BAEC(N)120 SOLVED QUESTION 2024 , उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था

 नमस्कार दोस्तो ,

अगर आप उत्तराखंड ओपन यूनिवर्सिटी के बीए प्रथम सेमेस्टर के स्टूडेंट हैं ,और आपका सब्जेक्ट BAEC(N)120 उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था है।  आपके लिए यह पोस्ट बहुत हेल्पफुल रहेगी , क्योंकि इस पोस्ट में आपको पिछले सेमेस्टर के प्रश्न पत्र का हल मिलेगा । 

और यहां प्रश्न पत्र का लिंक भी दिया है जहां से आप इसे डाउनलोड कर सकते हैं -

BAEC(N)120 SOLVED QUESTION 2024 , उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था


                     BAEC(N)120 

            उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था

         SOLVED Question PAPER 2024




प्रश्न 01 उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था को क्या कहा जाता है? उत्तराखंड अर्थव्यवस्था के लिए आय का मुख्य स्रोत क्या है ? उत्तराखंड अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएं क्या है?


उत्तर

परिचय: 

उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था एक मिश्रित अर्थव्यवस्था है, जिसमें कृषि, पर्यटन, उद्योग और सेवाएं प्रमुख भूमिका निभाते हैं। राज्य की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि और पर्यटन पर आधारित है, लेकिन इसमें औद्योगिक विकास और सेवा क्षेत्र का भी महत्वपूर्ण योगदान है। कृषि क्षेत्र में मुख्य फसलें चावल, गेहूं, मक्का, और दालें हैं। इसके अलावा, उत्तराखंड में पर्यटन, विशेष रूप से धार्मिक और प्रकृति पर्यटन, राज्य की आय का प्रमुख स्रोत है। साथ ही, राज्य में जल विद्युत उत्पादन और औद्योगिक क्षेत्रों का भी विकास हो रहा है, जो राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूत बना रहे हैं।

आय का मुख्य स्रोत

उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्वपूर्ण योगदान है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में जहां अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। राज्य की भौगोलिक स्थिति और जलवायु विविधता के कारण यहां विभिन्न प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं। मुख्यतः धान, गेहूं, मक्का, और जौ जैसी खाद्यान्न फसलें प्रमुख हैं। इसके अलावा, राज्य में बागवानी और बागवानी उत्पादों जैसे सेब, नाशपाती, आड़ू, और नींबू वर्गीय फलों का भी उत्पादन होता है।

कृषि उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था में रोजगार सृजन का एक प्रमुख स्रोत है। यह न केवल स्थानीय भोजन की जरूरतों को पूरा करता है, बल्कि कई फसलों का राज्य से बाहर निर्यात भी होता है, जिससे राजस्व में वृद्धि होती है। पर्वतीय क्षेत्रों में जलवायु और मिट्टी की विशेषताओं के अनुसार पारंपरिक कृषि पद्धतियाँ अपनाई जाती हैं, जो स्थानीय पर्यावरण के अनुकूल होती हैं।

हालांकि, राज्य की कृषि अभी भी कई चुनौतियों का सामना कर रही है, जैसे कि सीमित भूमि, सिंचाई सुविधाओं की कमी, और बाजार तक पहुंच में कठिनाइयां। इन चुनौतियों के बावजूद, कृषि उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है और ग्रामीण जीवन के लिए आधारभूत संरचना प्रदान करती है।

उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:


1. पर्यटन: उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पर्यटन है। धार्मिक स्थल (चारधाम), हिल स्टेशन (नैनीताल, मसूरी), और साहसिक पर्यटन (ऋषिकेश, औली) राज्य के प्रमुख आकर्षण हैं।


2. कृषि: राज्य में कृषि एक प्रमुख आय का स्रोत है, जिसमें धान, गेहूं, मक्का, और विभिन्न फलों की फसलें शामिल हैं। विशेष रूप से पर्वतीय क्षेत्रों में पारंपरिक कृषि पद्धतियाँ प्रचलित हैं।


3. जल विद्युत: उत्तराखंड में जल विद्युत उत्पादन एक महत्वपूर्ण उद्योग है, जिससे राज्य को ऊर्जा की आपूर्ति होती है और आर्थिक विकास को समर्थन मिलता है।


4. औद्योगिक विकास: हाल के वर्षों में, उत्तराखंड ने औद्योगिक क्षेत्र में भी प्रगति की है, जिसमें छोटे और मध्यम उद्योग (SMEs) प्रमुख हैं।


5. सेवा क्षेत्र: शिक्षा, स्वास्थ्य, और अन्य सेवाओं में भी राज्य ने विकास किया है, जो स्थानीय रोजगार और आर्थिक गतिविधियों में योगदान देते हैं।


6. सरकारी सहायता और योजनाएं: उत्तराखंड में केंद्र और राज्य सरकार की कई योजनाएं और कार्यक्रम हैं जो विकास, बुनियादी ढांचे, और सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देते हैं।


7. भौगोलिक विविधता: पर्वतीय और पठारी क्षेत्रों में स्थित होने के कारण, उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था में भौगोलिक विविधता की महत्वपूर्ण भूमिका है, जो कृषि, पर्यटन, और जल विद्युत उत्पादन को प्रभावित करती है।


इन विशेषताओं ने उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था को एक विविध और गतिशील स्वरूप प्रदान किया है, जो राज्य के विकास और समृद्धि में योगदान करता है। 


प्रश्न 02 उत्तराखंड में दुग्ध उत्पादन में सुधार के लिए प्रयासों पर एक लेख लिखिए।

उत्तर: 

