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UOU GEPA-02 SOLVED PAPER DECEMBER 2024, भारतीय प्रशासन

 

UOU GEPA-02 SOLVED PAPER DECEMBER 2024, भारतीय प्रशासन

प्रश्न 01 मौर्य कालीन प्रशासन की व्याख्या कीजिए।

📜 प्रस्तावना

मौर्य साम्राज्य (321 ई.पू. – 185 ई.पू.) प्राचीन भारत का प्रथम और सबसे बड़ा केंद्रीकृत साम्राज्य था। इसकी स्थापना चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य (कौटिल्य) की सहायता से की थी। मौर्य प्रशासन का विस्तार इतना व्यापक था कि इसे संचालित करने के लिए एक संगठित, अनुशासित और प्रभावशाली प्रशासनिक ढाँचा विकसित किया गया। कौटिल्य का अर्थशास्त्र और मेगस्थनीज़ का इंडिका मौर्य प्रशासन की संरचना और कार्यप्रणाली के प्रमुख स्रोत हैं।


🏛️ प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ

मौर्य कालीन प्रशासन की कुछ मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार थीं:

  • केंद्रीकृत शासन – सर्वोच्च शक्ति सम्राट के हाथों में।

  • विस्तृत नौकरशाही – विभिन्न विभागों और अधिकारियों का स्पष्ट विभाजन।

  • संगठित न्याय प्रणाली – कानून और दंड का स्पष्ट प्रावधान।

  • सैन्य संगठन – स्थायी और विशाल सेना।


👑 सम्राट का स्थान और अधिकार

सम्राट मौर्य शासन का सर्वोच्च प्रमुख था।

🛡️ सर्वोच्च सत्ता

  • सम्राट विधायी, कार्यकारी और न्यायिक – तीनों शक्तियों का केंद्र था।

  • उसकी आज्ञा ही अंतिम मानी जाती थी।

📜 दायित्व

  • प्रजा की सुरक्षा

  • न्याय का पालन

  • कर संग्रह और आर्थिक व्यवस्था

  • धार्मिक सहिष्णुता और कल्याणकारी कार्य

अशोक जैसे सम्राट ने प्रशासन को नैतिकता और ‘धम्म’ के सिद्धांतों पर आधारित किया।


🏢 केन्द्रीय प्रशासन की संरचना

📌 मंत्रिपरिषद

  • सम्राट को सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद थी।

  • इसमें प्रधानमंत्री, सेनापति, पुरोहित, मुख्य न्यायाधीश आदि शामिल होते थे।

📌 विभागीय अधिकारी

अर्थशास्त्र के अनुसार 18 प्रमुख विभाग थे जैसे:

  • सिंचाई

  • खनन

  • सड़क एवं यातायात

  • कर विभाग

  • विदेशी मामलों का विभाग


🌍 प्रांतीय प्रशासन

मौर्य साम्राज्य को प्रांतों (जनपदों) में बाँटा गया था।

📍 प्रमुख प्रांत

  • तक्षकशिला

  • उज्जैन

  • सुवर्णगिरि

  • पाटलिपुत्र (राजधानी)

🏅 प्रांतीय शासक

  • प्रांतों का शासन कुमार (राजकुमार) या विश्वसनीय अधिकारियों के हाथ में होता था।

  • इनके अधीन विभिन्न जिलों और नगरों का संचालन स्थानीय अधिकारियों द्वारा होता था।


🏙️ नगरीय प्रशासन

🏛️ नगराध्यक्ष (नागरक)

  • नगर की कानून व्यवस्था, व्यापार, सफाई, जल आपूर्ति आदि का जिम्मेदार।

🏬 नगर के विभाग

मेगस्थनीज़ के अनुसार पाटलिपुत्र में नगर प्रशासन के लिए 6 समितियाँ थीं:

  1. उद्योग और कारीगर

  2. विदेशियों की देखभाल

  3. जन्म-मृत्यु का अभिलेख

  4. व्यापार और तौल-माप

  5. यातायात और परिवहन

  6. कर संग्रह


⚖️ न्यायिक व्यवस्था

📜 विधि

  • धार्मिक, सामाजिक और राजकीय – तीनों प्रकार के कानून लागू थे।

🏛️ न्यायालय

  • सर्वोच्च न्यायालय सम्राट का दरबार था।

  • प्रांतीय और स्थानीय स्तर पर भी न्यायालय स्थापित थे।

⚔️ दंड व्यवस्था

  • अपराध के लिए कठोर दंड

  • अर्थदंड, कारावास, शारीरिक दंड आदि


⚔️ सैन्य प्रशासन

मौर्य साम्राज्य की सेना प्राचीन भारत की सबसे बड़ी स्थायी सेनाओं में से एक थी।

🏹 संगठन

  • पैदल सेना

  • घुड़सवार सेना

  • रथ और हाथी सेना

🎖️ सेनापति

  • सेना का संचालन सेनापति करता था जो सीधे सम्राट के अधीन होता था।


💰 राजस्व और आर्थिक प्रशासन

📦 कर प्रणाली

  • भूमि कर (मुख्य आय का स्रोत)

  • व्यापार कर

  • खनन और वनों से आय

📜 आर्थिक नीतियाँ

  • कृषि को बढ़ावा

  • सिंचाई व्यवस्था का विकास

  • व्यापार और उद्योग को प्रोत्साहन


🌱 लोक-कल्याणकारी कार्य

मौर्य शासक विशेषकर अशोक ने कई कल्याणकारी कार्य किए:

  • सड़क और कुओं का निर्माण

  • अस्पताल और धर्मशालाएँ

  • वृक्षारोपण

  • पशु चिकित्सा केंद्र


📚 मौर्य प्रशासन के स्रोत

  • अर्थशास्त्र – कौटिल्य द्वारा लिखित

  • इंडिका – मेगस्थनीज़ का विवरण

  • अशोक के शिलालेख – प्रशासनिक नीतियों का प्रमाण


🔍 मौर्य प्रशासन की विशेषताएँ और महत्व

  • केंद्रीकरण और संगठन – साम्राज्य के एकीकरण में सहायक

  • व्यवस्थित कर और न्याय प्रणाली – आर्थिक स्थिरता और सामाजिक व्यवस्था

  • सैन्य शक्ति – आंतरिक और बाहरी सुरक्षा

  • लोक कल्याण – प्रजा का विश्वास और साम्राज्य की स्थिरता


📝 उपसंहार

मौर्य कालीन प्रशासन प्राचीन भारतीय शासन व्यवस्था का सर्वोत्तम उदाहरण है। यह न केवल संगठित और प्रभावी था, बल्कि इसमें प्रजा के कल्याण, नैतिक मूल्यों और कानून व्यवस्था का विशेष ध्यान रखा गया। मौर्य शासकों की प्रशासनिक नीतियों ने आगे आने वाले राजवंशों के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया।




प्रश्न 02 भारतीय संविधान की विशेषताओं की व्याख्या कीजिए।

📜 प्रस्तावना

भारतीय संविधान विश्व का सबसे लंबा, विस्तृत और लिखित संविधान है, जिसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया। यह संविधान भारत को सार्वभौम, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करता है। डॉ. भीमराव अंबेडकर को इसका मुख्य शिल्पकार माना जाता है। इसमें अनेक देशों के संविधानों से विशेषताएँ ली गई हैं, परंतु यह अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए है।


🏛️ भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएँ


📚 1. लिखित और विस्तृत संविधान

  • भारत का संविधान लगभग 395 अनुच्छेद, 22 भाग और 12 अनुसूचियों के साथ लागू हुआ (बाद में संशोधनों से संख्या बदली)।

  • यह केंद्र और राज्यों के अधिकारों, नागरिकों के अधिकारों, और प्रशासन की संरचना का विस्तृत विवरण देता है।


⚖️ 2. संघात्मक व्यवस्था (Federal System)

  • संविधान केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन करता है।

  • सातवीं अनुसूची में तीन सूचियाँ –

    • संघ सूची

    • राज्य सूची

    • समवर्ती सूची


🏛️ 3. संसदीय शासन प्रणाली

  • ब्रिटेन से प्रेरित संसदीय प्रणाली अपनाई गई।

  • कार्यपालिका, विधायिका के प्रति उत्तरदायी है।

  • राष्ट्रपति संवैधानिक प्रमुख, जबकि प्रधानमंत्री वास्तविक कार्यकारी प्रमुख है।


📜 4. सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार

  • 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी नागरिकों को मतदान का अधिकार।

  • लिंग, जाति, धर्म, संपत्ति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं।


🛡️ 5. मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)

  • संविधान नागरिकों को छह प्रमुख मौलिक अधिकार देता है:

    1. समानता का अधिकार

    2. स्वतंत्रता का अधिकार

    3. शोषण के विरुद्ध अधिकार

    4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार

    5. सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार

    6. संवैधानिक उपचार का अधिकार


🌱 6. राज्य के नीति-निर्देशक तत्व (Directive Principles of State Policy)

  • आयरलैंड के संविधान से प्रेरित।

  • राज्य को ऐसे नीतिगत दिशा-निर्देश देता है जो कल्याणकारी राज्य की स्थापना में सहायक हों।


📜 7. मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duties)

  • 1976 के 42वें संशोधन से जोड़े गए।

  • संविधान के प्रति निष्ठा, पर्यावरण संरक्षण, राष्ट्रीय एकता जैसे 11 कर्तव्य।


🌍 8. धर्मनिरपेक्षता (Secularism)

  • राज्य सभी धर्मों के प्रति समान दृष्टिकोण रखता है।

  • किसी एक धर्म को विशेष मान्यता नहीं।


🏛️ 9. स्वतंत्र न्यायपालिका (Independent Judiciary)

  • सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों को विशेष अधिकार दिए गए।

  • न्यायपालिका कार्यपालिका और विधायिका से स्वतंत्र।

  • न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review) का अधिकार।


🔄 10. एकल नागरिकता (Single Citizenship)

  • अमेरिका की तरह दोहरी नागरिकता का प्रावधान नहीं।

  • सभी भारतीय एक ही नागरिकता के अंतर्गत आते हैं।


🗳️ 11. स्वतंत्र निर्वाचन आयोग

  • चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष कराने के लिए संवैधानिक निकाय।

  • लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति के चुनाव का संचालन।


🛠️ 12. संविधान का लचीलापन और कठोरता

  • कुछ प्रावधान साधारण बहुमत से संशोधित किए जा सकते हैं।

  • कुछ के लिए विशेष बहुमत और राज्यों की सहमति आवश्यक।

  • यह संविधान को स्थायित्व और समयानुसार परिवर्तन की क्षमता दोनों देता है।


📜 13. आपातकालीन प्रावधान (Emergency Provisions)

  • राष्ट्रपति को आपातकाल की स्थिति में विशेष अधिकार।

  • तीन प्रकार:

    1. राष्ट्रीय आपातकाल

    2. राज्य आपातकाल

    3. वित्तीय आपातकाल


🏢 14. स्वतंत्र संस्थाएँ और आयोग

  • नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG)

  • संघ लोक सेवा आयोग (UPSC)

  • वित्त आयोग


🌐 15. मिश्रित संविधान

  • इसमें एकात्मक और संघात्मक दोनों तत्व हैं।

  • केंद्र को अधिक शक्तियाँ, परंतु राज्यों को भी स्वायत्तता।


📝 16. संविधान की सर्वोच्चता

  • कोई भी कानून संविधान के विपरीत नहीं हो सकता।

  • सर्वोच्च न्यायालय संरक्षक की भूमिका निभाता है।


💬 17. भाषा संबंधी प्रावधान

  • हिंदी और अंग्रेज़ी आधिकारिक भाषाएँ।

  • राज्यों को अपनी क्षेत्रीय भाषाओं को मान्यता देने का अधिकार।


🌱 18. समाजवादी स्वरूप

  • सामाजिक और आर्थिक समानता को प्रोत्साहित करना।

  • गरीबी, असमानता और शोषण का अंत।


🔍 विशेषताओं का महत्व

  • नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा

  • लोकतांत्रिक व्यवस्था का संरक्षण

  • राष्ट्रीय एकता और अखंडता को मजबूत करना

  • विकास और कल्याणकारी राज्य की दिशा में मार्गदर्शन


📝 उपसंहार

भारतीय संविधान की विशेषताएँ इसे अद्वितीय और व्यवहारिक बनाती हैं। यह लोकतंत्र, न्याय, समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के मूल्यों पर आधारित है। इसकी लचीलापन और कठोरता का संतुलन इसे समय की आवश्यकता के अनुसार संशोधित करने योग्य बनाता है, जिससे यह देश की विविधता में एकता बनाए रखने में सक्षम है।




प्रश्न 03 केन्द्रीय सचिवालय की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए, इसके कार्यों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए।

📜 प्रस्तावना

भारतीय प्रशासनिक तंत्र में केन्द्रीय सचिवालय (Central Secretariat) एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है। यह केंद्र सरकार के मंत्रालयों और विभागों का संयुक्त प्रशासनिक ढाँचा है, जो नीतिनिर्माण, योजना, समन्वय और निगरानी के कार्य करता है। केन्द्रीय सचिवालय मुख्यतः राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सहायता करता है, ताकि देश की प्रशासनिक और नीतिगत गतिविधियाँ सुचारु रूप से चल सकें।


🏛️ केन्द्रीय सचिवालय की अवधारणा

📌 परिभाषा

केन्द्रीय सचिवालय, केंद्र सरकार के उन मंत्रालयों और विभागों का समूह है, जो नीतिनिर्माण और प्रशासनिक कार्यों के लिए जिम्मेदार हैं। यह नीति के निर्माण, समन्वय, कार्यान्वयन और मूल्यांकन के लिए एक केंद्रीय मंच प्रदान करता है।

📌 स्वरूप

  • स्थायी संगठन – यह केवल राजनीतिक परिवर्तन के अनुसार नहीं बदलता।

  • प्रशासनिक और तकनीकी विशेषज्ञता – इसमें विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ और अनुभवी अधिकारी शामिल होते हैं।


🏢 संरचना

📜 मंत्रालय और विभाग

  • प्रत्येक मंत्रालय का नेतृत्व एक मंत्री करता है, जिसकी सहायता सचिव स्तर का अधिकारी करता है।

  • मंत्रालय के अंतर्गत कई विभाग हो सकते हैं, जो विशेष क्षेत्रों में कार्य करते हैं।

📜 प्रमुख पद

  1. मंत्री – राजनीतिक नेतृत्व और नीति दिशा

  2. सचिव – प्रशासनिक प्रमुख

  3. अतिरिक्त सचिव – नीति और कार्यक्रम समन्वय

  4. संयुक्त सचिव – विभागीय प्रभारी

  5. निदेशक/उप सचिव/सहायक सचिव – विशेष कार्य और नीतियों का क्रियान्वयन


🛠️ केन्द्रीय सचिवालय के कार्य

📝 1. नीतिनिर्माण (Policy Formulation)

  • राष्ट्रीय हित में नई नीतियों का निर्माण

  • मौजूदा नीतियों का पुनर्मूल्यांकन

  • मंत्रिपरिषद को परामर्श देना

🔄 2. समन्वय (Coordination)

  • विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के बीच तालमेल

  • केंद्र और राज्यों के बीच संपर्क

📊 3. योजना और कार्यक्रम निर्माण

  • पंचवर्षीय योजनाओं और वार्षिक कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाना

  • आर्थिक, सामाजिक और तकनीकी योजनाओं का मसौदा तैयार करना

🔍 4. निगरानी और मूल्यांकन

  • योजनाओं और नीतियों के कार्यान्वयन की समीक्षा

  • प्रगति रिपोर्ट तैयार करना और सुधार के सुझाव देना

⚖️ 5. विधायी कार्य

  • संसद में विधेयकों का मसौदा तैयार करना

  • संसद में प्रश्नों और बहस का उत्तर तैयार करना

📑 6. प्रशासनिक नियंत्रण

  • मंत्रालयों के कार्मिक प्रबंधन, वित्तीय प्रबंधन और अन्य प्रशासनिक कार्य

  • केंद्रीय सेवाओं के कर्मचारियों की नियुक्ति, पदोन्नति और स्थानांतरण


🌟 केन्द्रीय सचिवालय की विशेषताएँ

  • स्थायी नौकरशाही – प्रशासनिक निरंतरता बनाए रखना

  • विशेषज्ञता और अनुभव – नीति निर्माण में विशेषज्ञ सलाह

  • विस्तृत कार्यक्षेत्र – आर्थिक, सामाजिक, वैज्ञानिक, रक्षा, विदेश नीति आदि सभी क्षेत्रों में कार्य


🔍 आलोचनात्मक विश्लेषण

✅ सकारात्मक पहलू

  1. नीतिगत निरंतरता – राजनीतिक अस्थिरता के बावजूद नीतियों का संचालन।

  2. विशेषज्ञों की भूमिका – निर्णय प्रक्रिया में तकनीकी और प्रशासनिक विशेषज्ञता।

  3. समन्वय क्षमता – विभिन्न मंत्रालयों और राज्यों के बीच सुचारु तालमेल।

  4. लोकतांत्रिक जवाबदेही – संसद के प्रति जवाबदेह होना।

❌ नकारात्मक पहलू

  1. अत्यधिक केंद्रीकरण – कई बार निर्णय प्रक्रिया में लचीलापन कम हो जाता है।

  2. नौकरशाही जटिलता – कागजी कार्रवाई और लंबी प्रक्रियाएँ नीतियों के शीघ्र क्रियान्वयन में बाधा डालती हैं।

  3. राजनीतिक हस्तक्षेप – कुछ मामलों में राजनीतिक दबाव से नीतियों की निष्पक्षता प्रभावित होती है।

  4. संसाधनों की कमी – मानव संसाधन और वित्तीय संसाधनों का सीमित होना।


📈 सुधार के सुझाव

  • प्रक्रियाओं का सरलीकरण – अनावश्यक कागजी कार्रवाई कम करना।

  • ई-गवर्नेंस का विस्तार – पारदर्शिता और कार्यकुशलता बढ़ाना।

  • मानव संसाधन विकास – अधिकारियों को आधुनिक तकनीकी और प्रशासनिक प्रशिक्षण देना।

  • विकेंद्रीकरण – राज्यों और स्थानीय प्रशासन को अधिक अधिकार देना।


📝 उपसंहार

केन्द्रीय सचिवालय भारतीय प्रशासन का मस्तिष्क है, जो नीतियों की योजना से लेकर उनके क्रियान्वयन और मूल्यांकन तक की पूरी प्रक्रिया में केंद्रीय भूमिका निभाता है। यद्यपि इसमें कुछ कमियाँ हैं, लेकिन सुधारों और आधुनिक तकनीक के प्रयोग से इसकी कार्यकुशलता और पारदर्शिता को और बढ़ाया जा सकता है, जिससे यह भारत के विकास पथ पर और अधिक प्रभावी भूमिका निभा सके।




प्रश्न 04 राज्य प्रशासन में राज्य सचिवालय की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए, इसके संगठनात्मक ढांचे पर विस्तार से चर्चा कीजिए।

📜 प्रस्तावना

राज्य प्रशासन में राज्य सचिवालय (State Secretariat) प्रशासनिक कार्यों का केंद्रीय अंग है। यह राज्य सरकार का नीतिनिर्माण और प्रशासनिक समन्वय केंद्र है, जहाँ से राज्य के विभिन्न विभागों और कार्यालयों का संचालन और नियंत्रण किया जाता है। राज्य सचिवालय न केवल नीतियों का निर्माण करता है, बल्कि उन्हें क्रियान्वित करने और उनकी निगरानी का भी कार्य करता है। इसे राज्य सरकार का “नियंत्रण कक्ष” कहा जा सकता है।


🏛️ राज्य सचिवालय की उपयोगिता

📌 1. नीतिनिर्माण का केंद्र

  • राज्य के सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक विकास के लिए योजनाएँ बनाना।

