Uou BAPS(N)121 most important questions 2024

 BAPS(N)121 

स्थानीय स्वशासन: पंचायती राज 

Solved Important Questions 


हेलो दोस्तों,  नमस्कार 

अगर आप भी बीए द्वितीय सेमेस्टर के विद्यार्थी हैं और 21 अगस्त 2024 को आपका BAPS(N)121 का पेपर है तो यह पोस्ट आपके लिए बहुत लाभदायक होगी क्योंकि इस पोस्ट में हम आपको बताने जा रहे हैं स्थानीय स्वशासन के पेपर से संबंधित कुछ अति महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर। 





प्रश्न 01 . पंच-परमेश्वर प्रणाली को स्पष्ट करें।

उत्तर:

परिचय:

पंच-परमेश्वर प्रणाली भारत की प्राचीन पंचायत व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग रही है। यह प्रणाली न्याय और निष्पक्षता पर आधारित थी, जिसमें गाँव के पाँच प्रमुख व्यक्ति निर्णय लेते थे और उन्हें परमेश्वर तुल्य माना जाता था।


विवरण:

पंच-परमेश्वर प्रणाली में पंचों का चयन गाँव के सभी सदस्यों की सहमति से किया जाता था। ये पंच सामान्यत: अनुभवी, न्यायप्रिय, और निष्पक्ष लोग होते थे। पंचायत का निर्णय सभी के लिए मान्य होता था और इसे ईश्वर का आदेश माना जाता था, इसलिए इसे 'परमेश्वर' की उपाधि दी गई थी। पंचों का उद्देश्य न्याय करना होता था, और उनका निर्णय धर्म और सत्य के आधार पर होता था।


निष्कर्ष:

पंच-परमेश्वर प्रणाली भारत की प्राचीन लोकतांत्रिक प्रणाली का एक सजीव उदाहरण थी। यह प्रणाली लोगों के बीच विश्वास, सम्मान, और न्याय की भावना को बनाए रखने में सहायक थी।


प्रश्न  2. प्राचीन काल में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के रूप में मौजूद पंचायत व्यवस्था को स्पष्ट करें।

उत्तर:


परिचय:

प्राचीन काल में भारत में पंचायत व्यवस्था स्थानीय स्वशासन की एक महत्वपूर्ण संस्था थी। इस प्रणाली ने ग्राम स्तर पर शासन, न्याय और प्रशासन की जिम्मेदारियों को संभाला।


विवरण:

पंचायत व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य ग्राम स्तर पर प्रशासनिक और न्यायिक कार्यों को संपन्न करना था। पंचायतें सामाजिक समस्याओं का समाधान करती थीं, कृषि, जल संसाधन, और भूमि वितरण जैसे मामलों में निर्णय लेती थीं। पंचायतों में पंचों का चुनाव लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत होता था, जिसमें सभी ग्रामीण सहभागिता करते थे। यह प्रणाली न केवल स्वशासन की भावना को बढ़ावा देती थी, बल्कि लोगों के बीच एकता और सहयोग की भावना को भी प्रबल करती थी।


निष्कर्ष:

प्राचीन काल की पंचायत व्यवस्था स्थानीय स्तर पर स्वशासन की एक प्रभावी प्रणाली थी। यह न केवल प्रशासनिक कार्यों को संचालित करती थी, बल्कि सामाजिक संतुलन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी।


प्रश्न  3. मुंशी प्रेमचन्द की कहानी 'पंच-परमेश्वर' से आपने क्या सीखा?

उत्तर: 

परिचय:

मुंशी प्रेमचन्द की कहानी 'पंच-परमेश्वर' न्याय, सत्य और निष्पक्षता के महत्व को दर्शाती है। यह कहानी भारतीय ग्रामीण समाज में पंचायत व्यवस्था के महत्व और पंचों की जिम्मेदारी को उजागर करती है।


विवरण:

कहानी का मुख्य पात्र, जुम्मन शेख, जब पंच बनता है, तो वह अपने व्यक्तिगत संबंधों को पीछे छोड़कर न्याय करता है। कहानी हमें यह सिखाती है कि जब हम किसी न्यायिक स्थिति में होते हैं, तो हमें अपने निजी विचारों और भावनाओं को अलग रखकर निष्पक्ष निर्णय लेना चाहिए। पंच की भूमिका में व्यक्ति को ईश्वर तुल्य माना जाता है, इसलिए उसे अपने कर्तव्यों का पालन ईमानदारी और सत्यता के साथ करना चाहिए।


निष्कर्ष:

'पंच-परमेश्वर' कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि न्याय और निष्पक्षता जीवन के महत्वपूर्ण मूल्य हैं, और हमें हमेशा सत्य के पक्ष में खड़ा होना चाहिए, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो। यह कहानी हमें सिखाती है कि पंच की भूमिका निभाते समय व्यक्ति को अपनी व्यक्तिगत भावनाओं को दरकिनार कर, सत्य और न्याय का पालन करना चाहिए।


प्रश्न 04 स्वतंत्रता के बाद भारत में पंचायती राज व्यवस्था  की स्थिति की चर्चा कीजिए।

उत्तर:

परिचय:

स्वतंत्रता के बाद भारत में पंचायती राज व्यवस्था को एक महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक संस्था के रूप में देखा गया। यह व्यवस्था ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन को सशक्त बनाने के उद्देश्य से विकसित की गई। स्वतंत्रता के तुरंत बाद, संविधान सभा में पंचायतों की भूमिका पर चर्चा की गई, लेकिन इसे संवैधानिक दर्जा नहीं दिया गया। बाद में, विभिन्न समितियों और आयोगों की सिफारिशों के आधार पर पंचायती राज व्यवस्था को संस्थागत रूप दिया गया।


पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना:

स्वतंत्रता के बाद पंचायती राज व्यवस्था को औपचारिक रूप से लागू करने का पहला प्रयास 1959 में हुआ, जब राजस्थान के नागौर जिले में पहला पंचायत स्थापित किया गया। इसके बाद देश के अन्य राज्यों में भी यह प्रणाली अपनाई गई। इस प्रक्रिया को गति मिली जब 1992 में 73वां संविधान संशोधन अधिनियम पारित किया गया। इस संशोधन ने पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया और तीन-स्तरीय संरचना (ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, और जिला परिषद) की स्थापना की गई।


73वें संविधान संशोधन के मुख्य प्रावधान:

- पंचायती राज संस्थाओं का नियमित रूप से चुनाव कराना अनिवार्य किया गया।

- महिलाओं, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया।

- पंचायती राज संस्थाओं को वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने और उन्हें अधिक सशक्त बनाने के लिए वित्त आयोग की स्थापना की गई।

- राज्य सरकारों को पंचायती राज संस्थाओं को प्रशासनिक और वित्तीय अधिकार सौंपने का निर्देश दिया गया।


वर्तमान स्थिति:

आज के समय में पंचायती राज संस्थाएँ ग्रामीण विकास और स्वशासन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इन संस्थाओं के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, जल आपूर्ति, सड़क निर्माण आदि जैसे विकास कार्यों का संचालन किया जाता है। हालाँकि, पंचायती राज व्यवस्था को सफलतापूर्वक लागू करने में कई चुनौतियाँ भी हैं, जैसे वित्तीय संसाधनों की कमी, राजनीतिक हस्तक्षेप, और प्रशासनिक क्षमताओं की कमी।


निष्कर्ष:

