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UOU GEPA-01 SOLVED PAPER DECEMBER 2024, लोक प्रशासन: एक परिचय

 

UOU GEPA-01 SOLVED PAPER DECEMBER 2024, लोक प्रशासन: एक परिचय

प्रश्न 01 : लोक प्रशासन क्या है तथा समय के साथ इसमें क्या बदलाव आया है? उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिए।

📜 परिचय

लोक प्रशासन (Public Administration) शासन व्यवस्था का वह महत्वपूर्ण अंग है जो नीतियों और कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में केंद्रीय भूमिका निभाता है। यह प्रशासनिक ढांचा न केवल सरकारी योजनाओं को लागू करता है बल्कि जनसाधारण के हितों की पूर्ति के लिए भी कार्य करता है। बदलते समय के साथ लोक प्रशासन की अवधारणा, कार्यप्रणाली और उद्देश्यों में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए हैं। इन परिवर्तनों को समझना लोकतांत्रिक शासन और प्रशासन के गहन अध्ययन के लिए आवश्यक है।


🏛 लोक प्रशासन की परिभाषा और अर्थ

📌 परिभाषा

  • एफ.डब्ल्यू. विलॉबी के अनुसार – "लोक प्रशासन, सार्वजनिक नीतियों के कार्यान्वयन की प्रक्रिया है।"

  • एल.डी. व्हाइट के अनुसार – "लोक प्रशासन, सरकार का वह व्यवसाय है जो जनता की नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करता है।"

📌 अर्थ

लोक प्रशासन का अर्थ है — वह प्रक्रिया जिसमें सरकारी नीतियों का निर्माण, कार्यान्वयन और मूल्यांकन किया जाता है, ताकि समाज के विभिन्न वर्गों की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।


📂 लोक प्रशासन के मुख्य कार्य

🏢 नीतियों का क्रियान्वयन

सरकार द्वारा बनाई गई नीतियों को जमीनी स्तर पर लागू करना।

📊 संसाधनों का प्रबंधन

वित्तीय, मानव संसाधन और भौतिक संसाधनों का कुशल प्रबंधन।

📞 जनसंपर्क और सेवा

जनता की शिकायतों का निवारण, सेवाओं की आपूर्ति और जनकल्याण कार्यक्रमों का संचालन।

⚖️ विधि और व्यवस्था बनाए रखना

कानून का पालन सुनिश्चित करना और समाज में शांति बनाए रखना।


⏳ समय के साथ लोक प्रशासन में आए परिवर्तन

🏛 पारंपरिक लोक प्रशासन (19वीं शताब्दी – मध्य 20वीं शताब्दी)

  • विशेषताएँ: केंद्रीकृत नियंत्रण, नियम-आधारित कार्यप्रणाली, पदानुक्रम पर जोर।

  • उदाहरण: ब्रिटिश शासन काल में भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था — जिसमें आदेश शीर्ष स्तर से निचले स्तर तक क्रमवार पहुँचते थे।

🚀 आधुनिक लोक प्रशासन (20वीं शताब्दी के मध्य के बाद)

  • विशेषताएँ: जनकेंद्रित दृष्टिकोण, नीतिगत विश्लेषण, कुशलता और प्रभावशीलता पर बल।

  • उदाहरण: पंचवर्षीय योजनाओं के तहत ग्रामीण विकास कार्यक्रमों का विकेंद्रीकृत क्रियान्वयन।


🔄 लोक प्रशासन में प्रमुख बदलावों के चरण

📅 1. औपनिवेशिक काल से स्वतंत्रता पूर्व परिवर्तन

  • शासन में कठोरता, जनसंपर्क की कमी और नौकरशाही का प्रभुत्व।

  • प्रशासन का मुख्य उद्देश्य था — राजस्व संग्रह और कानून-व्यवस्था।

📅 2. स्वतंत्रता के बाद (1947 – 1990)

  • विकासोन्मुखी प्रशासन का उदय।

  • पंचवर्षीय योजनाओं के तहत शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि विकास पर बल।

  • उदाहरण: हरित क्रांति कार्यक्रम का प्रशासनिक संचालन।

📅 3. उदारीकरण के बाद (1991 – वर्तमान)

  • प्रशासन में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ी।

  • ई-गवर्नेंस, डिजिटल सेवाओं, और पारदर्शिता पर जोर।

  • उदाहरण: डिजिटल इंडिया मिशन, ऑनलाइन सरकारी सेवाएँ।


💻 तकनीकी परिवर्तन और ई-गवर्नेंस का प्रभाव

🖥 ई-गवर्नेंस

  • सरकारी सेवाओं को इंटरनेट और डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से उपलब्ध कराना।

  • पारदर्शिता, त्वरित सेवा और भ्रष्टाचार में कमी।

📱 उदाहरण

  • UMANG App के जरिए कई सरकारी सेवाएँ मोबाइल पर उपलब्ध।

  • आधार आधारित सेवाएँ जैसे सब्सिडी ट्रांसफर और जनधन खाते।


🌍 वैश्वीकरण का प्रभाव

  • अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार नीतियों का निर्माण।

  • विदेशी निवेश को आकर्षित करने हेतु प्रशासनिक सुधार।

  • WTO, IMF जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ तालमेल।


⚖️ पारदर्शिता और जवाबदेही में बदलाव

  • RTI Act 2005 के जरिए सूचना का अधिकार।

  • सोशल मीडिया के माध्यम से प्रशासनिक कार्यों की निगरानी।

  • जनसुनवाई और सार्वजनिक समीक्षा की परंपरा।


👥 जनसहभागिता में वृद्धि

  • पंचायत राज व्यवस्था के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की भागीदारी।

  • शहरी निकायों में वार्ड समितियों का गठन।

  • उदाहरण: केरल की जन योजना योजना में जनता की सीधी भागीदारी।


📈 नीतिगत विश्लेषण और परिणाम-उन्मुखता

  • नीतियों का प्रभाव आंकने के लिए आउटकम-बेस्ड मॉनिटरिंग

  • उदाहरण: स्वच्छ भारत मिशन में वार्षिक प्रदर्शन समीक्षा।


🧩 वर्तमान समय की चुनौतियाँ

  • संसाधनों की कमी।

  • राजनीतिक हस्तक्षेप।

  • भ्रष्टाचार और जवाबदेही की कमी।

  • तेजी से बदलती तकनीक के साथ तालमेल।


💡 निष्कर्ष

लोक प्रशासन समय के साथ औपनिवेशिक नियंत्रण आधारित व्यवस्था से जनकेंद्रित और तकनीक-संचालित व्यवस्था में परिवर्तित हुआ है। आज यह केवल नीतियों को लागू करने का माध्यम नहीं बल्कि नागरिकों के जीवन स्तर को सुधारने का सक्रिय साधन है। डिजिटल तकनीक, पारदर्शिता और जनसहभागिता के साथ यह लोकतांत्रिक शासन को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। भविष्य में इसका स्वरूप और अधिक गतिशील और परिणाम-उन्मुख होगा।




प्रश्न 02 : क्या लोक प्रशासन एक कला है, विज्ञान है, या दोनों है? अपने शब्दों में परिभाषित करते हुए सरकार में इसका महत्व समझाइए।

📜 परिचय

लोक प्रशासन शासन व्यवस्था का एक अनिवार्य अंग है, जो नीतियों और कार्यक्रमों को जनता तक पहुँचाने का कार्य करता है। यह प्रश्न लंबे समय से विद्वानों के बीच चर्चा का विषय रहा है कि लोक प्रशासन एक कला है, विज्ञान है या दोनों का मिश्रण। दरअसल, लोक प्रशासन में कुछ पहलू ऐसे हैं जो वैज्ञानिक पद्धतियों पर आधारित हैं, जबकि कुछ पहलू अनुभव, कौशल और मानव व्यवहार की समझ पर निर्भर करते हैं, जो इसे कला बनाते हैं।


🏛 लोक प्रशासन की परिभाषा

📌 सरल शब्दों में

लोक प्रशासन वह प्रक्रिया है जिसमें सरकार की नीतियों का निर्माण, कार्यान्वयन, मूल्यांकन और जनता की सेवाओं का प्रबंधन किया जाता है।

📌 विद्वानों की परिभाषाएँ

  • वुडरो विल्सन – "लोक प्रशासन, सरकार का विस्तृत और व्यवस्थित कार्य है।"

  • एल.डी. व्हाइट – "लोक प्रशासन, सार्वजनिक नीतियों के कार्यान्वयन का अध्ययन और व्यवहार है।"


🎨 लोक प्रशासन एक कला के रूप में

🎯 विशेषताएँ

  1. अनुभव आधारित कार्यप्रणाली – निर्णय लेने में अधिकारी अपने अनुभव और अंतर्ज्ञान का उपयोग करते हैं।

  2. मानव व्यवहार की समझ – कर्मचारियों और जनता से संवाद करने की क्षमता।

  3. समस्या समाधान में लचीलापन – प्रत्येक स्थिति के लिए अलग रणनीति अपनाना।

📌 उदाहरण

  • आपदा प्रबंधन में अधिकारियों द्वारा त्वरित और परिस्थिति-विशेष निर्णय लेना।

  • ग्रामीण क्षेत्रों में विकास योजनाओं को स्थानीय संस्कृति के अनुसार ढालना।


🔬 लोक प्रशासन एक विज्ञान के रूप में

📊 विशेषताएँ

  1. सैद्धांतिक ढांचा – प्रशासन के सिद्धांत और अवधारणाएँ, जैसे कि फेयोल के प्रबंधन सिद्धांत।

  2. तथ्यात्मक विश्लेषण – आंकड़ों और अनुसंधान के आधार पर नीतियाँ बनाना।

  3. नियमित पद्धति – प्रशासनिक प्रक्रियाओं में एकरूपता और मानकीकरण।

📌 उदाहरण

  • जनगणना के आंकड़ों के आधार पर नीतियों का निर्माण।

  • स्वास्थ्य सेवाओं में सांख्यिकीय विश्लेषण से सुधार।


⚖️ लोक प्रशासन — कला और विज्ञान का मिश्रण

🧩 कारण

  • विज्ञान, लोक प्रशासन को सैद्धांतिक आधार और विधि प्रदान करता है।

  • कला, इसे मानवीय दृष्टिकोण, सहानुभूति और लचीलापन देती है।

📌 उदाहरण

स्वच्छ भारत मिशन में — योजना बनाना (विज्ञान) + जनजागरूकता अभियान चलाना (कला)।


🏢 सरकार में लोक प्रशासन का महत्व

📜 1. नीतियों का प्रभावी क्रियान्वयन

सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों को जमीनी स्तर पर लागू करना।
उदाहरण: प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना का सफल संचालन।

