प्रश्न 01 🌍 एक पतले गोलीय कोश के कारण (अ) आंतरिक एवं (ब) बाह्य बिन्दु पर गुरुत्वीय क्षेत्र का व्यंजक निकालिए
📖 परिचय
गुरुत्वीय क्षेत्र (Gravitational Field) भौतिकी का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है, जो किसी द्रव्यमान के प्रभाव में उत्पन्न बल क्षेत्र को दर्शाता है।
पतला गोलीय कोश (Thin Spherical Shell) एक आदर्श भौतिक मॉडल है, जिसमें द्रव्यमान को एक पतली गोलाकार सतह पर समान रूप से वितरित माना जाता है।
न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के अनुसार, इसका क्षेत्र व्यवहार आंतरिक और बाह्य बिंदुओं पर भिन्न होता है।
📌 पतला गोलीय कोश – परिभाषा एवं गुण
🌀 परिभाषा
एक ऐसा गोलाकार सतह, जिसकी मोटाई नगण्य हो और द्रव्यमान सतह पर समान रूप से फैला हो, पतला गोलीय कोश कहलाता है।
✨ मुख्य गुण
-
समान द्रव्यमान वितरण सतह पर
-
आंतरिक बिंदुओं पर गुरुत्वीय क्षेत्र शून्य
-
बाहरी बिंदुओं पर ऐसा व्यवहार जैसे सारा द्रव्यमान केंद्र पर केंद्रित हो
⚙️ न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम
📜 कथन
दो बिंदु द्रव्यमान m1 और m2 के बीच गुरुत्वाकर्षण बल:
F=r2Gm1m2जहाँ:
-
G = सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक
-
r = द्रव्यमानों के बीच की दूरी
🔄 गुरुत्वीय क्षेत्र की परिभाषा
गुरुत्वीय क्षेत्र तीव्रता E को परिभाषित किया जाता है:
E=mF=r2GM(अ) 🎯 आंतरिक बिंदु पर गुरुत्वीय क्षेत्र
🔍 अवधारणा
पतले गोलीय कोश के अंदर स्थित किसी भी बिंदु पर गुरुत्वीय क्षेत्र शून्य होता है।
📑 कारण
न्यूटन का गोलीय सममिति प्रमेय (Shell Theorem) कहता है कि समान रूप से वितरित पतले गोलीय कोश के अंदर किसी भी बिंदु पर सभी सतही भागों से आने वाले गुरुत्वीय बल एक-दूसरे को निरस्त (Cancel) कर देते हैं।
📐 गणितीय व्युत्पत्ति
1️⃣ व्यवस्था (Setup)
-
त्रिज्या = R
-
कुल द्रव्यमान = M
-
आंतरिक बिंदु P, केंद्र से दूरी = r<R
2️⃣ गुरुत्वीय बलों का संतुलन
कोश की विपरीत सतहों के छोटे-छोटे क्षेत्रफल तत्वों से P पर लगने वाले बल परिमाण में समान लेकिन दिशाओं में विपरीत होते हैं।
3️⃣ परिणाम
सभी बल एक-दूसरे को पूर्णतः निरस्त कर देते हैं:
Einside=0🧾 निष्कर्ष (आंतरिक बिंदु के लिए)
पतले गोलीय कोश के अंदर किसी भी बिंदु पर गुरुत्वीय क्षेत्र शून्य होता है, चाहे बिंदु केंद्र पर हो या सतह के निकट।
(ब) 🌠 बाहरी बिंदु पर गुरुत्वीय क्षेत्र
🔍 अवधारणा
कोश के बाहर के बिंदुओं पर, पूरा द्रव्यमान केंद्र पर केंद्रित मानकर गुरुत्वीय क्षेत्र निकाला जा सकता है।
📐 गणितीय व्युत्पत्ति
1️⃣ व्यवस्था (Setup)
-
त्रिज्या = R
-
कुल द्रव्यमान = M
-
बाहरी बिंदु Q, केंद्र से दूरी = r>R
2️⃣ गुरुत्वीय क्षेत्र का समीकरण
न्यूटन के नियम से:
Eoutside=r2GMजहाँ r बिंदु और केंद्र के बीच की दूरी है।
📊 परिणाम
-
बाहरी बिंदु पर गुरुत्वीय क्षेत्र एक बिंदु द्रव्यमान जैसा व्यवहार करता है।
-
दूरी बढ़ने पर क्षेत्र तीव्रता r21 के अनुपात में घटती है।
🧮 सारणीबद्ध तुलना
स्थिति | दूरी | गुरुत्वीय क्षेत्र E |
---|---|---|
आंतरिक बिंदु | r<R | 0 |
बाहरी बिंदु | r>R | r2GM |
📌 अनुप्रयोग
🌏 ग्रहों और उपग्रहों के अध्ययन में
पृथ्वी को पतले गोलीय कोशों की परतों के रूप में मानकर गुरुत्वाकर्षण का अध्ययन सरल होता है।
🛰 खगोलीय पिंडों की कक्षाओं में
ग्रहों, उपग्रहों, और कृत्रिम उपग्रहों की गति की गणना में यह सिद्धांत प्रयुक्त होता है।
🏗 इंजीनियरिंग डिज़ाइन में
गोलाकार टैंकों, गुंबदों और संरचनाओं में बलों के वितरण को समझने में मदद करता है।
🏁 निष्कर्ष
पतले गोलीय कोश का गुरुत्वीय क्षेत्र एक अत्यंत रोचक परिणाम देता है — अंदर शून्य और बाहर बिंदु द्रव्यमान जैसा व्यवहार।
यह सिद्धांत न केवल खगोल विज्ञान में, बल्कि इंजीनियरिंग और भौतिकी के अनेक क्षेत्रों में अनुप्रयोगी है।
प्रश्न 02 ✏️ निम्न में से किन्हीं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए
(क) 📏 पॉयसन अनुपात (Poisson’s Ratio)
🧾 परिभाषा
जब किसी ठोस वस्तु पर एक दिशा में खिंचाव या दबाव डाला जाता है, तो उस दिशा में वस्तु की लंबाई बदलती है और लम्बवत दिशा में भी थोड़ी-बहुत संकुचन या प्रसार होता है।
इस लम्बवत विकृति और अक्षीय विकृति के अनुपात को पॉयसन अनुपात कहते हैं।
📐 गणितीय रूप
यदि
μ=−अक्षीय विकृतिलम्बवत विकृतितो μ = पॉयसन अनुपात।
🔍 मान
-
अधिकांश धातुओं के लिए μ का मान 0.25 से 0.35 के बीच होता है।
-
आदर्श ठोस में μ अधिकतम 0.5 हो सकता है।
🛠 अनुप्रयोग
-
इंजीनियरिंग डिज़ाइन
-
स्ट्रक्चरल विश्लेषण
-
सामग्री विज्ञान में गुण निर्धारण
(ख) 🌊 अनुदैर्ध्य तरंगे (Longitudinal Waves)
🧾 परिभाषा
वे तरंगे जिनमें कणों का दोलन तरंग के प्रसार की दिशा में होता है, अनुदैर्ध्य तरंगे कहलाती हैं।
📌 उदाहरण
-
ध्वनि तरंगें (हवा, तरल या ठोस में)
-
भूकंपीय P-तरंगें
⚙️ विशेषताएँ
-
संपीड़न और विरलन की अवस्थाएँ उत्पन्न होती हैं।
-
तरंग का वेग माध्यम के घनत्व और प्रत्यास्थता पर निर्भर करता है।
🛠 अनुप्रयोग
-
सोनार तकनीक
-
अल्ट्रासाउंड इमेजिंग
-
भूकंपीय सर्वेक्षण
(ग) 🔥 तापीय चालकता गुणांक (Thermal Conductivity)
🧾 परिभाषा
किसी पदार्थ की ऊष्मा को संचरित करने की क्षमता को तापीय चालकता गुणांक K से मापा जाता है।
📐 गणितीय व्यंजक
फ़ूरियर का ऊष्मा संचरण नियम:
Q=−KAdxdTजहाँ:
-
Q = ऊष्मा प्रवाह दर
-
A = अनुप्रस्थ क्षेत्रफल
-
dxdT = तापमान प्रवणता
📊 मान
-
धातुओं में K का मान अधिक होता है (जैसे तांबा, चांदी)।