स्वतंत्रता के बाद भारत में पंचायती राज व्यवस्था ने ग्रामीण क्षेत्रों में लोकतंत्र को जमीनी स्तर पर सशक्त बनाने का कार्य किया है। इसके माध्यम से ग्रामीण जनता को अपने विकास कार्यों में सीधा योगदान देने का अवसर मिला है। हालाँकि, इस व्यवस्था को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए निरंतर सुधार और समर्थन की आवश्यकता है।


प्रश्न 05  पंचायती राज व्यवस्था के लिए गठित समितियां की चर्चा करते हुए पंचायती राज के सुधार में उनके योगदान की व्याख्या कीजिए।

उत्तर:

परिचय:

पंचायती राज व्यवस्था को संस्थागत रूप देने और सुधारने के लिए स्वतंत्रता के बाद विभिन्न समितियाँ गठित की गईं। इन समितियों ने पंचायती राज संस्थाओं के सुदृढ़ीकरण और स्थानीय स्वशासन को प्रभावी बनाने के लिए महत्वपूर्ण सिफारिशें कीं। उनके सुझावों के आधार पर कई सुधारात्मक कदम उठाए गए, जो पंचायती राज व्यवस्था के विकास और स्थायित्व में महत्वपूर्ण रहे।


1. बलवंत राय मेहता समिति (1957):

- **सिफारिशें:** यह समिति पंचायती राज व्यवस्था के लिए पहली महत्वपूर्ण समिति थी। इसने त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली (ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, और जिला परिषद) की सिफारिश की।

- **योगदान:** इस समिति की सिफारिशों के आधार पर राजस्थान में 1959 में पहला पंचायती राज मॉडल लागू किया गया। इसने पंचायती राज को आधारभूत ढांचा प्रदान किया और ग्रामीण विकास को संगठित किया।


**2. अशोक मेहता समिति (1977):**

- **सिफारिशें:** इस समिति ने द्विस्तरीय प्रणाली (मंडल पंचायत और जिला पंचायत) की सिफारिश की और जिला स्तर पर पंचायती राज को अधिक शक्तियाँ प्रदान करने की बात की। इसने पंचायतों के लिए वित्तीय स्वायत्तता की भी सिफारिश की।

- **योगदान:** इस समिति की सिफारिशों ने पंचायती राज व्यवस्था को अधिक प्रभावी और सशक्त बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए। इसके सुझावों के आधार पर कई राज्यों में सुधार किए गए।


**3. जी.वी.के. राव समिति (1985):**

- **सिफारिशें:** इस समिति ने पंचायती राज संस्थाओं को स्थानीय विकास का केंद्र बिंदु बनाने की सिफारिश की। इसने जिला स्तर पर प्रशासनिक ढांचे में सुधार करने की आवश्यकता बताई।

- **योगदान:** जी.वी.के. राव समिति की सिफारिशों ने पंचायती राज संस्थाओं को अधिक प्रशासनिक अधिकार देने की दिशा में योगदान दिया और ग्रामीण विकास में उनकी भूमिका को सशक्त किया।


**4. एल.एम. सिंघवी समिति (1986):**

- **सिफारिशें:** इस समिति ने पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा देने की सिफारिश की और स्थानीय स्वशासन को लोकतांत्रिक प्रक्रिया का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाने पर जोर दिया।

- **योगदान:** इस समिति की सिफारिशों ने 73वें संविधान संशोधन अधिनियम (1992) की नींव रखी, जिसके माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा मिला और उनके अधिकारों को सुनिश्चित किया गया।


**5. 73वां संविधान संशोधन अधिनियम (1992):**

- **सुधार:** इस अधिनियम ने पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया और उनके लिए नियमित चुनाव, आरक्षण, वित्तीय अधिकार, और राज्य वित्त आयोग की स्थापना जैसे प्रावधान किए।

- **योगदान:** इस संशोधन ने पंचायती राज व्यवस्था को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और ग्रामीण विकास में पंचायती राज संस्थाओं की भागीदारी को सुनिश्चित किया।


**निष्कर्ष:**

समितियों की सिफारिशों और उनके आधार पर किए गए सुधारों ने पंचायती राज व्यवस्था को सुदृढ़, सशक्त, और प्रभावी बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इन सुधारों के माध्यम से पंचायती राज संस्थाएँ न केवल ग्रामीण विकास का केंद्र बनीं बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया को भी जमीनी स्तर पर मजबूत किया। हालांकि, इन संस्थाओं के सामने आज भी कई चुनौतियाँ हैं, जिन्हें दूर करने के लिए निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है।


प्रश्न 06 विकेंद्रीकरण से आप क्या समझते हैं विकेंद्रीकरण का लोकतंत्र में क्या महत्व है?

उत्तर:

**विकेंद्रीकरण की परिभाषा:**

विकेंद्रीकरण का अर्थ है सत्ता और अधिकारों का केंद्रीय सरकार से निचले स्तर की इकाइयों या स्थानीय निकायों को हस्तांतरित करना। इस प्रक्रिया में, प्रशासनिक, वित्तीय, और राजनीतिक शक्तियाँ स्थानीय स्तर पर स्थानांतरित की जाती हैं, ताकि जनता अपने मुद्दों का समाधान करने में सक्षम हो सके। विकेंद्रीकरण का मुख्य उद्देश्य स्थानीय स्तर पर लोगों की भागीदारी को बढ़ावा देना और उनकी आवश्यकताओं के अनुसार निर्णय लेने की प्रक्रिया को सरल बनाना है।


**लोकतंत्र में विकेंद्रीकरण का महत्व:**


1. **जनभागीदारी में वृद्धि:** विकेंद्रीकरण के माध्यम से स्थानीय जनता को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल किया जाता है। इससे जनता के अधिकारों और जिम्मेदारियों में वृद्धि होती है और वे अपने मुद्दों का समाधान स्थानीय स्तर पर ही कर सकते हैं।


2. **स्थानीय जरूरतों के अनुसार विकास:** स्थानीय निकायों को सशक्त बनाने से वे अपने क्षेत्र की विशिष्ट आवश्यकताओं और समस्याओं को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं और उनका समाधान कर सकते हैं। इससे विकास की प्रक्रिया अधिक प्रभावी और सुगम होती है।


3. **प्रशासनिक दक्षता में वृद्धि:** विकेंद्रीकरण से प्रशासनिक प्रक्रियाएँ सरल और त्वरित हो जाती हैं, क्योंकि निर्णय स्थानीय स्तर पर लिए जाते हैं। इससे केंद्रीय सरकार पर बोझ कम होता है और संसाधनों का बेहतर उपयोग होता है।


4. **लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सुदृढ़ीकरण:** विकेंद्रीकरण से लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होती हैं, क्योंकि यह लोगों को अधिक जिम्मेदारी और अधिकार प्रदान करता है। स्थानीय निकायों के माध्यम से लोग अपने प्रतिनिधियों को चुन सकते हैं और उन्हें जवाबदेह बना सकते हैं।


5. **राजनीतिक सशक्तिकरण:** विकेंद्रीकरण से स्थानीय नेताओं और प्रतिनिधियों को सशक्त बनाने का अवसर मिलता है, जिससे वे अपने क्षेत्रों के विकास में योगदान कर सकते हैं। यह प्रक्रिया राष्ट्रीय स्तर पर भी नेतृत्व के विकास में सहायक होती है।


6. **सांस्कृतिक और क्षेत्रीय विविधताओं का सम्मान:** विकेंद्रीकरण से विभिन्न क्षेत्रों की सांस्कृतिक और सामाजिक विविधताओं को सम्मान मिलता है। स्थानीय निकाय अपने क्षेत्र की विशेषताओं के आधार पर नीतियाँ और योजनाएँ बना सकते हैं, जो क्षेत्रीय विविधताओं को ध्यान में रखती हैं।


7. **सामाजिक न्याय:** विकेंद्रीकरण के माध्यम से समाज के कमजोर वर्गों को अधिक अवसर मिलते हैं। आरक्षण और अन्य नीतियों के माध्यम से स्थानीय स्तर पर सामाजिक न्याय की स्थापना की जा सकती है।


**निष्कर्ष:**

लोकतंत्र में विकेंद्रीकरण का महत्वपूर्ण स्थान है। यह न केवल प्रशासनिक और राजनीतिक दृष्टि से आवश्यक है, बल्कि यह समाज के विभिन्न वर्गों को सशक्त बनाने और उनकी समस्याओं का समाधान करने का एक प्रभावी माध्यम भी है। विकेंद्रीकरण से स्थानीय स्तर पर लोकतांत्रिक संस्थाओं का विकास होता है, जिससे समग्र रूप से देश का विकास और स्थायित्व सुनिश्चित होता है।


प्रश्न 07  स्थानीय प्रशासन क्या है इसकी आवश्यकता क्यों है और इसको मजबूत किस तरह बनाया जा सकता है?