  • राज्य मंत्रिपरिषद की सहायता करना।

📌 2. प्रशासनिक समन्वय

  • विभिन्न विभागों के बीच तालमेल बनाए रखना।

  • जिला प्रशासन और राज्य स्तर के विभागों को दिशा-निर्देश देना।

📌 3. विधायी कार्य

  • विधानसभा के लिए विधेयकों और प्रस्तावों का मसौदा तैयार करना।

  • विधानसभा में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर तैयार करना।

📌 4. वित्तीय प्रबंधन

  • राज्य के बजट का निर्माण।

  • विभिन्न विभागों के वित्तीय आवंटन की निगरानी।

📌 5. लोक कल्याणकारी योजनाओं का संचालन

  • शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, सिंचाई, रोजगार जैसी योजनाओं का समन्वय।

📌 6. आपातकालीन स्थिति में नियंत्रण

  • प्राकृतिक आपदाओं, महामारी या दंगों की स्थिति में त्वरित निर्णय और कार्यवाही।


🏢 राज्य सचिवालय का संगठनात्मक ढाँचा

📜 1. मंत्रिपरिषद और मंत्री

  • मुख्यमंत्री – राज्य का प्रमुख और नीतिनिर्माण का सर्वोच्च अधिकारी।

  • कैबिनेट मंत्री/राज्यमंत्री – अपने-अपने विभागों के राजनीतिक प्रमुख।

📜 2. मुख्य सचिव (Chief Secretary)

  • राज्य प्रशासन का सबसे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी।

  • मंत्रिपरिषद और प्रशासन के बीच सेतु का कार्य करता है।

  • सभी विभागों के सचिवों का समन्वयक।

📜 3. विभागीय सचिव (Departmental Secretaries)

  • प्रत्येक विभाग का प्रशासनिक प्रमुख।

  • विभागीय नीतियों का निर्माण और क्रियान्वयन सुनिश्चित करना।

📜 4. विशेष सचिव और संयुक्त सचिव

  • सचिव की सहायता करते हैं।

  • विशेष परियोजनाओं और नीतिगत क्षेत्रों की जिम्मेदारी।

📜 5. उप सचिव और सहायक सचिव

  • दैनिक प्रशासनिक कार्यों का निष्पादन।

  • फ़ाइलों की प्रक्रिया और अनुमोदन हेतु तैयार करना।

📜 6. अनुभाग अधिकारी और कनिष्ठ अधिकारी

  • कार्यालयी काम, पत्राचार, रिकॉर्ड प्रबंधन।


📊 विभागों का विभाजन

राज्य सचिवालय विभिन्न विभागों में विभाजित होता है, जैसे:

  • गृह विभाग

  • वित्त विभाग

  • शिक्षा विभाग

  • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग

  • कृषि विभाग

  • ऊर्जा विभाग

  • सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग


🌟 राज्य सचिवालय की विशेषताएँ

  • स्थायी नौकरशाही का आधार – प्रशासनिक निरंतरता।

  • राजनीतिक और प्रशासनिक समन्वय – मंत्रिपरिषद और प्रशासनिक मशीनरी का जोड़।

  • विस्तृत कार्यक्षेत्र – राज्य की सभी नीतियों, योजनाओं और परियोजनाओं का संचालन।


🔍 आलोचनात्मक विश्लेषण

✅ सकारात्मक पक्ष

  1. प्रशासनिक दक्षता – अनुभवी अधिकारियों के कारण नीतियों का प्रभावी संचालन।

  2. समन्वय क्षमता – विभागों और जिलों के बीच प्रभावी तालमेल।

  3. लोकतांत्रिक जवाबदेही – विधानसभा के प्रति उत्तरदायी।

  4. आपातकालीन प्रतिक्रिया – त्वरित निर्णय क्षमता।

❌ नकारात्मक पक्ष

  1. नौकरशाही की धीमी गति – लंबी प्रक्रियाएँ और फ़ाइल प्रणाली।

  2. राजनीतिक हस्तक्षेप – निर्णय प्रक्रिया पर प्रभाव।

  3. प्रौद्योगिकी की कमी – कई राज्यों में ई-गवर्नेंस का पूर्ण कार्यान्वयन नहीं।

  4. मानव संसाधन की कमी – योग्य अधिकारियों और कर्मचारियों का अभाव।


📈 सुधार के सुझाव

  • ई-गवर्नेंस – पारदर्शिता और दक्षता बढ़ाने के लिए।

  • मानव संसाधन विकास – अधिकारियों को आधुनिक प्रशिक्षण देना।

  • विकेंद्रीकरण – जिला और ब्लॉक स्तर पर अधिक अधिकार देना।

  • नवाचार को प्रोत्साहन – नीतियों में नवीन तकनीकों का समावेश।


📝 उपसंहार

राज्य सचिवालय राज्य प्रशासन की रीढ़ है, जो नीतिनिर्माण, समन्वय और निगरानी में केंद्रीय भूमिका निभाता है। इसकी प्रभावशीलता सीधे राज्य के विकास और जनकल्याण से जुड़ी है। यद्यपि इसमें कुछ कमियाँ हैं, लेकिन तकनीकी नवाचार, प्रक्रियाओं का सरलीकरण और पारदर्शिता से इसकी कार्यकुशलता को और बढ़ाया जा सकता है, जिससे यह जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतर सके।




प्रश्न 05 पंचायती राज की त्रिस्तरीय व्यवस्था की व्याख्या कीजिए।

📜 प्रस्तावना

भारत में पंचायती राज व्यवस्था (Panchayati Raj System) ग्रामीण स्वशासन की आधारशिला है। इसका उद्देश्य गाँवों में लोकतंत्र को मजबूत करना, स्थानीय समस्याओं का समाधान स्थानीय स्तर पर करना और लोगों को निर्णय-निर्माण में प्रत्यक्ष भागीदारी देना है। 1992 में 73वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से इसे संवैधानिक दर्जा मिला और त्रिस्तरीय संरचना का प्रावधान किया गया।


🏛️ पंचायती राज की परिभाषा

पंचायती राज वह प्रणाली है, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से प्रशासनिक और विकासात्मक कार्य संपन्न किए जाते हैं। यह "ग्राम से राज्य" तक के लोकतांत्रिक ढाँचे का विस्तार है।


📜 संवैधानिक आधार

📌 73वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1992

  • भाग IX – "पंचायत" शीर्षक के अंतर्गत जोड़ा गया।

  • अनुच्छेद 243 से 243-O तक प्रावधान।

  • ग्यारहवीं अनुसूची – पंचायतों को सौंपे गए 29 विषय।

  • अनिवार्य चुनाव – प्रत्येक पाँच वर्ष में।


🏢 त्रिस्तरीय व्यवस्था का ढाँचा

त्रिस्तरीय प्रणाली का उद्देश्य प्रशासन को ग्राम, मध्य और जिला स्तर पर विभाजित करना है, ताकि निर्णय-निर्माण और क्रियान्वयन स्थानीय स्तर पर हो सके।


1️⃣ ग्राम पंचायत (Village Level)

🏠 संरचना

  • ग्राम सभा – गाँव के सभी वयस्क मतदाता सदस्य।

  • ग्राम पंचायत – ग्राम सभा द्वारा चुने गए प्रतिनिधि।

  • प्रधान/सरपंच – ग्राम पंचायत का प्रमुख।

📌 कार्य

  • गाँव में स्वच्छता, पेयजल, सड़क निर्माण।

  • प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ्य केंद्रों का प्रबंधन।

  • सामाजिक न्याय और कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन।

📌 महत्व

  • लोकतंत्र की पहली सीढ़ी।

  • स्थानीय समस्याओं का त्वरित समाधान।


2️⃣ पंचायत समिति (Block Level / Intermediate Level)

🏢 संरचना

  • प्रधान – पंचायत समिति का प्रमुख।

  • निर्वाचित सदस्य – ब्लॉक क्षेत्र की ग्राम पंचायतों से चुने गए।

  • स्थायी अधिकारी – ब्लॉक विकास अधिकारी (BDO)।

📌 कार्य

  • ब्लॉक स्तर पर विकास योजनाओं का समन्वय।

  • कृषि, सिंचाई, ग्रामीण उद्योगों को प्रोत्साहन।

  • ग्राम पंचायतों की निगरानी और सहायता।

📌 महत्व

  • ग्राम और जिला स्तर के बीच समन्वय का सेतु।

  • संसाधनों का उचित आवंटन।


3️⃣ जिला परिषद (District Level)

🏛️ संरचना

  • अध्यक्ष – जिला परिषद का प्रमुख।

  • सदस्य – विधानसभा, लोकसभा, और पंचायत समिति से प्रतिनिधि।

  • मुख्य कार्यपालक अधिकारी – वरिष्ठ आईएएस अधिकारी।

📌 कार्य

  • जिला स्तर पर योजनाओं का निर्माण और क्रियान्वयन।

  • पंचायत समितियों की निगरानी।

  • जिला स्तर के अस्पताल, उच्च शिक्षा, सड़क निर्माण आदि।

📌 महत्व

  • जिला प्रशासन में लोकतांत्रिक भागीदारी।

  • समग्र विकास के लिए नीतिगत दिशा।


🌟 पंचायती राज की विशेषताएँ

  • प्रत्यक्ष लोकतंत्र – ग्राम सभा में जनता की सीधी भागीदारी।

  • विकेंद्रीकरण – निर्णय लेने की शक्ति स्थानीय स्तर पर।

  • अनिवार्य चुनाव – पाँच वर्ष में नियमित चुनाव।

  • आरक्षण – महिलाओं, अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए।


📊 पंचायती राज के लाभ

✅ सकारात्मक पहलू

  1. स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति – गाँव की समस्याओं का समाधान गाँव में।

  2. जन भागीदारी – नागरिकों में लोकतांत्रिक जागरूकता।

  3. तेजी से विकास – निर्णय और क्रियान्वयन में तेजी।

  4. सशक्तिकरण – महिलाओं और कमजोर वर्गों को प्रतिनिधित्व।


🔍 पंचायती राज की चुनौतियाँ

❌ नकारात्मक पहलू

  1. वित्तीय संसाधनों की कमी – योजनाओं के लिए पर्याप्त धन का अभाव।

  2. राजनीतिक हस्तक्षेप – निर्णय प्रक्रिया में बाहरी दबाव।

  3. प्रशिक्षण की कमी – निर्वाचित प्रतिनिधियों का प्रशासनिक अनुभव कम।

  4. भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी – योजनाओं में अनियमितताएँ।