-
गैसों और तरल में कम।
🛠 अनुप्रयोग
-
हीट सिंक डिज़ाइन
-
भवनों में थर्मल इन्सुलेशन
-
ऊर्जा दक्षता विश्लेषण
(घ) 🌑 कृष्णिका विकिरण (Black Body Radiation)
🧾 परिभाषा
ऐसा आदर्श पिंड जो उस पर गिरने वाले सभी विकिरण को अवशोषित कर ले और हर तापमान पर अधिकतम विकिरण उत्सर्जित करे, कृष्णिका कहलाता है।
📜 प्लांक का नियम
कृष्णिका विकिरण का स्पेक्ट्रम तापमान और तरंगदैर्ध्य पर निर्भर करता है:
E(λ,T)=λ52hc2eλkThc−11🔍 महत्त्व
-
क्वांटम यांत्रिकी की नींव रखी
-
तापीय विकिरण के अध्ययन में मानक
🛠 अनुप्रयोग
-
खगोल विज्ञान (तारों के तापमान का निर्धारण)
-
थर्मल कैमरा
-
भौतिकी अनुसंधान
(ङ) ⚡ एम्पीयर का परिपथीय नियम (Ampere’s Circuital Law)
🧾 परिभाषा
एम्पीयर का परिपथीय नियम कहता है कि किसी बंद पथ के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र का रेखा समाकलन, उस पथ से गुजरने वाली कुल धारा के अनुपाती होता है।
📐 गणितीय रूप
∮B⋅dl=μ0Ienclosedजहाँ:
-
B = चुंबकीय क्षेत्र
-
Ienclosed = पथ से गुजरने वाली धारा
-
μ0 = मुक्त स्थान की पारगम्यता
📌 महत्त्व
-
चुंबकीय क्षेत्र की गणना में सहायक
-
विद्युतचुंबकीय सिद्धांत की आधारशिला
🛠 अनुप्रयोग
-
सोलेनॉइड और टोरॉइड के चुंबकीय क्षेत्र निर्धारण
-
विद्युतचुंबकीय उपकरणों का डिज़ाइन
📊 सारांश तालिका
विषय | परिभाषा | मुख्य अनुप्रयोग |
---|---|---|
पॉयसन अनुपात | लम्बवत और अक्षीय विकृति का अनुपात | सामग्री विज्ञान |
अनुदैर्ध्य तरंगे | कणों का दोलन प्रसार दिशा में | ध्वनि, भूकंप अध्ययन |
तापीय चालकता गुणांक | ऊष्मा संचरण की क्षमता | हीट सिंक, इन्सुलेशन |
कृष्णिका विकिरण | अधिकतम विकिरण उत्सर्जक पिंड | खगोल विज्ञान |
एम्पीयर का नियम | चुंबकीय क्षेत्र और धारा संबंध | विद्युतचुंबकीय डिज़ाइन |
प्रश्न 03 ⏳ अवमंदित आवर्ती दोलनों के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए तथा इसके लिए अवकल समीकरण ज्ञात कीजिए। इसकी गुणता कारक को परिभाषित कीजिए।
📖 परिचय
अवमंदित आवर्ती दोलन (Damped Harmonic Oscillation) ऐसे दोलन होते हैं जिनमें समय के साथ दोलन की आयाम (Amplitude) धीरे-धीरे घटती जाती है।
यह कमी बाहरी अवमंदन बल (जैसे घर्षण, वायु प्रतिरोध, विद्युत प्रतिरोध आदि) के कारण होती है।
वास्तविक जीवन में पूरी तरह मुक्त दोलन (Free Oscillation) लगभग असंभव हैं, क्योंकि हमेशा कुछ न कुछ ऊर्जा क्षय होती है।
🎯 परिभाषा
अवमंदित आवर्ती दोलन वह दोलन है जिसमें बाहरी अवमंदन बल के कारण प्रणाली की कुल ऊर्जा समय के साथ घटती है और आयाम धीरे-धीरे कम हो जाता है।
⚙️ अवमंदन के स्रोत
🌀 यांत्रिक अवमंदन
घर्षण बल, वायु प्रतिरोध
⚡ विद्युत अवमंदन
रेज़िस्टेंस के कारण विद्युत परिपथ में ऊर्जा ह्रास
🌊 द्रव प्रतिरोध
द्रव में गति करने वाली वस्तु पर चिपचिपाहट (Viscosity)
📌 अवमंदित दोलन का सिद्धान्त
1️⃣ बलों का विश्लेषण
मान लें:
-
द्रव्यमान m
-
स्प्रिंग स्थिरांक k
-
वेग के अनुपाती अवमंदन बल −bdtdx
तब न्यूटन के दूसरे नियम के अनुसार:
mdt2d2x=−kx−bdtdx2️⃣ अवकल समीकरण
ऊपर के समीकरण को पुनर्लेखन करने पर:
mdt2d2x+bdtdx+kx=0यह अवमंदित आवर्ती दोलन का मानक अवकल समीकरण है।
🧮 हल (Solution)
📐 मानकीकरण
dt2d2x+2βdtdx+ω02x=0जहाँ:
-
β=2mb (अवमंदन स्थिरांक)
-
ω0=mk (प्राकृतिक कोणीय आवृत्ति)
📊 हल के प्रकार
1️⃣ अल्प अवमंदन (Underdamped) (β<ω0)
दोलन जारी रहते हैं लेकिन आयाम घटता है:
x(t)=Ae−βtcos(ωt+ϕ)जहाँ
ω=ω02−β2
2️⃣ क्रांतिक अवमंदन (Critically Damped) (β=ω0)
सबसे तेज़ी से संतुलन में आना, बिना दोलन के।
3️⃣ अतिअवमंदन (Overdamped) (β>ω0)
धीरे-धीरे संतुलन में आना, बिना दोलन के।
📉 आयाम का ह्रास
अल्प अवमंदन में आयाम का समय के साथ परिवर्तन:
A(t)=A0e−βtयह दर्शाता है कि समय बढ़ने पर आयाम घातांकीय रूप से घटता है।
🏷 गुणता कारक (Quality Factor)
🧾 परिभाषा
गुणता कारक Q किसी दोलन प्रणाली में ऊर्जा संग्रहण और ऊर्जा क्षय के अनुपात का माप है। यह दर्शाता है कि प्रणाली कितनी ‘गुणवत्ता’ के साथ दोलन कर रही है।
📐 समीकरण
Q=2π×प्रति चक्र ऊर्जा ह्रासकुल संग्रहित ऊर्जाया,
अल्प अवमंदित स्थिति में:
📊 महत्त्व
-
उच्च Q ⇒ धीमा ऊर्जा ह्रास ⇒ अधिक समय तक दोलन
-
निम्न Q ⇒ तेज ऊर्जा ह्रास ⇒ शीघ्र समाप्त दोलन
📌 अनुप्रयोग
🎵 वाद्य यंत्रों में
अच्छी ध्वनि गुणवत्ता के लिए उचित Q आवश्यक
📡 रेडियो और टीवी सर्किट में
फ्रीक्वेंसी चयन और ट्यूनिंग
🧪 वैज्ञानिक उपकरणों में
दोलन आधारित मापन प्रणालियाँ
📊 सारांश तालिका
स्थिति | β और ω0 का संबंध | व्यवहार |
---|---|---|
अल्प अवमंदन | β<ω0 | धीरे-धीरे घटते हुए दोलन |
क्रांतिक अवमंदन | β=ω0 | सबसे तेज़ बिना दोलन के संतुलन |
अतिअवमंदन | β>ω0 | धीमा संतुलन, कोई दोलन नहीं |
🏁 निष्कर्ष
अवमंदित आवर्ती दोलन का अध्ययन वास्तविक प्रणालियों के व्यवहार को समझने में अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि आदर्श मुक्त दोलन प्रकृति में संभव नहीं।
इसका अवकल समीकरण यांत्रिक, विद्युत, और ध्वनिक सभी प्रणालियों में लागू होता है।
गुणता कारक Q से यह तय किया जाता है कि प्रणाली कितने समय तक और कितनी शुद्धता से दोलन करेगी।
Dinesh, अगर आप चाहें तो मैं इस उत्तर में दोलन का ग्राफ, आयाम क्षय का चित्र, और तीनों प्रकार के अवमंदन के डायग्राम भी जोड़कर आपके ब्लॉग को और अधिक विज़ुअल बना सकता हूँ।