उत्तराखंड में दुग्ध उत्पादन में सुधार के प्रयास


उत्तराखंड, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और पर्वतीय जीवनशैली के लिए प्रसिद्ध है, दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में भी प्रगति कर रहा है। दुग्ध उत्पादन न केवल राज्य की अर्थव्यवस्था में योगदान करता है बल्कि ग्रामीण आजीविका का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। हालांकि, दुग्ध उत्पादन में सुधार के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं, फिर भी चुनौतियाँ मौजूद हैं। आइए, इन प्रयासों पर एक विस्तृत नज़र डालें:


1. संगठनात्मक सुधार


उत्तराखंड सरकार ने दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न संगठनात्मक सुधार किए हैं। उत्तराखंड राज्य दुग्ध संघ और मिल्क सेंटर्स के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारी समितियों का गठन किया गया है। ये समितियाँ स्थानीय किसानों को बेहतर मूल्य और मार्केट एक्सेस प्रदान करती हैं। 


2. प्रौद्योगिकी और आधुनिकता


दुग्ध उत्पादन में सुधार के लिए तकनीकी हस्तक्षेप पर जोर दिया जा रहा है। आधुनिक दुग्धशाला उपकरण, जैसे कि दूध संग्रहण और प्रसंस्करण मशीनें, किसानों को बेहतर गुणवत्ता और मात्रा सुनिश्चित करने में मदद करती हैं। इसके अलावा, कूलिंग सेंटर और दुग्ध प्रसंस्करण प्लांट्स की स्थापना से दूध की ताजगी और गुणवत्ता को बनाए रखा जाता है।


3. पशुपालन में सुधार


पशुपालन के क्षेत्र में सुधार के लिए विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों को लागू किया गया है। पशुधन बीमा योजना और संजीवनी योजना के माध्यम से पशुओं की स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित की जाती है। इसके अलावा, उच्च उत्पादक नस्लों के गाय और भैंस की आपूर्ति और उनके पालन की तकनीकें किसानों को प्रशिक्षित की जाती हैं।


4. प्रशिक्षण और शिक्षा


किसानों को आधुनिक दुग्ध उत्पादन तकनीकों और प्रबंधन के बारे में जागरूक करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। कृषि विश्वविद्यालयों और विवि द्वारा आयोजित कार्यशालाएं किसानों को नवीनतम अनुसंधान और प्रौद्योगिकी से अवगत कराती हैं।


5. सरकारी योजनाएं और सब्सिडी


सरकार ने दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं और सब्सिडी प्रदान की हैं। प्रधानमंत्री दूध उत्पादन योजना और राष्ट्रीय दुग्ध योजना जैसी योजनाओं के माध्यम से किसानों को वित्तीय सहायता और प्रोत्साहन मिलता है। 


6. मार्केटिंग और वितरण


दुग्ध उत्पादों की बिक्री और वितरण को सुविधाजनक बनाने के लिए सहकारी समितियों और स्थानीय मार्केटिंग चैनलों का विकास किया गया है। दूध और दूध उत्पादों के लिए उचित विपणन नीतियां और वितरण नेटवर्क की स्थापना से उत्पादक और उपभोक्ता के बीच एक सीधा संपर्क स्थापित होता है।


7. सहकारिता और समुदाय भागीदारी


सहकारी समाजोंऔर किसान संगठनों के साथ मिलकर काम करने से क्षेत्रीय भागीदारी को प्रोत्साहन मिलता है। इन संगठनों के माध्यम से किसानों को सामूहिक रूप से संसाधन और जानकारी मिलती है, जिससे उत्पादन और विपणन में सुधार होता है।


निष्कर्ष


उत्तराखंड में दुग्ध उत्पादन में सुधार के लिए किए जा रहे प्रयास राज्य के ग्रामीण विकास और किसानों की आय में वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण हैं। इन प्रयासों के माध्यम से, राज्य में दुग्ध उत्पादन को अधिक कुशल और लाभकारी बनाया जा रहा है, जिससे न केवल किसान बल्कि पूरे राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल रही है। हालांकि चुनौतियां बनी हुई हैं, लेकिन निरंतर प्रयास और सुधार से एक सकारात्मक भविष्य की उम्मीद की जा सकती है।




प्रश्न 03 उत्तराखंड में सिंचाई व्यवस्था पर विस्तृत आलेख लिखिए तथा भविष्य में सिंचाई व्यवस्था में कुशल प्रबंधन हेतु सुझाव दीजिए।

उत्तर:


परिचय


उत्तराखंड, अपनी उचाई और पर्वतीय परिदृश्य के कारण, सिंचाई के दृष्टिकोण से विभिन्न चुनौतियों का सामना करता है। खेती के लिए जल आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए, राज्य में विभिन्न सिंचाई व्यवस्थाएँ स्थापित की गई हैं। लेकिन, इन व्यवस्थाओं में सुधार और कुशल प्रबंधन की आवश्यकता है ताकि कृषि उत्पादकता को बढ़ाया जा सके और जल संसाधनों का उचित उपयोग हो सके।


वर्तमान सिंचाई व्यवस्था


1. परंपरागत विधियाँ:

   - खाल और नाले: उत्तराखंड में परंपरागत सिंचाई विधियाँ जैसे कि खाल (संग्रहित पानी का स्थान) और नाले का उपयोग बड़े पैमाने पर होता है। ये विधियाँ पहाड़ी क्षेत्रों में पानी के वितरण के लिए अपनाई जाती हैं।

   - बूंद-बूंद सिंचाई: कई क्षेत्रों में पुराने कुओं और नलकूपों के माध्यम से सिंचाई की जाती है।