📜 2. जनसेवा का प्रबंधन

शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन जैसी सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
उदाहरण: सरकारी अस्पतालों में मुफ्त टीकाकरण कार्यक्रम।

📜 3. विधि और व्यवस्था बनाए रखना

कानून का पालन सुनिश्चित करना और समाज में शांति स्थापित करना।
उदाहरण: चुनाव के दौरान पुलिस और प्रशासन का सहयोग।

📜 4. संसाधनों का कुशल उपयोग

मानव, वित्तीय और भौतिक संसाधनों का संतुलित प्रबंधन।
उदाहरण: मनरेगा योजना में श्रमिकों को समय पर भुगतान।

📜 5. सामाजिक-आर्थिक विकास

गरीबी उन्मूलन, महिला सशक्तिकरण, शिक्षा और स्वास्थ्य सुधार में योगदान।


🌍 बदलते समय में लोक प्रशासन की प्रासंगिकता

💻 तकनीकी उन्नति

ई-गवर्नेंस और डिजिटल सेवाओं ने प्रशासन को पारदर्शी और तेज बनाया है।

👥 जनसहभागिता

पंचायत राज और शहरी निकायों के माध्यम से नागरिकों की सीधी भागीदारी।

⚖️ पारदर्शिता और जवाबदेही

RTI Act 2005 और सोशल मीडिया निगरानी से जनता का विश्वास बढ़ा है।


📈 लोक प्रशासन की प्रमुख चुनौतियाँ

  • राजनीतिक हस्तक्षेप।

  • भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी।

  • संसाधनों की कमी।

  • तेजी से बदलते तकनीकी माहौल में सामंजस्य।


💡 निष्कर्ष

लोक प्रशासन न तो केवल कला है और न ही केवल विज्ञान — यह दोनों का अनूठा संयोजन है। विज्ञान इसे विधिवत और तथ्य-आधारित बनाता है, जबकि कला इसे मानवीय और परिस्थिति-विशेष अनुकूल बनाती है। सरकार में इसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यही वह माध्यम है जो नीतियों को कागज से जमीन तक पहुँचाता है। आज के समय में तकनीकी प्रगति, पारदर्शिता और जनसहभागिता के साथ लोक प्रशासन लोकतंत्र को मजबूत बनाने में निर्णायक भूमिका निभा रहा है।




प्रश्न 03 : आधुनिक लोकतंत्र में लोक प्रशासन क्यों महत्वपूर्ण है? शासन और लोक सेवा में इसकी भूमिका की व्याख्या कीजिए।

📜 परिचय

आधुनिक लोकतंत्र की सफलता केवल नीतियों और कानूनों पर नहीं, बल्कि उन नीतियों को लागू करने की क्षमता पर निर्भर करती है। यही कार्य लोक प्रशासन करता है। यह सरकार और जनता के बीच एक सेतु के रूप में काम करता है। लोकतंत्र में जनता की आकांक्षाओं को वास्तविकता में बदलने, शासन को प्रभावी बनाने और नागरिकों को गुणवत्तापूर्ण सेवाएँ उपलब्ध कराने में लोक प्रशासन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।


🏛 आधुनिक लोकतंत्र में लोक प्रशासन का अर्थ

लोक प्रशासन वह संगठित प्रणाली है जिसके माध्यम से सरकार अपने उद्देश्यों, नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करती है और जनता को सेवाएँ प्रदान करती है। यह केवल आदेश देने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता सुधारने की सक्रिय प्रक्रिया है।


🎯 आधुनिक लोकतंत्र में लोक प्रशासन का महत्व

📌 1. नीतियों का क्रियान्वयन

  • सरकार द्वारा बनाई गई नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करना।

  • उदाहरण: शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) का क्रियान्वयन, जिससे सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा मिल सके।

📌 2. नागरिकों को सेवाओं की आपूर्ति

  • स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन, बिजली, पानी जैसी आवश्यक सेवाओं की उपलब्धता।

  • उदाहरण: आयुष्मान भारत योजना के तहत गरीब परिवारों को स्वास्थ्य बीमा।

📌 3. लोकतांत्रिक सिद्धांतों की रक्षा

  • पारदर्शिता, जवाबदेही और कानून का पालन सुनिश्चित करना।

  • उदाहरण: RTI Act 2005 के तहत सूचना का अधिकार।

📌 4. संकट और आपदा प्रबंधन

  • प्राकृतिक आपदाओं, महामारी और आपात स्थितियों में त्वरित कार्रवाई।

  • उदाहरण: COVID-19 महामारी के दौरान वैक्सीनेशन कार्यक्रम।


⚖️ शासन में लोक प्रशासन की भूमिका

🏢 1. शासन को संगठित और सुव्यवस्थित बनाना

लोक प्रशासन नीतियों और कानूनों के अनुसार शासन को चलाता है, जिससे व्यवस्था बनी रहती है।

🧩 2. नीति निर्माण में सहयोग

  • आंकड़े और शोध प्रदान करना।

  • जनता की आवश्यकताओं का विश्लेषण कर नीतियों का सुझाव देना।

  • उदाहरण: ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल योजना हेतु सर्वेक्षण और रिपोर्ट।

📊 3. कानून-व्यवस्था बनाए रखना

  • पुलिस, न्यायिक प्रशासन और नियामक संस्थाओं का संचालन।

  • समाज में शांति और स्थिरता बनाए रखना।

💻 4. तकनीकी नवाचार और ई-गवर्नेंस

  • ऑनलाइन सेवाओं और डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग।

  • उदाहरण: डिजिटल इंडिया मिशन और UMANG App।


👥 लोक सेवा में लोक प्रशासन की भूमिका

🏥 1. जनकल्याण योजनाओं का संचालन

  • गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण योजनाओं का क्रियान्वयन।

  • उदाहरण: प्रधानमंत्री आवास योजना।

🏫 2. सेवाओं की गुणवत्ता सुधारना

  • त्वरित और पारदर्शी सेवा प्रदान करना।

  • सेवा वितरण में विलंब और भ्रष्टाचार को कम करना।

📢 3. जनसंपर्क और सहभागिता

  • नागरिकों से संवाद स्थापित करना और उनकी शिकायतों का निवारण करना।

  • उदाहरण: जनसुनवाई पोर्टल और हेल्पलाइन।

🛠 4. विशेष समूहों की सेवा

  • कमजोर वर्ग, महिला, वृद्ध और दिव्यांग नागरिकों के लिए विशेष योजनाएँ।


🌍 वैश्वीकरण और तकनीकी युग में लोक प्रशासन की नई भूमिका

💻 ई-गवर्नेंस

  • सरकारी सेवाओं को ऑनलाइन उपलब्ध कराना, जिससे पारदर्शिता और गति बढ़े।

🌐 वैश्विक मानकों के अनुरूप नीतियाँ

  • WTO, IMF जैसी संस्थाओं के साथ सहयोग कर नीतियों का निर्माण।

📊 डेटा आधारित निर्णय

  • बिग डेटा, AI और एनालिटिक्स का उपयोग करके बेहतर नीतिगत निर्णय लेना।


🚧 चुनौतियाँ

  • राजनीतिक हस्तक्षेप।

  • संसाधनों की कमी।

  • भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी।

  • तेजी से बदलती तकनीक के साथ तालमेल बैठाना।


💡 निष्कर्ष

आधुनिक लोकतंत्र में लोक प्रशासन की भूमिका केवल नीतियों को लागू करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जनता के विश्वास को बनाए रखने, लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने और समाज के समग्र विकास में योगदान करने का माध्यम है। शासन में यह व्यवस्था, दक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करता है, जबकि लोक सेवा में यह नागरिकों की आवश्यकताओं को पूरा करता है। आने वाले समय में तकनीकी नवाचार, पारदर्शिता और जनसहभागिता के साथ लोक प्रशासन और भी सशक्त और प्रभावी होगा।




प्रश्न 04 : भूमण्डलीकरण के युग में लोक प्रशासन की प्रासंगिकता को सटीक उदाहरणों द्वारा सिद्ध कीजिए।

📜 परिचय

भूमण्डलीकरण (Globalization) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत दुनिया की अर्थव्यवस्था, संस्कृति, तकनीक और राजनीति एक-दूसरे से गहराई से जुड़ गई है। इस युग में देश की आंतरिक नीतियाँ और प्रशासनिक ढांचा अब केवल राष्ट्रीय सीमाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मानकों, समझौतों और प्रतिस्पर्धा से भी प्रभावित होते हैं। ऐसे परिप्रेक्ष्य में लोक प्रशासन की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है क्योंकि यह वह माध्यम है जिसके द्वारा सरकार वैश्विक चुनौतियों और अवसरों का सामना करती है।


🌐 भूमण्डलीकरण का अर्थ और प्रभाव

📌 अर्थ

भूमण्डलीकरण का मतलब है — दुनिया को एक "वैश्विक गाँव" में बदलने की प्रक्रिया, जिसमें पूंजी, वस्तुएँ, सेवाएँ, तकनीक और विचार स्वतंत्र रूप से एक देश से दूसरे देश में प्रवाहित होते हैं।

📌 प्रभाव

  1. आर्थिक उदारीकरण और बाजार प्रतिस्पर्धा।

  2. तकनीकी नवाचार की तेज गति।

  3. सांस्कृतिक आदान-प्रदान और विविधता।

  4. वैश्विक संस्थाओं (WTO, IMF, UN) का प्रभाव।


🏛 भूमण्डलीकरण के युग में लोक प्रशासन की प्रासंगिकता

📜 1. वैश्विक मानकों के अनुसार नीतियाँ बनाना

  • अंतरराष्ट्रीय समझौतों और मानकों के अनुसार घरेलू नीतियों का निर्माण।

  • उदाहरण: पर्यावरण संरक्षण के लिए भारत का पेरिस जलवायु समझौता में शामिल होना और "राष्ट्रीय सौर मिशन" जैसी योजनाओं का संचालन।

📜 2. विदेशी निवेश और व्यापार को प्रोत्साहन

  • व्यापार नीतियों और निवेश प्रक्रियाओं को सरल और पारदर्शी बनाना।

  • उदाहरण: "मेक इन इंडिया" और "ईज ऑफ डूइंग बिजनेस" सुधार।

📜 3. तकनीकी नवाचार को अपनाना

  • ई-गवर्नेंस, डिजिटल सेवाओं और स्मार्ट सिटी परियोजनाओं का संचालन।

  • उदाहरण: डिजिटल इंडिया मिशन के तहत ऑनलाइन सेवाओं की शुरुआत।

📜 4. अंतरराष्ट्रीय सहयोग

  • अन्य देशों के साथ आर्थिक, सामाजिक और तकनीकी सहयोग।

  • उदाहरण: भारत का इसरो के माध्यम से उपग्रह प्रक्षेपण में कई देशों को सेवाएँ देना।