प्रश्न 04 🧲 बायो-सावर्ट नियम समझाइए तथा किसी धारा प्रवाहित वृत्ताकार कुण्डली के अक्ष के किसी बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र हेतु व्यंजक व्युत्पन्न कीजिए। इस क्षेत्र को परिवर्तन समझाइए।
📖 परिचय
विद्युत धारा के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र का निर्धारण करने के लिए बायो-सावर्ट नियम (Biot–Savart Law) भौतिकी का एक बुनियादी सिद्धांत है।
यह नियम विद्युत धारा के सूक्ष्म तत्व से किसी बिंदु पर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र को मापने की गणना प्रदान करता है।
🧾 बायो-सावर्ट नियम – परिभाषा
बायो-सावर्ट नियम के अनुसार, किसी धारा वहन करने वाले सूक्ष्म तत्व Idl से किसी बिंदु पर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र dB का परिमाण इस प्रकार होता है:
dB=4πμ0r2Idl×r^जहाँ:
-
μ0 = मुक्त स्थान की चुंबकीय पारगम्यता
-
I = धारा
-
dl = धारा तत्व का वेक्टर लंबाई
-
r = तत्व से बिंदु की दूरी
-
r^ = दूरी का इकाई वेक्टर
📌 बायो-सावर्ट नियम की विशेषताएँ
🔹 चुंबकीय क्षेत्र धारा के सीधे अनुपाती होता है।
🔹 दूरी बढ़ने पर चुंबकीय क्षेत्र r21 के अनुपात में घटता है।
🔹 क्षेत्र की दिशा राइट हैंड रूल से ज्ञात होती है।
🎯 धारा प्रवाहित वृत्ताकार कुण्डली के अक्ष पर चुंबकीय क्षेत्र
📐 व्यवस्था (Setup)
मान लें:
-
कुण्डली की त्रिज्या = a
-
कुण्डली में धारा = I
-
केंद्र O से अक्ष पर बिंदु P की दूरी = x
-
कुण्डली के तल का सामान्य अक्ष OP है।
🧮 व्युत्पत्ति (Derivation)
1️⃣ चुंबकीय क्षेत्र का अवयव
कुण्डली का प्रत्येक सूक्ष्म तत्व Idl बिंदु P पर चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करेगा।
समानता (Symmetry) के कारण सभी क्षैतिज अवयव एक-दूसरे को निरस्त करेंगे और केवल अक्षीय अवयव जुड़ेंगे।
2️⃣ दूरी और कोण
तत्व से बिंदु P तक की दूरी:
r=a2+x2तत्व और अक्ष के बीच कोण:
cosθ=rx3️⃣ बायो-सावर्ट नियम से
तत्वीय क्षेत्र का अक्षीय अवयव:
dBx=4πμ0r2Idlsinϕcosθजहाँ sinϕ=ra।
4️⃣ पूर्ण क्षेत्र के लिए समाकलन
पूरी परिधि 2πa पर समाकलन:
Bx=4πμ0(a2+x2)3/2I(2πa2)📊 अंतिम व्यंजक
Bx=2(a2+x2)3/2μ0Ia2यह धारा प्रवाहित वृत्ताकार कुण्डली के अक्ष पर बिंदु P पर चुंबकीय क्षेत्र का व्यंजक है।
🔄 चुंबकीय क्षेत्र का परिवर्तन (Variation)
📉 1️⃣ केंद्र पर (x=0)
B0=2aμ0Iयह अधिकतम होता है।
📉 2️⃣ दूरस्थ बिंदु (x≫a)
Bx≈2x3μ0Ia2यह चुंबकीय द्विध्रुव के क्षेत्र जैसा व्यवहार करता है।
📈 3️⃣ परिवर्तन का रुझान
-
x बढ़ने पर क्षेत्र तीव्रता घटती है।
-
कुण्डली के केंद्र पर क्षेत्र सबसे अधिक होता है और दोनों दिशाओं में समान रूप से घटता है।
📌 अनुप्रयोग
🧲 गैल्वानोमीटर और वोल्टमीटर में
अक्षीय क्षेत्र का उपयोग संवेदनशील माप में किया जाता है।
📡 संचार उपकरणों में
कुण्डली आधारित एंटीना डिज़ाइन में।
🧪 भौतिकी प्रयोगशालाओं में
चुंबकीय क्षेत्र के सटीक अध्ययन में।
🏁 निष्कर्ष
बायो-सावर्ट नियम विद्युत धारा से उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र की सटीक गणना का आधार है।
वृत्ताकार कुण्डली के अक्ष पर क्षेत्र का व्यंजक यह दिखाता है कि क्षेत्र दूरी के साथ कैसे बदलता है और किस स्थिति में यह अधिकतम या न्यूनतम होता है।
यह सिद्धांत न केवल सैद्धांतिक भौतिकी में बल्कि आधुनिक तकनीकी उपकरणों में भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 05 🔥 मैक्सवैल के चारों ऊष्मागतिकी सम्बन्धों को स्थापित कीजिए। उन संबंधों की उपयोगिता को समझाइए।
📖 परिचय
मैक्सवैल के ऊष्मागतिकी संबंध (Maxwell's Thermodynamic Relations) ऐसे चार गणितीय समीकरण हैं जो ऊष्मागतिकी की अवस्थाओं के चर (जैसे तापमान, दाब, एंट्रॉपी, आयतन आदि) के बीच संबंध बताते हैं।
ये संबंध मूल रूप से ऊष्मागतिकी के प्रथम एवं द्वितीय नियम से व्युत्पन्न होते हैं और आंशिक अवकलज के गुणों का उपयोग करते हैं।
इनका मुख्य लाभ यह है कि हम किसी कठिन मापने योग्य राशि को आसान माप वाली राशियों की मदद से ज्ञात कर सकते हैं।
🎯 आधारभूत सिद्धांत
🧮 प्रथम नियम (First Law)
dU=TdS−PdVजहाँ:
-
U = आंतरिक ऊर्जा
-
T = तापमान
-
S = एंट्रॉपी
-
P = दाब
-
V = आयतन
🧩 चार ऊष्मागतिकी संभाव्य (Thermodynamic Potentials)
मैक्सवैल संबंध इन्हीं चार संभाव्यों से आते हैं:
1️⃣ आंतरिक ऊर्जा U(S,V)
dU=TdS−PdV2️⃣ हेल्महोल्ट्ज मुक्त ऊर्जा F(T,V)
F=U−TS⇒dF=−SdT−PdV3️⃣ एंथैल्पी H(S,P)
H=U+PV⇒dH=TdS+VdP4️⃣ गिब्स मुक्त ऊर्जा G(T,P)
G=U−TS+PV⇒dG=−SdT+VdP📌 मैक्सवैल के चार संबंधों की व्युत्पत्ति
1️⃣ पहला मैक्सवैल संबंध ♨️
आधार: U(S,V)
(∂V∂T)S=−(∂S∂P)V📐 व्युत्पत्ति:
-
dU=TdS−PdV से T=(∂S∂U)V और −P=(∂V∂U)S
-
मिश्रित आंशिक अवकलज के गुण से परिणाम प्राप्त।
2️⃣ दूसरा मैक्सवैल संबंध 🌡
आधार: F(T,V)
(∂V∂S)T=(∂T∂P)V📐 व्युत्पत्ति:
-
dF=−SdT−PdV से −S=(∂T∂F)V और −P=(∂V∂F)T
-
क्रॉस डिफरेंशिएशन से परिणाम।
3️⃣ तीसरा मैक्सवैल संबंध 💨
आधार: H(S,P)
(∂P∂T)S=(∂S∂V)P📐 व्युत्पत्ति:
-
dH=TdS+VdP से T=(∂S∂H)P और V=(∂P∂H)S
-
मिश्रित अवकलज का उपयोग।
4️⃣ चौथा मैक्सवैल संबंध 📦
आधार: G(T,P)
(∂P∂S)T=−(∂T∂V)P📐 व्युत्पत्ति:
-
dG=−SdT+VdP से −S=(∂T∂G)P और V=(∂P∂G)T
-
क्रॉस डिफरेंशिएशन से परिणाम।
📊 सारणी – मैक्सवैल के चार संबंध
क्रम | संभाव्य | मैक्सवैल संबंध |
---|---|---|
1 | U(S,V) | (∂V∂T)S=−(∂S∂P)V |
2 | F(T,V) | (∂V∂S)T=(∂T∂P)V |
3 | H(S,P) | (∂P∂T)S=(∂S∂V)P |
4 | G(T,P) | (∂P∂S)T=−(∂T∂V)P |
📌 उपयोगिता (Applications)
