधानकर्ता अक्सर पूरी जनसंख्या का अध्ययन करने के बजाय उसमें से कुछ अध्ययन इकाइयाँ चुन लेता है, जिन्हें प्रतिदर्श कहते हैं. अध्ययन समस्या की प्रकृति के अनुसार, सांख्यिकी विधियों की सहायता से प्रतिनिधिपूर्ण प्रतिदर्श का चयन किया जाता है और प्रतिदर्श के आकार की गणना भी की जाती है. मनोविज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में अधिकांश अध्ययन प्रतिदर्श पर ही आधारित होते हैं, और सांख्यिकी इसमें सहायक होती है.

  6. साहचर्य के आधार पर कारण-कार्य संबंध में (In Cause-Effect Relationship Based on Association) 🔗: जब अनुसंधानकर्ता स्वतंत्र चर का परतंत्र चर पर पड़ने वाले प्रभाव या कारण-कार्य संबंध का अध्ययन करना चाहता है, तो वह सांख्यिकीय विधियों का सहारा लेता है. उदाहरण के लिए, शिक्षा और आय में संबंध ज्ञात करने के लिए समूहों में अंतर की सार्थकता की जाँच और सहसंबंध की गणना करनी होती है.

  7. मापन और मनोवैज्ञानिक परीक्षणों में (In Measurement and Psychological Tests) 📏: मनोवैज्ञानिक मापन और परीक्षणों के निर्माण में सांख्यिकी विधियाँ अत्यंत उपयोगी हैं. परीक्षणों के निर्माण में पदों का चयन करने, और परीक्षण बन जाने के बाद उसकी विश्वसनीयता और वैधता की गणना करने में सांख्यिकीय विधियों का महत्वपूर्ण योगदान है. सांख्यिकीय विधियों के बिना मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का निर्माण असंभव है.

  8. शैक्षिक व अनुसंधान कार्यों में (In Educational and Research Works) 🎓: शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रमों, शिक्षण और मूल्यांकन विधियों में परिवर्तन की माँग को पूरा करने के लिए विभिन्न प्रकार के शैक्षिक परीक्षण और अनुसंधान कार्य किए जाते हैं. सांख्यिकी की सहायता से इन कार्यों और परीक्षणों की विश्वसनीयता और प्रामाणिकता की जाँच की जाती है, जिससे त्रुटियों का ज्ञान होता है और उनकी उपयोगिता के बारे में भविष्यवाणी भी की जा सकती है.

रीशमैन (Reichmann) के अनुसार, "हम सांख्यिकी के युग में प्रवेश कर चुके हैं। प्राकृतिक घटना एवं मानव और अन्य क्रियाओं के लगभग प्रत्येक पहलू का अब सांख्यिकी के द्वारा मापन किया जाता है और तत्पश्चात् व्याख्या की जाती है". यह कथन मनोविज्ञान और शिक्षा जगत में सांख्यिकी के महत्व को स्पष्ट करता है, जो मनोवैज्ञानिक मापन को वस्तुनिष्ठ और वैज्ञानिक बनाती है.


प्रश्न 2: सांख्यिकी के विभिन्न प्रकारों का विस्तृत वर्णन कीजिए। प्राचलिक एवं अप्राचलिक सांख्यिकी के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए। ⚖️

उत्तर:

सांख्यिकी को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया गया है, जिससे इसके अध्ययन और अनुप्रयोग में सुविधा होती है। मुख्य रूप से इसे प्रक्रिया की आधारभूत मान्यताओं और व्यावहारिक उपयोगिता के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है.

सांख्यिकी के प्रकार (Types of Statistics) 🗂️

I. प्रक्रिया की आधारभूत मान्यताओं के आधार पर (Based on Basic Assumptions of Process) 💡

इस आधार पर सांख्यिकी के दो मुख्य प्रकार हैं:

  1. प्राचलिक सांख्यिकी (Parametric Statistics) 📊:

    • संबंध (Relation): इस सांख्यिकी का संबंध समष्टि (population) के किसी एक विशेष प्राचल (parameter) से होता है, और आँकड़ों के आधार पर प्राचल के संबंध में अनुमान लगाया जाता है.