📈 सुधार के सुझाव

  • वित्तीय स्वावलंबन – कर संग्रह और अनुदान प्रणाली में सुधार।

  • प्रशिक्षण कार्यक्रम – प्रतिनिधियों को प्रशासन और योजना प्रबंधन का प्रशिक्षण।

  • ई-गवर्नेंस – योजनाओं की निगरानी और पारदर्शिता।

  • सामुदायिक भागीदारी – ग्राम सभा को अधिक सक्रिय बनाना।


📝 उपसंहार

पंचायती राज की त्रिस्तरीय व्यवस्था भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करती है। यह केवल प्रशासनिक ढाँचा नहीं, बल्कि "जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा" शासन का ग्रामीण संस्करण है। यदि इसकी चुनौतियों को दूर किया जाए और संसाधनों का सही उपयोग हो, तो यह ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर और समृद्ध बनाने में सबसे बड़ा साधन बन सकता है।


लघु उत्तरीय प्रश्न 


प्रश्न 01 भारतीय प्रशासन की विशेषताओं पर चर्चा कीजिए।

📜 प्रस्तावना

भारतीय प्रशासन (Indian Administration) विश्व की सबसे बड़ी प्रशासनिक व्यवस्थाओं में से एक है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों, संघीय संरचना और सामाजिक विविधता पर आधारित है। यह न केवल शासन-व्यवस्था का आधार है, बल्कि देश के विकास और नागरिकों के कल्याण का भी मुख्य साधन है। भारतीय प्रशासन की विशेषताएँ इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, संवैधानिक प्रावधानों और आधुनिक चुनौतियों के अनुरूप विकसित हुई हैं।


🏛️ भारतीय प्रशासन की पृष्ठभूमि

  • प्राचीन काल – मौर्य, गुप्त आदि राजवंशों के प्रशासनिक ढाँचे से प्रेरणा।

  • मध्यकाल – मुग़ल काल में केंद्रीकृत शासन का प्रभाव।

  • ब्रिटिश काल – भारतीय सिविल सेवा, जिला कलेक्टर प्रणाली और विधिक प्रशासन का विकास।

  • स्वतंत्रता के बाद – लोकतंत्र, विकेंद्रीकरण और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों का समावेश।


🌟 भारतीय प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ

📌 1. लोकतांत्रिक स्वरूप

भारतीय प्रशासन संविधान द्वारा संचालित लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा है। इसमें जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि और स्थायी नौकरशाही मिलकर शासन करते हैं।

📌 2. संघीय ढाँचा और एकात्मक प्रवृत्ति

भारत में संघीय शासन है, परंतु प्रशासन में एकात्मकता की झलक मिलती है।

  • केंद्र और राज्यों के अलग-अलग प्रशासनिक तंत्र।

  • अखिल भारतीय सेवाओं के माध्यम से एकता और समन्वय।

📌 3. लिखित संविधान पर आधारित

भारतीय प्रशासन का संचालन लिखित संविधान के अनुसार होता है, जिसमें प्रशासनिक कार्यों, शक्तियों और दायित्वों का स्पष्ट उल्लेख है।

📌 4. शक्तियों का विभाजन

  • विधायिका – कानून बनाना।

  • कार्यपालिका – कानून का पालन कराना।

  • न्यायपालिका – कानून की व्याख्या और न्याय।

📌 5. अखिल भारतीय सेवाएँ

  • आईएएस, आईपीएस, आईएफएस जैसी सेवाएँ पूरे देश में समान प्रशासनिक मानक बनाए रखती हैं।

📌 6. विकेंद्रीकरण और पंचायती राज

73वें और 74वें संविधान संशोधन के तहत प्रशासनिक शक्तियाँ ग्राम पंचायतों, नगरपालिकाओं और महानगर पालिकाओं को दी गईं।

📌 7. लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा

भारतीय प्रशासन केवल कानून-व्यवस्था बनाए रखने तक सीमित नहीं, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में सक्रिय भूमिका निभाता है।

📌 8. विविधता में एकता

भारत की भाषाई, सांस्कृतिक और भौगोलिक विविधता के बावजूद प्रशासनिक एकरूपता बनाए रखना इसकी अनूठी विशेषता है।

📌 9. विधि का शासन (Rule of Law)

सभी नागरिकों और अधिकारियों के लिए कानून समान है। प्रशासनिक निर्णय संविधान और कानून के अनुसार ही लिए जाते हैं।

📌 10. मिश्रित प्रशासनिक प्रणाली

  • राजनीतिक नेतृत्व + स्थायी नौकरशाही का मेल।

  • नीति निर्माण में मंत्री, क्रियान्वयन में अधिकारी।


📊 भारतीय प्रशासन की कार्यप्रणाली के लक्षण

✅ पारदर्शिता और जवाबदेही

  • सूचना का अधिकार (RTI) और सामाजिक अंकेक्षण (Social Audit) के माध्यम से।

✅ सेवा भाव

  • नागरिक केंद्रित नीतियाँ और योजनाएँ।

✅ तकनीकी और डिजिटल परिवर्तन

  • ई-गवर्नेंस, डिजिटल इंडिया, ऑनलाइन सेवाएँ।


🔍 आलोचनात्मक विश्लेषण

🌟 सकारात्मक पक्ष

  1. मजबूत प्रशासनिक ढाँचा – पूरे देश में एकसमान मानक।

  2. अनुकूलनशीलता – बदलती परिस्थितियों के अनुसार नीतियों में संशोधन।

  3. लोक कल्याणकारी दृष्टिकोण – जनसाधारण के हित में कार्य।

⚠️ नकारात्मक पक्ष

  1. नौकरशाही की जटिलता – प्रक्रियाएँ लंबी और समय लेने वाली।

  2. भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी – कई मामलों में अनियमितताएँ।

  3. राजनीतिक हस्तक्षेप – प्रशासनिक निष्पक्षता पर असर।

  4. जनभागीदारी का अभाव – कुछ निर्णयों में आम जनता की सीधी भागीदारी कम।


📈 सुधार के सुझाव

  • प्रशासनिक सरलीकरण – नियमों और प्रक्रियाओं को सरल बनाना।

  • तकनीकी उपयोग – ई-गवर्नेंस और डिजिटल प्लेटफॉर्म का विस्तार।

  • भ्रष्टाचार नियंत्रण – सशक्त निगरानी प्रणाली।

  • जन भागीदारी – नीति निर्माण और क्रियान्वयन में नागरिकों की सक्रिय भागीदारी।


📝 उपसंहार

भारतीय प्रशासन अपनी विशालता, विविधता और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के कारण अद्वितीय है। यह केवल शासन की मशीनरी नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण की आधारशिला है। यदि इसकी कमजोरियों को दूर किया जाए और पारदर्शिता, जवाबदेही एवं तकनीकी नवाचार को बढ़ावा दिया जाए, तो यह 21वीं सदी में एक आदर्श प्रशासनिक प्रणाली बन सकता है, जो "जनता के लिए, जनता द्वारा और जनता का" शासन सुनिश्चित करे।




प्रश्न 02 प्रधानमंत्री कार्यालय पर टिप्पणी कीजिए।

📜 प्रस्तावना

प्रधानमंत्री कार्यालय (Prime Minister’s Office – PMO) भारत सरकार के प्रशासनिक ढाँचे में वह केंद्रीय संस्था है, जो प्रधानमंत्री को शासन, नीति निर्माण और क्रियान्वयन में प्रत्यक्ष सहायता प्रदान करती है। यह न केवल प्रधानमंत्री का निजी सचिवालय है, बल्कि देश की सर्वोच्च कार्यपालिका का मस्तिष्क और तंत्रिका केंद्र भी है।


🏛️ प्रधानमंत्री कार्यालय का ऐतिहासिक विकास

📌 प्रारंभिक काल

  • स्वतंत्रता के बाद प्रारंभ में प्रधानमंत्री के पास कोई अलग विशेष कार्यालय नहीं था।

  • पंडित जवाहरलाल नेहरू के समय इसे "प्रधानमंत्री सचिवालय" कहा जाता था।

📌 औपचारिक स्थापना

  • 1947 में प्रधानमंत्री सचिवालय का गठन हुआ।

  • 1977 में मोरारजी देसाई सरकार के समय इसका नाम बदलकर प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) कर दिया गया।


🌟 प्रधानमंत्री कार्यालय की संरचना

🏢 संगठनात्मक ढाँचा

  • प्रधानमंत्री – प्रमुख और सर्वोच्च निर्णयकर्ता।

  • प्रधान सचिव (Principal Secretary) – वरिष्ठतम आईएएस अधिकारी, समन्वय और नीति पर सलाह।

  • राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) – राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति मामलों में सलाह।

  • विशेष सचिव, संयुक्त सचिव और अन्य अधिकारी – विभिन्न मंत्रालयों और विभागों से जुड़े कार्य।