2. सरकारी योजनाएँ :

   - मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत सिंचाई परियोजनाओं को बढ़ावा दिया जाता है। इसमें जलाशयों, चेक डैम, और सिंचाई नहरों का निर्माण शामिल है।

   - मौसम आधारित सिंचाई: कुछ क्षेत्रों में मौसम पूर्वानुमान के आधार पर सिंचाई की जाती है, जिससे सूखे की स्थिति में जल आपूर्ति का प्रबंधन किया जा सके।


3. सिंचाई नेटवर्क:

   - नहर प्रणाली: उत्तराखंड में सिंचाई के लिए एक विस्तृत नहर प्रणाली का निर्माण किया गया है, जो मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में जल वितरण में सहायक है।

   - वृष्टि आधारित सिंचाई: वर्षा आधारित सिंचाई प्रणाली का भी उपयोग किया जाता है, जिसमें वर्षा के पानी को संचित कर खेती के लिए उपयोग किया जाता है।


भविष्य में सिंचाई व्यवस्था में कुशल प्रबंधन के सुझाव


1. जल संरक्षण तकनीकें:

   - ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर सिस्टम : पानी की बचत और अधिक प्रभावी सिंचाई के लिए ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर प्रणाली को बढ़ावा देना चाहिए। इन तकनीकों से पानी की बचत होती है और फसलों को आवश्यक जल मिल पाता है।

   - वृष्टि जल संचयन: वर्षा के पानी को संचित करने के लिए चेक डैम, जलाशय, और वर्षा जल संचयन टैंक स्थापित किए जाने चाहिए।


2. सिंचाई अवसंरचना का सुधार:

   - नहरों और पाइपलाइनों का पुनर्निर्माण : पुराने और जर्जर नहरों और पाइपलाइनों का पुनर्निर्माण और मरम्मत आवश्यक है। इससे जल का उचित वितरण सुनिश्चित किया जा सकेगा।

   - स्मार्ट सिंचाई तकनीकें: स्मार्ट सेंसर्स और IoT आधारित सिंचाई प्रणालियों का उपयोग करके सिंचाई को अधिक कुशल और स्वचालित बनाया जा सकता है।


3. जल प्रबंधन और नीति सुधार:

   - जल उपयोग पर नीतिगत सुधार: जल उपयोग और वितरण पर प्रभावी नीतियों और नियमों की आवश्यकता है, जो जल संसाधनों के समुचित प्रबंधन को सुनिश्चित करें।

   - समुदाय आधारित जल प्रबंधन: स्थानीय समुदायों को जल प्रबंधन में शामिल करना चाहिए ताकि वे जल संसाधनों के संरक्षण और उपयोग में सक्रिय भूमिका निभा सकें।


4. शिक्षा और प्रशिक्षण:

   - किसानों को प्रशिक्षण: किसानों को आधुनिक सिंचाई तकनीकों और जल प्रबंधन के बारे में प्रशिक्षित करना चाहिए। इससे वे बेहतर तरीके से सिंचाई का प्रबंधन कर सकेंगे।

   - सार्वजनिक जागरूकता अभियान: जल संरक्षण और सिंचाई के महत्व के बारे में लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए अभियान चलाए जाने चाहिए।


5. अनुसंधान और विकास:

   - नई तकनीकों का विकास: सिंचाई में नई और उन्नत तकनीकों के विकास और अनुसंधान को बढ़ावा देना चाहिए। इससे सिंचाई के क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा मिलेगा और अधिक प्रभावी समाधान मिलेंगे।

   - जलवायु परिवर्तन का अध्ययन: जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझने के लिए अनुसंधान किया जाना चाहिए, जिससे सिंचाई की योजनाओं में आवश्यक बदलाव किए जा सकें।


निष्कर्ष


उत्तराखंड में सिंचाई व्यवस्था की मौजूदा स्थिति में सुधार के लिए विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन जल संसाधनों के कुशल प्रबंधन के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है। जल संरक्षण, अवसंरचना का सुधार, नीतिगत सुधार, और समुदाय आधारित प्रबंधन से राज्य की सिंचाई व्यवस्था को अधिक प्रभावी और स्थायी बनाया जा सकता है। इस तरह के सुधारों से न केवल कृषि उत्पादकता में वृद्धि होगी बल्कि ग्रामीण जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार होगा।


प्रश्न 04 उत्तराखंड में औद्योगिक नीति का आरंभ कब हुआ? औद्योगिक नीति के क्या उद्देश्य हैं?

उत्तर: 


औद्योगिक नीति का आरंभ


उत्तराखंड में औद्योगिक नीति की शुरुआत 2001 में हुई, जब राज्य ने उत्तराखंड औद्योगिक नीति 2001 को लागू किया। इस नीति का उद्देश्य उत्तराखंड के औद्योगिक क्षेत्र को बढ़ावा देना और राज्य में औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करना था। इसके अंतर्गत औद्योगिक क्षेत्र को स्थिर और विकसित करने के लिए विभिन्न योजनाएं और प्रोत्साहन प्रदान किए गए।


औद्योगिक नीति के उद्देश्य


1. औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करना: राज्य में औद्योगिक आधारभूत संरचना का विकास करके नए उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहित करना।


2. निवेश को आकर्षित करना: बाहरी और आंतरिक निवेशकों को आकर्षित करने के लिए प्रोत्साहन और सुविधाएं प्रदान करना। यह राज्य की आर्थिक वृद्धि और रोजगार सृजन में मदद करता है।