उत्तर: 

**स्थानीय स्वशासन की परिभाषा:**

स्थानीय स्वशासन (Local Self-Governance) एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें स्थानीय क्षेत्रों या समुदायों को अपने प्रशासनिक और विकासात्मक निर्णय लेने का अधिकार प्रदान किया जाता है। इसमें ग्राम पंचायत, नगर निगम, और नगर पालिका जैसी स्थानीय निकायों को सत्ता का विकेंद्रीकरण किया जाता है, ताकि वे अपने क्षेत्र की जनता की आवश्यकताओं के अनुसार योजनाएँ बना सकें और उन्हें लागू कर सकें।


**स्थानीय स्वशासन की आवश्यकता:**


1. **स्थानीय मुद्दों का त्वरित समाधान:** स्थानीय स्वशासन व्यवस्था से स्थानीय समस्याओं का समाधान जल्दी और प्रभावी तरीके से किया जा सकता है, क्योंकि स्थानीय निकाय उन समस्याओं को अधिक निकटता से समझते हैं और उन्हें हल करने में सक्षम होते हैं।


2. **जनता की भागीदारी:** स्थानीय स्वशासन से लोगों को अपने क्षेत्र की शासन प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर मिलता है। इससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया मजबूत होती है और जनता का विश्वास बढ़ता है।


3. **विकास की गति में वृद्धि:** स्थानीय निकायों को अपने क्षेत्र की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार योजनाएँ बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने का अधिकार मिलता है। इससे विकास की प्रक्रिया में तेजी आती है और क्षेत्रीय विकास असमानताओं को कम किया जा सकता है।


4. **प्रशासनिक दक्षता:** स्थानीय स्वशासन से प्रशासनिक प्रक्रियाओं में सुधार होता है, क्योंकि निर्णय स्थानीय स्तर पर ही लिए जाते हैं। इससे संसाधनों का बेहतर उपयोग होता है और कार्यों की दक्षता बढ़ती है।


5. **सांस्कृतिक विविधता का सम्मान:** विभिन्न क्षेत्रों की सांस्कृतिक और सामाजिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए योजनाएँ बनाई जा सकती हैं, जिससे स्थानीय स्वशासन सांस्कृतिक विविधता का सम्मान करता है और उसे बढ़ावा देता है।


**स्थानीय स्वशासन को मजबूत करने के उपाय:**


1. **वित्तीय स्वायत्तता:** स्थानीय निकायों को मजबूत करने के लिए उन्हें पर्याप्त वित्तीय संसाधन प्रदान करना आवश्यक है। इसके लिए उन्हें कर लगाने, संसाधनों का संग्रह करने, और केंद्र तथा राज्य सरकारों से वित्तीय सहायता प्राप्त करने की व्यवस्था की जानी चाहिए।


2. **प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण:** स्थानीय निकायों के प्रतिनिधियों और अधिकारियों को प्रशासनिक और प्रबंधकीय कार्यों के लिए नियमित प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए। इससे उनकी कार्यक्षमता में सुधार होगा और वे अपने कर्तव्यों का प्रभावी ढंग से निर्वहन कर सकेंगे।


3. **सार्वजनिक जागरूकता:** जनता को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए, ताकि वे स्थानीय स्वशासन में सक्रिय भागीदारी कर सकें। इसके लिए विभिन्न जागरूकता कार्यक्रमों और अभियानों का आयोजन किया जा सकता है।


4. **सशक्त विधिक संरचना:** स्थानीय स्वशासन को मजबूती प्रदान करने के लिए प्रभावी कानूनी ढांचे की आवश्यकता है। पंचायत और नगर निकायों से संबंधित कानूनों में सुधार और उन्हें अद्यतन किया जाना चाहिए, ताकि वे वर्तमान चुनौतियों का सामना कर सकें।


5. **टेक्नोलॉजी का उपयोग:** स्थानीय स्वशासन में सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाकर प्रशासनिक कार्यों को सरल और पारदर्शी बनाया जा सकता है। इससे लोगों को सेवाओं का लाभ शीघ्रता से मिलेगा और भ्रष्टाचार में कमी आएगी।


6. **जन प्रतिनिधित्व में सुधार:** पंचायत और नगर निकाय चुनावों में पारदर्शिता बढ़ाकर योग्य और सक्षम लोगों को नेतृत्व में आने का अवसर दिया जाना चाहिए। इसके लिए चुनाव सुधारों की आवश्यकता हो सकती है।


7. **समाज के कमजोर वर्गों को सशक्त बनाना:** महिलाओं, दलितों, आदिवासियों, और अन्य वंचित वर्गों के लिए आरक्षण और अन्य सुविधाओं के माध्यम से उनकी भागीदारी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, ताकि वे भी स्थानीय स्वशासन में सक्रिय भूमिका निभा सकें।


**निष्कर्ष:**

स्थानीय स्वशासन एक सशक्त लोकतंत्र की नींव है। इसे मजबूत करने से न केवल प्रशासनिक और विकासात्मक कार्यों में सुधार होता है, बल्कि समाज के प्रत्येक वर्ग को न्याय और समानता का अधिकार भी प्राप्त होता है। स्थानीय स्वशासन को प्रभावी बनाने के लिए आर्थिक, सामाजिक, और प्रशासनिक सुधारों की आवश्यकता है, ताकि यह व्यवस्था अपने उद्देश्यों को पूरी तरह से प्राप्त कर सके।


प्रश्न 08   ग्राम पंचायत का गठन इसके कार्य और शक्तियों का वर्णन कीजिए।

उत्तर :

**ग्राम पंचायत का गठन:**


ग्राम पंचायत ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन की आधारभूत इकाई होती है। इसका गठन 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के तहत किया गया था। इस अधिनियम ने ग्राम पंचायतों को संवैधानिक मान्यता प्रदान की और इन्हें ग्रामीण विकास एवं प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका दी। 


ग्राम पंचायत का गठन प्रत्येक गाँव या एक समूह गाँवों के लिए किया जाता है, जिसकी जनसंख्या एक निश्चित सीमा तक होती है। ग्राम पंचायत के सदस्य, जिन्हें पंच कहा जाता है, ग्राम सभा द्वारा चुने जाते हैं। ग्राम पंचायत का प्रमुख सरपंच होता है, जिसे सीधे ग्राम सभा द्वारा चुना जाता है।


**ग्राम पंचायत के कार्य:**


ग्राम पंचायत के कार्यों को मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है: प्रशासनिक कार्य, विकासात्मक कार्य, और न्यायिक कार्य। 