🔹 1. कठिन राशियों का परोक्ष मापन
एंट्रॉपी जैसी मात्रा को सीधे मापना कठिन है, लेकिन मैक्सवैल संबंधों से इसे तापमान, दाब और आयतन जैसे आसानी से मापने योग्य चर के माध्यम से पाया जा सकता है।
🔹 2. ऊष्मागतिकी चक्रों का विश्लेषण
इंजन और रेफ्रिजरेटर के प्रदर्शन का अध्ययन इन संबंधों से सरल हो जाता है।
🔹 3. पदार्थ के गुण निर्धारण
तापीय प्रसार गुणांक, संपीड़नीयता और अन्य अवस्थागतिक गुण इन संबंधों की मदद से निकालना आसान होता है।
🔹 4. क्रायोजेनिक्स और निम्न ताप भौतिकी
निम्न तापमान पर पदार्थों के व्यवहार की भविष्यवाणी में।
🏁 निष्कर्ष
मैक्सवैल के ऊष्मागतिकी संबंध ऊष्मागतिकी के अध्ययन में गणितीय और प्रायोगिक दोनों दृष्टियों से अत्यंत उपयोगी हैं।
ये हमें कठिन माप वाली राशियों को आसान माप योग्य राशियों से जोड़ने की सुविधा देते हैं और भौतिकी, रसायन विज्ञान एवं अभियंत्रण में इनका विशेष स्थान है।
प्रश्न 01 ⚡ पूर्ण तरंग ब्रिज दिष्टकारी के कार्य को एक स्वच्छ चित्र के द्वारा समझाइए। इसकी एक पूर्ण तरंग दिष्टकारी के ऊपर क्या विशेषताएँ हैं।
📖 परिचय
पूर्ण तरंग ब्रिज दिष्टकारी (Full Wave Bridge Rectifier) एक ऐसा परिपथ है जो एसी (AC) वोल्टेज को डीसी (DC) वोल्टेज में बदलता है, और इसमें ब्रिज के रूप में चार डायोड लगाए जाते हैं।
इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह एसी इनपुट की दोनों अर्ध तरंगों को डीसी में परिवर्तित करता है, जिससे आउटपुट स्मूथ और उच्च औसत वोल्टेज वाला होता है।
🔌 दिष्टकारी (Rectifier) का सामान्य सिद्धांत
दिष्टकारी का कार्य एसी करंट को एक दिशा में प्रवाहित करके डीसी करंट प्राप्त करना है। डायोड की एक-दिशात्मक चालकता इस कार्य का आधार है।
⚙️ कार्य प्रणाली (Working Principle)
🔹 पहला अर्ध चक्र (Positive Half Cycle)
-
इनपुट का पॉजिटिव टर्मिनल D1 और D2 को फॉरवर्ड बायस करता है।
-
D3 और D4 रिवर्स बायस रहते हैं।
-
करंट पथ: AC Source → D1 → Load RL → D2 → AC Source
-
लोड में करंट एक दिशा में बहता है।
🔹 दूसरा अर्ध चक्र (Negative Half Cycle)
-
इनपुट का पॉजिटिव टर्मिनल अब D3 और D4 को फॉरवर्ड बायस करता है।
-
D1 और D2 रिवर्स बायस रहते हैं।
-
करंट पथ: AC Source → D3 → Load RL → D4 → AC Source
-
लोड में करंट की दिशा पहले जैसी ही रहती है।
📈 आउटपुट तरंग का स्वरूप
आउटपुट वेवफॉर्म में एसी की दोनों अर्ध तरंगें पॉजिटिव हो जाती हैं।
-
आवृत्ति = इनपुट की दोगुनी।
-
औसत डीसी वोल्टेज = VDC=π2Vm (बिना फिल्टर)
🧮 गणितीय विश्लेषण
🔹 आउटपुट डीसी मान
VDC=π2Vmजहाँ Vm = पीक वोल्टेज।
🔹 RMS मान
VRMS=2Vm🔹 दक्षता (Efficiency)
आदर्श स्थिति में:
ηmax≈81.2%🌟 विशेषताएँ (Advantages)
✅ 1. ट्रांसफार्मर के सेंटर टैप की आवश्यकता नहीं
यह साधारण ट्रांसफार्मर के साथ काम कर सकता है।
✅ 2. उच्च आउटपुट वोल्टेज
दोनों अर्ध तरंगों का उपयोग होने के कारण औसत वोल्टेज अधिक मिलता है।
✅ 3. अधिक दक्षता
समान इनपुट पर हाफ वेव दिष्टकारी की तुलना में लगभग दोगुनी दक्षता।
✅ 4. कम रिपल फैक्टर
आउटपुट में तरंगीयता कम होती है, जिससे फिल्टर छोटा लगाया जा सकता है।
✅ 5. समान दिशा का करंट
लोड में करंट हमेशा एक ही दिशा में बहता है।
⚖️ पूर्ण तरंग सेंटर टैप दिष्टकारी पर श्रेष्ठता
🔹 1. ट्रांसफार्मर डिज़ाइन सरल
सेंटर टैप वाइंडिंग की आवश्यकता नहीं, जिससे ट्रांसफार्मर बनाना आसान और सस्ता होता है।
🔹 2. अधिक वोल्टेज उपयोग
सेंटर टैप डिज़ाइन में प्रत्येक हाफ वाइंडिंग पर आधा वोल्टेज आता है, जबकि ब्रिज में पूरी वाइंडिंग का वोल्टेज इस्तेमाल होता है।
🔹 3. छोटे आकार और कम लागत
चार डायोड का उपयोग सेंटर टैप की अतिरिक्त कॉपर लागत से सस्ता पड़ सकता है।
📌 उपयोग (Applications)
🔹 1. DC पावर सप्लाई
रेडियो, टीवी, लैपटॉप एडेप्टर, चार्जर इत्यादि में।
🔹 2. बैटरी चार्जिंग
सतत डीसी आउटपुट के लिए।
🔹 3. इलेक्ट्रॉनिक उपकरण
सभी इलेक्ट्रॉनिक सर्किट जिन्हें स्थिर डीसी की आवश्यकता होती है।
🏁 निष्कर्ष
पूर्ण तरंग ब्रिज दिष्टकारी एसी को डीसी में बदलने का एक कुशल और लोकप्रिय तरीका है।
यह सेंटर टैप दिष्टकारी की तुलना में सरल, अधिक कुशल और लागत में किफायती है, इसलिए यह छोटे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से लेकर औद्योगिक पावर सप्लाई तक व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 03 ♨️ दर्शाइए कि सभी व्युत्क्रमणीय प्रक्रियाओं में निकाय की एन्ट्रॉपी बढ़ती है जबकि उत्क्रमणीय प्रक्रियाओं में एन्ट्रॉपी नियत रहती है
📖 परिचय
एन्ट्रॉपी (Entropy) ऊष्मागतिकी का एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, जिसे ऊर्जा के अपरिवर्तनीय प्रसार या अव्यवस्था के माप के रूप में समझा जाता है।
यह बताती है कि किसी प्रक्रिया के दौरान प्रणाली (System) और परिवेश (Surroundings) में ऊर्जा कैसे बंटती है और कितनी ऊर्जा "उपयोगी" रूप में बनी रहती है।
🔍 एन्ट्रॉपी की परिभाषा
एन्ट्रॉपी एक State Function है, अर्थात यह केवल प्रणाली की प्रारंभिक और अंतिम अवस्था पर निर्भर करती है, न कि उस अवस्था तक पहुँचने के मार्ग पर।
गणितीय रूप से, उत्क्रमणीय प्रक्रिया के लिए एन्ट्रॉपी परिवर्तन इस प्रकार परिभाषित है —
जहाँ:
-
dS = एन्ट्रॉपी में सूक्ष्म परिवर्तन
-
δQrev = उत्क्रमणीय रूप से दी गई ऊष्मा
-
T = तापमान (केल्विन में)
🧩 प्रक्रियाओं का वर्गीकरण
एन्ट्रॉपी के विश्लेषण के लिए प्रक्रियाएँ दो प्रकार की मानी जाती हैं:
🔹 1. उत्क्रमणीय प्रक्रिया (Reversible Process)
-
बहुत धीमी गति से होती है।
-
प्रणाली एवं परिवेश हमेशा ऊष्मागतिक संतुलन में रहते हैं।
-
घर्षण, विसिपेशन या अन्य हानियाँ नगण्य होती हैं।
🔹 2. व्युत्क्रमणीय प्रक्रिया (Irreversible Process)
-
तीव्र गति से या असंतुलन की स्थिति में होती है।
-
घर्षण, श्यानता, तापीय चालकता आदि के कारण ऊर्जा का बिखराव होता है।
-
प्रणाली एवं परिवेश में ऊष्मागतिक संतुलन नहीं रहता।
🧮 उत्क्रमणीय प्रक्रिया में एन्ट्रॉपी
📌 व्युत्पत्ति (Derivation)
उत्क्रमणीय प्रक्रिया के लिए,
dSsystem=TδQrevअगर हम संपूर्ण प्रणाली + परिवेश को देखें, तो
-
प्रणाली में जितनी ऊष्मा आती है, उतनी ही ऊष्मा परिवेश से जाती है।
-
इसलिए, कुल एन्ट्रॉपी परिवर्तन:
🗝 परिणाम
उत्क्रमणीय प्रक्रिया में कुल एन्ट्रॉपी परिवर्तन शून्य होता है।
लेकिन प्रणाली या परिवेश की एन्ट्रॉपी अलग-अलग बदल सकती है, पर कुल योग अपरिवर्तित रहता है।
🌡 व्युत्क्रमणीय प्रक्रिया में एन्ट्रॉपी
📌 विश्लेषण
व्युत्क्रमणीय प्रक्रिया में —
-
घर्षण, विसिपेशन, अनियंत्रित प्रसार, मिश्रण, तापीय चालकता आदि के कारण ऊष्मा का अपरिवर्तनीय बिखराव होता है।
-
यह बिखराव प्रणाली + परिवेश की कुल एन्ट्रॉपी को बढ़ाता है।
गणितीय रूप से,
dStotal=dSsystem+dSsurroundings>0🗝 परिणाम
व्युत्क्रमणीय प्रक्रिया में कुल एन्ट्रॉपी हमेशा बढ़ती है और यह कभी घट नहीं सकती।
🔬 भौतिक अर्थ (Physical Meaning)
🌱 उत्क्रमणीय प्रक्रिया में
-
यह एक आदर्श कल्पना है जिसमें ऊर्जा का कोई नुकसान नहीं होता।
-
प्रकृति में पूरी तरह उत्क्रमणीय प्रक्रियाएँ लगभग असंभव हैं।
🌪 व्युत्क्रमणीय प्रक्रिया में
-
ऊर्जा का एक भाग "उपयोगी" रूप से कार्य करने में सक्षम नहीं रहता।
-
यह हिस्सा एंट्रॉपी वृद्धि के रूप में दर्ज होता है।
📊 सारणीबद्ध तुलना
विशेषता | उत्क्रमणीय प्रक्रिया | व्युत्क्रमणीय प्रक्रिया |
---|---|---|
संतुलन | हाँ, हर चरण में | नहीं |
एन्ट्रॉपी परिवर्तन (ΔStotal) | 0 | > 0 |
ऊर्जा हानि | नहीं | होती है |
उदाहरण | बहुत धीमी समतापीय प्रसार | गैस का त्वरित मुक्त प्रसार |
🧭 ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम और एन्ट्रॉपी
ऊष्मागतिकी का दूसरा नियम एन्ट्रॉपी परिवर्तन के रूप में इस प्रकार कहा जा सकता है:
ΔStotal={0>0उत्क्रमणीय प्रक्रिया के लिएव्युत्क्रमणीय प्रक्रिया के लिए🛠 उदाहरण द्वारा स्पष्टिकरण
🔹 उत्क्रमणीय प्रक्रिया का उदाहरण – समतापीय प्रसार
-
गैस का बहुत धीरे-धीरे प्रसार किया जाए ताकि हर क्षण संतुलन बना रहे।
-
ऊष्मा और कार्य के आदान-प्रदान में कोई हानि नहीं होती।
-
कुल एन्ट्रॉपी परिवर्तन शून्य।
🔹 व्युत्क्रमणीय प्रक्रिया का उदाहरण – मुक्त प्रसार (Free Expansion)
-
गैस को निर्वात में तुरंत फैलने दिया जाए।
-
कोई कार्य नहीं होता, पर गैस की अव्यवस्था बढ़ती है।
-
कुल एन्ट्रॉपी परिवर्तन धनात्मक।
📌 निष्कर्ष
-
उत्क्रमणीय प्रक्रिया में: कुल एन्ट्रॉपी परिवर्तन 0 होता है।
-
व्युत्क्रमणीय प्रक्रिया में: कुल एन्ट्रॉपी हमेशा बढ़ती है (ΔS>0)।
-
यह सिद्धांत प्रकृति में होने वाली सभी वास्तविक प्रक्रियाओं की दिशा तय करता है — प्रक्रियाएँ स्वाभाविक रूप से उस दिशा में चलती हैं जिसमें कुल एन्ट्रॉपी बढ़े।
प्रश्न 02 📐 क्लॉसियस-क्लैपेरॉन समीकरण का निगमन कीजिए। यह समीकरण (1) ठोसों के गलनांक तथा (2) द्रवों के क्वथनांक पर दाब के प्रभाव को कैसे समझाता है
📖 परिचय
क्लॉसियस-क्लैपेरॉन समीकरण ऊष्मागतिकी का एक महत्वपूर्ण संबंध है, जो दो अवस्थाओं (जैसे ठोस-तरल, तरल-वाष्प) के बीच संतुलन की स्थिति में तापमान और दाब के परस्पर संबंध को व्यक्त करता है।
यह समीकरण बताता है कि किस प्रकार तापमान और दाब में परिवर्तन से किसी पदार्थ का गलनांक (Melting Point) या क्वथनांक (Boiling Point) बदलता है।
🧮 क्लॉसियस-क्लैपेरॉन समीकरण का निगमन
🔹 प्रारंभिक स्थिति
मान लें कि कोई पदार्थ दो अवस्थाओं (Phase 1 और Phase 2) में संतुलन की स्थिति में है। उदाहरण के लिए:
-
ठोस ↔ द्रव
-
द्रव ↔ वाष्प
संतुलन रेखा पर एक सूक्ष्म परिवर्तन dp और dT के कारण दोनों अवस्थाओं का गिब्स मुक्त ऊर्जा (Gibbs Free Energy) समान रहती है।
🔹 गिब्स मुक्त ऊर्जा का परिवर्तन
गिब्स ऊर्जा का अवकल रूप:
dG=Vdp−SdTजहाँ:
-
V = आयतन
-
S = एंट्रॉपी
दोनों अवस्थाओं के लिए:
dG1=V1dp−S1dT dG2=V2dp−S2dT🔹 संतुलन की शर्त
संतुलन पर dG1=dG2, अतः
V1dp−S1dT=V2dp−S2dT🔹 पुनर्व्यवस्था
(V1−V2)dp=(S1−S2)dTएन्ट्रॉपी का अंतर ऊष्मा परिवर्तन से संबंधित है:
S2−S1=TLजहाँ L = गुप्त ऊष्मा (Latent Heat) है।
🔹 अंतिम समीकरण
dTdp=T(V2−V1)Lयही क्लॉसियस-क्लैपेरॉन समीकरण है।
📂 समीकरण का महत्व
-
यह किसी पदार्थ के Phase Diagram में ढाल (Slope) बताता है।
-
दाब और तापमान का संबंध स्पष्ट करता है।
-
गलनांक और क्वथनांक के दाब पर निर्भरता को गणितीय रूप से समझाता है।
🌡 ठोसों के गलनांक पर दाब का प्रभाव
🔹 सामान्य स्थिति
अधिकांश पदार्थों में ठोस अवस्था का आयतन द्रव अवस्था से अधिक होता है।
Vsolid>Vliquidक्लॉसियस-क्लैपेरॉन समीकरण के अनुसार:
dTdp=T(Vliquid−Vsolid)L🔹 प्रभाव
-
यदि Vliquid<Vsolid (जैसे बर्फ में), तो Vliquid−Vsolid नकारात्मक होगा।
-
परिणामस्वरूप, dp/dT नकारात्मक होगा — यानी दाब बढ़ाने पर गलनांक घटता है।
💡 उदाहरण – बर्फ
-
बर्फ का घनत्व पानी से कम है, अतः पिघलने पर आयतन घटता है।
-