    • आँकड़ों का स्वरूप (Nature of Data): इस प्रकार की सांख्यिकी में जिस प्रकार के आँकड़ों का विश्लेषण किया जाता है, वे प्रतिदर्श (sample) और सामान्य वितरण (normal distribution) से संबंधित होते हैं. ये आँकड़े आमतौर पर मापन (measurement) से प्राप्त होते हैं, जैसे बुद्धि, ऊँचाई, बोध विस्तार, योग्यता आदि.

    • मान्यताएँ (Assumptions): इसमें प्रतिदर्श की यादृच्छिकता (randomness) तथा विचरण की समजातीयता (homogeneity of variance) को वैध माना जाता है. प्रेक्षण स्वतंत्र और निष्पक्ष होने चाहिए, अर्थात प्रतिदर्श का चयन यादृच्छिक विधि से होना चाहिए. अध्ययन किए जाने वाले चर का मापन अंतराल मापनी (interval scale) पर संभव होना चाहिए, जिससे गणितीय परिकलन जैसे जोड़ना, घटाना, गुणा करना आदि संभव हो सकें.

    • उपयोग की विधियाँ (Methods of Use): इस प्रकार की सांख्यिकी में आँकड़ों की सार्थकता (significance) का अध्ययन मानक त्रुटि (Standard Error), टी-परीक्षण (t-Test), एनोवा (ANOVA), और संबंधित सांख्यिकी विधियों द्वारा किया जाता है. प्रतिगमन की रैखिकता (linearity of regression) आदि के होने पर पियर्सन सहसंबंध गुणांक (Pearson's Product-Moment Correlation) की गणना भी वैध मानी जाती है.

  2. अप्राचलिक सांख्यिकी (Non-Parametric Statistics) 📈:

    • संबंध (Relation): उपर्युक्त के अतिरिक्त, कुछ आँकड़े ऐसे भी होते हैं जहाँ न तो संयोगिक चयन होता है और न ही सामान्य वितरण. इन आँकड़ों की संख्या कम होने के कारण उनका स्वरूप विकृत (distorted) होता है. इनकी एक विशेषता यह भी होती है कि इनका एक समष्टि के प्राचल से संबंध नहीं होता है.

    • नाम (Alternative Name): इन्हें वितरण मुक्त सांख्यिकी (distribution-free statistics) भी कहते हैं, क्योंकि यह उस समष्टि के बारे में कोई विशेष शर्त नहीं रखती जिससे प्रतिदर्श लिया जाता है.

    • आँकड़ों का स्वरूप (Nature of Data): ये आँकड़े अक्सर गुणात्मक होते हैं, जैसे 'हाँ', 'नहीं', या 'उदासीन'; 'सफल', 'असफल' जैसे संवर्गों में विभाजित होते हैं. ऐसे आँकड़े आमतौर पर वर्गीकृत संख्याओं या आवृत्तियों के रूप में होते हैं. इनकी संख्या आमतौर पर 30 से कम होती है, और इनका आधार यादृच्छिक प्रतिचयन या सामान्य वितरण नहीं होता है.

    • मान्यताएँ (Assumptions): हालाँकि इन्हें 'वितरण-मुक्त' कहा जाता है, अप्राचलिक सांख्यिकी की भी अपनी मान्यताएँ होती हैं, जैसे प्रेक्षण निष्पक्ष और स्वतंत्र हों, चर में निरंतरता हो, और आँकड़े क्रमिक मापनी (ordinal scale) या नामित मापनी (nominal scale) पर प्राप्त हुए हों.

    • उपयोग की विधियाँ (Methods of Use): इस प्रकार की सांख्यिकी विधियों में कुछ प्रमुख हैं: मेडियन टेस्ट (Median Test), स्पीयरमैन का कोटि अंतर सहसंबंध (Spearman Rank-difference Correlation), काई-वर्ग टेस्ट (Chi-Square Test).

II. व्यावहारिक उपयोग प्रक्रिया के आधार पर (Based on Practical Application Process) 🛠️

इस आधार पर सांख्यिकी के दो मुख्य प्रकार बताए गए हैं:

  1. वर्णनात्मक सांख्यिकी (Descriptive Statistics) 📝:

    • उद्देश्य (Purpose): इसका प्रयोग किसी समूह अथवा वर्ग के अंकात्मक वर्णन के लिए किया जाता है.