3. रोजगार सृजन: नए उद्योगों की स्थापना के माध्यम से स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसरों का सृजन करना, जिससे बेरोजगारी की समस्या को कम किया जा सके।


4. आधिकारिक अधोसंरचना का विकास: औद्योगिक क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे जैसे कि सड़कों, बिजली, पानी, और संचार सुविधाओं का विकास करना, ताकि औद्योगिक गतिविधियों के लिए अनुकूल माहौल सुनिश्चित किया जा सके।


5. स्थानीय संसाधनों का उपयोग: स्थानीय संसाधनों और कच्चे माल का उपयोग करके औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा देना, जिससे ग्रामीण और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को बल मिले।


6. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग (MSMEs) का समर्थन: छोटे और मध्यम उद्योगों के लिए विशेष प्रोत्साहन योजनाएं लागू करना ताकि ये उद्योग भी आर्थिक विकास में योगदान कर सकें।


7. आवश्यक औद्योगिक नीतियों का निर्माण: औद्योगिक क्षेत्र के लिए नीतिगत समर्थन और स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रदान करना, जो उद्योगों को स्थिरता और वृद्धि में मदद करता है।


8. स्वतंत्रता और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना: उद्योगों को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए उनके विकास में बाधाओं को दूर करना और स्वतंत्रता प्रदान करना।


उत्तराखंड की औद्योगिक नीति ने इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए विभिन्न प्रोत्साहन और योजनाओं को लागू किया है, जो राज्य के औद्योगिक विकास को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।


प्रश्न 05   2008 की विशेष एकीकृत औद्योगिक प्रोत्साहन नीति की महत्वपूर्ण विशेषताएं बताइए। 

उत्तर:

2008 की विशेष एकीकृत औद्योगिक प्रोत्साहन नीति की महत्वपूर्ण विशेषताएं


2008 की विशेष एकीकृत औद्योगिक प्रोत्साहन नीति (Special Integrated Industrial Promotion Policy) का उद्देश्य उत्तराखंड में औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करना और क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करना था। इस नीति की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:


1. उद्योगों के लिए प्रोत्साहन: 

   - करों में छूट: नई और मौजूदा औद्योगिक इकाइयों के लिए टैक्स और शुल्क में छूट प्रदान की गई। विशेष रूप से, बुनियादी ढांचे में निवेश के लिए कर रियायतें और अन्य वित्तीय लाभ शामिल थे।

   - अनुदान और सब्सिडी: उद्योगों को पूंजीगत निवेश, प्रौद्योगिकी उन्नयन, और अन्य प्रमुख क्षेत्रों में अनुदान और सब्सिडी देने का प्रावधान था।


2. भौगोलिक प्राथमिकताएं:

   - अल्पविकसित क्षेत्रों पर ध्यान: नीति ने औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए उत्तराखंड के पिछड़े और अल्पविकसित क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया, जिससे इन क्षेत्रों में औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा मिल सके।


3. वित्तीय सहायता:

   - ब्याज सब्सिडी: औद्योगिक इकाइयों को बैंकों से ऋण लेने पर ब्याज सब्सिडी प्रदान की गई, जिससे औद्योगिक पूंजी की लागत को कम किया जा सके।

   - प्रारंभिक पूंजी अनुदान: नए उद्योगों को प्रारंभिक पूंजी के रूप में अनुदान और वित्तीय सहायता प्रदान की गई।


4. संरचनात्मक और बुनियादी ढांचा विकास:

   - औद्योगिक क्षेत्रों का विकास: औद्योगिक क्षेत्रों और पार्कों की स्थापना को बढ़ावा देने के लिए बुनियादी ढांचा और सुविधाओं का विकास किया गया।

   - सड़क और परिवहन सुविधा: औद्योगिक क्षेत्रों को बेहतर सड़कों और परिवहन नेटवर्क से जोड़ने के लिए सुविधाएं प्रदान की गईं।


5. प्रशिक्षण और मानव संसाधन विकास:

   - कर्मचारी प्रशिक्षण: उद्योगों के कर्मचारियों के लिए कौशल विकास और प्रशिक्षण कार्यक्रमों की व्यवस्था की गई, जिससे उनके कामकाजी कौशल में सुधार हो सके।

   - शैक्षिक संस्थानों का सहयोग: उद्योग और शैक्षिक संस्थानों के बीच साझेदारी को प्रोत्साहित किया गया, जिससे उद्योगों की आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान किया जा सके।


6. सार्वजनिक और निजी भागीदारी:

   - पीपीपी मॉडल: सार्वजनिक-निजी साझेदारी (PPP) मॉडल के माध्यम से औद्योगिक परियोजनाओं की योजना और कार्यान्वयन को प्रोत्साहित किया गया।


7. उद्योगों के लिए विशेष क्षेत्रीय प्रोत्साहन:

   - नियंत्रित क्षेत्र: उत्तराखंड के विशेष क्षेत्रों में उद्योगों को अतिरिक्त प्रोत्साहन और समर्थन प्रदान किया गया, जिससे इन क्षेत्रों में औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा मिल सके।


8. पारदर्शिता और आसान प्रक्रिया:

   - विवेकाधीन निर्णय: औद्योगिक इकाइयों के लिए आवेदन और अनुमोदन की प्रक्रियाओं को सरल और पारदर्शी बनाने के लिए कदम उठाए गए।


निष्कर्ष


2008 की विशेष एकीकृत औद्योगिक प्रोत्साहन नीति उत्तराखंड में औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करती है। इस नीति के माध्यम से, राज्य ने औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा देने, निवेश आकर्षित करने, और क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।


Section B 


प्रश्न 01 उत्तराखंड में पलायन की मुख्य वजह क्या है? सरकार द्वारा फ्लाइंग को रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?