⚖️ शासन में भूमण्डलीकरण की भूमिका और लोक प्रशासन का योगदान

🌏 1. वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए सुधार

  • प्रशासन को दक्ष, पारदर्शी और निवेश-हितैषी बनाना।

  • उदाहरण: जीएसटी लागू करना जिससे पूरे देश में एक समान कर प्रणाली बनी।

🌱 2. सतत विकास

  • वैश्विक पर्यावरणीय लक्ष्यों को अपनाकर स्थानीय स्तर पर लागू करना।

  • उदाहरण: स्वच्छ भारत मिशन, जल जीवन मिशन।

🏥 3. स्वास्थ्य सेवाओं का वैश्विक समन्वय

  • WHO और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ मिलकर स्वास्थ्य संकटों का सामना करना।

  • उदाहरण: COVID-19 महामारी में वैक्सीन निर्माण और वितरण।

🧩 4. अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों का पालन

  • WTO के नियमों के अनुसार व्यापारिक प्रक्रियाएँ अपनाना।


👥 लोक सेवा में भूमण्डलीकरण का प्रभाव

📢 1. सेवा की गुणवत्ता में सुधार

  • वैश्विक मानकों के अनुसार तेज और पारदर्शी सेवा।

  • उदाहरण: पासपोर्ट सेवा केंद्र में ऑनलाइन आवेदन और ट्रैकिंग सिस्टम।

📱 2. डिजिटल सेवाओं का प्रसार

  • मोबाइल ऐप और पोर्टल के माध्यम से नागरिक सेवाएँ उपलब्ध कराना।

  • उदाहरण: UMANG App और Aarogya Setu App।

🛠 3. कौशल विकास और रोजगार

  • अंतरराष्ट्रीय बाजार की आवश्यकताओं के अनुसार युवाओं को प्रशिक्षित करना।

  • उदाहरण: कौशल भारत मिशन।

💼 4. प्रवासी भारतीयों के लिए सेवाएँ

  • विदेशों में बसे भारतीयों को दूतावासों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से सहायता।


📊 भूमण्डलीकरण के युग में लोक प्रशासन की चुनौतियाँ

⚠️ 1. आर्थिक असमानता

  • वैश्विक प्रतिस्पर्धा में कमजोर वर्ग पीछे रह सकते हैं।

⚠️ 2. सांस्कृतिक पहचान का खतरा

  • विदेशी संस्कृति के अत्यधिक प्रभाव से स्थानीय परंपराएँ कमजोर हो सकती हैं।

⚠️ 3. नीति निर्माण में बाहरी दबाव

  • अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और शक्तिशाली देशों का प्रभाव।

⚠️ 4. साइबर सुरक्षा

  • डिजिटल सेवाओं के विस्तार से डेटा चोरी और साइबर हमलों का खतरा।


💡 समाधान और सुधार के उपाय

🔑 1. स्थानीय आवश्यकताओं पर ध्यान

वैश्विक मानकों को अपनाते समय स्थानीय परिस्थितियों को प्राथमिकता देना।

🔑 2. पारदर्शिता और जवाबदेही

ई-गवर्नेंस और नागरिक भागीदारी को बढ़ावा देना।

🔑 3. सतत विकास

पर्यावरण और सामाजिक संतुलन को ध्यान में रखते हुए नीतियाँ बनाना।

🔑 4. क्षमता निर्माण

अधिकारियों और कर्मचारियों को अंतरराष्ट्रीय प्रथाओं के अनुरूप प्रशिक्षित करना।


🏁 निष्कर्ष

भूमण्डलीकरण के युग में लोक प्रशासन की प्रासंगिकता अत्यधिक बढ़ गई है क्योंकि यह सरकार को वैश्विक अवसरों का लाभ उठाने और चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनाता है। शासन में यह पारदर्शिता, दक्षता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को सुनिश्चित करता है, जबकि लोक सेवा में यह नागरिकों को गुणवत्तापूर्ण, तेज और तकनीकी रूप से उन्नत सेवाएँ प्रदान करता है। आने वाले समय में, डिजिटल नवाचार, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और सतत विकास के लक्ष्यों को अपनाकर लोक प्रशासन अपनी भूमिका को और सशक्त बना सकता है।




प्रश्न 05 : लोक प्रशासन के अध्ययन के 'परम्परागत दृष्टिकोण' की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।

📜 परिचय

लोक प्रशासन के अध्ययन के लिए समय-समय पर विभिन्न दृष्टिकोण अपनाए गए हैं। इनमें से परम्परागत दृष्टिकोण (Traditional Approaches) प्रारंभिक काल में सर्वाधिक प्रचलित रहा। यह दृष्टिकोण मुख्यतः प्रशासन की संरचना, प्रक्रियाओं और संगठनात्मक ढाँचे पर केंद्रित होता है। इसमें यह माना जाता है कि प्रशासन एक औपचारिक, संरचित और नियम-आधारित गतिविधि है, जिसे निश्चित सिद्धांतों और प्रक्रियाओं के माध्यम से संचालित किया जा सकता है।


🏛 परम्परागत दृष्टिकोण का अर्थ

परम्परागत दृष्टिकोण लोक प्रशासन को एक संरचनात्मक और संस्थागत प्रक्रिया के रूप में देखता है। इसका अध्ययन मुख्यतः कानूनी, संगठनात्मक और प्रबंधकीय पहलुओं पर केंद्रित होता है, न कि मानवीय या व्यवहारिक पक्षों पर।


🎯 परम्परागत दृष्टिकोण की प्रमुख विशेषताएँ

🏢 1. संरचना पर जोर

  • प्रशासनिक संगठन की संरचना और पदानुक्रम पर ध्यान।

  • नियम और आदेश शीर्ष से नीचे तक क्रमबद्ध रूप से पहुँचते हैं।

📜 2. औपचारिक प्रक्रियाएँ

  • कार्य निश्चित नियमों और प्रक्रियाओं के अनुसार संपन्न होते हैं।

📊 3. कार्यक्षमता और दक्षता

  • प्रशासनिक कार्यों में दक्षता बढ़ाने के लिए मानकीकरण।

⚖️ 4. राजनीति से अलगाव

  • प्रशासन को राजनीति से अलग एक स्वतंत्र इकाई के रूप में देखना।


📂 परम्परागत दृष्टिकोण के मुख्य प्रकार

📌 1. संस्थागत दृष्टिकोण (Institutional Approach)

  • प्रशासनिक संस्थाओं का अध्ययन।

  • संगठन की संरचना, कार्य और अधिकार क्षेत्र का विश्लेषण।

  • उदाहरण: मंत्रालय, विभाग और सार्वजनिक उपक्रमों का अध्ययन।

📌 2. कानूनी दृष्टिकोण (Legal Approach)

  • प्रशासनिक कार्यों को कानूनी प्रावधानों और अधिकारों के संदर्भ में देखना।

  • उदाहरण: प्रशासनिक कानून, रिट, अनुच्छेदों का विश्लेषण।

📌 3. प्रबंधकीय दृष्टिकोण (Managerial Approach)

  • प्रशासन को प्रबंधन की तरह देखना, जहाँ योजना, संगठन, निर्देशन और नियंत्रण मुख्य कार्य हैं।

  • उदाहरण: हेनरी फेयोल के प्रबंधन सिद्धांत।

📌 4. ऐतिहासिक दृष्टिकोण (Historical Approach)

  • प्रशासनिक प्रणाली के विकास का समयानुसार अध्ययन।

  • उदाहरण: भारत में मौर्य काल से लेकर आधुनिक प्रशासन का विकास।


🏢 प्रमुख विद्वानों के योगदान

👤 वुडरो विल्सन

  • लोक प्रशासन को एक स्वतंत्र अध्ययन क्षेत्र के रूप में स्थापित किया।

  • राजनीति और प्रशासन के पृथक्करण का सिद्धांत दिया।

👤 मैक्स वेबर

  • नौकरशाही मॉडल प्रस्तुत किया जिसमें पदानुक्रम, नियम-आधारित कार्य और योग्यता-आधारित नियुक्तियाँ शामिल थीं।

👤 हेनरी फेयोल

  • प्रशासन के 14 प्रबंधन सिद्धांत दिए, जो परम्परागत दृष्टिकोण की नींव बने।


⚙️ परम्परागत दृष्टिकोण के लाभ

📈 1. स्पष्ट संरचना

  • प्रशासनिक कार्यों में स्पष्टता और अनुशासन बनाए रखता है।

🛠 2. कार्यकुशलता

  • नियम और मानकीकरण से दक्षता में वृद्धि।

📚 3. अध्ययन में सरलता

  • संरचना और प्रक्रियाओं पर केंद्रित होने से अध्ययन आसान।

⚖️ 4. राजनीति से दूरी

  • निष्पक्ष और तटस्थ प्रशासन की संभावना।


🚧 परम्परागत दृष्टिकोण की सीमाएँ

⚠️ 1. मानव पक्ष की उपेक्षा

  • कर्मचारियों की भावनाओं, प्रेरणा और व्यवहार को नज़रअंदाज़ करना।

⚠️ 2. अत्यधिक औपचारिकता

  • कठोर नियमों के कारण लचीलापन और नवाचार की कमी।

⚠️ 3. राजनीति और प्रशासन के पृथक्करण की अवास्तविकता

  • व्यावहारिक रूप से राजनीति और प्रशासन का घनिष्ठ संबंध होता है।

⚠️ 4. बदलते समय के साथ अनुकूलन की कमी

  • तेजी से बदलते सामाजिक और तकनीकी परिदृश्य के साथ सामंजस्य की कमी।


📊 आधुनिक संदर्भ में परम्परागत दृष्टिकोण की प्रासंगिकता

✅ प्रशासनिक संरचना के लिए आधार

  • आज भी मंत्रालय, विभाग और संगठनों का गठन इसी दृष्टिकोण पर आधारित है।

✅ विधिक नियंत्रण

  • प्रशासन को कानून के दायरे में रखने के लिए कानूनी दृष्टिकोण आवश्यक है।

✅ प्रबंधन सिद्धांत

  • योजना, संगठन, निर्देशन और नियंत्रण जैसे सिद्धांत आज भी लागू होते हैं।


💡 निष्कर्ष

परम्परागत दृष्टिकोण ने लोक प्रशासन के अध्ययन की नींव रखी और इसे एक स्वतंत्र शैक्षणिक क्षेत्र के रूप में स्थापित किया। इस दृष्टिकोण ने प्रशासन की संरचना, नियम, प्रक्रियाओं और दक्षता पर जोर दिया, जिससे प्रशासनिक कार्यप्रणाली को दिशा मिली। हालांकि, इसकी सीमाएँ भी स्पष्ट हैं, विशेषकर मानव पक्ष की उपेक्षा और लचीलापन की कमी। आज के बदलते वैश्विक और तकनीकी युग में, परम्परागत दृष्टिकोण को आधुनिक व्यवहारिक दृष्टिकोणों के साथ मिलाकर अपनाना आवश्यक है, ताकि प्रशासन न केवल संरचित बल्कि मानवीय और नवाचार-उन्मुख भी हो सके।