  • अन्य सहायक स्टाफ – प्रशासनिक, तकनीकी और निजी सहायक।

📌 प्रमुख इकाइयाँ

  1. प्रशासनिक शाखा – स्टाफ प्रबंधन, पत्राचार, फाइलों का संचालन।

  2. नीति और योजना शाखा – नीतिगत सुझाव, विकास योजनाओं की समीक्षा।

  3. मीडिया एवं जनसंपर्क इकाई – प्रेस और जनसंवाद।


📜 प्रधानमंत्री कार्यालय के प्रमुख कार्य

🛠️ 1. प्रधानमंत्री को प्रशासनिक सहायता

  • मंत्रालयों, विभागों और राज्य सरकारों से सूचना एकत्र करना।

  • नीतियों के क्रियान्वयन की समीक्षा।

🛠️ 2. नीतिगत निर्णयों में सहयोग

  • दीर्घकालिक और अल्पकालिक योजनाओं पर सलाह।

  • आर्थिक, सामाजिक और सुरक्षा मामलों में समन्वय।

🛠️ 3. मंत्रिपरिषद के कार्यों का समन्वय

  • विभिन्न मंत्रालयों में नीतियों की एकरूपता बनाए रखना।

🛠️ 4. राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति में भूमिका

  • NSA और विदेश मंत्रालय के साथ मिलकर सुरक्षा रणनीति तय करना।

🛠️ 5. संकट प्रबंधन

  • प्राकृतिक आपदा, युद्ध, महामारी जैसे संकटों में त्वरित निर्णय।

🛠️ 6. जन शिकायत निवारण

  • नागरिकों की शिकायतें और सुझाव सुनना और संबंधित मंत्रालय को भेजना।


📊 प्रधानमंत्री कार्यालय की विशेषताएँ

⭐ 1. पेशेवर और विशेषज्ञ आधारित

  • वरिष्ठतम अधिकारी और विषय विशेषज्ञ नियुक्त।

⭐ 2. गैर-राजनीतिक प्रशासनिक ढाँचा

  • अधिकारियों का चयन योग्यता के आधार पर।

⭐ 3. गोपनीयता और सुरक्षा

  • महत्वपूर्ण निर्णयों की गोपनीयता बनाए रखना।

⭐ 4. प्रत्यक्ष संपर्क

  • प्रधानमंत्री और मंत्रालयों/राज्यों के बीच सीधा संवाद।


🔍 प्रधानमंत्री कार्यालय का महत्व

✅ नीति निर्माण में केंद्रीय भूमिका

  • प्रधानमंत्री को अद्यतन और सटीक सूचना देकर नीति निर्णय को प्रभावी बनाना।

✅ प्रशासनिक दक्षता

  • तेजी से निर्णय लेने में सहायता।

✅ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय छवि

  • विदेश यात्राओं, अंतरराष्ट्रीय समझौतों और वैश्विक मंचों पर समन्वय।

✅ राजनीतिक स्थिरता

  • मंत्रिपरिषद के बीच मतभेदों को सुलझाने में मदद।


⚠️ आलोचनात्मक दृष्टिकोण

❌ नकारात्मक पहलू

  1. अत्यधिक केंद्रीकरण – सभी बड़े निर्णय PMO से होकर गुजरते हैं, जिससे मंत्रियों की स्वतंत्रता घट सकती है।

  2. संसदीय नियंत्रण में कमी – निर्णय प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी का आरोप।

  3. बढ़ता राजनीतिक प्रभाव – कभी-कभी प्रशासनिक निष्पक्षता पर असर।


📈 सुधार के सुझाव

  • अधिक पारदर्शिता – निर्णय प्रक्रिया में संसद और जनता की भागीदारी बढ़ाना।

  • मंत्रालयों को स्वायत्तता – छोटे निर्णयों के लिए PMO पर निर्भरता कम करना।

  • तकनीकी दक्षता में वृद्धि – ई-गवर्नेंस और डिजिटल मॉनिटरिंग का विस्तार।


📝 उपसंहार

प्रधानमंत्री कार्यालय भारतीय शासन प्रणाली का मस्तिष्क है, जो प्रधानमंत्री को नीति, प्रशासन और अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रभावी नेतृत्व देने में मदद करता है। इसकी कार्यक्षमता और पारदर्शिता को बनाए रखना लोकतांत्रिक मूल्यों और सुशासन के लिए आवश्यक है। एक सशक्त और जिम्मेदार PMO न केवल प्रशासनिक दक्षता बढ़ाता है, बल्कि "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास" के लक्ष्य को भी साकार करता है।




प्रश्न 03 राज्य में मुख्यमंत्री की वास्तविक स्थिति पर प्रकाश डालिए।

📜 प्रस्तावना

मुख्यमंत्री राज्य के शासन-प्रमुख (Executive Head) होते हैं और राज्य सरकार के वास्तविक संचालन की कमान उनके हाथ में होती है। संविधान के अनुच्छेद 163 और 164 में मुख्यमंत्री की नियुक्ति, कार्य और शक्तियों का उल्लेख है। यद्यपि राज्यपाल संवैधानिक प्रमुख हैं, परंतु वास्तविक शक्ति मुख्यमंत्री के पास होती है।


🏛️ मुख्यमंत्री का संवैधानिक स्थान

📌 नियुक्ति

  • राज्यपाल द्वारा नियुक्त।

  • आमतौर पर विधान सभा में बहुमत दल का नेता।

📌 कार्यकाल

  • विधानसभा के विश्वास पर आधारित।

  • जब तक बहुमत बनाए रखते हैं, पद पर बने रहते हैं।

📌 शपथ

  • राज्यपाल द्वारा शपथ ग्रहण।

  • संविधान और कानून का पालन करने की प्रतिज्ञा।


🌟 मुख्यमंत्री की प्रमुख शक्तियाँ और भूमिका

🛠️ 1. मंत्रिपरिषद के प्रमुख

  • मंत्रियों की नियुक्ति और बर्खास्तगी में प्रमुख भूमिका।

  • मंत्रिपरिषद की बैठकों की अध्यक्षता।

🛠️ 2. नीति निर्माण में भूमिका

  • राज्य की नीतियों और योजनाओं का निर्माण।

  • विभिन्न विभागों के बीच समन्वय।

🛠️ 3. विधानमंडल में भूमिका

  • विधान सभा में सरकारी नीतियों का प्रस्तुतीकरण।

  • बजट और विधेयकों को पास कराने में नेतृत्व।

🛠️ 4. राज्यपाल के साथ संबंध

  • राज्यपाल को महत्वपूर्ण निर्णयों की जानकारी देना।

  • नियुक्तियों, अध्यादेश और अन्य कार्यों में परामर्श।

🛠️ 5. केंद्र और राज्य के बीच सेतु

  • केंद्र सरकार के साथ संवाद और समन्वय।

  • राष्ट्रीय नीतियों के राज्य में क्रियान्वयन की देखरेख।


📊 मुख्यमंत्री की वास्तविक स्थिति को प्रभावित करने वाले कारक

⭐ 1. बहुमत की मजबूती

  • अगर विधान सभा में स्पष्ट बहुमत हो तो मुख्यमंत्री मजबूत स्थिति में होते हैं।

  • गठबंधन सरकार में शक्ति कम हो सकती है।

⭐ 2. राजनीतिक दल का समर्थन

  • दल के अंदर समर्थन जितना मजबूत, उतना ही मुख्यमंत्री का अधिकार।

⭐ 3. राज्यपाल के साथ संबंध

  • सहयोगी संबंध से कार्य सुचारू रूप से चलता है।

  • मतभेद होने पर संवैधानिक संकट की संभावना।

⭐ 4. केंद्र-राज्य संबंध

  • केंद्र की पार्टी और राज्य की पार्टी समान हो तो सहयोग बढ़ता है।

  • भिन्न दल होने पर टकराव संभव।


🔍 मुख्यमंत्री की वास्तविक शक्ति का विश्लेषण

✅ मजबूत स्थिति के उदाहरण

  • नीतिगत स्वायत्तता – राज्य की आवश्यकताओं के अनुसार निर्णय।

  • मंत्रिपरिषद पर नियंत्रण – मंत्री पदों का वितरण और पुनर्गठन।

  • विधानमंडल में प्रभाव – बहुमत के आधार पर विधेयक पारित कराना।

⚠️ सीमाएँ और चुनौतियाँ

  • संवैधानिक सीमाएँ – अनुच्छेद 356 के अंतर्गत केंद्र का हस्तक्षेप।

  • गठबंधन राजनीति – सभी दलों को संतुष्ट करने की बाध्यता।

  • राज्यपाल की शक्तियाँ – कुछ परिस्थितियों में राज्यपाल की विवेकाधीन शक्ति प्रभाव डाल सकती है।


🏛️ मुख्यमंत्री बनाम राज्यपाल – शक्ति संतुलन

📌 संवैधानिक प्रावधान

  • मुख्यमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिपरिषद राज्यपाल को सलाह देती है।

  • वास्तविक शक्ति मुख्यमंत्री के पास, औपचारिक शक्ति राज्यपाल के पास।

📌 व्यावहारिक स्थिति

  • सामान्य परिस्थितियों में मुख्यमंत्री प्रभावी रहते हैं।

  • राजनीतिक अस्थिरता में राज्यपाल का प्रभाव बढ़ सकता है।


📈 मुख्यमंत्री की भूमिका में आधुनिक परिवर्तन

🌐 डिजिटल और तकनीकी नेतृत्व

  • ई-गवर्नेंस और पारदर्शिता को बढ़ावा।

🏗️ विकास उन्मुख नीतियाँ

  • राज्य में उद्योग, निवेश और आधारभूत संरचना का विस्तार।

🤝 जनसंपर्क और छवि प्रबंधन

  • सोशल मीडिया और जन संवाद से सीधे जनता से संपर्क।


📝 उपसंहार

राज्य में मुख्यमंत्री की वास्तविक स्थिति उनके बहुमत, राजनीतिक कौशल, प्रशासनिक दक्षता और केंद्र-राज्य संबंधों पर निर्भर करती है। सामान्य परिस्थितियों में मुख्यमंत्री ही राज्य का वास्तविक शासक होता है और नीतियों, योजनाओं तथा प्रशासन के संचालन में उसकी भूमिका सर्वोपरि होती है। यद्यपि संवैधानिक रूप से राज्यपाल प्रमुख हैं, परंतु लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता द्वारा चुने गए मुख्यमंत्री ही वास्तविक सत्ता का संचालन करते हैं।




प्रश्न 04 बलवंत राय मेहता समिति द्वारा दी गयी सिफारिशों को बताइए।

📜 प्रस्तावना

स्वतंत्रता के बाद भारत में ग्रामीण विकास योजनाओं को प्रभावी बनाने के लिए सामुदायिक विकास कार्यक्रम (Community Development Programme – 1952) और राष्ट्रीय विस्तार सेवा (National Extension Service – 1953) लागू की गई, लेकिन इनके अपेक्षित परिणाम नहीं मिले।
इसी पृष्ठभूमि में 1957 में बलवंत राय मेहता समिति का गठन किया गया। इसका उद्देश्य था – स्थानीय स्वशासन को मजबूत करने और ग्रामीण विकास में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सुझाव देना