दाब बढ़ाने पर बर्फ का गलनांक घट जाता है, इसलिए स्केटिंग करते समय ब्लेड के नीचे बर्फ पिघलकर पानी की पतली परत बनाती है।
♨️ द्रवों के क्वथनांक पर दाब का प्रभाव
🔹 सामान्य स्थिति
वाष्प का आयतन द्रव से कहीं अधिक होता है:
Vvapour≫Vliquidक्लॉसियस-क्लैपेरॉन समीकरण के अनुसार:
dTdp=T(Vvapour−Vliquid)L≈TVvapourL🔹 प्रभाव
-
दाब बढ़ाने पर क्वथनांक बढ़ता है।
-
यही कारण है कि प्रेशर कुकर में पानी 100°C से अधिक तापमान पर उबलता है।
-
कम दाब (जैसे पहाड़ों पर) पर क्वथनांक घट जाता है, इसलिए वहाँ पानी जल्दी उबल जाता है।
📊 सारांश तालिका
प्रभाव | गलनांक | क्वथनांक |
---|---|---|
दाब बढ़ाना | अधिकांश ठोसों में बढ़ता है, बर्फ में घटता है | हमेशा बढ़ता है |
दाब घटाना | अधिकांश ठोसों में घटता है, बर्फ में बढ़ता है | घटता है |
🛠 निष्कर्ष
-
क्लॉसियस-क्लैपेरॉन समीकरण ऊष्मागतिकी में अवस्थाओं के परिवर्तन के दौरान दाब-तापमान संबंध को स्पष्ट करता है।
-
ठोसों के गलनांक पर दाब का प्रभाव पदार्थ के आयतन परिवर्तन पर निर्भर करता है।
-
द्रवों के क्वथनांक पर दाब का प्रभाव हमेशा धनात्मक होता है — दाब बढ़ाने पर क्वथनांक बढ़ता है।
प्रश्न 04 🧲 लॉरेन्ज बल क्या है? एक आवेशित कण का पथ क्या होगा यदि वह एक समान चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् गति कर रहा हो। समझाइए
📖 परिचय
विद्युत और चुंबकीय क्षेत्रों में गतिशील आवेशित कण पर जो बल कार्य करता है, उसे लॉरेन्ज बल कहा जाता है। यह अवधारणा विद्युतचुंबकत्व का एक मूलभूत सिद्धांत है, जिसे 1895 में हेन्ड्रिक लॉरेन्ज ने प्रतिपादित किया।
लॉरेन्ज बल के कारण कण का पथ उसकी वेग की दिशा और चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के बीच संबंध पर निर्भर करता है।
⚡ लॉरेन्ज बल की परिभाषा
यदि किसी आवेशित कण पर विद्युत क्षेत्र (E) और चुंबकीय क्षेत्र (B) दोनों कार्य कर रहे हों, तो उस पर कुल बल होगा:
F=qE+q(v×B)जहाँ:
-
q = कण का आवेश
-
v = कण का वेग
-
B = चुंबकीय क्षेत्र
-
× = क्रॉस-प्रॉडक्ट
🔍 लॉरेन्ज बल के दो भाग
1️⃣ विद्युत बल (qE)
-
कण के आवेश और विद्युत क्षेत्र पर निर्भर
-
वेग से स्वतंत्र
-
बल की दिशा विद्युत क्षेत्र की दिशा में (धनात्मक आवेश के लिए)
2️⃣ चुंबकीय बल (q(v×B))
-
केवल गतिशील आवेश पर कार्य करता है
-
बल की दिशा दाएं हाथ के नियम से निर्धारित होती है
-
बल की परिमाण:
जहाँ θ = v और B के बीच कोण
🌀 केवल चुंबकीय क्षेत्र में कण की गति
🔹 विशेष स्थिति
मान लें कि:
-
विद्युत क्षेत्र अनुपस्थित है (E=0)
-
चुंबकीय क्षेत्र समान है और z-अक्ष की दिशा में है
-
कण की प्रारंभिक गति चुंबकीय क्षेत्र के लंबवत है
🔹 बल की दिशा
चूंकि F=q(v×B), इसलिए:
-
F हमेशा वेग के लंबवत होगा
-
इससे कण की गति की दिशा बदलती है, परंतु परिमाण (Speed) स्थिर रहता है
🔹 वृत्ताकार पथ का निर्माण
चुंबकीय बल एक केन्द्राभिमुख बल के रूप में कार्य करता है:
qvB=rmv2जहाँ:
-
m = कण का द्रव्यमान
-
r = वृत्त की त्रिज्या
🔹 त्रिज्या का व्यंजक
r=qBmv-
r कण की गति, द्रव्यमान और चुंबकीय क्षेत्र पर निर्भर करता है
-
अधिक वेग या अधिक द्रव्यमान → बड़ा वृत्त
-
अधिक चुंबकीय क्षेत्र या अधिक आवेश → छोटा वृत्त
🔹 परिक्रमण काल
कण के एक चक्कर का समय:
T=v2πr=qB2πm-
ध्यान दें कि T वेग पर निर्भर नहीं है
-
इसे साइक्लोट्रॉन आवृति कहते हैं:
🎯 पथ का विश्लेषण
🔹 प्रारंभिक वेग चुंबकीय क्षेत्र के लम्बवत
-
पथ: पूर्ण वृत्त
-
त्रिज्या: r=qBmv
-
उदाहरण: इलेक्ट्रॉन ट्यूब में इलेक्ट्रॉनों का मोड़ना
🔹 प्रारंभिक वेग चुंबकीय क्षेत्र के समानांतर
-
चुंबकीय बल शून्य (क्योंकि sin0∘=0)
-
पथ: सीधी रेखा
🔹 प्रारंभिक वेग कोण पर
-
गति का एक घटक (v∥) चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में
-
दूसरा घटक (v⊥) लम्बवत
-
पथ: हेलिक्स (स्प्रिंग के आकार का)
📊 सारांश तालिका
प्रारंभिक वेग | पथ का प्रकार | त्रिज्या पर प्रभाव |
---|---|---|
v⊥B | वृत्ताकार | r=qBmv |
v∥B | सीधी रेखा | लागू नहीं |
कोण पर | हेलिकल | r=qBmv⊥ |
🛠 निष्कर्ष
-
लॉरेन्ज बल विद्युत और चुंबकीय क्षेत्रों में गतिशील आवेश पर कार्य करने वाला कुल बल है।
-
केवल चुंबकीय क्षेत्र में और v⊥B होने पर, कण वृत्ताकार पथ पर चलता है।
-
त्रिज्या, परिक्रमण काल और आवृत्ति द्रव्यमान, आवेश और चुंबकीय क्षेत्र पर निर्भर करते हैं।
प्रश्न 05 🌊 एक अनुप्रस्थ तरंग का समीकरण तथा इसके मापदंड
📜 दिए गए आंकड़े और समीकरण
दिया गया तरंग समीकरण:
Y=4sin 2π(0.04t−400x)-
x और y → सेंटीमीटर में
-
t → सेकंड में
🔍 तरंग समीकरण का सामान्य रूप
सामान्यत: एक अनुप्रस्थ तरंग को इस रूप में लिखा जाता है:
y=Asin(2πTt−2πλx)जहाँ:
-
A → तरंग का आयाम (Amplitude)
-
T → आवर्तकाल (Time period)
-
λ → तरंगदैर्ध्य (Wavelength)
-
v → तरंग का वेग (Velocity)
-
f → आवृत्ति (Frequency)
📌 तुलना द्वारा मापदंड निकालना
दिया गया समीकरण:
Y=4sin2π(0.04t−400x)इसे सामान्य रूप से तुलना करने पर हमें मिलता है:
-
A=4 cm
-
T=0.04 s
-
λ=400 cm
🧮 (i) तरंग का आयाम 📏
परिभाषा: आयाम वह अधिकतम विस्थापन है जो तरंग के किसी कण का संतुलन स्थिति से होता है।
गणना:
A=4 cmउत्तर: 4 cm
🧮 (ii) तरंग का तरंगदैर्ध्य 🌐
परिभाषा: तरंगदैर्ध्य वह दूरी है जिसके बाद तरंग का पैटर्न स्वयं को दोहराता है।
गणना:
समीकरण से स्पष्ट है कि:
उत्तर: 4 m
🧮 (iii) तरंग का वेग 🚀
परिभाषा: तरंग का वेग = तरंगदैर्ध्य × आवृत्ति
v=Tλगणना:
v=0.04 s4 m=100 m/sउत्तर: 100 m/s
🧮 (iv) तरंग की आवृत्ति 🎵