1. **प्रशासनिक कार्य:**

   - ग्राम पंचायत गाँव के सभी प्रकार के प्रशासनिक कार्यों की देखरेख करती है।

   - यह गाँव में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार होती है।

   - पंचायत कर लगाकर राजस्व एकत्र करती है, जिसका उपयोग गाँव की भलाई के लिए किया जाता है।

   - गाँव में जन्म, मृत्यु, और विवाह का पंजीकरण ग्राम पंचायत के अधीन होता है।

   - पंचायत के पास गाँव की संपत्ति जैसे सड़क, जलाशय, और सार्वजनिक भूमि की देखभाल करने की जिम्मेदारी होती है।


2. **विकासात्मक कार्य:**

   - ग्राम पंचायत ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए जिम्मेदार होती है, जैसे कि सड़क निर्माण, नाली व्यवस्था, और बिजली की व्यवस्था।

   - यह शिक्षा, स्वास्थ्य, और स्वच्छता के क्षेत्र में योजनाओं को लागू करती है, जैसे कि विद्यालयों का निर्माण, स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना, और स्वच्छता अभियानों का संचालन।

   - पंचायत किसानों की सहायता के लिए सिंचाई योजनाओं का प्रबंधन करती है और जल संरक्षण के उपाय करती है।

   - रोजगार सृजन के लिए ग्राम पंचायत मनरेगा जैसी योजनाओं का कार्यान्वयन करती है।

   - सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए पंचायत गरीबों, महिलाओं, और पिछड़े वर्गों के लिए विशेष योजनाएँ चलाती है।


3. **न्यायिक कार्य:**

   - ग्राम पंचायत छोटे-मोटे विवादों और झगड़ों को सुलझाने का काम करती है। इसमें भूमि विवाद, घरेलू मामले, और संपत्ति से संबंधित विवाद शामिल होते हैं।

   - ग्राम न्यायालय (न्याय पंचायत) भी ग्राम पंचायत का हिस्सा होते हैं, जो विशेषकर छोटे मामलों का निपटारा करते हैं।


**ग्राम पंचायत की शक्तियाँ:**


1. **कर लगाने की शक्ति:** ग्राम पंचायत को स्थानीय स्तर पर विभिन्न प्रकार के कर लगाने का अधिकार प्राप्त है, जैसे कि गृह कर, व्यवसाय कर, और जल कर। इन करों से प्राप्त आय का उपयोग गाँव के विकास कार्यों में किया जाता है।


2. **विकास योजनाओं का क्रियान्वयन:** पंचायत को केंद्र और राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त योजनाओं का क्रियान्वयन करने की शक्ति प्राप्त है, जैसे कि प्रधानमंत्री आवास योजना, स्वच्छ भारत अभियान, और अन्य विकासात्मक योजनाएँ।


3. **स्वायत्तता:** ग्राम पंचायत को अपने क्षेत्र के विकास और प्रशासनिक कार्यों के लिए निर्णय लेने की स्वतंत्रता प्राप्त है। इसका उद्देश्य स्थानीय समस्याओं का त्वरित और प्रभावी समाधान करना है।


4. **संपत्ति प्रबंधन:** पंचायत को गाँव की सार्वजनिक संपत्ति, जैसे कि तालाब, सड़कें, और पार्क, की देखरेख और प्रबंधन का अधिकार प्राप्त है।


5. **सामाजिक न्याय:** ग्राम पंचायत को कमजोर वर्गों के लिए योजनाओं का संचालन करने और उनके अधिकारों की सुरक्षा करने का अधिकार प्राप्त है।


**निष्कर्ष:**

ग्राम पंचायत ग्रामीण विकास और स्वशासन की मूल इकाई है, जो न केवल प्रशासनिक कार्यों का निष्पादन करती है बल्कि गाँव के विकास के लिए विभिन्न योजनाओं को भी लागू करती है। इसकी शक्तियाँ और कार्य इसे ग्रामीण समाज की भलाई और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने योग्य बनाते हैं। ग्राम पंचायत को सशक्त बनाकर गाँवों का समग्र विकास सुनिश्चित किया जा सकता है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन स्तर में सुधार हो सके।


प्रश्न 09   73वें संविधान संशोधन के द्वारा पंचायत को कितने विषय दिए गए हैं स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:

73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 ने पंचायतों को संवैधानिक मान्यता प्रदान की और उनके कार्यक्षेत्र को स्पष्ट किया। इस संशोधन के तहत, संविधान की 11वीं अनुसूची में 29 विषयों को पंचायत के अधीन रखा गया है। इन विषयों का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन को मजबूत बनाना और विकास कार्यों को गति देना है।


**पंचायत के अधीन रखे गए प्रमुख विषय:**


1. **कृषि**: इसमें कृषि विस्तार, भूमि सुधार, और फसल उत्पादन शामिल हैं।

2. **सिंचाई**: लघु सिंचाई परियोजनाएँ और जल प्रबंधन पंचायत के दायरे में आते हैं।

3. **पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन**: पंचायत इन क्षेत्रों में विकास योजनाओं का संचालन करती है।

4. **ग्रामीण विकास**: इसमें ग्रामीण सड़कों का निर्माण, आवास, और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम शामिल हैं।

5. **स्वास्थ्य और स्वच्छता**: प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएँ, स्वच्छता अभियान, और पेयजल आपूर्ति पंचायत की जिम्मेदारी हैं।

6. **शिक्षा**: प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के विकास के लिए पंचायत कार्य करती है।


प्रश्न 10  क्षेत्र पंचायत के कार्य ,समिति,एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।

उत्तर:

**क्षेत्र पंचायत की समिति (Intermediate/Block Panchayat) का गठन और कार्य:**


क्षेत्र पंचायत जिसे ब्लॉक पंचायत या मंडल पंचायत भी कहा जाता है, त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की मध्यवर्ती इकाई है। यह ग्रामीण विकास, योजना निर्माण, और प्रशासनिक कार्यों के मध्यस्थ के रूप में कार्य करती है। क्षेत्र पंचायत का गठन जिला पंचायत और ग्राम पंचायत के बीच समन्वय स्थापित करने और योजनाओं को बेहतर ढंग से लागू करने के लिए किया जाता है।


 **गठन:**

क्षेत्र पंचायत का गठन ग्राम पंचायतों के निर्वाचित प्रतिनिधियों, स्थानीय विधायकों, और जिला पंचायत के सदस्यों द्वारा किया जाता है। इस पंचायत के सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं। इसके अतिरिक्त, क्षेत्र के सांसद, विधायक, और विधान परिषद सदस्य, जो उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसके सदस्य होते हैं, लेकिन उनके पास मतदान का अधिकार नहीं होता। 


क्षेत्र पंचायत का नेतृत्व प्रधान करता है, जिसे क्षेत्र पंचायत प्रमुख कहा जाता है। प्रमुख के साथ-साथ उप-प्रमुख का भी चुनाव किया जाता है। क्षेत्र पंचायत प्रमुख की भूमिका योजनाओं के क्रियान्वयन और सदस्यों के बीच समन्वय स्थापित करने की होती है।


 **कार्य:**


1. **विकास कार्यों का प्रबंधन:** क्षेत्र पंचायत विकास कार्यों का आयोजन, निगरानी, और निष्पादन करती है। इसमें सड़क निर्माण, पेयजल आपूर्ति, बिजली व्यवस्था, और स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार शामिल है।


2. **योजनाओं का निर्माण:** यह पंचायत क्षेत्रीय विकास के लिए आवश्यक योजनाओं का निर्माण करती है और उन्हें जिला पंचायत को स्वीकृति के लिए प्रस्तुत करती है।