🏛️ समिति का गठन और पृष्ठभूमि

📌 गठन

  • तारीख – जनवरी 1957

  • अध्यक्ष – बलवंत राय मेहता

  • सदस्य – विभिन्न राज्यों के जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारी

📌 उद्देश्य

  1. सामुदायिक विकास और राष्ट्रीय विस्तार सेवा के क्रियान्वयन का मूल्यांकन।

  2. ग्रामीण स्तर पर जनता की भागीदारी के लिए संस्थागत ढाँचे का सुझाव।

  3. योजनाओं को अधिक प्रभावी और स्थायी बनाने के उपाय बताना।


🌟 समिति की प्रमुख सिफारिशें

🛠️ 1. पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना

  • ग्रामीण विकास और स्थानीय प्रशासन के लिए त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली लागू की जाए।

🛠️ 2. त्रिस्तरीय संरचना

  • ग्राम पंचायत (Village Panchayat) – गाँव स्तर

  • पंचायत समिति (Panchayat Samiti) – ब्लॉक/विकासखंड स्तर

  • जिला परिषद (Zila Parishad) – जिला स्तर

🛠️ 3. शक्तियों का विकेंद्रीकरण

  • प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियाँ निचले स्तर तक हस्तांतरित की जाएं।

  • स्थानीय संस्थाओं को निर्णय लेने और योजना लागू करने का अधिकार मिले।

🛠️ 4. योजना निर्माण में जनता की भागीदारी

  • योजनाओं के निर्माण, क्रियान्वयन और मूल्यांकन में जनता की सीधी भागीदारी सुनिश्चित हो।

🛠️ 5. पंचायत समिति को प्रमुख इकाई बनाना

  • पंचायत समिति को विकास कार्यों का प्रमुख केंद्र और योजनाओं के क्रियान्वयन की मुख्य इकाई माना जाए।

🛠️ 6. वित्तीय संसाधन

  • स्थानीय संस्थाओं को पर्याप्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराना।

  • राज्य सरकार से अनुदान और कर लगाने का अधिकार।


📊 त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का विवरण

🏠 ग्राम पंचायत

  • गाँव के सभी वयस्क नागरिक ग्राम सभा के सदस्य।

  • ग्राम पंचायत का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से।

  • स्थानीय आवश्यकताओं जैसे सड़क, पानी, सफाई, शिक्षा आदि की जिम्मेदारी।

🏢 पंचायत समिति

  • ब्लॉक/विकासखंड स्तर पर गठित।

  • सदस्य – ग्राम पंचायतों के मुखिया, विधायक, सांसद के प्रतिनिधि।

  • कृषि, सिंचाई, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार योजनाओं का क्रियान्वयन।

🏛️ जिला परिषद

  • जिला स्तर पर गठित।

  • सदस्य – पंचायत समितियों के प्रमुख, विधायक, सांसद।

  • पूरे जिले की विकास योजनाओं का समन्वय और निगरानी।


🔍 समिति की सिफारिशों का महत्व

✅ लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण

  • सत्ता को गाँव तक पहुँचाना।

  • जनता को निर्णय प्रक्रिया में शामिल करना।

✅ विकास योजनाओं की सफलता

  • स्थानीय समस्याओं की बेहतर समझ और त्वरित समाधान।

✅ प्रशासनिक दक्षता

  • निचले स्तर पर त्वरित निर्णय और जिम्मेदारी तय।


⚠️ समिति की सिफारिशों की सीमाएँ

❌ वित्तीय निर्भरता

  • पंचायतें राज्य सरकार पर आर्थिक रूप से निर्भर।

❌ प्रशिक्षण की कमी

  • निर्वाचित प्रतिनिधियों को प्रशासनिक और तकनीकी प्रशिक्षण की आवश्यकता।

❌ राजनीतिक हस्तक्षेप

  • विकास योजनाओं में राजनीति का प्रभाव।


📈 समिति की सिफारिशों का प्रभाव

  • 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में प्रथम पंचायती राज प्रणाली का उद्घाटन।

  • उसके बाद आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में भी लागू।

  • अंततः 73वें संविधान संशोधन (1992) के माध्यम से पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा मिला।


📝 उपसंहार

बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशें भारत में ग्राम स्वराज की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम थीं। इनसे त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की नींव पड़ी, जिसने ग्रामीण विकास, लोकतांत्रिक भागीदारी और प्रशासनिक विकेंद्रीकरण को मजबूती दी। आज भी पंचायतें ग्रामीण भारत की लोकतांत्रिक आत्मा मानी जाती हैं, और इसका श्रेय इस समिति की दूरदर्शी सिफारिशों को जाता है।




प्रश्न 05 स्थानीय शासन में आरक्षण व्यवस्था की विवेचना कीजिए।

📜 प्रस्तावना

भारतीय लोकतंत्र की मूल भावना है समानता और सामाजिक न्याय। लेकिन ऐतिहासिक रूप से वंचित वर्गों — जैसे अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और महिलाएँ — को राजनीतिक एवं प्रशासनिक निर्णयों में पर्याप्त भागीदारी नहीं मिली।
इस असमानता को दूर करने और सत्ता के विकेंद्रीकरण को सार्थक बनाने के लिए, 73वां एवं 74वां संविधान संशोधन (1992) के तहत स्थानीय शासन संस्थाओं में आरक्षण का प्रावधान किया गया।


🏛️ संवैधानिक आधार

📌 73वां संशोधन (ग्राम पंचायत से संबंधित)

  • अनुच्छेद 243D: पंचायतों में SC, ST और महिलाओं के लिए आरक्षण।

📌 74वां संशोधन (नगर निकायों से संबंधित)

  • अनुच्छेद 243T: नगर निगम, नगरपालिका और नगर पंचायतों में आरक्षण।


🌟 आरक्षण के मुख्य उद्देश्य

🎯 सामाजिक न्याय

  • ऐतिहासिक रूप से वंचित वर्गों को समान अवसर देना।

🎯 राजनीतिक सशक्तिकरण

  • निर्णय-निर्माण में हाशिए पर रहे समुदायों की भागीदारी बढ़ाना।

🎯 महिला सशक्तिकरण

  • स्थानीय शासन में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना।


🛠️ आरक्षण की प्रमुख विशेषताएँ

🏠 1. अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षण

  • जनसंख्या के अनुपात में सीटों का आरक्षण।

  • ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद सभी स्तरों पर लागू।

🏠 2. महिलाओं के लिए आरक्षण

  • कम से कम एक-तिहाई (33%) सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित।

  • इसमें SC/ST महिलाओं के लिए उप-आरक्षण भी शामिल।

  • कई राज्यों में यह सीमा बढ़ाकर 50% कर दी गई (जैसे बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान)।

🏠 3. पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण

  • राज्यों के विवेक पर, कई राज्यों ने अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) के लिए भी आरक्षण लागू किया।

🏠 4. पदों पर आरक्षण

  • केवल सदस्यता ही नहीं, बल्कि अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पदों पर भी आरक्षण।

  • पंचायतों और नगर निकायों के शीर्ष पदों पर वंचित वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित।


📊 आरक्षण व्यवस्था का क्रियान्वयन

🗳️ चुनाव में आरक्षण

  • चुनाव आयोग/राज्य चुनाव आयोग द्वारा सीटों का आरक्षण रोटेशन आधार पर किया जाता है।

  • हर चुनाव में अलग-अलग वार्ड/क्षेत्र आरक्षित होते हैं, ताकि सभी को अवसर मिले।

📜 कार्यकाल

  • आरक्षित सीटों का आरक्षण एक कार्यकाल (आमतौर पर 5 वर्ष) तक होता है, उसके बाद अगले चुनाव में पुन: निर्धारण।


🔍 आरक्षण व्यवस्था का प्रभाव

✅ सकारात्मक प्रभाव

  • राजनीतिक भागीदारी में वृद्धि – ग्रामीण और शहरी निकायों में SC, ST, OBC और महिलाओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि।

  • महिला नेतृत्व का विकास – हजारों महिलाएँ पहली बार स्थानीय शासन में शामिल हुईं।

  • सामाजिक बदलाव – पिछड़े और वंचित वर्गों के मुद्दों को मंच मिला।

  • नीति-निर्माण में विविधता – अलग-अलग पृष्ठभूमि के प्रतिनिधि निर्णय प्रक्रिया का हिस्सा बने।

⚠️ चुनौतियाँ

  • प्रॉक्सी प्रतिनिधित्व – कई बार महिलाएँ केवल नाममात्र की प्रमुख, वास्तविक नियंत्रण पुरुषों के पास।

  • प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण की कमी – निर्वाचित प्रतिनिधियों में प्रशासनिक दक्षता का अभाव।

  • जातीय और राजनीतिक ध्रुवीकरण – आरक्षण का गलत इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए।

  • संसाधनों की कमी – आरक्षित पदधारियों के पास पर्याप्त वित्तीय व प्रशासनिक अधिकार नहीं।


🏛️ आरक्षण और महिला सशक्तिकरण

📌 सामाजिक बदलाव के संकेत

  • महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ा।

  • शिक्षा, स्वास्थ्य, जल-संसाधन और स्वच्छता जैसे मुद्दों पर प्राथमिकता बढ़ी।

📌 दीर्घकालिक लाभ

  • अगली पीढ़ी में राजनीतिक नेतृत्व के प्रति रुझान।

  • परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार।


📈 सुधार के उपाय

🛠️ क्षमता निर्माण कार्यक्रम

  • निर्वाचित प्रतिनिधियों को प्रशासनिक और तकनीकी प्रशिक्षण।

🛠️ प्रॉक्सी सिस्टम पर रोक

  • कड़े कानून और निगरानी व्यवस्था।

🛠️ वित्तीय सशक्तिकरण

  • आरक्षित प्रतिनिधियों को पर्याप्त वित्तीय संसाधन और अधिकार देना।

🛠️ आरक्षण की समय-सीमा

  • समय-समय पर मूल्यांकन कर आरक्षण नीति में आवश्यक सुधार।


📝 उपसंहार

स्थानीय शासन में आरक्षण व्यवस्था ने भारतीय लोकतंत्र में सामाजिक न्याय, समान अवसर और जनभागीदारी को नई दिशा दी है।
इसने हाशिए पर रहे समुदायों को सत्ता के केंद्र में लाकर, विकास योजनाओं और निर्णय-निर्माण में उनकी भूमिका को मजबूत किया।
हालाँकि चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं, लेकिन यह व्यवस्था लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की एक अनिवार्य कड़ी बन चुकी है, जो भविष्य में और अधिक समावेशी और सशक्त हो सकती है।