लघु उत्तरीय प्रश्न 


प्रश्न 01 लोक प्रशासन के दार्शनिक उपागम एवं वैधानिक उपागम पर चर्चा कीजिए।

प्रस्तावना

लोक प्रशासन आधुनिक शासन व्यवस्था का अभिन्न अंग है, जो न केवल नीतियों को लागू करता है बल्कि समाज में विकास, व्यवस्था और कल्याण को सुनिश्चित करने का कार्य भी करता है। लोक प्रशासन के अध्ययन में विभिन्न उपागम अपनाए गए हैं, जिनमें दार्शनिक उपागम और वैधानिक उपागम का विशेष महत्व है। ये दोनों दृष्टिकोण प्रशासन को समझने के अलग-अलग आधार प्रदान करते हैं—एक नैतिक व दार्शनिक मूल्यों पर आधारित है, जबकि दूसरा विधिक ढांचे और संवैधानिक प्रावधानों पर।


दार्शनिक उपागम की अवधारणा

दार्शनिक उपागम लोक प्रशासन को नैतिकता, आदर्शों और मानव कल्याण के व्यापक दृष्टिकोण से देखता है। इसका उद्देश्य प्रशासन को केवल तकनीकी प्रक्रिया के रूप में न देखकर, उसे एक मानवीय और नैतिक कर्तव्य के रूप में समझना है। यह दृष्टिकोण यह मानता है कि प्रशासन का अंतिम लक्ष्य समाज में न्याय, समानता, और कल्याण स्थापित करना है।


दार्शनिक उपागम की प्रमुख विशेषताएँ

  1. नैतिक मूल्यों पर बल – प्रशासन में सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, और पारदर्शिता को प्राथमिक महत्व दिया जाता है।

  2. मानव कल्याण केंद्रित दृष्टि – प्रशासनिक नीतियों और क्रियाओं का मूल्यांकन इस आधार पर किया जाता है कि वे जनता के कल्याण में कितना योगदान देती हैं।

  3. आदर्शवाद की प्रधानता – यह मानता है कि प्रशासन केवल आदेशों और नियमों का पालन न करके, नैतिक रूप से सही कार्य करे।

  4. दीर्घकालिक दृष्टिकोण – प्रशासनिक निर्णयों में दूरगामी परिणाम और सामाजिक प्रभाव को ध्यान में रखा जाता है।


दार्शनिक उपागम के लाभ

  • प्रशासन में नैतिक और मानवीय संवेदनशीलता का विकास होता है।

  • भ्रष्टाचार और शक्ति के दुरुपयोग की संभावना कम होती है।

  • जनता में सरकार के प्रति विश्वास और सम्मान बढ़ता है।

  • नीतियों में मानवीय पहलू को महत्व मिलता है, जिससे सामाजिक संतुलन बनता है।


दार्शनिक उपागम की सीमाएँ

  • अत्यधिक आदर्शवाद कभी-कभी व्यावहारिक समस्याओं के समाधान में बाधक हो सकता है।

  • आपातकालीन परिस्थितियों में त्वरित निर्णय लेना कठिन हो सकता है।

  • नीतियों के क्रियान्वयन में समय और संसाधनों की अधिक आवश्यकता पड़ सकती है।


वैधानिक उपागम की अवधारणा

वैधानिक उपागम लोक प्रशासन को एक कानूनी एवं संवैधानिक प्रक्रिया के रूप में देखता है। इसका मूल आधार यह है कि प्रशासनिक कार्यवाही को संविधान, कानूनों और नियमों के अंतर्गत रहकर ही किया जाना चाहिए। यह दृष्टिकोण विशेष रूप से विधिक प्रावधानों, अधिकारों और कर्तव्यों के अध्ययन पर केंद्रित है।


वैधानिक उपागम की प्रमुख विशेषताएँ

  1. कानून का पालन – प्रशासनिक कार्य हमेशा विधि सम्मत और संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार किया जाता है।

  2. संवैधानिक ढांचा – कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के अधिकारों का स्पष्ट निर्धारण।

  3. नियम आधारित प्रक्रिया – प्रत्येक प्रशासनिक निर्णय के लिए स्पष्ट नियम और प्रक्रिया निर्धारित होती है।

  4. जवाबदेही – प्रशासनिक अधिकारियों को अपने कार्यों के लिए कानूनी रूप से उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।


वैधानिक उपागम के लाभ

  • प्रशासन में अनुशासन और व्यवस्था बनी रहती है।

  • नागरिकों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित होती है।

  • शक्ति के दुरुपयोग को रोकने में मदद मिलती है।

  • स्पष्ट नियमों के कारण निर्णय लेने में पारदर्शिता आती है।


वैधानिक उपागम की सीमाएँ

  • कानूनों और नियमों का अत्यधिक पालन कभी-कभी लचीलापन समाप्त कर देता है।

  • नई परिस्थितियों में त्वरित समाधान कठिन हो सकता है।

  • कठोर कानूनी प्रक्रियाएं कभी-कभी जनता के हितों के विपरीत भी हो सकती हैं।


दार्शनिक एवं वैधानिक उपागम की तुलनात्मक विवेचना

पहलूदार्शनिक उपागमवैधानिक उपागम
आधारनैतिकता और आदर्शकानून और संवैधानिक प्रावधान
मुख्य उद्देश्यसामाजिक न्याय और कल्याणव्यवस्था और विधि का पालन
लचीलापनअधिककम
सीमाअव्यावहारिकता का खतराकठोरता और धीमी प्रक्रिया
परिणाममानवीय संवेदनशीलता बढ़ती हैप्रशासनिक अनुशासन और पारदर्शिता सुनिश्चित होती है

दोनों उपागमों का समन्वय

व्यावहारिक दृष्टि से, लोक प्रशासन में केवल दार्शनिक या केवल वैधानिक उपागम पर्याप्त नहीं है। प्रभावी प्रशासन के लिए इन दोनों का संतुलित मिश्रण आवश्यक है—जहाँ कानून और नियम प्रशासन की रीढ़ बनें, वहीं नैतिक मूल्य उसे मानवीय और संवेदनशील बनाएँ।

उदाहरण – आपदा प्रबंधन में राहत कार्यों के समय, प्रशासन को कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए भी मानवीय दृष्टिकोण अपनाना पड़ता है।
एक अन्य उदाहरण – शिक्षा के अधिकार कानून (RTE) में कानूनी प्रावधान तो है ही, साथ ही इसका उद्देश्य सामाजिक समानता और बच्चों के सर्वांगीण विकास जैसे दार्शनिक मूल्यों को भी पूरा करना है।


निष्कर्ष

लोक प्रशासन के अध्ययन में दार्शनिक उपागम प्रशासन को नैतिक, मानवीय और आदर्शवादी दृष्टिकोण से समझने में मदद करता है, जबकि वैधानिक उपागम उसे कानूनी ढांचे में बाँधकर अनुशासन और पारदर्शिता प्रदान करता है। आज के जटिल प्रशासनिक परिवेश में इन दोनों उपागमों का संतुलित प्रयोग ही प्रशासन को प्रभावी, उत्तरदायी और जनता के विश्वास के योग्य बना सकता है।



प्रश्न 02: लोक प्रशासन तथा निजी प्रशासन पर उदारीकरण के प्रभावों की चर्चा कीजिए।


1. प्रस्तावना

उदारीकरण (Liberalization) 1990 के दशक के आरंभ में भारत की आर्थिक नीतियों में किए गए महत्वपूर्ण सुधारों का परिणाम है, जिसने देश के आर्थिक एवं प्रशासनिक ढांचे में व्यापक बदलाव किए। उदारीकरण का अर्थ है—अर्थव्यवस्था एवं प्रशासन पर सरकारी नियंत्रण को कम करना तथा निजी क्षेत्र, वैश्विक प्रतिस्पर्धा और बाजार तंत्र को अधिक स्वतंत्रता प्रदान करना।
इस नीति का प्रभाव केवल आर्थिक क्षेत्र तक सीमित नहीं रहा, बल्कि लोक प्रशासन और निजी प्रशासन दोनों के ढांचे, कार्यप्रणाली तथा उद्देश्यों पर भी गहरा पड़ा।


2. उदारीकरण के प्रभाव – लोक प्रशासन पर

2.1 नीति निर्माण में परिवर्तन

  • उदारीकरण के बाद सरकार का ध्यान नियंत्रणकर्ता (Controller) की भूमिका से हटकर सुविधादाता (Facilitator) की भूमिका की ओर गया।

  • अब नीतियां अधिक बाजार-उन्मुख (Market-Oriented) और उपभोक्ता-केंद्रित (Consumer-Centric) बनने लगीं।

2.2 प्रशासनिक संरचना में सुधार

  • अनावश्यक सरकारी विभागों एवं प्रक्रियाओं को सरलीकृत (Simplified) किया गया।

  • लोक प्रशासन में ई-गवर्नेंस और डिजिटलीकरण का बढ़ा प्रयोग हुआ।

2.3 उत्तरदायित्व एवं पारदर्शिता में वृद्धि

  • निजी निवेश और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के कारण लोक प्रशासन पर पारदर्शिता और उत्तरदायित्व की अपेक्षाएं बढ़ीं।

  • सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI) जैसे कानूनों ने इस प्रवृत्ति को और मजबूती दी।

2.4 जनसेवाओं का निजीकरण

  • बिजली, दूरसंचार, परिवहन और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में निजी भागीदारी को प्रोत्साहन मिला।

  • इससे लोक प्रशासन का कार्य नियामक एजेंसी (Regulatory Body) के रूप में अधिक हुआ।

2.5 प्रतिस्पर्धात्मक माहौल

  • सरकारी विभागों को भी अब निजी क्षेत्र की तरह प्रदर्शन-आधारित कार्य संस्कृति अपनानी पड़ी।