    • प्रक्रिया (Process): इस प्रकार की सांख्यिकी का प्रयोग प्रदत्तों के संकलन (collection), संगठन (organization), प्रस्तुतीकरण (presentation) एवं परिकलन (calculation) से होता है.

    • उपयोग (Application): वर्णनात्मक सांख्यिकी में प्रदत्तों का संकलन करके उन्हें सारणीबद्ध किया जाता है, और प्रदत्तों की विशेषता स्पष्ट करने के लिए कुछ सरल सांख्यिकीय मानों की गणना की जाती है. जैसे:

      • केंद्रीय प्रवृत्ति के मापक (Measures of Central Tendency): मध्यमान (Mean), मध्यांक (Median), बहुलांक (Mode) का प्रयोग समूह या वर्ग की केंद्रीय स्थिति जानने के लिए किया जाता है.

      • विचलन मापक (Measures of Variability): प्रसार (Range), चतुर्थक विचलन (Quartile Deviation), मध्यमान विचलन (Mean Deviation), मानक विचलन (Standard Deviation) आदि का उपयोग समूह की विचलनशीलता या समजातीयता/विषमजातीयता जानने के लिए किया जाता है.

      • सहसंबंध (Correlation): दो या दो से अधिक चरों के बीच संबंध का वर्णन किया जाता है.

      • आलेखीय चित्रण (Graphical Representation): आँकड़ों को सुस्पष्ट और आकर्षक ढंग से प्रदर्शित करने हेतु पाईचित्र (Pie Chart), दंड चित्र (Bar Diagram), आयत चित्र (Histogram), आवृत्ति बहुभुज (Frequency Polygon), ओगाइव (Ogive) आदि विधियों का उपयोग किया जाता है.


      • व्यक्ति की स्थिति (Individual Position): समूह में व्यक्ति की स्थिति को शततमक (percentile) तथा शततमक कोटि (percentile rank) आदि की सहायता से समझा जाता है.

    • उदाहरण (Example): समूह के सदस्यों की लंबाई, भार, बौद्धिक स्तर, सामाजिक स्तर, शैक्षिक स्तर, साक्षरता तथा लड़के-लड़कियों का प्रतिशत ज्ञात करने, औसत ज्ञात करने, या विचलन और सहसंबंध ज्ञात करने के लिए इसका प्रयोग होता है.

  2. निष्कर्षात्मक सांख्यिकी (Inferential Statistics) 🧠:

    • उद्देश्य (Purpose): इसका प्रयोग अधिक बड़े समूहों से संबंधित समस्याओं के अध्ययन के लिए किया जाता है. इस प्रकार की सांख्यिकी में प्रदत्तों के आधार पर समूह के संबंध में अनुमान लगाते हैं या निष्कर्ष निकालते हैं.


    • नाम (Alternative Name): इसे प्रतिदर्शन निगमनात्मक सांख्यिकी (Sampling Inductive Statistics) भी कहते हैं.

    • प्रक्रिया (Process): बहुधा इस सांख्यिकी की सहायता से परिणामों की वैधता की जाँच की जाती है. इसमें अनुमान के लिए अपेक्षाकृत उच्च सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग किया जाता है, जैसे संभावना नियम (Probability Law), मानक त्रुटि (Standard Error), सार्थकता परीक्षण (Significance Test) आदि.


    • अनुमान (Inference): चूंकि समूह विस्तृत होते हैं और उनके सदस्यों की संख्या अधिक होती है, अतः अध्ययनकर्ता अध्ययन के लिए इन बड़े समूहों से प्रतिदर्श चुनकर समस्या का अध्ययन करता है. इस प्रकार प्रतिदर्श के अध्ययन से प्राप्त निष्कर्ष संपूर्ण समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं. संक्षेप में, किसी समूह के संबंध में अनुमान लगाने और पूर्व कथन (prediction) से संबंधित सांख्यिकी को निष्कर्षात्मक सांख्यिकी कहते हैं.