प्रश्न 06 नगर पंचायत पर टिप्पणी कीजिए।

📜 प्रस्तावना

भारत में शहरी स्थानीय शासन (Urban Local Government) को 74वें संविधान संशोधन (1992) के तहत संवैधानिक दर्जा मिला।
इस संशोधन में शहरी क्षेत्रों के लिए तीन प्रकार की स्थानीय निकायों का प्रावधान है:

  1. नगर निगम (Municipal Corporation) – बड़े शहरों के लिए

  2. नगर परिषद/नगर पालिका (Municipal Council) – मध्यम आकार के शहरों के लिए

  3. नगर पंचायत (Nagar Panchayat) – छोटे और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों के लिए

नगर पंचायत विशेष रूप से गाँव से शहर में परिवर्तित होते क्षेत्रों के लिए बनाई जाती है, ताकि इन क्षेत्रों का सुव्यवस्थित और योजनाबद्ध विकास हो सके।


🏛️ संवैधानिक और कानूनी आधार

📌 74वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1992

  • अनुच्छेद 243Q के तहत नगर पंचायत का गठन।

  • उद्देश्य – ग्रामीण से शहरी रूपांतरण के दौरान प्रशासनिक व्यवस्था उपलब्ध कराना।

📌 राज्य नगर पालिका अधिनियम

  • प्रत्येक राज्य का अपना कानून, जिसमें नगर पंचायत की संरचना, अधिकार और कार्य निर्धारित होते हैं।


🏠 नगर पंचायत की परिभाषा और स्थिति

📌 परिभाषा

नगर पंचायत वह शहरी स्थानीय निकाय है जो ऐसे क्षेत्रों में गठित होता है:

  • जहाँ जनसंख्या ग्रामीण और शहरी के बीच की स्थिति में हो।

  • जो ग्रामीण क्षेत्र से शहरी क्षेत्र की ओर संक्रमण कर रहे हों।

📌 जनसंख्या मानदंड

  • अलग-अलग राज्यों में अलग मानदंड, परंतु सामान्यत: 10,000 से 25,000 के बीच जनसंख्या वाले क्षेत्रों के लिए।


🌟 नगर पंचायत के प्रमुख उद्देश्य

🏗️ 1. संक्रमणकालीन क्षेत्रों का विकास

  • ग्रामीण से शहरी स्वरूप में बदलते क्षेत्रों का योजनाबद्ध विकास।

🛠️ 2. बुनियादी सुविधाओं का प्रावधान

  • जलापूर्ति, सड़क, नाली, स्ट्रीट लाइट, कचरा प्रबंधन आदि।

🌿 3. स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण

  • साफ-सफाई, हरियाली और प्रदूषण नियंत्रण।

📊 4. स्थानीय प्रशासनिक दक्षता

  • जनता की समस्याओं का त्वरित समाधान और स्थानीय स्तर पर निर्णय।


📋 नगर पंचायत की संरचना

👥 1. अध्यक्ष (Chairperson)

  • जनता द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव या राज्य कानून के अनुसार अप्रत्यक्ष चुनाव।

  • नगर पंचायत का प्रमुख और प्रतिनिधि।

👥 2. सदस्य (Ward Members)

  • क्षेत्र को वार्डों में विभाजित कर प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा सदस्य चुने जाते हैं।

👥 3. कार्यकारी अधिकारी (Executive Officer)

  • राज्य सरकार द्वारा नियुक्त।

  • प्रशासनिक और वित्तीय कार्यों का संचालन।

👥 4. स्थायी समितियाँ (Standing Committees)

  • स्वास्थ्य, शिक्षा, निर्माण कार्य, वित्त आदि के लिए अलग समितियाँ।


🛠️ नगर पंचायत के प्रमुख कार्य

🧹 1. स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवाएँ

  • कचरा संग्रह, सीवरेज सिस्टम, सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों का संचालन।

🚰 2. जल आपूर्ति

  • पीने के पानी की व्यवस्था और वितरण।

🏗️ 3. सड़क और यातायात व्यवस्था

  • सड़क निर्माण, रखरखाव, स्ट्रीट लाइट, यातायात प्रबंधन।

🌳 4. उद्यान और मनोरंजन सुविधाएँ

  • पार्क, खेल के मैदान और सांस्कृतिक स्थलों का विकास।

📚 5. शिक्षा और सामुदायिक विकास

  • प्राथमिक विद्यालय, पुस्तकालय और सामुदायिक केंद्र।


📊 वित्तीय संसाधन

💰 1. कर और शुल्क

  • संपत्ति कर, जल कर, व्यवसाय कर, बाज़ार शुल्क।

💰 2. अनुदान

  • राज्य और केंद्र सरकार से वित्तीय सहायता।

💰 3. ऋण और परियोजना निधि

  • विकास योजनाओं के लिए ऋण या विशेष परियोजना निधि।


🔍 नगर पंचायत की विशेषताएँ

✅ स्थानीय भागीदारी

  • जनता का प्रत्यक्ष जुड़ाव और सहभागिता।

✅ लचीलापन

  • छोटे क्षेत्रों में योजनाओं को तेजी से लागू करने की क्षमता।

✅ विकास और स्वच्छता पर फोकस

  • बुनियादी ढाँचे के निर्माण और रखरखाव पर विशेष ध्यान।


⚠️ नगर पंचायत की चुनौतियाँ

❌ वित्तीय कमी

  • संसाधनों का अभाव, जिससे विकास कार्य बाधित होते हैं।

❌ तकनीकी विशेषज्ञता की कमी

  • योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए प्रशिक्षित स्टाफ का अभाव।

❌ शहरीकरण का दबाव

  • तेजी से बढ़ती आबादी और अनियोजित निर्माण।

❌ पारदर्शिता और जवाबदेही

  • भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी।


📈 सुधार के उपाय

🛠️ वित्तीय सशक्तिकरण

  • नगर पंचायत को स्वतंत्र राजस्व स्रोत और कर लगाने का अधिकार।

🛠️ क्षमता निर्माण

  • कर्मचारियों और निर्वाचित प्रतिनिधियों का प्रशिक्षण।

🛠️ स्मार्ट मैनेजमेंट

  • ई-गवर्नेंस और डिजिटल सेवाओं का उपयोग।

🛠️ सामुदायिक भागीदारी

  • जनता को निर्णय-निर्माण और निगरानी में शामिल करना।


📝 उपसंहार

नगर पंचायत भारतीय शहरी स्थानीय शासन का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो छोटे और संक्रमणकालीन शहरी क्षेत्रों के विकास में केंद्रीय भूमिका निभाती है।
यह संस्था स्थानीय जनता के निकट रहते हुए उनकी जरूरतों को समझती है और उनकी समस्याओं का समाधान करती है।
हालाँकि चुनौतियाँ मौजूद हैं, परंतु उचित संसाधन, प्रशिक्षण और पारदर्शिता के साथ नगर पंचायतें छोटे शहरों को बेहतर जीवन-स्तर और सुव्यवस्थित विकास की ओर अग्रसर कर सकती हैं।




प्रश्न 07 ब्रिटिश काल के दौरान केन्द्रीय सचिवालय के विकास पर टिप्पणी कीजिए।

📜 प्रस्तावना

भारत में केन्द्रीय सचिवालय (Central Secretariat) का इतिहास औपनिवेशिक शासन से गहराई से जुड़ा हुआ है।
ब्रिटिश शासन ने भारत में प्रशासन को केंद्रीकृत और व्यवस्थित करने के लिए एक स्थायी, पेशेवर और पदानुक्रमित सचिवालय प्रणाली विकसित की।
इस प्रणाली का मूल उद्देश्य था –

  • ब्रिटिश हितों की रक्षा

  • औपनिवेशिक नीतियों का क्रियान्वयन

  • प्रशासनिक नियंत्रण और रिपोर्टिंग की सुविधा


🏛️ प्रारंभिक दौर – 1773 से 1858 तक

📌 1773 – रेगुलेटिंग एक्ट

  • गवर्नर-जनरल और उनके परिषद के तहत कार्य।

  • सचिवालय का ढांचा छोटा और सीमित कार्यक्षेत्र वाला था।

📌 1784 – पिट्स इंडिया एक्ट

  • गवर्नर-जनरल को मजबूत प्रशासनिक ढांचा दिया गया।

  • सैन्य और सिविल प्रशासन को अलग-अलग विभागों में संगठित करने की शुरुआत।

📌 चार्टर्ड एक्ट्स (1793, 1813, 1833, 1853)

  • क्रमशः विभागीय विभाजन और अधिकारियों की जिम्मेदारियों में स्पष्टता आई।

  • 1833 के बाद सेंट्रलाइज्ड पॉलिसी फ्रेमवर्क की नींव पड़ी।


🏢 1858 के बाद – क्राउन के अधीन सचिवालय का पुनर्गठन

📌 1858 – भारत शासन अधिनियम

  • ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त, भारत सीधे ब्रिटिश क्राउन के अधीन आया।

  • लंदन में सेक्रेटरी ऑफ स्टेट फॉर इंडिया का पद स्थापित।

  • भारत में गवर्नर-जनरल (बाद में वायसराय) के अधीन केंद्रीय सचिवालय का विस्तार।

📌 विभागीय संरचना

  • विदेश, गृह, वित्त, सैन्य आदि विभाग बनाए गए।

  • प्रत्येक विभाग का नेतृत्व एक सदस्य, गवर्नर-जनरल की परिषद करता था।


📋 1860–1905 : पेशेवर प्रशासनिक ढांचा

🏗️ विभागों का स्थायीकरण

  • रेलवे, सिंचाई, पोस्ट और टेलीग्राफ जैसे तकनीकी विभाग जोड़े गए।

👨‍💼 भारतीय सिविल सेवा (ICS) की भूमिका

  • शीर्ष प्रशासनिक पद ब्रिटिश अधिकारियों के नियंत्रण में।

  • सचिवालय में नीति निर्माण, रिपोर्ट तैयार करना, और नियम-कानून बनाना प्रमुख कार्य।