परिभाषा: आवृत्ति वह संख्या है जितनी तरंगें प्रति सेकंड गुजरती हैं।
f=T1गणना:
f=0.041=25 Hzउत्तर: 25 Hz
📊 सारणीबद्ध उत्तर
क्रमांक | मापदंड | मान | इकाई |
---|---|---|---|
1 | आयाम (A) | 4 | cm |
2 | तरंगदैर्ध्य (λ) | 4 | m |
3 | वेग (v) | 100 | m/s |
4 | आवृत्ति (f) | 25 | Hz |
🌟 निष्कर्ष
दिए गए समीकरण में एक अनुप्रस्थ तरंग का विस्तृत रूप से विश्लेषण किया गया। तुलना से पता चला कि:
-
तरंग का आयाम 4 cm है, जो इसकी ऊँचाई बताता है।
-
तरंग का तरंगदैर्ध्य 4 m है, जो दो समान फेज वाले बिंदुओं के बीच की दूरी है।
-
तरंग का वेग 100 m/s है, जो दर्शाता है कि तरंग कितनी तेजी से आगे बढ़ रही है।
-
तरंग की आवृत्ति 25 Hz है, जो प्रति सेकंड 25 चक्रों को दर्शाती है।
इस प्रकार, समीकरण के माध्यम से हम तरंग के सभी भौतिक मापदंडों को आसानी से निकाल सकते हैं, जो आगे के अध्ययन और प्रयोगों में उपयोगी होते हैं।
प्रश्न 06 पारे की एक बूंद की त्रिज्या कमरे के तापमान पर तीन मि.मी. है। पारे का पृष्ठ तनाव उस तापमान पर 4.65 x 10-1 न्यूटन मी. है। बूंद के अंदर, अतिरिक्त दबाव तथा कुल दबाव ज्ञात कीजिए। (वायुमण्डलीय दबाव है 1.01 105 न्यूटन/मी.)।
समस्या का विवरण
-
बूंद की त्रिज्या r=3.00 mm=3.00×10−3 m.
-
उस तापमान पर पारे की सतह तनाव (surface tension) γ=4.65×10−1 N/m=0.465 N/m.
-
वायुमंडलीय दबाव Patm=1.01×105 N/m2.
-
माँगा गया: (i) बूंद के अंदर अतिरिक्त दाब (excess pressure), और (ii) बूंद के अंदर कुल दाब (total pressure)।
🔍 सिद्धान्त और सम्बन्ध (Why)
एक तरल-बिंदु (single liquid drop) के लिए सतह वक्रता के कारण अंदर और बाहर के दबाव में अंतर होता है। गोलाकार बूंद के लिए यह संबंध है:
ΔP=Pinside−Poutside=r2γ(नोट: यह सूत्र इसलिए है क्योंकि बूंद की सतह पर केवल एक ही सतह मौजूद है — यदि हवा-दोनों ओर पतली फिल्म वाली बबल होती तो 4γ/r लागू होता।)
🧮 गणना — चरण दर चरण (Arithmetic done digit-by-digit)
-
सबसे पहले मात्राएँ S.I. इकाइयों में:
r=3.00 mm=3.00×10−3 m γ=4.65×10−1 N/m=0.465 N/m -
२γ की गणना:
2γ=2×0.465=0.930 N/m -
अब ΔP=r2γ=3.00×10−30.930.
इसे साधारण भिन्न में लिखें: 0.003000.930.अंक-दर-अंक:
0.930÷0.00300=0.00300×10000.930×1000=3930=310अतः
ΔP=310 N/m2 (or Pa) -
कुल दबाव (बूंद के अंदर) = वायुमंडलीय दबाव + अतिरिक्त दबाव:
Pinside=Patm+ΔP=1.01×105+310अब अंक-गणना: 1.01×105=101000. तो
Pinside=101000+310=101310 Paवैज्ञानिक मान में: 1.01310×105 Pa. सामान्यतः 3-सिग्नि-फिग़ में लिखें तो 1.013×105 Pa.
✅ अंतिम उत्तर (Summary)
-
अतिरिक्त दाब (Excess pressure) inside the drop:
ΔP=2γ/r=310 Pa(=3.10×102 Pa) -
बूंद के अंदर कुल दबाव (Total pressure):
Pinside=Patm+ΔP=1.0131×105 Pa≈1.013×105 Pa
🔎 टिप्पणी व भौतिक अर्थ (Notes & Physical meaning)
-
परिणाम दर्शाते हैं कि छोटी त्रिज्या पर अतिरिक्त दाब छोटा-सा तो लग सकता है (यहाँ केवल 310 Pa), पर माइक्रो-ड्रॉप्स में ΔP बहुत बड़ा हो सकता है क्योंकि 1/r बड़ा हो जाता है।
-
सतह तनाव जितना अधिक, या त्रिज्या जितनी छोटी — अतिरिक्त दबाव उतना ही अधिक।
-
दिया गया सतह तनाव पारे के लिए मानक तापमान पर है; तापमान बदलने पर γ बदल सकता है और इसलिए ΔP भी बदलेगा।
प्रश्न 07 🏗 यदि किसी बीम को एक सिरे पर लोड किया जाए तथा दूसरा सिरा क्लैम्प किया जाए तो निश्चित सिरे से कुछ दूरी पर अवसाद के लिए व्यक्तिपद ज्ञात कीजिए।
📖 समस्या का विवरण और मान्यताएँ
हमें एक कैंटिलीवर (cantilever) बीम लिया हुआ मानना है — यानी एक सिरा ( x=0 ) क्लैम्प (fixed) है और दूसरा सिरा x=L मुक्त है। मुक्त सिरे पर एक स्थिर (concentrated) लोड P नीचे की ओर लगाया गया है। हमें निरूपित करना है कि किसी बिंदु x (जहाँ 0≤x≤L) पर बीम का अवसाद (deflection) y(x) क्या होगा।
मान्यताएँ (Assumptions):
-
बीम को Euler–Bernoulli beam सिद्धान्त लागू होगा (लघु वक्रता, रैखिक लोच)।
-
द्रव्यमान/इनर्शिया आदि को अनदेखा करते हुए स्थिर लोड पर स्थिर अवस्था।
-
E = यंग का माड्यूल (Young’s modulus), I = सेक्शनल मोमेंट ऑफ इनर्शिया (second moment of area)।
-
x बीम के फिक्स्ड सीरें से मापा गया दूरी है।
⚙️ मूल सिद्धान्त (Bending equation)
Euler–Bernoulli के अनुसार, किसी क्रॉस-सेक्शन पर मोड्यूलर बेंडिंग समीकरण:
EIdx2d2y=M(x)जहाँ M(x) उस स्थान पर क्षण (bending moment) है। इसलिए हमें पहले M(x) ज्ञात करना होगा।
🔍 मरण (Shear) और मोमेंट (Moment) की अभिव्यक्तियाँ
कैंटिलीवर पर यदि स्वतंत्र मानचित्रण (cut) करके देखें तो किसी स्थान x पर, मुक्त सिरे पर स्थित P के कारण उस अनुभाग के लिए:
-
Shear force (V): मुक्त सिरे से बची हुई लोडिंग के कारण क्षैतिज खण्ड पर काटने पर स्थिर V(x)=−P** (नीचे की ओर) — परंतु यहाँ मुख्य आवश्यकता है मोमेंट।
-
Bending moment (M): बीम में उस स्थान पर मोमेंट बराबर है:
M(x)=−P(L−x)(चिन्ह व्यवस्था: नीचे की दिशा से जन्मा मोमेंट नकारात्मक लिया गया — आप अपनी साइन कन्वेंशन के अनुसार उसका चिह्न रख सकते हैं।)
🧮 अवकलन-समाकलन (Derivation — Integration steps)
हमारे पास:
EIdx2d2y=M(x)=−P(L−x)इसे सरल करें:
dx2d2y=−EIP(L−x)पहला समाकलन (एक बार):
dxdy=−EIP(Lx−2x2)+C1दूसरा समाकलन:
y(x)=−EIP(2Lx2−6x3)+C1x+C2अब सीमा-शर्तें (boundary conditions) लागू करें — क्लैम्पेड सिरे x=0 पर:
-
विस्थापन शून्य: y(0)=0 ⇒ इससे C2=0.