उत्तर: 

उत्तराखंड में पलायन की सबसे बड़ी वजहें निम्नलिखित हैं:


1. आर्थिक अवसरों की कमी: ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों की कमी और सीमित आय के कारण लोग रोजगार की तलाश में बड़े शहरों या अन्य राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं।


2. प्राकृतिक आपदाएँ: उत्तराखंड में समय-समय पर आने वाली प्राकृतिक आपदाएँ, जैसे भूस्खलन, बाढ़, और भूकंप, ग्रामीण जीवन को प्रभावित करती हैं, जिससे लोग अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों की ओर चले जाते हैं।


3. कृषि की घटती उत्पादकता: पहाड़ी क्षेत्रों में खेती की समस्याएँ, जैसे की भूमि की कमी, जल की समस्या, और उन्नत कृषि तकनीकों की कमी, कृषि की उत्पादकता को प्रभावित करती हैं, जिससे ग्रामीण लोग अन्य रोजगार की तलाश में पलायन करते हैं।


4. शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी: ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी भी पलायन का एक प्रमुख कारण है, क्योंकि लोग बेहतर सुविधाओं के लिए शहरों की ओर रुख करते हैं।


5. अधोसंरचना की कमी: सड़कों, बिजली, और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी भी पलायन का एक कारण है। इन सुविधाओं के अभाव में जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है, जिससे लोग शहरों की ओर पलायन करते हैं।


उत्तराखंड सरकार द्वारा उठाए गए कदम


उत्तराखंड सरकार ने पलायन को रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं, जिनमें शामिल हैं:


1. रोजगार सृजन की योजनाएँ:

   - मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम): ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए, जिसमें सार्वजनिक कार्यों और विकास परियोजनाओं के माध्यम से रोजगार सृजन किया जाता है।

   - स्वावलंबन योजना: युवाओं और महिलाओं को स्वरोजगार की ओर प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न वित्तीय सहायता और प्रोत्साहन योजनाएँ।


2. कृषि विकास और समर्थन:

   - उन्नत कृषि तकनीकें: आधुनिक कृषि तकनीकों, जैसे ड्रिप सिंचाई और उन्नत बीजों का प्रचार और प्रशिक्षण।

   - कृषि सब्सिडी: किसानों को वित्तीय सहायता और सब्सिडी प्रदान करना ताकि वे अधिक उत्पादकता प्राप्त कर सकें।


3. बुनियादी ढाँचे का विकास:

   - सड़क और परिवहन परियोजनाएँ: ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों और परिवहन नेटवर्क का सुधार और विकास।

   - जल और बिजली परियोजनाएँ: जल और बिजली की आपूर्ति को बेहतर बनाने के लिए नई परियोजनाओं का कार्यान्वयन।


4. स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाएँ:

   - स्वास्थ्य केंद्रों का विस्तार: ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता बढ़ाने के लिए नए स्वास्थ्य केंद्रों का निर्माण।

   - शिक्षा की गुणवत्ता सुधार: स्कूलों की स्थिति सुधारने और शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए विभिन्न योजनाएँ।


5. पर्यटन और ग्रामीण विकास:

   - पर्यटन विकास योजनाएँ: ग्रामीण पर्यटन को प्रोत्साहित करने के लिए योजनाएँ और परियोजनाएँ, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिले।

6. स्वास्थ्य और सुरक्षा:

   - आपदा प्रबंधन योजनाएँ: प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन और पुनर्वास के लिए योजनाएँ और उपाय, ताकि प्रभावित क्षेत्रों में निवासियों की सहायता की जा सके।


इन उपायों के माध्यम से, उत्तराखंड सरकार पलायन की समस्याओं को संबोधित करने और ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता को सुधारने की दिशा में काम कर रही है। हालांकि, इन प्रयासों की प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए निरंतर निगरानी और सुधार की आवश्यकता है।


प्रश्न 02 उत्तराखंड में यातायात और संचार संबंधी अधोसंरचना पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर: 

उत्तराखंड की भौगोलिक विविधता और पर्वतीय इलाके यातायात और संचार के विकास में विशेष चुनौतियां पेश करते हैं। 


यातायात अधोसंरचना:

1. सड़क नेटवर्क: राज्य में सड़कों की एक विस्तृत नेटवर्क है, जिसमें राष्ट्रीय और राज्य राजमार्ग शामिल हैं। हालांकि, पर्वतीय क्षेत्रों में सड़कें अक्सर संकरी और कठिन होती हैं, जिससे यात्रा की स्थिति प्रभावित होती है। विशेषकर बर्फबारी और भूस्खलनों के दौरान सड़कों की स्थिति और भी बिगड़ जाती है।

2. सड़क सुधार परियोजनाएँ: हाल ही में कई सड़क सुधार परियोजनाएँ चल रही हैं, जैसे : चारधाम सड़क परियोजना, जो प्रमुख तीर्थ स्थलों को जोड़ने और यातायात को सुगम बनाने का प्रयास कर रही है।

3. परिवहन सेवाएँ: राज्य में बस सेवाएँ और टैक्सी सेवाएँ उपलब्ध हैं, लेकिन सार्वजनिक परिवहन की उपलब्धता और सुविधा बड़े शहरों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित है।


संचार अधोसंरचना:

1. टेली communication: मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट की उपलब्धता में सुधार हुआ है, लेकिन कुछ दूरदराज और पर्वतीय क्षेत्रों में नेटवर्क की पहुंच अभी भी सीमित है। यह संचार के समुचित प्रबंधन में बाधा उत्पन्न करता है।