  • कार्यकुशलता (Efficiency) पर जोर बढ़ा।


3. उदारीकरण के प्रभाव – निजी प्रशासन पर

3.1 निवेश एवं अवसरों में वृद्धि

  • विदेशी निवेश (FDI) और प्रौद्योगिकी के आगमन से निजी क्षेत्र का विस्तार हुआ।

  • नई कंपनियों और उद्योगों की स्थापना तेजी से हुई।

3.2 प्रतिस्पर्धा और गुणवत्ता सुधार

  • वैश्विक प्रतिस्पर्धा के कारण कंपनियों ने गुणवत्ता, नवाचार और ग्राहक संतुष्टि पर ध्यान दिया।

3.3 मानव संसाधन प्रबंधन में बदलाव

  • निजी प्रशासन ने कर्मचारी कौशल विकास (Skill Development) और प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दिया।

  • अनुबंध आधारित रोजगार और आउटसोर्सिंग की प्रवृत्ति बढ़ी।

3.4 तकनीकी नवाचार का उपयोग

  • आईटी, ऑटोमेशन और डिजिटलीकरण को तेजी से अपनाया गया।

  • कार्यप्रवाह में गति और सटीकता आई।

3.5 अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन

  • उत्पादन, सेवा और प्रबंधन के क्षेत्र में ISO, TQM जैसे मानकों को अपनाना अनिवार्य हुआ।


4. लोक प्रशासन एवं निजी प्रशासन – तुलनात्मक प्रभाव

पहलूलोक प्रशासन में प्रभावनिजी प्रशासन में प्रभाव
भूमिकानियंत्रणकर्ता से सुविधादातालाभ-उन्मुख से सेवा-उन्मुख
संरचनासरल, लचीली, ई-गवर्नेंस आधारितबाजार आधारित, वैश्विक नेटवर्क से जुड़ी
उत्तरदायित्वजनता एवं संसद के प्रतिउपभोक्ता एवं निवेशकों के प्रति
प्रौद्योगिकी उपयोगसेवाओं में डिजिटल माध्यमउत्पादन और प्रबंधन में आधुनिक तकनीक
कर्मचारी नीतिस्थायी कर्मचारी, पारंपरिक प्रशिक्षणअनुबंध आधारित, कौशल विकास उन्मुख


5. उदारीकरण के सकारात्मक परिणाम

5.1 कार्यकुशलता में वृद्धि

  • दोनों प्रशासनिक क्षेत्रों में समय, लागत और संसाधनों के बेहतर उपयोग पर जोर बढ़ा।

5.2 पारदर्शिता और उत्तरदायित्व

  • जनसेवा और व्यापार दोनों में ग्राहक/नागरिक संतुष्टि महत्वपूर्ण हो गई।

5.3 नवाचार और प्रतिस्पर्धा

  • उत्पाद, सेवाएं और प्रशासनिक प्रक्रियाएं अधिक आधुनिक और लचीली हुईं।


6. उदारीकरण के नकारात्मक प्रभाव

6.1 सामाजिक असमानता

  • निजीकरण के कारण कुछ वर्ग लाभान्वित हुए, जबकि गरीब और ग्रामीण क्षेत्र अपेक्षाकृत पीछे रह गए।

6.2 रोजगार अस्थिरता

  • अनुबंध आधारित नियुक्तियों से कर्मचारियों की नौकरी सुरक्षा घटी।

6.3 लोक प्रशासन का वाणिज्यिकरण

  • सार्वजनिक सेवाओं में लाभ कमाने की प्रवृत्ति बढ़ी, जिससे सेवा की गुणवत्ता पर असर पड़ा।


7. उदाहरण

  1. दूरसंचार क्षेत्र – BSNL और MTNL जैसी सरकारी कंपनियों को Jio, Airtel जैसी निजी कंपनियों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ी, जिससे सेवाओं में सुधार और दरों में कमी आई।

  2. बैंकिंग क्षेत्र – निजी और विदेशी बैंकों के आने से सरकारी बैंकों ने डिजिटल बैंकिंग और ग्राहक सुविधा बढ़ाई।

  3. रेलवे सेवाएं – कुछ सेवाओं का निजीकरण (जैसे तेजस एक्सप्रेस) बेहतर गुणवत्ता और समयबद्धता के उदाहरण हैं।


8. निष्कर्ष

उदारीकरण ने भारत में लोक प्रशासन और निजी प्रशासन दोनों की कार्यप्रणाली में गहरा परिवर्तन किया है। लोक प्रशासन अब केवल नियंत्रणकारी संस्था नहीं रहा, बल्कि विकास और सुविधा प्रदान करने वाला तंत्र बन गया है। वहीं, निजी प्रशासन वैश्विक प्रतिस्पर्धा और तकनीकी नवाचार के सहारे अधिक पेशेवर, गुणवत्तापूर्ण और ग्राहक-केंद्रित हुआ है।
हालांकि चुनौतियां जैसे सामाजिक असमानता, रोजगार अस्थिरता और सार्वजनिक सेवाओं का वाणिज्यिकरण भी सामने आई हैं, लेकिन सही नीतिगत संतुलन और पारदर्शी प्रशासनिक सुधारों से इनका समाधान संभव है।



प्रश्न 03"जनहित संरक्षण या लोकहित संरक्षण आज भी लोक प्रशासन का मुख्य उद्देश्य है।" प्रस्तुत कथन के आलोक में अपने तर्क प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर :

भूमिका
लोक प्रशासन किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था का केंद्रीय स्तंभ है, जिसका मूल उद्देश्य जनता के कल्याण के लिए नीतियों और योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन करना है। प्रशासनिक तंत्र चाहे वह केंद्र स्तर पर हो या राज्य स्तर पर, अंततः जनता की आवश्यकताओं और हितों को ध्यान में रखते हुए ही कार्य करता है। प्रस्तुत कथन कि "जनहित संरक्षण आज भी लोक प्रशासन का मुख्य उद्देश्य है" इस बात पर जोर देता है कि बदलते सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवेश में भी लोक प्रशासन की प्राथमिकता आम नागरिकों के हितों की रक्षा ही बनी हुई है।


जनहित संरक्षण की अवधारणा
जनहित संरक्षण का अर्थ है – ऐसी नीतियों, कार्यक्रमों और प्रशासनिक कार्यों का संचालन करना जो सीधे-सीधे नागरिकों की भलाई और सामाजिक संतुलन को बढ़ावा दें। इसमें गरीबी उन्मूलन, शिक्षा, स्वास्थ्य, कानून-व्यवस्था, सामाजिक न्याय और समान अवसर जैसे क्षेत्रों का समावेश होता है।


लोक प्रशासन में जनहित संरक्षण का महत्व

  1. लोकतांत्रिक उत्तरदायित्व – लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में प्रशासन जनता के प्रति जवाबदेह होता है। वह नीतियां जो जनहित को प्राथमिकता नहीं देतीं, लंबे समय तक टिक नहीं पातीं।

  2. सामाजिक न्याय की स्थापना – कमजोर और वंचित वर्गों को अवसर और संसाधन उपलब्ध कराना प्रशासन का नैतिक दायित्व है।

  3. संतुलित विकास – आर्थिक असमानताओं को कम करने और क्षेत्रीय विकास को समान बनाने में जनहितकारी नीतियों की केंद्रीय भूमिका होती है।


जनहित संरक्षण के प्रमुख क्षेत्र

  • शिक्षा – सबके लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना।

  • स्वास्थ्य – सभी वर्गों को सुलभ और सस्ती स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना।

  • कानून-व्यवस्था – नागरिकों की सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा।

  • रोजगार – बेरोजगारी घटाने और कौशल विकास को प्रोत्साहन देना।

  • सामाजिक सुरक्षा – वृद्धावस्था पेंशन, बीमा, जनकल्याण योजनाएं आदि।


वर्तमान समय में जनहित संरक्षण की चुनौतियां

  • भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी – नीति और क्रियान्वयन के बीच अंतर।

  • राजनीतिक हस्तक्षेप – कई बार नीतियों में जनहित से अधिक राजनीतिक लाभ प्राथमिकता बन जाता है।

  • संसाधनों की कमी – वित्तीय और मानव संसाधन सीमित होने के कारण योजनाओं का प्रभावी कार्यान्वयन कठिन हो जाता है।

  • वैश्वीकरण का प्रभाव – बाज़ारवाद और निजीकरण से लोक सेवाओं पर दबाव बढ़ा है।


उदारवादी नीतियों के बाद जनहित की स्थिति
उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण के बाद प्रशासन के कार्यों में दक्षता और तकनीकी सुधार तो हुआ है, लेकिन साथ ही बाज़ार-उन्मुख नीतियों ने जनहित के कुछ क्षेत्रों को पीछे भी धकेला। इसके बावजूद, शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण और ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्रों में सरकार द्वारा अनेक कल्याणकारी योजनाएं लागू की जा रही हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि जनहित अभी भी नीति-निर्माण का मुख्य केंद्र है।


लोक प्रशासन के माध्यम से जनहित संरक्षण के उपाय

  1. पारदर्शिता और जवाबदेही – सूचना का अधिकार और ई-गवर्नेंस के माध्यम से प्रशासन को अधिक पारदर्शी बनाना।

  2. जन सहभागिता – पंचायत, नगर निकाय और सामाजिक संगठनों की भागीदारी बढ़ाना।

  3. लक्ष्य-आधारित नीति – नीतियों का निर्धारण जनता की वास्तविक जरूरतों के आधार पर करना।

  4. प्रभावी निगरानी तंत्र – योजनाओं के क्रियान्वयन की सतत निगरानी।


निष्कर्ष
आज के प्रतिस्पर्धात्मक और तकनीकी युग में भी लोक प्रशासन का मुख्य उद्देश्य जनहित की रक्षा ही है। हालांकि चुनौतियां अनेक हैं, परंतु लोकतांत्रिक मूल्यों, संवैधानिक प्रावधानों और प्रशासनिक उत्तरदायित्व के कारण जनता का कल्याण सर्वोपरि है। जनहित संरक्षण केवल एक नारा नहीं, बल्कि लोक प्रशासन का स्थायी और मूलभूत दायित्व है, जो समय और परिस्थितियों के अनुसार नये रूपों में आगे भी जारी रहेगा।



प्रश्न 04: लोक प्रशासन तथा निजी प्रशासन के कार्यों में पायी जाने वाली समानताओं पर चर्चा कीजिए।