3. **शिक्षा और स्वास्थ्य:** प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों का संचालन और स्वास्थ्य सेवाओं का प्रबंधन भी क्षेत्र पंचायत के अंतर्गत आता है। यह पंचायत क्षेत्र में स्वास्थ्य केंद्रों और विद्यालयों के निर्माण और उनके रखरखाव की जिम्मेदारी उठाती है।


4. **सामाजिक कल्याण:** क्षेत्र पंचायत सामाजिक कल्याण योजनाओं जैसे विधवा पेंशन, वृद्धावस्था पेंशन, और जनकल्याण योजनाओं को लागू करने का कार्य करती है।


5. **कृषि और पशुपालन:** कृषि विस्तार सेवाओं और पशुपालन के विकास के लिए योजनाओं का संचालन करती है, जैसे कि कृषि प्रशिक्षण कार्यक्रम और पशु स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन।


6. **वित्तीय प्रबंधन:** क्षेत्र पंचायत को मिलने वाली अनुदान राशि और सरकारी योजनाओं के वित्तीय संसाधनों का उचित प्रबंधन और उपयोग सुनिश्चित करना इसका महत्वपूर्ण कार्य है। 


7. **समन्वय:** यह पंचायत ग्राम पंचायतों और जिला पंचायत के बीच समन्वय स्थापित करती है, जिससे योजनाओं का क्रियान्वयन बेहतर तरीके से हो सके।


 **उपसंहार:**

क्षेत्र पंचायत की समिति स्थानीय विकास की धुरी है। यह पंचायत योजनाओं का निर्माण, क्रियान्वयन और निगरानी करके ग्रामीण विकास को सुगम बनाती है। इसके प्रभावी कार्यों से न केवल क्षेत्रीय विकास होता है बल्कि ग्रामीण जनता की समस्याओं का समाधान भी होता है।


प्रश्न। 11 जिला पंचायत का गठन उसके कार्य और शक्तियों का वर्णन कीजिए।

उत्तर:

**जिला पंचायत का गठन, कार्य और शक्तियाँ:**


जिला पंचायत (District Panchayat) त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की सबसे उच्च इकाई है। इसका गठन जिला स्तर पर होता है, और यह जिले के विकास कार्यों, योजनाओं के निर्माण, और विभिन्न सरकारी नीतियों के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी निभाती है। जिला पंचायत के माध्यम से स्थानीय स्वशासन की सबसे महत्वपूर्ण इकाईयों में से एक की स्थापना की गई है, जिससे क्षेत्रीय विकास को गति दी जा सके।


 **गठन:**


1. **सदस्य:** जिला पंचायत का गठन जिले के प्रत्येक क्षेत्र से चुने गए प्रतिनिधियों के माध्यम से किया जाता है। ये सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं। इसके अलावा, जिला पंचायत के सदस्य के रूप में सांसद, विधायक, और विधान परिषद सदस्य शामिल होते हैं, लेकिन उनके पास मतदान का अधिकार नहीं होता है।


2. **अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव:** जिला पंचायत के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव पंचायत के सदस्यों द्वारा किया जाता है। अध्यक्ष जिला पंचायत की सर्वोच्च अधिकारी होती है और वह पंचायत की बैठकें संचालित करती है और निर्णय लेने की प्रक्रिया का नेतृत्व करती है।


3. **कार्यालय:** जिला पंचायत का कार्यालय जिला मुख्यालय में स्थित होता है, और यह पंचायत के प्रशासनिक कार्यों को संपादित करता है। इसके तहत पंचायत सचिवालय और अन्य सहायक कर्मचारी कार्यरत होते हैं।


**कार्य:**


1. **योजनाओं का निर्माण और क्रियान्वयन:** जिला पंचायत के प्रमुख कार्यों में से एक है, जिले के विकास के लिए योजनाओं का निर्माण करना। इसमें सड़क निर्माण, स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार, शिक्षा के क्षेत्र में सुधार, और पेयजल आपूर्ति आदि शामिल हैं।


2. **वित्तीय प्रबंधन:** जिला पंचायत को राज्य और केंद्र सरकार से मिलने वाले अनुदान और फंड का प्रबंधन करना होता है। इसके अंतर्गत पंचायत की विभिन्न योजनाओं और विकास कार्यों के लिए वित्तीय संसाधनों का वितरण और उपयोग सुनिश्चित किया जाता है।


3. **शिक्षा और स्वास्थ्य:** शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करना भी जिला पंचायत का एक प्रमुख कार्य है। इसके अंतर्गत प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के साथ-साथ जिला अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों का निर्माण और संचालन आता है।


4. **कृषि और ग्रामीण विकास:** कृषि के विकास के लिए योजनाओं का निर्माण और कृषि आधारित उद्योगों का प्रोत्साहन देना भी जिला पंचायत के कार्यों में शामिल है। इसके तहत कृषि प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन, सिंचाई सुविधाओं का विस्तार, और ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा देना शामिल है।


5. **सामाजिक कल्याण योजनाएँ:** जिला पंचायत सामाजिक कल्याण योजनाओं का क्रियान्वयन भी करती है, जैसे वृद्धावस्था पेंशन, विधवा पेंशन, और अन्य जनकल्याणकारी योजनाएँ।


6. **जल संसाधन और पर्यावरण संरक्षण:** जल संसाधनों का प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण के लिए योजनाओं का क्रियान्वयन करना भी जिला पंचायत का दायित्व है। इसमें जलाशयों का निर्माण, जल संरक्षण परियोजनाएँ, और वृक्षारोपण कार्यक्रम शामिल हैं।


 **शक्तियाँ:**


1. **स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति:** जिला पंचायत को अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले विकास कार्यों के लिए स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति प्राप्त है। यह पंचायत क्षेत्रीय आवश्यकताओं के अनुसार योजनाएँ बना सकती है और उनका क्रियान्वयन कर सकती है।


2. **वित्तीय अधिकार:** जिला पंचायत को राज्य सरकार द्वारा आवंटित धनराशि का सही तरीके से उपयोग करने की शक्ति प्राप्त है। यह पंचायत अपने कार्यों के लिए वित्तीय संसाधनों का वितरण और नियोजन कर सकती है।


3. **नियामक शक्ति:** जिला पंचायत को अपने क्षेत्र में पंचायत से जुड़े नियमों और कानूनों का पालन सुनिश्चित करने की शक्ति प्राप्त है। इसके तहत अवैध निर्माण, अतिक्रमण, और अन्य नियम उल्लंघन पर कार्रवाई की जा सकती है।


4. **संविधानिक शक्तियाँ:** 73वें संविधान संशोधन अधिनियम के तहत जिला पंचायत को विशेष संवैधानिक शक्तियाँ दी गई हैं, जिससे इसे स्थानीय स्वशासन के महत्वपूर्ण अंग के रूप में स्थापित किया गया है।


 **निष्कर्ष:**

जिला पंचायत स्थानीय स्वशासन की सबसे महत्वपूर्ण इकाई है, जो जिले के विकास और प्रशासन की देखरेख करती है। इसके कार्यों और शक्तियों के माध्यम से न केवल जिले का विकास होता है, बल्कि स्थानीय स्तर पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को भी मजबूती मिलती है।


प्रश्न 11 ग्राम पंचायत क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत की समितियां के नाम गठन और कार्यों के बारे में विस्तार से बताइए।

उत्तर:

**ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत, और जिला पंचायत की समितियाँ:**


भारत में पंचायती राज व्यवस्था के तहत ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत (या पंचायत समिति), और जिला पंचायत, तीन स्तरीय प्रशासनिक इकाइयाँ होती हैं। ये सभी इकाइयाँ विभिन्न समितियों के माध्यम से अपने कार्यों का निष्पादन करती हैं। इन समितियों का गठन और उनके कार्य प्रमुख रूप से विकास योजनाओं, प्रशासनिक कामकाज, और सामाजिक कल्याण योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए होता है। आइए, ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत, और जिला पंचायत की समितियों के नाम, उनके कार्य, और गठन के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करें:


**1. ग्राम पंचायत की समितियाँ:**


 **(i) निर्माण एवं विकास समिति:**

- **कार्य:** इस समिति का कार्य गाँव में विकास योजनाओं का क्रियान्वयन करना होता है। इसमें सड़कों का निर्माण, पेयजल आपूर्ति, सार्वजनिक स्वास्थ्य, और शिक्षा सेवाओं का विस्तार शामिल है।

- **गठन:** इसका गठन पंचायत के सदस्यों में से किया जाता है, और यह समिति ग्राम प्रधान की अध्यक्षता में कार्य करती है।


**(ii) शिक्षा समिति:**

- **कार्य:** शिक्षा समिति का मुख्य कार्य गाँव में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को बढ़ावा देना और स्कूलों की निगरानी करना है।

- **गठन:** इसमें शिक्षकों और पंचायत के सदस्यों का समावेश होता है, जो शिक्षा संबंधी मामलों को देखते हैं।


 **(iii) स्वास्थ्य एवं स्वच्छता समिति:**

- **कार्य:** यह समिति गाँव में स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार, सफाई और स्वच्छता की व्यवस्था करती है। इसके तहत स्वास्थ्य केंद्रों का निर्माण, साफ-सफाई की देखरेख और कचरा प्रबंधन शामिल हैं।

- **गठन:** इसका गठन पंचायत सदस्यों और स्वास्थ्य कर्मियों के द्वारा किया जाता है।


**(iv) महिला एवं बाल विकास समिति:**

- **कार्य:** इस समिति का कार्य महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा और विकास के लिए योजनाओं का क्रियान्वयन करना है, जैसे आंगनवाड़ी केंद्रों की स्थापना, पोषण योजनाएँ, और महिला कल्याण कार्यक्रम।

- **गठन:** इसमें पंचायत के महिला सदस्य और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता शामिल होती हैं।


**2. क्षेत्र पंचायत (पंचायत समिति) की समितियाँ:**


 **(i) कृषि एवं पशुपालन समिति:**

- **कार्य:** कृषि और पशुपालन के क्षेत्र में सुधार लाने और किसानों को प्रशिक्षण देने का कार्य करती है।

- **गठन:** क्षेत्र पंचायत के सदस्यों और कृषि विशेषज्ञों द्वारा इसका गठन किया जाता है।


**(ii) शिक्षा समिति:**

- **कार्य:** इस समिति का कार्य शिक्षा के क्षेत्र में विकास कार्यों का संचालन करना है। इसके तहत स्कूलों का निरीक्षण, शिक्षकों की भर्ती, और शिक्षण सामग्री की व्यवस्था आती है।

- **गठन:** पंचायत समिति के सदस्यों और शिक्षा अधिकारियों द्वारा इसका गठन किया जाता है।


**(iii) स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण समिति:**

- **कार्य:** यह समिति ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं और परिवार कल्याण योजनाओं का क्रियान्वयन करती है। टीकाकरण अभियान, परिवार नियोजन कार्यक्रम, और स्वास्थ्य केंद्रों का संचालन इस समिति के कार्यों में आता है।

- **गठन:** पंचायत समिति के सदस्यों और स्वास्थ्य अधिकारियों के द्वारा इसका गठन किया जाता है।


**(iv) सामाजिक न्याय समिति:**

- **कार्य:** यह समिति सामाजिक न्याय और अधिकारों की रक्षा के लिए काम करती है। इसमें अनुसूचित जाति, जनजाति, और अन्य पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए योजनाएँ बनाई जाती हैं।

- **गठन:** इसमें पंचायत समिति के सदस्य और समाज कल्याण विभाग के अधिकारी शामिल होते हैं।


 **3. जिला पंचायत की समितियाँ:**


 **(i) वित्त समिति:**

- **कार्य:** जिला पंचायत के आर्थिक संसाधनों का प्रबंधन और वितरित करने का कार्य करती है। इसके तहत विभिन्न योजनाओं के लिए बजट निर्धारण और अनुदान का वितरण किया जाता है।

- **गठन:** जिला पंचायत के सदस्यों में से चुने गए प्रतिनिधि इस समिति का गठन करते हैं।


**(ii) निर्माण एवं विकास समिति:**

- **कार्य:** इस समिति का कार्य जिले के विकास कार्यों का संचालन करना है, जैसे सड़क निर्माण, जलापूर्ति, और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएँ।

- **गठन:** इसका गठन जिला पंचायत के सदस्यों और तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है।


 **(iii) शिक्षा एवं संस्कृति समिति:**

- **कार्य:** इस समिति का कार्य शिक्षा और सांस्कृतिक विकास को प्रोत्साहित करना है। इसके तहत जिले में शिक्षा सेवाओं का विस्तार, विद्यालयों की स्थापना, और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

- **गठन:** जिला पंचायत के सदस्य और शिक्षा विशेषज्ञ इस समिति का गठन करते हैं।


 **(iv) स्वास्थ्य एवं कल्याण समिति:**

- **कार्य:** जिले के स्वास्थ्य सेवाओं का प्रबंधन और सामाजिक कल्याण योजनाओं का क्रियान्वयन इस समिति का मुख्य कार्य है। अस्पतालों का संचालन, स्वास्थ्य अभियान, और टीकाकरण कार्यक्रम इस समिति द्वारा संचालित होते हैं।

- **गठन:** जिला पंचायत के सदस्यों और स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा इसका गठन किया जाता है।


**निष्कर्ष:**

ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत, और जिला पंचायत की समितियाँ स्थानीय प्रशासन और विकास कार्यों को सुनिश्चित करने के लिए गठित की जाती हैं। ये समितियाँ विभिन्न क्षेत्रों में योजनाओं के निर्माण और क्रियान्वयन के माध्यम से ग्रामीण और क्षेत्रीय विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। पंचायती राज व्यवस्था में इन समितियों का योगदान प्रशासनिक और विकासात्मक कार्यों की सफलता में अत्यंत महत्वपूर्ण है।


प्रश्न 12 पंचायत के बजट निर्माण पर विस्तार से चर्चा कीजिए।

उत्तर: 

**पंचायत के बजट निर्माण पर चर्चा:**


पंचायत का बजट निर्माण एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो पंचायत के आगामी वित्तीय वर्ष के लिए आय और व्यय का अनुमान लगाता है। यह बजट पंचायत के सभी विकास कार्यों, योजनाओं और प्रशासनिक खर्चों के लिए वित्तीय संसाधनों का आवंटन सुनिश्चित करता है। बजट निर्माण की प्रक्रिया पारदर्शिता, समग्रता, और ग्रामीण समुदाय की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर की जाती है। यह प्रक्रिया ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत, और जिला पंचायत के स्तर पर की जाती है।


 **बजट निर्माण की प्रक्रिया:**


1. **वर्तमान वित्तीय स्थिति का आकलन:**

   - पंचायत सबसे पहले अपनी वर्तमान वित्तीय स्थिति का आकलन करती है। इसमें पिछले वर्ष के बजट, आय और व्यय का विश्लेषण किया जाता है।