2. डिजिटल कनेक्टिविटी: सरकार द्वारा डिजिटल इंडिया और ब्रोड बैंड एक्सेस योजनाओं के तहत दूरदराज क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं।

3. वायरलेस सेवाएँ: वायरलेस संचार सेवाओं का विस्तार किया गया है, लेकिन नेटवर्क कवरेज और इंटरनेट की स्पीड में सुधार की आवश्यकता बनी हुई है।


निष्कर्ष:

उत्तराखंड में यातायात और संचार की अधोसंरचना में सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन भौगोलिक चुनौतियों और सीमित संसाधनों के कारण कई समस्याएँ अभी भी मौजूद हैं। भविष्य में इन बुनियादी ढाँचे की चुनौतियों को दूर करने के लिए निरंतर प्रयास और योजनाओं की आवश्यकता है।


प्रश्न 03 उत्तराखंड में जैविक कृषि से आर्थिक विकास पर एक लेख लिखिए।


उत्तर:

उत्तराखंड में जैविक कृषि और आर्थिक विकास


उत्तराखंड, अपने समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों और विविध जैव विविधता के साथ, जैविक कृषि के लिए एक उपयुक्त स्थल है। जैविक कृषि की विधियों का अपनाना राज्य की आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। 


जैविक कृषि की विशेषताएँ


जैविक कृषि में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के बजाय प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जाता है। इसमें खाद्य फसलों की गुणवत्ता में सुधार, मृदा की उर्वरता बनाए रखना और पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी जाती है। उत्तराखंड के पर्वतीय और पहाड़ी क्षेत्रों में जैविक कृषि के लिए आदर्श परिस्थितियाँ हैं, जहां पारंपरिक कृषि पद्धतियाँ अभी भी प्रचलित हैं।


आर्थिक विकास पर प्रभाव


1. उत्पादकता में सुधार: जैविक कृषि से उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार होता है, जो उच्च मूल्य पर बेचे जा सकते हैं। जैविक उत्पादों की बढ़ती मांग, विशेषकर वैश्विक बाजार में, किसानों को बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद करती है।


2. रोजगार सृजन: जैविक खेती के विकास से स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर उत्पन्न होते हैं। इससे किसानों को स्थिर आय मिलती है और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की कमी को दूर किया जा सकता है।


3. पर्यटन को बढ़ावा: जैविक कृषि के क्षेत्र को पर्यटन के लिए आकर्षण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। पर्यटक जैविक फार्मिंग देख सकते हैं और उत्पाद खरीद सकते हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिलता है।


4. पर्यावरणीय लाभ: जैविक कृषि पर्यावरण के लिए फायदेमंद होती है, जिससे मृदा और जल स्रोतों की गुणवत्ता में सुधार होता है। यह दीर्घकालिक कृषि उत्पादकता को बनाए रखने में सहायक होती है, जो आर्थिक स्थिरता में योगदान करती है।


5. स्थानीय बाजार का विकास: जैविक उत्पादों की बढ़ती मांग से स्थानीय बाजार में विकास होता है। किसानों को स्थानीय स्तर पर अच्छे दाम मिलते हैं, जिससे उन्हें आर्थिक लाभ होता है और उनकी जीवनशैली में सुधार होता है।


उत्तराखंड सरकार की पहल


उत्तराखंड सरकार ने जैविक कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न योजनाएँ शुरू की हैं, जैसे कि:

- जैविक खेती के लिए अनुदान और सब्सिडी: सरकार द्वारा जैविक खेती के लिए विशेष अनुदान और सब्सिडी प्रदान की जाती हैं, जो किसानों को जैविक विधियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।

- प्रशिक्षण और शिक्षा: किसानों को जैविक कृषि की तकनीकों और लाभों के बारे में प्रशिक्षण दिया जाता है, जिससे वे बेहतर तरीके से काम कर सकें।

- विपणन सहायता: जैविक उत्पादों के विपणन के लिए सहायता प्रदान की जाती है, जिससे किसानों को अपने उत्पादों के बेहतर दाम मिल सकें।


निष्कर्ष


उत्तराखंड में जैविक कृषि केवल पर्यावरण संरक्षण का एक तरीका नहीं है, बल्कि यह राज्य की आर्थिक विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है। उत्पादकता में सुधार, रोजगार सृजन, पर्यटन को बढ़ावा, और स्थानीय बाजार का विकास, जैविक कृषि के कुछ प्रमुख लाभ हैं। राज्य सरकार की पहल और किसानों के सहयोग से, जैविक कृषि को एक स्थायी और लाभकारी विकल्प के रूप में देखा जा सकता है।


प्रश्न 04 उत्तराखंड की अध्यक्षता में ग्रामीण वितरक की भूमिका पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर:

उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था में ग्रामीण वित्त की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास और सामाजिक प्रगति को समर्थन प्रदान करता है। ग्रामीण वित्त का मुख्य उद्देश्य किसानों और छोटे उद्यमियों को वित्तीय सेवाएँ उपलब्ध कराना है, जिससे वे उत्पादन बढ़ा सकें और व्यवसाय चला सकें।


आर्थिक लाभ:

ग्रामीण वित्त के माध्यम से किसानों को सस्ती और समय पर क्रेडिट मिलती है, जो कृषि उत्पादकता और उपज में सुधार करने में मदद करती है। इसके अलावा, छोटे उद्यमियों को वित्तीय सहायता से वे अपने व्यवसाय को बढ़ा सकते हैं, जिससे स्थानीय रोजगार सृजन और आय में वृद्धि होती है।