भूमिका
लोक प्रशासन (Public Administration) और निजी प्रशासन (Private Administration) दो अलग-अलग क्षेत्रों में कार्य करते हैं—पहला मुख्य रूप से सरकारी और सार्वजनिक हित के कार्यों से जुड़ा होता है, जबकि दूसरा निजी संस्थाओं एवं व्यवसायिक संगठनों से संबंधित होता है। फिर भी, उनके कार्य करने की प्रकृति, प्रक्रियाएँ और कुछ बुनियादी सिद्धांत ऐसे हैं जो दोनों में समान पाए जाते हैं। इन समानताओं का कारण यह है कि प्रशासनिक प्रबंधन के मूलभूत सिद्धांत समय, संसाधन और जनशक्ति के कुशल उपयोग पर आधारित होते हैं, चाहे वह सार्वजनिक क्षेत्र हो या निजी।


1. नियोजन (Planning)
लोक प्रशासन और निजी प्रशासन दोनों में नियोजन एक आवश्यक कार्य है।

  • लोक प्रशासन में विकास योजनाएँ, नीतियाँ और कार्यक्रम तय किए जाते हैं।

  • निजी प्रशासन में उत्पादन लक्ष्य, विपणन रणनीतियाँ और निवेश योजनाएँ बनाई जाती हैं।
    दोनों में ही नियोजन का उद्देश्य भविष्य की आवश्यकताओं और चुनौतियों का अनुमान लगाकर उपयुक्त कार्ययोजना बनाना है।


2. संगठन (Organizing)
दोनों प्रकार के प्रशासन में संगठनात्मक ढाँचा तैयार किया जाता है, जिसमें कार्य विभाजन, जिम्मेदारी का निर्धारण और अधिकारों का आवंटन किया जाता है।

  • लोक प्रशासन में मंत्रालय, विभाग और स्थानीय निकाय बनते हैं।

  • निजी प्रशासन में विभिन्न विभाग जैसे उत्पादन, विपणन, वित्त इत्यादि गठित होते हैं।
    संगठन का उद्देश्य कार्य में स्पष्टता और सुचारू संचालन सुनिश्चित करना है।


3. निर्देशन एवं नेतृत्व (Directing & Leadership)
दोनों क्षेत्रों में कार्य निष्पादन के लिए सक्षम निर्देशन और नेतृत्व की आवश्यकता होती है।

  • लोक प्रशासन में वरिष्ठ अधिकारी, मंत्रियों और विभागाध्यक्ष के माध्यम से दिशा-निर्देश दिए जाते हैं।

  • निजी प्रशासन में प्रबंधक, निदेशक या सीईओ यह भूमिका निभाते हैं।
    दोनों में नेतृत्व का उद्देश्य कर्मचारियों को प्रेरित करना और लक्ष्यों की प्राप्ति कराना है।


4. समन्वय (Coordination)
समन्वय प्रशासनिक कार्यों की सफलता का मूल है।

  • लोक प्रशासन में विभिन्न विभागों, एजेंसियों और स्तरों के बीच तालमेल आवश्यक है।

  • निजी प्रशासन में उत्पादन, विपणन और वित्त विभागों के बीच समन्वय जरूरी है।
    समन्वय से संसाधनों का अपव्यय रुकता है और कार्य में गति आती है।


5. नियंत्रण (Controlling)
नियंत्रण का कार्य यह सुनिश्चित करना है कि योजनाओं के अनुसार कार्य हो और लक्ष्यों की पूर्ति हो।

  • लोक प्रशासन में नियंत्रण हेतु ऑडिट, निरीक्षण और रिपोर्टिंग सिस्टम होता है।

  • निजी प्रशासन में बजट, गुणवत्ता जाँच और प्रदर्शन मूल्यांकन के माध्यम से नियंत्रण किया जाता है।


6. संसाधनों का प्रबंधन (Management of Resources)
दोनों में समय, धन, मानव संसाधन और तकनीकी संसाधनों का कुशल उपयोग करना आवश्यक है।

  • लोक प्रशासन में जनहित के कार्यों के लिए संसाधनों का न्यायसंगत वितरण होता है।

  • निजी प्रशासन में लाभ और उत्पादन बढ़ाने के लिए संसाधनों का उपयोग होता है।


7. निर्णय-निर्माण (Decision Making)
दोनों प्रशासन में समस्याओं के समाधान और कार्यनीतियों के निर्धारण हेतु निर्णय-निर्माण आवश्यक है।

  • लोक प्रशासन में निर्णय आमतौर पर नीतिगत, कानूनी और जनहित आधारित होते हैं।

  • निजी प्रशासन में निर्णय लाभ, प्रतिस्पर्धा और बाजार की मांग के अनुसार होते हैं।


8. प्रशिक्षण एवं मानव संसाधन विकास (Training & HRD)
दोनों क्षेत्रों में कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने और उनकी दक्षता बढ़ाने की आवश्यकता होती है।

  • लोक प्रशासन में प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थानों का उपयोग होता है।

  • निजी प्रशासन में कॉर्पोरेट ट्रेनिंग प्रोग्राम और वर्कशॉप आयोजित होते हैं।


9. सूचना और संचार प्रणाली (Information & Communication System)

  • दोनों प्रशासन में कार्य निष्पादन और निर्णय लेने के लिए सटीक और समय पर सूचना का आदान-प्रदान जरूरी है।

  • आधुनिक तकनीक जैसे ई-गवर्नेंस और डिजिटल मैनेजमेंट सिस्टम का प्रयोग दोनों में बढ़ा है।


10. उत्तरदायित्व (Accountability)

  • लोक प्रशासन जनता और संसद के प्रति उत्तरदायी होता है।

  • निजी प्रशासन शेयरधारकों, बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स और ग्राहकों के प्रति उत्तरदायी होता है।
    भले ही उत्तरदायित्व का स्वरूप अलग हो, लेकिन सिद्धांत समान है—पारदर्शिता और परिणाम सुनिश्चित करना।


निष्कर्ष
लोक प्रशासन और निजी प्रशासन, दोनों के उद्देश्य और कार्यक्षेत्र में भिन्नताएँ हैं, लेकिन उनके कार्य करने के मूलभूत तरीके और सिद्धांतों में उल्लेखनीय समानताएँ पाई जाती हैं। नियोजन, संगठन, नेतृत्व, समन्वय, नियंत्रण, निर्णय-निर्माण और संसाधनों का प्रबंधन—ये सभी कार्य दोनों में समान रूप से आवश्यक हैं। इसका कारण यह है कि प्रशासन चाहे सार्वजनिक हो या निजी, वह मूलतः लोगों, संसाधनों और प्रक्रियाओं के प्रबंधन का विज्ञान और कला है।



प्रश्न 05: लोक प्रशासन का नवीन लोक प्रबंधकीय दृष्टिकोण क्या है? वर्णन कीजिए।


भूमिका

लोक प्रशासन समय के साथ निरंतर परिवर्तित होता रहा है। परंपरागत लोक प्रशासन मुख्य रूप से नियमों, प्रक्रियाओं और स्थिर संरचना पर आधारित था। किन्तु 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में वैश्वीकरण, उदारीकरण और सूचना प्रौद्योगिकी के विकास ने प्रशासनिक तंत्र को दक्षता, उत्तरदायित्व और परिणाम-केन्द्रित दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित किया। इसी पृष्ठभूमि में नवीन लोक प्रबंधकीय दृष्टिकोण (New Public Management – NPM) का उदय हुआ, जो प्रशासन को अधिक प्रभावी, पारदर्शी और जन-केंद्रित बनाने पर बल देता है।


नवीन लोक प्रबंधकीय दृष्टिकोण की परिभाषा

नवीन लोक प्रबंधकीय दृष्टिकोण प्रशासन के क्षेत्र में निजी क्षेत्र के प्रबंधन सिद्धांतों और तकनीकों का प्रयोग है, जिसका उद्देश्य दक्षता बढ़ाना, संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करना और नागरिकों को बेहतर सेवाएं प्रदान करना है। यह दृष्टिकोण "कम लागत में अधिक और बेहतर कार्य" की भावना को अपनाता है।


नवीन लोक प्रबंधकीय दृष्टिकोण के उद्भव के कारण

  1. वैश्वीकरण – प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में सरकारी सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने की आवश्यकता।

  2. उदारीकरण एवं निजीकरण – निजी क्षेत्र के प्रभावी प्रबंधन पद्धतियों को अपनाने की प्रेरणा।

  3. प्रौद्योगिकी क्रांति – ई-गवर्नेंस, डिजिटल सेवाएं और सूचना प्रबंधन की बढ़ती भूमिका।

  4. जन अपेक्षाओं में वृद्धि – नागरिकों को तेज, पारदर्शी और गुणवत्तापूर्ण सेवाओं की मांग।


नवीन लोक प्रबंधकीय दृष्टिकोण की प्रमुख विशेषताएँ

1. परिणाम-केन्द्रित प्रशासन

  • पारंपरिक प्रक्रिया-केन्द्रित कार्यप्रणाली से हटकर परिणामों और उपलब्धियों पर ध्यान।

  • प्रदर्शन मूल्यांकन, सेवा गुणवत्ता मापदंड और आउटपुट की स्पष्ट परिभाषा।

2. निजी क्षेत्र की तकनीकों का उपयोग

  • प्रबंधन, वित्तीय नियंत्रण, गुणवत्ता नियंत्रण और मार्केटिंग तकनीकों का समावेश।

  • कॉर्पोरेट संस्कृति और प्रतिस्पर्धात्मक दृष्टिकोण अपनाना।

3. विकेन्द्रीकरण

  • निर्णय लेने की शक्तियों को निचले स्तर पर हस्तांतरित करना।

  • स्थानीय निकायों, एजेंसियों और विभागों को अधिक स्वायत्तता देना।

4. उत्तरदायित्व और पारदर्शिता

  • कार्यों की सार्वजनिक समीक्षा, जन भागीदारी और सूचना का अधिकार।

  • भ्रष्टाचार नियंत्रण और जवाबदेही के लिए स्पष्ट मानदंड।

5. निजीकरण और ठेके पर कार्य

  • सेवाओं का उत्पादन और प्रबंधन निजी क्षेत्र या स्वयंसेवी संगठनों के माध्यम से कराना।

  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को बढ़ावा।

6. नागरिक-केन्द्रित दृष्टिकोण

  • नागरिकों को उपभोक्ता के रूप में देखना और उनकी संतुष्टि को प्राथमिकता देना।

  • सेवा वितरण में समयबद्धता और शिकायत निवारण प्रणाली का विकास।


नवीन लोक प्रबंधकीय दृष्टिकोण के लाभ

  1. दक्षता में वृद्धि – सीमित संसाधनों में अधिकतम परिणाम प्राप्त करना।

  2. सेवा गुणवत्ता में सुधार – प्रतिस्पर्धा और आधुनिक तकनीकों के कारण।

  3. भ्रष्टाचार में कमी – पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के कारण।