   - पंचायत यह सुनिश्चित करती है कि पिछले वर्ष की कोई भी बकाया राशि हो तो उसका सही तरीके से निपटान किया जाए।


2. **आय के स्रोतों का निर्धारण:**

   - पंचायत की आय के विभिन्न स्रोत होते हैं, जैसे कि सरकारी अनुदान, कर, शुल्क, और विभिन्न विकास योजनाओं के लिए केंद्र और राज्य सरकार से मिलने वाला फंड।

   - इन स्रोतों से प्राप्त होने वाली संभावित आय का अनुमान लगाया जाता है, जो कि बजट निर्माण के लिए आधार प्रदान करता है।


3. **जरूरतों की पहचान:**

   - पंचायत ग्रामीण समुदाय की जरूरतों की पहचान करती है। इसमें बुनियादी सुविधाओं, जैसे कि पेयजल, सड़क निर्माण, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ, और अन्य विकास कार्यों की आवश्यकताओं को प्राथमिकता दी जाती है।

   - इसके लिए ग्राम सभा या पंचायत समिति की बैठकें आयोजित की जाती हैं, जिसमें जनप्रतिनिधि और ग्रामीण जन अपने विचार और सुझाव प्रस्तुत करते हैं।


4. **व्यय का निर्धारण:**

   - आय के अनुमान के आधार पर विभिन्न कार्यों और योजनाओं के लिए व्यय का निर्धारण किया जाता है।

   - इसमें विकास कार्यों, प्रशासनिक खर्चों, वेतन और अन्य आवश्यकताओं के लिए धनराशि आवंटित की जाती है।


5. **प्राथमिकता निर्धारण:**

   - पंचायत अपने संसाधनों के अनुसार कार्यों की प्राथमिकता तय करती है। सबसे पहले बुनियादी और आवश्यक कार्यों पर ध्यान दिया जाता है, उसके बाद अन्य योजनाओं के लिए बजट आवंटन किया जाता है।


6. **बजट का मसौदा तैयार करना:**

   - पंचायत द्वारा आय और व्यय का विस्तृत मसौदा तैयार किया जाता है। इसमें सभी योजनाओं और कार्यों के लिए धनराशि का स्पष्ट उल्लेख किया जाता है।

   - इस मसौदे में पंचायत के सभी सदस्यों की सहमति ली जाती है और आवश्यकतानुसार संशोधन किए जाते हैं।


7. **बजट का अनुमोदन:**

   - बजट का अंतिम मसौदा पंचायत की बैठक में प्रस्तुत किया जाता है, जहाँ इसे मंजूरी के लिए रखा जाता है।

   - ग्राम पंचायत स्तर पर इसे ग्राम सभा द्वारा अनुमोदित किया जाता है, जबकि क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत स्तर पर इसे संबंधित समितियों द्वारा स्वीकृत किया जाता है।


8. **बजट का क्रियान्वयन:**

   - बजट स्वीकृत होने के बाद, पंचायत द्वारा इसे लागू किया जाता है। विभिन्न योजनाओं के लिए आवंटित धनराशि का उपयोग सुनिश्चित किया जाता है, और इसके क्रियान्वयन की निगरानी की जाती है।

   - पंचायत यह सुनिश्चित करती है कि बजट का सही तरीके से उपयोग हो और समय पर कार्य पूर्ण हों।


**बजट निर्माण के प्रमुख तत्व:**


1. **आय:** पंचायत की आय में कर, शुल्क, किराया, संपत्ति कर, और सरकारी अनुदान शामिल होते हैं। यह आय पंचायत के विकास और प्रशासनिक कार्यों के लिए उपयोग की जाती है।

   

2. **व्यय:** पंचायत का व्यय विकास कार्यों, प्रशासनिक खर्चों, वेतन, रखरखाव, और अन्य आवश्यक सेवाओं पर होता है। इसमें सड़कों का निर्माण, पेयजल, स्वास्थ्य सेवाएँ, और शिक्षा के क्षेत्र में खर्च शामिल हैं।

   

3. **लाभार्थियों का चयन:** बजट निर्माण में उन लाभार्थियों का चयन किया जाता है, जिन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए। इसमें गरीब और पिछड़े वर्गों को प्राथमिकता दी जाती है।


प्रश्न 13 महात्मा गांधी रोजगार गारंटी में पंचायत की क्या भूमिका है स्पष्ट करें।

उत्तर:

**महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) में पंचायत की भूमिका:**


महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) 2005 में भारत सरकार द्वारा शुरू की गई एक प्रमुख सामाजिक सुरक्षा योजना है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों की गारंटी देना है। इस योजना के तहत, ग्रामीण गरीबों को वर्ष में 100 दिन का रोजगार प्रदान किया जाता है, ताकि उनकी आजीविका सुरक्षित रहे और उन्हें गरीबी से उबरने का अवसर मिल सके। पंचायतें इस अधिनियम के क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। 


**पंचायत की भूमिका:**


**1. योजना निर्माण:**

   - **ग्राम पंचायत:** ग्राम पंचायतों को मनरेगा के तहत स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार कार्य योजनाएँ तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है। ये कार्य योजनाएँ स्थानीय संसाधनों, जनसंख्या की आवश्यकताओं, और विकास की प्राथमिकताओं को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं। इसमें जल संरक्षण, सड़कों का निर्माण, पौधारोपण, और अन्य ग्रामीण विकास के कार्य शामिल होते हैं।

   - **क्षेत्र और जिला पंचायत:** क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायतें ग्राम पंचायतों द्वारा प्रस्तावित योजनाओं की समीक्षा और अनुमोदन करती हैं। ये पंचायतें परियोजनाओं की तकनीकी और वित्तीय स्वीकृति देती हैं और उनके समुचित क्रियान्वयन को सुनिश्चित करती हैं।


**2. रोजगार पंजीकरण:**

   - ग्राम पंचायतें मनरेगा के अंतर्गत आने वाले लाभार्थियों का पंजीकरण करती हैं। इस पंजीकरण प्रक्रिया में ग्रामीण परिवारों का नामांकन किया जाता है, और उन्हें जॉब कार्ड जारी किए जाते हैं। यह जॉब कार्ड उन लाभार्थियों को रोजगार पाने का अधिकार देता है।


 **3. कार्यों का आवंटन:**

   - मनरेगा के तहत पंजीकृत लाभार्थियों को रोजगार देने का कार्य ग्राम पंचायत द्वारा किया जाता है। ग्राम पंचायत यह सुनिश्चित करती है कि 15 दिनों के भीतर पंजीकृत व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध कराया जाए। इसके अलावा, पंचायत यह भी सुनिश्चित करती है कि दिए गए कार्यों की गुणवत्ता और पारदर्शिता बनी रहे।


 **4. निगरानी और क्रियान्वयन:**

   - पंचायतें मनरेगा कार्यों की निगरानी करती हैं और यह सुनिश्चित करती हैं कि कार्यों का क्रियान्वयन सही तरीके से हो रहा है। इसमें कार्य की प्रगति की जाँच, श्रमिकों को समय पर भुगतान, और किसी भी प्रकार की शिकायतों का निवारण शामिल है।

   - इसके अलावा, पंचायतें श्रमिकों के लिए सुरक्षित और अनुकूल कार्य स्थितियों का प्रबंध करती हैं और यह सुनिश्चित करती हैं कि श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी का भुगतान किया जाए।


**5. भुगतान प्रक्रिया:**

   - मनरेगा के तहत श्रमिकों को किए गए कार्यों के लिए भुगतान ग्राम पंचायत के माध्यम से किया जाता है। पंचायत यह सुनिश्चित करती है कि मजदूरी का भुगतान सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में किया जाए और इसमें कोई देरी न हो।