🏙️ 1905–1919 : विभाजन और सुधार

📌 1905 – बंगाल विभाजन और विभागीय पुनर्गठन

  • आंतरिक सुरक्षा, राजनीतिक निगरानी, और संचार व्यवस्था पर जोर।

📌 1919 – मोंटैग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार

  • भारत शासन अधिनियम, 1919 के तहत

    • सचिवालय के कुछ कार्य प्रांतीय सरकारों को हस्तांतरित (Dyarchy प्रणाली)।

    • केंद्रीय स्तर पर रक्षा, विदेश, रेलवे, और राजस्व विभाग रखे गए।


🏛️ 1919–1947 : आधुनिक सचिवालय का स्वरूप

📌 विभागीय विस्तार

  • वाणिज्य, श्रम, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे विभाग।

📌 भारतीयों की भागीदारी

  • सायमन कमीशन और गोलमेज सम्मेलनों के बाद, सचिवालय में उच्च पदों पर भारतीयों की सीमित नियुक्ति।

📌 1935 – भारत शासन अधिनियम

  • संघीय ढांचा का प्रावधान, यद्यपि पूर्ण रूप से लागू नहीं हुआ।

  • केंद्रीय सचिवालय को संघीय विषयों पर अधिकार मिला।

📌 द्वितीय विश्वयुद्ध का प्रभाव

  • रक्षा और आपूर्ति विभाग का तीव्र विस्तार।

  • प्रशासनिक दक्षता के लिए फाइल प्रणाली और रिकॉर्ड प्रबंधन पर जोर।


🌟 ब्रिटिश कालीन सचिवालय की मुख्य विशेषताएँ

🏛️ 1. केंद्रीकृत नियंत्रण

  • शीर्ष निर्णय लेने का अधिकार गवर्नर-जनरल/वायसराय और ब्रिटिश मंत्रियों के पास।

🏛️ 2. विभागीय संगठन

  • स्पष्ट विभागीय विभाजन – विदेश, गृह, वित्त, रक्षा, रेलवे, संचार आदि।

🏛️ 3. नौकरशाही पर आधारित

  • भारतीय सिविल सेवा (ICS) में मुख्य रूप से ब्रिटिश अधिकारी, भारतीयों की सीमित उपस्थिति।

🏛️ 4. गुप्त कार्यशैली

  • निर्णय लेने की प्रक्रिया गोपनीय, जनता की भागीदारी न्यूनतम।

🏛️ 5. नीति-निर्माण केंद्र

  • औपनिवेशिक नीतियों को तैयार करना और लागू करना।


⚠️ सीमाएँ और आलोचनाएँ

❌ जनहित से दूरी

  • मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के हितों की पूर्ति, न कि भारतीय जनता का कल्याण।

❌ भारतीय प्रतिनिधित्व की कमी

  • उच्च प्रशासनिक पदों पर भारतीयों की न्यूनतम भागीदारी।

❌ अत्यधिक केंद्रीकरण

  • प्रांतीय स्वायत्तता सीमित, सभी प्रमुख निर्णय केंद्र से नियंत्रित।

❌ पारदर्शिता का अभाव

  • जनता या प्रेस को नीति निर्माण प्रक्रिया में शामिल नहीं किया जाता था।


📈 स्वतंत्र भारत पर प्रभाव

✅ सकारात्मक योगदान

  • विभागीय संरचना, फाइल प्रणाली, और स्थायी नौकरशाही की परंपरा।

  • नीति-निर्माण और समन्वय के लिए सचिवालय का ढांचा।

⚠️ नकारात्मक विरासत

  • केंद्रीकरण, औपचारिकता, और जनसंपर्क में दूरी की प्रवृत्ति।


📝 उपसंहार

ब्रिटिश कालीन केन्द्रीय सचिवालय का विकास भारतीय प्रशासन के संरचनात्मक ढांचे के निर्माण में मील का पत्थर रहा।
हालाँकि यह व्यवस्था औपनिवेशिक हितों के लिए बनी थी, लेकिन स्वतंत्र भारत ने इसी ढांचे को अपनाकर लोकतांत्रिक और विकासोन्मुख प्रशासन की दिशा में रूपांतरित किया।
इस प्रकार, ब्रिटिश कालीन सचिवालय एक औपनिवेशिक नियंत्रण का उपकरण होने के बावजूद आधुनिक भारतीय प्रशासन का आधारस्तंभ सिद्ध हुआ।




प्रश्न 08.  74वें संविधान संशोधन के द्वारा नगरीय शासन में हुए परिवर्तन पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।

📜 प्रस्तावना

भारत में नगरीय शासन का महत्व तेजी से बढ़ते शहरीकरण और नगरों की बढ़ती जनसंख्या के कारण बहुत अधिक हो गया है।
स्वतंत्रता के बाद लंबे समय तक नगरपालिकाओं का संचालन राज्य कानूनों के अधीन होता था, जिसके कारण उनके अधिकार, कार्य और संरचना राज्यों के अनुसार भिन्न-भिन्न थे।
शहरी प्रशासन को एक समान संवैधानिक ढांचा प्रदान करने के लिए 74वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 लागू किया गया, जो 1 जून 1993 से प्रभावी हुआ।


🏛️ 74वें संविधान संशोधन की पृष्ठभूमि

📌 पूर्व स्थिति

  • नगरपालिकाओं को राज्य सरकार की मर्जी के अनुसार अधिकार प्राप्त थे।

  • वित्तीय संसाधनों और प्रशासनिक स्वायत्तता का अभाव।

  • शहरी विकास योजनाओं में जनता की भागीदारी सीमित।

📌 बदलाव की आवश्यकता

  • तीव्र शहरीकरण और बुनियादी सेवाओं की बढ़ती मांग।

  • स्थानीय स्तर पर लोकतांत्रिक शासन की मजबूती।

  • एकीकृत एवं समान कानूनी ढांचा।


🌟 74वें संविधान संशोधन के मुख्य प्रावधान

🛠️ 1. नगरपालिकाओं का संवैधानिक दर्जा

  • अनुच्छेद 243P से 243ZG जोड़े गए।

  • नगरपालिकाओं को तीसरे स्तर की सरकार के रूप में मान्यता।

🛠️ 2. नगरपालिकाओं के प्रकार

  • नगर पंचायत (Nagar Panchayat) – संक्रमण क्षेत्र के लिए (गांव से नगर बनने की प्रक्रिया में)।

  • नगर परिषद (Municipal Council) – मध्यम आकार के नगरों के लिए।

  • नगर निगम (Municipal Corporation) – बड़े नगरों के लिए।

🛠️ 3. संरचना और निर्वाचन

  • प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा पार्षदों का चयन।

  • सीटों का आरक्षण – अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और महिलाओं के लिए (कम से कम 33%)।

🛠️ 4. कार्यकाल

  • नगरपालिका का कार्यकाल 5 वर्ष

  • समय से पहले भंग होने पर 6 माह में पुनः चुनाव

🛠️ 5. नगर नियोजन एवं विकास

  • 18 विषयों की सूची (बारहवीं अनुसूची) – जल आपूर्ति, स्वच्छता, शहरी नियोजन, सड़कों का निर्माण, पर्यावरण संरक्षण, आदि।

🛠️ 6. वित्तीय प्रावधान

  • राज्य वित्त आयोग – प्रत्येक 5 वर्ष में गठित, जो नगरपालिकाओं के वित्तीय संसाधनों की समीक्षा करे।

🛠️ 7. जिला योजना समिति और महानगर योजना समिति

  • जिला एवं महानगर स्तर पर विकास योजनाओं का समन्वय।


📋 नगरीय शासन में हुए प्रमुख परिवर्तन

🏗️ 1. संवैधानिक मान्यता

  • पहले केवल राज्य कानूनों पर आधारित संस्थाएं अब संविधान द्वारा संरक्षित।

🏗️ 2. लोकतांत्रिक सुदृढ़ीकरण

  • नियमित और अनिवार्य चुनाव, जिससे स्थानीय लोकतंत्र मजबूत हुआ।

🏗️ 3. आरक्षण व्यवस्था

  • वंचित वर्गों और महिलाओं की सहभागिता में वृद्धि।

🏗️ 4. प्रशासनिक विकेंद्रीकरण

  • अधिक विषय और अधिकार नगरपालिकाओं को सौंपे गए।

🏗️ 5. वित्तीय सशक्तिकरण

  • राज्य वित्त आयोग और केंद्र/राज्य से अनुदान।


⚠️ 74वें संशोधन की सीमाएँ

❌ वित्तीय निर्भरता

  • नगरपालिकाओं के पास अपने संसाधनों से पर्याप्त आय नहीं।

❌ क्षमता की कमी

  • तकनीकी और प्रशासनिक स्टाफ का अभाव।

❌ राज्य सरकार का नियंत्रण

  • नगरपालिकाओं की स्वायत्तता पर अब भी सीमाएं।


📈 प्रभाव और महत्व

✅ शहरी लोकतंत्र का विस्तार

  • नागरिकों को निर्णय प्रक्रिया में शामिल किया गया।

✅ समान कानूनी ढांचा

  • पूरे देश में नगरपालिकाओं के लिए एक समान प्रावधान।

✅ महिला सशक्तिकरण

  • 33% आरक्षण से महिलाओं की नेतृत्व में भागीदारी बढ़ी।


📝 उपसंहार

74वां संविधान संशोधन भारत में नगरीय शासन के लिए एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है।
इसने नगरपालिकाओं को संवैधानिक दर्जा देकर उन्हें लोकतांत्रिक, विकेंद्रीकृत और जनसहभागी बनाया।
हालाँकि वित्तीय और प्रशासनिक सीमाएँ अब भी मौजूद हैं, फिर भी यह संशोधन शहरी भारत के सतत विकास और सुशासन की दिशा में एक ठोस कदम साबित हुआ है।



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