  4. नवाचार को प्रोत्साहन – नई विधियों, तकनीकों और प्रबंधन मॉडल को अपनाना।

  5. नागरिक संतुष्टि – जनता की आवश्यकताओं और अपेक्षाओं पर अधिक ध्यान।


नवीन लोक प्रबंधकीय दृष्टिकोण की चुनौतियाँ

  1. सामाजिक न्याय की उपेक्षा – दक्षता पर अधिक ध्यान देने से गरीब और कमजोर वर्ग प्रभावित हो सकते हैं।

  2. निजीकरण के खतरे – लाभ को प्राथमिकता देने से सेवाओं की पहुंच सीमित हो सकती है।

  3. उत्तरदायित्व का बिखराव – विकेन्द्रीकरण में जिम्मेदारियों का स्पष्ट निर्धारण न होना।

  4. सांस्कृतिक बाधाएँ – पारंपरिक नौकरशाही में बदलाव लाना कठिन।


भारत में नवीन लोक प्रबंधकीय दृष्टिकोण के उदाहरण

  1. ई-गवर्नेंस परियोजनाएँ – डिजिटल इंडिया, ई-सेवा केंद्र, ऑनलाइन पासपोर्ट सेवा।

  2. सार्वजनिक-निजी भागीदारी – राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना, मेट्रो रेल परियोजनाएँ।

  3. सेवा वितरण में सुधार – समयबद्ध सेवा अधिनियम, जन शिकायत पोर्टल।

  4. नवाचार प्रयोग – आधार आधारित सेवाएं, डिजिटल भुगतान प्रणाली।


निष्कर्ष

नवीन लोक प्रबंधकीय दृष्टिकोण प्रशासन को अधिक परिणाम-केन्द्रित, दक्ष और नागरिक-मैत्री बनाने में सहायक सिद्ध हुआ है। हालांकि इसके कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ मौजूद हैं, फिर भी यह दृष्टिकोण सरकारी सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने, पारदर्शिता लाने और नागरिकों के विश्वास को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यदि इसे सामाजिक न्याय, समावेशन और जनहित के साथ संतुलित किया जाए तो यह प्रशासनिक व्यवस्था के लिए एक स्थायी और प्रभावी मॉडल साबित हो सकता है।



प्रश्न 06 – पारम्परिक एवं नवीन लोक प्रबंधन में अंतर स्पष्ट कीजिए।


प्रस्तावना

लोक प्रशासन के अध्ययन और व्यवहार में समय-समय पर कई परिवर्तन हुए हैं। प्रारंभिक दौर में लोक प्रशासन का स्वरूप पारम्परिक था, जिसमें नौकरशाही, नियम-कानून और कठोर प्रक्रियाओं पर अधिक जोर था। लेकिन 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में वैश्वीकरण, उदारीकरण और तकनीकी विकास के प्रभाव से नवीन लोक प्रबंधन (New Public Management - NPM) का उदय हुआ, जिसमें दक्षता, परिणाम, प्रतिस्पर्धा और ग्राहक-केंद्रितता पर बल दिया जाने लगा। इन दोनों दृष्टिकोणों में कार्य पद्धति, उद्देश्य और मूल दर्शन के स्तर पर महत्वपूर्ण अंतर पाया जाता है।


पारम्परिक लोक प्रबंधन की विशेषताएँ

  1. नियम-कानून आधारित प्रणाली – कार्य सरकारी नियमावली और प्रक्रियाओं के अनुरूप होते हैं।

  2. नौकरशाही का वर्चस्व – निर्णय-निर्माण में उच्च स्तर के अधिकारियों की प्रमुख भूमिका होती है।

  3. केंद्रीकरण – अधिकांश निर्णय शीर्ष स्तर पर होते हैं, निचले स्तर पर अधिकार सीमित रहते हैं।

  4. स्थायित्व और निरंतरता – संगठनात्मक ढाँचा स्थायी और बदलाव के प्रति कम लचीला होता है।

  5. साधन-केन्द्रितता – कार्य निष्पादन की सफलता साधनों और प्रक्रियाओं के पालन से मापी जाती है, परिणामों पर कम ध्यान।

  6. जन-नियंत्रण सीमित – जनता की भागीदारी अपेक्षाकृत कम, पारदर्शिता सीमित।


नवीन लोक प्रबंधन की विशेषताएँ

  1. परिणाम-केन्द्रित दृष्टिकोण – नीतियों और कार्यक्रमों की सफलता परिणामों और आउटपुट के आधार पर आंकी जाती है।

  2. विकेन्द्रीकरण – निर्णय लेने के अधिकार निचले स्तर तक सौंपे जाते हैं।

  3. प्रतिस्पर्धात्मकता – सरकारी सेवाओं में निजी क्षेत्र के तत्व जैसे ठेकेदारी, आउटसोर्सिंग और प्रतिस्पर्धा का समावेश।

  4. लचीलापन – नियमों में लचीलापन, परिस्थितियों के अनुसार बदलाव की गुंजाइश।

  5. ग्राहक-केंद्रितता – नागरिकों को ग्राहक मानकर उनकी संतुष्टि को सर्वोच्च प्राथमिकता।

  6. प्रौद्योगिकी का उपयोग – ई-गवर्नेंस, डिजिटल प्लेटफॉर्म और आधुनिक प्रबंधन तकनीकों का प्रयोग।


पारम्परिक और नवीन लोक प्रबंधन में अंतर

क्रमआधारपारम्परिक लोक प्रबंधननवीन लोक प्रबंधन (NPM)
1.दृष्टिकोणसाधन और प्रक्रिया-केन्द्रितपरिणाम और आउटपुट-केन्द्रित
2.निर्णय-प्रक्रियाकेंद्रीकृत और नौकरशाही-प्रधानविकेन्द्रीकृत और लचीला
3.उद्देश्यस्थायित्व और नियमों का पालनदक्षता, प्रभावशीलता और गुणवत्ता
4.नागरिक भूमिकासीमित सहभागितासक्रिय सहभागिता, ग्राहक के रूप में नागरिक
5.प्रबंधन शैलीकठोर और औपचारिकप्रतिस्पर्धात्मक और उद्यमशील
6.तकनीकी उपयोगन्यूनतम तकनीकी हस्तक्षेपसूचना प्रौद्योगिकी और ई-गवर्नेंस का व्यापक उपयोग
7.जवाबदेहीनियमों और प्रक्रियाओं के प्रतिपरिणाम और सेवा-गुणवत्ता के प्रति
8.संगठनात्मक संरचनाऊर्ध्वाधर (Vertical) और कठोरक्षैतिज (Horizontal) और लचीला
9.सेवा प्रदायनकेवल सरकारी तंत्र द्वारासार्वजनिक-निजी भागीदारी और आउटसोर्सिंग
10.प्रेरणा का आधारअधिकार और पदप्रदर्शन और प्रोत्साहन आधारित


नवीन लोक प्रबंधन की आवश्यकता क्यों पड़ी?

  • वैश्वीकरण और उदारीकरण के चलते प्रतिस्पर्धा बढ़ी।

  • सरकारी सेवाओं में दक्षता और गुणवत्ता सुधारने की जरूरत।

  • नागरिकों की अपेक्षाएँ बढ़ीं, वे पारदर्शिता और जवाबदेही चाहते हैं।

  • तकनीकी क्रांति ने कार्य पद्धतियों को बदल दिया।

  • राजकोषीय दबाव के कारण कम लागत में बेहतर सेवा प्रदान करने का दबाव।


प्रभाव और महत्व

  1. सेवा की गुणवत्ता में सुधार – NPM ने सेवाओं को अधिक उत्तरदायी और तेज बनाया।

  2. लागत में कमी – प्रतिस्पर्धा और आउटसोर्सिंग से लागत घटी।

  3. नागरिक संतुष्टि – नागरिकों को निर्णय प्रक्रिया में शामिल करने से विश्वास बढ़ा।

  4. नवाचार को बढ़ावा – तकनीकी और प्रबंधन नवाचार के प्रयोग को प्रोत्साहन मिला।


सीमाएँ

  • अत्यधिक निजीकरण से सामाजिक समानता पर खतरा हो सकता है।

  • परिणाम पर अत्यधिक ध्यान से दीर्घकालिक सामाजिक लक्ष्यों की उपेक्षा संभव।

  • प्रतिस्पर्धा हर क्षेत्र में व्यावहारिक नहीं।


निष्कर्ष

पारम्परिक और नवीन लोक प्रबंधन दोनों का अपना महत्व है। पारम्परिक दृष्टिकोण स्थिरता, कानून के पालन और निष्पक्षता सुनिश्चित करता है, जबकि नवीन लोक प्रबंधन दक्षता, नवाचार और नागरिक-केंद्रित सेवाएँ प्रदान करने में सक्षम है। आज के प्रशासन में इन दोनों का संतुलित समन्वय आवश्यक है, ताकि एक ओर प्रशासन पारदर्शी और उत्तरदायी हो तथा दूसरी ओर दीर्घकालिक सामाजिक न्याय और समानता के लक्ष्यों की भी पूर्ति हो सके।



प्रश्न 07: नवीन लोक प्रशासन के प्रमुख लक्ष्यों की चर्चा कीजिए। 


भूमिका

नवीन लोक प्रशासन (New Public Administration) की अवधारणा 1968 में मिनेसोटा, अमेरिका में हुई "मिनोब्रुक सम्मेलन" (Minnowbrook Conference) के दौरान विकसित हुई। इसका मुख्य उद्देश्य लोक प्रशासन को अधिक मानवीय, संवेदनशील और सामाजिक आवश्यकताओं के अनुरूप बनाना था। पारंपरिक लोक प्रशासन जहाँ संरचना, नियम और प्रक्रियाओं पर केंद्रित था, वहीं नवीन लोक प्रशासन ने जनहित, सामाजिक न्याय और परिवर्तन को अपना मूल आधार बनाया।


नवीन लोक प्रशासन की पृष्ठभूमि

1960 के दशक में विकसित देशों में सामाजिक असमानताएँ, नस्लीय भेदभाव, बेरोज़गारी, गरीबी और सामाजिक अशांति जैसी समस्याएँ बढ़ रहीं थीं। प्रशासनिक प्रणाली इन समस्याओं के समाधान में अपेक्षित योगदान नहीं दे पा रही थी। ऐसे में विद्वानों ने प्रशासन को केवल "कानून पालन करने वाला तंत्र" न मानकर, "सामाजिक परिवर्तन का साधन" बनाने पर बल दिया।