प्राचलिक एवं अप्राचलिक सांख्यिकी के बीच अंतर (Difference Between Parametric and Non-Parametric Statistics) ↔️

ब्राडली (Bradley, 1968) ने अप्राचलिक सांख्यिकी की तुलना प्राचलिक सांख्यिकी से कई आधारों पर की है:

विशेषताएँ (Features)

प्राचलिक सांख्यिकी (Parametric Statistics)

अप्राचलिक सांख्यिकी (Non-Parametric Statistics)

1. व्युत्पत्ति की सरलता (Simplicity of Derivation)

इसकी व्युत्पत्ति के लिए गणित के क्षेत्र में विशेष स्तर की सक्षमता की आवश्यकता होती है.

इसकी व्युत्पत्ति आसान है, अधिकांश अप्राचलिक सांख्यिकी मात्र समायोजी सूत्रों से आसानी से ज्ञात की जा सकती है.

2. अनुप्रयोग की सहजता (Ease of Application)

इसमें उच्च स्तर के गणितीय परिकलन की आवश्यकता होती है (जैसे Mean, SD, t-test, ANOVA).

इसमें कम जटिल गणितीय परिकलन (जैसे रैंकिंग, गिनती, जोड़, घटाव) की आवश्यकता होती है, जिससे इसे व्यवहार में लाना अधिक आसान है.

3. अनुप्रयोग की तीव्रता (Speed of Application)

जब प्रतिदर्श का आकार छोटा होता है, तब प्राचलिक सांख्यिकी का व्यवहारिक उपयोग धीमा हो सकता है.

जब प्रतिदर्श का आकार छोटा होता है, तब इसका व्यवहारिक उपयोग प्राचलिक सांख्यिकी की अपेक्षा अधिक उपयुक्तता के साथ तेजी से किया जा सकता है.

4. अनुप्रयोग का क्षेत्र (Scope of Application)

इसकी पूर्वानुमानित मान्यताएँ या शर्तें काफी सख्त होती हैं, जिससे इसका उपयोग कुछ विशेष प्रतिदर्शों पर ही किया जा सकता है जो सामान्य वितरण पर आधारित हों.

इसकी पूर्वानुमानित मान्यताएँ या शर्तें काफी कम सख्त होती हैं, जिससे इसका उपयोग भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रतिदर्शों पर किया जा सकता है. अतः इसका क्षेत्र बड़ा है.

5. आंकड़ों के प्रकार (Types of Measurement)

इसके प्रयोग में अंतराल आंकड़े (Interval Data) या आनुपातिक आंकड़े (Ratio Data) की आवश्यकता होती है.

इसके प्रयोग में अधिकतर क्रमसूचक आंकड़े (Ordinal Data) की आवश्यकता होती है, लेकिन कभी-कभी नामित आंकड़े (Nominal Data) पर भी इसका प्रयोग किया जा सकता है.

6. पूर्वानुमानों के अतिक्रमण की संभावना (Susceptibility to Assumptions)

इसकी बहुत अधिक पूर्वकल्पनाएँ होती हैं, जिससे शोधकर्ता द्वारा उनके अतिक्रमण की संभावना अधिक होती है.

इसकी पूर्वकल्पनाएँ या अवधारणाएँ कम विस्तृत होती हैं, जिससे शोधकर्ता द्वारा अतिक्रमण करने की संभावना कम से कम होती है. अतिक्रमण को आसानी से पकड़ा जा सकता है.

7. प्रतिदर्श के आकार का प्रभाव (Influence of Sample Size)

जब प्रतिदर्श का आकार 10 या उससे कम होता है, तब इसकी पूर्वकल्पनाओं की अवहेलना स्वाभाविक हो जाती है, जिससे यह कम उपयुक्त होता है.

जब प्रतिदर्श का आकार 10 या उससे कम होता है, तब इसका प्रयोग प्राचलिक सांख्यिकी से अधिक आसान तथा तीव्र होता है. यह अधिक उपयुक्त और लाभदायक होता है.

8. सांख्यिकीय क्षमता (Statistical Efficiency)

जब प्रतिदर्श का आकार बड़ा होता है, तब इसकी सांख्यिकीय क्षमता अप्राचलिक सांख्यिकी से हमेशा अधिक होती है.


व्यवहारिकता के हिसाब से, यह प्राचलिक सांख्यिकी की अपेक्षा अधिक सुविधाजनक है. यदि पूर्वकल्पनाएँ संतुष्ट हों, तो यह प्राचलिक सांख्यिकी से श्रेष्ठ होता है.


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