सामाजिक प्रभाव: 

ग्रामीण वित्त के जरिए सामाजिक सुधार भी संभव होता है, जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश, जो ग्रामीण जीवन की गुणवत्ता को सुधारते हैं। 


उत्तराखंड में ग्रामीण वित्तीय संस्थाओं और योजनाओं, जैसे सहकारी बैंकों और माइक्रोफाइनेंस, का सही ढंग से कार्यान्वयन अर्थव्यवस्था को स्थिर और सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।


प्रश्न 05 उत्तराखंड के अर्थव्यवस्था में ग्रामोद्योग की भूमिका पर एक लेख लिखिए।

उत्तर: 

उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था में ग्रामोद्योग की भूमिका


उत्तराखंड, अपनी अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विविधता के साथ, ग्रामोद्योग के लिए एक समृद्ध मंच प्रदान करता है। ग्रामोद्योग, या ग्रामीण उद्योग, राज्य की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन और आर्थिक विकास के संदर्भ में।


आर्थिक योगदान:

1. रोजगार सृजन: ग्रामोद्योग छोटे और मध्यम उद्यमों की श्रेणी में आते हैं, जो स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करते हैं। यह विशेष रूप से युवाओं और महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण है, जो आमतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित रोजगार के अवसरों का सामना करते हैं।

   

2. स्थानीय उत्पादों का विपणन: ग्रामोद्योगों द्वारा उत्पादित वस्त्र, हस्तशिल्प, खाद्य पदार्थ, और अन्य सामान स्थानीय और राष्ट्रीय बाजारों में बेचे जाते हैं, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था में योगदान होता है। इन उत्पादों की विशिष्टता और गुणवत्ता राज्य की सांस्कृतिक पहचान को भी बढ़ावा देती है।


3. आय का सृजन: ग्रामोद्योगों के माध्यम से स्थानीय स्तर पर आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है, जिससे किसानों और अन्य ग्रामीण उद्यमियों की आय में वृद्धि होती है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों की समृद्धि में योगदान होता है और पलायन की समस्या को कम किया जा सकता है।


सामाजिक प्रभाव:

1. सांस्कृतिक संरक्षण: ग्रामोद्योगों में पारंपरिक शिल्प और कौशल का संरक्षण और संवर्धन होता है। जैसे कि कुमाऊँ की ऊनी वस्त्र, गढ़वाली कढ़ाई, और अन्य हस्तशिल्प उत्पाद, जो सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं।

   

2. सामुदायिक विकास: ग्रामोद्योग स्थानीय समुदायों को एकजुट करने और सामुदायिक सहयोग को बढ़ावा देने का कार्य करते हैं। स्थानीय उद्यमिता को प्रोत्साहित करके, ये उद्योग ग्रामीण विकास योजनाओं को साकार करते हैं।


सरकारी पहल:

उत्तराखंड सरकार ने ग्रामोद्योग को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएँ और कार्यक्रम शुरू किए हैं। इनमें ग्रामोद्योग विकास योजनाएँ, लघु उद्योग अनुदान, और स्वरोजगार योजनाएँ शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, स्थानीय कारीगरों और उत्पादकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और विपणन सहायता प्रदान की जाती है।


निष्कर्ष:

उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था में ग्रामोद्योग की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है। ये उद्योग न केवल स्थानीय रोजगार और आय सृजन में योगदान करते हैं, बल्कि सांस्कृतिक संरक्षण और सामुदायिक विकास में भी सहायक होते हैं। राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने और समृद्ध बनाने के लिए, ग्रामोद्योगों का विकास और समर्थन एक प्राथमिकता होनी चाहिए।


प्रश्न 06 उत्तराखंड के गठन के बाद की औद्योगिक संरचना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर :

उत्तराखंड के गठन के बाद (9 नवंबर 2000) की औद्योगिक संरचना में कई महत्वपूर्ण विकास हुए हैं:


1. प्रारंभिक चरण:

   - गठन के समय, उत्तराखंड की औद्योगिक संरचना मुख्यतः सीमित थी, और अधिकांश औद्योगिक गतिविधियाँ राज्य के कुछ प्रमुख शहरों और औद्योगिक क्षेत्रों में केंद्रित थीं।


2. औद्योगिक नीति:

   - 2001 की औद्योगिक नीति: राज्य ने औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए 2001 में एक नई औद्योगिक नीति लागू की। इसके अंतर्गत निवेश प्रोत्साहन, कर रियायतें, और विशेष औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना की गई।


3. विशेष औद्योगिक प्रोत्साहन:

   - 2008 की विशेष एकीकृत औद्योगिक प्रोत्साहन नीति: यह नीति विशेषकर पहाड़ी और पिछड़े क्षेत्रों में औद्योगिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए थी, जिसमें वित्तीय सहायता, कर छूट, और बुनियादी ढाँचे के विकास पर ध्यान दिया गया।


4. औद्योगिक क्षेत्र:

   - औद्योगिक पार्क और क्षेत्र: राज्य में कई औद्योगिक पार्क और क्षेत्रों की स्थापना की गई, जैसे हरिद्वार, रुद्रपुर, और जसपुर में। इन क्षेत्रों में विनिर्माण, खाद्य प्रसंस्करण, और आईटी उद्योग शामिल हैं।


5. उद्योगों का विविधीकरण:

   - सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग (MSMEs): राज्य ने MSMEs को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाओं को लागू किया, जिससे छोटे और मध्यम उद्यमों की संख्या में वृद्धि हुई।