नवीन लोक प्रशासन के प्रमुख लक्ष्य

1. सामाजिक न्याय की स्थापना

  • नवीन लोक प्रशासन का प्रमुख लक्ष्य समाज में व्याप्त असमानताओं को कम करना और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को विशेष अवसर प्रदान करना है।

  • यह प्रशासन को वंचित वर्गों के विकास हेतु सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करता है।

  • उदाहरण: आरक्षण नीति, कल्याणकारी योजनाओं का प्राथमिकता से कार्यान्वयन।


2. जनहित पर बल

  • नवीन लोक प्रशासन में सभी नीतियों और कार्यक्रमों का केंद्र बिंदु "जनहित" है।

  • इसका मानना है कि प्रशासनिक कार्यों में जनता की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

  • निर्णय लेने की प्रक्रिया में जनता की भागीदारी को भी प्रोत्साहित किया जाता है।


3. मानव मूल्यों का संवर्धन

  • पारंपरिक प्रशासन में प्रक्रियाओं और नियमों पर अत्यधिक जोर दिया जाता था, जिससे मानवीय संवेदनाएँ प्रभावित होती थीं।

  • नवीन दृष्टिकोण में प्रशासन को मानवीय व्यवहार, सहानुभूति और नैतिक मूल्यों से जोड़कर देखा जाता है।


4. सामाजिक परिवर्तन को प्रोत्साहन

  • प्रशासन को स्थिरता का प्रतीक मानने की बजाय इसे समाज में आवश्यक परिवर्तन लाने वाला माध्यम माना गया।

  • यह सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में सुधारात्मक कदम उठाने का समर्थन करता है।


5. क्रियान्वयन की दक्षता एवं परिणामोन्मुखता

  • केवल नीतियाँ बनाना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करना और वांछित परिणाम प्राप्त करना भी महत्वपूर्ण है।

  • नवीन लोक प्रशासन में "परिणाम आधारित प्रबंधन" (Result-Oriented Management) की अवधारणा अपनाई जाती है।


6. प्रशासनिक उत्तरदायित्व और पारदर्शिता

  • यह दृष्टिकोण प्रशासनिक कार्यों को पारदर्शी, उत्तरदायी और जनता के प्रति जवाबदेह बनाने पर बल देता है।

  • सूचना का अधिकार, सामाजिक लेखा परीक्षण जैसे उपाय इसी लक्ष्य को आगे बढ़ाते हैं।


7. भागीदारीपूर्ण प्रशासन

  • निर्णय लेने में केवल उच्च अधिकारियों की भागीदारी न होकर, नागरिकों, सामाजिक संगठनों और हितधारकों की सहभागिता भी आवश्यक मानी जाती है।

  • इससे प्रशासन अधिक लोकतांत्रिक और प्रतिनिधिक बनता है।


8. स्थानीय आवश्यकताओं पर आधारित नीतियाँ

  • सभी क्षेत्रों के लिए एक समान नीतियाँ बनाने की बजाय, स्थानीय समस्याओं और परिस्थितियों के अनुसार योजनाएँ बनाने पर बल दिया जाता है।

  • उदाहरण: पहाड़ी क्षेत्रों में परिवहन एवं स्वास्थ्य की अलग रणनीति, ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के विशेष उपाय।


नवीन लोक प्रशासन की विशेषताएँ जो लक्ष्यों को समर्थन देती हैं

  1. मूल्य-प्रधान दृष्टिकोण – प्रशासन में मानवीय मूल्यों को प्राथमिकता।

  2. अनुकूलनशीलता – बदलते सामाजिक एवं आर्थिक परिदृश्य के अनुसार नीतियों में लचीलापन।

  3. नवाचार को प्रोत्साहन – नई तकनीक, नए तरीकों और रचनात्मक विचारों का प्रयोग।


निष्कर्ष

नवीन लोक प्रशासन का मूल लक्ष्य केवल प्रशासनिक प्रक्रियाओं का पालन करना नहीं, बल्कि उन्हें समाज के वास्तविक विकास के साधन के रूप में उपयोग करना है। इसके प्रमुख लक्ष्य—सामाजिक न्याय, जनहित, मानव मूल्यों का संवर्धन, उत्तरदायित्व, पारदर्शिता और भागीदारी—प्रशासन को अधिक संवेदनशील, परिणामोन्मुख और जनता के प्रति जवाबदेह बनाते हैं।
इस दृष्टिकोण के कारण लोक प्रशासन केवल शासन का साधन न रहकर, समाज में सकारात्मक परिवर्तन का प्रेरक बन गया है।



प्रश्न 08: विकास प्रशासन से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजिए।


भूमिका

विकास प्रशासन (Development Administration) आधुनिक लोक प्रशासन की एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, जो विशेष रूप से विकासशील देशों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उभरी है। यह प्रशासनिक तंत्र का वह रूप है, जिसका मुख्य उद्देश्य आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विकास को गति देना होता है। इसका उद्भव द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद हुआ, जब अनेक देश उपनिवेशवाद से मुक्त होकर स्वतंत्र हुए और उन्होंने व्यापक विकास कार्यों की शुरुआत की। इन देशों के लिए केवल प्रशासनिक व्यवस्था चलाना पर्याप्त नहीं था, बल्कि विकास योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन करना भी आवश्यक था।


विकास प्रशासन की परिभाषा

  1. फ्रेड डब्ल्यू. रिग्स (Fred W. Riggs) के अनुसार –
    "विकास प्रशासन वह प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से प्रशासनिक संरचना और प्रक्रियाओं को इस प्रकार ढाला जाता है कि वे नियोजित विकास कार्यक्रमों के लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें।"

  2. एडवर्ड वीडनर (Edward Weidner) के अनुसार –
    "विकास प्रशासन वह प्रशासन है, जो विकास कार्यक्रमों के प्रबंधन और कार्यान्वयन में संलग्न होता है, विशेषकर विकासशील देशों में।"

इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि विकास प्रशासन का मुख्य फोकस विकासात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति और योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन है।


विकास प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ

1. लक्ष्य-उन्मुखता

विकास प्रशासन का मुख्य उद्देश्य आर्थिक प्रगति, सामाजिक सुधार और मानव कल्याण है। यह प्रशासन केवल नियमित कार्यों तक सीमित नहीं होता, बल्कि भविष्य के लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में काम करता है।

2. परिवर्तनशीलता

यह स्थिरता के बजाय परिवर्तन पर केंद्रित है। इसका उद्देश्य समाज में सकारात्मक और योजनाबद्ध बदलाव लाना है।

3. जनसहभागिता

विकास प्रशासन में जनता की सक्रिय भागीदारी आवश्यक होती है, ताकि योजनाएँ वास्तविक जरूरतों के अनुरूप बनाई जा सकें।

4. नवीनता और प्रयोगशीलता

विकास प्रशासन में नए तरीकों, तकनीकों और प्रयोगों को अपनाने की प्रवृत्ति रहती है।

5. समन्वय और एकीकृत दृष्टिकोण

विभिन्न विभागों, एजेंसियों और संगठनों के बीच समन्वय स्थापित करना इसकी प्रमुख आवश्यकता है।


विकास प्रशासन के उद्देश्य

  1. आर्थिक विकास को गति देना – उद्योग, कृषि, परिवहन, व्यापार आदि के क्षेत्रों में सुधार और विस्तार।

  2. सामाजिक सुधार – शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण, जातीय भेदभाव का उन्मूलन।

  3. राजनीतिक स्थिरता और लोकतंत्र को सुदृढ़ करना – स्थानीय स्वशासन और जनसहभागिता को प्रोत्साहित करना।

  4. संसाधनों का अधिकतम उपयोग – मानव संसाधन और प्राकृतिक संसाधनों का कुशल प्रबंधन।

  5. गरीबी उन्मूलन – जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के लिए कल्याणकारी योजनाएँ।


विकास प्रशासन के घटक

1. योजनाबद्ध दृष्टिकोण

योजनाएँ बनाना और उन्हें समयबद्ध तरीके से लागू करना।

2. प्रशिक्षित मानव संसाधन

विकास योजनाओं के संचालन के लिए कुशल और प्रशिक्षित कर्मचारी।

3. प्रभावी संचार प्रणाली

सूचना के आदान-प्रदान के लिए तेज़ और पारदर्शी व्यवस्था।

4. प्रौद्योगिकी का उपयोग

ई-गवर्नेंस, सूचना तकनीक और अन्य आधुनिक साधनों का उपयोग।


विकास प्रशासन की चुनौतियाँ

1. भ्रष्टाचार

विकास योजनाओं के धन का दुरुपयोग।

2. राजनीतिक हस्तक्षेप

प्रशासनिक कार्यों में अत्यधिक राजनीतिक दखल।

3. संसाधनों की कमी

वित्तीय और भौतिक संसाधनों का अभाव।

4. प्रशिक्षण और कौशल की कमी

कर्मचारियों का अपर्याप्त प्रशिक्षण।

5. जनसहभागिता का अभाव

योजनाओं में जनता की भागीदारी कम होना।


भारत में विकास प्रशासन

भारत में स्वतंत्रता के बाद से ही विकास प्रशासन का महत्व बढ़ा। पंचवर्षीय योजनाओं, ग्रामीण विकास कार्यक्रमों, हरित क्रांति, औद्योगिकीकरण और आईटी क्रांति जैसे प्रयास विकास प्रशासन के उदाहरण हैं।

  • पंचवर्षीय योजनाएँ – आर्थिक और सामाजिक विकास की दिशा में योजनाबद्ध प्रयास।

  • मनरेगा – ग्रामीण रोजगार सुनिश्चित करने के लिए।

  • डिजिटल इंडिया – तकनीकी विकास और प्रशासनिक पारदर्शिता के लिए।


विकास प्रशासन और सुशासन का संबंध

सुशासन (Good Governance) विकास प्रशासन की सफलता के लिए आवश्यक है। पारदर्शिता, जवाबदेही, दक्षता और भागीदारी इसके मूल तत्व हैं। विकास प्रशासन तभी सफल हो सकता है, जब प्रशासनिक तंत्र भ्रष्टाचारमुक्त और पारदर्शी हो।


निष्कर्ष

विकास प्रशासन केवल एक प्रशासनिक कार्यप्रणाली नहीं, बल्कि समाज के व्यापक और सतत विकास का माध्यम है। यह आर्थिक प्रगति, सामाजिक न्याय, राजनीतिक स्थिरता और सांस्कृतिक उत्थान को सुनिश्चित करता है। विकासशील देशों के लिए यह आवश्यक है कि वे अपने प्रशासनिक तंत्र को विकास-उन्मुख बनाएँ, जिसमें योजनाबद्ध कार्य, जनसहभागिता, पारदर्शिता और तकनीकी नवाचार का समावेश हो।



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