   - इसके अतिरिक्त, पंचायतों को भुगतान की प्रक्रिया की निगरानी करनी होती है और यह सुनिश्चित करना होता है कि भ्रष्टाचार और अन्य अनियमितताओं से बचा जाए।


 **6. सामाजिक अंकेक्षण (Social Audit):**

   - पंचायतें मनरेगा कार्यों की पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक अंकेक्षण करती हैं। इसके तहत पंचायत ग्रामीण जनता की उपस्थिति में कार्यों की समीक्षा करती है और उनकी राय और शिकायतों को सुना जाता है।

   - सामाजिक अंकेक्षण के माध्यम से पंचायत यह सुनिश्चित करती है कि मनरेगा के तहत आवंटित धनराशि का सही तरीके से उपयोग हो रहा है और भ्रष्टाचार की कोई गुंजाइश न हो।


 **7. शिकायत निवारण:**

   - पंचायतें मनरेगा से संबंधित किसी भी शिकायत का निवारण करती हैं। इसके तहत मजदूरी में देरी, कार्य की गुणवत्ता, या पंजीकरण से संबंधित समस्याओं को सुलझाया जाता है। पंचायतें यह सुनिश्चित करती हैं कि लाभार्थियों को समय पर न्याय मिले और उनकी समस्याओं का समाधान हो।


**निष्कर्ष:**

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के क्रियान्वयन में पंचायतों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। पंचायतें न केवल योजना निर्माण, रोजगार पंजीकरण, और कार्य आवंटन की प्रक्रिया को संभालती हैं, बल्कि वे कार्यों की निगरानी और भुगतान की व्यवस्था को भी सुचारू रूप से संचालित करती हैं। पंचायतों के माध्यम से मनरेगा का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी उन्मूलन और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है। पंचायतें इस प्रक्रिया को जमीनी स्तर पर लागू कर ग्रामीण विकास और जनकल्याण में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।


प्रश्न 14 सूचना का अधिकार अधिनियम पर एक लेख लिखिए।

उत्तर:

**सूचना का अधिकार कानून: एक महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक अधिकार**


सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून 2005 में लागू किया गया, जो भारत में नागरिकों को सरकारी कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम प्रदान करता है। इस कानून के तहत कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी विभाग से सूचना प्राप्त कर सकता है, जिससे सरकारी कार्यों में पारदर्शिता बढ़ती है और भ्रष्टाचार को नियंत्रित किया जा सकता है।


आरटीआई के तहत नागरिकों को विभिन्न सरकारी नीतियों, योजनाओं, फैसलों, और कार्यों से संबंधित जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है। इस कानून का उद्देश्य सरकारी विभागों और जनता के बीच विश्वास और पारदर्शिता को बढ़ावा देना है। यह कानून न केवल केंद्रीय और राज्य सरकारों के अधीन संस्थानों पर लागू होता है, बल्कि सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों, गैर-सरकारी संगठनों, और निजी संस्थाओं पर भी लागू होता है, जो सरकारी धन का उपयोग करते हैं।


आरटीआई कानून के तहत, सूचना प्रदान करने में देरी होने पर अधिकारियों पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है। यह कानून नागरिकों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक बनाता है और लोकतंत्र को मजबूत करता है। सूचना का अधिकार कानून भारत में सुशासन और पारदर्शिता के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ है।


प्रश्न 15 ग्रामीण विकास योजना पर चर्चा करें।

उत्तर:

**ग्रामीण विकास की योजनाएँ: एक विस्तृत चर्चा**


भारत की अधिकांश आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है, और ग्रामीण विकास की योजनाओं का उद्देश्य ग्रामीण जनता की जीवन स्तर में सुधार करना, रोजगार के अवसर बढ़ाना, और समग्र आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देना है। इन योजनाओं को केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में लागू किया जाता है, जैसे कि कृषि, बुनियादी ढांचा, स्वास्थ्य, शिक्षा, और रोजगार।


**1. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा):**

   - मनरेगा 2005 में शुरू की गई एक प्रमुख योजना है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार प्रदान करने के साथ-साथ संपत्ति सृजन और बुनियादी ढांचे के विकास पर केंद्रित है।

   - इस योजना के तहत ग्रामीण गरीबों को वर्ष में 100 दिन का रोजगार प्रदान किया जाता है, जिससे उन्हें आर्थिक सुरक्षा मिलती है और गरीबी कम होती है।


 **2. प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (PMAY-G):**

   - इस योजना का उद्देश्य 2022 तक सभी ग्रामीण परिवारों को पक्के मकान प्रदान करना है।

   - योजना के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए घर निर्माण के लिए वित्तीय सहायता दी जाती है। इसके अलावा, इसमें स्वच्छता और विद्युत कनेक्शन जैसी सुविधाएं भी शामिल की गई हैं।


 **3. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY):**

   - 2000 में शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य सभी ग्रामीण क्षेत्रों को ऑल-वेदर सड़क कनेक्टिविटी प्रदान करना है।

   - इस योजना के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क नेटवर्क का विकास किया गया है, जिससे लोगों की आर्थिक गतिविधियों और सामाजिक सेवाओं तक पहुँच आसान हो गई है।


**4. दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना (DDU-GKY):**

   - इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण युवाओं को रोजगार के लिए आवश्यक कौशल प्रदान करना है।

   - DDU-GKY के तहत विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान किए जाते हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की समस्या को हल किया जा सके।


 **5. स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण:**

   - 2014 में शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता सुविधाओं का विकास करना है।

   - योजना के तहत शौचालय निर्माण, स्वच्छता जागरूकता कार्यक्रम, और ग्रामीण क्षेत्रों में कचरा प्रबंधन को बढ़ावा दिया जाता है, जिससे ग्रामीण स्वास्थ्य और स्वच्छता में सुधार हो सके।


**6. राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM):**

   - इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण गरीबों को संगठित करना और उन्हें आजीविका के स्थायी स्रोत प्रदान करना है।

   - NRLM के तहत स्वयं सहायता समूह (SHG) का गठन किया जाता है, जिसमें महिलाओं को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जाता है। इन समूहों के माध्यम से उन्हें बैंक लिंकेज, प्रशिक्षण, और आर्थिक गतिविधियों में सहयोग प्रदान किया जाता है।


**7. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN):**

   - इस योजना के तहत छोटे और सीमांत किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है।

   - योजना के तहत किसानों को हर वर्ष तीन किस्तों में 6,000 रुपये की आर्थिक सहायता दी जाती है, जिससे उन्हें कृषि संबंधी खर्चों में मदद मिल सके।


 **8. अटल भूजल योजना (Atal Bhujal Yojana):**

   - यह योजना जल संरक्षण और प्रबंधन पर केंद्रित है, जिसका उद्देश्य भूजल स्तर को बढ़ाना है।

   - योजना के तहत विभिन्न जल संरक्षण उपायों को बढ़ावा दिया जाता है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की समस्या को हल किया जा सके।


 **निष्कर्ष:**

ग्रामीण विकास की ये योजनाएँ न केवल ग्रामीण क्षेत्रों की आर्थिक स्थिति को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं, बल्कि सामाजिक विकास, स्वास्थ्य, और शिक्षा के क्षेत्रों में भी योगदान दे रही हैं। इन योजनाओं का सही तरीके से क्रियान्वयन और निगरानी ग्रामीण विकास की दिशा में एक मजबूत कदम है। इन योजनाओं के माध्यम से भारत सरकार का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में समग्र विकास और सशक्तिकरण सुनिश्चित करना है।