-
ढाल (slope) शून्य: y′(0)=0 ⇒ C1=0.
इस प्रकार दोनों समाकलन स्थिरांक शून्य निकलते हैं और हमें मिलता है:
y(x)=−EIP(2Lx2−6x3)इसको साधारण रूप में लिखें:
y(x)=−6EIPx2(3L−x)(नकारात्मक चिह्न दर्शाता है कि विस्थापन लोड के अनुरूप नीचे की दिशा में है — यदि आप नीचे दिशा को धनात्मक मानते हैं तो चिह्न बदल जाएगा।)
📐 विशेष मान और अतिरिक्त परिणाम (Useful special cases)
-
फिक्स्ड सिरे पर ( x=0 ): y(0)=0 — (अपेक्षित)
-
फ्री सिरे पर ( x=L ):
y(L)=−3EIPL3यह अधिकतम अवसाद (maximum deflection) है।
-
ढाल (slope) के लिए सामान्य अभिव्यक्ति:
θ(x)=dxdy=−EIP(Lx−2x2)विशेषकर फ्री सिरे पर (x=L):
θ(L)=−2EIPL2
⚙️ भौतिक अर्थ व टिप्पणियाँ
-
y(x) का रूप x2(3L−x) बताता है कि नज़दीकी फिक्स्ड रेंज में अवसाद छोटा है, पर फ्री सिरे के करीब बढ़कर अधिकतम पर पहुँचता है।
-
अधिक कठोर (बड़ा E) या अधिक जड़ता (बड़ा I) ⇒ अवसाद कम।
-
लोड P सीधे अनुपाती है — दो गुना लोड ⇒ दो गुना अवसाद।
-
यह व्युत्पत्ति Euler–Bernoulli सिद्धांत पर आधारित है; यदि बीम बेहद पतली न हो या बड़े वक्रता (large deflection) हों तो nonlinear मॉडल चाहिए।
🔧 उपयोग (Applications)
-
संरचनात्मक इंजीनियरिंग: झटके/लोड-डिस्ट्रिब्यूशन पर बीम डिजाइन।
-
निर्माण में क्लैम्पेड सपोर्ट पर उपकरणों का डिफ्लेक्शन की गणना।
-
मशीन घटकों के स्टिफनेस (stiffness) और सुरक्षा गणना में यह आधारभूत सूत्र है।
🏁 निष्कर्ष
कैंटिलीवर बीम के लिए, यदि मुक्त सीरें पर नियत लोड P लगे हो, तो निश्चित सिरे से दूरी x पर अवसाद का व्यक्तिपद है:
y(x)=−6EIPx2(3L−x)यहाँ आप साइन कन्वेंशन अनुसार नकारात्मक चिह्न की व्याख्या कर लें — पर परिमाण यही होगा।
प्रश्न 08 🌊 तरंग क्या है? मुख्य विशेषताएँ और समतल प्रगतिशील हार्मोनिक तरंग का समीकरण
1️⃣ तरंग की परिभाषा (Definition of a Wave)
तरंग एक ऐसी गड़बड़ी (disturbance) है जो किसी माध्यम (medium) या निर्वात (vacuum) में एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ऊर्जा का संचार करती है, लेकिन पदार्थ (matter) का स्थायी विस्थापन नहीं करती।
उदाहरण:
-
जल तरंगें 🌊
-
ध्वनि तरंगें 🔊
-
प्रकाश तरंगें 💡
2️⃣ मुख्य विशेषताएँ (Main Characteristics of a Wave)
-
ऊर्जा का संचार:
तरंग केवल ऊर्जा पहुँचाती है, माध्यम के कण तरंग के साथ नहीं बहते — वे अपने संतुलन स्थान के आसपास दोलन करते हैं। -
तरंगदैर्ध्य (λ):
एक जैसे दो क्रमागत बिंदुओं के बीच की दूरी (जैसे दो शिखरों के बीच)। -
आवृत्ति (f):
प्रति सेकंड किसी बिंदु से गुजरने वाले तरंग चक्रों की संख्या। -
कालावधि (T):
एक तरंग चक्र पूरा होने में लगा समय। (T=f1) -
तरंग वेग (v):
v=λf
वह दर जिससे तरंग आगे बढ़ती है: -
आयाम (A):
संतुलन स्थिति से अधिकतम विस्थापन — ऊर्जा के परिमाण से संबंधित। -
चरण (Phase):
किसी बिंदु की तरंग में स्थिति और समय का वर्णन करने वाला मात्रक।
3️⃣ समतल प्रगतिशील हार्मोनिक तरंग का समीकरण व्युत्पत्ति
मान्यताएँ (Assumptions)
-
तरंग x-अक्ष की दिशा में चल रही है।
-
तरंग हार्मोनिक है — विस्थापन समय और स्थान में साइन या कोसाइन के रूप में बदलता है।
-
माध्यम में कोई क्षय (damping) नहीं है।
चरण 1 — विस्थापन का सामान्य रूप
किसी भी बिंदु x और समय t पर विस्थापन y को इस रूप में लिखा जा सकता है:
y=Asin(ϕ)जहाँ ϕ = चरण (phase) है।
चरण 2 — चरण का निर्धारण
-
समय t=0 पर, x=0 पर चरण को ϕ0 मानते हैं।
-
तरंग की चाल v है, तो t समय में तरंग vt दूरी तय करती है।
-
एक तरंगदैर्ध्य (λ) में चरण 2π बदलता है।
इसलिए चरण को लिखा जा सकता है:
ϕ=ωt−kx+ϕ0जहाँ:
ω=2πf(कोणीय आवृत्ति) k=λ2π(तरंग संख्या)चरण 3 — समीकरण का रूप
यदि प्रारंभिक चरण ϕ0=0 है, तो:
y(x,t)=Asin(ωt−kx)यह एक समतल प्रगतिशील हार्मोनिक तरंग का समीकरण है, जो +x दिशा में चल रही है।
यदि तरंग −x दिशा में जा रही हो:
y(x,t)=Asin(ωt+kx)4️⃣ परिमाणों के अर्थ
-
A — आयाम (Amplitude)
-
ω — कोणीय आवृत्ति (=2πf)
-
k — तरंग संख्या (=2π/λ)
-
v — तरंग वेग (=ω/k)
5️⃣ निष्कर्ष
तरंग एक ऊर्जा-संचार का तरीका है जिसमें माध्यम के कण केवल दोलन करते हैं, और इसका गणितीय वर्णन साइन/कोसाइन फलन से किया जा सकता है। समतल प्रगतिशील हार्मोनिक तरंग का मानक समीकरण है:
y(x,t)=Asin(ωt−kx)