   - कृषि आधारित उद्योग: जैविक कृषि और कृषि प्रसंस्करण उद्योगों को प्रोत्साहित किया गया, जो स्थानीय कृषि उत्पादों का उपयोग करते हैं।


6. संबंधित विकास:

   - पर्यटन उद्योग: राज्य के पर्यटन क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए औद्योगिक विकास को साथ में बढ़ावा दिया गया, जिसमें हॉटेल और रिसॉर्ट्स का निर्माण शामिल है।


निष्कर्ष:

उत्तराखंड के गठन के बाद, औद्योगिक संरचना में लगातार सुधार और विकास हुआ है। सरकारी नीतियों और योजनाओं के माध्यम से औद्योगिक क्षेत्र में विविधता और वृद्धि को प्रोत्साहित किया गया है, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था को स्थिरता और विकास प्राप्त हुआ है।


प्रश्न 07  राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत कब हुई और इसकी क्या उद्देश्य हैं?

उत्तर:

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) की शुरुआत 12 अप्रैल 2005 को की गई थी। यह मिशन भारत सरकार की एक प्रमुख स्वास्थ्य योजना है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और पहुंच को सुधारना है।


उद्देश्य:


1. स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच में सुधार: ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच को बढ़ाना ताकि हर नागरिक को आवश्यक चिकित्सा सहायता प्राप्त हो सके।


2. प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में सुधार: प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और उपकेंद्रों के ढांचे को सुदृढ़ करना और उनकी क्षमताओं को बढ़ाना, ताकि बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर ढंग से प्रदान की जा सकें।


3. स्वास्थ्य परिणामों में सुधार: मातृ और शिशु स्वास्थ्य, संक्रामक रोगों की रोकथाम, और कुपोषण जैसी समस्याओं को संबोधित करना, ताकि स्वास्थ्य परिणामों में सुधार हो सके।


4. स्वास्थ्य प्रणाली की मजबूती: स्वास्थ्य कर्मचारियों की प्रशिक्षण, उनकी स्थिति में सुधार, और स्थानीय स्वास्थ्य प्रणालियों को सशक्त बनाना, जिससे कि स्वास्थ्य सेवाओं का प्रबंधन बेहतर हो सके।


5. स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता और शिक्षा: स्वास्थ्य शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से ग्रामीण आबादी को स्वच्छता, पोषण, और स्वस्थ जीवनशैली के महत्व के बारे में जानकारी देना।


निष्कर्ष:

NRHM का उद्देश्य ग्रामीण स्वास्थ्य क्षेत्र में समग्र सुधार लाना है, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और पहुंच को बढ़ाया जा सके और ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन स्तर में सुधार हो सके।


प्रश्न 08 पर्यटन और विकास के अंतर संबंध को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:

पर्यटन और विकास में अंतर संबंध


पर्यटन और विकास के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर संबंध होता है, जिसमें पर्यटन विकास के लिए एक प्रेरक शक्ति के रूप में काम करता है, जबकि विकास पर्यटन की वृद्धि को भी प्रभावित करता है। इस संबंध को स्पष्ट रूप से समझने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान दिया जा सकता है:


1. पर्यटन का विकास पर प्रभाव:

   - आर्थिक वृद्धि: पर्यटन से स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिलता है, क्योंकि यह रोजगार सृजन, विदेशी मुद्रा अर्जन, और स्थानीय व्यवसायों की वृद्धि को बढ़ावा देता है। यह विकास के लिए आवश्यक आर्थिक संसाधनों का योगदान करता है।

   - संवृद्धि और बुनियादी ढाँचा: पर्यटन के विकास से स्थानीय बुनियादी ढाँचे में सुधार होता है, जैसे सड़कें, होटल, और सार्वजनिक सेवाएँ। यह विकास को और भी बढ़ावा देता है और क्षेत्र की जीवन गुणवत्ता में सुधार करता है।

   - संस्कृति और धरोहर संरक्षण: पर्यटन सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं के संरक्षण में योगदान करता है, जिससे स्थानीय संस्कृति की पहचान बनी रहती है और पर्यटन स्थलों की मांग बढ़ती है।

2 . विकास का पर्यटन पर प्रभाव:

   - सुविधाएँ और सेवाएँ:

विकास के दौरान बुनियादी ढाँचे और सुविधाओं में सुधार से पर्यटन को बढ़ावा मिलता है। जैसे, बेहतर सड़कें, आवासीय सुविधाएँ, और परिवहन सेवाएँ पर्यटन के आकर्षण को बढ़ाते हैं।

   - सुरक्षा और स्वच्छता: 

विकास में सुरक्षा और स्वच्छता की स्थिति में सुधार भी महत्वपूर्ण है, जो पर्यटकों के अनुभव को सकारात्मक बनाता है और पर्यटन की वृद्धि को प्रोत्साहित करता है।

   - प्रोन्नति और विपणन: विकास के दौरान पर्यटन स्थलों की प्रचार और विपणन रणनीतियाँ भी महत्वपूर्ण होती हैं। जैसे, पर्यटन प्रचार अभियान और विशेष कार्यक्रम पर्यटन को बढ़ावा देते हैं।


निष्कर्ष:

पर्यटन और विकास एक दूसरे के पूरक हैं। पर्यटन आर्थिक विकास, बुनियादी ढाँचे के सुधार, और सांस्कृतिक संरक्षण में योगदान करता है, जबकि विकास पर्यटन के लिए आवश्यक सुविधाओं और सेवाओं को बेहतर बनाता है। दोनों के बीच प्रभावशाली संबंध एक संतुलित और समग्र क्षेत्रीय विकास को सुनिश्चित करता है।



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